कहानी: सिर्फ़ एहसास है यह
अमित के दिल का सन्नाटा कमरे के सन्नाटे के साथ मिलकर और गहरा गया. जिस क्षण से शुभी की धड़कन थमी है, उसके भीतर भी कुछ थम-सा गया है. क्षोभ, निराशा और व्याकुलता उसकी आंखों से बरस पड़ी. क्या सचमुच शुभी उसको छोड़कर चली गई है? कैसे मुस्कुराती-सी चिता पर लेटी थी वो? उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे, जैसे बड़े ही कौतूहल के साथ किसी मनपसंद यात्रा पर जा रही हो. उसकी काया धीरे-धीरे राख में बदल गई थी मगर यादें? यादें कभी राख हो सकती थीं क्या?
पलकें मूंदते ही शुभी की तस्वीर मानसपटल पर छा गई. सुहाग-रात में उसे चॉकलेट देकर सुलाना, अधीर आलिंगन की कसमसाहट और फिर उस दिन उसे रास्ते से हटाने की योजना... अमित ने घबराकर आंखें खोल दीं. मगर आज अंदर-बाहर हर जगह शुभी ही थी. कैसे किसी के दिल में शुभी जैसे निश्च्छल इंसान को मारने की बात प्रवेश कर सकती थी? क्या हो गया था उसे? यादों ने पूरे मन को ही दृश्यपटल बना लिया था. पलकें बंद हों या खुली वो चलचित्र की भांति बस चलती ही जा रही थीं...
जब शुभी के पिता ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो शीना के इनकार से उसके मन पर हताशा की पर्त चढ़ी हुई थी. शुभी एक मंदबुद्धि लड़की थी, जो विशिष्ट बच्चों के स्कूल में पढ़ती थी और एक मनोचिकित्सक के पास नियमित रूप से जाती थी. लाखों कैश और शहर की सबसे पॉश कॉलोनी में सभी सुविधाओं और आधुनिक साजो-सामान से सुसज्जित आलीशान बंगले की पेशकश के साथ शादी का प्रस्ताव पाकर ईमान डोल गया था उसका. मन दो टुकड़ों में बंट गया था और उनके घमासान युद्ध में जाने कैसे वो सम्मोहित-सा एक ही मन की बात सुनता चला गया था, मगर दूसरा मन भी लगातार शोर मचाए जा रहा था कि पछताओगे.
प्रस्ताव के साथ ही शुभी के पिता ने कहा था कि शुभी की मनोचिकित्सक से मिलकर उसके बारे में सब कुछ जान ले. उनसे मिला तो उन्होंने शुभी के बारे में विस्तार से सब समझाया था. बुद्धि कम है उसमें, लेकिन अगर उसे ढेर सारा प्यार मिले तो वो धीरे-धीरे विवाहित जीवन का अर्थ समझ जाएगी. बस कुछ बातों का ध्यान रखना होगा... डॉक्टर की बातें आपस में लड़ रहे दो मनों के शोर में सिर्फ़ ध्वनियां बनकर रह गई थीं...
शादी की सारी रस्में अपने अंतर्द्वंद्व में डूबा यंत्रवत् पूरा करते-करते सुहाग-कक्ष तक पहुंचा तो जैसे चेतना ने झिंझोड़ कर जगाया. मोगरे की भीनी सुगंध और कलात्मक ढंग से सजे सुहाग-कक्ष की मादकता ने उसकी झुंझलाहट को बढ़ा दिया था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो ख़ुद को बेच चुका है या शीना के इनकार से विक्षिप्त होकर ख़ुद से बदला ले बैठा है.
उसे देखकर शुभी ने तत्काल उठकर उसके पैर छुए तो उसका पूरा बदन सिहर उठा. झल्लाहट तो उसी पर उतरनी थी,‘ये क्या कर रही हो? किसने कहा पैर छूने को?’ अमित डपटते हुए बोला.
