कहानी: जानवर और जानवर

स्कूल की नई मेट्रन का नाम अनिता मुकर्जी था और उसकी आंखें बहुत अच्छी थीं. पर वह आंट सैली की जगह आई थी, इसलिए पहले दिन बैचलर्स डाइनिंग-रूम में किसी ने उससे खुलकर बात नहीं की.

उसने जॉन से बात करने की कोशिश की, तो वह ‘हूं-हां’ में उत्तर देकर टालता रहा. मणि नानावती को वह अपनी चायदानी में से चाय देने लगी, तो उसने हल्का-सा धन्यवाद देकर मना कर दिया. पीटर ने अपना चेहरा ऐसे गम्भीर बनाए रखा जैसे उसे बात करने की आदत ही न हो. किसी तरफ़ से लिफ़्ट न मिलने पर वह भी चुप हो गई और जल्दी से खाना खाकर उठ गई.

‘‘अब मेरी समझ में आ रहा है कि पादरी ने सैली को क्यों निकाल दिया,’’ वह चली गई, तो जॉन ने अपनी भूरी आंखें पीटर के चेहरे पर स्थिर किए हुए कहा.

पीटर की आंखें नानावती से मिल गईं. नानावती दूसरी तरफ़ देखने लगी.

वैसे उनमें से कोई नहीं जानता था कि आंट सैली को फ़ादर फ़िशर ने क्यों निकाल दिया. उसके जाने के दिन से ही जॉन मुंह ही मुंह बड़बड़ाकर अपना असन्तोष प्रकट करता रहता था. पीटर भी उसके साथ दबे-दबे कुढ़ लेता था.

“चलकर एक दिन सब लोग पादरी से बात क्यों नहीं करते?” एक बार हक़ीम ने तेज़ होकर कहा.

जॉन ने पीटर को आंख मारी और वे दोनों चुप रहे. दूसरे दिन सुबह पादरी के सिर-दर्द की ख़बर पाकर हक़ीम उसकी मिज़ाजपुर्सी के लिए गया तो जॉन पीटर से बोला,‘‘ए, देखा? पहुंच गया न उसके तलुवे सूंघने? सन ऑफ़ ए गन! हमें उल्लू बनाता था.”

आंट सैली के चले जाने से बैचलर्स डाइनिंग-रूम का वातावरण बहुत रूखा-सा हो गया. आंट सैली के रहते वहां के वातावरण में बहुत घरेलूपन-सा रहता था. सरदी में तो ख़ास तौर से आंटी के बीच आ बैठने से वह कमरा एक परिवार का भरा-पूरा घर-सा बन जाता था. वह अपनी कमर पर हाथ रखे बाहर से ही मज़ाक करती आती:

“पीटर के लिए आज मगज़ का शोरबा बना है, या वह मेरा ही मगज़ खाएगा?”

या

“...हो हो हो! मुझे नहीं पता था कि आज मणि इस तरह ग़ज़ब ढा रही है. नहीं तो मैं भी ज़रा सज-संवरकर आती.”
ऐसे मौके पर पाल उसके सफ़ेद बालों पर बंधे लाल या नीले फीते की तरफ़ संकेत करके कहता,“आंटी, यह फीता बांधकर तो तुम बिलकुल दुलहिन जैसी लगती हो!”

“अच्छा, दुलहिन जैसी लगती हूं? तो कौन करेगा मुझसे शादी? तुम करोगे!” और उसकी आंखें मिच जातीं, होंठ फैल जाते और गले से छलछलाती हंसी का स्वर सुनाई देता.

एक बार पीटर ने कहा,“आंटी, पाल कह रहा था कि वह आजकल में तुमसे ब्याह का प्रस्ताव करनेवाला है.”
आंटी ने चेहरा ज़रा तिरछा करके आंखें पीटर के चेहरे पर स्थिर किए हुए उत्तर दिया,“तो मुझे और क्या चाहिए? 

मुझे एक साथ पति भी मिल जाएगा और बेटा भी.”

फिर वही हंसी, जैसे बहते पानी के वेग में छोटे-छोटे पत्थर फिसलते चले जाएं.

आंट सैली के चले जाने से अकेले लोगों का वह परिवार काफ़ी उखड़ गया था. कुछ दिन पहले इसी तरह मीराशी चला गया था. उसके बाद पाल की छुट्‌टी कर दी गई थी. मीराशी तो ख़ैर बिगड़ैल आदमी था, मगर पाल को बैचलर्स डाइनिंग-रूम के बैचलर्स-जिनमें दो स्त्रियां भी सम्मिलित थीं-बहुत चाहते थे. हालांकि जॉन को पाल का अंग्रेज़ी फ़िल्मों के बटलर की तरह अकड़कर चलना पसन्द नहीं था और उन दोनों में प्राय: आपस में झड़प हो जाती थी, फिर भी उसकी पीठ पीछे वह उसकी तारीफ़ ही करता था. जिस दिन पाल गया, उस दिन जॉन खिड़की के पास बैठा सिर हिलाकर पीटर से कहता रहा,“अच्छा हुआ जो यह लड़का यहां से चला गया. अभी तो यह बाहर जाकर कुछ बन भी जाएगा, वरना यहां रहकर इसका क्या बनना था? तुम भी जवान आदमी हो, तुम यहां किसलिए पड़े हो?”

और पीटर घड़ी को चाबी देता हुआ चुपचाप दीवार की तरफ़ देखता रहा.

पाल और मीराशी के निकाले जाने की वजह का तो ख़ैर सबको पता था. मीराशी का अपराध बिलकुल सीधा था. उसने फ़ादर फ़िशर के माली को पीट दिया था. पाल का अपराध दूसरी तरह का था. उसने आवारा नस्ल का एक हिंदुस्तानी कुत्ता पाल लिया था जिसे वह हर समय अपने साथ रखता था. हालांकि कुत्ते में कोई ख़ासियत नहीं थी-बहुत सादा-सी सूरत, फीका बादामी रंग और लम्बूतरा-सा उसका क़द था-फिर भी क्योंकि पाल ने उसे पाल लिया था, इसलिए वह उसे बहुत लाड़ से रखता था. उसका नाम उसने ‘बेबी’ रख रखा था और कई बार उसे बगल में लिए खाना खाने आ जाता था. जल्दी ही बेबी बैचलर्स डाइनिंग-रूम में खाना खानेवाले सब लोगों का बेबी बन गया-एक मणि नानावती को छोड़कर जो उसकी सूरत देखते ही घबरा जाती थी. घबराहट में उसके चेहरे का रंग सुर्ख़ हो जाता और उसका नाटा छरहरा शरीर क़ाबू में न रहता. एक बार बेबी उसके हाथ में हड्डी देखकर उसके घुटने पर चढ़ने की कोशिश करने लगा तो वह घबराकर कुरसी पर खड़ी हो गई और दोनों हाथ हवा में झटकती हुई चिल्लाने लगी,“ओई ओई हिश्‌, गो अवे! प्लीज़ पाल, टेक हिम अवे! प्लीज़...!”

