कहानी: सही फ़ैसला

‘‘पति-पत्नी को कम्पैनियन की तरह रहना चाहिए. मैं चाहूंगा, मेरी पत्नी आत्मनिर्भर बने सोसायटी में उसकी एक अलग पहचान हो. वह अपने प्रोफ़ेशन में बहुत आगे बढ़े. प्रिया, मैं उन पुरुषों में से नहीं हूं, जो अपने अहं की खातिर अपनी पत्नी को अपने से आगे बढ़ता नहीं देख सकते.’’

‘‘लेकिन राहुल, पति-पत्नी के बीच इतनी अंडरस्टैंडिंग तभी सम्भव है, जब वे दोनों एक-दूसरे को पहले से जानते हों, समझते हों. अरेंज्ड मैरिज में ऐसा कहां संभव है?’’

ये विचार हैं, राहुल और प्रिया के जो पूना के सिटी मॉल में बैठे लंच कर रहे थे. दोनों एक ही एज ग्रुप के थे. प्रोफ़ेशन से दोनों आईटी इंजीनियर थे. इस कारण जल्दी ही आपस में घुलमिल गए. राहुल एक सप्ताह पूर्व एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में पूना आया था और प्रिया के घर ठहरा था. दरअसल राहुल और प्रिया दोनों के पिता कॉलेज के समय से अच्छे दोस्त थे. उस दिन संडे था. सुबह प्रिया के पापा कमलजीत ने प्रिया से कहा कि वह राहुल को पूना घुमा लाए. दो तीन ख़ास-ख़ास जगहें देखने के बाद वे दोनों सिटी मॉल में लंच करने आ गए थे. शाम को दोनों मूवी देखकर घर लौट आए. अगले दिन राहुल दिल्ली वापिस लौट गया.

दो-एक दिन बाद, जब शाम प्रिया ऑफ़िस से घर लौटी तो चाय पीते हुए कमलजीत बोले,‘‘प्रिया, राहुल तुम्हें कैसा लगा?’’ ‘‘बहुत ख़ुशमिजाज़ और समझदार लड़का है पापा, लेकिन आप मुझसे ये क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘प्रिया, राहुल के पापा और मैं चाहते हैं कि हमारी दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाए. तुम्हारा विवाह राहुल के साथ हो जाए.’’

 ‘‘नहीं पापा, मैं राहुल के साथ शादी नहीं कर सकती,’’ प्रिया तनिक उत्तेजित होकर बोली. पापा ने ग़ौर से उसका चेहरा देखा और बोले,‘‘प्रिया, राहुल का परिवार मेरा देखाभाला है. वर्षों से हम एक-दूसरे को जानते हैं. तुम वहां बहुत सुखी रहोगी.’’

‘‘वो तो ठीक है पापा, लेकिन...’’ प्रिया ने असहाय भाव से मम्मी की तरफ़ देखा.

मम्मी जैसे कुछ भांपते हुए बोलीं,‘‘प्रिया, कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम किसी और को चाहती हो? अगर ऐसा है तो बताओ हमें. आख़िर यह तुम्हारी ज़िंदगी का सवाल है.’’

‘‘मम्मी, वो अजय है न, मेरा फ्रेंड,’’ पापा के सामने बताते हुए प्रिया को संकोच हो रहा था.

‘‘अजय, वो अमेरिका चला गया था न?’’ पापा ने पूछा.

‘‘हां पापा, वो कुछ दिनों बाद एक माह के लिए इंडिया आ रहा है. तभी वह आप दोनों से बात करेगा.’’

‘‘ठीक है प्रिया, अगर तुम अजय से विवाह करना चाहती हो तो हमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जो भी करो बहुत सोच विचार कर करना.’’

रात में प्रिया ने अजय को फ़ोन पर बताया,‘‘मम्मी-पापा ने हमारे विवाह की स्वीकृति दे दी है.’’

अजय चहकता हुआ बोला,‘‘प्रिया, मैं जल्द से जल्द विवाह करके तुम्हें अपने साथ अमेरिका ले आना चाहता हूं. बस अब और इंतज़ार नहीं होता.’’

