कहानी: मक्खी

शाम का धुंधलका घिर आया था. पार्क में अच्छी ख़ासी भीड़ थी. हेमन्त और रजनी बहुत मुश्क़िल से एकांत तलाश पाए थे. गुलमोहर के एक पेड़ के नीचे हेमन्त, रजनी की गोद में सिर रखकर लेटा हुआ था. दोनों की ही आंखों में भविष्य के सपने जगमगा रहे थे.

अचानक हेमन्त उठ बैठा. चंद पलों तक रजनी की आंखों में झांकने के बाद उसने उसे अपनी बांहों में भर लिया. रजनी के पूरे शरीर में सिरहन-सी दौड़ गयी. उसने अपना सिर हेमन्त के कंधों पर टिका दिया. हेमन्त ने अपने दाहिने हाथ से रजनी के सिर को सहलाया फिर उसके चेहरे को दोनों हाथों से भरकर उसके गालों पर चुंबन अंकित कर दिया.

रजनी की पलकें लाज से बोझिल हो उठीं और होंठ कंपकपाने लगे. हेमन्त ने उसके चेहरे पर छायी रक्तिम आभा को निहारा फिर अपने होंठ उसके अधरों की ओर बढ़ाए.

‘‘अभी नहीं,’’ रजनी ने अचानक अपनी हथेली को होंठों पर रख लिया और छिटककर दूर हो गयी.

‘‘क्या हुआ,’’ हेमन्त ने पूछा.

‘‘यह ठीक नहीं है,’’ रजनी ने कहा.

‘‘क्या ठीक नहीं है?’’ हेमन्त ने रजनी को अपने क़रीब खींचते हुए कहा,‘‘सब कुछ तो ठीक चल रहा है. कल तुम्हारे मम्मी-डैडी आ रहे हैं. परसों हमारी मंगनी है. अब मैं कोई पराया नहीं रहा.’’

‘‘मैंने तुम्हें कभी पराया नहीं माना, लेकिन शादी से पहले यह सब ठीक नहीं है.’’ रजनी खड़ी हो गयी और कपड़े झाड़ते हुए बोली,‘‘अब हमें चलना चाहिए वरना देर होने पर वार्डन नाराज़ होंगी.’’

हेमन्त भी खड़ा हो गया, लेकिन उसके चेहरे पर अप्रसन्नता के चिन्ह छाए हुए थे. बिना कुछ कहे वह पार्क के गेट की ओर चल दिया. रजनी ने उससे बात करने की कोशिश की, लेकिन हेमन्त ने कोई उत्तर नहीं दिया. चुपचाप चलता रहा.

पार्क के बाहर हेमन्त की कार खड़ी थी. रजनी के बैठते ही उसने कार आगे बढ़ा दी. उसके चेहरे पर तनाव छाया हुआ था. बिना कुछ कहे वह कार ड्राईव कर रहा था. रजनी से हेमन्त की नाराज़गी बर्दाश्त नहीं हो रही थी.

एक मोड़ पर मुड़ते ही उसने तेज़ स्वर में कहा,‘‘हेमन्त, कार रोको.’’

‘‘अब क्या हुआ?’’ हेमन्त ने झल्लाते हुए ब्रेक लगा दिए.

‘‘मेरा सबकुछ तुम्हारी ही अमानत है, लेकिन अगर तुम्हें लगता है कि शादी से पहले वर्जनाओं को तोड़ना उचित है तो तुम्हारी जो मर्ज़ी हो, वो कर लो. मैं ना नहीं करूंगी. तुम्हारी ख़ुशी के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं,’’ रजनी ने अपने सिर को सीट से टिकाते हुए आंखें बंद कर लीं.

हेमन्त ने रजनी के चेहरे की ओर देखा. उसके होंठ थरथरा रहे थे और पलकों की कोर से आंसुओं की धार बह निकली थी. हेमन्त ने उसके हाथों को अपने हाथों में थाम लिया और कांपते स्वर में बोला, ‘‘रजनी, मुझे और नीचे मत गिराओ. मैं अपनी करनी पर वैसे ही शर्मिन्दा हूं.’’

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’ रजनी का स्वर भी कांप उठा.

