कहानी: समंदर
इतनी रात को घर लौट रही हो? तुम्हारी कंपनी सिक्योरिटी नहीं देती? कैसे आई? कौन दोस्त छोड़ कर गया?’’ अमृता जैसे ही घर में घुसी कि मकान मालकिन मिसेज़ पटवर्धन, जिसके यहां वह पेईंग गेस्ट की तरह रहती है, ने सवालों की झड़ी लगा दी.
‘‘वो... वो... मीता रॉय छोड़ गई,’’ अमृता ने थूक गटकते हुए कहा.
‘‘देखो अमृता मैंने पहले ही तुमसे कहा था, लेट नाइट ड्यूटी वाली लड़कियों को मैं कमरा नहीं देती, तुम इस शहर में नई हो, यहां के रंग-ढंग जानती नहीं, लड़कियों को रखो और फिर उनके तमाशे सहो, यह नहीं होता. कितनी बार कहा फ़ैमिली वालों को दो, लेकिन मिस्टर पटवर्धन मानते नहीं, कहते हैं,‘फ़ैमिली वालों के नखरे ज़्यादा होते हैं, लड़कियां घर में रहती ही कितना हैं? घर ठीक रहता है.’ अब वहीं खड़ी रहोगी महारानी कि अंदर भी आओगी?’’ मिसेज़ पटवर्धन की कड़कड़ाती आवाज़ से घबराई अमृता झटपट अंदर आ गई. डर के मारे वो भूल ही गई थी कि वह घर के बाहर ही खड़ी थी. मिसेज़ पटवर्धन भी न दिन देखती हैं न रात, शुरू हो जाती हैं. वह सहमी-सी ऊपर जाने लगी तो फिर आवाज़ गूंजी,‘‘खाना खाया है?’’
उसने जवाब में ‘ना’ में सिर हिलाया तो न जाने कैसे दया आ गई मिसेज़ पटवर्धन को ‘‘रुको चाय पीकर जाओ. फिर नहा लेना, तब तक खाना गर्म करके लगा दूंगी.’’ वह चुपचाप डाइनिंग टेबल पर बैठ गई, इतने में मिस्टर पटवर्धन भी आ गए,‘‘अमृता बेटे आ गई!’’
‘‘जी’’ उसने धीरे से जवाब दिया.
‘‘अरे थोड़ी चाय मैं भी ले लूंगा,’’ कहते हुए वह धीरे से बोले,‘‘अभी देखना मैडम जी शुरू हो जाएंगी.’’
तीन कप चाय लाकर रखती मिसेज़ पटवर्धन बोलीं,‘‘डॉक्टर ने मना किया है! यूं ही रातभर नींद नहीं आती, चाय पी लेंगे तो और नींद उड़ जाएगी. लो थोड़ी-सी ले लो.’’ कहते हुए वे वहीं बैठ गईं. कमरे में चुप्पी थी. अमृता धीरे-धीरे चाय गटक रही थी और मिसेज़ पटवर्धन उसे तिरछी निगाह से टटोल रही थीं. चाय ख़त्म कर नहाकर सारी थकान उतर गई.
‘‘टेबल पर खाना रखा है,’’ कहकर मिसेज़ पटवर्धन सोने चली गईं. उसने खाना खाया और अपने कमरे में चली गई. अगले दिन रविवार था तो उठने की जल्दी नहीं थी. बिस्तर पर लेटकर उसने मोबाइल ऑन किया तो अमेय का मैसेज झिलमिला रहा था. वह मुस्कुरा उठी. उधर वह ऑनलाइन था. बोला,‘तुम्हारी खारी मिसेज़ पटवर्धन ने तमाशा तो नहीं किया आज?’
अमृता ने लिखा,‘करेला है ज़ुबान पर, कड़वा करेला... आंखों ही आंखों में तौल लेती हैं इंसान को. आज तो मैं बहुत डर गई थी. अंकल अच्छे हैं. मन से शायद वो भी बुरी नहीं हैं, लेकिन बहुत कड़वी हैं यार.’
