कहानी: रुक जा पगली

जैसे ही नेहा मंडी हाउस स्टेशन पर मेट्रो से बाहर निकली, बरसात के एक झोंके ने उसके चेहरे पर अपने प्यार का ठप्पा लगा दिया. नेहा ने अपने बड़ेवाले बैग से छाता निकालने की कोशिश की... अगले ही पल लगा कि नहीं, आज तो वह भीगेगी. मन ने कहा बारिश की बूंदों से क्या बचना?


सड़क पर कदम रखा. पांव छप से पानी में जैसे ताल-सा बजाने लगा.

त्रिवेणी के रेस्तरां में अतुल उसका इंतज़ार कर रहा होगा. नेहा के दिल में घंटी-सी बजने लगी. अतुल से मिलने के नाम पर अब तन के साथ-साथ मन भी भीगने लगा.

त्रिवेणी पहुंचते-पहुंचते वह पानी से तरबतर हो चुकी थी. बिन बांहों की कुर्ती सिकुड़ कर जीन्स के ऊपर चढ़ी जा रही थी. दो दिन पहले जनपथ से ख़रीदा सौ रुपए का स्टोल बदस्तूर अपना लाल रंग छोड़ बदरंग हो चुका था. घुंघराले बाल छितर-से गए थे और आंखों का लाइनर बहकर पूरे चेहरे पर फैल चुका था. अतुल ने उसे देखा तो ठिठक कर रुक गया. फिर आगे बढ़ आया और अपना हाथ बढ़ा दिया, हाथ मिलाने को.

नेहा ने पूरे जोश के साथ हाथ मिलाया और कुछ ज़्यादा ही उत्साह से कहा,‘‘मुझे लगा नहीं था कि हम दोनों दोबारा इस तरह से मिलेंगे.’’

अतुल हौले-से मुस्कुराया. मोबाइल फ़ोन और फ़ेसबुक के ज़माने में कोई एकबार मिलकर बिछुड़ थोड़े ही जाता है? लखनऊ शताब्दी में पिछले महीने दोनों एक साथ दिल्ली के लिए सफ़र कर रहे थे. चेयर-कार में दोनों की सीट पास-पास थी. अतुल लखनऊ से दिल्ली जा रहा था, अपनी दादी से मिलने और नेहा गई थी लखनऊ ऑफ़िस के काम से, वहां से लौट रही थी.


दोनों की बातचीत शुरू हुई थी नेहा के नाश्ते में कंकड़ के आने से. अतुल बिल्कुल वैसा लड़का नहीं था, जैसा नेहा को पसंद था. उसे ऐसे लड़के कम पसंद थे, जो चोटी रखते थे, दाढ़ी नहीं बनाते थे और बेहद टाइट टी-शर्ट पहनते थे. अतुल बिल्कुल वैसा ही था नेहा को पसंद ना आनेवाला जैसा. लेकिन कोई तो बात थी उसमें. नेहा ने ना चाहते हुए भी बहुत कुछ बता दिया उसे. क्या ज़रूरत थी अपना पूरा नाम बताने की? यह भी कि वह दिल्ली में कहां काम करती है, लखनऊ किस काम से गई थी और वह खाने में आइस्क्रीम क्यों नहीं खा रही?

नेहा को ताज्जुब हो रहा था. ऐसा वह कभी करती तो नहीं. वो भी ऐसे व्यक्ति के लिए तो बिल्कुल नहीं, जो उसके टाइप का ना हो. फिर, दिल्ली पहुंचने तक भी उसे इस बात का जवाब नहीं मिला.

नेहा मेट्रो लेकर अपने घर आ गई. नोएडा में वह बतौर पेइंग गेस्ट रहती थी, दो और लड़कियों के साथ. रात कम्प्यूटर खोलकर फ़ेसबुक देखा, तो वहां अतुल को पाया, वह उससे दोस्ती करना चाहता था. नेहा ने उसका प्रोफ़ाइल खोलकर देखा. लखनऊ में एक विज्ञापन एजेंसी में काम करता था अतुल, बतौर ग्राफ़िक डिज़ाइनर और इलेस्ट्रेटर. ढेर सारे दोस्त. कई लड़कियां भी. उनमें से एक शिप्रा कई जगह नजर आ रही थी. ना ना, बहन नहीं थी उसकी, शायद दफ़्तर की कलीग थी.

अचानक नेहा ने पाया कि उसे शिप्रा को अतुल के साथ इतनी सारी तस्वीरों में दिखना पसंद नहीं आ रहा.