पाल पुलाव का चम्मच मुंह के पास रोककर धूर्तता के साथ मुस्कराया और बेबी को डांटकर बोला,“चल इधर बेबी! इस तरह ख़ानदान को बदनाम करता है?”

मगर बेबी को हड्डी का कुछ ऐसा शौक़ था कि वह डांट सुनकर भी नहीं हटा. वह नानावती की कुरसी पर चढ़कर उसके जिस्म के सहारे खड़ा होने की कोशिश करने लगा. इस जद्दोजहद में नानावती कुरसी से गिरने ही जा रही थी कि पाल ने जल्दी से उठकर उसे बगल से पकड़कर नीचे उतार दिया. फिर उसने बेबी को दो चपत लगाईं और उसे कान से खींचता हुआ अपनी सीट के पास ले आया. बेबी पाल की टांगों के आसपास मंडराने लगा.

“मेरा सारा ब्लाउज़ ख़राब कर दिया!” नानावती हांफती हुई रुमाल से अपना ब्लाउज़ साफ़ करने लगी. उसके उभार पर एकाध जगह बेबी का मुंह छू गया था.

बेबी अब पाल के घुटने से अपनी नाक रगड़ रहा था. पाल ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा,“नॉटी चाइल्ड! ऐसी भी क्या शरारत कि इन्सान एटिकेट तक भूल जाए!”

जॉन पीटर की तरफ़ देखकर मुस्कराया. नानावती भड़क उठी,“देखो पाल, मुझे इस तरह का मज़ाक कतई पसन्द नहीं.” ग़ुस्से से उसका पूरा शरीर तमतमा गया था. अगर वह और शब्द बोलती तो साथ रो देती.

मगर उसे गम्भीर देखकर भी पाल गम्भीर नहीं हुआ. बोला,“मुझे खुद ऐसा मज़ाक पसंद नहीं, मादाम! मैं इसकी हरकत के लिए बहुत शर्मिन्दा हूं!” और उसके निचले होंठ पर हल्की-सी मुस्कराहट आ गई.

नानावती क्षण-भर रुंधे हुए आवेश के साथ पाल को देखती रही. फिर अपना नेपकिन मेज़ पर पटककर तेज़ी से कमरे से चली गई. उसके जाते ही जॉन ने अपनी भूरी आंखें फैलाकर सिर हिलाया और कहा,“आज तुम्हारे साथ कुछ न कुछ होकर रहेगा. वह अब सीधी उस शुतुरमुर्ग के पास शिकायत करने जाएगी...कुतिया!”

मगर नानावती ने कोई शिकायत नहीं की. बल्कि दूसरे दिन सुबह उसने पाल से अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांग ली. जॉन को अपनी भविष्यवाणी के ग़लत निकलने का खेद तो हुआ, पर इससे नानावती के प्रति उसका व्यवहार पहले से बदल गया. उसने उसकी अनुपस्थिति में उसके लिए वेश्यावाचक शब्दों का प्रयोग बंद कर दिया. यहां तक कि एक दिन वह एटकिन्सन के साथ इस संबंध में विचार करता रहा कि इतनी अच्छी और मेहनती लड़की को उसके पति ने घर से क्यों निकाल रखा है.

नानावती ने भी उसके बाद बेबी को देखते ही ‘ओई ओई हिश्‌’ करना बंद कर दिया. गाहे-बगाहे वह उसे देखकर मुस्करा भी देती. एक बार तो उसने बेबी की पीठ पर हाथ भी फेर दिया, हालांकि ऐसा करते हुए वह सिर से पांव तक सिहर गई.

बैचलर्स डाइनिंग-रूम में पाल के ज़ोर-ज़ोर के कहकहे रात को दूर तक सुनाई देते. बेबी को लेकर नानावती से तरह-तरह के मज़ाक किए जाते. मज़ाक सुनकर जॉन की भूरी आंखों में चमक आ जाती और वह सिर हिलाता हुआ मुस्कुराता रहता.

मगर एक दिन सुबह बैचलर्स डाइनिंग-रूम में सुना गया कि रात को फ़ादर फिशर ने बेबी को गोली मार दी है.
जॉन अपनी चुंधियाई आंखों को मेज़ पर स्थिर किए चुपचाप आमलेट खाता रहा. नानावती का छुरी वाला हाथ ज़रा-ज़रा कांपने लगा. एक बार सहमी नज़र से जॉन और पीटर को देखकर वह अपनी नज़रें प्लेट पर गड़ाए रही. पीटर स्लाइस का टुकड़ा काटने में इस तरह व्यस्त हो रहा जैसे बहुत महत्त्वपूर्ण काम कर रहा हो.

“पाल अभी नहीं आया, ए?” जॉन ने किरपू से पूछा.

किरपू ने नमकदानी पीटर के पास से हटाकर जॉन के सामने रख दी.

“नहीं.”

“वह आज आएगा? हि:!” जॉन ने आमलेट का बड़ा-सा टुकड़ा काटकर मुंह में भर लिया.

“बेज़बान जानवर को इस तरह मारने से...मैं कहता हूं...मैं कहता हूं...,” आमलेट जॉन के गले में अटक गया.
किरपू चटनी की बोतल रखने के बहाने जॉन के कान के पास फुसफुसाया, “पादरी आ रहा है!”

सबकी नज़रें प्लेटों पर जम गईं. पादरी लबादा पहने, बाइबल लिए, गिरजे की तरफ़ जा रहा था. वह खिड़की के पास से गुज़रा तो तीनों अपनी-अपनी कुरसी से आधा-आधा उठ गए.
“गुड मॉर्निंग, फ़ादर!”

“गुड मॉर्निंग माई सन्ज़!”

“आज अच्छा सुहाना दिन है!”

“परमात्मा का शुक्र करना चाहिए.”