‘ताई ने बताया है कि अगर मैं ख़ूब सुंदर लगूंगी और आपके पैर छुऊंगी तो आप ख़ुश हो जाओगे. अब आप खुश हैं? मैं कैसी लग रही हूं?’ शुभी ने बच्चों की तरह हिलते हुए भोलेपन से पूछा.
‘बहुत अच्छी!’ संक्षिप्त और बेरुख़ा-सा उत्तर भी उसे ख़ुश करने के लिए बहुत था. उसने थैंक यू कहकर एक चुम्बन अमित के गालों पर जड़ दिया. अब उसकी झुंझलाहट चरम पर पहुंच गई. उसका कुंवारा तन जल उठा. शुभी के लगातार बोलने से उसकी असहजता बढ़ती जा रही थी.
‘डॉक्टर आंटी ने कहा है कि अपने दिल की हर बात अपने पति को बताना. अगर तुम अपने पति की हर बात मानोगी तो वो हमेशा ख़ुश रहेंगे और तुम्हें बहुत प्यार करेंगे. मैं आपकी हर बात मानूंगी और आप मुझे बहुत प्यार करना. करेंगे न?’ उसकी मासूम आवाज़ में अनुग्रह भी था और विश्वास भी. ‘प्यार!..’ अमित हल्के से बुदबुदाया. उसके जले पर ये दूसरा नमक था. क्या उसे अब अपना पूरा जीवन प्यार के बिना ही नहीं गुज़ारना है? कभी प्यार का अर्थ समझ पाएगी ये? सहसा उसे लगा कि वो सब कुछ कर डालेगा, जिसे इस मंदबुद्धि लड़की का मन एकदम से बर्दाश्त न कर सकने की हिदायत डॉक्टर ने दी है...क्या समझते हैं सब उसे? मनोचिकित्सक? मसीहा? हुंह!!
‘तुम मेरी हर बात मानोगी?’ वो विषयांतर के मक़सद से खीझे हुए स्वर में बोला.
‘हां!’ पूरे आत्मविश्वास के साथ उसने आदेश की प्रतीक्षा में अपनी पूरी खुली मासूम पलकें एकटक अमित पर टिका दीं और बोली,‘क्या करूं?’
अमित के आहत मन ने ख़ुद पर आई झल्लाहट उस पर उतार दी,‘कोने में जाकर एक पैर पर खड़ी हो जाओ.’
शुभी ने उसे ध्यान से देखा. उसकी निगाहों में न कातरता थी, न अवज्ञा, असमंजस भी नहीं था. अगर कुछ था तो ढेर सारा कौतूहल जैसे ये ‘खेल’ उसकी समझ में न आया हो. पर उसने एक बार भी इस अटपटे आदेश का कारण नहीं जानना चाहा. वो चुपचाप हिलती-डुलती एक पैर पर खड़ी हो गई.
‘उफ़! कैसे निबटेगा इस मूर्खा से?’ झल्लाए अमित ने इस आज्ञाकारिता पर दिल से उठी दया या प्यार की कोई आवाज़ नहीं सुनी. आजकल अपने द्वंद्व के शोर में उसे कुछ सुनाई देता भी कहां था? अपने माता-पिता की एकमात्र उम्मीद था वो. पिता की गिरवी पड़ी ज़मीन, बहन की शादी का ख़र्च, और ख़ुद के लिए सारी भौतिक सुविधाएं. अब उसे लग रहा था एक झटके में सब पाने के लिए एक अंधे कुंए में ज़िंदगीभर के लिए कूद गया है. जाने कितनी देर अनमना सा बैठा ख़ुद से लड़ता रहा...
धड़ाम!! तभी शुभी के गिरने की आवाज़ से वो चौंका. शुभी ने रोने के लिए बड़ा-सा मुंह खोला तो उसने पास रखी चॉकलेट उठा कर शुभी के खुले मुंह में डाल दी और उसे चुप कराने लगा.
