कहानी: सांवली
ऑफ़िस कैंटीन में ज़ोरदार चर्चा हो रही थी कि दिल्ली सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में जो कमाल कर दिखाया है, वह किसी दूसरे राज्य के बस में नहीं. रज़्ज़ाक कह रहा था,‘‘पिछले दो वर्षों से दिल्ली के सरकारी स्कूल के बच्चे प्राइवेट स्कूलों के बच्चों से आगे निकलते जा रहे हैं. देखना एक दिन ऐसा आएगा, जब देश के अन्य राज्य भी शिक्षा को लेकर गंभीर होंगे और देश में सच में अच्छे दिन आएंगे.’’
रज़्ज़ाक की बात को काटते हुए रमाशंकर ने कहा,‘‘यह बस नाटक है, सिर्फ़ आंकड़ों का खेल है. सच तो यह है कि सरकारी स्कूल कभी नहीं सुधरने वाले.’’ तभी किसी ने चुटकी ली,‘‘हां, जब तक रमाशंकर जैसे लोग होंगे, जो प्राइवेट जॉब को भी सरकारी ढर्रे पर ले जाना चाहते हों, तो इस देश का कुछ नहीं हो सकता.’’ राधा, वनिता और मेहूल सभी बीच-बीच में बोल रहे थे. ऐसा लग रहा था कि ये लोग ऑफ़िस की इस कैंटीन में भारत का भविष्य तय करके ही आगे बढ़ेंगे. कायदे से तो संसार में घट रही किसी घटना से उनका कोई जुड़ाव नहीं, वे ‘हमें क्या’ वाली मुद्रा में जीते हैं, लेकिन अगर कहीं सिर्फ़ बातों की जुगाली करनी हो तो फिर तो उनसे बड़ा चिंतक नज़र नहीं आता. रोज़ वे इसी मुद्रा में चर्चा करते हैं, और कैंटीन से हटते ही वापस मशीन बन जाते हैं. तब इन मशीनों के पास विचार नहीं होते, वे केवल काम किए जाती हैं, बिना रुके, बिना कोई सवाल किए. ठीक वैसे ही जैसे भारत की शिक्षा व्यवस्था तैयार करते हुए मैकाले ने सोचा होगा. कितना कठोर सच है कि आज़ादी के 70 वर्षों बाद भी हम मैकाले को ग़लत साबित नहीं कर पाए.
ख़ैर, इसी मंडली में तीन लोग ऐसे हैं, जो विचारों की इस जुगाली में शामिल नहीं हैं. पहली सांवली, जो जाने किस लोक में भ्रमण कर रही है. उसे देखने पर ऐसा लगता है कि वह इस बहस का हिस्सा है, पर सच है कि यहां कही कोई बात उसके कान से आगे दिमाग़ तक नहीं पहुंच रही है. वह समझ नहीं पा रही है कि वह क्या करे? वह सोच रही है कि वह सही है, और फिर सोचती है, नहीं यह सही नहीं है. कभी दुनिया के बारे में सोचती है, तो कभी ख़ुद से ही कहती है ‘मैं क्यों करूं दुनिया की परवाह’ और जाने क्या-क्या सोच रही है वह. दूसरा है प्रताप. वह सांवली से प्रेम करता है. देखने में बहुत आकर्षक नहीं है, पर अपने पहनावे और व्यवहार पर बहुत ध्यान देता है, जिसके चलते उसका व्यक्तित्व आकर्षक हो उठता है.
पर सांवली से लंबाई में 2 इंच छोटा होने और रंग भी थोड़ा दबा होने की वजह से उसके अंतस में हीनभावना बसी है. आजकल ऑफ़िस में वह सांवली के बारे में ही सोचता रहता है, जिसने हाल ही में उसका प्रेम निवेदन ठुकराया है. वह ख़ुद से कई बार पूछ चुका है ‘आख़िर सांवली उसे समझ क्यों नहीं रही? उसके मन में चल क्या रहा है? वह क्यों नहीं कर सकती मुझे प्रेम? क्या मेरे काले रंग के चलते? अरे नहीं वह रंग से कैसे मुझे तौल सकती है उसका रंग भी तो कोई बहुत साफ़ नहीं है.’ प्रताप को लगता है कि कभी न कभी तो सांवली उसके प्रेम को ज़रूर समझेगी और फिर जीवन सुखमय हो उठेगा. वह सांवली को पाने की कल्पना से ही रोमांचित हो उठता.
