कहानी: शादी कैंसल
माहि के फ़ोन ने माहौल बदल कर रख दिया. अब दोनों के बीच गहरी चुपी है. पांच मिनट पहले दोनों कैसे चहक रहे थे, चुहलबाज़ी करते हुए नकली झगड़ा ठाने हुए थे.
शादी सत्ताईस को थी. निमंत्रण पत्र तीन को छपकर आ गए. क़रीब एक हज़ार निमंत्रण बांटने, पोस्ट करने में बीस दिन का समय तो लग ही जाता. फिर शादी के और काम भी तो थे. इकलौती बेटी माहि की शादी. अपने से काफ़ी बड़े अरबपतियों के घर में शादी. इसलिए एक भी परिचित छूटना नहीं चाहिए, नहीं तो बाद में बरसों उलाहने सुनने को मिलेंगें. निमंत्रितों की लिस्ट पिछले दो ढाई महीने से बन रही थी.
‘‘आप तो ऐेसा करो, अख़बार में विज्ञापन दे दो, जो भी लोग हमें जानते हों, सब शादी में आ जाएं,’’ माधुरी ने चुटकी ली थी और निमंत्रण के लिफाफे पर नाम लिखते हिमांश ने कलम रोक दी थी.
कुछ देर माधुरी को घूरते रहे फिर बोले,‘‘देखो यह लिस्ट पड़ी है. अब तुम्हीं तय कर दो, इनमें से इनमें से किसे निमंत्रण देना है और किसके नाम काटना है.’’
उठ खड़े हुए वे तभी माधुरी ने आगे झुककर हाथ पकड़ लिया,‘‘अरे-अरे मैं तो मज़ाक कर रही थी.’’
‘‘तो मैं कौन सा सीरियस हूं?’’ हाथ छुड़ाते हुए उन्होंने कहा,‘‘चाय बनाने जा रहा हूं. पिओगी?’’
माधुरी कुछ जवाब देती, तभी माहि का फ़ोन आ गया और जैसा कि नियम था, उन्होंने स्पीकर ऑन कर दिया, ‘‘पापा भुवनेश्वर से बोल रही हूं.’’
‘‘भुवनेश्वर! हैदराबाद से वहां कैसे पहुंच गईं?’’ दोनों एक साथ बोले.
उनके आश्चर्य पर प्रतिक्रिया न करते हुए माहि ने पूछा, ‘‘पापा निमंत्रण बांटना शुरू कर दिया क्या?’’
‘‘नहीं, अभी तो लिख रहा हूं. कल से शुरू करूंगा.’’
‘‘मत बांटना.’’
‘‘क्यों? क्या हुआ?’’ हिमांश और माधुरी ने एक साथ पूछा. जवाब आया,‘‘कुछ नहीं. शादी कैंसल.’’
‘‘अरे! फिर झगड़ा हो गया क्या?’’ माधुरी ने पूछा.
इसका जवाब न देकर फ़ोन काटते हुए माहि ने सूचना दी,‘‘कल सुबह पहुंच रही हूं. वहीं आकर बताऊंगी.’’
क्या हुआ होगा? कारण का अनुमान उनकी समझ से परे थे. बेटी हैदराबाद से भुवनेश्वर कम्पनी के किसी काम से गई होगी क्या? पहले बताया क्यों नहीं? चाय बनी, पी ली. चुप्पी फिर भी नहीं टूटी. ख़ूब बोलने वाले पति-पत्नी के रूप में जिनकी ख्याति थी, वे इतनी देर से चुप थे तो इसका कारण बस इतना था कि दोनों बीते महीनों के घटनाक्रम का विश्लेषण करते उत्तर तलाश रहे थे.
पिछले साल इन्हीं दिनों की तो बात है, सहेली अनुपम की शादी में माहि ने अपने नृत्य से व्यापक के माता पिता और बहन को ऐसा आकर्षित किया कि दस दिन बाद ही तीन लम्बी सी चमचमचमाती कारें उनके साधारण से दिखने वाले बंगले के आगे रुकीं और पूरे चार घंटे की चर्चाओं के बाद रिश्ता पक्का करके ही वापस लौटीं.
व्यापक के पिता ज्ञानेश्वर प्रसाद के कारोबार का देशभर फैलाव था. जयपुर, पूना, बैंगलोर, भुवनेश्वर और भी कई जगह...और व्यापक इन सभी शाखाओं की यात्रा करता. फ़ैक्ट्रियां, शोरूम, मॉल, सर्विस सेन्टर और भी जाने क्या-क्या. आज भी याद आता है, रिश्ता पक्का करने के लिए ज्ञानेश्वर किस तरह पीछे पड़े थे. विनम्र इतने कि पहली ही मुलाक़ात में कह गए,‘‘सच बताएं, हमारा तो नाम भर है, पूंजी तो ज़्यादातर सरकार की है, जनता की है.’’