‘मुझे नींद आ गई और मैं गिर गई. मैं जानबूझकर नहीं गिरी. अब आप ख़ुश नहीं होंगे? मुझे प्यार नहीं करेंगे?’ वो सुबकते हुए बोली तो अमित को अपने दिल से उठी दया की आवाज़ सुनाई दी और इस निश्च्छल आज्ञाकारिता पर प्यार उमड़ आया. उसने जैसे-तैसे उसे चुप कराकर सुलाया और ख़ुद भी सोने की कोशिश करने लगा.
अपने शहर पहुंचने पर उसे घर की चाबी देते हुए शुभी के पिता ने कहा,‘आपको कोई व्यावहारिक समस्या न आए, इसका पूरा प्रयास मैंने किया है. फिर भी कोई उलझन हो तो मुझसे या इसकी मनोचिकित्सक से कहने में हिचकिचाइएगा नहीं.’
घर उनकी कॉलोनी में ही था. सर्वेंट क्वार्टर में वो वफ़ादार नौकरों का परिवार रहता था, जिसमें शुभी की ‘केयर-टेकर’
दीदी भी थी. उनके ऊपर ही शुभी की ज़िम्मेदारी थी.
ऑफ़िस पहुंचा तो सब पार्टी की ज़िद करने लगे. शादी में उसके गांव तो कोई भी नहीं पहुंच सका था. आख़िर उसे एक अच्छे होटल में पार्टी रखनी ही पड़ी. पार्टी में शुभी बस सबकी बात सुनकर मुस्कुराती रही.
लौटकर शुभी ने पूछा,‘आपके दोस्तों को पता तो नहीं चला कि मैं कम दिमाग़ की हूं?’
उसके इस प्रश्न पर अमित अचकचा गया. ‘नहीं.’ उसने संक्षिप्त-सा जवाब दिया.
‘पता है, डॉक्टर आंटी कहती हैं कि अगर मैं पार्टी में जो बात समझ में न आए उसपर बोलने के बजाए हल्के-से मुस्कुराती रहूं और क़ायदे से खाऊं तो आपके दोस्त जान नहीं पाएंगे कि मेरे पास कम दिमा़ग है. तो आप मुझसे ख़ुश रहोगे और प्यार करोगे. बस, आइसक्रीम मुझसे बड़ों की तरह नहीं खाई जाती तो वो मैंने पार्टी में खाई ही नहीं. ठीक किया न? अब आप मुझसे ख़ुश हो न?’ शुभी के भोले प्रश्न से उसकी इस समझदारी पर बूंदभर प्यार और उमड़ आया.
‘कल मैं तुम्हें आइसक्रीम खिला दूंगा,’ उसने मुस्कुराकर चेहरा नज़दीक लाकर कहा तो ध्यान दिया कि पार्टी के लिए उसे सलीके से तैयार किया गया था. गुलाबी रंग की अत्याधुनिक कढ़ाई वाली साड़ी, हीरों के सादे से सेट, सलीके से संवरे बालों और हल्के मेकअप ने उसकी नैसर्गिक सुंदरता को एक प्रभामंडल दे दिया था. कुछ देर वो शुभी को अपलक देखता रहा फिर कब आगे बढ़कर आलिंगन में कस लिया, उसे पता ही न चला. मगर जल्द ही तरसे हुए अधरों की खुमारी टूट गई, जब पाया कि शुभी हाथ-पैर पटक कर बेतरह हंसते हुए दोहराए जा रही है,‘मुझे गुदगुदी हो रही है.’ खिन्न होकर उसने शुभी को छोड़ दिया.
