कहानी: मेरे हिस्से का आकाश

शाम हो चुकी थी. नीले आकाश में कबूतरों का झुंड, एक निश्चित आकार बनाए उड़ता चला जा रहा था, अपने घोंसलों की ओर. बगीचे में अकेली बैठी चाय पीती रंजना ने ठंडी सांस छोड़ी. शाम को ये बेज़ुबान परिंदे भी अपने घरों की ओर रुख़ करते हैं और आकाश... उसके अपने आकाश का कहीं कोई पता नहीं.

सुबह का नाश्ता किए हुए टिफ़िन लेकर निकले आकाश का रात को घर लौटने का कोई निश्चित समय नहीं होता. काश कोई होता, जिससे वह अपने मन की बातें कह पाती. कोई भी तो नहीं था, उसके मन के  क़रीब सिवाय आकाश के. ओह आकाश जाने तुम कब आओगे? यह सोचते हुए वह रसोई घर की ओर बढ़ी.

लगभग सात बजे तक खाना भी बन चुका था. टीवी पर बेमन से चैनल बदलती हुई रंजना का मन अटका था तो सिर्फ़ और सिर्फ़ आकाश में.

वैसे तो रंजना शहर के प्रख्यात कान्वेंट स्कूल पर्ल्स ऑफ़ विज़्डम में...  की टीचर थी और उसे अपने काम से भी ख़ासा लगाव था. पर इन दिनों गर्मियों की छुट्टी के कारण स्कूल बंद थे और अब उसका मन बहुत शिद्दत से सिर्फ़ और सिर्फ़  आकाश का साथ चाहता था.

रंजना का अकेले घर में मन नहीं लग रहा था. वह बालकनी में जाकर खड़ी हो गई.

सामने के घरों की खिड़कियों के पर्दे खुले थे. तेज़ रौशनी में सब कुछ स्पष्ट दिखाई दे रहा था.

मिसेज़ गुप्ता के बच्चे अपने पापा के गले में झूला झूल रहे थे और दूसरी तरफ मिसेज़ शर्मा और उनके पति आपस में खोए हुए कुछ बातें कर रहे थे.

रंजना ने मन में अनजाने में ही ख़ुद को इन दोनों परिवारों के इस सुख की कसौटी पर तोला और दोनों के मुक़ाबले अपने को हीन ही पाया. दोनों के पास अपनों के साथ की ख़ुशियां थी और उसके हाथ में था तो सिर्फ़ एक लंबा इंतज़ार.

इंतज़ार उसके आकाश का. बैठे-बैठे कब उसकी आंख लग गई, पता ही नहीं चला. नींद खुली तो घंटी की आवाज़ से. उसने दौड़ कर दरवाज़ा खोला. सामने उसका आकाश था. हाथ में ब्रीफ़केस और कान से मोबाइल सटाए हुए. वह मुस्कुराई, लेकिन आकाश का ध्यान तो सिर्फ़ मोबाइल पर चल रही बात पर ही था.

उसने कुछ कहना चाहा तो आकाश ने उंगली से चुप रहने का इशारा किया. शायद क्लाइंट से ज़रूरी बात चल रही थी. क़रीब दस मिनट बाद मोबाइल बंद हुआ.

‘‘खाना लगा दूं,’’ उसने पूछा.

‘‘नहीं अभी भूख नहीं है. बहुत थक गया हूं.’’

‘‘मैंने भी नहीं खाया है.’’

‘‘ओह! ऐसा क्यों किया? चलो तुम खाना खा लो. मुझे नींद आ रही है. मैं जल्दी सोऊंगा,’’ यह कहते हुए आकाश सोने चला गया.

रंजना की भूख जाने कहां उड़ गई थी. किचन का काम समेट कर कमरे में दाख़िल होती रंजना, आकाश को सोते देखकर सोचने लगी क्या यही है वह आकाश, जिसे उसने सारा जहां मान रखा है? क्या यही है वह जिसके प्यार में उसका अस्तित्व विलीन हो चुका है? मन के भीतर से कोई जवाब नहीं आया. उसने अपने इर्द-गिर्द एक अजीब-सा ख़ालीपन फैलता महसूस किया.

आंखों से कब आंसू लुढ़क कर गाल पर आ गए, वो समझ ही नहीं पाई. सामने रखी दराज से नींद की गोली निकालकर झट से गटक ली उसने. सुबह आंख खुली तो घड़ी की सुइयां 6.30 बजा रही थीं. हड़बड़ा कर उठी वह. आकाश अभी भी सो रहा था. चाय चढ़ाकर जल्दी से ब्रश करने भागी. आकाश को जगाकर उसे अख़बार और चाय दिया. फिर नाश्ता और टिफ़िन बनाने की तैयारी में व्यस्त हो गई. घड़ी के तेज़ी से सरकते कांटों के साथ ही मानों दोनों की ज़िंदगी बेतरह भाग रही थी, पर रिश्तों की गर्माहट तो जैसे जड़ हो गई थी कहीं.

