कहानी: अमानत

बिटिया का चेहरा देखकर ये मंद मंद क्या मुस्कुरा रही हो?’’ अभिनव की आवाज़ से चौंक गई रिया.

‘‘सोच रही हूं कि ये हमारी अमानत है. मुझे और तुम्हें इसके लिए उससे भी कहीं अच्छी तरह ज़िम्मेदारियां निभानी हैं, जितनी मां पापा ने हमारे प्रति निभाई हैं,’’ मुस्कुराते हुए रिया ने कहा.

‘‘लो, हमारी बेटी अभी सिर्फ़ महीने भर की हुई है और तुम ये सब भी सोचने लगीं?’’ अभिनव ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘तुम्हें शायद पिता बनने का एहसास धीरे धीरे आए, पर मैं तो मां हूं. तुमसे नौ महीने पहले से इस एहसास से बंध चुकी हूं, फिर तो ये जायज़ होना चाहिए,’’ रिया की हाज़िरजवाबी से अभिनव के चेहरे पर स्मित मुस्कान तैर गई.
‘‘अच्छा सुनो, मैं ऑफ़िस के लिए निकल रहा हूं. तुम समय पर खाना खा लेना,’’ उसे प्यार भरी हिदायत देकर अभिनव ऑफ़िस निकल गए.

दोपहर को जब उनकी नन्हीं सी बेटी हिया सोती है तो उसे एकटक निहारना रिया को अच्छा लगता है. हिया के जन्म के बाद से तो वो जैसे भूल ही गई है कि बिटिया होने के एक दिन पहले तक वो ऑफ़िस के कामों में किस क़दर उलझी रहती थी. एक मल्टीनेशनल कंपनी में ब्रांड मैनेजर के ओहदे को संभालना आसान तो नहीं है, पर उसे संतोष है कि अब एक अच्छे करियर के साथ उसने परिवार की सारी ख़ुशियां भी पा ली हैं. अपनी बेटी का चेहरा देखते देखते वो अतीत में पहुंच गई.

‘‘नहीं पिताजी, अब नीना को वापस बुलाने के अलावा कोई चारा नहीं है. ससुरालवालों की ऐसी ज़्यादतियां नहीं सहेगी वो,’’ पापा ने ऐसा ही कुछ तो कहा था. तब रिया केवल 8 वर्ष की थी.

‘‘तो क्या करोगे वापस बुलाकर? सारी ज़िंदगी घर पर बिठाएंगे क्या उसे?’’ दादाजी की रौबदार आवाज़ आई.

‘‘वहां तो नहीं ही रहने दूंगा, आगे क्या करना है वह उसके आने पर ही तय करेंगे पिताजी,’’ पापा ने धीमी मगर सधी हुई आवाज़ में कहा.

‘‘हुंह, दुनिया देखी नहीं है अभी और समाज से पंगा लेने निकल पड़े हैं,’’ यह कहते हुए दादाजी बाहर निकले तो वो सकपकाकर चाचा के कमरे में जा छुपी थी.

दो दिन बाद ही पापा नीना बुआ को उनकी ससुराल से ले आए. कुछ दिनों में ही तलाक़ के काग़ज़ात उनके ससुराल भिजवा दिए. कोहराम मच गया था पूरे घर में, दादाजी ने पूरा घर सर पर उठा लिया था.

‘‘समाज से हटकर कोई क़दम मत उठाओ महेश. ऐसा न हो कि बाद में पछताना पड़े...नीना का भविष्य ख़राब हो जाए. अभी वो केवल 21 वर्ष की है, क्या करेगी पूरी ज़िंदगी? रख सकोगे उसे अपने घर में हमेशा?’’ कुछ शांत हुए तो दादाजी ने फिर अपनी बात रखी.

‘‘पिताजी जब तक मैं ज़िंदा हूं, नीना उनकी दुष्टता नहीं सहेगी. रहा सवाल वो कैसे जीवन बसर करेगी तो मैंने उसका दाखिला एमए में करवा दिया है. पढ़ेगी, नौकरी करेगी और आत्मनिर्भर बनेगी. फिर भला उसे किसी की मदद की क्या ज़रूरत रह जाएगी? ख़ुद दूसरों की मदद करने के क़ाबिल हो जाएगी वो. संभव हुआ तो हम दूसरी शादी कर देंगे इसकी.’’