वो समझ नहीं पा रहा था कि अपने मन में चल रहे इच्छाओं के अंधड़ को कैसे संभाले? किससे कहे? मध्यमवर्गीय सुसंस्कृत परिवारों में लड़के के लिए भी तो लड़की का शरीर शादी से पहले तक एक वर्जित क्षेत्र होता है और वर्जना के इन संस्कारों को बख़ूबी निभाया भी था उसने. उसकी कामनाएं शरीर के साथ एक मधुसिक्त मन मांगती थीं जो उसके प्रणय आमंत्रण का लज्जायुक्त स्वागत कर सके. किसी कोरे कागज़ पर अधिकारपूर्वक अपना नाम लिखने की संतुष्टि दे सके. शायद इसीलिए शुभी के निश्च्छल समर्पण पर रीझे मन में ढेर सारा प्यार उमड़ता तो था, पर सामीप्य के क्षणों में उसकी आंखों में शीना की सुघड़ श़िख्सयत के सुमधुर सहचर्य का कोई सपना आ खड़ा होता और शुभी की कोई बचकानी हरकत छिटकन का बहाना बन जाती.
छुट्टी का दिन था और सुबह से मौसम कुछ अधिक ही सुहावना था. रातभर पानी बरसा था पर बादल छंटे नहीं थे. हवा अपनी आगोश में पानी की नन्हीं बूंदों को समेटे मादकता में सराबोर अल्हड़ किशोरी-सी लहरा रही थी. टेरिस पर गया तो उसकी उच्छृंखल सरसराहट तन-मन में उतरती चली गई. शुभी नहाकर तैयार होकर आई थी. आज उसका सुंदर-सा जूड़ा बनाया गया था.
‘देखो मेरा जूड़ा कैसा लग रहा है?’ कहकर वो टेरिस पर खड़ी होकर दोनों बांहें फैलाकर हवा का आनंद लेने लगी. पानी की बौछारों ने उसके बदन को सराबोर कर दिया तो सुबह की ओस में नहाए ताज़े गुलाब की तरह मादक देह ने उन्मुक्त पवन की भांति ही उसकी उद्दाम वासना के घोड़े को भी बेलगाम कर दिया. उसने शुभी को अपनी आगोश में भर लिया. बारिश की तरह खुलकर बरस जाने को आतुर कामनाएं उसकी देह को कसती जा रही थीं. शुभी कुछ देर तो बच्चों की तरह बेलगाम हंसती रही,‘मुझे गुदगुदी हो रही है.’ वो बार-बार दोहराती जा रही थी.
उसकी हंसी ने अमित की अतृप्ति की आंच से तप्त वासना को गुस्से की आग में बदल दिया. ‘चुप बैठो! तुमने कहा था न कि जो मैं कहूंगा वो करोगी? तो एकदम चुपचाप लेट जाओ. ख़बरदार जो हिली या हंसी तो.’
शुभी सहम गई. उसने मुंह पर उंगली रख ली. अमित ने उसे लिटा दिया. अब शुभी की आंखों से धाराप्रवाह आंसू बह चले मगर मुंह से एक शब्द नहीं निकला.
‘देखो, हम जो खेल खेलने जा रहे हैं, वो तुम्हें भी अच्छा लगेगा.’ कहकर वो थोड़ी देर तो अपने में मगन रहा पर आख़िर उसका सुबकना सुनकर गुस्सा गया. ‘आख़िर इसमें इतना रोने की क्या बात है?’
शुभी कुछ नहीं बोली, पर उसके आंसू बढ़ गए तो अमित झल्ला उठा,‘मुंह से उंगली हटाओ! बताओ तो क्यों रो रही हो?’
‘ये गड़ रहा है,’ कहकर शुभी ने पीठ दिखाई तो अमित ने देखा उसका जूड़ा खुल गया था और एक कांटा उसकी पीठ में बुरी तरह भुंक गया था. रक्त की एक धारा देखकर उसकी झल्लाहट चरम पर पहुंच गई.
‘तुम इतनी देर से इसकी वजह से रो रही हो? उठ क्यों नहीं गईं? बताया क्यों नहीं?’