पादरी खट्‌टी की बाड़ से आगे निकल गया, तो जॉन बोला,“यह अपने को पादरी कहता है! सवेरे परमात्मा से संसार-भर का चरित्र सुधारने के लिए प्रार्थना करेगा और रात को...हरामज़ादा!”

नानावती सिहर गई.

“ऐसी गाली नहीं देनी चाहिए,” वह दबे हुए और शंकित स्वर में बोली.
“तुम इसे गाली कहती हो?” जॉन आवेश के साथ बोला, “मैं कहता हूं इसमें ज़रा भी गाली नहीं है. तुम्हें इसकी करतूतों का पता नहीं है? यह पादरी है?”

नानावती का चेहरा फीका पड़ गया. उसने शंकित नज़र से इधर-उधर देखा, पर चुप रही. जॉन के चौड़े माथे पर कई लकीरें खिंच गई थीं. वह बोतल से इस तरह चटनी उंडेलने लगा, जैसे उसी पर अपना सारा ग़ुस्सा निकाल लेना चाहता हो.

पीटर सारा समय खिड़की से बाहर देखता रहा.

डिंग-डांग! डिंग-डांग! गिरजे की घंटियां बजने लगीं. नानावती जल्दी से नेपकिन से मुंह पोंछकर उठ खड़ी हुई और पल-भर दुविधा में रहकर बाहर चली गई.

“चुहिया! कितना डरती है, ए?” जॉन बोला.

मिसेज़ मर्फी एटकिन्सन के साथ बात करती हुई खिड़की के पास से निकलकर चली गई. गिरजे की घंटियां लगातार बज रही थीं-डिंग-डांग! डिंग-डांग! डिंग-डांग!

जॉन जल्दी-जल्दी चाय के घूंट भरने लगा. जल्दी में चाय की कुछ बूंदें उसके गाउन पर गिर गईं.

“गाश्‌!” वह प्याली रखकर रुमाल से गाउन साफ़ करने लगा.

“गिरजे नहीं चल रहे?” पीटर ने उठते हुए पूछा.

जॉन ने जल्दी-जल्दी दो-तीन घूंट भरे और बाकी चाय छोड़कर उठ खड़ा हुआ. उनके दरवाज़े से बाहर निकलते ही किरपू और ईसरसिंह में बचे हुए मक्खन के लिए छीना-झपटी होने लगी, जिसमें एक प्याली गिरकर टूट गई. हक़ीम और बैरों को आते देखकर ईसरसिंह जल्दी से पैंटी में चला गया और किरपू कपड़े से मेज़ साफ़ करने लगा.

हक़ीम कन्धे झुकाकर चलता हुआ बैरो को रात की घटना सुना रहा था. डाइनिंग-रूम के पास आकर उसका स्वर और धीमा हो गया,“यू सी, बेबी को डॉली के साथ देखते ही पादरी को एकदम ग़ुस्सा आ गया और वह अन्दर जाकर अपनी राइफ़ल निकाल लाया. एक ही फ़ायर में उसने उसे चित कर दिया. डॉली कुछ देर बिटर-बिटर पादरी को देखती रही. फिर बाड़ के पीछे भाग गई. बाद में सुना है पादरी ने उसे गरम पानी से नहलवाया और डॉक्टर को बुलाकर उसे इंजेक्शन भी लगवाए...!”

“कहां पादरी की बिस्कुट और सैंडविच खाकर पली हुई कुतिया और कहां बेचारा बेबी!” बैरो मुस्कुराया.

“मगर उस बेचारे को क्या पता था?”

वे दोनों हंस दिए.

“बेबी को मालूम होता कि यह कुतिया कैनेडा से आई है और इसकी कीमत तीन सौ रुपया है, तो शायद वह....”
और वे दोनों फिर हंस दिए.

“यह तो था कि कल पादरी ने देख लिया, पर इससे पहले अगर...!”

“बैरो ने हक़ीम को आंख मारी. वह चुप कर गया. बाड़ के मोड़ के पास जॉन और पीटर खड़े थे. पीटर अपने जूते का फीता फिर से बांध रहा था.

“गुड मॉर्निंग, पीटर!”

“गुड मॉर्निंग, बैरो.”

“आज बहुत चुस्त लग रहे हो. बाल आज ही कटाए हैं?”

“नहीं, दो-तीन दिन हो गए.”

“बहुत अच्छे कटे हैं.”

“शुक्रिया!”

सहसा डिंग-डांग की आवाज़ रुक गई. वे सब तेज़ी से गिरजे के अन्दर चले गए.

पन्द्रहवां साम गाने के बाद प्रार्थना शुरू हुई. सब लोग घुटनों के बल होकर आंखों पर हाथ रखे पादरी के साथ-साथ बोलने लगे—

“...अवर फ़ादर, हू आर्ट इन हैवन, हैलोड बी दाई नेम, दाई किंगडम कम, दाई विल वी डन, इन दिस वर्ल्ड एज़ इन हैवन...”

बैरो ने प्रार्थना करते हुए बीच में अपनी बीवी के कान के पास फुसफुसाकर कहा,“मेरी, तुम्हारा पेटीकोट नीचे से दिखाई दे रहा है.”

मेरी एक हाथ आंखों पर रखे दूसरे हाथ से अपना स्कर्ट नीचे सरकाने लगी.

“...नाउ एंड फॉर एवर मोर, आमेन.”

गिरजे में उस दिन और उससे अगले दिन पाल की सीट ख़ाली रही. इस बात को नोट हर एक ने किया, मगर किसी ने इस बारे में दूसरे से बात नहीं की. पाल ईसाई नहीं था, मगर फ़ादर फ़िशर के आदेश के मुताबिक स्टाफ़ के हर आदमी का गिरजे में उपस्थित होना अनिवार्य था-जो ईसाई नहीं थे, उनका रोज़ आना और भी ज़रूरी था. पादरी गिरजे से निकलता हुआ उन लोगों की सीटों पर एक नज़र ज़रूर डाल लेता था. तीसरे दिन भी पाल अपनी सीट पर दिखाई नहीं दिया, तो पादरी गिरजे से निकलकर सीधा स्टाफ़-रूम में पहुंच गया. वहां पाल एक कोने में मेज़ के पास खड़ा कोई मैगज़ीन देख रहा था. पादरी पास पहुंच गया, तो भी उसकी तनी हुई गरदन में खम नहीं आया.

“गुड मॉर्निंग पादरी!” वह क्षण-भर के लिए आंख उठाकर फिर मैगज़ीन देखने लगा.