नाश्ता करके उसे बाय कहता हुआ आकाश तो ऑफ़िस के लिए रवाना हो गया, पर उसके हिस्से में आया फिर वही अकेलापन, फिर वही पूरे दिन का लंबा इंतज़ार. आख़िर क्या है वह आकाश के लिए कोई मेड या फिर कोई केयर टेकर, जो उसका और उसके घर का ध्यान रखे. सोचते-सोचते अब उसे ग़ुस्सा आने लगा. आज वह आकाश से पूछ कर ही रहेगी. पिछले दो वर्षों से धीरे-धीरे आकाश की काम में व्यस्तता इतनी बढ़ती जा रही है और अब तो उसकी उपस्थिति से उनका सरोकार सिर्फ़ इतना रह गया है कि आकाश को खाना समय पर मिलता रहे और पति-पत्नी के जीवन की औपचारिकताएं पूरी होती रहें. मन में उमड़े इन बातों ने उसे मथ कर रख दिया. समय काटना अब और भी कठिन हो गया था. रात को फिर देर से आया था आकाश.

‘‘बहुत थक गया हूं,’’ कपड़े बदलते हुए आकाश ने कहा.

रंजना ने कोई जवाब नहीं दिया.

खाना खाते-खाते आकाश ने कहा,‘‘कल एक ज़रूरी मीटिंग है. तुम मुझे जल्दी उठा देना, प्लीज़!’’

फिर गुडनाइट कह कर वो सोने चला गया. आकाश को थका हुआ देखकर चाहते हुए भी रंजना उससे अपने दिल की बात नहीं कह पाई. सुबह फिर वही भागदौड़.

नाश्ता लगाते हुए रंजना ने कहा,‘‘मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है आकाश.’’

‘‘हां-हां कहो ना क्या बात है?’’

‘‘मैं देख रही हूं कि आजकल तुम कुछ ज़्यादा ही व्यस्त हो गए हो. दो घड़ी बात करने की भी फ़ुर्सत भी नहीं है तुम्हारे पास. पूरा दिन किसके सहारे काटूं मैं? मेरे लिए तो तुम्हारे पास ज़रा भी वक़्त नहीं है. और रही बात काम की तो वो तो सभी करते हैं, मैं भी करती हूं. पर मेरे लिए पहले तुम हो फिर काम. क्या तुम्हारे जीवन में काम और तुम्हारी महत्वाकांक्षा ही सबकुछ है? वहां मेरा कोई अस्तित्व है भी या नहीं?’’ यह कहते-कहते रुंआसी हो गई रंजना.

‘‘अरे बाबा, दिन भर भागता हूं, कमाने के लिए और कमाता हूं तो किसके लिए? तुम्हारे लिए ही तो ना?’’ यह कहते हुए आकाश ने रंजना के चेहरे को अपने हाथों में भर लिया.

आकाश की प्यार भरी बातों में खो गई रंजना, पर दिन बीतने के साथ ही फिर वही लंबे इंतज़ार का सच उसे खलने लगा था. शाम की नीरसता टूटी फ़ोन की घंटी से.

‘‘हेलो!’’ दूसरी तरफ़ आकाश की आवाज़ थी.

रंजना ख़ुशी से झूम उठी,‘‘बोलिए जी, आज साहब को हमारी याद कैसे आई?’’

‘‘याद तो आती ही है रंजू, पर सिर्फ़ यादों से ही तो काम नहीं चलता, है ना? घर चलाने के लिए काम भी तो करना पड़ता है. अच्छा अब एक ज़रूरी बात सुनो. शाम को मेरी एक ज़रूरी मीटिंग है, जिसमें थोड़ी देर हो जाएगी. तुम खाना खाकर सो जाना. ठीक है?’’

अनमनी-सी रंजना ने संक्षिप्त-सा उत्तर देकर लाइन काट दी. क्या काम ही सब कुछ है. क्या इसके अलावा ज़िंदगी कुछ नहीं? यह तो आकाश की कोरी महत्वाकांक्षा है और मैं...मेरी इच्छाओं का क्या? मैं उसकी इस सीमाहीन अनंत महत्वाकांक्षा के पीछे क्यों भाग रही हूं? उसने ख़ुद से सवाल किया और आख़िर कहां तक भागूं मैं? रंजना की आंखों का काजल भीग कर कुछ फैल गया.

हे ईश्वर, अब तू ही बता मैं क्या करूं? बेमन से खाना खाते हुए रंजना सोचने लगी. कितना रूखा हो गया है उसका आकाश. वह आकाश जो उसकी हर बात का ख़्याल रखा करता था, आज उससे कितना बेगाना हो गया है.

