कहानी: बह चला वो पल!

जिस बात का डर था, वही हुआ! रति बुआ ने मां को टोक दिया,‘‘निक्की चौबीस की हो गई है. उसकी शादी-वादी करनी है कि नहीं अंजू?’’

अंजू ने बस लंबी सांस भरी और पीछे मुड़ कर निक्की की तरफ एक निगाह भर डाली. निक्की को पता था कि बुआ आते ही सबसे पहले मां को इस बात के लिए टोकेंगी. निक्की सिर झुका कर वहां से चली गई.

अंजू कुछ रुक कर रति को बताने लगी,‘‘क्या बताऊं दीदी, निक्की तो शादी के नाम से घबरा जाती है. कहती है,‘अगर उसकी सास भी मेरी सास जैसी निकलेगी ..’ कहते-कहते एकदम होंठ काट लिए अंजू ने. रति के चेहरे का रंग एकदम से बदल गया. अंजू की सास यानी उसकी मां. वह जानती थी कि मां ने अंजू को कितना परेशान कर रखा था. सालों तक.

रति ने एकदम से अंजू का हाथ थाम लिया,‘‘मुझे पता है अंजू, मां ने तुम्हारे साथ सही नहीं किया. वे किसी की सुनती भी तो नहीं थीं. पर ज़रूरी तो नहीं कि निक्की की सास भी ऐसी ही निकले. यह कोई वजह नहीं कि तुम उसकी शादी ना होने दो.’’

अंजू चुप लगा गई. आज फिर एक बार निक्की से बात करनी होगी. समझाना होगा. पर उसे पता था कि निक्की नहीं मानेगी.

आज से नहीं, सालों पहले निक्की जब आठवीं में पढ़ती थी, उसने घोषणा कर दी थी,‘‘मैं कभी शादी नहीं करूंगी. मैं आपकी तरह घुट-घुट कर नहीं जी सकती.’’

उस दिन सुबह से ही बरसात हो रही थी. अंजू की तबीयत ठीक नहीं थी. किसी तरह उसने सबके लिए नाश्ता बनाया. सास को सबसे पहले खिलाया. नाश्ता अगर ज़रा सा ठंडा हो जाए तो वे प्लेट फेंक देती थीं. चाय में चीनी ज़रा कम-ज़्यादा हो जाए घर सिर पर उठा लेतीं. अंजू सास की तानाशाही चुपचाप बर्दाश्त कर रही थी, लेकिन बड़ी होती निक्की को ये अच्छा नहीं लगता था. वह धीरे से ही सही, पर दादी से कह देती,‘‘दादी, मम्मा की तबीयत ठीक नहीं है. आप उन्हें मत डांटिए.’’

इस बात पर सास ख़ूब ग़ुस्सा होतीं कि निक्की अंजू के सिखाने पर ऐसा बोल रही है. निक्की ने अंजू का दर्द देखा था. सुबह से रात तक घर के कामों में मां को पिसते देखा था.

उस दिन सुबह स्कूल जाते समय निक्की मां से कहती गई,‘‘मम्मा, तुम आराम करो. मैं स्कूल से आ कर कुछ खाने के लिए बना दूंगी. तुम बिस्तर से उठना मत. तुम्हें बुख़ार है.’’

अंजू वाकई बुख़ार में तप रही थी. निक्की स्कूल से लौटी तो उसने देखा कि मां उसी हाल में किचन में खड़ी हो कर खाना बना रही थी. निक्की भड़क उठी,‘‘मम्मा, मैंने तुम्हें मना किया था ना? क्यों बना रही हो इतना सबकुछ?’’

अंजू ने उसे चुप रहने का इशारा किया, लेकिन निक्की को ड्राइंग रूम में दीवान पर लेटी टीवी देखती दादी नजर आ गईं. उसे पता नहीं क्या हुआ, वह ग़ुस्से से दादी के पास पहुंच कर दमक कर बोली,‘‘दादी, एक दिन खाना आप नहीं बना सकतीं क्या? मम्मा की तबीयत कल से ख़राब है. आज सुबह तेज़ बुख़ार था. ऐसे में आपने उन्हें बिस्तर से उठने क्यों दिया?’’

दादी निक्की का लहजा देख चौंक गईं, फिर कुछ खिसिया कर बोलीं,‘‘ऐसी कौन सी आफ़त आ गई? ज़रा-सा बुख़ार ही तो है. ये सब तो काम ना करने का बहाना है.’’

