कहानी: आइए, सुनीता की कहानी सुनते हैं

लड़की थी 15 साल की और लड़का 17 का. लड़की गोरी और नखरेवाली थी, लड़का सांवला और सीधा-सादा. लड़की का नाम सुनीता था और लड़के का नाम वाहिद. वैसे तो दोनों एक दूसरे को बचपन से जानते थे, लेकिन यह उम्र आते-आते उनके बीच कुछ ऐसा हुआ कि कहानी बन गई.

मुंबई की एक चाल से शुरू होनेवाली यह कहानी नायिका के घर से आकार लेती है. हम जिस इला़के की बात कर रहे हैं, वहां पसरी चालों में से एक में श्रीमान जयंत पोलाडिया का घर है. 350 वर्ग फ़ीट के इस घर में जयंत अपनी पत्नी रंजना, बेटी सुनीता और बेटे पार्थ के साथ रहते हैं. उनके दरवाज़े से तीन-चार दरवाज़े छोड़कर एक घर है. वह घर है कहानी के नायक वाहिद का. उसे मोहल्ले का सबसे अच्छा लड़का माना जाता है. वह लगातार 8 साल से स्कूल में अव्वल आ रहा है. उसके पिता की मौत बहुत पहले हो गई थी. वह अपनी मां और छोटे भाई के साथ रहता है. मां किसी कंपनी में रिसेप्शनिस्ट का काम करके दोनों बच्चों को पाल रही हैं. दोनों ही पढ़ने में होशियार और स्वभाव में इतने सीधे हैं कि उन्हें देखते ही बेचारगी का भाव उभरता है.


ख़ैर, हम सुनीता के घर चलते हैं. इस घर के दरवाज़े के सामने मुंबई की आम चालों के घरों की तरह पर्दा लगा है. अंदर घुसते ही एक छोटा-सा हॉल दिखता है. हॉल की एक दीवार से सटाकर लगे टेबल पर टीवी रखा है. ठीक उसके सामने दीवान है, जिसपर हरे रंग की चादर बिछी है. दीवान से टेका लेकर फ़र्श पर लगभग 17 साल का गोरा-चिट्टा, तंदुरुस्त पार्थ बैठा है और उसकी बगल में नीले रंग का फ्रॉक पहने सुनीता बैठकर दूरदर्शन पर आ रही फ़िल्म मिस्टर इंडिया देख रही है. तभी दरवाज़े पर लगा पर्दा हटता है और वाहिद का चेहरा दिखता है. वह पार्थ को इशारे से बाहर बुलाता है, पर पार्थ उसके बुलावे को अनदेखा कर उसे अंदर आने को कहता है. वाहिद तुरंत अंदर आ जाता है और सुनीता के बगल में बैठ जाता है.

तीनों फ़िल्म देखने में मशगूल हैं. वाहिद का हाथ सुनीता के हाथ से चार इंच की दूरी पर है. रह-रह कर वह सुनीता के हाथ को छू लिया करता है. फिर तुरंत वापस उतनी ही दूरी पर आ जाता है. फिर सुनीता भी इसी तरह उसके हाथ को छूती है. दोनों को अजीब-से रोमांच का अनुभव होता है. पार्थ इससे अनभिज्ञ फ़िल्म देखने में मस्त है. तभी फ़िल्म से प्रभावित सुनीता ने कहा,‘‘मैं भी बड़ी होकर लोगों की सेवा करूंगी और इसी तरह अनाथ बच्चों का पालन-पोषण करूंगी.’’ वाहिद ने कहा ‘‘वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है. मैं भी तुम्हारी मदद करूंगा.’’ वाहिद का समर्थन पाकर सुनीता कुछ बोलने जा रही थी कि फ़िल्म के दौरान बोले जाने से नाराज़ पार्थ ने उसके सर पर हल्की-सी चपत लगाते हुए कहा,‘‘चुपकर. बड़ी आई है सेवा करनेवाली. ख़ुद के काम तो ठीक से करती नहीं. अनाथ बच्चों की देखभाल करेगी!’’


सुनीता वहां से उठकर घर के बाहर आई और रोने लगी. उसे चपत का दर्द नहीं था. उसे तो दर्द था कि उसे वाहिद के सामने झिड़की मिली थी और वह भी अकारण. जब पार्थ ने सुनीता को झिड़का तब वाहिद के चेहरे पर अजीब-सी बेचारगी आ गई थी. जैसे वह चाहता हो कि पार्थ को कुछ कहे, पर कह न सका. तभी जयंत पोलाडिया ने घर के बाहर बैठकर रो रही सुनीता को देखा और कारण जानने के बाद उन्होंने पार्थ को डांटा. सुनीता के सर पर हाथ फेरते हुए वे उसे अंदर ले आए.