“तुम तीन दिन से गिरजे में नहीं आए,” उत्तेजना में पादरी का हाथ पीठ के पीछे चला गया. वह बहुत कठिनाई से अपने स्वर को वश में रख पाया था.

“जी हां, मैं तीन दिन से नहीं आया,” मैगज़ीन नीचे करके पाल ने गम्भीर नज़र से पादरी की तरफ़ देख लिया.

“मैं वज़ह जान सकता हूं?”

“वज़ह कुछ भी नहीं है.”

पादरी ने उत्तेजना के मारे बाइबल को दोनों हाथों में भींच लिया और त्योरी को डालकर कहा,“तुम जानते हो कि जो अच्छा-भला होकर भी सुबह गिरजे में नहीं आता उसे यहां रहने का अधिकार नहीं है?”

ग़ुस्से के मारे पाल के जबड़ों के मांस में खिंचाव आ गया था. उसने मैगज़ीन मेज़ पर रखकर हाथ जेबों में डाल लिए और बिलकुल सीधा खड़ा हो गया. बड़ी खिड़की के पास जॉन नज़र झुकाए बैठा था और आठ-दस लोग नोटिस बोर्ड और चिट्ठियों वाले रैक के पास खड़े अपने को किसी न किसी तरह उदासीन ज़ाहिर करने की कोशिश कर रहे थे. उनमें से किसी ने पाल के साथ आंख नहीं मिलाई. पाल का गला ऐसे कांप गया जैसे वह कोई बहुत सख़्त बात कहने जा रहा हो.

“पादरी, हम गिरजे में जो प्रार्थना करते हैं, उसका कोई मतलब भी होता है?”

एक लकीर दूर तक खिंचती चली गई. पादरी का चेहरा गुस्से से स्याह हो गया.
“तुम्हारा कहने का मतलब है...” उसके दाँत भिंच गए और वाक्य उससे पूरा नहीं हुआ. नोटिस बोर्ड के पास खड़े लोगों के चेहरे फक पड़ गए.

“मेरा मतलब है पादरी, कि रात को तो हम ग़रीब जानवरों को गोली मारते हैं, और सुबह गिरजे में उनकी रक्षा के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं—इसका कुछ मतलब निकलता है?”

पादरी पल-भर ख़ून-भरी आंखों से पाल को देखता रहा. उसकी सांस तेज़ हो गई थी.

“मतलब निकलता है और वह यह कि हर जानवर एक-सा नहीं होता. जानवर और जानवर में फ़र्क़ होता है,” उसने दांत भींचकर कहा और पास के दरवाज़े से बाहर चला गया-हालांकि उसके घर का रास्ता दूसरे दरवाज़े से था.

पन्द्रह मिनट बाद स्कूल का क्लर्क आकर पाल को चिट्‌ठी दे गया कि उसे उस दिन से नौकरी से बरख़ास्त कर दिया गया है. वह चौबीस घंटे के अन्दर अपना क्वार्टर ख़ाली करके चला जाए.

“यह पादरी नहीं, राक्षस है,” जॉन मुंह में बड़बड़ाया.

पीटर को उस दिन शहर में काम निकल आया, इसलिए वह रात को देर से लौटा. हक़ीम और बैरो खेल के मैदानों की जांच में व्यस्त रहे. नानावती को हल्का-सा बुख़ार हो आया. पाल को चलते वक़्त सिर्फ़ जॉन ही अपने कमरे में मिला. वह अपनी खिड़की में रखे गमलों को ठीक कर रहा था.

“जा रहे हो?” उसने पाल से पूछा.

“हां, तुमसे गुड बाई कहने आया हूं.”

जॉन गमलों को छोड़कर अपनी चारपाई पर जा बैठा.

“मैं जवान होता, तो मैं भी तुम्हारे साथ चला चलता,” उसने कहा,“मगर मुझे यहां से निकलकर पता नहीं क़ब्र की राह भी मिलेगी या नहीं. मेरी हड्डियों में दम-खम होता, तो तुम देखते...”

पाल ने मुस्कराकर उसका हाथ दबाया और उसके पास से चल दिया.

“विश यू बेस्ट ऑफ लक.”

“थैंक यू.”

पाल के चले जाने के बाद आंट सैली ने बैचलर्स डाइनिंग-रूम में आना बन्द कर दिया और कई दिन खाना अपने क्वार्टर में ही मंगवाती रही. जॉन और पीटर भी अलग-अलग वक़्त पर आते, जिससे बहुत कम उनमें मुलाक़ात हो पाती. नानावती अब पहले से भी सहमी हुई आती और जल्दी-जल्दी खाना खाकर उठ जाती. फ़ादर फिशर ने उसे पाल वाला क्वार्टर दे दिया था. इसलिए वह अपने को अपराधिनी-सी महसूस करती थी. जॉन ने उसके बारे में अपनी राय फिर बदल ली थी.

मगर धीरे-धीरे स्थिति फिर पुरानी सतह पर आने लगी थी. बैचलर्स डाइनिंग-रूम में फिर कहकहे और बहस-मुबाहिसे सुनाई देने लगे थे जब एक रात सुना गया कि आंट सैली को भी नोटिस मिल गया है.

“सैली को?” जॉन के होंठ खुले रह गए,“किस बात पर?”

“बात का पता नहीं है,” पीटर सूप में चम्मच चलाता रहा.

जॉन का चेहरा गम्भीर हो गया. वह मक्खन की टिकिया खोलता हुआ बोला,“मुझे लगता है कि इसके बाद अब मेरी बारी आएगी. मुझे पता है कि उसकी आंखों में कौन-कौन खटकता है. सैली का कसूर यह था कि वह रोज़ उसकी हाज़िरी नहीं देती थी और न ही वह...” और वह नानावती की तरफ़ देखकर चुप रह गया. पीटर कुछ कहने को हुआ, मगर बाहर से हक़ीम को आते देखकर चुपचाप नेपकिन से होंठ पोंछने लगा.

हक़ीम के आने पर कई क्षण चुप्पी छाई रही. किरपू हक़ीम के सामने प्लेट और छुरी-कांटे रख गया.

“तुम्हारे क्वार्टर में नए पर्दे बहुत अच्छे लगे हैं,” जॉन हक़ीम से बोला.

“तुम्हें पसन्द हैं?”

“बहुत.”

“शुक्रिया!”

“मेरा ख़्याल है चॉप्स में नमक ज़्यादा है.”

