कहानी: वाइट मेलिंग

नेहा के तो जैसे सारे सपने सच हो गए थे. जिस दिन एमएससी का रिज़ल्ट आया था, उसी दिन अख़बार के शहर के एक प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल में भौतिक-विज्ञान के प्रवक्ता के पद का विज्ञापन निकला था. नेहा ने उसके लिए आवेदन भेज दिया था और बिना किसी सिफ़ारिश के उसका चयन हो गया था. जब फ़ोन पर उसके चयन की सूचना मिली तो काफ़ी देर तक उसे अपने सुने पर विश्वास ही नहीं हुआ था.

आज स्कूल का पहला दिन था. ख़ुशियों के रथ पर सवार नेहा स्कूल पहुंच गई. चपरासी ने उसे स्टाफ़-रूम का रास्ता बता दिया था. वहां कई महिला टीचर्स पहले से ही मौजूद थीं.


‘‘गुड-मॉर्निंग, एवरीबडी!’’ नेहा ने वहां बैठी अपनी वरिष्ठ सहयोगियों के चेहरे पर नज़रें दौड़ाते हुए कहा.

‘‘गुड-मॉर्निंग!’’ केवल स्थूलकाय मिसेज़ गुप्ता के होंठ हिले. बाक़ी टीचर्स ने नेहा के अभिवादन का कोई उत्तर नहीं दिया. नेहा को उन सबका व्यवहार बड़ा अजीब-सा लगा, लेकिन वह कुछ कह नहीं सकती थी इसलिए चुपचाप एक ख़ाली कुर्सी पर बैठ गई.

‘‘अपने प्रिंसिपल देशराज जी की पसंद को मानना पड़ेगा,’’ तभी रसायन-विज्ञान की प्रवक्ता मिस कामिनी फुसफुसाईं.


‘‘हां भई, ढूंढ़-ढूंढ़कर ख़ूबसूरत पंछियों से अपना पिंजरा सजाते हैं,’’ हिंदी की प्रवक्ता सचदेवा मैडम ने सांस भरी.

जी, कुछ कहा आपने नेहा अचकचा उठी. उसकी समझ में नहीं आया कि ये सारी टिप्पणियां उसके लिए की गई हैं या किसी और के लिए.


‘‘अरे, इन दोनों की तो मज़ाक करने की आदत है,’’ मिसेज़ गुप्ता ने अपनी कुर्सी नेहा के क़रीब खिसकाई फिर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोलीं,‘‘इस स्कूल में आपका स्वागत है. मैंने आपकी फ़ाइल देखी है. आप जैसी योग्य साथी का आना हम सबे लिए सौभाग्य की बात है.’’

प्रशंसा सुन नेहा के गुलाब की पंखुडियों जैसे खूबसूरत होंठ खिल उठे. उसने स्टाफ़ रूम में बैठी अपनी साथियों के चेहरे पर एक नज़र डाली. सब बुत की तरह चुप बैठी थीं, मिसेज़ गुप्ता की बात पर किसी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. जाने क्यूं नेहा को लगा कि उसके आने से यहां कोई ख़ुश नहीं है. ख़ैर...उसे क्या? वह अपने काम से काम रखेगी. अगर यहां की कोई राजनीति है तो वह उससे दूर ही रहेगी.


एक-एक दिन करके पहला सप्ताह कब बीत गया पता ही नहीं चला. नेहा बच्चों को बहुत मेहनत से पढ़ाती थी और वे सब भी अपनी नई टीचर से बहुत ख़ुश थे. इस बीच देशराज जी से  दोबारा मुलाक़ात नहीं हुई.

दूसरे सप्ताह नेहा पहला पीरियड समाप्त होने के बाद कक्षा से निकली ही थी कि देशराज जी ने उसे बुलवा लिया. नेहा उनके कक्ष में पहुंची तो उन्होंने उसे बैठने का इशारा किया और अत्यंत सम्मानित स्वर में बोले,‘‘नेहा जी, मैंने बच्चों से फ़ीड-बैक लिया है. सभी आपके पढ़ाने के ढंग से बहुत खुश हैं. अब मैं चाहता हूं कि आप एक ज़िम्मेदारी और संभाल लीजिए.’’

‘‘जी कहिए.’’

‘‘हमें इस वर्ष शासन से मिलनेवाला अनुदान अभी तक नहीं मिल पाया है. मेरा अनुरोध है कि शासन से पत्र-व्यवहार करने की ज़िम्मेदारी आप संभाल लें,’’ देशराज जी ने अपने ड्रॉअर से एक फ़ाइल निकालकर नेहा की ओर बढ़ा दी.


