कहानी: मध्यांतर

सीमा ने खिड़की का परदा खोला तो आसपास की इमारतों से छन कर आती रोशनी ने कमरे में उजाले के चहबच्चे बना दिए. थोड़ी देर उसने खिड़की से बाहर झांका और फिर परदे को सरका दिया. कमरे में पहले की तरह अंधेरे ने पैर फैला लिए. उसने अंधेरे में ही अंदाज़ा लगाया कि पूरब आधा बिस्तर घेरे औंधा सो रहा होगा. उसके दोनों हाथ फैलकर ऐसे लग रहे होंगे जैसे उसे किसी ने सलीब पर टांग दिया हो. यह तीसरी रात थी जब सीमा को नींद नहीं आ रही थी. उसने पूरब को कहा भी था पर उसने अपनी आदत के अनुसार अख़बार में ही आंखें गड़ाए हुए कह दिया था,‘इतनी जल्दी सो जाती हो तो आधी रात को तो नींद खुलेगी ही. नौ बजे से ही तो ऊंघने लगती हो.’ सीमा का मन किया चिल्लाकर कहे,‘सुबह साढ़े चार बजे से जागती भी तो हूं. 

ठीक सवा छह बजे कौस्तुभ की स्कूल बस आ जाती है. उससे पहले उसे उठाकर तैयार करना, टिफ़िन बनाना, तुम्हारा-मेरा नाश्ता, लंच पैक करना और फिर रात के खाने की थोड़ी बहुत तैयारी. तुम एक भी काम में हाथ बंटाते हो?’ पर यह सोचकर रह गई कि अगर वह यह बात बोलेगी तो कम से कम पांच हज़ारवीं बार यह दोहराएगी. और फ़ायदा क्या? पूरब आंखें तिरछी कर देखेगा, तिरछे होंठों से मुस्कराएगा और फिर किसी ऐसे बड़े ख़र्च के बारे में इतनी विनम्रता से बताएगा कि वह लड़ ही नहीं पाएगी. एक बार ऐसा ताना मारने पर उसने प्यार से सिर्फ़ इतना ही कहा था,‘वो एलसीडी टीवी तुम्हें 42 इंच वाला ही चाहिए था न? कल देखकर आया हूं. इस वीकएंड पक्का ले आऊंगा.’ और सच में उसी वीकएंड पर उसका मनपसंद टीवी दीवार पर टंगा था. कौस्तुभ ने उछल-उछलकर अपने दोस्तों को नया टीवी देखने बुलाया था. पूरब कई बार ऐसा कर चुका है. वह जानती है उसकी अकेले की कमाई में तो वह ऐसे लग्ज़री फ़्लैट में किराए पर भी नहीं रह सकती.

उसका मन किया पूरब को झिंझोड़कर जगा दे और कहे उसे नींद नहीं आ रही है. फिर उसे याद आया पूरब को शाम की फ़्लाइट से बैंगलोर जाना है, किसी कॉन्फ्रेंस में. यदि वह उसे अभी जगा देगी तो वह शाम तक चिड़चिड़ाता रहेगा. उसने बेमन से तकिया पास सरकाया और आंखें मूंद कर लेट गई. बंद पलकों से पानी की दो बूंदे कोर से बह गईं. उसका गला घुटने लगा और उसे लगा वह ज़ोर से रो ले तो शायद ठीक लगने लगे. तभी पूरब कुनमुनाया और अपना पैर सीमा के पेट पर रख दिया. पूरब की यह पुरानी आदत है. सीमा ने उसका पैर धीरे से हटाया और खिसक गई.

सुबह सीमा का सिर तड़क रहा था. उसे नींद आ रही थी पर दफ़्तर जाना बहुत ज़रूरी था. भागदौड़ में वह भूल ही गई कि पूरब को कहना है आज कौस्तुभ की फ़ीस भरने की आख़िरी तारीख़ है. अब अगर फ़ोन कर कहेगी तो अव्वल तो पूरब फ़ोन उठाएगा नहीं और मैसेज करेगा, ‘इन मीटिंग’ और उठाएगा भी तो ज़ोर से डांट कर कहेगा,‘आख़िरी दिन ही तुम्हें हर बात क्यों याद आती है?’ चार्टर्ड बस में बैठे हुए उसने हिसाब लगाया यदि वह अपने अकाउंट से कौस्तुभ की सोलह हज़ार फ़ीस भर दे तो उसके अकाउंट में कितना पैसा बचेगा. सारा गणित लगाने के बाद उसने बहुत हिम्मत के साथ मैसेज किया,‘बिज़ी?’ पलटकर पूरब का फ़ोन आ गया. सीमा को इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी. उसने बहुत डर के साथ कहा, आज कौस्तुभ की फ़ीस भरने की आख़िरी तारीख़ है. उम्मीद के विपरीत पूरब ने उससे स्कूल का अकाउंट नंबर और कौस्तुभ का स्टूडेंट रजिस्ट्रेशन नंबर एसएमएस करने को कह दिया. सीमा ने राहत की सांस ली कि पूरब आज उस पर चिड़चिड़ाया नहीं.