अपने से बेहद छोटे घराने में रिश्ता करने में उन्हें कोई संकोच नहीं था,‘‘हम लोग तो अभी दस-ग्यारह साल से बढ़े हैं, नहीं तो हम भी आप जैसे ही थे.’’
पिछले साल भर में जब भी मिले बराबरी का सम्मान दिया. कहा भी,‘‘आप अपने आर्थिक स्तर को लेकर ज़रा भी परेशान न हों. अब आप हमारे परिवार का हिस्सा हैं और हमारे जैसे ही हैं.’’
जब भी मिलते या फ़ोन करते माहि की ऐसी तारीफ़ें करते कि हिमांश और माधुरी बादलों पर तैरने लगते. सोचकर हिमांश को पक्का विश्वास हो गया, शादी में रुकावट ज्ञानेश्वरजी की ओर से तो नहीं डाली गई होगी, अन्यथा वे फ़ोन ज़रूर करते.
अनुपमा की शादी के दो महीने बाद सगाई के एक दिन पहले ही माहि और व्यापक दूसरी बार मिले. लेकिन पता लगा इस बीच दोनों के बीच फ़ोन से और नेट से ख़ूब चैटिंग हुई है. कम्पनी से बमुश्क़िल मिली पांच दिनों की छुट्टियों में दोनों लगभग पूरे समय साथ ही रहे. उन्हीं दिनों व्यापक के सामने ही कैसे चहक कर कहा था माहि ने,‘‘मम्मा, इस शादी में एक ही अड़चन है.’’
‘‘क्या अड़चन आ गई तुझे? ‘‘माधुरी ने कृत्रिम नाराज़गी से पूछा और माहि ने कहा था,‘‘माधुरी और हिमांश को मिलाकर आप दोनों ने मेरा नाम माहि रख दिया, लेकिन हम हमारे बच्चे का नाम माव्या या हिव्या रखेंगे तो अच्छा नहीं लगेगा ना?’’
आजकल के बच्चे कैसी-कैसी बातें खुलकर बोल देते हैं? सुनकर शर्मा गई माधुरी. फिर एक महीने बाद माहि ने सूचना दी,‘‘मेरा व्यापक से झगड़ा हो गया. नहीं करनी शादी मुझे.’’
‘‘क्यों, क्या हो गया?’’
‘‘हफ्ते भर से ग़ायब था. न फ़ोन, न मेल का जवाब और अब झूठ बोल रहा है, मुम्बई में बिज़ी था, जबकि वो मुम्बई में था ही नहीं.’’
तीन दिन बाद सुलह हो गई और दो महीने बाद फिर वही, ग़ायब हो जाने, फ़ोन नहीं करने का ग़ुस्सा. फिर दोस्ती.
माधुरी ने समझाना चाहा,‘‘माहि इतना पजेसिव होना ठीक नहीं.’’ लेकिन आज की बात कुछ अलग है माहि ग़ुस्से में नहीं थी. निश्चय से भरा स्वर था उसका. भगवान जाने क्या होगा. शादी में अब दिन ही कितने बाक़ी हैं? माधुरी मन ही मन तारीख़ें गिनने लगी.
‘‘ज्ञानेश्वरजी से बात करूं क्या?’’ लम्बी चुप्पी तोड़कर हिमांश ने पूछा.
शान्त उत्तर मिला,‘‘नहीं, माहि को आ जाने दो.’’
टर्मिनल बिल्डिंग से बाहर आकर कार में बैठते ही माहि ने आदेश दिया,‘‘घर नहीं कहीं होटल में चलकर नाश्ता करते हैं.’’
माधुरी और हिमांश को भी सब कुछ जानने की जल्दी थी. बिना किसी तनाव के माहि ने रहस्योद्घाटन किया,‘‘व्यापक का भुवनेश्वर में एक उद्योगपति के बेटी से अफ़ेयर है, शायद शादी भी हो चुकी है. जब ये एक सप्ताह के लिए वहां जाता है तो वो किसी के फ़ोन अटेन्ड नहीं करने देती.’’ दूसरी सूचना,‘‘व्यापक के मुम्बई दिल्ली आदि में और भी अफ़ेयर हैं.’’ तीसरी सूचना, ‘‘मैंने इस बारे में उसके पापा यानी ज्ञानेश्वरजी से बात की थी.’’
‘‘क्या बोले?’’
‘‘अब इसमें मैं क्या कर सकता हूं? व्यापक अपनी मर्ज़ी का मालिक है. बस सॉरी ही कह सकता हूं. गिव माई रिगार्डस टू योर पैरेंट्स.’’ पूरा क़िस्सा बयान करते हुए माहि बिल्कुल शान्त थी. जैसे जो कुछ हुआ उसका कोई महत्व ही नहीं. जबकि माधुरी और हिमांश को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. निमंत्रण पत्र नहीं बंटे, फिर भी सारे रिश्तेदारों को शादी की तारीख़ तक की जानकारी है. किस-किस को कैफ़ियत देते फिरेंगें? माहि ने एक बार घड़ी देखी, हिमांश से कार की चाबी ली और कहा ‘‘टाइम हो गया. चलो.’’