‘‘वही जो सच है,’’ हेमन्त ने रजनी के हाथों को चूमा फिर उसे मज़बूती से थपथपाते हुए बोला,’’ अब तक मैं तुमसे केवल प्यार करता था, लेकिन अब उस प्यार में श्रद्धा भी शामिल हो गई है.’’

‘‘हेमन्त!’’ रजनी ने अपनी बड़ी-बड़ी पलकों को उठाते हुए हेमन्त की ओर देखा.

‘‘हां रजनी,’’ हेमन्त ने उसे आश्वस्त किया. उसकी आंखों में प्यार का सागर लहरा रहा था.

‘‘आई लव यू हेमन्त, आई लव यू,’’ रजनी, हेमन्त के हाथों को चूमने लगी.

‘‘मेमसाब, यह सड़क है. लोग हमारी लव-स्टोरी को देख रहे हैं,’’ हेमन्त ने टोका तो रजनी ने हड़बड़ाते हुए उसका हाथ छोड़ दिया.

हेमन्त ने एक बार फिर कार आगे बढ़ा दी. उसके चेहरे पर छाया तनाव समाप्त हो चुका था और उसके स्थान पर एक अजीब-सी तृप्ति के भाव छाए हुए थे. रजनी को उसके हॉस्टल छोड़ने के बाद वह अपनी कोठी में आ गया.

हेमन्त के पिता दिलीप राय की गिनती शहर के प्रमुख कारोबारियों में होती थी. सिविल लाईन्स में दस हज़ार स्क्वैयर फ़ीट मं  उनकी शानदार कोठी बनी हुई थी. हेमन्त एमबीए फ़ाइनल ईयर का छात्र था. रजनी उसकी सहपाठनी थी. कॉलेज में हुई पहली मुलाक़ात से ही दोनों एक-दूसर को पसंद करने लगे थे. साल बीतते-बीतते दोनों में कब प्यार हो गया पता ही नहीं चला.

कुछ दिनों पहले हेमन्त ने रजनी की मुलाक़ात अपने मम्मी-डैडी से करवाई थी. उन्होंने पहली नज़र में ही बेटे की पसंद को पसंद कर लिया. रजनी के पापा विमल कुमार और मम्मी सुनयना बैंगलोर की एक आईटी कंपनी में सीनियर एग्ज़ेक्यूटिव थे. दिलीप राय ने उसी दिन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उन दोनों से बात की तो वे भी इस रिश्ते के लिए राज़ी हो गए. रजनी ने उन्हें हेमन्त और उसके परिवार के बारे में काफ़ी कुछ बता रखा था. दोनों परिवार की रज़ामंदी से सगाई की तारीख़ निर्धारित हो गयी. कल सुबह की फ़्लाइट से विमल कुमार और सुनयना यहां आ रहे थे.

विमल कुमार और सुनयना की फ़्लाइट सही समय से आ गयी थी. वे लोग किसी अच्छे होटल में रुकना चाहते थे, लेकिन हेमन्त की मम्मी राधिका उन्हें ज़बरदस्ती अपनी कोठी में बने गेस्ट-हाउस में लिवा लाईं. उन्होंने रजनी को भी वहीं बुलवा लिया था. थोड़ी ही देर में दोनों परिवार ऐसा घुल-मिल गए जैसे बरसों से एक-दूसरे को जानते हों.

राधिका ने बाज़ार जाकर रजनी को अपनी पसंद की साड़ी और ज़ेवर दिलवाए. वे अपनी चांद-जैसी बहू को चांद से भी ज़्यादा ख़ूबसूरत देखना चाहती थीं. हेमन्त के मम्मी-डैडी का प्यार देखकर रजनी निहाल हुई जा रही थी.

दिलीप राय ने मंगनी की पार्टी शहर से 20 किलोमीटर दूर अपने फ़ार्म हाउस पर रखी थी. अगले दिन शाम पांच बजे एक बड़ी गाड़ी से सभी लोग फ़ार्म-हाउस की ओर चल दिए. सभी बहुत ख़ुश थे. शहर ख़त्म होते ही गन्ने के खेत शुरू हो गए थे. अचानक एक मोड़ पर ड्राईवर ने तेज़ी से ब्रेक मारे.

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘साहब, वह सड़क पर कोई आदमी पड़ा है,’’ ड्राइवर ने बताया.