प्रिया को लगा, उसके कानों में शहनाइयां बज उठी हों. उसने मुस्कुराकर फ़ोन रख दिया और बिस्तर पर जा लेटी.
उसकी कहानी किसी फ़िल्मी कहानी जैसी थी, जिसमें शामिल था-पहले झगड़ा, फिर दोस्ती और अंत में प्यार... बीटेक के शुरू के दो साल उसकी अजय से बिल्कुल नहीं बनी. अजय और वह कॉम्पेटिटर थे. फ़र्स्ट पोज़ीशन को लेकर दोनों में मुक़ाबला रहता था और इस मुक़ाबले में वह हमेशा जीतती थी. अजय कितनी भी मेहनत कर ले, प्रिया से आगे नहीं बढ़ पाता था. यही वजह थी, उस झगड़े की जो प्रिया और अजय के बीच चल रहा था. आए दिन वह प्रिया पर कटाक्ष करता रहता था और फिर एक दिन आश्चर्यजनक घटना घटी, जिससे उनकी क्लास के साथी भी हैरान रह गए. उस दिन प्रिया लाइब्रेरी की सीढ़ियां उतर रही थी. अपनी सारी चिढ़ भुलाकर अचानक अजय उसके क़रीब आकर बोला,‘‘प्रिया, मैं अपने पिछले व्यवहार के लिए बेहद शर्मिंदा हूं और तुम्हारी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहता हूं. क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी?’’ प्रिया एकटक उसे देखती रह गई. अचानक हुए इस हृदय परिवर्तन का क्या मतलब हो सकता है? उसके मन में विचार कौंधा. अजय के चेहरे पर दोस्ती के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे इसलिए उसने भी उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती परवान चढ़ने लगी. अजय प्रिया के निकट आने का प्रयास करने लगा था. धीरे-धीरे प्रिया भी उसके हंसमुख स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व की ओर खिंचाव महसूस कर रही थी.

बीटेक करने के बाद उस समय ये नज़दीकियां और बढ़ गईं, जब अजय और प्रिया की नौकरी एक ही कम्पनी में लग गई. एक ही प्रोजेक्ट में काम करने के कारण सुबह से शाम तक दोनों साथ रहते. ऑफ़िस के बाद कैन्टीन में कॉफ़ी पीने का उनका रोज़ का नियम था. इसी दौरान एक दिन अजय ने प्रिया को प्रोपोज़ किया. ख़ुशहाल ज़िंदगी जीने के लिए आपसी अंडरस्टैडिंग बहुत ज़रूरी है और अजय के साथ वह हमेशा खुश रहेगी, यही सोचकर प्रिया ने अजय को स्वीकृति दे दी. उन दिनों वह बहुत ख़ुश रहती थी. दिनभर ऑफ़िस में अजय का साथ मिलता और रात में फ़ोन पर अजय से बातें करती. कुछ दिनों बाद कंपनी की ओर से दोनों का एच 1 वीज़ा भी लग गया था. अब जल्द ही दोनों को अमेरिका जाने का चांस मिल सकता था.

देखते ही देखते छ: माह बीत गए. एक दिन प्रोजेक्ट मैनेजर ने प्रिया को अपने केबिन में बुलाकर कहा,‘‘प्रिया, तुम्हारे लिए गुड न्यूज़ है. कंपनी तुम्हें दो साल के लिए न्यू यॉर्क भेज रही है. एक माह के अंदर तुम्हारा टिकट आ जाएगा. अपनी तैयारी रखना.’’ प्रिया बेहद प्रसन्न थी. उसने तुरंत यह ख़बर अजय को सुनाई. अजय ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा,‘‘तुम बेफ़िक्र होकर जाओ प्रिया. कुछ दिनों बाद कंपनी मुझे भी न्यू यॉर्क भेज देगी. उसके बाद ही हम दोनों शादी करेंगे.’’

पर एक माह बाद कंपनी ने प्रिया को नहीं, बल्कि अजय को अमेरिका का टिकट दिया. प्रिया को हैरत तो हुई, लेकिन अजय निराश होने के साथ-साथ क्रोधित हो उठा,‘‘ऐसा कैसे कर सकते हैं, एक एम्पलॉई के साथ ऑफ़िस वाले? जब तुमसे कह दिया था फिर मेरा टिकट कैसे आ गया? मैं अभी बात करता हूं, मैनेजर से,’’ ग़ुस्से में वह अपनी सीट से उठा, पर प्रिया ने उसे रोक लिया. वह बोली,‘‘छोड़ो अजय, बेकार में तुम्हारा इम्प्रेशन ख़राब होगा. तुम्हें भेजें या मुझे, बात तो एक ही है. तुम आराम से जाओ.’’