‘उठती या बताती कैसे? आपने हिलने और बोलने को मना किया था,’ वो सिसकती हुई बोली. अमित मन में चल रहे अभुक्त कामना से उपजे अंधड़ से बुझ चुके मन के साथ घर से बाहर निकल गया. हवा बंद हो चुकी थी. बादलों से आकाश आच्छन्न था. ठीक से बारिश न होने के कारण उमस असहनीय हो गई थी फिर भी वो देर सांझ तक सड़कों पर बेवजह भटकता रहा...
लौटकर आया तो शुभी अपने शरीर पर एक फूल फिरा रही थी. शुभी ने अपने व्यवहार के लिए माफ़ी मांगी और बोली,‘‘डॉक्टर आंटी ने मेरी चोट पर पट्टी की और दर्द की दवाई देकर कहा कि छूने से पति-पत्नी का प्यार बढ़ता है. इस फूल को रोज़ सहलाने से गुदगुदी होने की आदत हो जाएगी, तब मैं छूने पर हंसूंगी नहीं.’
शुभी के चेहरे पर दर्द का रेखांकन स्पष्ट था पर शिकायत के चिन्ह न थे. बस अपनी ग़लती का एहसास और उसके सुधार की इच्छा! आज अमित ने उसके प्रति अपने दिल से उठी सहानुभूति की आवाज़ सुनी और प्यार पाने के इस सरल प्रयास पर बूंदभर प्यार और उमड़ आया.
शुभी हर तरह से उसका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करती. उससे बात करती ही जाती. उसकी भोली-भाली बातें और हरकतें कभी अमित के चेहरे पर मुस्कान ले आतीं तो कभी उलझन और ़गुस्सा. वो जैसे बचपन में पढ़ी हुई नैतिक शिक्षा की चलती-फिरती किताब थी. उसे जो बात एक बार समझा दी गई, उससे कोई लालच या डर उसे डिगा नहीं सकता था. पिता के वैभव का अहंकार उसे छू भी नहीं गया था. डॉक्टर आंटी ने कह दिया कि वो अमित की हर बात माने तो वो उससे प्यार करेगा तो अमित की हर बात उसके लिए पत्थर की लकीर हो गई थी. शुभी ने पूछ-पूछकर उसके मनपसंद खाने की, कपड़ों की सूची बनाई. वो उसकी पसंद का खाना बनवाती, कपड़े पहनती, और हर समय उसके आगे-पीछे घूमती रहती. उसके एक बार कहने पर शुभी ने अपने सारे टैडी हटा दिए और पालतू जानवरों का कमरों में प्रवेश बंद कर दिया, जो उसके सबसे प्रिय सहचर थे. बस हर बात मानने के बाद वो एक बार ज़रूर पूछती,‘अब आप मुझसे ख़ुश हो? अब तो आप मुझे प्यार करोगे न? मैं नीटू को खाना खिला आऊं? आप ़गुस्सा तो नहीं होगे?’ अमित के मन में इस निश्च्छल समर्पण पर बूंद-बूंद प्यार उमड़ता तो समीप आते ही बेतरह हंसने लगने पर खीझ का झाड़ उग आता.
जैसे-जैसे उसका प्यार पाने की शुभी की बचकानी कोशिशें बढ़ती जा रही थीं वैसे-वैसे अमित की उलझन. उसका मन उस लकड़ी की तरह हो गया था जिसे सुखाकर उसमें आग लगाई जाती है फिर पानी डालकर ठंडा कर दिया जाता है. जो न जलती है, न बुझती है. केवल सुलगती रहती है. इस सुलगन से उठते धुएं को मन के कमरे में बंद रखने से उसका दम घुटने लगा था. फिर एक दिन एक कलीग की शादी में शीना ने अपना दिल खोलकर उसके सामने रखा,‘करियर और स्वतंत्रता के लालच में तुम्हें खोने के बाद एहसास हुआ कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूं. तुम्हें खोकर जाना कि मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती. मैं जानती हूं मेरे इनकार से विक्षिप्त होकर ही तुमने शुभी से शादी करने की आत्महत्या की है. तुम उसके साथ पहाड़-सी ज़िंदगी कैसे गुज़ारोगे?.. मुझे माफ़कर दो. मैं तुम्हें पाना चाहती हूं.
