कहानी: क्या समझूं मैं?
आज ख़ुद ही पूछ लेगी वो. अब जीवन में सेटल होना चाहती है. भागमभाग-रेलमपेल सब झेल चुकी है. आजकल के समय में 32 वर्ष की उम्र कोई ज़्यादा नहीं होती. और घर बसाने का हक़ सबको है. अल्मारी खोली और फ़िरोज़ी सूट निकाल लिया. रवि हमेशा कहता था कि मुझपर ये रंग जंचता है. रवि! फिर रवि...तो क्या इस नाम से मुक्ति नहीं पा सकी है वो दो सालों के बाद भी? हमेशा सोचती है कि रवि नाम के हादसे से वो उबर चुकी है...पर क्या ये सच नहीं है? बिल्कुल सच है! झटके से फ़िरोज़ी सूट अंदर रख दिया उसने. अपनी पसंद के हरे रंग का सूट निकाल लिया.
नौ बज रहे हैं और अब तक स्नान भी नहीं किया है उसने. बारह बजे मां से मिलने जाना है. आज कुछ और हिम्मत जुटानी होगी. हिम्मत की कमी तो कभी नहीं रही उसमें. उसके मॉम-डैड ने उसकी परवरिश ही ऐसी की है. क्या शारीरिक और क्या मानसिक, दोनों ही तरह से मज़बूत है वो. नौ बरस की थी, जब मॉम ने उसे कराते क्लास में डाला था और बारहवीं में आते-आते उसे ब्लैक-बेल्ट भी मिल गया था. डैड ने हमेशा अपने निर्णय ख़ुद लेने की छूट दी. पढ़ाई अपनी मर्ज़ी के विषय में की, लेकिन बाद में लगा ग़लत विषय ले लिया तो मॉम-डैड से डिस्कस कर के उसने अपना विषय बदला और अब अपना बुटीक चला रही है, जिसका रिस्पॉन्स इतना अच्छा है कि पिछले माह ही उसने अपना दूसरा बुटीक खोला है, दूसरी लोकैलिटी में. और वो चाहती है कि पूरे शहर में उसके बुटीक के आउटलेट्स हों, जिसके लिए उसकी पूरी तैयारी भी है.
स्नान के बाद तुरंत चाय पीना उसे बहुत पसंद है. पिछले 10 वर्षों से उनके यहां काम कर रही मेड सोभा को ये बात पता है इसलिए वो पहले ही टेबल पर चाय रख गई थी. सोभा का नाम तो शोभा है, लेकिन वो ख़ुद अपना नाम सोभा कहती है तो अमिता भी उसे सोभा कहती है. अमिता को वो दिन याद आ गया, जब मॉम उसकी इस बात पर बहुत हंसी थीं. शोभा काम मांगने उनके घर आई थी और मॉम ने सारी पूछताछ कर उसे रखने का मन बना लिया था. अमिता कॉलेज से लौटी ही थी और घर पर मां को काम के लिए बाई से बात करते देख उसने पूछा,‘‘मॉम इसे काम पर रख रही हैं क्या?’’ और उनकी ‘हां’ सुनते ही तुरंत पलटकर पूछा,‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’
‘‘सोभा,’’ ये जवाब पाते ही खिलखिलाकर हंस दी थी वो. शोभा उसे असमंजस से देखती रही और मॉम मुस्कुरा दीं.
‘‘तो सोभा कब से काम करने आ रही हो हमारे यहां?’’
‘‘जब से आंटी कह दें. हम तो आज से ही कर सकते हैं.’’
‘‘नहीं आज रहने दो. कल से आना और सुबह आठ बजे आ ही जाना,’’ मॉम का जवाब पाकर वो चली गई.
उसके जाते ही मॉम ने टोका,‘‘किसी के नाम पर भी यूं हंसते हैं भला?’’ और ख़ुद भी ज़ोर-ज़ोर से खिलखिलाने लगीं. ‘‘वो भले ही सोभा कहे तुम तो शोभा कह सकती हो ना?’’ ख़ुद को संयत करते हुए उन्होंने कहा.