दफ़्तर में दिनभर कम्प्यूटर के आगे आंखें झपकती रहीं और सीमा के हाथ चलते रहे. पूरब का बैग वह पूरी तरह तैयार कर के आई थी. वह दफ़्तर से निकल रही थी कि पूरब का मैसेज आया,‘ऐट एयरपोर्ट.’ सीमा ने घड़ी देखी, पूरब कभी लेट नहीं होता. अभी फ़्लाइट में बहुत देर है, फिर भी वह एयरपोर्ट पहुंच गया है. अगर वह होती तो अभी तक घर पर बैठी टैक्सी वाले का नंबर ही लगा रही होती. पूरब को हर काम वक़्त पर करने की आदत है. उसका कोई भी काम अधूरा नहीं रहता, न वह काम टालता है. पूरब चाहता है कि सीमा भी वैसी ही रहे, एकदम चुस्त. वक़्त पर काम करनेवाली. हर सामान क़रीने से रखनेवाली. 

जो सामान जहां से उठाए उसे वहीं पर रखे. और सीमा है कि यदि वह कोई सामान कहीं रख दे तो वह ख़ुद ही दो दिन उस सामान को खोजती रहती है. जब बिल्कुल बाहर निकलने को होते हैं तो सीमा अपने सूट का मैचिंग दुपट्टा खोज रही होती है. उसकी चूडि़यां, कंघा कभी जगह पर नहीं रहते. रसोई में रोज़ पंद्रह मिनट-आधा घंटा वह कोई न कोई सामान खोजने में ही लगाती है. दफ़्तर जाते वक़्त कभी उसे घर की चाबियां नहीं मिलतीं, कभी वह इतनी देर कर देती है कि जो चप्पल या सैंडिल उसे बाहर दिखती है वही पहन कर चल देती है.

वह पूरब से बिलकुल उलट है. पूरब के कपड़ों पर कभी सलवटें नहीं आतीं. उसे जो पहनना होता है वह नहाने से पहले ही कपड़े पलंग पर निकाल कर रख देता है. और एक वह है, सोचती कुछ और है, अलमारी से निकालती कुछ और है और उसके बाद भी बहुत देर लगाकर कुछ और ही पहनकर जाती है. वह जब भी दफ़्तर जाती है, उसकी अलमारी के आधे कपड़े पलंग पर बिखरे रहते हैं. इसके बावजूद वह कई बार रंग उड़े कपड़े पहनकर दफ़्तर चली जाती है. पूरब उसकी इन्हीं बातों से सबसे ज़्याद चिढ़ता है.

सीमा लौटी तो लगभग अंधेरा हो गया था. कौस्तुभ रीना आंटी के यहां खेल रहा था. लिफ़्ट से बाहर आते ही रीना आंटी का घर है. दरवाज़ा खुला था. उसने कौस्तुभ को आवाज़ दी और घर का ताला खोलने लगी. अंदर पहुंचकर उसने देखा जो अख़बार वह सुबह नाश्ता करते वक़्त फैलाकर गई थी, वह पूरब ने समेट कर रख दिया है. रसोई के सिंक में एक प्लेट और दूध का गिलास था यानी पूरब ने कौस्तुभ को दूध दिया था. बेडरूम में भी उसके कपड़े बिस्तर पर ठीक से रखे थे. उसने पूरब को फ़ोन मिलाया. फ़ोन स्विच ऑफ़ था यानी पूरब की फ़्लाइट टेकऑफ़ कर चुकी है. उसे याद आया पूरब जब उसके घर मिलने आया था तो उसने कुछ नहीं पूछा था. 

