कहानी: मन हुआ मद्धम-मद्धम

ट्रेन चलने लगी, पायल को लगने लगा कि बस अगर कुछ देर और वह हाथ हिलाते अपने बच्चों की तरफ़ देखेगी, तो ट्रेन से कूद ही पड़ेगी. दिल कलप रहा था, आंखों में आंसू का उबाल-सा आ गया. बारह साल की मोहिनी और आठ साल का अंकुर, दोनों के चेहरे आंख से ओझल हो गए. सामने रह गया ट्रेन का एसी थ्री का डिब्बा. डिब्बे में यात्रियों का शोर.

पायल खिड़की से सिर टेक कर बैठ गई. पिछले छह महीनों में यह उसकी दसवीं यात्रा थी दिल्ली से लखनऊ की. जब से लखनऊ से दिल्ली उसका ट्रांसफ़र हुआ, ज़िंदगी की गाड़ी पटरी से मानो उतर ही गई.

कितना मुश्क़िल था पायल और उसके पति अंकित के लिए यह स्वीकार करना कि वह नौकरी की ख़ातिर उनके साथ नहीं रह पाएगी. सबकुछ ठीक चल रहा था. दोनों की नौकरी, बच्चों का स्कूल, अपना घर-गाड़ी, आसपास का माहौल. बिलकुल वैसे ही जैसे एक आम मध्यमवर्ग परिवार में होता है, लेकिन पायल के ट्रांसफ़र की ख़बर ने शांत पड़े तालाब में जैसे पत्थर उछाल दिया.

नौकरी ज़रूरी थी. घर की ईएमआई, बच्चों की पढ़ाई का ख़र्च कैसे निकलता? पायल बहुत परेशान थी,‘‘अंकित, मेरे बिना तुम कैसे मैनेज करोगे? बच्चों को, घर को? पर नौकरी.’’

अंकित का चेहरा उतर गया. कैसे कहे कि नौकरी छोड़ दो. कैसे गुज़ारा होगा एक की तऩख्वाह में. लेकिन पायल को जाना तो था ही. अच्छी नौकरियां यूं भी आसानी से नहीं मिलतीं. फिर लखनऊ जैसे शहर में विकल्प भी ज़्यादा कहां हैं?


पायल अपने कुछ कपड़े वगैरह ले कर दिल्ली चली आई और वर्किंग विमन हॉस्टल में डेरा डाल लिया. रूममेट थी पटना की सुरुचि. सुरुचि एक प्राइवेट कॉलेज में पढ़ाती थी. उम्र में पायल से कुछ ही साल छोटी, पर शादी नहीं की थी. कहती,‘‘जब कोई करने लायक मिल जाएगा, तो कर लूंगी. पर फ़िलहाल ज़रूरत नहीं लगती.’’

पायल ने अपने सिरहाने बच्चों की तस्वीर लगा ली. हर दिन ऑफ़िस से आने के बाद मोहिनी और अंकुर से देर तक बात करती. फिर रात को सोने से पहले अंकित से. दिल्ली पायल आ तो गई, पर उसका दिल कहीं और ही था. सुरुचि कितना कहती,‘‘मेरे साथ मंडी हाउस घूमने चल. श्रीराम सेंटर में नाटक देख आते हैं.’’

पर पायल मना कर देती. बच्चों के बिना वह कैसे घूमने जा सकती है? अंकित वहां कितनी मुश्क़िल में हैं. सुबह बच्चों को जगाना, उनके लिए नाश्ता तैयार करना, स्कूल के कपड़े तैयार करना, लंच पैक करना.

फिर एक दिन पायल ने कहा,‘‘अंकित, तुमसे घर का इतना काम नहीं होगा. फ़ुल टाइम मेड रख लो.’’
अंकित ने हिसाब लगाना शुरू किया-फ़ुल टाइम मेड का ख़र्चा कैसे उठाएंगे? अगले महीने घर का टैक्स भरना है, इसके बाद मोहिनी की ट्यूशन फ़ीस और...

पायल ने मन ही मन हिसाब लगाया,‘‘कोई बात नहीं, मैं अगले महीने से कुछ ज़्यादा पैसे बैंक में ट्रांस्फ़र कर दूंगी. अब मुझे मोबाइल का भी पैसा मिलने लगा है.’’