इससे पहले कोई कुछ समझ पाता गन्ने के खेत से चार आदमियों ने निकल कर गाड़ी को घेर लिया. सभी के हाथों में रिवाल्वर चमक रहे थे. इस बीच सड़क पर पड़ा आदमी भी उठ कर खड़ा हो गया था.

‘‘कौन हो तुम लोग और क्या चाहते हो?’’ दिलीप राय ने कांपते स्वर में पूछा.

‘‘हम कौन हैं ये जानकर क्या करोगे,’’ एक लुटेरा हल्का-सा हंसा फिर सख़्त स्वर में बोला,‘‘तुम लोगों के पास जो कुछ भी है, चुपचाप हमारे हवाले कर दो.’’

वह लुटेरा सबका सरदार मालूम पड़ रहा था. दिलीप राय, विमल कुमार और हेमन्त ने अपने-अपने पर्स निकाल कर उसे सौंप दिए. उसने पर्स अपने साथियों की ओर उछाल दिए फिर सुनयना और राधिका की ओर रिवाल्वर लहराते हुए गुर्राया,‘‘चलो तुम लोग भी अपने ज़ेवर उतारो.’’

दोनों ने हाथों में सोने के कंगन और गले में हीरे का सेट पहन रखा था. उन्हें उतारकर लुटेरे को पकड़ा दिया. रजनी के गले में हल्की-सी चेन और कानों में टाप्स थे. उसने भी बिना कुछ कहे उन्हें उतार दिया.

उस लुटेरे के इशारे पर उसके साथियों ने सबकी तलाशी ली तो क़रीब 45 हज़ार रुपए और मिल गए. उन्हें आंखों से तौलते हुए
एक लुटेरे ने कहा,‘‘उस्ताद, मज़ा नहीं आया. इतनी मेहनत की और कोई ख़ास माल हाथ नहीं लगा.’’
‘‘कोई बात नहीं. इस ख़ास माल को लिए चलते हैं. पूरा मज़ा आ जाएगा,’’ उस लुटेरे ने कहकहा लगाते हुए रजनी की कलाई थाम ली.

‘‘ऐ मेरी बेटी को हाथ मत लगाना,’’ विमल कुमार चिल्ला पड़े.

‘‘चोप्प,’’ उस लुटेरे ने रिवाल्वर विमल कुमार के मुंह में घुसा दिया और दांत भींचते हुए बोला, ‘‘अगर किसी ने कुछ भी बोलने की कोशिश की तो अपनी मौत का ज़िम्मेदार ख़ुद होगा.’’

रजनी रोती-चिल्लाती रही, लेकिन लुटेरों ने उसे ज़बरदस्ती नीचे उतार लिया. जब वे उसे गन्ने के खेत की ओर घसीटने लगे तो वह सिसकते हुए बोली,‘‘तुम सारे पुरुष ज़ालिम होते हो. मुझ जैसी एड्स की मरीज़ पर भी ज़ुल्म ढाने से बाज़ नहीं आ रहे हो. ईश्वर तुम्हें कभी माफ़ नहीं करेगा.’’

‘‘एड्स!’’ उस लुटेरे की आंखें ऐसे फैल गईं जैसे किसी भूत को देख लिया हो. उसने घबरा कर रजनी की कलाई छोड़ दी.

‘‘तुम्हें एड्स है?’’ दूसरे लुटेरे ने आश्चर्यभरे स्वर में पूछा.

‘‘हां, साल भर पहले तुम जैसी ही किसी मेहरबान ने यह तोहफ़ा दिया था, जिसे मैं ढो रही हूं. चाहो तो तुम मेरा दुख बांट सकते हो,’’ रजनी ने सिसकियां भरते हुए कहा.

‘‘नहीं...’’ वह लुटेरा घबराकर पीछे हट गया.

चारों ने आंखों ही आंखों में एक-दूसरे की ओर देखा और फिर रजनी को वहीं छोड़कर गन्ने के खेत में घुस गए. रजनी तीर की तरह विमल कुमार की ओर लपकी. उन्होंने उसे गले से लिपटा लिया फिर उसका माथा चूमते हुए बोले,‘‘वेरी इंटेलिजेन्ट गर्ल. आई एम प्राउड ऑफ़ यू माई सन.’’