निक्की ने बस उसी दिन तय कर लिया कि वह शादी नहीं करेगी. अगर शादी का मतलब ऐसी सास को झेलना और दिन भर घर में खटना है, तो उसे नहीं करनी शादी. इसके बाद से निक्की ने दादी से बोलना ही छोड़ दिया. बस, मां को समझाती-बुझाती. कभी-कभी अपने साथ पिक्चर दिखाने ले जाती. निक्की हर समय मां के साये सा डोलती, दादी की बातों से बचाती, उनका दिल बहलाती.

मां-बेटी का रिश्ता इतना गहरा था कि निक्की सबकुछ बताया करती थी अंजू को. निक्की ने एम.कॉम. के बाद बैंक में नौकरी शुरू की. उसी दिन से गाहे-बगाहे अंजू उससे कहती रहती,‘‘निक्की, तुझे अब शादी के बारे में सोचना चाहिए.’’

निक्की अड़ जाती,‘‘मम्मा, मैंने कह दिया ना कि मुझे तुम जैसी ज़िंदगी नहीं चाहिए. मुझे रिश्तों में ब्रीदिंग स्पेस चाहिए. देखना, दो-तीन साल बाद मैं इतना कमाने लगूंगी कि तुम्हें एक बड़ा-सा घर ले दूंगी. बस वहां रहेंगे तुम और मैं.’’

निक्की के सपनों के घर में पापा के लिए जगह नहीं थी. निक्की को लगता था कि पापा ने कभी मां का पक्ष नहीं लिया. हमेशा अपनी मां की सुनते और पत्नी को झिड़कते. वह मज़ाक में कहती,‘‘दादी और पापा को साथ रहने दो. देखो कितना मज़ा आएगा. दोनों को चाय तक नहीं बनानी आती!’’

सालभर पहले दादी अचानक दिल के दौरे से चल बसीं. कुछ दिनों बाद ज़िंदगी सामान्य चलने लगी. अंजू को सालों बाद राहत की सांस मिली. सास की बरसी के लिए रति आई थी मायके.

सुबह हवन वगैरह के बाद शाम को जब सब छत पर साथ बैठ कर गपशप करने लगे, तो रति ने निक्की की शादी की बात छेड़ दी.

अंजू के सामने सवाल टंगा रहा. निक्की की शादी कैसे हो? ऐसा नहीं है कि निक्की शादी नहीं करना चाहती. उसके दिमाग़ में सास का जो ख़ौफ़नाक चेहरा है, उसे कैसे हटाए?

सुबह रति को अपने घर लौटना था. अंजू उसके लिए पूड़ियां तल रही थी. अचानक रति ने कहा,‘‘अंजू तुम्हारी सहेली पायल से मिली थी मैं पिछले महीने. तुम्हें बहुत याद कर रही थी. साथ में उसका बेटा करण भी था. अब तो नौकरी करने लगा है वो भी.’’

पायल के नाम से अंजू के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई. पायल और रति एक ही शहर में रहते थे. कॉलेज में साथ-साथ पढ़ते थे पायल और अंजू. उसकी सबसे ख़ास सहेली. पायल साल में एक बार उससे मिलने जरूर आती थी. उसे पता था कि अंजू अपनी सास की वजह से घर छोड़ कर उसके पास नहीं आ सकती. अक्सर टेलीफ़ोन पर बात हो जाया करती. करण निक्की से कुछ महीने बड़ा था. निक्की ने कुछ दिनों पहले ही उसे बताया था कि करण से वह फ़ेसबुक पर चैट कर लेती है. उसने फ्रेंच कट दाढ़ी रख ली है. एक टैटू भी बनवाने की सोच रहा है.
अचानक ही अंजू मुस्करा उठी. अब तक उसे यह ख़्याल क्यों नहीं आया. रति को स्टेशन रवाना कर अंजू कमरे में आ गई और सबसे पहले पायल को फ़ोन लगाया. पायल उत्साह से बताने लगी कि इन दिनों करण के बड़े रिश्ते आ रहे हैं उसके पास.

अंजू ने पूछ लिया,‘‘पायल, तुझे कैसी लड़की चाहिए?’’

पायल चहक कर बोली,‘‘तेरे जैसी तो बिल्कुल नहीं. मुझे दब्बू लड़कियां नहीं पसंद. ऐसी हो जो नौकरी करे और अपना अलग व्यक्तित्व रखे.’’

अंजू का दिल धड़कने लगा,‘‘और करण को?’’

