कहानी: मनभावन
‘‘ईश्वर में आस्था है?’’ कॉस्मेटिक कंपनी के मालिक डीके साब ने प्रश्न किया और सिद्धार्थ ने उत्तर दिया,‘‘जी बिल्कुल है. भगवान राम और शिव का भक्त हूं.’’
चकित था सिद्धार्थ, मनभावन फ़ेस पाउडर और अन्य कॉस्मेटिक्स बनानेवाली कंपनी में केमिस्ट की नौकरी के लिए ईश्वर में आस्था का होना न होना कहां काम आएगा? डीके ने अगला प्रश्न किया,‘‘चमत्कारों में विश्वास करते हैं?’’
‘‘कह नहीं सकता, पर कुछ घटनाएं ऐसी हैं, जिन्हें इत्तफ़ाक भी कह सकते हैं, चमत्कार भी,’’ कहते ही सिद्धार्थ को याद आई निकिता से उसकी पहली भेंट, जिसे वे दोनों चमत्कार से कम नहीं मानते. लिफ़्ट में फंस गए थे दोनों. ख़ुद भयभीत होते हुए भी उसने निकिता को इतनी हिम्मत और भरोसा दिलाया कि दोनों अच्छे दोस्त बनकर लिफ़्ट से बाहर आए. भला हुआ जो डीके ने और कुछ न पूछते हुए उसे चुन लिया, बल्कि तत्काल ड्यूटी जॉइन करवा ली.
दो दिन में पता चल गया कि आस्था और चमत्कार में विश्वास का प्रश्न क्यों किया गया था. कंपनी का सबसे ज़्यादा बिकनेवाला उत्पाद था, मनभावन फ़ेस पाउडर. पाउडर के ख़ूबसूरत पैकेट पर कंपनी दावा करती थी-प्रेमी रूठ गया है, प्रेमिका बात नहीं कर रही है, पत्नी अगर नाराज़ है, पति प्यार करना भूल गया है, बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड का झुकाव किसी दूसरी की ओर है तो उसे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए, दोस्त को मानने के लिए मनभावन फ़ेस पाउडर आज़माएं. हिमालय बाबा के आशीर्वाद से निर्मित फ़ेस पाउडर आपके प्रिय को शर्तिया आपकी ओर आकर्षित करेगा.
‘‘ऐसा कैसे संभव है? यह तो धोखा है.’’ सैम्पल की जांच करते हुए सिद्धार्थ ख़ुद से कहता. इच्छा होती, डीके साब से पूछे. तभी एक दिन बातों-बातों में सहकर्मी अनुराधा ने सावधान कर दिया,‘‘डीके साब से इस बारे में मत पूछना, एकदम से भड़क जाते हैं. बाहर भी कर देते हैं. अपने को तो अपनी नौकरी से मतलब.’’
फिर कुछ देर बाद कहा,‘‘लेकिन कुछ बात ज़रूर है, पाउडर से लोगों को फ़ायदा होता है. पत्र आते रहते हैं.’’
सिद्धार्थ के पास विरोध को दबाकर चुप रहने के सिवा कोई विकल्प न था.
ये लोकल रेडियो वाले भी कैसा बे-टाइम कमाल करते हैं. सुबह का समय, सिद्धार्थ सोकर उठा. चाय बनाई. दो घूंट गले के नीचे उतरे होंगे और लोकल रेडियो ने गाना लगाया,‘‘प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है. गाना पॉज़िटिव और रोमैंटिक है ना, लेकिन उसी का असर था कि चाय का कप ख़ाली करते-करते सिद्धार्थ की पलकें भीग आईं. भावुक क़िस्म का नहीं है सिद्धार्थ, पर संवेदनशील तो है. कप नीचे रखा और आंखें पोंछते, ख़ुद से कहा,‘‘गधे हो यार तुम. प्यार की कोई केमेस्ट्री नहीं होती. अगर होती है तो बाप के भौतिकशास्त्र, रोटी-कपड़े के अर्थशास्त्र, मजबूरियों के दर्शनशास्त्र के आगे दम तोड़ देती है. हिम्मत नहीं है तुममें. ऐसे रोना ख़ुद को बेवकूफ़ सिद्ध करने के सिवा कुछ नहीं है.’’
