कहानी: उसका क्या कसूर है?
आधी रात को बाहर सड़क पर बहुत शोर-गुल सुनाई दे रहा था. ऋचा की लिहाफ़ में से निकल कर बाहर जाकर कारण जानने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी. एक तो आगरा में जनवरी महीने की कड़ाके की जाड़े की रात, ऊपर से पावर कट, सोच कर ही पूरे शरीर में कंपकंपी पैदा हो जाती है. हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था. दूसरा वर्तमान दूषित क़ानून व्यवस्था ने ‘बाहर क्या हो रहा है’ की जिज्ञासा पर और भी पानी फेर दिया था.
‘कौन किसी के पचड़े में पड़े,’ वह बुदबुदाई और करवट लेकर कब नींद की आगोश में चली गई, पता ही नहीं चला.
सुबह पौ फटते ही ऋचा की आंख खुली, उसने खिड़की से बाहर झांका, चारों ओर घना कोहरा पसरा पड़ा था. रात का कोलाहल गहरे सन्नाटे में परिवर्तित हो चुका था. वह अपनी मेड की बेसब्री से प्रतीक्षा करने लगी, उससे अधिक अच्छी तरह रात की घटना का वर्णन और कौन कर सकता था! वह आई, इससे पहले कि ऋचा उससे कुछ पूछे, उसने आते ही एक हाथ से अपनी ठोड़ी पकड़ कर और दूसरे हाथ से ऋचा की ओर संकेत करते हुए, आंखें फैला कर कहा,‘‘अरे... बहू जी! तुमका पता है, कल सामने वाले खन्ना जी की बड़ी बिटिया के साथ कुछ उलटा-सीधा भवा है! बिटिया अस्पताल मा है, घर के सबे लोग राते मा ओकर देखन चले गइन रहिन.’’ इतना कहकर वह उन्हीं फटी आंखों से ऋचा की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगी.
उसकी बात सुनकर वह बुरी तरह चौंक गई, फिर अपने को थोड़ा सामान्य करके उसकी बात को अनसुना करते हुए बोली,‘‘अच्छा, तू अपना काम जल्दी ख़्तम कर, मुझे तुरंत बाहर कहीं जाना है.’’ इतना कह कर उसने मेड के कथन पर पूर्णविराम लगा दिया, क्योंकि वह जानती थी कि वह बिना उसकी प्रतिक्रिया के अनवरत बोलती ही चली जाएगी. ऋचा जल्द से जल्द खन्ना जी के घर पहुंच कर घटना की तह तक पहुंचना चाहती थी. पिछले पांच वर्षों से खन्ना दंपति उसके पड़ोस में ही रह रहे थे. उनकी दो बेटियां थीं. बड़ी बेटी ख्याति और छोटी बेटी का नाम स्वाति था. ऋचा की श्रीमती खन्ना से प्रायः किसी न किसी पड़ोसी के समारोह में, सड़क पर आते-जाते या कभी- कभी एक-दूसरे के घर पर आने-जाने से भी मुलाक़ात हो जाती थी. वे बहुत ही शिष्ट और समझदार महिला थीं.
मेड के जाते ही ऋचा खन्ना जी के घर पहुंच गई, लेकिन गेट पर एक बड़ा-सा ताला लगा हुआ था. वह अस्पताल का नाम पूछती भी तो किससे? अन्य दिनों के विपरीत अत्यधिक ठंड और कोहरा होने के कारण सभी लोग अपने घरों में दुबके हुए थे. उसने अपने पर्स से मोबाइल निकाल कर खन्ना जी से अस्पताल का नाम पता किया और रिक्शे से आनन-फानन में वहां पहुंच गई.