पापा की आवाज़ की दृढ़ता थी या दादी के आंखों का मनुहार...जो भी था दादाजी ने इसके आगे कुछ भी नहीं कहा. नीना बुआ ने इंग्लिश में एमए किया और फिर एक कॉलेज में लेक्चरर हो गईं. बाद में उनके एक सहकर्मी ने ख़ुद ही आगे बढ़कर उनका हाथ थाम लिया. आज उनका भरापूरा परिवार है. जब भी वो मां पापा से मिलती हैं, उनकी आंखों में पापा और मां के प्रति आत्मीयता साफ़ पढ़ी जा सकती है.

हिया कुनमुनाने लगी तो रिया की तंद्रा टूटी. तभी मोबाइल बज उठा, हिया को थपथपाते हुए उसने जल्दी से फ़ोन उठा लिया...शायद इस डर से कि कहीं हिया की नींद न टूट जाए.

‘‘रिया!’’

‘‘मां! मैं आप लोगों के आने का इंतज़ार ही कर रही हूं.’’

‘‘हां बेटा! बस, दो दिनों की ही तो बात है.’’

‘‘पर आपकी छोटी रिया यानी हिया तो पूरे 1 महीने और 8 दिन की होने के बाद ही पहली बार अपने नाना नानी से मिलेगी ना?’’

‘‘बच्ची बन जाती हो तुम कभी कभी. मीनाक्षी की तबीयत ख़राब न हुई होती तो हम कब के आ चुके होते बेटा. रोहित ने तो कहा भी था कि आप लोग चले जाइए, लेकिन परदेस में उसे बीमार छोड़ के कैसे आ जाते?’’

‘‘मैं समझती हूं मां, लेकिन जब से हिया हुई है आप दोनों से मिलने की बहुत इच्छा हो रही है. अब लगता है कि माता पिता अपने बच्चों के लिए कितना कुछ करते हैं. ये बिल्कुल नया एहसास है मां और मैं इसे आपके और पापा के साथ बांटना चाहती हूं.’’

‘‘हम आ रहे हैं रिया.’’

‘‘हां मां! वी आर वेटिंग फ़ॉर यू.’’

रोहित उसका भाई और मीनाक्षी उसकी भाभी है. दोनों मॉरिशस में जॉब करते हैं और मां पापा उन्हीं के साथ रहते हैं. हिया जब जागती है तो ढेर सारा काम करना होता है, लेकिन जब वो सो रही होती है तो मेरे मन में कितने विचार घूमते रहते हैं... और रिया फिर पुरानी यादों में डूबने उतरने लगी. उनका परिवार कितना रूढ़िवादी था, ख़ासतौर पर दादाजी. उन्हें लड़कियों का नौकरी करना पसंद ही नहीं था, पर नीना बुआ की नौकरी लगने के बाद उनकी सोच में भी तो थोड़ा बदलाव आया था.

जब वो 14 साल की थी...हां, तभी तो एक रात उनके खेतों में आग लग गई थी. आग बुझाने की कोशिशें जब तक सफल हुईं, तब तक पूरा खेत जल चुका था. पापा का इतना नुक़सान हो चुका था कि वे लाखों के कर्ज़ में डूब चुके थे. तब मां आगे आई थीं.

‘‘सुनो, मैंने संगीत में बीए किया है. शायद अब वो कुछ काम आ जाए. नीना जीजी कह रही थीं कि उनके कॉलेज में संगीत के शिक्षक का पद ख़ाली है. यदि तुम कहो तो...मैं बस, अपने परिवार की मदद करना चाह रही थी,’’ जब मां ने पापा से ये बात कही थीं, वो पापा के लिए दूध लेकर कमरे में घुसते घुसते रुक गई थी.