‘शुगर पेशेंट हैं, मिसेज़ पटवर्धन! आजकल देख रहा हूं, लोगों की ज़ुबान कड़वी होती जा रही है और उनके ब्लड में शुगर बढ़ रही है. व्हाट अ कॉन्ट्राडिक्शन!’ लिखकर उसने हंसने वाला इमोजी भी भेजा.
‘अरे हां, सच कह रहे हो. शक्कर बढ़ी तो मिठास बढ़नी चाहिए, लेकिन यहां तो कड़वापन बढ़ता है. लगता है करेले का रस पीते-पीते ख़ुद करेला हो गई हैं या सारे समंदर का खारापन भरा है उनमें.’ उसने भी जवाब के साथ एक इमोजी भेजा.
‘अमा छोड़ो... कहां करेला, शुगर लेकर बैठ गए हम? कल क्या कर रही हो?’ यह पूछने के साथ उसने एक शरारती इमोजी भेजा.
‘देर तक सोऊंगी, फिर देखती हूं,’ उसने रिप्लाई में लिखा.
‘चलो कल मूवी देखने चलते हैं,’ अमेय ने पूछा.
‘अरे ये आंटी ना, यहां मां-बाप बनी बैठी हैं. इतने सवाल करती हैं, जितने मम्मी-पापा ने नहीं किए होंगे. हॉस्टल वॉर्डन हैं पूरी. पता है पूरी कॉलोनी थर-थर कांपती है इनसे. हर आने-जाने वाले पर नज़र. फ़ालतू हैं, दिनभर आसपास क्या चल रहा है उस पर ध्यान रहता है. अपने पेईंग गेस्ट पर तो अपनी आंखों के सीसीटीवी कैमरे से नज़र रखती हैं.’
‘अरे यार अब छोड़ो आंटी पुराण, थोड़ा रोमैंटिक हो जाओ, कल मिलते हैं,’ अमेय ने लिखा.
‘ओके गुड नाइट’ लिख, उसने फ़ोन बंद कर दिया और बिस्तर पर लुढ़क गई.
छोटे शहर से इस महानगर मुंबई में आई थी अमृता. एक आईटी कंपनी में अच्छा जॉब मिला और पास ही यह पेईंग गेस्ट बंगला भी. मुंबई जैसे महानगर में ऑफ़िस के पास घर होने से ज़्यादा सुकून देनेवाली कोई दूसरी बात नहीं हो सकती. सो मिसेज़ पटवर्धन के थोड़े कड़वे व्यवहार को भी सह लेती अमृता. गगनचुंबी इमारतों के बीच, मिस्टर ऐंड मिसेज़ पटवर्धन का यह पुश्तैनी मकान, जिसके ऊपर की मंज़िल पर यह दंपति पेईंग गेस्ट रखता है, काफ़ी अलग-थलग सा दिखता है. ऊपरी मंज़िल पर तीन कमरे थे. अमृता के बगल के दोनों कमरों में दो और लड़कियां रहती थीं. एक कॉल सेंटर में थी. उसकी रात की ड्यूटी रहती थी, उसके आने के पहले निकल जाती थी, इसलिए उससे मिलना बहुत कम होता. दूसरी एयर होस्टेस थी तो उड़ती फिरती, कभी-कभी संडे को ही मुलाक़ात हो पाती.
‘सिगरेट, शराब, नॉनवेज, लड़के इस घर में नहीं चलेंगे, समझी,’ पहले ही दिन यह हिदायत दे दी गई थी. ‘नशे में धुत्त हो जिस दिन घर में घुसी सामान सहित सड़क पर फेंक दूंगी,’ मिसेज़ पटवर्धन गरजी थीं. अमृता के साथ की दोनों लड़कियां कभी-कभी खिल्ली उड़ातीं. ‘ऐसा लगता है जैसे किसी आश्रम में आ गए हैं और भरी जवानी में सन्यास ले लिया है हमने. ये आंटी तो बिल्कुल खड़ूस है,’ कॉल सेंटर वाली बोली.