फिर उस रात पायल की आंखों से जैसे नींद ही ग़ायब हो गई. मन भटक कर कभी मोहिनी के बिस्तर पर पहुंच जाता, मन करता हाथ बढ़ा कर बिटिया के उलझे बालों को संवार दे, तो कभी लगता कि उड़ कर अंकुर के मासूम चेहरे पर प्यार की बरसात कर दे. उसका लाडू बच्चा. पता नहीं कैसे खाना खाता होगा, वह तो मुंह में खिला देती थी अपने लड्डू को. बातों में उलझा कर एक की बजाय दो परांठे जिमा देती. कितना पसंद है अंकुर को ताज़ी मलाई खाना.


मन हुआ फ़ोन उठा कर पूछ ले अंकित से, मलाई देते तो हो ना मेरे लड्डू राजा को. फिर बिलख कर रो पड़ी थी पायल. बच्चों के बिना इतना मुश्क़िल होगा, सोचा ना था.

देखते-देखते छह महीने हो गए. हर पंद्रह दिन बाद उसकी कोशिश होती कि शुक्रवार की रात की ट्रेन से लखनऊ जाए और इतवार की रात वहां से चल दे. बस, दो दिन रह पाती थी बच्चों के साथ. इतने समय में घर की सफ़ाई, ज़रूरी ख़रीदारी और ना जाने कितने काम कर डालती.

हर बार अंकुर उससे सवाल करता,‘‘ममा, क्या तुम हमारे साथ नहीं रह सकती?’ पायल अपने बेटे से नज़रें चुरा कर ट्रेन में बैठ जाती.

हॉस्टल में ना जाने कितनी तरह की लड़कियां रहती थीं, पायल को किसी से कोई मतलब नहीं था. अपनी रूममेट सुरुचि के अलावा. सुरुचि उसे बुलाती थी पी. बहुत बाद में पायल को समझ आया कि हॉस्टल की अधिकांश लड़कियां अपने नाम के इनीशियल से जानी जाती थीं. सुरुचि हो गई सू. अगर कोई उसे सुसु भी कहता, तो वह हंस कर निकल जाती. सुरुचि से धीरे-धीरे उसका दिल का रिश्ता बनने लगा. दोनों रात को साथ में खाना खाते. सू को पता था कि पी रात को दही खाना पसंद करती है, उसे लौकी की सब्ज़ी नहीं पसंद. वह कोशिश करती कि जिस दिन लौकी बनी हो, अपनी प्लेट से सूखी सब्ज़ी या आचार पी को दे दे. सू ख़ुद बहुत नखरीली थी. हॉस्टल का खाना आए दिन उसे बदमज़ा लगता. फिर उसकी कोशिश होती कि पी को किसी तरह ठेल कर बंगाली मार्केट ले जाए और वहां जा कर आलू की टिक्की या छोले भटूरे खाए.

सू को पैसे की चिंता नहीं थी. जितना कमाती, पूरा ख़र्च कर देती, खाने-पीने, कपड़ों पर. हर इतवार को शांकुतलम में फ़िल्म देखती और उसकी कोशिश रहती कि पी को भी साथ ले चले. सू अकसर उसे छेड़ती,‘‘तुझे देख कर तो मेरा शादी से रहा-सहा विश्वास भी उठ चला है, इतना थोड़े ही बंधना चाहिए किसी रिश्ते से. यार, आराम से रह, चिल मार.’’

पायल फीकी सी मुस्कान लिए चुप लगा जाती. एक दिन उसने कह दिया,‘‘सू, तू शादी के लिए नहीं बनी. बहुत खाद-पानी दे कर इस रिश्ते को संवारना पड़ता है. जिस तरह से तू सोचती है, उस सोच के साथ किसी आदमी के साथ तू एक दिन नहीं निभा सकती.’’

सू को उसकी बात चुभ गई,‘‘क्यों? मैं क्या औरत नहीं? मैं भी चाहती हूं एक पुरुष का साथ. पर हां, इस तरह से नहीं कि  कोई चौबीस घंटे एक-दूसरे पर हावी हो जाए.’’

पायल की आवाज़ गंभीर हो गई,‘‘शादी केवल पुरुष का साथ ही नहीं होता. यह तो बस एक पड़ाव है इस रिश्ते का. ना पति-पत्नी चौबीस घंटे एक-दूसरे के पहलू से बंधे रहते हैं.’’

सू ने इस बात को हंसी में उड़ा दिया,‘‘देख पी, मैं तो शादी इसलिए करूंगी, ताकि मुझे एक कंपनी मिल सके और ढेर सारे गि़फ्ट्स भी. वरना हम अकेले बुरे नहीं.’’