तुम्हारे बिना मेरे जीवन में कोई भी ख़ुशी पूरी नहीं होती...’
‘ख़ुशी तो मेरी भी सिर्फ़ तुम्हारे साथ में ही बसती थी पर...’ और सहानुभूति पाकर अमित के सुलगते मन का धुंआ भी बाहर निकलता चला गया. जाने कितनी देर वे मन का दर्द बांटते रहे फिर शुभी को रास्ते से हटाने की एक फुलप्रूफ़ योजना परोस दी थी शीना ने. उसकी चतुराई पर चकित, हतप्रभ-सा अमित बस उसकी बातें सुन ही रहा था कि शुभी को पीछे खड़ा देखकर दोनों रंगे हाथों पकड़े गए चोरों की तरह हड़बड़ा गए थे.
‘तुम तो जादू का तमाशा देख रही थीं. यहां कब आईं?’ अमित ने डपटकर पूछा.
‘आप बहुत देर दिखे नहीं तो मैं डर गई थी कि आप कहीं मुझे छोड़कर तो नहीं चले गए इसीलिए आपको ढूंढ़ते हुए आ गई,’ कहकर शुभी दौड़कर उससे लिपट गई.
अमित ने तुरंत उसे लेकर घर जाने में ही भलाई समझी. तो ये था शीना का असली रूप? शुभी जैसी अबोध इंसान को समाप्त करने के बारे में कोई सोच भी कैसे सकता है? रास्ते में शुभी एकदम चुप कुछ सोच रही थी. उसकी चुप्पी अमित की उलझन बढ़ाती जा रही थी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे शुभी को समझाए या उसने जो कुछ भी सुना हो वो उससे कैसे उगलवाए. सहसा उसे ध्यान आया कि लॉन में पड़ा झूला शुभी को बहुत पसंद है.
‘झूला झूलोगी? उसे झूलते हुए तुम बात करना, मैं सुनूंगा. ठीक है?’ उसने पूछा तो शुभी को तो जैसे मन चाही मुराद मिल गई.
‘तुम क्या सोच रही हो, शुभी?’ शुभी को झूले पर भी चुप देखकर अमित ने स्वर में ढेर सारी मिसरी घोली.
‘सोच रही हूं कि मेरे मरने के बाद नीटू को खाना कौन देगा? वो किसी और के हाथ से खाता नहीं है न! और आप मुझे
कब मारोगे?’
अमित की आवाज़ उसके हलक में अटक गई. शुभी अपनी धुन में बोले जा रही थी,‘मेरी मां न, मुझे बहुत प्यार करती थीं. वो मुझे सहलाती थीं, चोट लगने पर दवा लगाती थीं... आप मुझे मार दोगे तो मैं अपनी मां के पास चली जाऊंगी. वो न, उस तारे में रहती हैं. बताओ न आप मुझे कब मारोगे?’
अमित के दिलोदिमाग़ पर जैसे हथौड़ा-सा पड़ा और उसकी संवेदना झनझना उठी. वो अवाक्-सी आंखों से शुभी को देखे जा रहा था. ‘तुम्हें गलतफ़हमी हुई है शुभी, मैं तुम्हें मारने नहीं वाला हूं,’ किसी तरह उसने फंसी हुई आवाज़ को खींचकर गले से निकाला.
अब शुभी दार्शनिकों के से अंदाज़ में बोली,‘अच्छा! फिर आप शीना से शादी कैसे करेंगे? आप तो उससे प्यार करते हैं न? और आप कह रहे थे कि मेरे रहते आप उससे शादी कर नहीं पाओगे. फिर आप ख़ुश भी नहीं होगे. मुझे आपको दुखी देखना अच्छा नहीं लगता. मैं न, आपको बहुत प्यार करती हूं. मेरा मरना ज़रूरी है. आप मुझे मार ही डालो. मैं अपनी मां से मिल जाऊंगी और आप शीना से.’