‘‘नहीं मॉम अब तो मैं उसे सोभा ही बुलाऊंगी हमेशा. हमारे घर की सोभा,’’ और वे दोनों समवेत स्वर में ठहाका लगा उठे थे.
अपने काम के साथ-साथ मॉम और डैड को वो रोज़, कभी-कभी तो दिन में कई-कई बार याद कर लेती है. तीन बरस पहले डैड उन दोनों को अकेला छोड़ गए थे और उसके छह माह बाद मॉम भी चल बसीं. अब उसे यूं लगता है कि इस दुनिया में वो अकेली ही रह गई है. जब डैड नहीं रहे थे, रवि था उसके साथ. उसका सहपाठी, सहयोगी और सहचर. ना...शादी तो नहीं हुई थी दोनों की, पर सहचर्य के लिए शादी कोई बंधन तो नहीं. मॉम-डैड तो पूरी तरह राज़ी थे उन दोनों की शादी के लिए, लेकिन...
डैड के बाद के छह महीनों में उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल गई. अपनी मौत से लगभग दो-ढाई महीने पहले उन्होंने अमिता के सामने जिस राज़ का खुलासा किया, उसने तो अंदर तक हिला दिया था उसे. डैड ने उससे ये भी तो कहा था कि उन्हें उसपर पूरा भरोसा है कि वो परिस्थितियों को सही ढंग से समझेगी और उनसे वैसे ही उबरेगी, जैसे उन्होंने और मॉम ने उसे सिखाया है-बिल्कुल निर्भीक और साहसी तरीक़े से.
मॉम ने उसे बताया कि जब अमिता उनके जीवन में आई तो कैसे खिला-खिला-सा हो गया उनका घर और कितनी मनुहार के बाद ईश्वर ने उनकी सुनी थी. पर वो इस सच्चाई को जानकर एक-दो दिन तक सदमे में थी कि उसके मॉम-डैड, उसके असली मॉम-डैड नहीं हैं. अमिता का तब का एक अतीत है, जब वो इस दुनिया में आई भी नहीं थी. दरअसल, उसकी मां एक बहुत अच्छे परिवार की महिला थीं, लेकिन मंदबुद्धि थीं. उनके माता-पिता यानी अमिता के नाना-नानी के देहांत के बाद कई रिश्तेदारों ने उनकी संपत्ति हथियाने के चक्कर में उन्हें अपने पास रखने की पहल की और कुछ महीनों तक रखा भी उन्हें. लेकिन इसका नतीजा थी-अमिता. अमिता के पेट में होने के बावजूद, उसकी मां लोगों को या डॉक्टर को ये बताने में असमर्थ थीं कि अमिता का पिता कौन है? ऐसे में जो रिश्तेदार उन्हें ले गए थे, वो ही उन्हें वापस नाना-नानी के घर अकेला छोड़ गए.
तब उनके पड़ोस में किराए से रह रहे उसके मॉम-डैड, जो नि:संतान दंपति थे, ने न सिर्फ़ उनका ध्यान रखा और प्रसव करवाया, बल्कि उसके नाना-नानी की संपत्ति को बेचकर मिले पैसों की एफ़डी खुलवाई और उसकी मां को मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती करवा दिया. अमिता को उसका नाम, मॉम-डैड और घर मिल गया तो मॉम-डैड के जीवन में उसके रूप में एक नन्ही परी आ गई, जिसने उनके जीवन को गुलज़ार कर दिया.
ये सच जानकर अमिता का अपसेट होना लाज़मी था. वो हुई भी, लेकिन उसके ज़हन में ये बात कहीं ज़्यादा स्पष्ट थी कि उसके मॉम-डैड केवल उसके ही नहीं, बल्कि उसकी मां के भी अपने हैं. ग़लत...उसके ही नहीं, बल्कि उसके मां के भी मॉम-डैड हैं, क्योंकि इतनी सही सोच के साथ देखभाल सिर्फ़ और सिर्फ़ माता-पिता ही तो कर सकते हैं!
