कहानी: परिवर्तन

चाय की चुस्कियों के बीच चल रही बातचीत में सब मशगूल हैं. बीच-बीच में लग रहे ठहाकों से माहौल ख़ुशनुमा बना हुआ है. सबके चेहरों पर हंसी है, पर अनुराधा का चेहरा थोड़ा फीका लग रहा है. वह अपने आप में ही गुम सी लग रही है.

जैसे ही सब थोड़ा इधर-उधर हुए काफ़ी देर से अनुराधा के मिजाज़ को भांप रहे प्रकाश ने मौक़ा पाते ही धीरे से पूछा,‘‘क्यों जी, क्या हुआ कनिका पसंद नहीं आई?’’ अचानक पूछे इस सवाल पर अपनी दुनिया से वापस आते हुए अनुराधा ने ज़रा झिझकते हुए कहा,‘‘लग तो अच्छी रही है पर...’’

‘‘...पर क्या? क्वॉलिफ़ाइड है, सुंदर है, और क्या चाहिए?’’ प्रकाश ने अनुराधा के पर... को ख़त्म करने के लिए दो जवाबों के साथ एक सवाल छोड़ दिया. इससे पहले कि अनुराधा कुछ और कह पाती मुस्कुराते हुए कपिल और सुमन आ गए.


‘‘तो क्या खुसुर-फुसुर चल रही थी आप दोनों में? शादी की तारीख़ तय करने की बातें कर रहे थे क्या?’’ कपिल ने प्रकाश से पूछा तो अनुराधा और प्रकाश दोनों एक दूसरे की ओर देखकर मुस्कुरा दिए.

‘‘आप लोग तो ऐसे शरमा रहे हैं, जैसे आपकी शादी की बात हो रही हो,’’ कपिल ने मौक़ा पाकर उनकी टांग खिंचाई करते हुए कहा. ‘‘वैसे शादी के बाद हनीमून के लिए कहां जाने का इरादा है?’’

‘‘बस भी कीजिए, मज़ाक की भी हद होती है,’’ अनुराधा और प्रकाश को झेंपते देख सुमन ने कपिल से कहा.
‘‘बोलने दीजिए भाभी, मेरा होने वाला समधी है, इतना तो हक़ है इसका,’’ प्रकाश ने कहा.

‘‘वैसे मौक़ा मिलने पर ये भी तो मुझे अपने लपेटे में लेने से नहीं चूकता है.’’ कपिल के जवाब से माहौल ठहाकों से गूंज गया.


दरअसल, प्रकाश माथुर और कपिल सिन्हा कॉलेज के दिनों के दोस्त हैं. बीएचयू से पोस्ट ग्रेज्युएशन के बाद प्रकाश अपने पिता का बिज़नेस सम्भालने के लिए कानपुर चले गए और कपिल ने अगले दो साल इलाहाबाद में जाकर यूपीएससी की तैयारी की और सिविल सर्विस में जाने की अपनी पुश्तैनी परंपरा बरक़रार रखी. जब कपिल का तबादला कानपुर हुआ तो दोनों पुराने दोस्तों की मुलाक़ात हुई और इस रिश्ते को और पुख़्ता बनाने की शुरुआत भी. बातों-बातों में ही प्रकाश को पता चला कि कपिल अपनी बेटी कनिका की शादी के लिए लड़का देख रहे हैं तो उन्होंने मज़ाक में अपने बेटे सिद्धार्थ का नाम सुझाया. मज़ाक में शुरू हुई बात आज शादी तक पहुंच गई है.

शादी की बात चलने के बाद से सिद्धार्थ और कनिका आपस में मिल चुके थे. दोनों की ओर से सहमति के बाद आज प्रकाश, अनुराधा और सिद्धार्थ तीनों कनिका को देखने आए थे. वापसी में जहां बाप बेटे आपस में हंस बोले रहे थे वहीं अनुराधा गुमसुम सी थी. वह अपने ख़्यालों की दुनिया में विचरण कर रही थी. ‘बेटे की शादी होने वाली है यानी बहू आएगी. मैं सास कहलाऊंगी. सास! क्या मैं बूढ़ी हो रही हूं? अभी पचास बसंत भी तो नहीं देखे हैं मैंने. सास नाम सुनते कितना अजीब लगता है, बुढ़ापे का एहसास होता है. इस एक रिश्ते के बढ़ने के साथ कितना कुछ बदल जाएगा.’ अचानक गाड़ी के रुकने से उसकी तंद्रा भंग हुई.