‘‘रमा, तुम्हारी ये सोच ही तो मुझे तुम्हारी ओर हमेशा आकर्षित रखती है. मुझे तुम्हारी इस मदद की वाक़ई बहुत ज़रूरत है. अच्छा हुआ कि ये तुमने ख़ुद पूछ लिया. मैं ये समझ नहीं पा रहा था कि इस बारे में तुमसे कैसे पूछूं कि क्या ऐसे समय में तुम घर के ख़र्च बंटाने में सहायता कर सकोगी? इस बात का भरोसा तो है मुझे कि दो चार साल में मैं व्यापार को पटरी पर लौटा लाऊंगा, लेकिन तब तक घर के ख़र्चों को निपटाने में तुम्हारा सहयोग मिल जाए तो ये और आसान हो जाएगा.’’

फिर मां ने नौकरी करना शुरू कर दिया था. हालांकि दादाजी इससे क्षुब्ध थे. घर की बहू नौकरी करने जाए ये उन्हें पसंद नहीं था, लेकिन शायद घर के हालात देखकर उन्होंने इसका विरोध नहीं किया. तीन चार साल में पापा बिज़नेस को पटरी पर लौटा भी लाए थे, पर मां ने अपनी नौकरी नहीं छोड़ी थी. जब कभी वो समाज की शादियों में जाते महिलाएं यह कहने से नहीं चूकती थीं,‘‘अब तो महेश जी का बिज़नेस पटरी पर लौट आया है, अब आप क्यों नौकरी कर रही हैं? भला ऐसा कितना पैसा जोड़ना है आप दोनों को? दो ही तो बच्चे हैं, लड़की के हाथ पीले कर देना और लड़के की शादी में दहेज तो मिल ही जाएगा आपको.’’ऐसी बातों पर वो तिलमिला जाती, लेकिन मां और पापा मुस्कुरा कर बात को आयी गयी कर देते.

तब वो बीएससी कर रही थी, जब एक दिन बातों ही बातों में दादी ने कहा,‘‘अब रिया की शादी की उम्र हो चली है महेश! इसके लिए भी लड़के ढूंढ़ने शुरू करो.’’

पापा बोले,‘‘हां, मां देखूंगा. अभी उसे पढ़ तो लेने दो.’’

उस रात पापा और मां दोनों ही उसके स्टडी रूम में आ गए.

‘‘आगे क्या करना चाहती हो रिया?’’ ये मां थीं.

‘‘मां, बीएससी के बाद मैं किसी अच्छे इंस्टीट्यूट से एमबीए करूंगी.’’

उसका जवाब सुनने के बाद मां पापा एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए और इधर उधर की बातें कर के थोड़ी देर बाद चले भी गए. उसे अच्छा लगा कि कम से कम मां पापा ने उससे दादी के कहे मुताबिक़ शादी के बारे में तो कोई ज़िक्र नहीं किया. बीएससी के अंतिम वर्ष के दौरान उसके जन्मदिन पर पापा ने उसे कई अच्छे इंस्टीट्यूट्स की एमबीए प्रवेश परीक्षाओं के ब्रॉशर्स गिफ़्ट किए, पर उसके मन में तो कोई और ही सपना था. 

पापा के बताए गए इंस्टीट्यूट्स के अलावा उसने आईआईएम का फ़ॉर्म भी भरा और सबसे अच्छी बात यह थी कि वो आईआईएम सहित सभी में चुन भी ली गई थी. आईआईएम से एमबीए की फ़ीस के बारे में सोच सोच कर उसे लग रहा था कि पापा से कह दे कि वो किसी भी छोटे मोटे इंस्टीट्यूट से एमबीए कर लेगी. पापा का बिज़नेस पटरी पर भले ही लौट आया हो, लेकिन उनके पास कुछ ख़ास जमा पूंजी नहीं है ये तो वो जानती ही थी. फिर रोहित भी तो 12वीं की परीक्षा दे रहा था इस साल. उसे भी तो अपना करियर चुनना था. वो ये सब सोच ही रही थी कि मां पापा उसके कमरे में ही आ पहुंचे.

‘‘ये काग़ज़ मेरी अमानत के लिए है,’’ यह कहते हुए पापा ने उसके हाथ में एक चेक थमा दिया.

‘‘पापा!’’ चेक में उसके नाम 7 लाख रुपए की राशि देखकर वह प्रश्नवाचक निगाहों से अपने माता पिता की ओर देखती रह गई.