रात रुक-रुक कर जो नींद आई, तो अतुल आता रहा ख़्वाबों और ख़्यालों में. नेहा ने उसकी दोस्ती क़ुबूल तो कर ली थी, पर अतुल ने उस दिन जब उसने मैसेज करके उसका मोबाइल नंबर मांगा तो नेहा ने टाल दिया. अतुल लौटकर लखनऊ जा चुका था. पर जब-तक दोनों फ़ेसबुक पर चैट कर लेते. पंद्रहेक दिनों के बाद अतुल ने उसे अपना मोबाइल नंबर मैसेज कर दिया. झक मारकर नेहा को उसे फ़ोन करना पड़ा. जब फ़ोन कर ही लिया तो दोनों की घंटे-घंटेभर बातें होने लगी. नेहा के चेहरे ने चुगली करनी शुरू कर दी. सबसे पहले उसे घेरा पेईंग गेस्ट की रम्या ने,‘‘क्या चल रहा है जानेमन? रात-रातभर फ़ेसबुक पर लगी रहती हो, जब तुम्हें मोबाइल लगाती हूं...बिज़ी पाती हूं. चक्कर क्या है? कहीं वो तेरी ट्रेनवाला चुटियाधारी तो नहीं?’’

नेहा नहीं-नहीं कहते हुए हां कह बैठी. ओह, वाक़ई वह अतुल को चाहने लगी है? नेहा फिर अपनीवाली नेहा ना रही. अतुल का फ़ोन आता, तो ना जाने क्यों दिल धड़कनें बढ़ जातीं, गाल सुर्ख़ हो उठते और चौबीसों घंटे मन में जैसे एक सागर हिलोरें लेता रहता. अतुल ने दो दिन पहले उसे बता दिया था कि वह फिर से दिल्ली आ रहा है और उससे मिलना चाहता है. नेहा मना नहीं कर पाई. त्रिवेणी में अब अपने सामने अतुल को पाकर उसने किसी तरह अपने को संभाला और गर्म की चाय की चुस्कियां लेते हुए कुछ मुस्कुरा कर बोली,‘‘मुझे बारिश में भीगना बहुत अच्छा लगता है.’’

अतुल ठहरकर बोला,‘‘फिर तो तुम्हें बारिश में भीगते हुए भुट्टा खाना, सड़क पर था-था थैया करना, बच्चों के साथ उछल-कूद करना भी पसंद होगा.’’

नेहा ने बिना सोचे कह दिया,‘‘हां,’’ फिर साथ ही पूछ लिया,‘‘तुम्हें कैसे पता?’’


अतुल ने लंबी सांस ली,‘‘हर पगली लड़की को अच्छा लगता है. तुम लड़कियां हमेशा ऐसे क्यों बनी रहती हो? ग्रो क्यों नहीं करती?’’

चाय पीते-पीते नेहा रुक गई. अतुल कहना क्या चाहता है?

अतुल अपनी रौ में बोले जा रहा था,‘‘शिप्रा भी तुम्हारी तरह पागल है. यही सब करती रहती है. और मना करो तो गुस्सा करती है.’’

‘‘कौन शिप्रा, तुम्हारी एफ़बी वाली गर्लफ्रेंड?’’ नेहा ने लगभग ग़ुस्से से पूछा,‘‘प्लीज़ अतुल, मेरी तुलना तुम दूसरी लड़कियों से मत करो. तुम्हारी गर्लफ्रेंड क्या करती है, यह जानने में मेरी ज़रा भी दिलचस्पी नहीं है.’’

नेहा को ग़ुस्सा होते देख अतुल हंसने लगा,‘‘ऐ, मैंने कहा ना कि वह भी बिल्कुल तुम्हारी तरह ग़ुस्सा होती है. तुम लड़कियां एक जैसी हो. क्रेज़ी...’’

नेहा से अब रहा ना गया, एकदम फट पड़ी,‘‘और तुम क्या हो? रणबीर कपूर?’’ मेरी दोस्ती तो तुम्हारे टाइप लड़के से हो ही नहीं सकती. तुम सब लड़कियों के साथ बस फ़्लर्ट करना चाहते हो. बर्दाश्त नहीं कर पाते कि वह अपनी तरह से सोचती है. गुड, मुझे पता चल गया. शिप्रा तुम्हें बहुत-बहुत मुबारक़ हो.’’

नेहा उठ खड़ी हुई. कब से उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, उसे भी पता नहीं चला. अतुल उसे पुकारता रह गया, पर वह रुकी नहीं. ऐसी शाम की तो उसने कल्पना नहीं की थी.

घर लौटी तो लगा जैसे अंदर कुछ टूट-सा गया है. रूममेट्स के लौटने तक वह अंधेरे कमरे में अकेली औंधी पड़ी रही. आंसू थे थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. अतुल को लेकर जो सपना देखा, दिल की धड़कनों ने जो नया ताल सीखा, उनका क्या?

रम्या ने ताड़ लिया,‘‘तेरी डेट का क्या हुआ? मिलने गई थी ना अतुल से?’’


नेहा ने धीरे-धीरे उसे पूरी बात बताई. रम्या हंसने लगी,‘‘अरे अतुल ने तो अपने मुंह से तो यह नहीं कहा ना कि शिप्रा उसकी गर्लफ्रेंड है? तो तुझे इतना लड़ने की क्या ज़रूरत थी? कितने दिनों से इंतज़ार कर रही थी तू इस शाम का? आराम से बिताती. वो भी तो पहली बार मिल रहा था तुझसे, उसे क्या पता था कि तू ऐसे रिएक्ट करेगी?’’