‘‘लेकिन सर, मुझे इस सबका कोई अनुभव नहीं है. मैं इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी कैसे संभाल पाउंगी?’’ नेहा की हिचकिचा रही थी.

‘‘नेहा जी, कहने को तो इस स्कूल में कई अनुभवी टीचर्स हैं, लेकिन सब के सब कामचोर हैं और फालतू की राजनीति करती हैं. मैं इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी उन्हें नहीं देना चाहता.’’ देशराज जी क्षण भर के लिए रुके फिर बोले,‘‘मुझे आपकी योग्यता पर पूरा भरोसा है और मैं जानता हूं कि इंसान अपनी योग्यता के बल पर अनुभव की कमी को पूरा कर सकता है. इस फ़ाइल में पिछले वर्षों में शासन के साथ हुए पत्र-व्यवहार का पूरा रिकॉर्ड मौजूद है. आप एक बार देख लेंगी तो कोई दिक़्क़त नहीं होगी. शासन को आज ही पत्र भेजा जाना है. आप ड्राफ़्ट तैयार करवा लीजिए.’’


 ‘‘ओके सर, मैं पूरी कोशिश करूंगी कि आपके भरोसे पर खरी उतरूं,’’ नेहा ने कहा और फिर फ़ाइल लेकर स्टाफ़-रूम की ओर चल दी.

इस समय सभी टीचर्स अपनी-अपनी कक्षा में थीं. स्टाफ़-रूम में सन्नाटा था. नेहा के लिए यह एकांत वरदान साबित हुआ. उसने पूरी फ़ाइल पढ़ डाली और पत्र का ड्राफ़्ट तैयार कर लिया.

 ‘‘एग्ज़ैक्टली, मैं यही चाहता था जो आपने लिखा है,’’ ड्राफ़्ट देखते ही देशराज जी का चेहरा खिल उठा. उन्होंने एक-दो जगह कुछ संशोधन किए फिर पत्र को टाइप करवाकर फ़ैक्स कर दिया.


देशराज जी ने नेहा की जी खोल कर प्रशंसा की थी. उससे अभिभूत नेहा स्टाफ़-रूम में पहुंची. कामिनी का वह पीरियड ख़ाली था इसलिए वहां बैठी हुई थी. एक सप्ताह में दोनों में हल्की-फुल्की बातचीत होने लगी थी. नेहा को देखते ही उसने कहा, ‘‘तुम्हारी क्लास में बहुत शोर हो रहा था. तुम कहां थीं?’’

नेहा ने उसे पूरी बात बताई तो कामिनी का चेहरा गंभीर हो गया,‘‘नेहा, हो सकता है कि तुम्हें सुनकर अच्छा न लगे, लेकिन एक बात बताना मैं अपना फ़र्ज़ समझती हूं...’’


‘‘कैसी बात?’’

‘‘देशराज अच्छा आदमी नहीं है. तुम ख़ूबसूरत हो इसलिए वह तुम्हें दाना डाल रहा है. उससे संभल कर रहना.’’ कामिनी ने धीमे स्वर में कहा.

‘‘क्यामतलब?’’ नेहा ने अपनी पलकें कामिनी के चेहरे पर टिका दीं.

‘‘इस स्कूल में कोई भी टीचर नियमित नहीं है. पूरी तऩख्वाह भी उसी को मिलती है, जो देशराज को ख़ुश रखे. बाक़ियों से दस्तख़त पूरे पर करवाए जाते हैं, लेकिन पैसे आधे ही दिए जाते हैं,’’ कामिनी ने रहस्योद्घाटन किया.


‘‘तो सब लोग इस अन्याय का विरोध क्यूं नहीं करते?’’ नेहा का मुंह आश्चर्य से खुल गया.

‘‘यहां कोई नियमित टीचर नहीं है इसलिए जो विरोध करेगा उसे किसी न किसी बहाने स्कूल से निकाल दिया जाएगा.’’

‘‘अरे, हम लोग टीचर हैं. बच्चों को अन्याय से लड़ने की शिक्षा देते हैं और ख़ुद इस तरह अन्याय के आगे सिर झुका दें...यह तो अपने आप में पाप है’’ नेहा ने कहा फिर अपनी मुट्ठियां भींचते हुए बोली,‘‘अगर कोई शोषण करता है तो इसके लिए कहीं न कहीं शोषण करवानेवाला भी ज़िम्मेदार होता है. हम सब पढ़े-लिखे लोग हैं. हमें मिल कर आवाज़ उठानी चाहिए फिर देखते हैं वे किस-किस को स्कूल से निकालेंगे.’’


‘‘सबकी अपनी-अपनी मजबूरियां हैं. कोई आवाज़ उठाकर नौकरी गंवाने का ख़तरा मोल नहीं लेगा,’’ कामिनी के स्वर से निराशा झलक उठी.