विचारों की जुगाली में शामिल न होनेवालों में तीसरा मैं हूं. मेरा नाम आप कुछ भी रख लें. चलिए हंसमुख रख लेते हैं. हंसमुख सांवली के सबसे भरोसेमंद लोगों में से एक है. कभी प्रताप भी हंसमुख का प्रिय मित्र हुआ करता था, पर इधर जब से उसके प्रेम में तीव्रता आई है, उसे लगने लगा है कि कहीं हंसमुख और सांवली के बीच कुछ... ख़ैर प्रेम में जब इंकार मिलता है, तो इंसान बावरा हो ही जाता है. इस समय प्रताप का हाल ऐसा ही कुछ है. पर हंसमुख तो हंसमुख है, जो महज़ इस प्रेम-कहानी को देख रहा है, किनारे बैठे हुए.
सांवली का नाम ही सांवली नहीं है, उसका रंग भी सांवला है. पिछले 3 वर्षों में उसे 15 लड़कों ने तो उसने 17 लड़कों को रिजेक्ट कर दिया है. जब से वह इस ऐड एजेंसी में कॉपी राइटर की नौकरी के लिए आई है, तब से वह जब भी ऑफ़िस से घर के लिए जल्द निकलती है, सभी को पता होता है कि उसकी परेड होनेवाली है. शुरू-शुरू में यह सब बहुत बुरा लगता था उसे, पर धीरे-धीरे यह रूटीन हो गया है. और अब वह ज़्यादा विरोध नहीं करती. सांवले रंग के बावजूद उसकी 5 फ़ीट, 8 इंच की लंबाई और छरहरा बदन, बड़ी-बड़ी आंखें और सबसे सुंदर मोतियों से पिरोए हुए दांत, किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं. पर ब्राह्मण की लड़की वह भी सांवली, तिस पर उम्र 28 पार! बाप रे बाप. पूरा समाज चतुर्वेदी जी की अक्ल पर लगे ताले को देख रहा था कि उन्होंने 28 वर्ष की कन्या को अपने घर बैठा रखा है.
बात यहीं तक होती तो कोई बात नहीं थी, सांवली के पीछे तीन बहनों का ब्याह रुका पड़ा है. एक दिन तो छोटी बहन राधिका ने कह ही दिया,‘‘पापा इसे कोई नहीं पसंद करता तो मैं क्यों इसका रंग झेलूं, आप मेरे लिए लड़का देख लो.’’ सांवली समझ नहीं पाई कि इतनी नफ़रत कहां से आ गई मेरी छोटी बहन में? यह वही बहन है, जिसके लिए मैं न जाने कितनों से लड़ी, जिसके एडमिशन के लिए मैंने जाने किस–किस सोर्स से बात की. दरअस्ल, पढ़ाई पूरी करने के बाद राधिका ने बहुत प्रयास किए, लेकिन उसे कोई ऐसी नौकरी नहीं मिल सकी, जो सांवली के काम से बेहतर हो. सो मन ही मन वह खार खाए बैठी है. ख़ैर, पापा भी राधिका की बात से सहमत थे, उन्होंने भी बुरा-सा मुंह बनाया और सांवली के कमरे से निकल गए. सांवली देर तक सोचती रही,‘क्या विवाह ही किसी लड़की के जीवन का अल्टिमेट गोल होता है?’
आज ही एक डॉक्टर के पिता सांवली को देखने आए. उन्होंने यहां तो सांवली से बहुत-सी बातें कीं, पर घर जाते ही विवाह के लिए साफ़ मना कर दिया. तब से घर में भूचाल मचा हुआ है. पापा को लगता है कि सांवली विवाह करना ही नहीं चाहती, इसलिए वह ऐसे भाव बनाकर बैठती है कि किसी को वह पसंद ही नहीं आती. मां सांवली की जान है, पर कई बार मां भी कुछ ऐसा कह बैठती कि सांवली के दिल पर चोट पहुंचती. सांवली की सबसे बड़ी खामी, जो परिवार को लगती है, वह है उसका रहन-सहन. वह कभी सलवार कमीज़, साड़ी, घाघरा-चुन्नी जैसे ट्रेडिशनल पहनावे नहीं पहनती, न चूड़ी, न बिंदी, न काजल, न लिपस्टिक. कहीं जाना हो तो तुरंत जींस-टॉप पहनकर निकल पड़ती है, बिना अपने लुक की परवाह किए.