उसकी मॉम ने उसे बताया था कि डैड और वो ख़ुद भी हमेशा, हर माह बिना नागा उसकी मां से मिलने जाते रहे हैं. ये सच्चाई बताने के बाद उसके मॉम-डैड ही उसे उसकी मां से मिलवाने ले गए. अपनी मां को देखकर उसके दिल में एकदम से प्यार उमड़ आया ऐसा भी तो नहीं हुआ था. बस, वो उन्हें एकटक देखती रही सोचती रही कि इस महिला के साथ क्या-क्या हुआ होगा और देखो इसे कुछ मालूम भी नहीं है. कितनी निरीह लगती है ये. उन्हें देखकर न जाने कैसा तो हो आया था उसका मन. इसी बीच उसने महसूस किया कि उसकी शक्ल अपनी मां से बहुत मिलती-जुलती है. इस एहसास के बाद, उसने पहली बार उन्हें छुआ. वो स्पर्श अजीब-सी झुरझुरी भर गया था उसके भीतर. इस स्पर्श ने शायद उसके भीतर ये एहसास जगाया कि ये उसकी जननी हैं, पर धीरे-धीरे ही वो ख़ुद को उनसे जोड़ सकी और मॉम-डैड के साथ हर इतवार उनसे मिलने जाने लगी.
अपने अस्तित्व से जुड़ी ये बात अपने सहचर से छुपाने का सवाल ही नहीं उठता था. जब इन बातों का खुलासा हुआ तो रवि ने भी तो उसका चेहरा पढ़ लिया था.
‘क्या बात है, बहुत अपसेट लग रही हो?’ उसके ऐसा पूछते ही ख़ुद को रोक नहीं सकी थी वो. उसके सीने पर सिर रखकर हिलक-हिलककर रोई थी. ना जाने कितनी देर...
चाय ख़त्म करते ही उसने घड़ी पर नज़र डाली. ग्यारह बज चुके थे. उसे अभी नाश्ता भी करना है और मन है कि बेलगाम घोड़े की तरह अतीत में घुसता ही चला जा रहा है...शायद भविष्य की तैयारी के लिए, क्योंकि वर्तमान को खुलकर जीने और भविष्य को भरपूर जी पाने की पूरी तैयारी रखनेवाली शख़्सियत है उसकी. अतीत में डूबकर, उसी में डुबकियां लगाते हुए दम तोड़ देनेवाले लोगों में से नहीं है वो. हो भी क्यों? जीवन एक ही बार मिला है और उसे खुले दिल से, खुलकर जीना ही चाहिए.
आज जब वो मां से मिलने जा रही है और अपना पूरा साहस बटोरकर शांतनु से भी...तो ये सारी बातें उसे अपने आप ही घेरे चली जा रही हैं...न चाहते हुए भी.
हरे रंग के इस सूट में वो बहुत ख़ूबसूरत लग रही है. धीरे-धीरे, बड़े जतन से, बड़े सलीके-से तैयार होते हुए उसने ख़ुद को आईने में निहारा. माथे पर एक लाल बिंदी लगाई और ख़ुद ही अपने हाथों से उस निकाल भी दिया. नहीं, पता नहीं क्यूं, पर उसे ख़ुद पर बिंदी अच्छी नहीं लगती. आइ लाइनर और हल्का-सा लिप ग्लॉस लगाया और ख़ुद पर ही आत्म-मुग्धा सी उड़ती नज़र डाली और मुस्कुरा दी...
सोभा को नाश्ता लगाने का आदेश देती हुई वो अपने पर्स को ठीक करने लगी. रविवार को वो अपने बुटीक में शाम को ही जाती है, क्योंकि सुबह मां से मिलने जाना होता है. और वहीं डॉ शांतनु से भी मुलाक़ात हो जाती है.