‘‘पापा, ख़ुद को बचाने के लिए झूठ बोलने के अलावा मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था,’’ रजनी फफक पड़ी.
‘‘ऊपरवाले का लाख-लाख शुक्र है, जो तुम बच गईं,’’ सुनयना ने भी रजनी के ऊपर आशीर्वादों की बौछार कर दी.

हेमन्त सामने आया मम्मी का हाथ छोड़ रजनी हेमन्त के सीने से लिपटकर रो पड़ी. उसके आंसू हेमन्त की कमीज़ भिगोने लगे. बिना कुछ कहेवह रजनी की पीठ सहलाने लगा.

‘‘यहां ज़्यादा देर रुकना ख़तरे से ख़ाली नहीं होगा. हमें जल्द से जल्द यहां से निकल जाना चाहिए,’’ तभी दिलीप राय का गंभीर स्वर गूंजा.

सभी लोग गाड़ी में बैठ गए तो ड्राइवर ने कार आगे बढ़ा दी. रंग में भंग होने से वातावरण काफ़ी गंभीर हो गया था. सभी ख़ामोश बैठे थे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू की जाए. दस किलोमीटर का बचा हुआ सफ़र काफ़ी लंबा हो गया था.

सबका सामान दूसरी गाड़ी से पहले ही फ़ार्म हाउस पहुंच चुका था. रजनी और उसके मम्मी-पापा का सामान एक कमरे में रखवा दिया गया था. वे लोग तैयार होने  के लिए उसमें चले गए.
दिलीप राय ने पार्टी के लिए ज़बरदस्त तैयारी की थी. पूरा फ़ार्म हाउस रंगीन रौशनी से नहा रहा था. लॉन में लगाए गए ख़ूबसूरत फौव्वारों से रूमानियत कुछ और बढ़ गई थी. थोड़ी ही देर में मेहमान पहुंचने लगे, जिससे गहमा-गहमी शुरू हो गई. फ़ार्म हाउस लोगों के कहकहों से गूंजने लगा.

रजनी को जैसे नई ज़िंदगी मिली थी इसलिए सुनयना उसे अपने हाथों से तैयार कर रही थीं. उनकी आंखों में बेटी के लिए स्नेह उमड़ पड़ रहा था. तैयार करने के बाद उन्होंने रजनी की ओर देखा. वह किसी अप्सरा-सी ख़ूबसूरत दिखाई पड़ रही थी.

‘‘मेरी बेटी को किसी की नज़र न लग जाए,’’ सुनयना ने मुस्कुरातेहुए हेयर-क्लिप से छुआकर रजनी के माथे पर काजल का हल्का-सा टीका लगा दिया.

‘‘सुनयना, बाहर ख़ामोशी-सी क्यूंछा गयी है?’’ तभी विमल कुमार ने आशंकित स्वर में कहा.

‘‘हां, अभी तक तो काफ़ी शोर-गुल था, लेकिन अचानक सभी चुप हो गए हैं. देखिए ना, क्या बात है.’’ सुनयना का मन किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठा.

विमल कुमार कमरे से बाहर निकले. हेमन्त के परिवार और दो-चार नौकरों के अलावा उन्हें और कोई नहीं पहचानता था. उन्होंने इधर-उधर देखा. हाल में मेहमानों की भीड़ जमा थी, पर सभी धीमे स्वर में बातें कर रहे थे.

‘‘भाई साहब, क्या बात हो गई है?’’ विमल कुमार ने आगे बढ़कर एक आदमी से पूछा.

‘‘पार्टी कैंसिल हो गई है,’’ उस आदमी ने जवाब दिया.

‘‘लेकिन क्यों?’’ विमल कुमार का कलेजा मुंह को आ गया.

‘‘कुछ पता नहीं चल पा रहा है,’’ उस आदमी के चेहरे पर भी खिन्नता के चिन्ह उभर आए.

विमल कुमार का दिमाग़ चकराने लगा. उन्होंने दीवार का सहारा न लिया होता तो शायद गिर ही पड़ते. चंद पलों बाद उन्होंने अपनी उखड़ी सांसों को नियंत्रित किया और पास गु़जर रहे एक नौकर से पूछा,‘‘दिलीप साहब कहां हैं?’’

‘‘उस कमरे में,’’ नौकर ने एक कमरे की ओर इशारा किया और तेज़ी से आगे बढ़ गया.