‘‘हम लोग इतनी जल्दी घर पहुंच गए!’’ अनुराधा ने आश्चर्य से पूछा.

प्रकाश ने आदतन चुटकी लेते हुए कहा,‘‘समय तो उतना ही लगा, पर तुम तो बहू लाने के सपने देखने देख रही थीं.’’
एक खीझी हुई मुस्कान के साथ गाड़ी से उतरते हुए, बिना कुछ कहे अनुराधा ने प्रकाश की ओर देखा और प्रतिक्रिया मिलने की प्रकाश की इच्छा पर विराम लगा दिया. उसे घर पहुंचाने के बाद प्रकाश अपने ऑफ़िस चले गए और सिद्धार्थ अपनी डिस्पेंसरी. चूंकि आज अनुराधा ने छुट्टी ले रखी थी, सो वह घर पर अकेली रह गई.

घर पर अकेले फिर अपने ख़्यालों में खो गई. ‘वैसे लड़की देखने में तो अच्छी है, पर मां बाप की इकलौती है सो नकचढ़ी तो ज़रूर होगी...पर स्वभाव तो उसका अच्छा लग रहा था, बातचीत में भी अच्छी थी. पर कौन जाने सब बनावटी हो? यह तो बाद में ही पता चलेगा.’ फिर उसे ख़ुद अपनी सोच पर ग़ुस्सा आ गया,‘मैं यह सब क्या सोच रही हूं? मैं इतनी शंकालू और ईर्ष्यालू कब से हो गई? मैं नाहक ही परेशान हो रही हूं. मैं ख़ुद ही तो चाहती थी कि घर में जल्द ही बहू आ जाए, स्कूल से आने के बाद दिन नहीं कटता.’

ऐसा सोचकर वह अपने दिल को समझाने का प्रयास करती है. पर पता नहीं क्यों उसे यह सब उतना अच्छा नहीं लग रहा है जितना उसने सोचा था. ऐसा भी नहीं था कि उसे कनिका पसंद न आई हो. प्रकाश के जिगरी दोस्त की बेटी है, एक क्वॉलिफ़ाइड डॉक्टर है. फिर ऐसे नकारात्मक विचार क्यों आ रहे हैं?


उसने खाना खाया और अपने कमरे में आराम करने के लिए आ गई. बिस्तर पर लेटी पर नींद भी नहीं आ रही थी. वह उठी और अलमारी से फ़ोटो एलबम निकाल लाई. एलबम के पन्ने पलटने लगी, सिद्धार्थ की तस्वीरों को ग़ौर से देखते हुए सोचने लगी. ‘सिद्‍धू कितना भी बड़ा हो जाए मेरा सिद्‍धू तो मेरा सिद्‍धू ही रहेगा. पर क्या उसके लिए भी मैं वही रहूंगी? कहीं वो बदलेगा तो नहीं? अब तक अपनी हर छोटी-बड़ी चीज़ के लिए मां मां की रट लगाए फिरता है.

कितनी बार प्यार से झिड़कती हूं शादी हो जाएगी और दो-तीन बच्चों का बाप बन जाएगा पर हरकतें तब भी बच्चों वाली ही रहेंगी क्या? इस पर वह भी मुस्कुराकर कहता है दो-तीन क्या पांच बच्चों का भी बाप बन जाऊंगा तब भी अपनी मां का बच्चा ही रहूंगा. सच कहूं तो मुझे भी सिद्‍धू की ऊटपटांग हरकतें बहुत भाती हैं.