‘‘मैं पूरी मेहनत से पढ़ा रही हूं इसलिए तनख़्वाह भी पूरी ही लूंगी और अगर ऐसा न हुआ भरपूर विरोध करूंगी,’’ नेहा का चेहरा तमतमा उठा.

कामिनी कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कई टीचर्स को एक साथ आता देख चुप हो गई.

धीरे-धीरे दो सप्ताह और बीत गए. इस बीच शासन द्वारा कई सूचनाएं मांगी गईं थीं, जिनका जवाब बनवाने के लिए देशराज जी ने नेहा को तीन-चार बार अपने कक्ष में बुलवाया. हर बार उनका व्यवहार शिष्ट रहा. नेहा को लगने लगा कि कामिनी बेकार में उन्हें बदनाम कर रही है.


महीने का आख़िरी सप्ताह चल रहा था. एक स्थानीय त्यौहार के कारण आज स्कूल में छुट्टी थी. नेहा आराम से घर पर बैठी थी. क़रीब ग्यारह बजे देशराज जी का फ़ोन आया. वे घबराए हुए थे,‘‘नेहा जी, हमारे अनुदान की फ़ाइल पर कई आपत्तियां लग गई हैं. हमसे रिटर्न फ़ैक्स से उनका जवाब मांगा गया है. शासन का फ़ैक्स कल ही स्कूल में आ गया था, लेकिन चपरासी देना भूल गया. अगर आज हमने स्पष्टीकरण नहीं भेजा तो इस वर्ष का अनुदान नहीं मिल पाएगा. बिना अनुदान के मैं इतना बड़ा स्कूल कैसे चला पाऊंगा?’’

‘‘सर, बताइए मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूं?’’ नेहा के स्वर में सहानभूति उभर आई.

‘‘यह पूरा केस आपका ही डील किया हुआ है इसलिए आप सारी बातें जानती हैं. इतनी जल्दी और कोई इस फ़ाइल को समझ नहीं सकता. इसलिए आप स्कूल आकर जवाब तैयार करवा दीजिए,’’ देशराज जी ने विनती की.

‘‘ओके सर, आप परेशान मत होइए. मैं थोड़ी देर में स्कूल पहुंच रही हूं,’’ नेहा ने आश्वस्त किया.


नेहा जब स्कूल पहुंची तो चौकीदार गेट पर ही था. उसने बताया कि देशराज जी अपने ऑफ़िस में उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं. नेहा तेज़ क़दमों से उनके कमरे में पहुंची. वहां देशराज जी अकेले थे, जबकि नेहा को उम्मीद थी कि उन्होंने स्कूल का बजट और अनुदान डील करनेवाले लिपिकों दीपक और महेन्द्र को ज़रूर बुलवा रखा होगा. इसका मतलब अब सारा काम उसे अकेले ही करने पड़ेगा. कुर्सी पर बैठते हुए उसने पूछा,‘‘सर, दीपक और महेन्द्र नज़र नहीं आ रहे हैं?’’

‘‘उनकी ज़रूरत ही नहीं पड़ी. मैंने ख़ुद ही अभी-अभी जवाब बनाकर फ़ैक्स कर दिया है,’’ देशराज जी ने राहत भरे स्वर में बताया.


‘‘ओह, तब तो मेरी भी ज़रूरत नहीं रही,’’ नेहा कुर्सी से उठने लगी.

‘‘अब आप ही की तो ज़रूरत बची है.’’ देशराज जी उसे कुर्सी पर बैठे रहने का इशारा करते हुए मुस्कुराए.’’


‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मैंने आपका बायोडेटा दोबारा देखा है. हाई स्कूल से एमएससी तक सब फ़र्स्ट डिविज़न. इसके साथ ही बीएससी और एमएससी में गोल्ड मेडल. मेरे हिसाब से आप लेक्चरर के पद के योग्य नहीं हैं,’’ देशराज जी ने अपनी नज़रें नेहा के चेहरे पर टिकाते हुए कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ नेहा अचकचा उठी

‘‘मेरे हिसाब से आप विभागाध्यक्ष के पद के योग्य हैं. मैं आज ही आपको इस पद पर प्रमोशन दे सकता हूं. अगर आप थोड़ा-सा सहयोग करें तो,’’ देशराज जी अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराए.

‘‘कैसा सहयोग? आपको जो कुछ कहना है साफ़-साफ़ कहिए. घुमाफिरा कर बात करने की ज़रूरत नहीं,’’ अचानक नेहा की छठी इंद्रिय जाग्रत हो गई.