“अच्छा?”

“लेकिन पुडिंग अच्छा है.”

खाना खाकर जॉन और पीटर लॉन में टहलते रहे. आंट सैली के क्वार्टर को जानेवाले मोड़ के पास रुककर जॉन ने पूछा,“सैली से मिलने चलोगे?”

“चलो.”

“उस हरामी ने हमें इस वक़्त जाते देख लिया तो...”

“तो कल सुबह न चलें?”

“हां, इस वक़्त देर भी हो गई है.”

“बेचारी सैली!”

“इस पादरी जैसा ज़ालिम आदमी मैंने आज तक नहीं देखा. फ़ौज में बड़े-बड़े सख़्त अफ़सर थे, मगर ऐसा आदमी कोई नहीं था.”

पीटर जंगले के पास घास पर बैठ गया.

“मुझे फिर से फ़ौज की ज़िन्दगी मिल जाए तो मैं एक दिन भी यहां न रहूं...”

घास पर बैठकर जॉन पीटर को अपनी फ़ौज की ज़िन्दगी के वही क़िस्से सुनाने लगा जो वह पहले भी कई बार सुना चुका था.

“पूरी-पूरी बोतल, ए! रोज़ रात को रम की एक पूरी बोतल मैं पी जाता था. मेरा एक साथी था जो पास के गांव से दो-दो लड़कियों को ले आया करता था... कभी-कभी हम रात को निकलकर उसके गांव चले जाते थे. अफ़सर लोग देखते थे मगर कुछ कह नहीं सकते थे. वे ख़ुद भी तो यही कुछ करते थे. वह ज़िन्दगी थी. यह भी कोई ज़िन्दगी है, ए?”

मगर पीटर उसकी बात न सुनकर बिना आवाज़ पैदा किए, मुंह ही मुंह एक गीत गुनगुना रहा था.

“वैसे दिन फिर से मिल जाएं, तो कुछ नहीं चाहिए, ए?”

ऊपर देवदार की छतरियां हिल रही थीं. हवा से जंगल सांय-सांय कर रहा था. होस्टल की तरफ़ से आती पगडंडी पर पैरों की आवाज़ सुनकर जॉन थोड़ा चौंक गया.

“कोई आ रहा है, ए?”

पीटर सिर उठाकर जंगले से नीचे देखने लगा.

पैरों की आहट के साथ सीटी की आवाज़ ऊपर आती गई.

“बैरो है!”

“यह भी एक हरामज़ादा है.”

पीटर ने उसका हाथ दबा दिया.

“अभी क्वार्टर में नहीं गए टैफी?” बैरो ने अंधेरे से निकलकर सामने आते हुए पूछा.

“नहीं, यहां बैठकर ज़रा हवा ले रहे हैं.”

“आज हवा काफ़ी ठंडी है. पन्द्रह-बीस दिन में बर्फ पड़ने लगेगी.”

जॉन जंगले का सहारा लेकर उठ खड़ा हुआ.

“अच्छा, गुड नाइट पीटर! गुड नाइट बैरो!”

“गुड नाइट!”

कुछ रास्ता पीटर और बैरो साथ-साथ चलते रहे. बैरो चलते-चलते बोला,“जॉन अब काफी सठिया गया है, क्यों? इसे अब रिटायर हो जाना चाहिए.”

“हां-आं!” पीटर के शरीर में एक सिहरन भर गई.

“मगर यह तो यहीं अपनी क़ब्र बनाएगा, नहीं?”

पीटर ने मुंह तक आई गाली होंठों में दबा ली.

बैरो का क्वार्टर आ गया.

“अच्छा, गुड नाइट!”

“गुड नाइट!”

सुबह नाश्ते के वक़्त जॉन ने पीटर से पूछा,“सैली चली गई, ए?”

“पता नहीं,” पीटर बोला,“मेरा ख़याल है, अभी नहीं गई.”

“वह आ रही है!” नानावती नेपकिन से मुंह पोंछकर उसे हाथ में मसलने लगी. जॉन और पीटर की आंखें झुक गईं.

आंट सैली का रिक्शा डाइनिंग-रूम के दरवाज़े के पास आकर रुक गया. वह कन्धे पर झोला लटकाए उतरकर डाइनिंग-रूम में आ गई.

“गुड मॉर्निंग एवरीबडी!” उसने दहलीज़ लांघते ही हाथ हिलाया.

“गुड मॉर्निंग सैली!” जॉन ने भूरी आंखें उसके चेहरे पर स्थिर किए हुए भारी आवाज़ में कहा. जो वह मुंह से नहीं कह सका, वह उसने अपनी नज़र से कह देने की चेष्टा की.

“बस, आज ही जा रही हो.” नानावती ने डरे-सहमे हुए स्वर में पूछा और एक बार दाएं-बाएं देख लिया. आंट सैली ने आंखें झपकते हुए मुस्कराकर सिर हिला दिया.

“मैं सुबह मिलने आ रहा था,” पीटर बोला, “मगर तैयार होने-होने में देर हो गई. मेरा ख़याल था कि तुम शायद शाम को जा रही हो....”

आंट सैली ने धीरे-से उसका कन्धा थपथपा दिया और उसी तरह मुस्कराते हुए कहा,“मैं जानती हूं मेरे बच्चे! मैं चाहती हूं कि तुम ख़ुश रहो.”

“आंट, कभी-कभार ख़त लिख दिया करना,” पीटर ने उसका मुरझाया हुआ नरम हाथ अपने मज़बूत हाथ में लेकर हिलाया. आंट सैली की आंखें डबडबा आईं और उसने उन पर रुमाल रख लिया.

“अच्छा, गुड बाई!” कहकर वह दहलीज़ पार करके रिक्शा की तरफ़ चली गई.

“गुड बाई सैली!” जॉन ने पीछे से कहा.

“गुड बाई आंटी!”

“गुड बाई!”

आंट सैली ने रिक्शा में बैठकर उनकी तरफ़ हाथ हिलाया. मज़दूर रिक्शा खींचने लगे.

कुछ देर बाद नानावती ने कहा,“किरपू, एक बटर स्लाइस.”

जॉन पीछे की तरफ़ देखकर बोला,“मुझे चाय का थोड़ा गर्म पानी और दे दो.”