पायल ने कुछ कहना चाहा, फिर चुप हो गई. सू को क्या समझाए कि एक पत्नी और मां बनना क्या होता है.

उस दिन रात को खाने की टेबल पर सू ने पायल की मुलाक़ात अमला से करवाई. अमला का पति मस्कट में काम करता था और वह दिल्ली में रह कर कथक सीख रही थी. अमला हमेशा मस्ती में रहती थी. आसपास दोस्तों से घिरी. मन हुआ तो बैगपैक उठा कर कभी आगरा चल देती, तो कभी खजुराहो. देर रात तक उसके कमरे में महफ़िल जमती. कभी उसकी कोई दोस्त गोल मार्केट से तंदूरी चिकन पैक कर लाती, तो कभी अर्जेंटीना की पैरी गोम्स वाइन की बोतल उठा लाती. फिर देर तक हंसी-गाने का माहौल जमता. पायल ने बस दूर-दूर से देखा था यह सब. कभी मन नहीं हुआ कि इस महफ़िल का हिस्सा बने.


पर अमला ने पता नहीं उसमें क्या देखा, एकदम से उसके नज़दीक आ गई,‘‘पता नहीं तुममें ऐसी कौन-सी बात है पी, पर मन करता है कि तुमसे दोस्ती करूं.’’

अमला की साफ़गोई अच्छी लग गई पी को. उस रात वैसे भी मन बेचैन था. सो सू के साथ वो भी अमला की महफ़िल में शामिल हो गई. पैरी और वाणी का बेहिचक सिगरेट फूंकते हुए भारतीय इतिहास और कला पर बात करना, अमला का बेलौस नृत्य और रागिनी का फक्कड़ अंदाज़ में फुन काया फुन गाना उसे अंदर तक हलका कर गया.

बीच में जब वाणी ने एक कश लेने के बाद उसकी तरफ़ सिगरेट बढ़ाया, तो पी ने सिर हिला दिया. अमला ने कहा,‘‘एक बार पी कर फिर रिजेक्ट करो ना. वरना तुम्हें पता कैसे लगेगा कि यह क्या है?’’
पी ने दो सेकेंड रुकने के बाद कहा,‘‘अमला, मुझे लगता है कि ज़िंदगी के जिस मुक़ाम पर मैं खड़ी हूं, मुझे अपने साथ कोई प्रयोग करने की ज़रूरत नहीं है.’’

सू हंसते हुए बोली,‘‘पी एक आदर्श पत्नी है. वह यह सब नहीं करेगी.’’
अमला ने रौ में कहा,‘‘कौन कहता है कि मैं आदर्श पत्नी नहीं? मेरा पति मस्कट में अपने दोस्तों के साथ मज़े करता होगा, तो मैं यहां क्यों ना करूं?’’

अचानक सू ने तेज आवाज़ में पी से पूछा,‘‘यार, एक बात बता? तू जिस पति के नाम पर यहां एक नन की ज़िंदगी जी रही है, वह पति तेरे बिना वहां क्या नहीं करता होगा? आदमी को अपनी जरूरतें पूरी करना अच्छे से आता है. तुझे क्या लगता है, वह दोस्तों के साथ पार्टी नहीं करता होगा, गुलछर्रे नहीं उड़ाता होगा?’’

पी का चेहरा छोटा पड़ गया. वह उठती हुई बोली,‘‘यह बहस बेमानी है. मुझे अपने पति के लिए कोई कैरेक्टर सर्टिफ़िकेट नहीं चाहिए. पर मैं ऐसी ही हूं, मुझे जो नहीं पसंद, वो नहीं करती.’’

पी के पीछे-पीछे सू भी कमरे में चली आई. उसे पता चल गया कि पी का मूड उखड़ गया है. उसने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,‘‘आए एम रियली सॉरी. पर पी, क्या मैं कुछ ग़लत कह रही थी? हो सकता है अंकित ऐसे ना हों. पर ऐसे पुरुषों की भी तो कमी नहीं.’’

पायल कुछ देर सोचती रही, फिर उसने अंकित को फ़ोन लगाया. फ़ोन की घंटी बजती रही, अंकित ने फ़ोन नहीं उठाया. पायल को अचंभा हुआ. रात के इस वक़्त अंकित फ़ोन क्यों नहीं उठा रहा. इसके बाद लगातार उसने चार-पांच बार फ़ोन लगाया. घंटी
बजती रही.