एक दवा कंपनी में काम करनेवाले जयंत ने अपनी बेटी को बड़े ही प्यार से पाला है. जयंत ने अपने छोटे से वेतन के बावजूद अपने बच्चों की हर ज़रूरत को पूरा करने का प्रयास किया. कहते हैं कि ग़रीबी समझदार बना देती है, शायद यही कारण था कि बच्चों ने भी कभी कोई ऐसी मांग नहीं की कि उन्हें शर्मिंदा होना पड़ता.


उसी शाम अपने इलाक़े से काफ़ी दूर के एक गार्डन में पास-पास बैठे सुनीता और वाहिद अपनी अलग दुनिया में खोए थे. जाने कब का स्नेह था दोनों के मन में. वे अद्भुत दुनिया में खोए, आसमान में चल रहे बादलों को देख रहे थे. जाने कितने सवाल और उनके जवाब उन्होंने एक दूसरे को दिए. हर सवाल और जवाब का एक ही अर्थ था, यह पक्का कर लेना कि जिएंगे साथ और मरेंगे साथ.

पता नहीं किसने और क्यों यह गीत लिखा है, ‘निकम्मा किया इस दिल ने...पर मैंने तो जितने प्रेमी देखे हैं, वे प्रेम होते ही बहुत ज़िम्मेदार और समझदार हो जाते हैं. ऐसा ही हुआ इस जोड़े के साथ भी. स्वभाव से चुलबुली सुनीता में धीरे-धीरे परिवर्तन आया और वह घर के कामों में और ज़्यादा हाथ बंटाने लगी. पढ़ाई में मन लगाने लगी. पापा और भइया का पहले से अधिक ख़्याल रखने लगी. उनकी हर ज़रूरत की चीज़ सुनीता के पास होती. उसे पता होता कि किसे, कब और किस चीज़ की ज़रूरत होगी. शुरुआत में घर के सदस्यों को कुछ अजीब-सा लगा, पर यह तो अच्छी बात है, ये समझकर सभी ने धीरे-धीरे इसे स्वीकार कर लिया. और सुनीता समझदार बन गई. समय भी चलता रहा अपनी रफ़्तार से...

वाहिद ने ग्रैजुएशन के बाद एक कंपनी में नौकरी कर ली. सुनीता को एक बीपीओ में काम मिल गया. इधर पार्थ भी पूना की एक अच्छी कंपनी में नौकरी करने लगा. सुनीता और वाहिद अब अपनी गृहस्थी बसाना चाहते थे. वाहिद ने अपने सबसे अच्छे दोस्त पार्थ कहा कि वह उसकी बहन से विवाह करना चाहता है. हुआ वही, जो सैकड़ों सालों से चलता आ रहा है. हिंदू-मुस्लिम नामक एक दीवार न जाने कब दोनों परिवारों के बीच उग आई, पर वाहिद और सुनीता थे तो अपनी धुन के पक्के. दोनों ने कोर्ट मैरिज करने का निश्चय किया.


बेटी से बेपनाह प्यार करने वाले जयंत पोलाडिया का परिवार और वाहिद का परिवार इस विवाह में शामिल नहीं हुआ. कोर्ट में विवाह के समय दोनों के बचपन के दोस्त अजय, गुलज़ार, सोनू और सुनीता की सबसे अच्छी सहेली गीता मौजूद थे. जयंत विवाह में शामिल तो नहीं हुए, पर अजय के हाथों एक चॉकलेट का डिब्बा देकर यह संदेशा दिया कि ‘मुझे विश्वास है कि मेरी बेटी ग़लत नहीं करेगी.’ पापा का संदेश और चॉकलेट का डिब्बा अजय के हाथों से लेते हुए सुनीता की आंखों में आंसू आ गए. उसे रोता देख अजय ने कहा,‘‘रो क्यों रही है? मैं हूं ना, तुम दोनों के साथ. वैसे भी तेरे लिए गए हर फ़ैसले पर मुझे पूरा विश्वास है.’’

विवाह के बाद वाहिद और सुनीता किराए के एक कमरे में पहुंचे. शादी के बाद दुल्हन जब ससुराल पहुंचती है तो उसका प्रवेश एक सजे-सजाए कमरे में होता है, पर यहां तो मामला एकदम अलग था. दुल्हन ने साड़ी उतार, सलवार कमीज़ पहन ली. हाथ में झाड़ू थाम साफ़-सफ़ाई में जुट गई. दोस्तों ने मिलकर गैस सिलेंडर और राशन की व्यवस्था कर दी. पति-पत्नी ने मिलकर खाना बनाया. किचन समेटने के बाद ज़मीन पर बिस्तर लगा लिया.