अचकचाए अमित के दिमाग़ में सबसे पहले योजना के सबको पता चल जाने का भय पनपा. शुभी ने न केवल पूरी बातें सुन ली थीं, बल्कि याद भी कर लीं थीं. लेकिन जल्द ही शुभी के निश्च्छल प्रेम से उपजे धिक्कार के श्वेत बादल फैलने शुरू हुए और उनके आवरण में स्वार्थ, अहंकार, भय यहां तक कि उलझनों का पूरा जंगल विलुप्त हो गया.
जिसे दुनिया मंदबुद्धि समझती थी वो तो ‘प्रबुद्ध’ थी. नासमझ तो वो था जो ख़ुशी को मन के बाहर की दुनिया में ढूंढ़ रहा था. एक तरफ़ शुभी थी. जिसने उससे सिर्फ़ प्यार चाहा था और वो उसे वह भी न दे सका था, वह फिर भी उससे प्यार करती थी, उसे ख़ुश देखना चाहती थी. कितनी निस्पृह, निश्चिंत, निश्च्छल! उसे किसी से कोई शिकायत नहीं थी. दूसरी ओर वो था जो ख़ुद अपने फैसले लेकर भी व्यथित, कुढ़ा हुआ और चिंतित! और शीना! किस काम का था उसका चातुर्य, जो सही समय पर निर्णय न ले सका और अब ख़ुद की तलब के वशीभूत हो तीन ज़िंदगियां बर्बाद करने पर उतारू था. दिमाग पाकर उस जैसे लोगों ने ही दुनिया को जीने लायक नहीं छोड़ा था. इसी बुद्धि से अपने और दूसरों के लिए नरक बुना था उन्होंने.
क्या इस कमअक्ल के साथ ज़िंदगी बिताना बुद्धिमत्ता के उन्माद से ग्रस्त अहंकारी लोगों के साथ ज़िंदगी बिताने से श्रेयस्कर नहीं है? जाने कौन-सा आवरण ढके था उसकी संवेदना को, जो वो सरलता और प्रेम की इस प्रतिमा के स्पंदन को महसूस नहीं कर पा रहा था.
उसकी आंखें झूला झूलती शुभी के मासूम चेहरे के साथ आवृत्ति कर रहीं थीं और मन में शुभी की यादों का आवर्तन चल रहा था. उसके कहने पर एक टांग पर खड़े हो जाना, कांटा भुंकने पर भी कुछ न बोलना और उसे लुभाने के लिए किए गए जाने कितने ही सरल और निश्च्छल प्रयत्न......
सहसा उसे लगा कि उसके मन में समय-समय पर शुभी की मासूमियत पर उमड़ा प्यार धीरे-धीरे विशाल ताल बन चुका है, जिसे वो स्वत: उगाई उलझनों के झाड़ के कारण आजतक देख ही नहीं पाया था. शुभी उसकी ख़ुशी बन चुकी थी, जिसके बिना वो अपनी ज़िंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता था. उसने शुभी का चेहरा दोनों हाथों से पकड़ लिया. ‘तुम मुझे प्यार करती हो न? और फिर भी मुझे छोड़कर अपनी मां के पास जाना चाहती हो? ये नहीं सोचती कि मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा? फिर कभी मरने की मत सोचना. मैं बहुत दुखी हो जाऊंगा. और तुम मुझे दुखी नहीं देखना चाहतीं न? मैं तुम्हें सहलाऊंगा, चोट लगने पर दवा लगाऊंगा, मैं तुम्हें बहुत-बहुत प्यार करूंगा, बस तुम कभी मरने के बारे में मत सोचना.....समझ गईं न? क्या समझ में आया?’ उसने सीधे शुभी की आंखों में देखा जिनमें अब भी असमंजस था.