मुझे याद है मैंने वो साढ़े पांच साल कैसे रो-रोकर काटे हैं जब वह एमबीबीएस करने के लिए जबलपुर गया था. स्कूल से आने के बाद हर समय उसकी ही यादों में खोई रहती थी. हर दूसरे रोज़ उससे फ़ोन पर बात करती थी, फिर भी हर दिन उसे एक चिट्ठी लिखा करती थी. वैसे उसमें बातें तो वही रहती थीं, जैसे-खाना समय पर खाते हो या नहीं? मेस में खाना अच्छा मिलता है? वहां मन लगता है ना? छुट्टियां कब मिलने वाली हैं? मेरे भेजे लड्डू तुम्हें मिल गए ना, गिन कर रखे थे 25 थे, पूरे मिले ना? टूटे तो नहीं थे? कभी सोचती हूं तो हंसी आ जाती है, कि ये कैसे सवाल पूछती थी? पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है शायद ही कभी पूछा हो. पर शायद मां के दिल में अपने बच्चों के लिए इसी तरह के सवालों की प्राथमिकता होती है.’

पहले साल घर आने पर सिद्‍धू ने प्यार भरी उलाहना के साथ मुझसे कहा था,‘‘क्या मां तुम रोज़ ही वही बात लिखती हो, बंद चिट्ठी देखकर भी पता चल जाता है कि इसमें क्या लिखा होगा? चिट्ठी आने के बाद मेरे रूममेट मुझसे कहते हैं आ गई सिद्धार्थ की मां की गाइडलाइन. पर एक बात कहूं मां जबलपुर से यहां आने के बाद मैं तुम्हारी चिट्ठियों को बहुत मिस करता हूं.’’


‘‘तो क्या करती सिद्‍धू तेरे बिना सब कुछ सूना सूना लगता है? इसलिए तुझे रोज़ चिट्ठी लिखती हूं. अच्छा चल बता क्या तुझे मेरी याद नहीं आती?,’’ मैंने उसके सिर पर हाथ फिराते हुए बाल सुलभ उत्सुकता के साथ पूछा तो उसने मुझे कस कर पकड़ते हुए कहा, ‘‘आती है ना याद जब सॉक्स जगह पर नहीं मिलते, एप्रेन और घड़ी नहीं मिलती या किसी जूते की जोड़ी नहीं मिलती तब तो मैं तुम्हें ही याद करता हूं.’’

‘‘चल हट, मतलबी कहीं का. जब सॉक्स, कपड़े, जूते का ख़्याल रखनेवाली मिल जाएगी तो मुझे भूल ही जाएगा.’’
‘सिद्‍धू दांत दिखाकर हंसने लगा तो मुझे ग़ुस्सा तो बहुत आया पर दूसरे ही पल लगा ऐसा थोड़े न होगा, मां तो आख़िर मां होती है, वह मुझे तब भी याद करेगा.’

‘कहीं मुझे कनिका में सिद्‍धू के सॉक्स, कपड़े, जूते का ख़्याल रखनेवाली यानी मां की अहमियत को कम करने वाली तो नज़र नहीं आ रही है? कहीं यही मेरी अनमनी ख़ुशी का कारण तो नहीं है? कुछ ऐसे विचार मन में आए और तब तक परेशान करते रहे, जब तक अगली तस्वीर ने फिर से अतीत की ओर नहीं खींच लिया. मैं और सिद्‍धू मुंह लटकाए हुए खाने की टेबल पर बैठे हैं. बात तब की है जब जबलपुर से आने के बाद उसने कानपुर में अपनी डिस्पेंसरी खोली थी. हम तीनों रात को खाने की टेबल पर मिलते और ख़ूब बातें किया करते. उस दिन सिद्‍धू का मूड कुछ ठीक नहीं था, मैंने पड़ोस में हुए झगड़े की बात छेड़ दी. इस पर वह नाराज़ हो गया और कहने लगा,‘‘क्या मां घर आते ही राम कहानी शुरू.’’ मुझे उसकी बात बहुत बुरी लगी थी. मैंने भी मुंह फुला लिया. उसी वक़्त प्रकाश ने कैमरे से मां बेटे की नाराज़गी वाली तस्वीर उतार ली थी. हालांकि वह फ़ोटो देखकर बाद में हम ख़ूब हंसे थे.’