ऋचा को अस्पताल पहुंच कर, जो दृश्य अपेक्षित था, वही देखने मिला. पीड़िता लड़की, ख्याति आईसीयू में थी, बाहर खन्ना जी और उनकी पत्नी रात भर के जगे और थके हुए बेंच पर एक ओर लुढ़के हुए थे. उनकी छोटी बेटी उन दोनों के बीच में उनींदी-सी बैठी थी, एक ओर तीन-चार पुलिसकर्मी तथा पत्रकार खड़े थे, इस इंतज़ार में कि पीड़िता होश में आए और वे उसका बयान लें. पांच-छह लोग और भी थे, जिनको वह पहचानती नहीं थी, शायद खन्ना जी के रिश्तेदार होंगे, जो कि आपस में खुसर-फुसर कर रहे थे. वह खन्ना जी की पत्नी के पास जाकर बैठ गई और धीरे से उनके कंधे पर हाथ रखा. हाथ के स्पर्श से उन्होंने अपना चेहरा उसकी ओर घुमा कर उसको देखा, देखते ही वे उससे लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगीं. उसको समझ नहीं आ रहा था कि वह उनको क्या कहकर सांत्वना दे. इससे पहले, उन्होंने स्वयं ही बिलखते हुए अस्पष्ट शब्दों में कहा,‘‘रात से उसको होश ही नहीं आया है... डॉक्टर ने छह घंटे के ऑब्ज़र्वेशन का समय दिया है. पता नहीं क्या होगा? अंधेरे और कोहरे का लाभ उठा कर, ऑटो वाले ने कुकर्म करके उसको सड़क पर फेंक दिया... हाय मेरी बच्ची... ऑफ़िस से लौट रही थी, वह तो एक भले आदमी ने उसे अस्पताल पहुंचा कर हमें ख़बर कर दी थी... नहीं तो पता नहीं क्या होता मेरी बच्ची का...’’ उन्होंने एक ही सांस में सारा वृत्तांत कह सुनाया.
‘‘उफ्फ! कैसे भेड़िए हैं! इनको तो क़ानून के सज़ा देने से पहले ही गोली से उड़ा देना चाहिए...’’ बात सुनते ही ऋचा ने आक्रोशपूर्ण शब्दों में बेसाख़्ता बोला, फिर कुछ संयत होकर उनको सांत्वना देती हुई बोली,‘‘आप बिल्कुल चिंता मत करिए, ख्याति बिल्कुल ठीक हो जाएगी और पापी को उसके पाप की सज़ा मिल कर ही रहेगी...’’ अभी उसकी बात पूरी तरह समाप्त भी नहीं हुई थी कि डॉक्टर ने आकर बताया कि उनकी बेटी होश में आ गई है. यह सुनते ही सभी लोग उससे मिलने के लिए दौड़े, लेकिन डॉक्टर ने सबको एक साथ उससे मिलने की अनुमति नहीं दी.
परिवार के सदस्य एक-एक करके ख्याति को देखने गए, जब ऋचा की बारी आई तो उसने देखा वह दर्द से कराह रही थी और बुदबुदा रही थी,‘डॉक्टर साहब मुझे बचा लीजिए, मैं उसको नहीं छोडूंगी. उसको सज़ा दिलवा कर रहूंगी...’’ उसने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा,‘‘हां..., बेटा! तुम ठीक हो जाओ तो वही होगा, जो तुम चाहोगी.’’
उसकी हालत देख कर वह बुदबुदाई,‘करे कोई और भरे कोई.’ वह भरे मन से बाहर आ गई. उसको लग रहा था कि वह और अधिक देर तक उस वातावरण को नहीं झेल पाएगी, क्योंकि ख्याति को देखकर उसका अपना ज़ख्म, जिसका सिर्फ़ निशान रह गया था, फिर से हरा हो गया था. उसने ‘‘फिर आऊंगी’’ कहकर वहां से विदा ली.
घर आकर, वह तकिए में मुंह छिपा कर ख़ूब रोई और बुदबुदाने लगी,‘हे भगवान..! ख्याति की तक़लीफ़ मुझसे अधिक और कौन समझेगा? जो बचपन में ख़ुद इस स्थिति से गुज़र चुकी है.’ अपने सूखे हुए ज़ख्म को उसने कुरेदना आरम्भ कर दिया. उसे याद आया किस तरह उसके सगे चाचा ने उसके साथ मौक़ा देखकर बलात्कार किया था, लेकिन आज के विपरीत उस ज़माने की बेटियां मां से इस विषय पर चर्चा भी नहीं कर सकती थीं, यही उसने किया. यदि किसी तरह मां- बाप को पता भी चल जाता था तो वे बदनामी के डर से और बेटी के दाग़हीन भविष्य के लिए, अपनी बेटी को तो अपना मुंह बंद करने के लिए तो कहते ही थे, साथ में स्वयं भी चुप्पी साध लेते थे. कोर्ट, कचहरी तो बहुत दूर की बात थी और और बलात्कारी बिना किसी डर के घूमता रहता था, लेकिन शरीर के अन्य घाव की तरह यह घाव भी भर जाने पर क्या स्त्री मन के घाव को भूल पाती थी?