आप चाहे जो कर रहे हों, पर दिमाग़...वो तो अपनी अलग धुन पर न जाने क्या-क्या सोचता ही जाता है. नाश्ता करते हुए भी...पूरी बात सुनकर रवि ने उसे कसकर अपने आग़ोश में ले लिया था.
‘‘क्या फ़र्क़ पड़ता है इस बात से अमिता?’’ उसके बालों को सहलाते हुए वह बोला. कितना सुरक्षित महसूस किया था अमिता ने तब उसकी बांहों में.
लेकिन इधर अगले कुछ दिनों में उसने रवि के व्यवहार में आए परिवर्तन को भी महसूस कर लिया था.
‘‘तुम इतने बदले-बदले से क्यों लगते हो मुझे आजकल रवि? मेरे पास होते हुए भी ऐसे जैसे मेरे पास नहीं हो. कुछ कटे-कटे से.’’
‘‘थोड़ा परेशान तो हूं. सोच रहा हूं हमारे रिश्ते की हामी दे चुके मेरे मां-पापा को तुम्हारे अतीत के बारे में बताऊं या नहीं?’’
‘‘जब मैंने तुमसे नहीं छुपाया और ये जानने के बाद भी तुम्हें कोई ऐतराज़ नहीं तो उन्हें भी बता ही दो. क्योंकि मैं हर रविवार मां से मिलने जाती हूं. कभी न कभी उन्हें ये बात पता चल ही जाएगी. तो क्यों न हम सच बताकर ही उनकी पूरी रज़ामंदी लें?’’
‘‘मैं भी यही सोच रहा था.’’
फिर बातों का रुख़ भी मुड़ गया था.
‘‘पता है, मां से मिलने जाती हूं तो वहां उनके वॉर्ड की देखभाल के इंचार्ज डॉ शांतनु से भी मेरी मुलाक़ात हो ही जाती है,’’ उसी दिन तो रवि को बताया था उसने शांतनु के बारे में. ‘‘कई बार उनकी आंखों में देखो तो लगता है, जैसे कुछ कहना चाह रहे हों.’’
‘‘हूं...हूं... तो?’’ बड़े ध्यान से सुन रहा था रवि.
‘‘बात-बात में मुझे बता रहे थे कि उनके घरवाले उनके लिए लड़की तलाश रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई लड़की पसंद नहीं आ
रही है.’’
‘‘कहीं जनाब का दिल मेरी अमिता पर तो नहीं आ गया?’’
हौले-से मुस्कुराते हुए बोली थी वो,‘‘मुझे भी यही लगा...इसलिए मैंने उन्हें बातों ही बातों में मेरे-तुम्हारे बारे में भी बता दिया, ताकि ऐसी कोई बात हो तो दिल से निकाल दें वो.’’
‘‘ज़्यादा बात ही मत किया करो उससे.’’
‘‘नहीं यार. अच्छे इंसान हैं, मां की पूरी केस हिस्ट्री पता है उन्हें. बहुत प्यार से देखभाल करते हैं अपने हर पेशेंट की. ऐसे अच्छे लोगों से दोस्ती ज़रूर रखनी चाहिए. जिस मुद्दे की वजह से ऐसे लोगों का साथ छूट जाए, उस मुद्दे पर चर्चा कर लेनी चाहिए. लेकिन ऐसे लोग, जिनका साथ आपको हमेशा प्रेरित करता है, कुछ न कुछ मानवीय करते रहने को, उन्हें ख़ुद से दूर नहीं जाने देना चाहिए.’’
‘‘क्यों बुटीक खोल लिया तुमने. फिलॉसफ़ी की लेक्चरर बन जातीं तो कहीं ज़्यादा सफल होतीं. देश-विदेश जाया करतीं. लोग तुम्हारे ही नाम की माला जपते,’’ उसपर सहज व्यंग्य कसते हुए रवि मुस्कुरा दिया था.