बिल्कुल आम अरेंज्ड मैरिज थी उनकी. शुरुआत में पूरब को उसकी इन्हीं लापरवाहियों पर हंसी आ जाती थी. पर जैसे-जैसे शादी के साल बीतते गए उसकी झल्लाहट बढ़ती गई. सीमा को लगने लगा था कि अब पूरब उससे प्यार नहीं करता. सीमा कुछ भी बोले वह झल्ला उठता था. पिछले कई दिनों से यही हो रहा है. सीमा का मन रोने का हो रहा था. उसे वह तमाम बातें याद आईं जो पहले पूरब उससे प्यार में कहा करता था. अब तो बस उसका मुंह लड़ाई के लिए ही खुलता है. जब देखो कहता है दफ़्तर में बहुत काम है और तुम भी पका देती हो.

कौस्तुभ दौड़कर आया और सोफ़े पर चढ़कर टीवी खोल लिया. टीवी की आवाज़ बहुत तेज़ थी. रीना आंटी के यहां से ही शायद वह चिप्स का पैकेट लाया था. उसने खाया और वहीं सोफ़े के नीचे फेंक दिया. अभी पूरब होता तो इसी बात पर कौस्तुभ की पिटाई हो जाती. वह चिल्लाकर कहता,‘कुछ नहीं सिखाया इसे तुमने. चिप्स खा कर पैकेट तक डस्टबिन में नहीं डालता. इतना बड़ा हो गया है. अपनी तरह बना दो लापरवाह.’ उसने पैकेट उठाया और कौस्तुभ के हाथ से रिमोट ले कर आवाज़ कम कर दी. उसने कौस्तुभ को पैकेट हाथ में दिया और इशारे से उसे डस्टबिन में डालने को कहा. कौस्तुभ पहले तो तुनकने के मूड में था. फिर उठा और पैकेट डस्टबिन में डाल आया. उसने कमरे पर नज़र डाली सब बहुत ख़ाली-ख़ाली लग रहा था. उस पल उसे लगा अब पूरब से तलाक़ ले कर अलग रहना चाहिए. दोनों के बीच प्यार की कोई गुंजाइश बाक़ी नहीं रही. 

वह जब भी अकेली होती है ऐसा ही कुछ सोचती रहती है. उसने बाहर जाकर टीवी बंद किया और कौस्तुभ को होमवर्क करने की ताक़ीद कर दी. रोज़ तो ये काम पूरब का होता है. उसने सोचा यदि वह पूरब से तलाक़ले ले तो क्या कौस्तुभ की इतने अच्छे-से देखरेख कर पाएगी? वह तो पूरब से ही डरता है. उसकी तो वह एक बात नहीं सुनता. कौस्तुभ ने होमवर्क में आनाकानी की तो उसने थोड़ी सख़्ती से कहा. कौस्तुभ पढ़ने बैठ गया है. आज जब वह अकेली है, उसने हर सामान जगह पर रखा और बेडरूम में आकर अलमारी ठीक करने लगी. फालतू सामान बाहर करते हुए उसे अचानक मोबाइल का डब्बा मिला. उसे याद आया कि कैसे पूरब ने उसके जन्मदिन पर दफ़्तर के पते पर मोबाइल भिजवाया था. नया स्मार्टफ़ोन. 

उसके दफ़्तर में तब किसी के पास स्मार्टफ़ोन नहीं था. अचानक आए इस मोबाइल को दफ़्तरवालों ने कितने चाव से देखा था. तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी. पूरब का फ़ोन था. वह कह रहा था,‘ठीक से पहुंच गया हूं. बहुत याद आ रही है. सोने से पहले ठीक से दरवाज़ा बंद कर लेना. और हां मैंने मेहता जी से बात कर ली है, एक फ़ुल टाइम मेड के लिए. तुमको बहुत काम हो जाता है.’ सीमा सुने जा रही है. पूरब कह रहा है. ख़ूब सारी बातें. प्यार की बातें. सीमा को लगा वह हमेशा से ही पूरब को ग़लत समझती है. वह रो रही है. पूरब चिंता में पूछ रहा है क्या हुआ? चिंता कर रहा है. रोने का कारण पूछ रहा है. पूरब कह रहा है, बस कल शाम तक तो आ ही रहा हूं.

सीमा को लगा पूरब उससे सिर्फ़ नाराज़ रहता है, नफ़रत नहीं करता. वह कुछ ज़्यादा ही सोचने लगी है. उसने रसोई में जाकर दूध गर्म करने के लिए पैकेट खोला. पहली बार उसने पैकेट खोलकर कैंची कील पर लटकाई, जहां पूरब लटकाता है और गैस लाइटर को जगह पर रख दिया. सीमा को लगा सारे शीशमहल धुल गए हैं. कल की सुबह बहुत निखरी हुई होगी.

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