दिन बीतने लगे. सुनीता बीपीओ में मैनेजर के पद पर पहुंच गई थी और वाहिद भी अपने क्षेत्र में अच्छा कर रहा था. दोनों ने अपनी मिली-जुली आमदनी से एक अच्छा फ़्लैट ले लिया. परिवारवालों से भी उनके संबंध अच्छे हो गए. वाहिद की मां अब वाहिद के साथ रहने लगीं. कभी-कभी वे अपने छोटे बेटे मुख़्तार के घर भी रहती थीं. मुख़्तार का निकाह हो चुका है, उसके दो बच्चे हैं. सुनीता का परिवार भी उसके घर आने जाने लगा है. पार्थ का एक बेटा है. जिससे सुनीता को बहुत लगाव है. वाहिद और सुनीता की ज़िंदगी बेहतरीन ढंग से आगे बढ़ रही थी, पर एक वजह जो उनके जीवन की सारी ख़ुशियों को नज़र लगा रहा थी, वो थी विवाह के नौ साल बीतने के बाद भी सुनीता का मां न बन पाना.


आज जब सुनीता ऑफ़िस से लौटी तो नौकरानी हेमा ने बताया कि आज मांजी साहब से लड़कर गई हैं. कारण, वही बच्चा! वाहिद की मां तो वर्षों से बच्चे के लिए रट लगाए हुए हैं. सुनीता और वाहिद भी तो चाहते हैं. पर...! सुनीता एक बार डॉक्टर से मिल भी आई, पर उसने दोनों को साथ में आने की सलाह दी. सुनीता के बार-बार कहने के बावजूद वाहिद तैयार नहीं हो रहा था. जब भी कोई बच्चे के लिए कहता तो सुनीता डॉक्टर से मिलने की ज़िद करती, पर वह टाल देता. फिर दोनों अपनी-अपनी व्यस्तता में लीन हो जाते. पर आज मां ने वाहिद से कहा कि वह दूसरा विवाह कर ले तो वाहिद से रहा नहीं गया और उसने अपनी मां को डांट दिया. डांट से दुखी मां ने अपना सामान समेटा और छोटे के घर चली गईं. इधर परेशान वाहिद डॉक्टर के पास जाने के लिए तैयार हो गया.
टेस्ट की रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने कहा,‘‘दोनों में ही थोड़ी-थोड़ी कमियां हैं. आप दोनों की उम्र 30 के ऊपर हो गई है इसलिए कंसीव कर पाना थोड़ा मुश्क़िल है. ख़ैर, जो दवाइयां लिखकर दे रहा हूं, फ़ायदा तो होना चाहिए.’’ दोनों ही परेशान घर लौटे.

घर पहुंचकर सुनीता ने कहा,‘‘मैं तो पहले ही कह रही थी, बच्चा हो जाने दो. पर तुम हो कि...’’


पहले से परेशान वाहिद सुनीता के आरोप से तिलमिला गया,‘‘हां, सारी ग़लती मेरी ही है. पिछले तीन साल से तो हम कोशिश कर रहे हैं न बच्चे के लिए?’’  

‘‘वाहिद हम नहीं, सिर्फ़ मैं. तीन साल से मैं कह रही हूं कि डॉक्टर के पास चलते हैं. पर तुम्हें तो जैसे कोई फ़िक्र ही नहीं. अगर तब गए होते तो आज...’’  


‘‘तो मैं सारा काम-धाम छोड़कर तुम्हारे साथ चलूं. तुम्हारा भाई और मां मुझे हमेशा डॉक्टर के पास जाने को कहते हैं. क्या तुम लोगों को लगता है कि मैं नपुंसक हूं? तुमने सुना नहीं डॉक्टर ने कहा कि कमी हम दोनों में है. बता देना अपने भाई और मां को.’’ वाहिद के आरोप से सुनीता आवाक्! वह देखती रह गई उस वाहिद को, जिसे वह बेइंतहां प्रेम करती है. इससे पहले वाहिद की मां ने कई बार लोगों से सुनीता के बांझ होने की बात कही, पर सुनीता ने वाहिद से भी कुछ नहीं कहा. लेकिन आज वाहिद की इस एक बात ने उसे तोड़कर रख दिया. उसने कुछ नहीं कहा, बस उसके आंसू आ गए. वह सिसकती हुई बिस्तर के एक किनारे लेटी रही. वाहिद भी नहीं समझ पा रहा था कि उसने यह बात कैसे कह दी. दोनों में कुछ दिन अबोला रहा.