‘‘तुम भी ना...कहां से कहां पहुंच जाते हो...’’ बनावटी ग़ुस्से में ये बोलते हुए वो भी मुस्कुरा दी थी.
‘‘ये भी तो हो सकता है कि हम और तुम बेचारे डॉ शांतनु के बारे में यूं ही ये सब सोच रहे हों. उसके मन में ऐसा कुछ हो ही नहीं.’’
‘‘हो सकता है तुम सही हो. पर मैं ये जानती हूं कि मैं ग़लत नहीं हूं. ऐसे मामलों में हम महिलाओं की छठीं इंद्री बहुत सजग होती है और हमारे अनुमान ग़लत नहीं निकलते.’’
‘‘तुम्हारा नाम ही मां फ़िलॉसफ़ी होना चाहिए था,’’ रवि ने उसे फिर चिढ़ाया.
‘‘तो रख दो यही नाम...मुझे कोई ऐतराज़ नहीं,’’ अब वो चिढ़ने के मूड में नहीं थी.
अब यदि वो नहीं निकली तो मां से भी नहीं मिल पाएगी और शांतनु से भी. और आज उसका दोनों से ही मिलना ज़रूरी है. निहायत ज़रूरी...
‘‘सोभा, रामपाल से कहो गाड़ी निकाले और तुम दरवाज़ा लगा लो. मैं अब रात को ही लौटूंगी,’’ सोभा को हिदायत देते-देते उसने रिस्ट वॉच पहनी और बाहर निकल आई. आधे घंटे लग ही जाएंगे मेंटल हॉस्पिटल तक पहुंचते-पहुंचते गाड़ी में बैठते-बैठते उसने सोचा. रामपाल को मेंटल हॉस्पिटल चलने कहते हुए उसने अपना सिर कार की सीट से टिका लिया.
डैड के अचानक ही गुज़र जाने के बाद जब वो और मॉम एक-दूसरे को संभाल ही रहे थे कि एक शाम जब वो रवि से मिली
तो उसने कहा,‘‘तुमसे कुछ कहना चाहता हूं अमिता.’’
उसकी आवाज़ की गंभीरता का एहसास पाकर एकटक उसकी ओर देखती रही थी वह.
‘‘तुम्हारे बारे में जानकर अब मां-पापा मेरी शादी तुम्हारे साथ नहीं करना चाहते.’’
‘‘और तुम...तुम क्या चाहते हो?’’
‘‘मैं उनका इकलौता बेटा हूं अमिता.’’
‘‘ये कोई जवाब नहीं हुआ रवि.’’
‘‘तुम ये बताओ कि तुम क्या चाहते हो?’’
‘‘मैं उनके ख़िलाफ़ तो नहीं जा सकता.’’
‘‘अगर इरादा पक्का और पाक हो तो जा सकते हो.’’
‘‘....’’
‘‘कह दो नहीं जाना चाहते. मैं तुम्हारे मुंह से सच्चाई सुनना चाहती हूं. फिर चाहे जो फ़ैसला करो.’’
‘‘मैं उनका कहा मानना चाहता हूं.’’
‘‘क्यों? मेरे साथ इतने साल बिताने के बाद भी क्यों? क्या मेरा ज़रा भी ख़्याल नहीं है तुम्हें?’’
‘‘सच्चाई ये है अमिता कि मुझे भी इस बात से बहुत फ़र्क़ पड़ता है कि तुम्हारे पिता के बारे में कुछ नहीं जानते हम. फिर मां-पापा का कहना है कि तुम्हारी मां जैसी हैं...कहीं बाद में तुम भी उनकी तरह... किसी मेंटल प्रॉब्लम का शिकार न हो जाओ.’’
अपने कानों पर विश्वास भले ही न हुआ हो उसे, पर ये वो अच्छी तरह समझ चुकी थी कि उसका चुनाव, उसका रवि, जिसके साथ उसने अपने जीवन के सात बरस बिताए, जिसके साथ हर रंग में रंगती रही, वो चुनाव सरासर ग़लत था.