नहीं... कभी नहीं... इस हादसे से पीड़ित स्त्री के शरीर के घाव से कहीं अधिक गहरे मन के घाव हो जाते हैं, जो किसी भी दवा से नहीं भरते. उसकी आत्मा तार-तार होकर चीखने लगी कि आख़िर स्त्री का कसूर क्या है? जो उसके साथ ऐसा हादसा होता है? उसका अपने शरीर पर भी अपना एकमात्र अधिकार क्यों नहीं होता है? और उसने बुदबुदाते हुए भगवान से पूछा,‘तूने औरत के शरीर की ऐसी संरचना ही क्यों की है कि हर कार्य में पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चल सकने वाली औरत सदियों से इसके कारण पुरुष के सामने कमज़ोर पड़ जाती है, हार जाती है?’ फिर स्वयं ही अपने सवाल का उत्तर देते हुए सोचने लगी कि भगवान की इसमें क्या ग़लती है? उसने तो स्त्री को मातृत्व पद से गौरवान्वित करके पुरुष से भी ऊंचा दर्जा देने के लिए ही उसके शरीर की ऐसी संरचना की है, लेकिन पुरुष उस गरिमा को तार-तार करके, बुद्धि होते हुए भी यदि बुद्धिहीन जानवर की तरह उससे ऐसा व्यवहार करे तो भगवान भी क्या करे?
ख्याति अस्पताल से घर आ गई थी, वह नींद में भी बड़बड़ाती रहती,‘‘मैं उसको छोडूंगी नहीं...’’ ऋचा सुबह शाम उसको देखने उसके घर चली जाती थी और वहां जाकर उसे सांत्वना देकर कि वह पहले ठीक हो जाए फिर ज़रूर उससे बदला लेगी, उसे अजीब-सा सुकून मिलता था, जैसे वह अपने ही घावों को सहला रही हो.
ख्याति देखने में तो ख़ूबसूरत थी ही, पढ़ी-लिखी भी थी और अच्छी कंपनी में नौकरी कर रही थी. उसका स्वभाव भी मिलनसार था, ऋचा को ख्याति बहुत पसंद थी. वह यह भी जानती थी कि उसका बेटा कबीर और ख्याति एक-दूसरे को बहुत पसंद करते हैं और विवाह करना चाहते हैं. वह गहन सोच में पड़ गई कि इस हादसे के बाद कबीर एक बार भी ख्याति को देखने नहीं गया. उससे विवाह को लेकर उसकी प्रतिक्रिया स्वीकारात्मक तो होगी ना? उसके मन में पता नहीं क्या चल रहा है? ऋचा ने मन ही मन निश्चय किया कि वह हर सम्भव ख्याति को ही अपनी बहू बनाएगी.
पूरी रात ऋचा ने आंखों में ही काट दी. सुबह कबीर ऑफ़िस जाने के लिए तैयार हो रहा था. वह अधिक देर तक दुविधा की स्थिति में नहीं रहना चाहती थी. उसने कबीर को अपने कमरे में बुलाया और बिना किसी भूमिका के उससे पूछा,‘‘तुझे पता है ख्याति के साथ क्या हुआ है?’’
‘‘ममा... आप भी कैसी बात करती हो, ऐसी ख़बर कहीं छिपती है भला?’’
‘‘तू उसको देखने एक बार भी नहीं गया. तू उससे शादी तो करेगा... ना... ?’’ ऋचा ने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा तो कबीर मां के इस अप्रत्याशित प्रश्न को सुनकर भौंचक रह गया. अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कबीर बोला,‘‘ऐसी लड़की से कौन शादी करेगा भला...? और आप मेरी मां होकर ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं...? मैं क्यों करूंगा उससे शादी...? और लड़कियां मर गई हैं क्या...? या मेरे में कोई कमी है कि मैं उससे रिश्ता जोडूं. समाज क्या कहेगा...? यही न कि या तो लड़के में कोई कमी होगी या ढेर सारा दहेज मिला होगा इसीलिए ऐसा रिश्ता किया होगा...” ऋचा कबीर के इस तीखे, सपाट उत्तर को सुनकर सकते की हालत में आ गई. उसे ऐसा लगा जैसे उसके पुराने ज़ख़्म पर कबीर ने नमक छिड़क दिया हो.