हंगामे के बाद वह ऑफ़िस के लिए निकल पड़ी. कार का दरवाज़ा खोलते हुए, उसे अनवर की याद आई. कॉलेज के दिनों में अक्सर वह बड़े सलीके से उसके लिए कार का दरवाज़ा खोला करता था. उसने कार स्टार्ट की और ऑफ़िस की तरफ़ निकल पड़ी. पर यादें लगातार ज़हन में उथल-पुथल मचा रही थीं. वैसे दादी ने आज उसे अचानक ही बहुत-से बंधनों से मुक्त जो कर दिया था. उसकी आंखें सड़क पर थीं, पर दिमाग़ अतीत के सुंदर पलों में खोया हुआ था. उन दिनों वह अक्सर अनवर से मारपीट की मुद्रा में आ जाती. वह पीटती और अनवर पिटते हुए मुस्कुराता, पर कॉलेज के अंतिम दिनों में पिटते हुए अनवर की आंखों में आंसू आ गए. सांवली के हाथ रुक गए, वह अनवर को देखती रही. उसने कभी सोचा भी नहीं था कि अनवर रो भी सकता है.
वह लगातार माफ़ी मांगने लगी,‘ज़ोर से लग गई क्या? कहां लग गई? अरे मैं धीरे से मार रही थी.’ उसके हाथ अनवर के आंसू पोंछ रहे थे. पूरी क्लास स्तब्ध रह गई, अनवर क्लास से निकल गया, सांवली भी उसके पीछे गई. वह जानती थी अनवर कहां जाएगा. उसने कहा,‘थोड़ा पिट लो इसके बाद कहां मिलोगे?’ अनवर ने उसे बेबस नज़रों से देखा, पर अगले ही पल पर ख़ुद को संयत कर लिया और कहा,‘काली कलूटी तेरा कुछ नहीं होने वाला. मेरे सिवा कोई तुझे पसंद नहीं करने वाला. देख लेना तू, एक दिन ढूंढ़ते हुए मेरे पास ही आएगी और मैं तुझे बुर्क़ा पहना कर रखूंगा.’ अनवर की बात पर सांवली फिर पीटने लगी. साथ ही वह उसे कुत्ता कमीना जैसे शब्दों से नवाज़ते भी जा रही थी.
सांवली ने गाड़ी पार्क की और ऑफ़िस पहुंची. दोस्तों के हैलो हाय का जवाब देते हुए वह अपनी डेस्क पर पहुंची. राधा ने आकर उसे छेड़ा,‘‘क्या हुआ? डॉक्टर के पिता को बहू पसंद आई?’’ सांवली ने अनमने से कहा,‘‘मन अच्छा नहीं है यार थोड़ी देर अकेला छोड़ दे प्लीज़.’’ राधा के लिए यह नई बात नहीं थी, सो वह बिना किसी विरोध के अपनी डेस्क पर आ गई. राधा सोच रही थी कि सांवली दुखी है, जबकि सांवली कोई दुखी नहीं थी. वह घर में हुए हंगामे और दादी की सलाह पर विचार कर रही थी. पर आज वह सही ग़लत के बारे में नहीं सोच रही थी. आज वह सोच रही थी, कैसे पल भर में जीवन बदल जाता है. वह मन ही मन अपने आनेवाले सुंदर दिनों की प्लैनिंग कर रही थी. उसने कई बार सोचा कि अनवर कितना ख़ुश होगा, कितना चौंकेगा. वह कैसे रिऐक्ट करेगा. और जाने क्या क्या?