कार एक बार फिर एयरपोर्ट पहुंच गई. आशंका के साथ माधुरी ने पूछा,‘‘तू वापस जा रही है क्या?’’
‘‘नहीं हैदराबाद की फ़्लाइट पर किसी को रिसीव करना है.’’
पर किसको रिसीव करना है नहीं बताया. वे दोनों तो परिस्थिति का आकलन करने में सदमे से उबरने में ही लगे थे. क्या हो गया? क्या करना है? अब क्या होगा? जो सुना उनकी बरसों से चली आ रही शांत ज़िंगी के लिए भारी उथल-पुथल का सामान था. फ़्लाइट समय पर आ गई.
‘‘ये तापस हैं. कम्पनी में मेरे ही साथ हैं, तीन साल से. तापस मेरे मम्मी-पापा.’’
अभिवादन आदि हुए. हिमांश तापस के आगमन को लेकर अनुमान लगाने का प्रयास कर रहे थे. तभी कार की ओर बढ़ते हुए माहि के क़दम रुके. एक क़दम पीछे चल रहे तापस की ओर मुड़ कर उसने पूछा,‘‘तापस एक बात का हां या ना में जवाब दो.’’
तीनों रुक गए, तापस असमंजस में था. तभी माहि ने गोला दागा,‘‘क्या मुझसे शादी करागे? हां या ना में जवाब दो, नो थर्ड ऑप्शन.’’
तापस और ज़्यादा असमंजस में. कुक्ष क्षण सन्नाटा रहा. तापस को सोचने का समय देते हुए माहि ने कहा,‘‘पापा, ये जनाब तीन साल से मेरा पीछा कर रहे हैं. लाइन मार रहे हैं. मेरी सगाई की ख़बर सुनकर कम्पनी छोड़ने का मन बना लिया था, बड़ी मुश्क़िल से रुके, लेकिन मुंह से एक बार भी आई लव यू जैसा कुछ नहीं कह सके. संकोची है ना!’’
फिर तापस से बोली,‘‘हां, तो तापस जनाब, क्या जवाब है आपका? या फिर मैं कोई दूसरा विकल्प तलाश करूं?’’
‘‘मंज़ूर है, मंज़ूर है!!’’ असमंजस टूट चुका था. हंसी और ठहाकों के बीच उसने आगे कहा,‘‘ सच कहा आपने, बस संकोच ने ही मुझे...’’
बातें शुरू हुईं. हर एक अपनी कहना चाहता था. रात का भोजन करने तक आगे की सारी रूपरेखा बन चुकी थी. तापस के पिता को सिंगापुर फ़ोन किया गया. सारी बात बताई. शादी सत्ताईस को ही होगी. रात भर जागते रहे, माहि और तापस. सुबह निमंत्रण पत्रों का ढेर हिमांश के सामने रखा था. रात भर में सारे लिफ़ाफ़े खोलकर व्यापक और उसके पिता का नाम काट कर तापस और उसके पिता के नाम लिख दिए गए थे. हिमांश ने कटे हुए नाम देखकर कहा,‘‘अरे ऐसा कहीं होता हैं? अभी पांच घन्टे में नए निमंत्रण छप जाएंगे.’’
‘‘नहीं, निमंत्रण पत्र यही बंटेंगे. और बांटते हुए आप सबको बताते जाएंगे व्यापक और ज्ञानेश्वरजी की करतूत, उनका चरित्र. उन्होंने हमारा अपमान किया है, उन्हें इसका एहसास होना चाहिए. कुछ तो अपमान उनका भी होना चाहिए. चाहे एक तिनके के बराबर ही सही.’’ माहि के दृढ़ निश्चय के आगे माधुरी हिमांश और तापस को भी झुकना पड़ा.
जैसा कि माहि का अनुमान था. बदले हुए निमंत्रण पत्र की तीखी प्रतिक्रिया हुई. शायद कुछ महत्वपूर्ण लोगों ने ज्ञानेश्वरजी को फ़ोन किए होंगे. दूसरे दिन ही ज्ञानेश्वर जी का फ़ोन आ गया. पहले माफ़ी मांगी और अंत में यहां तक प्रस्ताव कर दिया गया,‘‘देखिए हिमांशजी! आपको पता नहीं, माहि को हम अपनी बेटी के समान मानते हैं, हम इस शादी का पूरा ख़र्च उठाने को तैयार है. आप बस ऐसे निमंत्रण पत्र वापस ले लीजिए.’’
अपने निश्चय पर अडिग माहि और उसके साथ हिमांश-माधुरी और तापस को अब विचार करना है, ज्ञानेश्वर ऐंड फ़ैमिली को शादी में बुलाया जाए या नहीं. आपकी क्या राय है?
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