‘‘अरे, उसे तो पत्नी से ज़्यादा एक दोस्त चाहिए. कहता है कि बीवी लाऊंगा तो जल्दी बोर हो जाऊंगा. दोस्त लाऊंगा, तो ज़िंदगी अच्छे से निभ जाएगी. अब तू ही बता अंजू, मैं उसके लिए दोस्त जैसी लड़की कहां तलाशूं?’’
अंजू की सांस रुक गई. वह धीरे से बोली,‘‘पायल, निक्की करण की दोस्त है और तुझे जैसी चाहिए वैसी है भी. नौकरी करती है, अपने दिमाग़ से सोचती है..’’

‘‘तूने तो मार डाला अंजू. मैं आज ही करण से बात करती हूं. करण अक्सर निक्की के बारे में बताता रहता है. दोनों कंप्यूटर में लगे रहते हैं. कुछ दिनों पहले वेब कैम में मैंने निक्की को देखा भी. बाल कटा कर एकदम दीपिका पदुकोन लग रही है. अब तू फ़ोन रख, मैं कल करती हूं तुझे.’’

अंजू ने पायल से रिश्ते की बात कर तो ली, पर उसे आशंका थी पता नहीं निक्की क्या कहेगी? पूरा दिन यह सोचती रही कि वह निक्की को कैसे समझाएगी. पायल उसकी पुरानी दोस्त है. वह अगर निक्की की सास बनेगी, तो उसे अपनी बेटी-सा रखेगी.

उसने तय किया कि बात करण की तरफ से पक्की होने के बाद ही वह निक्की को बताएगी. अगले दिन सुबह-सुबह पायल का फ़ोन आ गया,‘‘अंजू, करण एकदम तैयार है. बता, बात पक्की करने कब आऊं?’’

अंजू ने धीरे से कहा,‘‘पायल, मुझे एक-दो दिन का वक़्त दे. हम सब ख़ुद ही आ जाएंगे वहां मंगनी करने.’’

अंजू अपनी भावनाओं को संभाल सही मौक़े का इंतज़ार करने लगी. शुक्रवार रात को मां-बेटी देर तक टीवी देखते थे. खाना भी आराम से खाते थे. खाना खाने के बाद अंजू निक्की को छत पर ले गई और कुछ ठहर कर बोली,‘‘निक्कू, तुझसे एक बात कहनी है. वो करण है ना मेरी फ्रेंड पायल का बेटा...वो तुझसे शादी करना चाहता है.’’

निक्की के चेहरे पर अजीब से भाव आए. कुछ क्षण लगे उसे बात पचाने में,‘‘पर मम्मा, अचानक.. आइ मीन, उसने कब कहा?’’

‘‘अपनी मां से. पायल मुझसे कह रही थी कि करण को अपनी दोस्त से शादी करनी है और वो है निक्की.’’
निक्की चुप लगा गई. अंजू उसके पास चली आई और उसका सिर अपनी गोद में रख सहलाती हुई बोली,‘‘देख बेटी, मुझे पता है कि तू शादी से किसलिए डरती है, लेकिन पायल तो मेरी दोस्त है. तू उसे मौसी कहती है. करण भी तेरा देखाभाला है. तू वहां ख़ुश रहेगी निक्की. पायल यदि तेरी सास बन जाए, तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है?’’

निक्की आंखें बंद कर मां की गोद में लेटी रही. करण उसे भी पसंद है. इन दिनों लगभग रोज़ ही दोनों चैट करते हैं. पायल मौसी भी उसे पसंद है. थोड़ा ज़्यादा बोलती हैं, पर प्यार करती हैं उसे.

निक्की ने धीरे से आंखें खोलीं. अंजू एकटक उसे ही देख रही थी. निक्की ने पलकें झपकाईं और बस इतना कहा,‘‘जैसा तुम ठीक समझो मम्मा.’’
बस सब कुछ तुरंत-फुरत तय हो गया. निक्की के पापा को भी इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी. अगले सप्ताह सगाई तय हो गई. सगाई के दिन सुबह पायल ने नाश्ते के समय एकाएक कहा,‘‘देख अंजू, तुझे पता है मैं साफ़-साफ़ बात करती हूं. करण की शादी को ले कर मैं बहुत एक्साइटेड हूं. सालों से मैंने सोच रखा है कि इसकी शादी में यह करूंगी, वो करूंगी. बस, मुझे वैसी ही करनी है शादी. ख़ूब धूमधाम से. बस तू मुझे मत टोकना.’’

अंजू हंस कर चुप हो गई. पायल की तो आदत है बढ़ा-चढ़ा कर बोलने की. पर पायल ने उसके सामने पूरी फ़ेहरिस्त रख दी- शादी में हज़ार मेहमान आएंगे, खाने-पीने का इंतज़ाम कैसा होगा, मिलनी में क्या दिया जाएगा, निक्की और करण किस तरह के कपड़े पहनेंगे और भी बहुत कुछ.

