कहानी: एक सुहाना सफर

घर से सफर पर निकले सुरभि और संभव यह तो जानते थे कि सफर सुहाना होगा, लेकिन उन की मंजिल ही बदल जाएगी, इस का अंदाजा उन्हें नहीं था.
‘‘हैलो मां, कैसी हो?’’

‘‘मैं अच्छी हूं, संभव, लेकिन तुम कल जरूर आना. प्रौमिस किया है तुम ने. पिछली बार जो किया वैसा मत करना.’’

‘‘हां मां, अब बताया है न. मेरी एक जरूरी मीटिंग है, बाद में फोन करता हूं.’’

फोन रखते ही संभव के दिमाग में खयालों का तूफान उठा. हालांकि वह इतनी जल्दी शादी करना नहीं चाहता था लेकिन घर का एक भी सदस्य उस की बात सम?ाने के लिए तैयार नहीं था. मां की बढ़ती बीमारी के कारण वह उन की इच्छा नकार नहीं सकता था, इसलिए अपनी इच्छा के विपरीत जा कर वह लड़कियां देखने के लिए तैयार हुआ. जैसे ही घड़ी की ओर उस का ध्यान गया, जल्दी सब निबटा कर वह औफिस के लिए चल पड़ा.

शाम वापस आते ही संभव ने पुणे के ट्रैवल का समय देखा और स्टौप पर जा कर खड़ा रहा. ट्रैवल वैसे ही लेट थी. और तो और, उस का स्टौप भी आखिरी था, इसलिए गाड़ी पूरी पैक्ड थी. केवल एक लड़की के बाजू वाली जगह खाली थी. उस ने उस का बैग धीरे से उठा कर नीचे रख दिया और वहां बैठ गया. संभव ने देखा कि वह लड़की सोई हुई थी और उस का पूरा चेहरा रूमाल से ढका था. संभव की नजर ट्रैवल की खिड़की से बाहर गई. पूनम का चांद दिख रहा था. उस धीमी रोशनी में उस लड़की के घने लंबे बाल चमक रहे थे. बाहर की ठंडी हवा से उस के बाल रूमाल का बंधन तोड़ कर संभव के चेहरे को छू रहे थे. पलभर संभव उस स्पर्श से रोमांचित हुआ. लेकिन तुरंत उस ने खुद को संभाला और थोड़ी दूरी बना कर बैठ गया.

दिनभर की थकान के कारण वह भी जल्दी ही सो गया. लेकिन ड्राइवर ने जोर से ब्रेक लगाया, तब सब मुसाफिर घबरा कर उठ गए. पूछने पर पता चला कि आगे बड़ी दुर्घटना हुई है, इसलिए गाड़ी रुक गई और 5-6 घंटे यातायात शुरू नहीं होगा.

‘‘अरे यार, यह सब आज ही होना था. कल सुबह तक पुणे नहीं पहुंची तो मां जरूर मु?ो डाटेंगी. अब क्या करूं? फोन में नैटवर्क भी नहीं है…’’

संभव बाजू में बैठी लड़की की बकबक सुन रहा था. उस के चेहरे से अब रूमाल हट चुका था. उस के हलके से हिल रहे गुलाबी होंठ, लंबे बालों की एक तरफ से डाली हुई चोटी, माथे पर छोटी सी बिंदी, नैनों का काजल, चांद की रोशनी में उस की गोरी काया काफी निखरी दिख रही थी. कितनी सरल और सुंदर नजर आ रही थी.

उस लड़की का ध्यान संभव की ओर गया. वह लगातार उसे देख रहा था. यह जानने के बाद वह थोड़ा संभल गई. संभव भी थोड़ा औक्वर्ड महसूस कर रहा था. उस ने अपनी नजर दूसरी ओर फेर दी. लेकिन उस की चुलबुलाहट कम नहीं हो रही थी. यह देख कर संभव ने उस से कहा, ‘‘मैडम, आप चिंता न करें. जल्दी ही सफर सुचारु रूप से शुरू होगा. आप को फोन करना है तो आप मेरा फोन इस्तेमाल कर सकती हो, मेरे फोन में नैटवर्क है.’’