पीटर जैम के डिब्बे में से जैम निकालने लगा.
जिस दिन अनिता आई, उसी शाम से आकाश में सलेटी बादल घिरने लगे. रात को हल्की-हल्की बरफ़ भी पड़ गई. अगले दिन शाम तक बादल और गहरे हो गए. पीटर खेतानी गांव तक घूमकर वापस आ रहा था, जब अनिता उसे ऊपर की पगडंडी पर टहलती दिखाई दे गई. वह उस ठंड में भी साड़ी के ऊपर सिर्फ़ एक शॉल लिए थी. पीटर को देखकर वह मुस्कराई. पीटर ने उसकी मुस्कराहट का उत्तर अभिवादन से दिया.

“घूमने जा रही हो?” उसने पूछा.

“नहीं, यूं ही ज़रा टहलने के लिए निकल आई थी.”

“तुम्हें ठंड नहीं लग रही है?”

“ठंड तो है ही, मगर क्वार्टर में बन्द होकर बैठने को मन नहीं हुआ.” उसने शॉल से अपनी बांहें भी ढांप लीं.

“तुम तो ऐसे घूम रही हो जैसे मई का महीना हो.”

“मेरे लिए मई और नवम्बर दोनों बराबर हैं. मेरे पास ऊनी कपड़े हैं ही नहीं.” वह फिसलन पर से संभलती हुई पगडंडी से उतरकर उसके पास आ गई.

ऊनी कपड़े तो तुमने पादरी के डिनर की रात के लिए संभालकर रख रखे होंगे. तब तक सरदी से बीमार न पड़ जाना.” पीटर ने मज़ाक के अन्दाज़ में अपना निचला होंठ सिकोड़ लिया.

“सच, मेरे पास इस शॉल के सिवा और कोई ऊनी कपड़ा है ही नहीं,” अनिता उसके साथ-साथ चलती हुई बोली,“सच पूछो तो यह भी प्रेज़ेंट का है. हमें उधर गरम कपड़ों की ज़रूरत ही नहीं पड़ती.”

“तो परसों तक एक बढ़िया-सा कोट सिला लो. परसों फ़ादर का डिनर है.”

“परसों तक?...ओह?” और वह मीठी-सी हंसी हंस दी.

“क्यों? एक दिन में यहां अच्छे से अच्छा कोट सिल जाएगा.”

“मेरे पास इतने पैसे होते तो मैं यहां नौकरी करने ही क्यों आती? तुम्हें पता है, मैं नौ सौ मील से यहां आई हूं...अ...”

“पीटर-या सिर्फ़ विकी....”

“मैं अपने घर में अकेली कमाने वाली हूं. मेरी मां पहले बटुए सिया करती थी, पर अब उसकी आंखें बहुत कमज़ोर हो गई हैं. मेरा छोटा भाई अभी पढ़ता है. उसके एमएससी करने तक मुझे नौकरी करनी है.”

पीटर ने रुककर एक सिगरेट सुलगा लिया. बरफ़ के हल्के-हल्के गाले पड़ने लगे थे. उसने आकाश की तरफ़ देखा. बादल बहुत गहरा था.

“आज काफ़ी बरफ़ पड़ेगी,” उसने कोट के कॉलर ऊंचे उठाते हुए कहा. “चलो, तुम्हें तुम्हारे क्वार्टर तक छोड़ आऊँ... तुम सी कॉटेज में हो न?”

“हां....चलो मैं तुम्हें वहां चाय की प्याली बनाकर पिलाऊंगी.”

“इस मौसम में चाय मिल जाए, तो और क्या चाहिए?”

वे सी कॉटेज को जानेवाली पगडंडी पर उतरने लगे. कुहरा घना हो जाने से रास्ता दस क़दम से आगे दिखाई नहीं दे रहा था. अनिता एक जगह पत्थर से ठोकर खा गई.

“चोट लगी?”

“नहीं.”

“मेरे कंधे का सहारा ले लो.”

अनिता ने बराबर आकर उसके कन्धे का सहारा ले लिया. जब वे सी कॉटेज के बरामदे में पहुंचे, तो बरफ़ के बड़े-बड़े गोले गिरने लगे थे. घाटी में जहां तक आंख जाती थी, बादल ही बादल भरा था. एक बिल्ली दरवाज़े से सटकर कांप रही थी. अनिता ने दरवाज़ा खोला, तो वह म्याऊं करके अन्दर घुस गई.

दरवाज़ा खुलने पर पीटर ने उसके सामान पर एक सरसरी नज़र डाली. स्कूल के फर्नीचर के अलावा उसे एक टीन का ट्रंक और दो-चार कपड़े ही दिखाई दिये. मेज़ पर एक सस्ता टेबल लैम्प रखा था और उसके पास ही एक युवक का फ़ोटोग्राफ़ था. पीटर चारपाई पर बैठ गया. अनिता स्टोव जलाने लगी.

चारपाई पर एक पुस्तक और आधा लिखा पत्र पड़ा था. पीटर ने पत्र ज़रा हटाकर रख दिया और पुस्तक उठा ली. पुस्तक पत्र-लेखन के सम्बन्ध में थी और उसमें हर तरह के पत्र दिए हुए थे. पीटर उसके पन्ने उलटने लगा.
अनिता ने स्टोव जलाकर केतली चढ़ा दी. फिर उसने बाहर देखकर कहा,“बरफ़ पहले से तेज़ पड़ने लगी है.”
पीटर ने देखा कि बरामदे के बाहर ज़मीन पर सफ़ेदी की हल्की तह बिछ गई है. उसने सिगरेट का टुकड़ा बाहर फेंका, तो वह धुन्ध में जाते ही बुझ गया.

“आज सारी रात बरफ़ पड़ती रहेगी,” उसने कहा.

अनिता स्टोव पर हाथ सेंकने लगी.

बरामदे में पैरों की आहट सुनकर पीटर बाहर निकल आया. जॉन भारी क़दमों से चलता आ रहा था.

“ए पीटर!”

“हलो टैफी!...इस वक़्त बर्फ़ में कैसे निकल पड़े?”

“तुम्हारे क्वार्टर में गया था. तुम वहां नहीं मिले तो सोचा, शायद यहां मिल जाओ.” और वह मुस्करा दिया.
“वैसे घूमने के लिए मौसम अच्छा है?” पीटर ने कहा.

वे दोनों कमरे में आ गए. अनिता प्यालियां धो रही थी. एक प्याली उसके हाथ से गिरकर टूट गई.

“ओह!”

“प्याली टूट गई?”

“हां, दो थीं, उनमें से भी एक टूट गई.”

