कहानी: दिल, दुआ और ज़िंदगी

लतिका बेहद तेज़ क़दमों से चल नहीं, बल्कि दौड़ रही थी. सुबह के साढ़े दस बज रहे थे. बस पंद्रह मिनट में डॉक्टर बसंती अस्पताल के लिए निकल जाएंगी. उससे पहले उनसे मिलना था. लतिका ने रात के ही कपड़े पहन रखे थे. नीले रंग का पायजामा, हरे रंग की रंग उड़ी स्कीवी, रूखे से बाल ऊपर बन में बंधे, उजड़ा चेहरा रात के आंसुओं से धुला, पैरों में स्लीपर. इतना तेज़ चलने की आदत नहीं थी लतिका को, पर मजबूरी थी. अगर अपने दिल की बात डॉक्टर बसंती को इस समय नहीं बताएगी, तो फट जाएगी.

लतिका और बसंती के घर की दूरी महज डेढ़ किलोमीटर की थी. हांफते हुए लतिका ने बसंती के फ़्लैट की घंटी बजाई, गनीमत थी कि अभी वे अस्पताल के लिए नहीं निकली थीं. बसंती की मेड रूपा ने दरवाज़ा खोला. रूपा लगभग लतिका की ही उम्र की थी और उसी की तरह अनाथालय में पली-बढ़ी.

एक पल को रुक कर लतिका ने कांपती आवाज़ में पुकारा,‘‘डॉक्टर, डॉक्टर बसंती, प्लीज़ कुछ अर्जेंट बताना है.’’
बसंती तैयार हो चुकी थीं. सफ़ेद साड़ी, सफ़ेद स्वेटर और सलीके से बना जूड़ा. बस आंखों में हलका-सा काजल. कितनी भव्य लग रही थीं बसंती.

लतिका को यूं बदहवास-सा देख बसंती घबरा गईं,‘‘ओह, क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है ना?’’

लतिका ने एकदम से आकर उनका हाथ पकड़ लिया,‘‘डॉक्टर, प्लीज़, मुझे आपको कुछ बताना है, मैं पागल हो जाऊंगी...’’

बसंती ने उसे बिठाया,‘‘आराम से लतिका, पहले थोड़ा पानी पी लो.’’

उनके एक इशारे पर रूपा पानी ले आई. अपनी उफ़नती सांसों पर थोड़ा क़ाबू पाने के बाद अचानक लतिका फूट-फूट कर रोने लगी. बसंती की तरफ़ देख कर रोते-रोते बोली,‘‘डॉक्टर, कल रात, कल रात मेरे हज़्बैंड ने...’’

आगे बोल नहीं पाई लतिका. बसंती ने हाथ से थपथपा कर उसे शांत किया,‘‘शांत हो जाओ लतिका. रोओ मत. बताओ मुझे क्या हुआ?’’

‘मेरे हज़्बैंड ने मुझसे कहा कि वो मुझसे तलाक़ लेना चाहते हैं,’’ किसी तरह अपनी बात पूरी कर ही दी लतिका ने.

बसंती का चेहरा क्षण भर को उतरा, लेकिन वह अपने को संभाल कर बोलीं,‘‘कुछ हो गया था क्या तुम दोनों के बीच? झगड़ा?’’

‘‘नहीं डॉक्टर, हमेशा की तरह समीर देर से घर आए. मैंने पूछा इतनी देर क्यों लगा दी तो पलट कर बोले,‘तुमसे मैं तलाक़ लेना...’ मैंने कोई झगड़ा नहीं किया था, पर, पर...’’ लतिका वापस रोने लगी.

‘‘तुमने पूछा नहीं कि क्यों लेना चाहते हैं तलाक़?’’

‘‘क्या मुझे पता नहीं? उन्हें लगता है मैं उनके लायक़ नहीं. अगर मैं उन्हें टोकती हूं कि ड्रिंक करके क्यों घर आए, रात को घर लौटने के बाद फ़ोन पर किससे बात करते हो, घर पर खाना क्यों नहीं खाते, तो उन्हें बुरा लगता है. डॉक्टर, वो मेरे हज़्बैंड हैं, क्या मैं उनसे इतना भी नहीं पूछ सकती? मैं रात भर बैठ कर रोती रही, उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा. यह भी नहीं पूछा कि मैंने खाना खाया कि नहीं. सुबह होते ही घर से निकल गए. मेरी किसी बात का जवाब नहीं दिया. मैं बहुत परेशान हो कर आपके पास आई हूं. अगर मेरी मदर इन ला दुबई नहीं जातीं तो उनको फ़ोन करके बताती. उन्होंने ही मेरी शादी समीर से करवाई थी. वे ही समझती हैं मेरे दिल की बात.’’ एक सांस में अपनी बात कह लतिका बसंती के कंधे पर सिर रख कर एक बार फिर फफक पड़ी.