‘‘तो इसे क्या समझूं मैं रवि?’’
‘‘....’’ रवि को मौन ही खड़ा देखकर वही आगे बढ़ी.
अपना हाथ हवा में हिलाते हुए उसने कहा,‘‘ऑल द बेस्ट रवि! ...अलविदा.’’
और चली आई वहां से. मुड़कर भी नहीं देखा पीछे.
घर जाकर मॉम से लिपट कर रोना चाहती थी वो, पर घर पहुंचने पर पता चला कि मॉम की तबियत ठीक नहीं है. तुरंत डॉक्टर शर्मा को फ़ोन किया उसने. जब रिपोर्ट्स आईं तो पता चला कि हार्ट प्रॉब्लम है उन्हें. फिर अमिता ने उन्हें कुछ भी न बताना ही उचित समझा.
पर मॉम सब समझ गईं, बिन बताए ही. रवि का आना बंद ही जो हो गया था. कारण पूछने पर सबकुछ सच-सच बताना ही पड़ा अमिता को. मॉम बोलीं,‘‘अच्छा ही हुआ अमिता. तुम यदि जीवनभर ऐसे लड़के से बंध जातीं तो...? अच्छा हुआ कि उसकी सोच पहले ही सामने आ गई. अब मैं तुम्हारे लिए एक अच्छा जीवनसाथी तलाशूंगी.’’
‘‘कोई ज़रूरत नहीं मॉम. अभी मेरा शादी करने का कोई इरादा नहीं है. पहले अपने बिज़नेस को बढ़ाऊंगी और आपकी सर्जरी तो उससे भी पहले करानी है,’’ लाड़ जताते हुए बोली थी अमिता.
पर उसे क्या पता था कि इसके सप्ताहभर बाद ही मॉम भी उसे छोड़कर चली जाएंगी. उनकी सर्जरी की तारीख़ भी तय हो गई थी. उससे दो दिन पहले उन्हें मैसिव हार्ट अटैक आया और डॉक्टर भी कुछ नहीं कर सके. सालभर के भीतर अमिता की ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई थी. बदलाव अच्छा था या बुरा कुछ भी नहीं सोच पा रही थी वो, लेकिन उसके मॉम-डैड ने उसे इतना सशक्त बनाया था कि भले ही आंसुओं के साथ, पर इससे सामंजस्य बिठाने का दम-खम था उसमें.
मॉम के गुज़रने के कुछ ही दिनों बाद उसे अपनी एक कॉमन फ्रेंड से पता चला था कि रवि की शादी हो गई है. फिर एक अजीब-से एहसास से घिर गई थी वो. पर कुछ घंटों में ही उबर भी गई. फिर उसने ख़ुद को अपने काम को आगे बढ़ाने में तल्लीन कर लिया. तभी तो डेढ़ साल के भीतर ही अपना दूसरा बुटीक खोल लिया उसने और जल्द ही अपने काम को और आगे बढ़ा लेगी.
‘‘मैडम,’’ रामपाल की आवाज़ सुनकर चौंक गई वो. हॉस्पिटल आ गया था.
‘‘आज तो थोड़ी देर हो गई आपको?’’ डॉ शांतनु का मधुर स्वर आया, जैसे ही वो उनके केबिन में घुसी.
मुस्कुराते हुए वो बोली,‘‘हम्म्म...आज सारे काम इतवार की रफ़्तार से किए ना इसलिए.’’
‘‘क्या मैं मां को अपने साथ नहीं रख सकती?’’ अचानक ही पूछा उसने.
‘‘डॉक्टर होने के नाते मैं ये रिकमंड नहीं करूंगा.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘अब वो यहां एड्जस्ट हो चुकी हैं, आप क्यों उनका एन्वायरन्मेंट बदलना चाहती हैं?’’