“कोई बात नहीं. सॉसर तो हैं, उनसे प्यालियों का काम चल जाएगा.”

पीटर फिर चारपाई पर बैठ गया. जॉन मेज़ पर रखे फ़ोटोग्राफ़ के पास चला गया.

“फिआंसे... ए?”

अनिता ने मुस्कराकर सिर हिला दिया.

“यह चिट्‌ठी भी उसी को लिखी जा रही थी?”

जॉन ने चारपाई पर रखे पत्र की तरफ़ संकेत किया. पीटर पुस्तक का वह पृष्ठ पढ़ने लगा जिस पर से वह पत्र नक़ल किया जा रहा था.

जॉन स्टोव के पास जा खड़ा हुआ और अनिता के शॉल की तारीफ़ करने लगा.

चाय तैयार हो गई तो अनिता ने प्याली बनाकर जॉन को दे दी. अपने और पीटर के लिए सॉसर में चाय डालती हुई बोली, “हमारे घर में कुल दो ही प्यालियां थीं. वही मैं उठा लायी थी. आते ही एक टूट गई.”

जॉन और पीटर ने एक-दूसरे की तरफ़ देखकर आंखें हटा लीं.

“यह सी कॉटेज है तो अच्छी, मगर ज़रा दूर पड़ जाती है,” पीटर दोनों हाथों से सॉसर संभालता हुआ बोला,“तुम पादरी से कहो कि तुम्हें डी या ई कॉटेज में जगह दे दें. वे दोनों ख़ाली पड़ी हैं. उनमें दो-दो बड़े कमरे हैं.”

“अच्छा?” अनिता बोली,“वैसे मेरे लिए तो यही कमरा बहुत बड़ा है. घर में हमारे पास इससे भी छोटा एक ही कमरा है जिसमें हम तीन जने रहते हैं... उसमें से भी आधा कमरा मेरे भाई ने ले रखा है और आधे कमरे में हम मां-बेटी गुज़ारा करती हैं. अब मैं आ गई हूं तो मां को जगह की कुछ सहूलियत हो गई होगी... मैं अपनी मां को बहुत प्यार करती हूं. पहला वेतन मिलने पर मैं उसके लिए कुछ अच्छे-अच्छे कपड़े भेजना चाहती हूं. उसके पास अच्छे कपड़े नहीं हैं.”

पीटर और जॉन की आंखें पल-भर मिली रहीं. जॉन का निचला होंठ थोड़ा सिकुड़ गया.

“चाय बहुत अच्छी है!”

“ख़ूब गरम है और फ़्लेवर भी बहुत अच्छा है.”

“रोज़ बरफ़ पड़े तो मैं रोज़ यहां आकर चाय पिया करूं.”

पीटर के सॉसर से चाय छलक गई.

“सॉरी!”

बरफ़ और कुहरे की वजह से बाहर बिलकुल अंधेरा हो गया था. बरफ़ के गोले दूध-फेन की तरह नि:शब्द गिर रहे थे. जॉन और पीटर अनिता के क्वार्टर से निकलकर ऊपर की तरफ़ चले, तो पगडंडी पर दो-दो इंच बरफ़ जमा हो चुकी थी. अंधेरे में ठीक से रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था, इसलिए जॉन ने पीटर की बांह पकड़ ली.

“अच्छी लड़की है, ए?”

“बहुत सीधी है.”

“मुझे डर है कि यह भी कहीं नानावती की तरह....”

“रहने दो-तुम उसके साथ इसका मुक़ाबला करते हो?”

“वह आई थी तो वह भी ऐसी ही थी...”

“मैं इसे इन लोगों के बारे में सब-कुछ बता दूंगा.”

जॉन को थोड़ी खांसी आ गई. वे कुछ देर ख़ामोश चलते रहे. उनके पैरों के नीचे कच्ची बरफ़ कचर-कचर करती रही.

कुछ फ़ासले से आकर टार्च की रौशनी उनकी आंखों से टकराई. पल-भर के लिए उनकी आंखें चुंधियाई रहीं. फिर उन्होंने ऊपर से उतरकर आती आकृति को देखा.

“गुड ईवनिंग बैरो!”

“गुड ईवनिंग टैफी! किधर से घूमकर आ रहे हो?”

“यूं ही बरफ़ पड़ती देखकर थोड़ी दूर निकल गए थे.”

“बरफ़ में घूमना सेहत के लिए अच्छा है!”

पीटर ने जॉन की उंगली दबा दी.

“तुम भी सेहत बनाने निकले हो?”

इस बार जॉन ने पीटर की उंगली दबा दी.

“हां, मौसम अच्छा है, मैंने भी सोचा, थोड़ा घूम लूं.”

“अच्छा, गुड नाइट!”

“गुड नाइट!”
टॉर्च की रौशनी काफ़ी नीचे पहुंच गई, तो जॉन पैर से रास्ता टटोलता हुआ बोला,“यह पादरी का खुफ़िया है खुफ़िया. मैं इस हरामी की रग-रग पहचानता हूं.”

पीटर ख़ामोश चलता रहा.

सुबह जिस समय पीटर की आंख खुली, उसने देखा कि वह जॉन के क्वार्टर में एक आराम-कुरसी पर पड़ा है-वहीं उस पर दो कम्बल डाल दिए गए हैं. सामने रम की ख़ाली बोतल रखी है. वह उठा, तो उसकी गरदन दर्द कर रही थी. उसने खिड़की के पास आकर देखा कि जॉन चाय का फ़्लास्क लिए डाइनिंग-रूम की तरफ़ से आ रहा है. वह ठंडी सलाखों को पकड़े दूर तक फैली बरफ़ को देखता रहा.

जॉन कमरे में आ गया और भारी क़दमों से तख़्ते पर आवाज़ करता हुआ पीटर के पास आ खड़ा हुआ.

“कुछ सुना, ए?”

पीटर ने उसकी तरफ़ देखा.

“रात को पादरी ने उसे अपने यहां बुलाया था...”

“किसे, अनिता को?”

जॉन ने सिर हिलाया. उसकी आंखें क्षण-भर पीटर की आंखों से मिली रहीं. पीटर गम्भीर होकर दीवार की तरफ़ देखने लगा.

“टैफी, मैं उससे कहूंगा कि वह यहां से नौकरी छोड़कर चली जाए. उसे पता नहीं है कि यहां वह किन जानवरों के बीच आ गई है!”

जॉन फ़्लास्क से प्यालियों में चाय उंड़ेलने लगा.