बसंती ने उसे रोने दिया. लतिका को वे पिछले दो महीने से जानती थीं. वे दोनों कॉलोनी के सुपर मार्केट में मिली थीं. ख़रीददारी के बाद लतिका को पता चला था कि वह अपना पर्स घर में भूल आई है. बसंती से उसकी परेशानी देखी नहीं गई. उन्होंने लतिका का बिल भी चुका दिया.

उसी शाम लतिका बिल के पैसे ले कर उनके दिए पते पर पहुंच गई. लतिका एकदम से खुल गई उनसे. पहली मुलाक़ात में बता दिया कि वह एक अनाथाश्रम में पली-बढ़ी है. पढ़ने-लिखने में कम मन लगता था उसका. बाहरवीं के बाद संस्था ने कहा कि अब उसे अपने गुज़ारे के लिए नौकरी करनी होगी. वह सेल्स गर्ल का काम करने लगी.

पिछले तीन वर्षों से वह शादीशुदा थी. उसके पति समीर एक निजी कंपनी में ऊंचे पद पर काम करते थे. लतिका ने इसरार करके बसंती को अपने घर बुलाया. सप्ताहभर बाद बसंती रात के खाने के लिए लतिका के घर पहुंच भी गईं. वहीं उसकी मुलाकात समीर से हुई. पहली नज़र में उन्हें समीर अच्छा लगा. हालांकि बसंती यह भी ताड़ गई कि समीर और लतिका का रिश्ता सामान्य नहीं है. लतिका ने ढेर सारा खाना बनाया था-कोकोनट चिकन, मटर पुलाव, मटन के कटलेट और दही आलू. समीर ने बहुत कम खाया. बसंती के पूछने पर उसने बताया कि उसे ज़्यादा तला-भुना खाना नहीं पसंद. इस पर लतिका ने तुरंत ताना दे मारा,‘‘मैं तो समीर की तरह उबला खाना खा ही नहीं सकती. मैंने तो अपनी मदर इन लॉ से भी शिकायत कर दी है कि समीर को मेरे हाथ का खाना नहीं पसंद.’’

समीर के चेहरे से अचानक रौनक ग़ायब हो गई. उसी शाम लतिका ने बसंती को बताया कि कैसे एक दिन वह साबुन बेचते-बेचते समीर के घर पहुंच गई थी. समीर की मां अकेली थीं. वे साबुन ख़रीदने को तैयार नहीं थीं, पर जब लतिका ने उनको बताया कि वह अनाथाश्रम से आई है और इस दुनिया में उसका कोई नहीं तो समीर की मां पिघल गईं. उसे साथ बैठा कर चाय पिलाई और यह भी कहा कि वे हर महीने उसीसे साबुन ख़रीदेंगी.

‘‘मैं अक्सर उनके घर पहुंच जाती थी. वे मुझे चाय-नाश्ता खिलातीं. बेहद दयालु हैं मेरी सास. एक दिन जब मेरी शादी की बात छिड़ी तो मैं रोने लगी कि मेरे अनाथाश्रम वाले मेरी शादी एक पैंतालीस साल के विधुर से करवाना चाहते हैं. मेरी सास ने एकदम से कहा,‘मैं अपने बेटे से तुम्हारी शादी करवाऊंगी. वह मेरी बात कभी नहीं टालता,’’’ लतिका ने कस्टर्ड खाते हुए बसंती को चहक कर यह बात बताई थी.

समीर की मां विधवा थीं और बड़ी मुश्क़िल से अपने बेटे को पढ़ाया-लिखाया. एमबीए करने के बाद समीर को दिल्ली में अच्छी नौकरी मिल गई. मां की ख़्वाहिश थी कि अब समीर का घर बस जाना चाहिए.