सांवली के पिता रामधारी चतुर्वेदी अपनी बेटियों के अच्छे पिता नहीं थे, पर बेटे के लिए वे शानदार पिता थे. उन्हें एक अच्छा पति तो नहीं कहा जा सकता, पर बुरे भी नहीं थे. वे एक बेहतरीन पुत्र हैं. अपनी मां की बात आज भी किसी हालत में नहीं काटते. ये दादी ही हैं, जिनके बल पर सांवली अाज़ादी का जीवन जी रही है. उसने दादी से वादा किया था कि वह कभी ऐसा कुछ नहीं करेगी कि चतुर्वेदी ख़ानदान को नीचा देखना पड़े. पर आज के हंगामे ने सारी सीमाएं तोड़ दीं. क्रोध से तमतमाए पिता ने सभी के सामने कहा,‘‘मुझे लगता है कि किसी के साथ तुम्हारा शारीरिक संबंध है.’’ सांवली जानती थी पिता उसे किसी भी हद तक डांट सकते हैं, पर इस वाक्य ने उसे गहरा दुख पहुंचाया. दादी भी स्तब्ध रही, बुरा तो मां को भी लगा, पर उन्होंने भी कहा,‘‘काश इसको कोई पसंद करता, फिर वह चाहे सड़क का कूड़ा उठानेवाला ही क्यों न होता!’’ पिता के बाद मां से कोई सहारा न पाने के बाद सांवली ने कहा,‘‘मां तुम ऐसा क्यों कह रही हो, मैंने कभी किसी तरह का ग़लत काम किया है क्या?’’ इस पर उसकी छोटी बहन ने उछलकर कहा,‘‘तुमने शकल देखी है अपनी? तुमने कुछ किया इसलिए नहीं कि किसी ने तुम्हें भाव नहीं दिया, अगर देता तो कब का भाग गई होती तुम.’’ छोटी बहन से अपमानित सांवली ने उसे एक चांटा जड़ दिया. यह देख पिता ने सांवली को दो चांटे जड़ दिए और कहा,‘‘सही तो कह रही है यह, अगर कोई होता तो भाग जाती तू. और अगर है तो भाग जा मैं इजाज़त देता हूं तुझे.’’ हालांकि दादी की डांट से सभी इधर-उधर हो गए. सांवली देर तक रोती रही.
धर्मपरायण दादी के चेहरे पर कठोरता बनी रही. पति के मरने के बाद उन्होंने बहुत कुशलता से दुनियाभर के गिद्धों से ख़ुद को और अपनी पारिवारिक संपत्ति को बचाए रखा था. 65 की उम्र में भी उनकी आंखों में तेज़ था. तेज़ी से बदलती दुनिया में दादी ने बहुत से रंग देख रखे थे. आज उनके भीतर भी कुछ टूटा था. सांवली का हर सीक्रेट जाननेवाली दादी ने उससे कहा,‘‘तू बता रही थी कि अनवर किसी कंपनी में मैनेजर बन गया है, क्या उसने शादी कर ली?’’ सांवली ने दादी की गोद से सिर उठाया. यह वही दादी हैं, जिनके घर में मुसलमानों और नीची जातियों के पानी का बर्तन भी दूसरा होता है. सांवली ने देखा कि दादी के चेहरे पर निश्चय के भाव हैं.
उसने कहा,‘‘पर दादी…!’’ उसका वाक्य पूरा होने से पहले ही दादी ने कहा,‘‘समय बदल रहा है बेटी, पहले लोग जाति की लड़कियों का मान रखते थे. कहीं रंग-रूप के चलते किसी की बेटी को मना नहीं किया जाता था. जाति के नाम पर लोग प्राण देने को तैयार होते थे, पर आज सभी की आंखों का पानी मर गया दिखता है. अगर जाति और धर्म हमारा जीवन सरल नहीं कर सकता, तो वह किसी काम का नहीं.’’ उन्होंने बड़े प्यार से सांवली के सिर पर हाथ फेरते हुए आगे कहा,‘‘बिटिया रानी धर्म इसलिए बना है कि सभी एक दूसरे से प्रेम करें.’’ दादी ने वही बात दुहराई जो अनवर ने कही थी.
उसे याद आया कॉलेज का अंतिम दिन जब उसका हाथ पकड़े अनवर कह रहा था,‘देखो सांवली मैं तुमसे प्रेम करता हूं, मेरे लिए प्रेम का अर्थ तुम्हारा साथ होना है. और मैं धर्म को प्रेम से अलग नहीं मानता, बिना प्रेम के धर्म नहीं हो सकता और धर्म के बिना प्रेम नहीं हो सकता. बिना प्रेम के कोई भी धर्म बिना आत्मा के देह के समान होता है, जब देह से आत्मा निकल जाए तो देह को तत्काल जला देना चाहिए वर्ना वह बदबू से भर देती है माहौल को. सो प्यारी लड़की यह दुनिया बहुत ख़ूबसूरत है और अगर हम सोचें तो बदसूरत भी.