पिता से विद्रोह कर सिद्धार्थ शहर आ गया. आगे पढ़ने की इच्छा दो कारणों से थी. पहला यह कि एमएससी कर ली तो कहीं रिसर्च असिस्टेंट लग जाएगा. आगे चलकर ऐसा कुछ कर सकेगा कि दुनिया में नाम हो. और दूसरा लेकिन ख़ास कारण यह कि कॉलेज जारी रहेगा तो निकिता से मिलता रहेगा. पिछले दो साल में हिम्मत नहीं कर पाया, लेकिन इस साल ज़रूर कह पाएगा,‘आई लव यू!’
ऐसे कुछ प्रसंग याद आते, जो एहसास देते कि निकिता को भी इस ‘आई लव यू’ का इंतज़ार है. याद आया छुट्टियों से पहले नम हो गई थीं निकिता की आंखें, वह प्यार नहीं तो क्या था? जो भी हो, अब एक-तरफ़ा नहीं रहने देगा प्यार को. लेकिन पिताजी ने कह दिया,‘‘अब मदद नहीं कर सकूंगा. चाहता हूं, तुम लौट आओ और मेरे काम में मदद करो.’’
शहर लौटते ही उसने फ़्लैट छोड़ कमरा किराए पर लिया. नौकरी की तलाश शुरू की. ज़रा-से पैसे शेष थे इसलिए कॉस्मेटिक कंपनी में केमिस्ट की नौकरी स्वीकार कर ली. नौकरी की अच्छाई यह है कि ड्यूटी दो से आठ बजे तक की है यानी कॉलेज जा सकेगा और त्रासदी यह कि सिद्धार्थ को आभास नहीं था कि जिस निकिता की याद में उसका दिल धड़कता है, जिसके प्यार की दीवानगी उसकी पलकें भिगो जाती हैं, वही निकिता उस कॉस्मेटिक कंपनी के मालिक डीके साब की बेटी है.
नौकरी करते सात दिन हो गए. इस बीच निकिता को याद करते-करते रोज़ वह सोचता, कॉलेज खुलने पर निकिता को यह सब पता चलेगा तो कैसे रिऐक्ट करेगी? सातवें दिन नए बने मॉल का सैम्पल चेक करते समय, नज़र खिड़की से बाहर चली गई. एक चमत्कार की तरह उसकी निकिता कार से उतर रही थी. यह यहां कैसे? सिद्धार्थ के दिल ने उछलकर पूछा और निकिता ने आगे बढ़कर डीके के गले से झूमते हुए ज़ोर से कहा,‘‘पापा, रीयली बहुत याद आती रही आपकी.’’
कॉलेज में जिस सहपाठी से प्यार हो, उसी के पिता के संस्थान में छोटी-सी नौकरी करने का दर्द भुक्तभोगी ही समझ सकते हैं. मन किया, नौकरी छोड़ दे, लेकिन इस्तीफ़े का अर्थ था, पिता के पास वापसी और निकिता को भूल जाना, आगे पढ़ाई पर भी पूर्ण विराम. पांच-सात दिन दूसरी नौकरी भी तलाशी, लेकिन कहीं से सकारात्मक उत्तर नहीं मिला. इन दिनों में निकिता से चार बार सामना हुआ. बस, पहली बार मिलने पर उसने बड़े उत्साह से कहा था, ‘‘अरे, तुम यहां?’’
इस ‘अरे’ और ‘तुम यहां’ ने सिद्ध किया कि आग दोनों तरफ़ है. क्योंकि प्यार का फ़ायर ब्रिगेड तब सबसे सुविधाजनक स्थिति में होता है, जब आग दोनों तरफ़ बराबर लगी हो. लेकिन बाद की मुलाक़ातों में उसने ‘हेलो’ तक नहीं की. पूरी तरह मालिक की बेटी जैसा व्यवहार. उसने ख़ुद ने जब बात करने का प्रयास किया तो मद्धिम स्वर में उत्तर मिला,‘‘कॉलेज में बात करेंगे.’’
इस त्रासदी और जले पर छिड़के गए इस नमक के कारण ही रेडियो पर रोमैंटिक गीत सुन सिद्धार्थ की आंखों में आंसू भर आए. आंसुओं ने इस्तीफ़ा लिख देने का इरादा पक्का कर दिया, अब इसे भी आप चमत्कार कह सकते हैं कि तलाशने पर इस्तीफ़ा लिखने लायक काग़ज़ कमरे में नहीं मिला और वह काम पर पहुंच गया.