अगली छुट्टियों में समीर जब मां से मिलने घर आया तो उन्होंने लतिका की बात छेड़ दी. समीर मां की बात टाल नहीं पाया. समीर की मां चाहती थीं कि लतिका आगे पढ़े-लिखे. लतिका ने मना कर दिया. बस, वह उनके कहने पर कुकिंग क्लास गई. उसी का नतीजा था आज का डिनर-बसंती ने मन ही मन सोचा.

बसंती ने कस्टर्ड ख़त्म करने के बाद कहा,‘‘लतिका, खाना तुम वाक़ई अच्छा बनाती हो, पर अगर समीर को तला-भुना नहीं पसंद तो तुम उनके अनुसार क्यों नहीं बनाती?’’

लतिका ने तुरंत कहा,‘‘डॉक्टर, मेरी मदर इन लॉ के हाथ का बना तो समीर सबकुछ खाते हैं. बस मेरे से ही एक्सपेक्ट करते हैं कि मैं इनके अनुसार चलूं. मेरी कोई बात नहीं मानते. मैं कहती हूं घर पर ऑफ़िस का काम मत करो, ये नहीं सुनते. मुझे संडे पिक्चर जाना पसंद है और इन्हें सोना. मेरे साथ शॉपिंग पर भी नहीं चलते. घर का ख़र्च दे कर समझते हैं कि अपनी ड्यूटी पूरी कर ली. मुझे इनसे हर बात मनवाने के लिए अपनी मदर इन लॉ को फ़ोन करना पड़ता है. वो उनसे कहती हैं, कई बार तो डांट भी देती हैं, तब जा कर मुझे बाहर ले जाते हैं.’’

बसंती लतिका का चेहरा देखने लगी. कहीं लतिका भी वही ग़लतियां तो नहीं करने जा रही, जो सालों पहले उन्होंने की थीं? लतिका के चेहरे पर भोलापन उभर आया. ज़िंदगी भर अनाथाश्रम में पली लतिका ने पहली बार घर क्या है यह जाना था. पति का साथ पाया था. अपनी मर्ज़ी से जीने का शायद यही अर्थ समझती थी वो! बसंती का दिल भर आया, वे नैपकिन से हाथ पोंछ उठ गईं.