अजय न्यू यॉर्क चला गया. शुरू में तो प्रिया ने उसे बहुत मिस किया, लेकिन जल्द ही उसने स्वयं को ऑफ़िस और घर के कामों में व्यस्त कर लिया. उसे उम्मीद थी, जल्द ही कंपनी उसे भी न्यू यॉर्क भेज देगी और जैसा कि अजय ने कहा था, उसके बाद वे दोनों शादी करेंगे...लेकिन अब अजय के विचार बदल गए थे. अब वह प्रतीक्षा करने को तैयार नहीं था. वह फ़ोन पर प्रिया से कहता, यहां आकर मुझे पता चला कि मेरे लिए तुमसे दूर रहना कितना कठिन है. तुम अपना जॉब छोड़ दो और शादी करके डिपेन्डैंन्ट वीज़ा पर मेरे साथ न्यूयॉर्क आ जाओ.’’
प्रिया मायूस थी. डिपेन्डैन्ट वीज़ा पर जाने से वह अमेरिका में नौकरी नहीं कर पाएगी, लेकिन उसके लिए करियर से ज़्यादा महत्वपूर्ण थी, उसकी और अजय की निजी ज़िंदगी. अब उसे बस अजय के इंडिया आने की प्रतीक्षा थी. एक माह के लिए आकर शादी करके वह उसे अमेरिका ले जानेवाला था. आनेवाले सुनहरे दिनों की कल्पना करते करते प्रिया सो गई. अगली सुबह वह ऑफ़िस चली गई.

अगले बीस दिन उसकी ज़िंदगी के बहुत अहम् दिन साबित हुए फिर उसने विवाह करने का फ़ैसला कर लिया. इस ख़बर से उसके मम्मी-पापा बहुत ख़ुश थे. घर में ज़ोर-शोर से तैयारियां शुरू हो गई थीं. कुछ दिनों बाद अजय भी न्यू यॉर्क से इंडिया आ गया. वह प्रिया से मिलने उसके ऑफ़िस पहुंचा तो पता चला, प्रिया छुट्टी पर है और उसका विवाह दिल्ली के किसी राहुल से होने वाला है. अजय के पैरों तले ज़मीन खिसक गई. इतनी बड़ी बात और उसे कानोंकान ख़बर नहीं! हालांकि पिछले बीस दिनों से उसकी प्रिया से कोई बात नहीं हुई थी. न तो वह उसका फ़ोन रिसीव कर रही थी और न ही उसके ईमेल का जबाब दे रही थी. इस बात से वह परेशान ज़रूर था, लेकिन उसकी किसी और से शादी हो रही होगी, यह बात उसकी कल्पना से परे थी. प्रिया ने तो उसे बताया था कि उसके मम्मी पापा विवाह के लिए सहमत हैं. इसी वजह से तो वह इंडिया आया था, ताकि घर वालों से विवाह की बात कर सके फिर ऐसा क्या हो गया? वह कोई कमज़ोर लड़की भी नहीं थी जो मां-बाप के दबाव में आकर विवाह कर ले. इस बात को वह जितना सोच रहा था, उतना ही उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था. दुख और क्रोध की मिली-जुली अनुभूति से उसकी टांगें कांप रही थीं. प्यार में धोखा खाने का एहसास उसे मथे जा रहा था. वह उठा और प्रिया से इन सब प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए बोझिल क़दमों से प्रिया के घर की ओर चल दिया.
प्रिया के घर में शादी की चहल-पहल थी. वह रूम में बैठी अपने कज़िन्स से गप्पों में मशगूल थी. अजय को आया देख वे सब उठकर अंदर चले गए. प्रिया औपचारिक लहजे में बोली,‘‘आओ अजय, कैसे हो? न्यू यॉर्क से कब आए?’’

उसकी बात का जबाब न देकर अजय क्रोध से बोला,‘‘यह मैं क्या सुन रहा हूं प्रिया, तुम किसी राहुल से शादी कर रही हो?’’ ‘‘तुमने ठीक सुना है अजय.’’ प्रिया शांत स्वर में बोली.

अजय चिढ़ गया. ‘‘ज़िंदगी का इतना बड़ा फ़ैसला ले लिया और मुझसे बात करना भी ज़रूरी नहीं समझा? हमारा प्यार क्या मज़ाक था, जस्ट टाइम पास? पिछले बीस दिनों से मैं तुमसे बात करने का प्रयास कर रहा था, लेकिन तुमने मुझसे न तो बात की, न मेरे मेल्स को रिप्लाई किया...तुम तो कह रही थीं, मम्मी-पापा हमारे विवाह के लिए सहमत हैं...’’

‘‘वे दोनों तो सहमत थे, बस मैंने ही अपना फ़ैसला बदल दिया,’’ ऐसा कहते हुए प्रिया की आवाज़ शांत, लेकिन आत्मविश्वास से भरी हुई थी.