फिर रुआंसी हो उठी वह. उसने ठान लिया आज वह आकाश से बात करके रहेगी. जब आकाश आया तो रात के लगभग एक बज रहे थे. रंजना को सोफ़े पर बैठा देख वह चौंक गया,‘‘क्या बात है रंजू, तुम्हारी तबियत तो ठीक है न?’’

‘‘हां ठीक है. पर तुम्हें क्या होता जा रहा है?’’

‘‘मुझे!! मुझे क्या हुआ है, मैं तो एकदम ठीक हूं.’’

‘‘आकाश मैं देख रही हूं तुम तो एकदम ही बदल गए हो. इतने व्यस्त हो गए हो कि मैं चाहकर भी तुमसे बात नहीं कर सकती. यूं लगता है, जैसे तुम्हें मेरी कोई क़द्र ही नहीं है.’’

‘‘नहीं रंजना, ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं तुमसे कहीं...कहीं बहुत भीतर से जुड़ा हुआ हूं. तुम्हीं तो मेरी इन्सपिरेशन हो. और ये क्या बेकार की बात लेकर बैठ गई तुम? अच्छा सुनो, कल कॉर्पोरेट वर्ल्ड अवार्ड नाइट है. देखें मेरी मेहनत मुझे किस मुक़ाम तक ले जाती है? शाम को पांच बजे तैयार रहना. साथ चलेंगे.’’

रंजना के मन को किसी भी तरह तसल्ली न मिली. कहीं आकाश मुझे बहला तो नहीं रहे! कहीं कोई और तो नहीं उनकी ज़िंदगी में? जाने कितने ही सवाल रंजना के ज़हन में कौंध रहे थे. अगले दिन फिर वही भागदौड़. ठीक ५ बजे, यंत्रवत-सी रंजना तैयार खड़ी थी. आकाश की गाड़ी का हॉर्न सुनते ही उछल पड़ी वह. दौड़कर  बैठ गई आकाश के बगलवाली सीट पर. आकाश मोबाइल पर फिर व्यस्त थे. हमेशा की तरह.

‘‘हां, ठीक है. हां-हां हो जाएगा. कल ऑफ़िस से भिजवा दूंगा. हां, पेपर्स तैयार हैं.’’ कार गंतव्य की ओर चलने लगी, पर आकाश का फ़ोन लंबे समय के बाद बंद हुआ.

‘‘रंजना, ये कॉर्पोरेट अवॉर्ड नाइट मेरे लिए बहुत मायने रखती है. टॉप 10 में तो हमारी कंपनी है ही, पर यदि ये नंबर एक पर पहुंची तो मेरी मेहनत सफल होगी,’’ फ़ोन रखने के बाद रंजना की ओर देखते हुए आकाश ने कहा.

‘‘उफ़ बिज़नेस-बिज़नेस और बिज़नेस. बस यही है क्या इनके दिमाग़ में. अस्तित्वहीन-सी मैं, भला क्यों बंधी हुई हूं, आकाश से? शायद मेरा यही इकतरफ़ा प्यार मुझे ले डूबेगा. नियत जगह पर पहुंचते ही आकाश फिर अपनी व्यापारी दुनिया में खो गया था और रंजना...? रंजना की निगाहें उस भीड़ में भी चुपचाप आकाश को निहार रही थीं. नियत समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ. आकाश भी रंजना के बगलवाली सीट पर आ बैठा.
राष्ट्रपति का भाषण, सम्मान आदि-आदि औपचारिकताएं शुरू हुईं. फिर अनेक श्रेणियों में उद्घोषणाएं शुरू हुईं. आकाश की कंपनी का नाम कहीं भी सुनने में नहीं आ रहा था. रात गहरा रही थी. अब सिर्फ़ एक ही श्रेणी बाक़ी थी और वह थी- इस साल की सर्वश्रेष्ठ कंपनी की.

आकाश की धड़कनें तेज हो गई. रंजना के सब्र का बांध भी टूटता ऩजर आ रहा था. माइक पर इस आख़िरी अवॉर्ड की उद्घोषणा होने लगी.

‘‘ये आज का अहम् और आख़िरी अवॉर्ड है-टॉप मोस्ट कंपनी ऑफ़ द ईयर. और यह अवॉर्ड जाता है-आकाश रंजन इंटरप्राइज़ेज़ को.’’ तालियों की गड़गड़ाहट के बीच आकाश ने रंजना की ओर देखा, मुस्कुराया और मंच की ओर बढ़ा. माइक पर फिर आवाज़ गूंजी,‘‘मिस्टर आकाश, हम आपसे आपकी सफलता का राज़ सुनना चाहेंगे. क्या आप दो शब्द कहना चाहेंगे?’’