इसके बाद भी तीन-चार मुलाक़ातें हुई थीं उनकी लतिका से. लतिका हमेशा अपनी धुन में रहती थी. एक-दो बार बसंती ने उसे समझाने की कोशिश भी की, पर लतिका कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी.
यह तो होना ही था-बसंती के दिमाग़ में आया. उन्होंने लंबी सांस ली. सालों पहले भी कुछ ऐसा ही हुआ था एक नव विवाहिता के साथ. फ़र्क़ इतना था कि सास की जगह एक मां अपनी बेटी की शादीशुदा ज़िंदगी में दखल दे रही थी. मां ने कहा-किसी के लिए तुम्हें बदलने की कोई ज़रूरत नहीं. बेटी नहीं बदली, अड़ी रही अपनी ज़िद पर. उसका पति चाहता था कि वह समय के साथ मॉर्डन बने, कुछ अच्छे कपड़े पहने, उसके दोस्तों के आने पर अच्छा खाना बनाए, उसके साथ फ़िल्म देखने चले, पिकनिक पर चले. पर पत्नी मां के सीख में आ कर बस पूजा-पाठ करती, टीवी देखती और स्वेटर बुनती.
एक दिन उसे पता चला कि पति ने दूसरी शादी कर ली है. मां ने कहा कि पत्नी पति पर केस कर दे. इस बार पत्नी की समझ में बात आ गई कि ग़लती किसकी थी. उसने ठान लिया कि वह अब अपने पति को जीने देगी. उसने अपने काम में दिल लगाना शुरू कर दिया.  
बसंती की आंखों की कोर में आंसू की दो बूंदें ठहर गईं. इस बात को पंद्रह साल बीत गए. मां इस दुनिया में नहीं रहीं और उसका पति, जहां भी होगा शायद उसके बिना ख़ुश ही होगा.
बसंती ने लतिका का हाथ कसकर पकड़ लिया, कम से कम इस पत्नी को तो एक मौक़ा मिलना चाहिए अपनी ज़िंदगी जीने और ख़ुश रहने का.
‘‘लतिका, मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम्हें बदलना होगा, पूरी तरह. तुम्हारी शादी एक अच्छे इंसान से हुई है. तुम उससे प्यार करती हो. समीर ने यह जानने के बाद भी तुमसे शादी की कि तुम एक अनाथ थीं. उन्होंने अपनी तरफ़ से काफ़ी एडजस्ट भी किया, जो तुम्हें कभी नज़र नहीं आया. तुम अपने में इतनी मशगूल रही कि तुमको अपनी शादीशुदा जिंदगी संभालनी नहीं आई. तुमने अपने पति को सांस लेने का मौक़ा ही नहीं दिया. रिश्तों को इतना बांध कर रखोगी तो बंधन टूट जाएंगे.’’
लतिका की आंखों में भय की लहर दौड़ गई,‘‘लेकिन डॉक्टर, मैंने ऐसा क्या किया? मैं हर बात अपनी सास को बता कर करती हूं...’’
‘‘बस, तुम अपनी सास से अपनी शादीशुदा ज़िंदगी के बारे में कुछ नहीं कहोगी. तुम्हारी प्रॉब्लम यहीं से शुरू होती है. तुम्हें अपने पति को क़ाबू में रखने का पाठ खुद पढ़ना होगा. इसके अलावा कोई पति यह नहीं चाहता कि पत्नी उस पर चौबीसों घंटे हावी रहे. तुम्हारा अपना भी एक व्यक्तित्व होना चाहिए. इससे तुम्हें भी ताक़त मिलेगी और पति की नज़र में तुम्हारी इज़्ज़त भी बढ़ेगी.’’
लतिका सोच में पड़ गई, फिर दयनीय आवाज़ में बोली,‘‘डॉक्टर, मुझे तो कुछ नहीं आता. मैं अनाथ हूं, कम पढ़ी-लिखी हूं...’’
‘‘अब तुम अनाथ कहां से रह गईं? कब तक तुम इस बात का ढोल पीटकर फ़ायदा उठाओगी? मेरे घर में जो काम करती है ना रूपा, वह भी अनाथ है. तुम भी उस जैसी हो सकती थीं. फ़र्क़ इतना है कि तुम्हें एक अच्छा पति मिला, घर मिला, क्या अब तुम्हारा फ़र्ज़ नहीं कि उसे संभाल कर रखो?’’ बसंती ने लगभग डांटते हुए कहा.
लतिका चुप लगा गई. डाटर सच कह रही हैं. उसके साथ की कई लड़कियों की शादी नहीं हुई. वे छोटा-मोटा काम करके अपना गुज़ारा चला रही हैं. अधिकांश अपनी ज़िंदगी से शिकायत भी नहीं करतीं.
बसंती को अस्पताल जाने की जल्दी थी, उन्होंने कहा,‘‘लतिका, मैं शाम को तुम्हारे घर आऊंगी. तब तक तुम्हारे पास सोचने का समय है. अगर तुम ख़ुद को नहीं बदलोगी तब तो तुम्हारे हज़्बैंड तुम्हारे हाथ से जाएंगे ही, पर अगर बदलोगी तो शायद ना जाएं. चॉइस तुम्हारी है. तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं.’’
लतिका को सोच में डूबा छोड़ बसंती चली गईं.



लतिका घर लौटी. दिमाग़ में हज़ारों सवाल पहेलियों की शक्ल में उमड़-घुमड़ रहे थे. उसने अपने लिए अच्छी-सी चाय बनाई और बालकनी में आ कर बैठ गई. घर का यह कोना उसे बेहद सुकून देता था. उसका अपना घर था ये. कभी सोचा ना था कि उसके पास अपना कहने को एक घर होगा. एक अच्छा पति होगा. जब ये चीज़ें उसे मिल गईं तो उसने क़द्र ही नहीं की. उसके सामने समीर की मां का चेहरा आ गया. बेहद दयालु महिला, जो चाहती थीं कि एक अनाथ लड़की को एक नई ज़िंदगी मिल जाए. जिन्होंने अपने इकलौते लड़के से उसकी शादी करने में एक पल को संकोच ना किया. वे चाहतीं तो समीर के लिए कोई बहुत पढ़ी-लिखी लड़की मिल जाती. लतिका चुपचाप झूले पर टेक लगा कर बैठ गई. कमरे में लगे आईने में उसे अपना प्रतिबिंब नजर आया. एक बदहवास और बेज़ार युवती. लतिका डर गई. उसे बदलना ही होगा, कुछ समीर के लिए और कुछ अपने लिए.
शाम तक लतिका काफ़ी संभल चुकी थी. बसंती अस्पताल से सीधे उसके घर चली आईं. लतिका पीली साड़ी में तरोताज़ा लग रही थी. बसंती ने उसे देख बस बांहों में भर लिया,‘‘मुझे यह देख कर अच्छा लग रहा है लतिका कि तुम अपना घर टूटने से बचाना चाहती हो.’’
उस रात समीर देर से घर लौटे. कल रात के झगड़े के बाद आज सारा दिन उन्होंने अपने लायर के साथ बिताया था. यह उन्हें भी पता था कि शादी के महज़ तीन साल बाद बिना किसी वाजिव कारण के तलाक़ लेना आसान नहीं. उन्हें अपनी मां पर बेहद ग़ुस्सा आ रहा था, जिन्होंने बिना सोचे-समझे एक कम पढ़ी-लिखी लड़की से उनकी शादी करवा दी. समीर को लतिका के अनाथ होने पर कोई हर्ज नहीं था. वे चाहते थे कि उनकी पत्नी उन्हें और उनके काम को समझे. हमेशा उन पर हावी ना रहे. अपना भी कुछ काम करे, पर लतिका से इसकी उम्मीद ही बेकार थी.