उस लड़की ने संभव की ओर देखा. उस के व्यक्तित्व से वह एक सभ्य आदमी लग रहा था और उसे इस वक्त उस के फोन की जरूरत भी थी. संभव से फोन मांग उस ने घर पर फोन घुमाया.

‘‘हैलो मां, मैं सुरभि बोल रही हूं.’’

‘‘यह किस का नंबर है, इतनी रात गए फोन क्यों किया. तुम आ रही हो न कल?’’

‘‘हांहां, मेरा कहा सुन तो लो. मैं पुणे के लिए निकल चुकी हूं. लेकिन यहां आगे एक कार ऐक्सिडैंट हुआ है. ट्रैफिक में फंस चुकी हूं. मैं किसी दूसरे के फोन से आप से बात कर रही हूं. आप चिंता न करें. मैं आती हूं सुबह तक.’’

‘‘ठीक है. अपना खयाल रखना और हां, सुबह वे लोग तुम्हें देखने आएंगे. ज्यादा देर मत करना.’’


सुरभि ने गुस्से में फोन काट दिया. ‘‘मैं यहां उल?ा हूं और इन्हें तो उन मेहमानों की ही पड़ी है.’’ संभव उस की ओर देख रहा था. गुस्से में वह निहायत खूबसूरत नजर आ रही थी, नाम भी उस का कितना खूबसूरत था…सुरभि.

‘‘सौरी, मैं ने अपना गुस्सा आप के फोन पर निकाला,’’ सुरभि की आवाज से संभव ने अपना होश संभाला.

‘‘इट्स ओके, लेकिन आप चिंता मत कीजिए. सुबह तक आप पुणे पहुंच जाओगी. सौरी, मैं ने आप की बातें सुन लीं. बाय द वे, मैं संभव. मैं भी पुणे जा रहा हूं.’’

‘‘मैं सुरभि, आप की बहुत आभारी हूं कि आप के फोन के कारण मैं घर कौल कर सकी.’’ तभी बस में से एक लड़कों का गु्रप सामान ले कर नीचे उतर रहा था. संभव ने उन से पूछा, ‘‘यह क्या, आप सब कहां जा रहे हो?’’

‘‘देखो भैया, हम हरदम इसी रास्ते से सफर करते हैं. यहां हमेशा ट्रैफिक जाम रहता है. यहां 2-3 किलोमीटर पर पगडंडी रास्ता है. आगे छोटीछोटी गाडि़यां मिल जाती हैं पुणे जाने के लिए. उधर जा रहे हैं हम.’’

‘‘लेकिन इतने अंधेरे में, रास्ता महफूज है क्या?’’

‘‘हां, हम कई बार जाते हैं इस रास्ते से और हमारे पास टौर्च भी है.’’

संभव ने सुरभि की ओर देखा. सुरभि सोच में पड़ी थी. उस गु्रप में 2-3 लड़कियां भी थीं. माना कि वह किसी को पहचानती नहीं थी. फिर भी कराटे चैपिंयन होने के कारण, कुछ हुआ तो वह खुद को संभाल सकती थी. वहीं, संभव का बरताव उसे काफी विश्वासभरा लग रहा था. इसलिए उस ने भी तुरंत हामी भर दी. वे दोनों उस ग्रुप के साथ नीचे उतर कर पगडंडी के रास्ते पर चलने लगे.

वे लड़केलड़कियां एक ही कालेज में पढ़ने वाले थे. उन से दोस्ती कर वे दोनों भी साथसाथ चल रहे थे. मोबाइल पर सुरीले गीत चल रहे थे. रास्ता घने जंगल का था. मगर पूनम का चांद उस की शीतल छाया का अस्तित्व महसूस करा रहा था. इसलिए रात इतनी कठिन नहीं लग रही थी. चलतेचलते अचानक सुरभि का पैर एक पत्थर से फिसल गया. वह लुढ़क रही थी कि संभव ने उसे सहारा दिया. पलभर के लिए इस स्पर्श से दोनों के मन में कुछ हलचल मची. कुछ पल वे एकदूसरे की बांहों में थे. मोबाइल पर गाना बज रहा था.