‘‘ज़रूर,’’ कहते हुए आकाश ने माइक थामा. ‘‘गुड ईवनिंग एंड थैंक यू फ्रेंड्स,’’ आकाश की आवाज़ गूंजी. ‘‘इस अवॉर्ड के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया. जीवन के इस महत्वपूर्ण क्षण में मैं आपके साथ सच्चाई शेयर करना चाहता हूं.’’ ऑडिटोरियम में सन्नाटा छा गया. मुस्कुराते हुए उसने कहा,‘‘दरअसल मेरा एक पार्टनर भी है और इस सफलता में उसका बहुत बड़ा हाथ है. मैं उस शख़्स को स्टेज पर बुलाना चाहूंगा, जिसकी मदद के बिना मैं यहां तक कभी नहीं पहुंच पाता. और वह पार्टनर और कोई नहीं, मेरी लाइफ़ पार्टनर है-रंजना.’’ तालियों की गड़गड़ाहट तेज़ हो गई.

‘‘रंजना जी, प्लीज़ स्टेज पर आइए,’’ माइक पर उद्घोषणा हुई.

हतप्रभ-सी रंजना को लगा मानो वह दिवा-स्वप्न देख रही हो. धीरे-धीरे चलती हुए वह आकाश के क़रीब पहुंची. रंजना आज मैं जो कुछ भी हूं, तुम्हारे ही समर्पण और धैर्य की वजह से ही हूं. मेरा टॉप पर पहुंचने का सपना तुम्हारी मदद के बिना कभी पूरा ही नहीं हो पाता. इस अवॉर्ड का हक़दार अकेला मैं ही नहीं हूं, बल्कि तुम भी इसमें बराबर की साझेदार हो,’’ आकाश ने ट्रॉफ़ी रंजना के हाथ में देते हुए कहा.

आकाश का हाथ थामकर स्टेज से उतरती रंजना को ऐसा लग रहा था, मानो वह किसी स्वप्नलोक की रानी हो. अकल्पनीय था यह सब. अकथनीय भी. उसने खुद को चुटकी काटी. पर ये सच था!

अवॉर्ड नाइट ख़त्म होते ही मीडिया ने दोनों को घेर लिया. फ़ोटो पर फ़ोटो क्लिक किए जा रहे थे. प्लीज़ सर, एक और. प्लीज़ मैडम, वन मोर. अब जाने भी दीजिए. आकाश ने रंजान का हाथ थामकर भीड़ को चीरते हुए कहा. लगभग दौड़ते हुए वे गाड़ी में बैठे. रंजना एकटक आकाश को देखती जा रही थी.

आकाश ने रंजना की आंखों में झांका,‘‘तुम बहुत ख़ूबसूरत लग रही हो रंजना. थैंक यू फ़ॉर योर सपोर्ट ऐंड एन्करेंजमेंट. तुम्हारे बिना मैं ये सब नहीं कर पाता. इस भागदौड़ में कुछ समय तक मैं तुम्हारा अकेलापन नहीं बांट पाया, लेकिन अब उसका हर्जाना भरने को तैयार हूं.’’

रंजना का गला अवरुद्ध हो गया.

‘‘ये लो शिमला के टिकट. हम कल ही चलेंगे. सिर्फ़ मैं और तुम पूरे १५ दिन के लिए. नो ऑफ़िस ओके. और हां, वापस आने के बाद तुम हर पल मेरे साथ रहोगी.’’

‘‘ये कैसे संभव है?’’  रंजना ने प्रश्नवाचक नज़रों से देखा

उसके होंठों पर अपनी उंगली रखते हुए चुप रहने का इशारा करते हुए आकाश ने कहा,‘‘रंजना क्या तुम मेरा ऑफ़िस जॉइन करोगी? प्लीज़! अब काम बढ़ जाने पर मुझे किसी अपने के साथ की ज़रूरत होगी. पर हां, यदि तुम भी ऐसा चाहो तो ही. यदि तुम अपनी नौकरी करना चाहोगी तो मैं किसी तरह मैनेज कर ही लूंगा.’’

रंजना के गोरे गालों पर फिर से आंसू लुढ़क आए.

‘‘ये क्या, तुम रो रही हो?’’

‘‘आकाश तुम सचमुच विनर हो. कितनी ग़लत थी मैं. आज फिर जीत लिया तुमने मुझे.’’

बाहर बारिश हो रही थी. पत्तों की धूल धुल चुकी थी. अब सबकुछ साफ़ दिखाई दे रहा था. कार में एफ़एम पर गाना बज रहा था-चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो...

रंजना ने हौले से अपना सिर आकाश के कंधोंपर टिका दिया और सुकून के साथ आंखें मूंद ली. उसे अपने हिस्से का आकाश मिल चुका था.

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