‘‘तो फिर साफ़-साफ़ ही बात करते हैं,’’ देशराज जी की आंखों में एक अजीब-सी चमक उभर आई और उन्होंने अपना नक़ाब पूरी तरह उतार दिया,‘‘तुम मुझे ख़ुश कर दो, बदले में मैं तुम्हारा प्रमोशन कर दूंगा.’’


झन्न... जैसी कोई मूर्ति टूट गई हो. नेहा की सोच को एक झटका-सा लगा और चीखते हुए बोली,‘‘आपने मुझे, समझने में ग़लती की है. मैं प्रलोभन के आगे झुकनेवाली लड़की नहीं हूं.’’

इतना कहकर वह तेज़ी-से दरवाज़े की ओर बढ़ी, लेकिन देशराज जी ने किसी शिकारी की तरह झपट कर उसका हाथ पकड़ लिया और बोले,‘‘मैंने दर्जनों लड़कियों की सिफ़ारिशें ठुकराकर तुम्हें नौकरी दी है. तुम इस तरह से यहां से नहीं जा सकती. तुम्हें मेरी ख़्वाहिश पूरी करनी ही होगी,’’ यह कहते हुए उन्होंने नेहा को अपनी ओर खींचा, लेकिन अगले ही पल उनके मुंह से चीख निकल पड़ी. क़रीब आते ही नेहा के अपने दूसरे हाथ का भरपूर वार उनकी गर्दन पर जड़ दिया था और वे अपनी गर्दन को संभालते हुए दूर जा गिरे थे. उनकी आंखें पथराई हुई-सी थीं. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रही था कि फूलों जैसी नाज़ुक दिखनेवाली कोई लड़की इतना करारा वार भी कर सकती है.


अचानक उन्होंने ख़ुद को संभाला और दोबारा नेहा की ओर झपटे. नेहा ने उछलकर अपनी लात देशराज जी के सीने पर जड़ दी. वे एक बार फिर दूर जा गिरे. इसके बाद तो नेहा लात-घूसों की झड़ी लगा दी. चंद पलों में ही देशराज जी के बल ढीले पड़ गये और वे बुरी तरह कराहने लगे.

नेहा ने उनके ऊपर नफ़रतभरी नज़र डाली फिर दांत भींचते हुए बोली,‘‘आपने मेरा बायोडेटा ठीक से नहीं देखा, वरना ये भी ज़रूर देख लेते की मुझे कराटे में ब्लैक-बेल्ट हासिल है.’’

इतना कहकर वह पल भर के लिए रुकी फिर बोली,‘‘प्रबंधक महोदय, तुम्हें ऑफ़िस में अकेला देखकर ही मैं तुम्हारे इरादों को भांप गई थी इसलिए अपने मोबाइल मैंने का वॉइस रिकॉर्डिंग चालू कर दिया था. तुम्हारी सारी घिनौनी बातें इसमें रिकॉर्ड हो गई हैं.’’

उसने अपने मोबाईल के बटन को दबाया तो उन दोनों के बीच हुई बातें उस कमरे में गूंजने लगी. उसे सुनकर देशराज जी के देवता कूच कर गए. वे गिड़गिड़ाते हुए बोले,‘‘नेहा जी, मुझे माफ़ कर दीजिए और यह रिकार्डिंग मुझे दे दीजिए. आप जो क़ीमत मांगेंगी, मैं दूंगा.’’


‘‘मैं इसे तुम्हें नहीं दे सकती, लेकिन इतना वादा करती हूं कि ये रिकॉर्डिंग मेरे पास पूरी तरह सुरक्षित रहेगी, यदि तुम स्कूल की सभी टीचर्स को नियमित करने और उन्हें पूरी तनख़्वाह देने का वादा करो तो...’’ नेहा ने शर्त रखी.

‘‘यह संभव नहीं है.’’ देशराज जी ने बेचैनी से पहलू बदला.

‘‘तो फिर इसकी कॉपी आज ही पुलिस के पास पहुंच जाएगी,’’ नेहा का स्वर सख़्त हो गया.
‘‘तुम ब्लैकमेल कर रही हो?’’ देशराज जी कसमसाए.

‘‘ब्लैकमेलिंग किसी का विशेषाधिकार है क्या?’’ नेहा के होंठ व्यंग्य से हल्के-से टेढ़े हो गए,‘‘और इसे तुम ‘ब्लैक-मेलिंग’ नहीं ‘वाइट-मेलिंग’ कह सकते हो, क्योंकि यह अच्छे इरादे से किया जा रहा है.’’


देशराज जी को कोई जवाब नहीं सूझा. उन्होंने अपनी नज़रें झुका लीं, लेकिन उनके चेहरे पर छाए भाव बता रहे थे कि नेहा की बात मानने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है. नेहा सधे हुए क़दमों से दरवाज़े से बाहर निकल गई.

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