‘अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊं?’ शब्दों को बेबस पाकर उसने कमान आंखों को दे दी, जिनमें सिर्फ चिंता थी कि वो अपनी मासूमियत में कुछ कर न बैठे. वे बरस पड़ीं.
उसकी पलकें भीगते ही शुभी की उंगलियां उसके आंसू पोंछने लगीं,‘आप दुखी न होइए. मैं समझ गई. पहले आप शीना से प्यार करते थे और उसके साथ ख़ुश रहते थे, पर आज से आप मुझसे प्यार करते हैं और मेरे साथ ख़ुश रहेंगे. है न?’
अमित उसके उत्तर पर अवाक् रह गया. मूक जानवरों की तरह शुभी को भी सच्चाई समझने के लिए भाषा की ज़रूरत नहीं थी. वो आंखों में सच्चाई पढ़ सकती थी.
‘ओह शुभी कौन कहता है कि तुम्हारे कम अक्ल है? तुम तो समझदार कहे जाने वालों से भी ज़्यादा समझदार हो,’ ये सुनकर शुभी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा.
‘सच्ची! लेकिन अगर मैं अपने-आप मर गई तो? अपने-आप भी तो लोग मर जाते हैं जैसे मेरी मां. तब मैं न, उस तारे से आपको देखूंगी और आपका ख्याल रखूंगी. बस आप रोइएगा नहीं. मैं आपको दुखी नहीं देख सकती. आप मुझे उसी तारे में हेलो करना जैसे मैं अपनी मां को करती हूं. ठीक है?’
‘ठीक है,’ अमित की बांहों का मज़बूत पाश शुभी को कसता जा रहा था और हथेलियां उसे यों सहला रही थीं जैसे पवन फूलों को प्यार से झुलाती जाती है. माथे और गालों पर अपने प्यार की मुहर लगाने के बाद उसने अपने तप्त अधर शुभी के अधरों पर रख दिए...
...और उस दिन अमित को जो ज्ञान प्राप्त हुआ था उसकी छत्रछाया में सारा जीवन आनंदमय व्यतीत हुआ. लोगों की नज़र में वो उद्धारक था, जो अपनी मंदबुद्धि पत्नी से इतना प्यार करता था, लेकिन उसका अंतर्मन जानता था कि उद्धारक तो शुभी थी, जिसने उसे ‘प्रबुद्ध’ कर दिया था. उनके बच्चे मां की सहृदयता और पिता की बुद्धि की विरासत से समृद्ध हुए थे. शुभी सारा जीवन वैसी ही रही. पोते-पोतियां भी अपनी दादी के साथ यों खेलते जैसे अपने हमउम्र साथियों के साथ.
‘‘दादाजी, रात हो गई, अब रोना बंद कीजिए. हम भी तो आपसे कितना प्यार करते हैं. हमें आपका उदास होना अच्छा नहीं लगता,’’ ये कहकर लाइट जलाते हुए उसके सबसे छोटे लाड़ले पोते ने उसके आंसू पोंछे और उसका पूरा परिवार उसके आगे-पीछे सिमट आया. अमित को लगा शुभी आज भी अपने बच्चों के रूप में उसके साथ ही है.
‘‘रात हो गई? चलो-चलो तुम्हारी दादी से हेलो कर आएं,’’ कहकर अमित एक झटके से खड़ा हो गया. बालकनी पर जाकर उसने मीठू को गोद में लिया और कहा,‘‘वो जो तारा है न, वहां से तुम्हारी दादी हमें देखेगी और हमारा ख्याल रखेगी. और हम उसे इसी तारे में हेलो करेंगे,’’ उसने अपने आंसू पोछे और बोला,‘‘तुम देख रही हो न शुभी मैं बिल्कुल भी दुखी नहीं हूं,’’
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