नीलेनीले अंबर पर चांद जब आए,

प्यार बरसाए हम को तरसाए.

ऐसा कोई साथी हो ऐसा कोई प्रेमी हो,

प्यास दिल की बुझा जाए…

उन लड़कों की हंसी से वे होश में आए. सुरभि शरमा कर संभव से दूर हो गई. संभव भी अपनी नजर चुराने लगा.

‘‘इट्स ओके, यार, कभीकभी होता है ऐसा. लेकिन संभल के चलो अब.’’

सुरभि को चलने में दिक्कत हो रही थी. पत्थर से फिसलने से शायद उस के पांव में मोच आ गई थी. वह लंगड़ा कर चल रही थी. संभव ने पूछा, ‘‘सुरभि, तुम्हारे पांव में ज्यादा लगी है क्या, तुम ऐसे लंगड़ा कर क्यों चल रही हो?’’

अभीअभी घटी घटना से सुरभि संभव की नजर से नजर मिलाना टाल रही थी. वह संभव के व्यक्तित्व से तो प्रभावित हुई थी, लेकिन उस का स्पर्श और आंखों की चिंता देख कर वह उस में उलझती जा रही थी. वह घर क्यों जा रही है, यह उसे याद आया. वह आज तक पढ़ाई का कारण बता कर शादी की बात टालती आ रही थी, मगर अब पढ़ाई पूरी होने के बाद वह यह बात टाल नहीं सकती थी, कल उसे इसी कारण घर जाना था.

‘‘सुरभि, क्या कह रहा हूं मैं, तुम्हारा ध्यान कहां है? थोड़ा रुकना चाहती हो क्या?’’

‘‘नहींनहीं, मैं ठीक हूं. पांव में मोच आई है. लेकिन मैं चल सकती हूं.’’

फिर भी संभव ने उसे सहारा दिया. ‘‘देखो, सुरभि, हमारी पहचान बस कुछ घंटों पहले ही हुई है, लेकिन तुम्हें पुणे तक महफूज ले जाना मैं अपनी जिम्मेदारी समझता हूं. तुम कुछ अलग मत सोचो. चलो,’’ संभव का हाथ उस के हाथ में था. क्या था उस स्पर्श में? विश्वास, दोस्ती, चिंता. सुरभि उसे न नहीं कह सकी. हालांकि संभव पहली बार किसी लड़की के साथ ऐसा बरताव कर रहा था, लेकिन सुरभि के बारे में उसे क्या महसूस हो रहा था, यह वह नहीं जानता था. उस की हर अदा, बोलने का स्टाइल, उस के हाथ का कोमल स्पर्श और सब से अहम कि उस का संभव के प्रति विश्वास, इन सब के बारे में वह सोच रहा था.

‘‘संभव, तुम्हें मेरे कारण काफी परेशानी उठानी पड़ रही है.’’

‘‘सुरभि, तुम ऐसा क्यों कह रही हो. ऐसा सोचो कि एक दोस्त दूसरे दोस्त की मदद कर रहा है,’’ वह मुसकराया.

‘‘तुम्हारी यह मुसकराहट किलर है.’’

‘‘क्या?’’

वह क्या बोल गई, यह उस के ध्यान में आते ही उस ने अपनी जबान दांतों तले दबाई. फिर संभव ने हंस कर उस की ओर देखा. कालेज के गु्रप के साथ बाते करतेकरते सफर कब खत्म हुआ, इस का पता ही नहीं चला. वे जंगल से बाहर आ कर एक छोटे रास्ते पर आए. वहां एक छोटा सा होटल था. संभव और सुरभि ने अपना और्डर दिया. सुरभि फ्रैश हो कर हाथपांव धो कर आई. पानी की हलकी बूंदें अभी भी उस के बालों से लिपटी थीं.