दफ़्तर से लौटने के बाद हमेशा की तरह समीर अपने कमरे में नहीं गए. लतिका बालकनी में बैठी थी. समीर ने पाया कि घर में टीवी के बजाय म्यूज़िक सिस्टम पर धीमी आवाज़ में पुराने गाने बज रहे थे. अगरबत्ती की हलकी सुगंध थी, ना कि मिर्च-मसालों की. किचन में अपने लिए कॉफ़ी बनाने गए तो पाया कि एक पतीले में टमाटर का सूप बना रखा है.

एक कप में सूप ले कर समीर बाहर आ गए. लतिका के पास जा कर उन्होंने धीरे से कहा,‘‘सॉरी.’’

लतिका की आंख भर आई, पर वह रोई नहीं. हल्के से मुस्करा कर बोली,‘‘थैंक्यू. कल रात मैं डर गई थी, पर.. शायद मुझे भी इस शॉक की ज़रूरत थी.’’

समीर ने राहत की सांस ली. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि लतिका उनसे झगड़ा क्यों नहीं कर रही?

बहुत धीरे से बदली लतिका. अपने को पहचानने में जरा वक़्त तो लगा, पर जब ख़ुद से पहचान हुई तो उसे अपने नए काम में मज़ा आने लगा. वह डॉक्टर बसंती के कहने पर पास में स्लम के बच्चों को पढ़ाने लगी. शाम को घर आती तो बस इतना वक़्त होता कि कुछ हल्का-फुल्का बना ले. ऐसा खाना, जो समीर को भी पसंद था. इतवार के दिन समीर सोता रहता और वह निकल जाती बच्चों को कभी पढ़ाने तो कभी फ़िल्म दिखाने.

छह महीने बीत गए. सास दुबई में अपनी बहन के पास से लौट आईं. लखनऊ पहुंचते ही उन्होंने लतिका को फ़ोन किया,‘‘क्या बात है लतिका, बड़े दिनों से तुमने मुझे फ़ोन नहीं किया? समीर ठीक तो है? तुमसे झगड़ा तो नहीं करता?’’

लतिका के होठों पर एक भीगी-सी मुस्कान आ गई,‘‘नहीं मम्मा, सब ठीक है. झगड़ा वो कहां करते थे, वो तो मैं करती थी. अब मैंने भी बंद कर दिया.’’

समीर शायद दूर खड़ा यह सुन रहा था और पा रहा था कि लतिका वाक़ई बदलने लगी है और कितनी अच्छी लगने लगी है उन्हें. उस शाम समीर के पुराने दोस्त घर खाने पर आए. लतिका उस समय घर पर नहीं थी. दोस्त ने पूछा,‘‘भाभी कहां है भई? वो कुछ करती हैं?’’

समीर ने गर्व से कहा,‘‘हां, शी इज़ अ सोशियल वर्कर!’’

उसी समय घर की दहलीज़ पर लतिका के पांव पडे़, समीर की तरफ़ देखा तो डॉक्टर बसंती के लिए दिल से दुआ निकली-मेरा घर बच गया, और मुझे क्या चाहिए!

कोई टिप्पणी नहीं:

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();
Blogger द्वारा संचालित.