विमल कुमार लड़खड़ाते क़दमों से उस कमरे की ओर बढ़े. आधा रास्ता तय करने के बाद कुछ सोचकर वे रुक गए और अपने कमरे की ओर लौट पड़े.

‘‘क्या हुआ?’’ सुनयना ने पति के उतरे हुए चेहरे को देखते ही पूछा.

‘‘तुम एक मिनट के लिए बाहर आओ,’’ विमल कुमार ने दरवाज़े पर खड़े-खड़े इशारा किया. सुनयना के बाहर आते ही वो कांपते स्वर में बोले,‘‘सगाई की पार्टी कैंसिल हो गई है.’’

‘‘किसलिए?’’ सुनयना का सर्वांग कांप उठा. शायद आनेवाले ख़तरे का उसे आभास हो गया था.

‘‘पता नहीं. चलो समधी साहब से पूछते हैं,’’ विमल कुमार हताशा से भर उठे.

मन में आशंकाओं का तूफ़ान लिए दोनों दिलीप राय के कमरे की ओर बढ़े. वहां दिलीप राय, राधिका और हेमंत सोफ़े पर बैठे हुए थे. सबके चेहरे पर तनाव छाया हुआ था. विमल कुमार और सुनयना को देखकर किसी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.

‘‘भाई साहब, हमसे कोई ग़लती हो गई है क्या?’’ विमल कुमार ने हाथ जोड़ते हुए पूछा.

‘‘ग़लती आपसे नहीं, बल्कि आपकी बेटी से हुई है,’’ दिलीप राय ने धीमे स्वर में कहा.

‘‘कैसी ग़लती?’’ विमल कुमार का स्वर बुझे दिये-सा कांप उठा.

‘‘उसने सबके सामने क़बूला था कि उसे एड्स है. फिर भी आप पूछ रहे हैं कैसी ग़लती?’’ राधिका का चेहरा तमतमा उठा.

‘‘लेकिन बहनजी उस बेचारी ने तो ख़ुद को बचाने के लिए झूठ बोला था,’’ सुनयना ने बात संभालने की कोशिश की.

‘‘कौन जाने सच क्या है?’’ दिलीप राय ने गहरी सांस भरी फिर सख़्त स्वर में बोले,‘‘ड्राइवर ने अब तक दूसरे नौकरों को पूरा क़िस्सा बता दिया होगा. थोड़ी ही देर में पूरे शहर में ख़बर फैल जाएगी. इस बदनामी के बोझ को लादकर तो हम यह रिश्ता नहीं कर सकते.’’

‘‘लेकिन इस बदनामी से तो मेरी बेटी की ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी. हम अपने रिश्तेदारों को क्या जवाब देंगे. वहां पर जो परिस्थितियां थीं, उसके आप स्वयं साक्षी रहे हैं. उसने तो अपनी अक्लमंदी से अपनी ज़िंदगी और हम सबकी भी इज़्ज़त बचाई है. उसे इस तरह मत ठुकराइए.’’ विमल कुमार का स्वर भर्रा उठा और उन्होंने दिलीप राय के आगे अनुनय करते हुए अपने दोनों हाथ जोड़ दिए.

‘‘रुक जाइए डैडी, मेरी ख़ातिर ख़ुद को इतना छोटा मत बनाइए,’’ तभी रजनी ने पीछे से आकर उन्हें थाम लिया. कमरे के बाहर से ही उसने सारी बातें सुन ली थीं.

मदद की आस से उसने हेमन्त की ओर नज़र दौड़ाई, लेकिन वो तो प्रतिक्रियाहीन-सा ही बैठा रहा. रजनी ने एक गहरी सांस भरी फिर दिलीप राय की ओर मुड़ते हुए बोली,

‘‘अंकल, मैं आप की दुविधा समझ सकती हूं. इसलिए अगर आप चाहे तो मैं अपना एचआईवी टेस्ट करवाने के लिए तैयार हूं.’’

‘‘उससे क्या होगा? अग्नि परीक्षा तो सीता ने भी दी थी फिर भी लोगों का मुंह बंद नहीं हुआ था. हम तो मामूली लोग हैं. हम किस-किस का मुंह बंद करेंगे? हमें तुम माफ़ ही कर दो,’’ राधिका ने जैसे दो टूक फ़ैसला सुनाया.