अंजू ने मन ही मन सोचा-पायल, तेरी सारी हसरत पूरी करूंगी, पर मेरी बेटी को ख़ुश रखना. इस बीच अंजू ने देख लिया था कि करण निक्की के पीछे बुरी तरह लट्टू है. है तो वो मम्माज़ बॉय, लेकिन निक्की के रूप में उसे एक दोस्त मिल गई है.

अंजू ने पायल के कहे अनुसार बेटी की धूमधाम से शादी की. निक्की को शादी के एक दिन पहले तक ना जाने कैसा डर था कि मां का पल्लू थाम ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी,‘‘मम्मा, सब ठीक होगा ना? पता नहीं क्यों कभी-कभी पायल मौसी का बिहेवियर देख अजीब लगता है. मम्मा, सुनो.. मैं तुम नहीं हूं. अगर मेरे साथ ऐसा कुछ हुआ ना, तो मैं एक दिन भी वहां नहीं रहूंगी. लौट कर चली आऊंगी तुम्हारे पास. तुम आने दोगी ना?’

अंजू ने भावुक हो कर बेटी को गले लगा लिया,‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा मेरी बच्ची. तुम बहुत ख़ुश रहोगी वहां.’’
फिर धीरे से जोड़ दिया,‘‘तुम मुझसे अलग थोड़े ही होने जा रही हो? यह तेरा घर है, मैं हमेशा रहूंगी तेरे लिए.’’
इतना बड़ा आश्वासन. निक्की के सिर से ज़रा-सा बोझ कम हुआ. शादी की गहमागहमी के तुरंत बाद निक्की और करण पंद्रह दिनों के लिए हनीमून पर मॉरीशस निकल गए.

निक्की ने अपनी शादी की लंबी छुट्टी ली थी. सोच रखा था कि महीने भर बाद वह अपने ऑफ़िस में ट्रांसफर के लिए एप्लीकेशन देगी. हनीमून के पंद्रह दिनों में करण ने हर तरह से उसका ख़्याल रखा. वाक़ई वह बेहद प्यारा दोस्त था, जिससे अब वो बेतहाशा प्रेम करने लगी थी. ससुराल आने के नाम पर ना जाने क्यों अब उसे डर नहीं लग रहा था.

एयरपोर्ट पर उन्हें लेने करण के डैडी आए थे. बड़े मिलनसार थे करण के डैडी. घर पहुंचते ही जैसे ही करण और निक्की पायल के पैर छूने आगे बढ़े, पायल ने टोक दिया,‘‘यह क्या निक्की, तुमने कैसे कपड़े पहन रखे हैं? ऐसे कपड़े यहां नहीं चलेंगे. जाओ और जा कर ढंग की सलवार-कमीज़ पहन कर आओ.’’

निक्की सन्न रह गई. यात्रा के हिसाब से उसने कैप्री पहन रखी थी और हमेशा पायल के सामने वह ऐसी ही पोशाकें पहनती आई थी. पर बिना बहस किए वह चुपचाप कपड़े बदल कर आ गई. दोनों लंबी यात्रा से थके हुए थे. करण तो आते ही सोने चला गया, पर पायल निक्की को किचन में ले आई,‘‘देखो निक्की, रात घर में मेहमान आ रहे हैं खाने पर. तुम ऐसा करो एक तरी वाली और एक सूखी सब्ज़ी बना दो. बाक़ी मैं देख लूंगी.’’

निक्की स्तब्ध रह गई. मौसी ऐसा कैसे कर सकती हैं? करण को आराम करने दे रही हैं और उससे काम करवा रही हैं? निक्की की आंखों में आंसू आ गए. फ्रिज से सब्ज़ियां निकाल वो काम करने लगी. घंटे भर बाद पायल किचन में आई और कड़ाही में पक रही सब्ज़ी चखने लगी.

निक्की उस समय आलू काटने में व्यस्त थी. अचानक पायल की ज़ोरदार आवाज़ आई,‘‘तुम तो बिलकुल अनाड़ी हो भई. अंजू ने तो ठग लिया मुझे!’’

चक्क... चाकू की तीखी धार उंगली को काटती चली गई. यह आवाज़ तो जानी-पहचानी लग रही है. यह तो वही आवाज़ है, जिससे वो ज़िंदगी भर बचना चाहती थी... दादी की कर्कश आवाज़, मां की सास की आवाज़, उसकी सास की आवाज़.