रात के दस बज रहे थे. पायल ने घर फ़ोन लगाया. मोहिनी की ऊंघती-सी आवाज़ आई,‘‘ममा, आप, इस समय? ओह, पापा तो पता नहीं शाम से कहां गए हैं. मेड से कह गए कि खाना घर पर नहीं खाएंगे. मोबाइल साथ ले गए हैं. पता नहीं कब आएंगे ममा? आप ठीक तो हो ना ममा? कल से मेरे एग्ज़ाम्स हैं. सोने जाऊं?’’

फ़ोन रखने के बाद पायल भरे मन से बैठ गई. अंकित गए कहां? तो क्या सू और अमला सही कहते हैं? किसी दोस्त के साथ? दूसरी औरत के साथ? और वो समझ रही थी कि...


अचानक उसके दिल में हूक-सी उठी. वह छह महीने से अपना ख़ुद मिव्ययी होकर घर पैसे भेज रही है, ताकि अंकित और बच्चे अच्छे से रह सकें. महीनों से अपने लिए कुछ लिया नहीं, बाहर खाने नहीं जाती, मॉल घूमने नहीं जाती. और अंकित?

अचानक वो उठी और सू का हाथ पकड़ कर बोली,‘‘चल, अमला के कमरे में वापस चलते हैं.’’

दोनों एक बार फिर महफ़िल में शामिल हो गईं. इस बार पायल ने पैरी के हाथ से वाइन की बोतल ले कर लंबा घूंट भरा. आंखें बंद कर मीठे-तीते उस लाल पेय को जिगर के अंदर तक जाने दिया. आग लगी तो आंखें अपने आप पनीली हो उठीं. इस बार जब वाणी ने उसकी तरफ़ सिगरेट बढ़ाया तो उसने एक कश ले ही लिया. कुछ खांसी-सी उठी गले में, पर उसने दबा दिया. इसके बाद वह भी महफ़िल का एक हिस्सा बन गई. ज़ोर-ज़ोर से गाना गाया, दूसरों की गोद पर सिर रख कर हंसी ठठ्टा भी लगाया.

देर रात दोनों कमरे में वापस आए. पायल का सिर घूम रहा था. बिस्तर पर गिरी तो बस पहला ख़्याल यही आया, अंकित यह तुमने ठीक नहीं किया. एक बार फिर मोबाइल उठाकर फ़ोन करने का दिल किया उसका. पर कुछ सोच कर उसने मैसेज करने के लिए मैसेज बॉक्स खोला. वहां कुछ अनखुले मेल थे. सबसे ऊपर अंकित का था. शाम सात बजे का. बड़े मामा को हार्ट अटैक हुआ है. अस्पताल जा रहा हूं.

दूसरा एसएसएस लगभग आठ बजे का था-मामा नहीं रहे. अभी बच्चों को बताया नहीं है. उनका दाह संस्कार मुझे ही करना है. तुम्हें आने की ज़रूरत नहीं है. मैं सब संभाल लूंगा.

पायल को लगा, जैसे दुनिया घूमने लगी है. कैसे उसने नहीं देखे एसएमएस? हां, उस समय तो वह नई बनी दोस्तों के साथ बैठ कर खाना खा रही थी. पर ऐसा कैसे हुआ? उसके दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया. पर उस समय भी बस एक ही ख़्याल उसे अंदर तक भिगोता रहा कि उसका अंकित ऐसा नहीं है.

सू बिस्तर पर गिर कर नींद के प्रथम चरण में गोते लगाने जा रही थी कि पी ने उसे झकझोर कर उठाया,‘‘देख सू, तुम सब ग़लत हो. अंकित वैसा नहीं है. वो भी बिलकुल मेरे जैसा है.’’

सू ने अंधमुंदी आंखें खोल बुदबुदाते हुए कहा,‘‘हां पी, तुम दोनों एक जैसे हो, मेड फ़ॉर इच अदर. अब मैं सो जाऊं?’’

पी ने उसका कंधा छोड़ दिया, पर अब उसकी आंखों से नींद ग़ायब हो चुकी थी. जिगर में वाइन और सिगरेट की मिलीजुली गंध उसे परेशान कर रही थी. पर कहीं सुकून भी था—ऐसे ही सही, कल सू को अच्छी तरह बता पाएगी कि शादी क्या है और इसे कैसे निभाते हैं.


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