‘तो क्या घर में रोकेंगी, बाहर कहां तक हमें देखेंगी, बाहर तो हम फ्री हैं यार,’ एयर होस्टेस लड़की ने आंख मारते हुए कहा और दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं. अमृता सहम गई. उसके मध्यमवर्गीय संस्कार उस पर हावी रहते. महानगर की चकाचौंध में आधुनिकता के नए पैमानों से अपने को तौलते हुए, तथाकथित आधुनिक लोग जब मॉडर्न होने को उकसाते तो वह उहापोह में पड़ जाती. जहां पीना पिलाना, संबंधों का कोई बंधन नहीं, उन्मुक्त जीवनशैली देखती तो कई बार डांवाडोल भी होती. अपने ही शहर का अमेय उसका दोस्त था, या दोस्त से ज़्यादा. पता नहीं, लेकिन दोनों को एक दूजे का साथ भाता. वीकएंड अक्सर साथ गुज़रता, कई बार वह उसके फ़्लैट पर ही रुक जाती. मिसेज़ पटवर्धन को कह देती,‘आज एक सहेली के घर पर हूं.’ मिसेज़ पटवर्धन बड़बड़ातीं,‘सब समझती हूं, सहेली नहीं किसी सहेले के साथ रुकेगी.’
लेकिन उनका क्या हक़ कि किसी को रोकें. अपने घर में रोक सकती हैं, बाहर कौन क्या करता है, उसपर उनका बस नहीं है. मिस्टर पटवर्धन अक्सर कहते,‘अब अपने बच्चे तो हैं नहीं, जो रोक-टोक करें. हमें क्या करना है?’ मिसेज़ पटवर्धन उदास होती हुई बोलतीं,‘अपने बच्चे को ही कहां रोक पाए हम! काश कोई उसे रोक देता. हर कोई ‘हमें क्या करना है?’ कहकर किसी को नहीं देखता. सब अपने में मगन. पर क्या पता किसी के कहने से कोई बात समझ आ जाए और अनहोनी न हो!’
मिस्टर पटवर्धन के पास कोई जवाब नहीं होता. जिस दुख के साथ दोनों जी रहे हैं, उसकी भनक भी अमृता को नहीं थी.
ऐसे ही दिन बीत रहे थे. अमृता और अमेय अपने रिश्ते में आगे बढ़ चुके थे. लेकिन लिव-इन में नहीं रह रहे थे. शादी करना चाहते थे. मिसेज़ पटवर्धन और मिस्टर पटवर्धन भी अमेय को जानने लगे थे. एक दो बार वह घर भी आया था. मिसेज़ पटवर्धन की अनुपस्थिति में. हालांकि मिसेज़ पटवर्धन का खारापन कम नहीं हुआ था. गाहे बगाहे कह देतीं,‘ज़माने में कैसे-कैसे लोग हैं, संभलकर चलना चाहिए. लेकिन आजकल के बच्चे तो बड़े-बूढ़ों को कुछ नहीं समझते.’ जब वे ऐसा कहतीं तो उनके लहज़े में कड़वाहट के साथ-साथ एक दर्द भी उभर आता.
अमृता को अब आदत-सी हो चली थी. वह सोचती थोड़े समय की बात है. अमेय से शादी के बाद तो वह चली ही जाएगी यहां से.
ऑफ़िस की उसकी सहेली मीता राय भी उसके और अमेय के बारे में जानती थी, वह बेहद खुले विचारोंवाली, बिंदास लड़की थी. मीता इस महानगर में रहकर कैसे अपने शौक़ पूरे करती, यह देख अमृता हैरान रह जाती. अक्सर मीता उससे कहती भी,‘‘अरे अमृता, जी ले ज़िंदगी, बार-बार नहीं मिलती. क्या पाप, क्या पुण्य, सब बेकार की बातें हैं. अपना तो खाना-पीना, घूमना-फिरना और मौज करने का ही फ़ंडा है. ये शादी-वादी अपने बस की नहीं, बंध के कौन रहे, आज़ाद पंछी हूं मैं और तू पिंजरे की चिरैया.’’ उसने अमृता की इस शहर में बड़ी मदद की थी इसलिए वह कुछ बोलती नहीं. अमृता खीझ जाती, लेकिन बरसों पुरानी दोस्ती तो नहीं तोड़ सकती थी ना! जब से उसे उड़ती-उड़ती ख़बर मिली थी कि मीता ड्रग्स लेने लगी है और सप्लाई भी करती है तब से अमृता ने उससे दूरी बढ़ा ली थी.