जल्द ही ख़ुद को संभालते हुए वह बोली,‘‘तेरी बात पूरी हो गई हो तो मैं कुछ बोलूं...? यही हादसा विवाह के बाद ख्याति के साथ होता या तेरी बहन के साथ होता तो तू क्या करता? उसको या अपनी बहन को घर से निकाल देता? या उसका गला घोंट देता? या वह परिवार और समाज से तिरस्कृत होकर आत्महत्या कर लेती? आख़िर ख्याति का कसूर क्या है? यही न कि वह एक लड़की है! ग़लती तो उस पुरुष की है, जो उसे अपने हवस का शिकार बनाकर समाज में बेखौफ़ होकर छुट्टा घूम रहा है. तुझे उस समाज की चिंता है, जिसकी मानसिकता लड़की के प्रति इतनी ओछी और संकीर्ण है. तुझे लोगों की चिंता है और मेरी नहीं, जो तुझे कभी ग़लत निर्णय लेने के लिए नहीं कहेगी और क्या गारंटी है, जिससे तेरा विवाह होगा, उसका पहले किसी ने बलात्कार नहीं किया हो या ऐच्छिक शारीरिक संबंध नहीं हुआ हो. आजकल समाज में क्या चल रहा है, वह तुझसे भी छिपा नहीं है. तू ऐसी संकीर्ण विचारधारा रखता है, मैं सोच भी नहीं सकती.”
इतनी बात कहकर ऋचा कमरे से बाहर निकल गई. वह उसकी मानसिकता से बहुत आहत हुई थी. वह सोचने लगी कि बदले समय के अनुसार स्त्रियां तो जागरूक हो गई हैं, लेकिन पुरुषों की सोच में रत्तीभर भी अंतर दिखाई नहीं पड़ता है. हमारा समाज अभी भी पीड़िता को हेय दृष्टि से ही देखता है, जैसे उसने ही कोई अपराध किया है.
कबीर को ऑफ़िस के लिए देर हो रही थी इसलिए वह ऋचा से बिना कुछ बोले ही घर से निकल गया, लेकिन आज उसका ऑफ़िस के काम में मन ही नहीं लग रहा था. पूरे दिन ऋचा के शब्द,‘‘तेरे विवाह के बाद ऐसा होता या तेरी बहन के साथ ऐसा होता तो तू क्या करता?’’
उसके कानों में गूंजते रहे और वह गहन सोच में डूबा रहा कि वास्तव में ख्याति के साथ ऐसा विवाह के बाद होता तो क्या वह उसे छोड़ देता? नहीं... उसका हृदय चीत्कार कर उठा. उसके साथ जो भी हुआ उसमें आख़िर उसका क्या कसूर है. अचानक उसको एहसास हुआ कि इस समय ख्याति को उसकी भावनात्मक सहयोग की कितनी ज़रूरत महसूस हो रही होगी...! और उसके ना मिलने से वह शारीरिक के साथ मानसिक रूप से और भी अधिक आहत हो रही होगी. उसका मन आत्म-ग्लानि से भर उठा और मन ही मन कुछ निर्णय लेकर वह सीधे ख्याति से मिलने उसके घर पहुंच गया. अप्रत्याशित हादसे के इतने दिनों बाद कबीर को अचानक अपने सामने देखकर ख्याति को सुखद आश्चर्य हुआ. उसने अपना सारा दर्द आंसुओं द्वारा उसके सामने उड़ेल दिया. कबीर भी प्रायश्चित स्वरूप उसको मौन सांत्वना देने के लिए बहुत देर तक उसका हाथ पकड़े रहा. कभी कभी मौन शब्दों से भी अधिक मुखर हो जाता है.
घर आते ही कबीर ऋचा से बोला,‘‘मां... मुझे माफ़ कर दो. मैं इतनी गहराई से नहीं सोच पाया. सच है... ऐसा हादसा तो विवाह के बाद भी हो सकता था. मैं ख्याति से विवाह करने को तैयार हूं. आपने मेरी आंखें खोल दीं.’’ उसका जवाब सुनते ही ऋचा ने उसे गले से लगा लिया. आज ऋचा की परवरिश का सच्चा रंग दिखा था. वह बोलना तो बहुत कुछ चाहती थी, पर अपनी ख़ुशी बेटे की शर्ट को भिगो रहे आंसुओं से जता दिया.
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