‘कितनी खूबसूरत दिखती है यार, इस का हर रूप मुझे दीवाना बना रहा है. लेकिन क्या फायदा, इस मुलाकात के बाद हमारी राहें हमेशा के लिए अलग हो जाएंगी,’ सोचते हुए संभव के चेहरे पर मायूसी छा गई.

‘‘संभव, क्या हुआ? इस चांदनी रात में गर्लफ्रैंड की याद आ रही है क्या?’’

सुरभि के चेहरे के शरारती भाव देख कर संभव के मन से तनहाई के खयाल कहीं गुम हुए.

‘‘नहीं, अरे मेरी कोई गर्लफ्रैंड नहीं है. आओ, खाना खाते हैं.’’ हालांकि, यह जान सुरभि मन ही मन खुश हुई थी. उस ने उसी खुशी में खाना खत्म किया.

तब तक लड़कों ने गाड़ी बुक कर ली थी. गाड़ी में भी सुरभि संभव के पास ही बैठी थी. यह इस सफर का आखिरी दौर था. गाड़ी शुरू होते ही थकान से सुरभि की गरदन हलके से संभव के कंधे पर लुढ़क गई. संभव भी थका हुआ था. वह ये खूबसूरत पल अपने मन के किसी कोने में स्टोर करना चाहता था.

ड्राइवर ने जैसे ही गाड़ी का ब्रेक लगाया वैसे ही सुरभि जाग गई. उस का स्टौप आया था. सुरभि ने जाते-जाते फिर एक बार संभव का हाथ थामा. ‘‘संभव, यह सफर मैं कभी भी नहीं भूलूंगी. यह हमेशा मेरी खूबसरत स्मृतियों में रहेगा,’’ वह काफी कुछ कहना चाहती थी, लेकिन शब्द उस की जबान पर नहीं आ रहे थे. शब्द कब आंसू बन कर आंखों से छलके, यह वह जान नहीं पाई. संभव भी इसी कशमकश से गुजर रहा था. उस ने उसे धीरे से सहलाया और भविष्य के सफर के लिए शुभकामनाएं दे कर गाड़ी में बैठ गया.

संभव घर पहुंचा. वह मां से कुछ न बोलते हुए जाने की तैयारी करने लगा. मां ने सोचा थका होगा. तय वक्त पर वे लड़की के घर पहुंच गए. संभव का किसी चीज में मन नहीं था. लड़की की मां उस की प्रशंसा कर रही थीं.

‘‘हमारी सुरु बहुत अच्छे दिमाग की है. उस के हाथ का एक अलग टैस्ट है.’’ फलानाफलाना. संभव को इन सब बातों से काफी चिढ़ थी. उस की नजर से सुरभि का चेहरा हट नहीं रहा था. वह सोचने लगा, ‘मां को तो मेरी शादी होने से मतलब है, फिर मैं कहीं से भी सुरभि को ढूंढ़ कर लाऊंगा.’ उस ने अपने मन में ठान लिया और गरदन ऊपर कर के कहा, ‘‘बंद करो यह सब, मु?ो ये शादीवादी नहीं करनी…’’ लेकिन आगे के शब्द वैसे ही होंठों पर रुक गए. क्योंकि सामने चाय की ट्रे ले कर सुरभि खड़ी थी. वह जान गया कि इस घर की सुरु उस की सुरभि ही थी.

‘‘क्या हुआ, संभव? कुछ कहना है क्या तुम्हें?’’ मां की आवाज से उस ने अपने होश संभाले. वह नीचे बैठ गया और बोला, ‘‘मुझे शादी करनी है. लड़की मुझे पसंद है.’’

उस की इस बात से सब हैरान रह गए. लेकिन उन्हें उस से भी ज्यादा खुशी हुई. सुरभि की रातभर रो कर सूजी आंखों में खुशी के आंसू आए थे, लेकिन केवल संभव ही यह देख सका. सब की नजर से छिप कर इन 2 प्रेमी दिलों का मिलन शुरू हुआ था. दोनों एकदूसरे की बांहों में समा जाते हैं. वह कहते हैं न,

दो दिल मिल रहे हैं

मगर चुपकेचुपके

सब को हो रही है

खबर चुपकेचुपके…

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