कहते हैं कि जिससे बहुत ज़्यादा प्रेम होता है, उससे बहुत ज़्यादा उम्मीदें भी होती हैं. और यदि वो उम्मीदें टूट जाएं तो आदमी बिखर जाता है. ऐसा ही कुछ हुआ. सुनीता दुखी रहने लगी. वाहिद उससे बात करना चाहता पर... उन दोनों के बीच एक अनकही, अनजानी दूरी बन गई. सुनीता का दुख दिन-ब-दिन बढ़ रहा था.

गीता, जो दोनों की दोस्त थी एक दिन वाहिद से मिली. उसने कहा,‘‘वाहिद तुम्हें सुनीता से ऐसा नहीं कहना चाहिए था. वो तुमसे बहुत प्यार करती है.’’


वाहिद का दो टूक जवाब आया,‘‘क्या मैं उससे प्रेम नहीं करता? उसके भाई और मां ने तो मुझे कई बार यह फ़ील कराया कि मेरे पुरुषत्व में कमी है. तो मुझे दुख नहीं हुआ? मेरी मां ने कई बार कहा कि मैं दूसरा विवाह कर लूं पर मैंने मां को डांट दिया. क्या मैं बच्चा नहीं चाहता? पर यहां तो सारा दोष मेरा है. मेरी जगह कोई दूसरा होता तो कब की दूसरी शादी कर लेता.’’

गीता हतप्रभ, वाहिद का मुंह देखती रही. ‘‘वाहिद मैं यहां झगड़ा ख़त्म करवाने आई हूं और तुम ऐसी बातें कर रहे हो!’’

‘‘जानती हो गीता उसने बिना मुझे बताए अपने भाई के बच्चे का इंश्योरेंस कराया. जब-तब उसे महंगे-महंगे खिलौने देती रहती है.’’


‘‘ओह तो यह समस्या है! तुम्हें इस बात का दुख है कि वह अपनी कमाई को अपने माता-पिता के लिए ख़र्च कर रही है. पर तुम भी तो अपनी मां को अपने साथ रखते हो भाई की मदद करते हो. उसके बच्चों को महंगे स्कूल में दाख़िला भी तुमने ही दिलवाया है,’’ गीता बोलती चली गई,‘‘तुम्हारी मां ने सैकड़ों लोगों से कहा कि सुनीता बांझ है. तुम्हारा भाई कहता फिरता है कि हम फंस गए यह विवाह कर के. सुनीता ने तो कभी नहीं कहा कि तुम नपुंसक हो! जबकि यह सच है कि तुममें ही कमी है. मैं और सुनीता तीन साल पहले ही यह जान गए थे कि तुममें कमी है. उसके चेकअप के बाद डॉक्टर ने साफ़ कहा कि उसमें कोई कमी नहीं है. यह जानने के बावजूद कि तुममें कमी है, उसने कभी तुम पर ज़ाहिर नहीं होने दिया. ना ही दबाव डाला चेकअप के लिए. और इस बार जब तुम डॉक्टर के पास गए तो उसने पहले से ही डॉक्टर को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि वह दोनों में कमी बताए.’’ वाहिद नज़रें नीची किए गीता की बातें सुनता रहा और बिना कुछ कहे वहां से चला गया.

गीता ने सोचा था कि वाहिद यह जानकर सुनीता से माफ़ी मांग लेगा. और दोनों का प्रेम फिर लहलहाने लगेगा. वाहिद ने माफ़ी तो मांग ली, पर उसके मन में शक़ का बीज भी उपज गया. वह सुनीता के साथ ज़्यादा समय बिताने लगा. जब सुनीता किसी से बातचीत करती तो उसे लगता कुछ गड़बड़ है. सुनीता के दफ़्तर से आने में थोड़ी भी देर हो जाने पर परेशान हो जाता. उसके ईमेल चेक करता. उसके मोबाइल के मैसेज चेक करता. यह सिलसिला चलता रहा.  


एक दिन सुनीता को दफ़्तर में रात के दो बज गए. वाहिद ने ग़ुस्से में पूछा,‘‘इतनी देर क्यों कर दी?’’
उसके पूछने का अंदाज़ इतना ख़राब था कि थकी हुई सुनीता भी भड़क गई. ‘‘काम कर रही थी. कहीं घूमने नहीं गई थी,’’ यह कहते हुए उसने अपना बैग सोफ़े पर फेंक दिया.