अपमान और बेबसी से रजनी की आंखें भर आईं. मदद की आस में उसने हेमन्त की ओर दोबारा नज़र उठाई, पर वो ख़ामोश ही बैठा रहा. हेमन्त की ख़ामोशी पर रजनी को बहुत आश्चर्य हो रहा था. वह सधे क़दमों से आगे बढ़ी और सीधे उसकी आंखों में झांकते हुए बोली,‘‘हेमन्त, तुम चुप क्यों हो? क्या तुम्हें भी मेरी पवित्रता पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘मम्मी-डैडी ने मुझे पाला-पोसा है. मैं उनकी बात नहीं टाल सकता.’’ हेमन्त ने आंखें झुका लीं. वह रजनी की आंखों की ताब सह न सका.

‘‘तो क्या तुम्हारी कसमें और प्यार के वादे झूठे थे हेमन्त?’’ रजनी के स्वर में कंपन था.

‘‘कुछ भी झूठ नहीं था, मगर मैं जानबूझ कर तो मक्खी नहीं निगल सकता,’’ हेमन्त झल्लाते हुए खड़ा हो गया.
‘‘मक्खी?’’ अपमान और पीड़ा से रजनी का स्वर भीग गया. उसे अपने सुने पर विश्वास नहीं हो रहा था. उसे लग रहा था कि जो कुछ भी उसके कानों ने सुना है, वो सच नहीं है और हेमन्त अभी उसे अपनी बांहों में भर कर प्यारभरे स्वर में कहेगा कि मेरा-तुम्हारा तो जन्म-जन्मांतर का साथ है. मैं तो बस मज़ाक कर रहा था. लेकिन सच तो अपनी पूर्ण प्रचंडता के साथ सामने खड़ा था.

वह चंद पलों तक हेमन्त के चेहरे को अपलक देखती और तौलती रही फिर अचानक फट पड़ी, ‘‘तुम पुरुष हर युग में एक जैसे ही रहे हो. सीता हो या अहिल्या परीक्षा हमेशा नारी को ही देनी पड़ती है फिर भी वह शापित ही रहती है. लेकिन मिस्टर हेमन्त राय अब ज़माना बदल चुका है. यदि मुझे वनवास मिला तो मैं उसे अकेले नहीं भोगूंगी. तुम्हें भी मेरे साथ वनवास भोगना होगा.’’

शोर सुनकर दरवाज़े पर मेहमानों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. रजनी ने उन पर एक उचटती हुई निगाह डाली और फिर राधिका की ओर मुड़कर चीखते हुए बोली,‘‘मुझे एड्स है आंटी, लेकिन क्या आप जानना नहीं चाहेंगी कि मुझे यह उपहार किसने दिया है?’’

राधिका को कोई जवाब नहीं सूझा. उन्हें रजनी के इस रूप की कल्पना ही नहीं थी. रजनी ने घृणाभरी दृष्टि से हेमन्त की ओर देखा फिर उसकी ओर हाथ उठा कर चीख पड़ी,‘‘मैं तो गंगा की तरह पवित्र थी, लेकिन आपके इस लाड़ले ने मेरे साथ मुंह काला किया है. मैं आज जो कुछ हूं, इसी के कारण हूं. मुझे एड्स का तोहफ़ा इसी ने दिया है.’’

‘‘रजनी...’’ हेमन्त को सांप सूंघ गया. ऐसा लगा जैसे उसे किसी ने सरे बाज़ार नंगा कर दिया गया हो. उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे.

अपना भावना-शून्य चेहरे को लेकर रजनी पीछे पलटी और विमल कुमार का हाथ पकड़ते हुए बोली,‘‘पापा, चलिए यहां से. पत्थर की इन मूर्तियों के बीच हमारा कोई काम नहीं.’’

बेटी के सधे क़दमों को देख विमल कुमार के डगमगाते क़दम संभल गए. उन्होंने अपनी बेटी और पत्नी का हाथ मज़बूती से थामा और कमरे बाहर निकल पड़े.

उन्हें देखकर भीड़ काई की तरह कटने लगी. किसी में उन्हें रोकने का साहस न था और हेमन्त पत्थर की मूर्ति-सा जड़वत, अपलक अपनी ज़िंदगी को दूर जाते देख रहा था.

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