कहानी: मुंबई की कुड़ी

मम्मी की प्यार भरी सलाहतें और आंटियों की गुदगुदाती हिदायतों के बारे में सोचकर चेहरे पर मुस्कान तैरी ही थी कि अचानक भीड़ ने उसे प्लैटफ़ॉर्म पर उतार दिया. हकबकाया, पर दूसरे ही पल एक अर्थपूर्ण मुस्कान होंठों पर आ गई. ‘मुंबई की कुड़ियों से बचकर रहना.’ नीतू आंटी की यह सलाह इस भागती-दौड़ती मुंबई में कितनी ग़ैरज़रूरी थी. यहां कि कुड़ियां जिस तरह भीड़ को परे धकेलते हुए तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं, मनोहर कहानियां छाप आंटियां देखतीं तो ऐसा न सोचतीं. हां, ये कुड़ियां पहेली हैं, पर उस तरह की नहीं, जैसी वे आंटियां सोचती हैं. और तो और मम्मी को भी सोचवा रखा है.

ख़ैर शीशे की इमारत में बनी ऑफ़िस पहुंचकर उसे मुंबई बाक़ी शहरों जैसी ही लगी. राहुल भैया से मिलना है उसे, दिनभर चलता रहा दिमाग़ में. रहने का ठीक-ठाक ठिकाना दिला देंगे. कंपनी का अकोमेडेशन अच्छा है, पर अपना घर तो अपना ही होता है. फिर चाहे किराए का ही क्यों न हो. ‘क्यों न टैक्सी ले ली जाए?’ ख़ुद से बातें करते हुए. यूं ही टैक्सी स्टैंड की तरफ़ क़दम बढ़ चले.

‘‘भैया... अंधेरी चलोगे?’’

खुले बोनट को बंद हुए ड्राइवर ने इशारे से बैठने कहा.

ख़ुद को टैक्सी में सेट किया और हाथों में मोबाइल को. स्क्रीन पर नज़र गई. व्हाट्स ऐप पर ख़ैर ख़बर लेनेवाले 21 कॉन्टेक्ट्स के मैसेजेस चमक रहे थे.  कैसी है मुंबई? व्हाट्स अप ब्रो? मुंबई इज़ कूल ना! उसने जानबूझकर मम्मी की उन फ्रेंड्स के मैसेजेस को इग्नोर किया, जिनके कंटेंट उसे पता थे.

इधर दरवाज़ा बंद होने के साथ आवाज़ आई,‘‘अंधेरी में किधर जाना है सर?’’

व्हाट्स ऐप पर रिप्लाई देते-देते एक अक्षर का जवाब,‘‘लोखंडवाला.’’

तक़रीबन 15 मिनट बाद ज़ोर से झटका लगा. उसकी नज़रें मिरर पर पड़तीं उससे पहले जवाब मिला,‘‘सॉरी सर, बारिश में सड़कों की हालत तो आप जानते ही हैं.’’

‘‘जी, भैया... नहीं...’’ उसने ग़ौर किया, ड्राइविंग सीट पर बैठा नहीं बैठी है.

‘‘मैं जानती हूं कि आपके दिमाग़ में क्या बातें चल रहीं. लड़की और टैक्सी! क्यों यही सोच रहे न?’’

लाख कोशिश करने के बावजूद चेहरे पर क्वेस्चन मार्क तो आ ही गया. मिरर में उसने देखा गियर बदलते समय उसके चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान थी.

फ़ोन की घंटी बजी.

‘‘हां मम्मी, सब ठीक है. आज पहला दिन था, जल्दी निकला. हां, राहुल भैया के यहां ही जा रहा हूं.’’

तभी आगे की सीट से आवाज़ आई,‘‘जुहू सर्कल से लूं कि हाइवे से?’’

वह कुछ बोलता कि मम्मी कानों में बोल पड़ीं,‘‘क्या साथ में कुड़ी है तेरे?’’

शॉर्ट में समझाने की कोशिश बेकार. और उधर वो स्टेरिंग थामे मुस्कुराती जा रही थी.

धीमी आवाज़ में,‘‘मम्मी मैं किसी लड़की के साथ पार्टी मनाने नहीं जा रहा. जिसने सवाल पूछा वह टैक्सी चला रही है? मैं बाद में फ़ोन करता हूं.’’

लेकिन टिपिकल भारतीय मांएं और वो भी जिनकी आंटियों द्वारा हाल ही में कान भराई हुई हो इतनी जल्दी मान लें तो... फ़ोन पर ही ज़िद्द शुरू,‘‘मुझे बात करा दे तू.’’

समझाना बेकार. आख़िरकार झिझकते हुए नीली शर्टवाली उन मोहतरमा से गुज़ारिश करनी पड़ी,‘‘प्लीज़, टैक्सी थोड़ी साइड में ले लीजिए. मेरी मम्मी आपसे बात करना चाहती हैं.’’

उसके बाद उसे सिर्फ़ वनलाइनर्स ही सुनाई दे दे रहे थे.

‘‘जी मैं टैक्सी चलाती हूं.’’
‘‘...’’
‘‘बांद्रे में ऑफ़िस है.’’
‘‘...’’
‘‘सुबह नौ से रात नौ तक चलाती हूं.’’
‘‘...’’
‘‘हम्म...’’

उसने फ़ोन थमाया तो शुक्र है मम्मी फ़ोन रख चुकी थीं. वह कुछ समय पहले कूल डूड बनने की कोशिश कर रहा था, पर अब चुपचाप दाएं-बाएं की बिल्डिंग्स देख रहा था. आख़िर अल्टिमेट बेइज़्ज़ती इसी को कहते हैं.

तभी झटके से टैक्सी रुकी.

‘‘पहुंच गए?’’

‘‘हां, कोर्ट पहुंच गए.’‘ उसने मज़े लेते हुए कहा.

‘‘मतलब?’’  

‘‘जी भगाकर शादियां तो कोर्ट में ही होती हैं न,’’ और ठठकार हंस पड़ी. और उसके नर्वसाए चेहरे पर एक झेंपी-सी मुस्कान ज़बर्दस्ती खिंच आई.

टैक्सी से उतरकर पैसे चुकाए और मुंबई की कुड़ी ने खुले पैसे दिए और हवा हो गई.

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