यहां लोग बहुत अच्छे हैं और अगर हम साेचें तो बहुत बुरे भी. देखो सांवली मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि मैं घर में नमाज़ पढ़ूं और तुम उसमें शंख बजाओ. मुझे नहीं पता कि प्रेम क्या होता है, पर यह सच है कि तुम्हारे साथ रहना अच्छा लगता है, सो प्लीज़ मुझे मत छोड़ो.’ अंतिम वाक्य बोलते हुए वह कातर हो उठा था, पर सांवली तो किसी और ही दुनिया में थी, उसने कहा,‘अनवर मुझे नहीं पता कि प्रेम किसे कहते हैं… हां, तुम्हारा साथ चाहती हूं आजीवन, पर यह संभव नहीं. मैं अपने पिता की घटिया संस्कारों वाली बातें नहीं मानती और न मां की चिंताओं से कोई ज़्यादा लेना देना है, पर यक़ीन मानो मैं उनका अभिमान हूं और यह मैं टूटने नहीं दे सकती. किसी भी क़ीमत पर.’
यादों से बाहर निकलर सांवली ने गहरी सांस भरी और छोड़ दी. जब से सांवली अपनी डेस्क पर बैठी है, तभी से प्रताप कई बहानों से उसके अगल-बगल से गुज़रा, पर सांवली को ध्यानमग्न देख वह कसमसाता रहा. वह जानना चाहता था कि क्या हुआ. पर बेबस इधर-उधर चहलक़दमी कर रहा था. वह बहुत सावधान था कि कोई उसे देख तो नहीं रहा है. तभी सांवली ने उसे बुलाया और कहा,‘‘तुम्हें कुछ बताना है. देखो प्रताप तुम अच्छे इंसान हो, कोई भी लड़की तुम्हें पाकर ख़ुश रहेगी, पर मैं किसी से प्रेम करती हूं.’’ प्रताप के लिए यह एक नई बात थी. आज सावली ने पहली बार किसी से ज़िक्र किया कि उसे प्रेम है किसी से.
उसने अनवर से भी नहीं कहा कभी. सच तो यह है कि उसने ख़ुद से भी कभी नहीं कहा कि उसे प्रेम है. उसने अपना सब कुछ अपने पारिवारिक संस्कारों के नीचे दबा दिया था. प्रताप के मन में तुरंत किससे, कबसे, जैसे सैकड़ों प्रश्न उठे पर उसने ख़ुद को संयत करते हुए कहा,‘‘क्या तुम मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए कह रही हो यह?’’ प्रताप के उदास चेहरे को देख सांवली और संजीदा हो उठी और उसने प्रताप का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा,‘‘नहीं दोस्त, कतई नहीं.’’ गहरी सांस भरते हुए प्रताप ने बस इतना ही कहा,‘‘तुमने पहले ही कह दिया होता कि तुम प्रेम में हो तो मैं कभी...’’ वह उठा और चला गया.
सांवली को प्रताप के लिए थोड़ा दुख हुआ, पर अगले ही पल अनवर को याद कर वह आनंद से भर गई. यही इंसान की फ़ितरत है, वह अपनी ख़ुशी में दूसरों के दुख को भूल जाता है. सच तो यह है कि यही बात है, जो जीवन को बेहतर भी बनाती है. सांवली ने फ़ोन उठाया और अनवर को लगाया, काम में व्यस्त अनवर फ़ोन उठा नहीं पाया. सांवली ने मैसेज किया,‘प्रिय अनवर मैं अधार्मिक हो गई थी, मुझे लगा था कि धर्म और प्रेम अलग-अलग हैं. अब मैं धर्म के नाम पर जीवन से प्रेम को निकालना नहीं चाहती. कृपया मुझे लाश बनने से बचा लो... और हां, यह बात तय है कि मैं बुर्क़ा नहीं पहनूंगी.’
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