निक्की की ज़ोरदार रुलाई फूट पड़ी. उंगली कटने का दर्द था या ज़िंदगी में ठगे जाने की टीस... उसका रोना सुन करण दौड़ा चला आया. उंगली पर तुरंत बर्फ़ के टुकड़े रखकर उसे कमरे में ले आया. निक्की ने उससे कुछ भी नहीं कहा, बस रोती रही, रोती रही.

रात मेहमान आए, पर निक्की कमरे से नहीं निकली. पायल ने कुछ सख़्ती से कहा,‘‘इतनी चोट तो नहीं लगी. भई हमें नहीं पता था कि तुम इतनी कोमल हो.’’

करण ने पलट कर कहा,‘‘मां, निक्की का मन नहीं है तो जाने दो ना. वैसे भी आपने आज मेहमानों को क्यों बुलाया? इतना थके हुए हैं हम दोनों. आप जा कर अटैंड करिए. मैं निक्की को बाहर कुछ खिला लाऊंगा.’’

पायल को करण का यह कहना पसंद नहीं आया,‘‘तुम इसकी तरफ़दारी क्यों कर रहे हो? यह दो दिन के लिए थोड़े ही ना आई है. यहीं रहेगी ज़िंदगी भर. फिर घर का जो क़ायदा है, वो तो निभाना पड़ेगा ना!’

निक्की ने बस पायल की तरफ़ नज़र उठा कर देखा और आंखें बंद कर लेट गई. वह कुछ कहेगी नहीं, बस करेगी!

अगले दिन शाम को जब निक्की किट बैग उठाए अपने घर पहुंची, तो अंजू का चेहरा आश्चर्य से खुला रह गया. क्या हो गया उसकी लाड़ली बेटी को? निक्की अंजू के गले लग कर फूट-फूट कर रो पड़ी,‘‘मम्मा, आप वाली कहानी एक बार फिर दोहराई जा रही है. मैं सह नहीं पाऊंगी, मुझे वहां नहीं रहना.’’

अंजू कुछ समझी, कुछ नहीं. धीरे-धीरे चाय की चुस्कियों के बीच निक्की ने मां को सब कुछ बताया. रुक कर बोली,‘‘मम्मा, मैं समझौते से नहीं घबराती. मैं कुछ भी कर सकती हूं उन सबके लिए, पर ऐसे नहीं मम्मा. आप कहती थीं कि वो आपकी फ्रेंड हैं, वो कभी एक सास जैसा व्यवहार नहीं करेंगी, पर सास ही बन गईं ना वो भी.’’
अंजू के दिल में ग़ुबार सा बैठ गया. पायल से उसे यह उम्मीद नहीं थी, पर शायद ठीक कह रही थी उसकी बेटी, हर औरत के अंदर एक सास विराजमान होती है.

निक्की बस करण के मोबाइल पर अपने घर छोड़ने का एसएमएस छोड़ आई थी. अंजू को पता था कि उसके समझाने का निक्की पर कोई असर नहीं होगा.

अगले दिन निक्की सुबह ऐसे उठी, जैसे कुछ हुआ ही ना हो. वह हमेशा की तरह बैंक जाने के लिए तैयार हो गई, सादे कपड़ों में. दरवाज़ा खोल वह घर से निकलने को ही थी कि तूफ़ान की तरह धड़धड़ाते हुए करण अंदर आ गया. निक्की को बांहों में भरकर वो वहीं सोफ़े पर बैठ गया,‘‘तुम मुझे इस तरह छोड़ कर कैसे जा सकती हो? तुम्हें क्या लगा, तुमसे अलग हो कर मैं जी लूंगा?’’

निक्की की आंखें भर आईं,‘‘करण, तुम्हारे बिना मैं भी जी नहीं सकती, पर तुम्हें पता है मैं अपनी मां की तरह सास को..’’

‘पागल हो तुम निक्की. तुम्हें क्या लगता है मैं अपनी मां को सास बनने दूंगा और तुम्हें टिपिकल बहू? अरे, किसे चाहिए टिपिकल बहू? मैंने आज सुबह ही मां को समझा दिया है. अगर फिर भी उन्हें सास बने रहने का मन है तो हम दोनों अलग रह लेंगे, पर प्लीज़ मुझे छोड़ कर मत जाओ.’’

करण और निक्की एक-दूसरे से लिपट कर रोने लगे. अंजू वहीं खड़ी थी. उसकी आंखें भर आईं. उसे इस बात की तसल्ली थी कि इस दौर में सास बदली हैं या नहीं, यह तो नहीं पता, पर हां, पति बदल गए हैं!

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