लेकिन एक दिन बातों-बातों में अमृता के मुंह से निकल गया कि इस वीकएंड मिसेज़ पटवर्धन अपनी बीमार बहन को देखने जा रही हैं, मिस्टर पटवर्धन के साथ.
बस क्या था वीकएंड पर अपने एक और दोस्त के साथ धमक पड़ी मीता उसके यहां. उसे देख अमृता के हाथ-पैर फूल गए, लेकिन एक ही जगह से होने और इस महानगर में मदद करने वाली, दिल से अच्छी, लेकिन झल्ली टाइप की, अपनी शर्तों पर जीनेवाली, पहेली-सी लगनेवाली इस सहेली को घर से निकल जाने के लिए कैसे कहती?
उसे देखकर लग रहा था कि उसने ड्रग्स ले रखी है. मीता ने अमृता से कहा,‘‘आओ, सारे ग़म भूल जाओ...’’
अमृता ने उसे समझाते हुए कहा,‘‘तुझे पता है न मिसेज़ पटवर्धन...’’
‘‘अरे रहने दे यार उस कड़वी बुढ़िया का नाम, आज तो कुछ मीठा खाना है... देख यह पेस्ट्री लाई हूं, इसको खाकर मस्ती करेंगे.’’
पेस्ट्री उसकी ओर बढ़ाते हुए उसने नशीली आंख मारी और कहा,‘‘हे... तू अमेय को भी बुला ले ना!’’
उनकी हालत देख मन ही मन अमृता घबरा गई और ‘‘कॉफ़ी लाती हूं,’’ कहकर किचन में चली गई और वहीं से अमेय को फ़ोन किया. लेकिन अमेय का फ़ोन बंद था. फिर उसने सोचा मिसेज़ पटवर्धन को फ़ोन करती हूं, डांट खा लूंगी लेकिन इनकी हरक़तें ठीक नहीं लग रहीं. डायल कर ही रही थी कि मीता ने फ़ोन खींचकर पटक दिया और अपने साथ लाई पेस्ट्री ज़बरन उसके मुंह में ठूंस दी. ‘‘अरे डार्लिंग आज तो अपने साथ तुझे जन्नत की सैर करवाती हूं, आज सब ग़म भूलकर नशे में झूम लो.’’ मीता उसे लेकर बाहर आई. तेज़ आवाज म्यूज़िक के साथ उसके पैर थिरकने लगे. न जाने क्या था उस पेस्ट्री में कि अमृता का सिर घूमने लगा. उसे लगा कि वह कहीं और है, थोड़ी देर में वह भी उनके साथ पागलों की तरह थिरकने लगी. उसे यह मीठा-मीठा सा नशा अच्छा लगने लगा. बेसुध हो कभी इससे लिपटती, कभी उससे. उसे अमेय की देह गंध महसूस होने लगी. मीता उसे अमेय नज़र आने लगी. तेज़ म्यूज़िक और पागलों की तरह नाचते, अश्लील हरक़तें करते एक घंटा गुज़रने को था, लेकिन पागलपन था कि थमने का नाम नहीं ले रहा था. तभी घंटी बजी. बहुत देर तक बजती रही. बेसुध अमृता को आवाज़ सुनाई दी तो लड़खड़ाते हुए उसने दरवाज़ा खोला. सामने पटवर्धन दंपति थे. वह बेसुध थी. हिचकी लेती हुई, उन्हीं की बांहों में झूल गई.
होश में आई तो अपने को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. पास में अमेय और मिस्टर पटवर्धन थे. सिर दर्द से फट रहा था. याद करने की कोशिश की तो सब याद आया. भय और शर्मिंदगी से सिहर उठी वह. ‘‘अमेय, मैं... मैं...’’ उसने बोलने की कोशिश की.