‘‘तुमने इतनी बड़ी परीक्षा पास की है बेटा! हम दोनों चाहते हैं कि तुम आईआईएम से ही एमबीए करो. इसके लिए हम तैयारी काफ़ी पहले से ही शुरू कर चुके थे, लेकिन अब तक हम इतनी ही राशि जुटा सके हैं, पर धीरे धीरे और भी जुटा लेंगे,’’ मां ने उसे दुलारते हुए कहा.

‘‘पर मां अभी तो रोहित का भी करियर बनाने का समय है और...’’

उसकी बात को बीच में ही काटते हुए पापा बोले,‘‘तुम दोनों ही तो हमारी अमानत हो. तुम लोगों का भविष्य अच्छा बन जाए और क्या चाहिए हमें?’’

उसकी पढ़ाई के दौरान ही दादाजी गुज़र गए थे. आईआईएम में दो साल बिताने के बाद उसने तीन चार साल अच्छी कंपनियों में नौकरी की और इसी दौरान उसकी मुलाक़ात अभिनव से हुई, जो ख़ुद भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे ओहदे पर काम करते थे. सबसे ज़्यादा जिस बात ने रिया को अभिनव के क़रीब ला खड़ा किया वो थी कि वो एक सेल्फ़मेड इंसान थे. एक अनाथ आश्रम में पले बढ़े अभिनव इतने मेधावी छात्र थे कि उन्हें हर परीक्षा में स्कॉलरशिप मिलती गई और वे सफलता के शिखर चढ़ते गए. जब अभिनव से शादी करने की अपनी इच्छा का ज़िक्र उसने घर पर किया तो सिवाय पापा के सभी इसके ख़िलाफ़ थे. मां, रोहित और दादी तीनों का ही कहना था कि उसके ख़ानदान का कोई पता नहीं है, फिर तुम कैसे उससे शादी की बात सोच सकती हो?
‘‘क्यों? क्या किसी इंसान की क़ाबीलियत उसके ख़ानदान से ज़्यादा मायने रखती है?’’ यह तर्क देकर पापा ने सभी को चुप करा दिया था.

अभिनव के साथ घर बसा कर उसे लगने लगा था कि अब वो ज़िंदगी के लगभग सभी रंग देख चुकी है, लेकिन हिया की पैदाइश के बाद उसने महसूस किया कि अब तक वो ज़िंदगी के एक ख़ूबसूरत एहसास को नहीं जी सकी थी, जिसे शायद सभी महिलाओं को जीना चाहिए. सच, मां बनना कितना अनूठा एहसास है!!

‘‘अब ये दो दिन तो सिर्फ़ मां पापा के इंतज़ार में ही बीतेंगे,’’ शाम को अभिनव से बात करते हुए रिया ने कहा.

‘‘हम्ममम... ये भी भला कोई बतानेवाली बात है, ये तो मुझे पता ही है. पहले बिटिया फिर मां पापा...हमारा नंबर तो सबसे     आख़िरी है!!’’

‘‘चलो हटो, मां पापा से तो करते ही थे अब इस छोटी सी हिया से भी अपनी तुलना करने लगे. शरारती कहीं के!’’
मां पापा के आने की तैयारी के बीच दो दिन कब निकल गए पता ही नहीं चला.

‘‘रिया! ये तो वाक़ई तुम्हारे जैसी दिखती है.’’

‘‘नहीं जी, ये अपने पापा की तरह दिखती है!’’

‘‘अरे रिया की वो फ़ोटो नहीं है, जिसमें उसने पीले रंग की फ्रॉक पहनी है...वैसी ही तो लग रही है हिया.’’

‘‘जाने भी दो, नाक तो बिल्कुल अपने पापा पर गई है.’’

हिया को देखकर मां पापा की ये नोंक झोंक उसे बहुत मज़ेदार लगी. अभिनव भी इसके मज़े ले रहे थे.

‘‘दिखती किसी की भी तरह हो पापा, लेकिन ये तय है कि ये हम सब की अमानत है. मैं और अभिनव इसकी परवरिश बिल्कुल उसी तरह करना चाहते हैं, जैसे आपने मेरी परवरिश की है!’’

रिया की ये बातें सुनकर मां पापा और अभिनव तीनों ही मुस्कुरा दिए.

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