कंपनी में अभी उसके सिवा कोई नहीं आया था. डीके साब पूजा के कमरे से निकल रहे थे. उन्होंने आरती की थाली उसकी ओर बढ़ा दी. सिद्धार्थ ने श्रद्धा से ज्योति को प्रणाम किया. प्रसाद लिया और डीके साब से नज़र मिलते ही कहा,‘‘बहुत दिनों से कुछ पूछना चाहता था.’’
‘‘पूछो,’’ डीके ने कहा और बोले,‘‘मनभावन पाउडर के बारे में तो नहीं पूछना है?’’
सिद्धार्थ ने स्वीकृति में केवल सिर हिलाया और तैयार हो गया कि अब डीके उसे बाहर का रास्ता दिखा देंगे. लेकिन उन्होंने कहा,‘‘मुझे आश्चर्य हो रहा था, केमिस्ट होकर भी तुमने यह सवाल नहीं किया. देखो, इतने दिनों में इतना तो जान गए होगे कि हमारी कंपनी में कोई बेईमानी, कोई चालाकी नहीं होती.’’
‘‘जी, ठीक कह रहे हैं आप,’’ सिद्धार्थ ने कहा, लेकिन मन में सोचा, जब मनभावन फ़ेस पाउडर के रूप में बड़ी चालाकी कर रहे हैं तो छोटी चालाकी की क्या ज़रूरत है?
और अपने अगले कथन में सारी सीमाओं को तोड़ते हुए डीके ने कहा,‘‘यह जो मनभावन फ़ेस पाउडर है ना, यह आस्था का चमत्कार है. पूज्य स्वामीजी ने ख़ुद बनाकर दिया है. शायद तुम्हें विश्वास नहीं होगा, लेकिन तुम ख़ुद देख लेना, स्वामीजी कभी-भी पूजाघर में प्रकट हो जाया करते हैं.’’
डीके ने स्वामीजी की तस्वीर को नमन किया और आगे कहा,‘‘हर बार पाउडर का नया लॉट बनता है तो हम उसे पूजाघर में रख देते हैं. स्वामीजी द्वारा बनाए गए पाउडर का कुछ अंश उसमें मिलाते हैं और पूरे लॉट में रूठों को मनाने और आकर्षित करने का प्रभाव पैदा हो जाता है.’’
सिद्धार्थ जानता था, आस्था और विश्वास को तर्क से नहीं काट सकते इसलिए चमत्कारों पर बहस करने की इच्छा मन में दबा ली. लैब की ओर क़दम बढ़ाए ही थे कि डीके ने नई ज़िम्मेदारी डाल दी. कहा,‘‘सुनो, पूजाघर का काम भी तुम समझ लो. निकिता चली जाती है तो ये लोग सारा लॉट यहां-वहां रख देते हैं.’’
वर्जित प्रश्न करने पर नौकरी से छुट्टी होने के बजाय सिद्धार्थ का काम भी बढ़ गया और उसके प्रति डीके का विश्वास भी. शायद वेतन भी बढ़ जाए, लेकिन किस क़ीमत पर? प्यार की क़ीमत पर, निकिता की बेरुख़ी की क़ीमत पर तो उसे मंजूर नहीं. उसे लगा इस्तीफ़ा देने का निर्णय ग़लत नहीं है, जो भी होगा देखा जाएगा. निश्चय के साथ क़दम लैब की ओर बढ़े. कार रुकने की आवाज़ सुनाई दी. निकिता आ गई. और कोई दिन होता तो सिद्धार्थ ने एक बार तो मुड़कर देखा होता, चाहे फिर निकिता की बेरुख़ी थोड़ा और दुखी कर जाती.
‘‘ओफ़!’’ लैब में क़दम रखते ही मुंह से निकला. अनुराधा नहीं आई थी इसलिए कल शाम अटेंडेंट्स ने नए लॉट के खोखे यहां-वहां रख दिए थे. और कोई दिन होता तो वह काम में भिड़ चुका होता, लेकिन आज टेबल पर पहुंच, उसने दृढ़ निश्चय के साथ इस्तीफ़े के लिए काग़ज़-कलम तलाशे. यहां भी कलम थी, लेकिन काग़ज़? सिद्धार्थ ने देखा, स्टेशनरी की आलमारी के आगे भी पाउडर के खोखों की थप्पी रखी है. वह उठा, ऊपरवाला खोखा हटा रहा था कि चीख सुनाई दी.