‘‘कुछ मत कहो... ठीक हो जाओ फिर बात करते हैं,’’ अमेय ने कहा.
मिसेज़ पटवर्धन भी आ गई थीं. बोलीं कुछ नहीं, लेकिन अमृता को उनसे डर लग रहा था. दो दिन बाद जब वह ठीक हुई तो मिसेज़ पटवर्धन के कहा,‘‘अभी तुम्हारे घर पर कुछ नहीं बताया है. कहो तो बता दूं...’’ अमृता फफक-फफक कर रो दी. ‘‘उस रात तुम्हारे हाथ फ़ोन डायल हुआ था और मैंने उठा लिया. तुम्हारी दोस्त की और तुम्हारी बातों से अंदाज़ा लग गया था कि कहीं कुछ ठीक नहीं है. टैक्सी कर हम तुरंत लौट आए और तुम बच गई ड्रग्स और उसके नशे में बर्बाद होने से.’’
कुछ देर चुप रहने के बाद वे ठंडी सांस लेकर बोलीं,‘‘काश ऐसे ही मेरी मासूम बच्ची की चीखें कोई सुन उसे बचा पाता!’’ मिस्टर पटवर्धन ने बताया,‘‘हमारी कॉलेज जानेवाली बच्ची बहुत मासूम थी. वह अपनी सहेली के साथ हॉस्टेल में रहती थी. ऐसे ही किसी चंगुल में फंस गई थी. जब तक हम समझ पाते, हॉस्टल से उसकी लाश वापस आई. ड्रग्स के ओवरडोज़ की वजह से उसकी मौत हो गई थी. कभी-कभी माता-पिता या किसी का भी अधिक टोकना नागवार गुज़रता है, लेकिन उनका अनुभव, डांट नाज़ुक मौक़े पर ढाल बन जाती है. इसलिए तुम्हारी आंटी अपने साथ दूसरों के लिए भी कठोर हैं.’’
मिसेज़ पटवर्धन की आंखें नम हो आईं. अपनी भावनाओं पर क़ाबू पाते हुए वे बोलीं,‘‘काश मेरी बेटी को भी वहां कोई टोकने वाला मिल जाता! या मैं ही उसे बचा पाती.’’
अमृता की आंखों में तैरते प्रश्न को समझ वे बोलीं,‘‘यही सोच रही हो ना कि क्या किसी पर भरोसा न किया जाए? बेटा आजकल बस आंख खुली रखना और सतर्कता ज़रूरी है. हमारे समाज ने आधुनिक होने का यह नुक़सान उठाया है कि भरोसा ख़त्म हो गया है. समझ नहीं पाते कि किसे अपना मानें.’’
मिसेज़ पटवर्धन ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए, खिड़की से नज़र आ रहे समंदर की तरफ़ देखते हुए कहा,‘‘मैं जानती हूं मेरी कड़वाहट बुरी लगती है, लेकिन बहुत अच्छे से डर लगता है अब. मेरी बेटी भी बहुत अच्छी थी. सबपर भरोसा कर लेती थी, बिना जाने... जानती हो समंदर बचा हुआ क्यों है? क्योंकि वह खारा है. सोचो, जो वह गंगा के पानी की तरह मीठा होता तो क्या अब तक बचा रहता? अपने अंदर की अच्छाई, मासूमियत, मिठास को बनाए रखने के लिए कभी-कभी खारा होना होता है, ताकि हर कोई, ऐरा गैरा नत्थू खैरा तुम तक न पहुंच सके. जिसे तुम्हारे अंदर के रत्नों की क़ीमत पता होगी, वह तो तुम्हें प्रयास से पा ही लेगा, लेकिन इस दुनिया में अपने को बचाने के लिए थोड़ा खारापन ज़रूरी है.’’
अमृता और अमेय समझ गए थे कि इस महानगर में अपने अमृत को बचाना हो तो समंदर बनना होगा.
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