‘‘ओह काम कर रही थीं! ऐसा भी क्या काम था?’’

वाहिद की यह बात सुनकर सुनीता को लगा कि वह उसपर संदेह कर रहा है. सोफ़े पर पसरते हुए उसने पूछा,‘‘वाहिद तुम कहना क्या चाहते हो? साफ़-साफ़ कहो. तुम्हें शर्म नहीं आती मुझपर संदेह करते हुए.’’


वाहिद सकपका गया और बोला,‘‘मैंने ऐसा क्या कहा? मैंने तो बस देर से आने का कारण पूछा है. तुम ही बात का बतंगड़ बना रही हो.’’

‘‘अच्छा तुम भी तो देर से आते हो. मैंने कभी नहीं पूछा. पूछा भी तो ऐसे, जिससे तुम ख़ुश ही हुए हो. पर तुम, तुम्हें हुआ क्या है वाहिद? तुम  पिछले छह महीने से मेरे ईमेल चेक करते हो, मेरे मैसेज देखते हो, मेरे ऑफ़िस के कागज़ात भी देखते हो...आज तक तुम्हारे हाथ कुछ नहीं लगा. इसके बावजूद तुम संदेह करते हो? कहां गया तुम्हारा विश्वास वाहिद? आज मैं अगर अपने पिता को थोड़ी-सी ख़ुशियां देना चाहती हूं, जिन्होंने बहुत तकलीफ़ सहकर मुझे आरामदायक ज़िंदगी दी तो तुम्हें लगता है कि मैं मायके का ख़र्च चला रही हूं. वाहिद तुम भी तो अपनी मां की सेवा करते हो, भाई की मदद करते हो मैंने कभी सवाल किया? तो तुम क्यों नहीं समझते मेरी भावनाओं को? संदेह और प्रेम एक स्थान पर एक साथ नहीं रह सकते वाहिद...या तो संदेह दूर कर दो या मुझे. मैं ऐसे घुट-घुट कर नहीं जीना चाहती.’’

‘‘हां सारी घुटन तो तुम्हें ही है. तुम्हारे परिवार वाले मुझपर आरोप पर आरोप लगाते हैं. तुम्हारे देर से आने पर लोग तरह-तरह की बातें करते हैं,’’ वाहिद ने क्रोध के आवेग में कहा.


सुनीता ने शांत होते हुए कहा,‘‘यदि मेरे परिवारवाले और लोग कुछ कहते भी हैं तो इससे हमारे विश्वास पर असर क्यों पड़े? तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हारे परिवारवाले कुछ नहीं कहते. तुम्हारी मां तो मुझसे ऐसी बातें कह चुकी हैं कि सुननेवाला शर्मसार हो जाए. मैंने न तुम्हें बताया और न कभी तुमपर संदेह किया.’’

सुनीता की सफ़ाई सुनने के बावजूद वाहिद ने चिल्लाते हुए कहा,‘‘साफ़-साफ़ कह दो कि मैं तुम्हें संतुष्ट नहीं कर पाता इसलिए तुम...’’ सुनीता को अपने कानों पर विश्वास न हुआ. वाहिद चीखता रहा, पर सुनीता को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. वाहिद के दिल में पैठ बना चुकी बातों को जानकर वह स्तब्ध थी. सुनीता रातभर करवटें बदलती रही. सुबह अपने कुछ कपड़े बैग में भरे और सीधे गीता के घर गई, क्योंकि मायके वह जाना नहीं चाहती थी.


उस घटना को लगभग चार साल बीत चुके हैं. आज सुनीता एक साढ़े तीन साल के बच्चे की मां है. हां, वाहिद के बच्चे की ही. दरअसल डॉक्टर की दवा काम कर गई थी, पर वाहिद का संदेह अभी तक नहीं गया. सुनीता का जीवन आनंद से कट रहा है. दो साल पहले वाहिद की मां ने उसका दोबारा विवाह करा दिया. आजकल वह अपनी दूसरी पत्नी पर शक़ करता है. आपको बता दूं कि जल्द ही सुनीता भी विवाह करने जा रही है. किससे? उसी लड़के से, जिसे सुनीता और उसके लिए गए सभी फ़ैसलों पर ऐतबार था. अभी तक नहीं समझे, वह अपने बचपन के दोस्त अजय से शादी करने जा रही है. अब आप कहेंगे कि मुझे ये सारी बातें कैसे पता? तो मेरे पास इसका जवाब भी है. राज़ की बात ये है कि आपको सुनीता की कहानी सुनानेवाला मैं...अजय ही तो हूं.

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