चीख तो चीख होती है. सब छोड़, वह भागा. चीख पूजाघर से आई थी. अंदर घुसते ही देखा, मिक्सिंग के लिए पाउडर के खोखे यहां भी लैब की ही तरह बेतरतीब रखे हैं. फिर देखा, कुछ खोखों का पाउडर फ़र्श पर बिखर गया है और... और फिर देखा, उसी पाउडर में से एक आकृति उभर रही है. चमत्कार, जैसा कि डीके साब ने कहा था. तो क्या स्वामीजी इसी प्रकार से प्रकट होते हैं? भरोसा करते हुए स्वामीजी के चरण स्पर्श के लिए आगे बढ़ रहा था.
पूजाघर की मद्धिम रौशनी का अभ्यस्त होते-होते वह आकृति के निकट पहुंच गया. फ़र्श से आकृति उठने का प्रयास करती लगी. चरण स्पर्श करने के बजाय उसने पाउडर में रंगी आकृति को उठने में मदद करने के लिए हाथ बढ़ा दिए. चमत्कार नहीं था, निकिता थी. झुंझलाती पाउडर झटकती निकिता की मदद करते उसने हंसकर पूछा,‘‘क्या हुआ, सालभर का पाउडर एक दिन में ही डाल लिया?’’
‘‘और नहीं तो क्या!’’ झुंझलाहट भूल हंसते हुए जवाब मिला और कपड़ों पर पड़े पाउडर की एक मुट्ठी निकिता ने सिद्धार्थ पर डालते हुए कहा,‘‘लो, तुम भी लो.’’
उसके बाद तो होली मच गई. अपने ऊपर से पाउडर सिद्धार्थ पर झटकती हंसती जा रही थी निकिता. कितने दिनों बाद उसने निकिता की चिरपरिचित हंसी सुनी थी. जब काफ़ी पाउडर झटक गया तो पास रखी ट्रे से पाउडर सिद्धार्थ पर उड़ाते हुए उसने कहा,‘‘कितने बेवकूफ़ हो तुम, इतने दिनों में मुझसे अकेले में मिलने की नहीं सूझी तुम्हें?’’
क्या जवाब दे? सिद्धार्थ भूल गया कि वह इस्तीफ़े के लिए काग़ज़ तलाश रहा था. भूल गया कि मनभावन फ़ेस पाउडर ने अब उसे भी रंग दिया है. भूल गया कि वह निकिता के इतने क़रीब आ गया है, जितने क़रीब मालकिन और नौकर को नहीं आना चाहिए. चकित-सा देख रहा था वह निकिता के बदले रुख़ को. तभी खिलखिलाती निकिता ने संजीदा होकर कहा,‘‘सालभर नहीं सिड, हम पर यह पाउडर अब ज़िंदगीभर के लिए है.’’
फिर और क़रीब आ गई निकिता. इतने क़रीब वह पहले तो कभी नहीं आई थी. चकित सिद्धार्थ अभी कुछ कहने की हिम्मत जुटा रहा था. तभी निकिता ने उसके सीने पर सिर रख दिया. और पूजाघर में फुसफुसाते स्वर में दो बार प्रेम-मंत्र का आवर्तन हुआ,‘‘आई लव यू. आई लव यू.’’
पता नहीं, पहले ‘आई लव यू’ किसने कहा था, सिद्धार्थ ने या निकिता ने.
वैधानिक चेतावनी: कहानी पढ़ने के बाद कृपया बाजार में मनभावन फ़ेस पाउडर की तलाश न करें. क्योंकि प्यार के सफल होने के थोड़ी ही देर बाद सिद्धार्थ को पता लगा कि जिस पाउडर में वह निकिता के साथ नहाया, उसमें स्वामीजी वाला पाउडर नहीं मिलाया गया था. अस्तु, पाउडर के बजाय अपने प्यार में आस्था रखें तो बेहतर होगा.
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