‘‘क्यों किया तुमने ऐसा? सच कहो किसी दबाव में आकर तो नहीं किया?’’ अधीर हो आया था अजय.

‘‘नहीं अजय, मैंने यह फ़ैसला अपनी ख़ुशी से और बहुत सोच समझकर लिया है.’’

‘‘क्या मैं इसकी वजह जान सकता हूं? आख़िर मेरा कुसूर क्या है?’’

 प्रिया के चेहरे पर व्यंगात्मक मुस्कान फैल गई. वह अजय की आंखों में झांकते हुए बोली,‘‘ऑफ़िस ने मेरी जगह तुम्हें न्यू यॉर्क कैसे भेजा था?’’

‘‘मुझे क्या पता? क्या हमारे प्रोजेक्ट मैनेजर विपिन ने तुमसे कुछ कहा?’’ अजय का चेहरा फक पड़ गया था.
‘‘विपिन ने मुझसे कुछ नहीं कहा. इसे संयोग ही समझो. जिस रात मैंने तुमसे फ़ोन पर बात की थी, उसके अगली सुबह मैं ऑफ़िस पहुंची तो देखा, मेरा लैपटॉप ख़राब है. मैंने यह बात विपिन को बताई. चूंकि मैं और तुम एक ही प्रोजेक्ट पर काम करते हैं इसलिए विपिन ने मुझे तुम्हारा ऑफ़िशियल लैपटॉप काम करने को दे दिया. उसके चैटलॉग में मैंने जो कुछ देखा, उसे देख मैं सकते में आ गई. तुमने अपने चेहरे पर जो यह मासूमियत का झूठा आवरण ओढ़ा हुआ है, उसके पीछे का छल मुझे साफ़ नज़र आ रहा था. मेरे बदले जब कंपनी ने तुम्हारा टिकट भेजा तो नाराज़गी की कितनी ख़ूबसूरत ऐक्टिंग की थी तुमने.’’

‘‘आख़िर ऐसा क्या देख लिया तुमने जो मुझपर इतने इल्ज़ाम लगा रही हो?’’ अजय उखड़े स्वर में बोला.

 ‘‘अपनी धूर्तता की दास्तान मुझसे सुनना चाहते हो तो सुनो चैटिंग के दौरान तुमने विपिन को लिखा कि प्रिया से पहले मुझे

न्यू यॉर्क भेज दिया जाए, क्योंकि मैं और प्रिया शादी करने वाले हैं. मैं नहीं चाहता कि प्रिया प्रोफ़ैशनल लाइफ़ में मुझसे आगे बढ़े. उसे मुझसे पहले प्रमोशन मिले और हमारे वैवाहिक जीवन में अहं का टकराव हो. इतना ही नहीं अजय, तुमने तो यहां तक लिखा था कि लड़की होने के नाते विवाह के बाद प्रिया की घरेलू ज़िम्मेदारियां बढ़ जाएंगी और ऑफ़िस में कार्यक्षमता कम हो जाएगी. विपिन और तुम फ्रेंड हो. अत: वह तुम्हारे तर्क से सहमत हो गया और उसने तुम्हें न्यू यॉर्क भिजवा दिया.’’

अजय कुछ नहीं बोल पाया. प्रिया ठंडी सांस भरकर पुन: बोली,‘‘तुमने मेरे करियर को समाप्त करने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन नियति ने मेरा साथ दिया. तुम्हीं कहो क्या इस सच को जानकर मुझे तुमसे शादी करनी चाहिए? अजय, पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक होते हैं, कॉम्पेटिटर नहीं. तुम तो कालेज के समय से ही मुझे अपना प्रतिद्वंद्वी समझते रहे हो. अजय मैं तुम पर बहुत विश्वास करती थी, पर मैं इतनी भावुक भी नहीं हूं कि प्यार के नाम पर अपनी ज़िंदगी का ग़लत फ़ैसला कर बैठूं. मुझे शुरू से ही ऐसा जीवनसाथी चाहिए था, जो मुझे समझे, मेरी भावनाओं की, योग्यताओं की कद्र करे. मुझे अपना दोस्त समझे, प्रतिद्वंद्वी नहीं और राहुल ऐसे ही हैं. मैं आश्वस्त हूं कि मैंने सही फ़ैसला लिया है.’’ प्रिया के आत्मविश्वास भरे शब्दों ने अजय को निरुत्तर कर दिया. वह उठा और थके क़दमों से बाहर की ओर चल दिया. प्रिया भी ख़ुशी-ख़ुशी अपने आनेवाले जीवन की तैयारियों में व्यस्त हो गई.  

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