नेहा चुप रही. नहीं, अतुल उसकी तुलना किसी दूसरी लड़की से कैसे कर सकता है? अगर उसकी इतनी परवाह होती, तो दौड़ते हुए पीछे भी तो आ सकता था?

अतुल ने उसे कई बार फ़ोन ज़रूर किया था, एसएमएस भी किया, पर नेहा ने जवाब नहीं दिया. अगले दिन ही नेहा ने अतुल को फ़ेसबुक में दोस्तों की लिस्ट से डिलीट कर दिया. इसके बाद भी अतुल के एसएमएस आते रहे, फ़ोन आते रहे तो महीनेभर में नेहा ने अपना मोबाइल नंबर ही बदल दिया.

नंबरभर बदल देती तो कोई बात न थी. पर नेहा थी कि ख़ुद को ही धीरे-धीरे खानों में बांटते हुए बदल रही थी. बारिश देखती तो मन करता कि जाकर कमरे में छिप जाए. भुट्टा अब दांतों में उलझने लगा था. चटक स्लीवलेस कुरती और घेरदार स्कर्ट की जगह जीन्स और कॉलरवाली शर्ट पहनने लगी. बालों को स्ट्रेट करवा लिया और पोनीटेल बांधने लगी. ना पहले की तरह जंक ज्वेलरी पहनती ना बात-बात पर गा उठती. नेहा का सूफ़ियाना इश्क़ अब दिल में कभी-कभी कसक बनकर उभर आता. इन सबमें एक अच्छी बात हुई कि ऑफ़िस में वह ज़्यादा वक़्त बिताने लगी. सालभर में प्रमोशन हो गया. पैसे बढ़ गए. पीजी से फ़्लैट में आ गई. वन बेडरूम का प्यारा-सा फ़्लैट. पापा रिटायर हो गए थे. मम्मी ज़ोर दे रही थीं कि अब वह शादी के लिए हां कर दे. नेहा का मन अब भी कहीं उलझा था. पर पता नहीं क्यों उसने कह दिया,‘‘अच्छा, मम्मी आप देखना शुरू कीजिए. पर हां, मुझे दिल्ली छोड़ने को मत कहिए.’’

दो दिन बाद ही मम्मी का फ़ोन आ गया,‘‘नेहा, जैसा तुम चाहती  थी, दिल्ली में ही रहता है लड़का. कल ही तुझसे मिलना चाहता है. सॉफ़्टवेयर इंजीनियर है.’’

नेहा ने सोचकर कहा,‘‘अच्छा मम्मा, आप उसे मेरा मोबाइल नंबर दे दीजिए. कल मैं ऑफ़िस के काम से इंडिया हैबिटेट सेंटर में रहूंगी. वहीं आ जाए शाम छह बजे.’’

किसी लड़के से मिलने के नाम पर ना दिल में घंटियां बजीं, ना दिमाग़ में. उसने अपनी रोज़वाली ही ड्रेस पहनी. पैंट और शर्ट कानों में सोने के छोटे से बुंदे. आंखों में हल्का-सा नीला लाइनर. बस. मीटिंग जल्दी ख़त्म हो गई. बिना किसी मक़सद के वह हैबिटेट सेंटर में एक पेड़ के नीचे बैठ गई. सामने ऑडिटोरियम में किसी पेंटर की प्रदर्शनी लगी थी. दूर से लगा कि अच्छी पेंटिंग है उठ कर गई. अधिकांश पेंटिंग्स प्रकृति और जानवरों के थे. बेहद सुलझे हुए रंग. आगे बढ़ी तो ठिठक कर रुक गई. सामने बारिश में भीगी हुई एक लड़की की पेंटिंग थी. घेरदार राजस्थानी स्कर्ट, कच्छी गुजराती कुर्ती, हवा में उड़ते गुच्छ-पुच्छ बाल और भीगी-सी आंखें. यह वही थी.


कुछ क्षण नेहा जैसे बुत-सी बन गई. पीछे पलटकर देखा, पेंटर को कुछ लोग घेरे थे. भीड़ छटी. सामने खड़ा आदमी कुर्ती और जीन्स में था, ना बालों में पोनी टेल, ना बेतरतीब दाढ़ी.

अतुल उसकी तरफ़ तेज़ी से बढ़ आया,‘‘नेहा, ओह गॉड. मुझे पता था कि मुझे तुम ज़रूर मिलेगी. कहां गुम हो गई थी तुम?’’ नेहा एक क़दम पीछे हटी, पर वहां जगह नहीं थी. उसका फ़ोन लगातार घनघना रहा था, कोई अनजाना-सा सॉफ़्टवेयर इंजीनियर उससे जानना चाह रहा था कि इंडिया हैबिटेट सेंटर में वह कहां खड़ी है. नेहा ने अतुल की तरफ़ देखा. वह तो बिल्कुल उसकी टाइप का लग रहा है. इस बार उसकी पूरी बात सुने बिना वह नहीं जाएगी. और उसने अपना फ़ोन बंद कर दिया.

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