‘‘क्योंकि...’’
तभी मोबाइल बज उठा तो डॉ शांतनु ने कहा,‘‘ये ज़रूरी फ़ोन है. आप मां से मिल लीजिए हम इसके बाद बात करते हैं.’’
जब वो मां से मिलकर लौटी तब तक डॉ शांतनु न सिर्फ़ बात कर चुके थे, बल्कि हर रविवार की तरह उसके लिए चाय भी बुलवा चुके थे.
‘‘तो क्या पूछ रही थीं अमिता? हां, मां को यहीं रहने दो. घर पर इतनी अच्छी तरह देखभाल नहीं हो पाएगी और तुम अपने काम पर सही तरीक़े से ध्यान भी नहीं दे पाओगी. और क्या अब तुम्हारा हम लोगों पर से भरोसा उठ गया है?’’ उनके चेहरे पर प्रश्नवाचक मुस्कान देखकर मुस्कुरा दी अमिता भी.
‘‘नहीं, बिल्कुल नहीं. पर...यूं ही मन हुआ कि...’’
‘‘मन अपनी जगह सही है, पर मैं अपनी जगह सही हूं. इतने प्रोफ़ेशनल तरीक़े से देखभाल नहीं हो सकेगी उनकी घर पर,’’ उसकी ओर चाय का कप बढ़ाते हुए उन्होंने कहा.
‘‘आज मैं आपसे कुछ और भी पूछना चाहती हूं.’’
‘‘पूछो ना?’’
‘‘समझ नहीं आ रहा कैसे?’’
‘‘क्यों?’’
‘‘दरअसल, वो...अमूमन ऐसा होता नहीं है अपने यहां, लेकिन...’’ कुछ अटकते हुए उसने आगे कहा,‘‘आप मेरी मां की हिस्ट्री और मॉम-डैड की कहानी तो जानते ही हैं...’’
‘‘हम्म्म...’’
उसका हाथ अपने दुपट्टे के छोर पर पहुंच गया. उसे अपनी उंगलियों पर गोल-गोल घुमाते हुए उसने शांतनु की आंखों में झांकते हुए कहा,‘‘रवि के बारे में भी बताया था मैंने आपको,’’ फिर एक गहरी सांस लेते हुए बोली,‘‘पर ये नहीं बताया कि हमारा ब्रेकअप हो चुका है.’’
‘‘अरे...कब?’’
‘‘अर्सा हो गया. लगभग दो बरस.’’
‘‘ये तो ग़लत है. मैं और आप हमेशा दोस्तों की तरह बात करते हैं, आपको ये बात शेयर करनी चाहिए थी.’’
‘‘मैं ख़ुद ही उबरना चाहती थी इस हादसे से भी.’’
‘‘पर दोस्तों से तो बांटा ही जा सकता है अपना दुख.’’
‘‘दुख ही क्यों सुख भी तो बांटा जा सकता है दोस्तों से...?’’
‘‘ये बात तो कुछ उलझ रही है.’’
‘‘नहीं. आज मैं पूरा साहस बटोरकर सुलझाने आई हूं बातों को.’’
‘‘मतलब?’’
‘‘ज़्यादा घुमाफिरा कर बातें करना नहीं आता मुझे. मैं घर बसाना चाहती हूं अब. क्या आप मुझसे शादी करेंगे?’’ ये सवाल पूछते-पूछते अपने चेहरे पर उतर आई गरमाहट और तपन को महसूस कर रही थी वो.
अपलक निहारते रहे उसे डॉ शांतनु, लेकिन कुछ कहा नहीं उन्होंने. चंद पलों तक मौन ही पसरा रहा उनके बीच.
कुछ देर रुक कर उसने ही पूछा,‘‘तो क्या समझूं मैं?’’
डॉ शांतनु अपनी कुर्सी से उठकर उसके पास पहुंचे और हौले-से उसके हाथों को अपने हाथों में ले लिया...
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