“उसमें ख़ुद्दारी हो तो उसे आप ही चले जाना चाहिए,” वह बोला,“किसी के कहने से क्या होगा! कुछ नहीं.”

“हो या न हो, मगर मैं उससे कहूंगा ज़रूर...”

“तुम पागल हुए हो? हमें दूसरों से मतलब? वह अनजान बच्ची तो है नहीं.”

पीटर कुछ न कहकर दीवार की तरफ़ देखता हुआ चाय के घूंट भरने लगा.

“अब जल्दी से तैयार हो जाओ, गिरजे का वक़्त हो रहा है!”

पीटर ने दो घूंट में ही चाय की प्याली ख़ाली करके रख दी. “मैं गिरजे में नहीं जाऊंगा.”
जॉन कुरसी की बांह पर बैठ गया.

“आज तुम्हारी सलाह क्या है?”

“कुछ नहीं, मैं गिरजे में नहीं जाऊंगा.”

जॉन मुंह ही मुंह बड़बड़ाकर ठंडी चाय की चुस्कियां लेता रहा.

दो दिन की बरफ़बारी के बाद फ़ादर फ़िशर के डिनर की रात को मौसम खुल गया. डिनर से पहले घंटा-भर सब लोग ‘म्यूज़िकल चेयर्स’ का खेल खेलते रहे. उस खेल में मणि नानावती को पहला पुरस्कार मिला. पुरस्कार मिलने पर उससे जो-जो मज़ाक किए गए, उनसे उसका चेहरा इतना सुर्ख़ हो गया कि वह थोड़ी देर के लिए कमरे से बाहर भाग गई. मिसेज़ मर्फी उस दिन बहुत सुन्दर हैट और रिबन लगाकर आई थी; उसकी बहुत प्रशंसा की गई. डिनर के बाद लोग काफ़ी देर तक आग के पास खड़े बातें करते रहे. पादरी ने सबसे नई मेट्रन का परिचय कराया. अनिता अपने शॉल में सिकुड़ी सबके अभिवादन का उत्तर मुस्कराकर देती रही.

एटकिन्सन मिसेज़ मर्फ़ी को आंख से इशारा करके मुस्कुराया.

हिचकाक अपनी मुस्कराहट ज़ाहिर न होने देने के लिए सिगार के लम्बे-लम्बे कश खींचने लगा. जॉन उधर से नज़र हटाकर हिचकाक से बात करने लगा.

“तुम्हें तली हुई मछली अच्छी लगी?...मुझे तो ज़रा अच्छी नहीं लगी.”

“मुझे मछली हर तरह की अच्छी लगती है; कच्ची हो या तली हुई...हां मछली हो.”

जॉन ने मुंह बिचकाया.

“रम की बोतल साथ हो तो भी तुम्हें अच्छी नहीं लगती?”

जॉन दांत खोलकर मुस्कराया और सिर हिलाने लगा.

मजलिस बरख़ास्त होने पर जब सब लोग बाहर निकले तो हिचकाक ने धीमे स्वर में जॉन से पूछा,“क्या बात है, आज पीटर दिखाई नहीं दिया...?”

जॉन उसका हाथ दबाकर उसे ज़रा दूर ले गया और दबे हुए स्वर में बोला,“उसे पादरी ने जवाब दे दिया है.”

“पीटर को भी?”

जॉन ने सिर हिलाया.

“वह कल सुबह यहां से चला जाएगा.”

“क्या कोई ख़ास बात हुई थी?”

जॉन ने उसका हाथ दबा दिया. पादरी और बैरो के साथ-साथ अनिता सिर झुकाए शॉल में छिपी-सिमटी बरामदे से निकलकर चली गई. जॉन की भूरी आंखें कई गज़ उनका पीछा करती रहीं.

“यह आप भी गरम पानी से नहाता है या नहीं?”

“क्यों?” बात हिचकाक की समझ में नहीं आई.

“इसने डाली को गरम पानी से नहलाया था न...!”

हिचकाक हो-हो करके हंस दिया. बरामदे में से गुज़रते हुए हक़ीम ने आवाज़ दी,“ख़ूब कहकहे लग रहे हैं?”

“मैं तली हुई मछली हज़म कर रहा हूं,” हिचकाक ने उत्तर दिया, और ऊंची आवाज़ में जॉन को बतलाने लगा कि बग़ैर कांटे की मासेर मछली कितनी ताक़तवर होती है.

सुबह जॉन, अनिता, नानावती और हक़ीम बैचलर्स डाइनिंग-रूम में नाश्ता कर रहे थे, जब पीटर का रिक्शा दरवाज़े के पास से निकलकर चला गया. पीटर रिक्शे में सीधा बैठा रहा. न उसे किसी ने अभिवादन किया, और न ही वह किसी को अभिवादन करने के लिए रुका. अनिता की झुकी हुई आंखें और झुक गईं-जॉन ऐसे गरदन झुकाए रहा जैसे उस तरफ़ उसका ध्यान ही न हो. बैचलर्स डाइनिंग-रूम में कई क्षण ख़ामोशी छाई रही.

सहसा पादरी को खिड़की के पास से गुज़रते देखकर सब लोग अपनी-अपनी सीट से आधा-आधा उठ गए.

“गुड मॉर्निंग फ़ादर!”

“गुड मॉर्निंग माई सन्ज़!”

“कल रात का डिनर बहुत ही अच्छा रहा,“हक़ीम ने चेहरे पर विनीत मुस्कराहट लाकर कहा.

“सब तुम्हीं लोगों की वजह से है.”

“मैं तो कहता हूं कि ऐसे डिनर रोज़ हुआ करें...”

पादरी आगे निकल गया, तो भी कुछ देर हक़ीम के चेहरे पर वह मुस्कराहट बनी रही.

“मेरे लिए उबला हुआ अंडा अभी तक क्यों नहीं आया?” सहसा जॉन ग़ुस्से से बड़बड़ाया. अनिता स्लाइस पर मक्खन लगाती हुई सिहर गई. किरपू ने एक प्लेट में उबला हुआ अंडा लाकर जॉन के सामने रख दिया.

“छीलकर लाओ!” जॉन ने उसी तरह कहा और प्लेट को हाथ मार दिया. प्लेट अंडे समेत नीचे जा गिरी और टूट गई.

उधर गिरजे की घंटियां बजने लगीं...डिंग-डांग! डिंग-डांग! डिंग-डांग!”

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