वह बात सोचकर अनुराधा के चेहरे पर एक हल्की सी हंसी तैर गई, पर दूसरे ही पल हंसी को ढंकते आशंका रूपी बादल फिर से गहरा गए. ‘वैसे भी किसी की शिकायत करने पर झल्ला जाता है, यदि कभी कनिका की कोई बात बुरी लगी तो उससे कह भी नहीं पाऊंगी. प्रकाश को तो कुछ फ़र्क़ पड़ता नहीं. उनके दोस्त की बेटी है वो तो उसका ही पक्ष लेंगे. वैसे भी शादी के बाद सिद्‍धू की प्राथमिकताएं बदल जाएंगी, मुझसे कहीं ज़्यादा कनिका उसकी प्राथमिकता बन जाएगी. मां के स्नेह की डोर कमज़ोर पड़ने लगेगी. मैं तो अकेली पड़ जाऊंगी.’
ऐसे ही ख़्याल उसे पूरे दिन आते रहे. आराम करने के इरादे से अपने कमरे में आई अनुराधा, अपने ख़्यालों द्वारा गढ़े गए बोझ से और भी परेशान होती गई.

रात को प्रकाश घर आए, उन्होंने अनुराधा के उदास और लटके हुए चेहरे को देखकर कहा,‘‘क्या हुआ, तुम बड़ी परेशान लग रही हो?’’


‘‘नहीं, कुछ नहीं हुआ, बस ऐसे ही सिरदर्द हो रहा है,’’ बात को टालते हुए अनुराधा ने कहा.

‘‘नहीं कोई बात तो ज़रूर है, मैं कल से ही तुम्हें नोटिस कर रहा हूं. कपिल के घर पर भी तुम उदास उदास सी लग रही थीं.’’ प्रकाश के कुरेदने पर अनुराधा ने अपनी मन की गांठों को खोलना शुरू किया,‘‘दरअसल, मैं यह सोच कर बहुत परेशान हूं कि शादी के बाद सिद्‍धू बदल गया तो...’’ उसकी बात को बीच में ही काटते हुए प्रकाश ने कहा,‘‘...फिर तो बड़ी मुश्क़िल हो जाएगी, है ना! तुम्हारी तो बड़ी फ़जीहत होगी. फिर हमारे घर में भी सास बहू की लड़ाई होगी.’’ होंठों पर आ रही हंसी को बड़ी देर से दबाने की कोशिश कर रहे प्रकाश हंस पड़े. प्रकाश के ऐसा करने पर उसकी झल्लाहट ग़ुस्से में तब्दील हो गई. ‘‘तुम्हें तो हर बात में खींसे निपोरने की आदत है.’’

‘‘और तुम्हें? हर बात पर ख़्याली टेंशन पकाने की.’’

‘‘ख़्याली टेंशन! तुम्हें क्या पता, तुम मेरी जगह होते तब पता चलता.’’


 ‘‘हां, शादी होने के बाद बेटा तुम्हें पहचानना जो बंद कर देगा, सो टेंशन की बात तो है ही,’’ प्रकाश ने चुटकी लेते हुए कहा. इस पर अनुराधा और भी भड़क गई. मामले को बिगड़ता देख प्रकाश ने अनुराधा को समझाने वाले लहजे में कहा,‘‘अनुराधा, तुम्हें इसी बात का डर है ना कि शादी के बाद वह तुमसे कहीं ज़्यादा अहमियत कनिका को देने लगेगा और उनका रिश्ता मां-बेटे के रिश्ते पर हावी होने लगेगा, है ना?’’ अनुराधा ने हां में सिर हिलाया.

‘‘तो इसमें नई बात क्या है, ऐसा तो हमेशा से होता आया है. अपनी शादी के पहले तक मैं जितना अम्मा पर निर्भर था शादी के बाद उतना नहीं रहा. तो क्या अम्मा को इस बात का एहसास नहीं होता रहा होगा? ज़रूर होता रहा होगा. पर क्या उन्होंने इस बात को दिल में रखते हुए कभी तुमसे कोई मनमुटाव किया? नहीं ना. फिर तुम क्यों ऐसा सोचती हो?’’

 ‘‘वे ऐसा क्यों सोचतीं भला, मैंने तो हमेशा उन्हें अपनी मां जैसा स्नेह दिया है उनकी हर बात मानी है,’’ अनुराधा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा.


‘‘तो कनिका को तुम बेटी की तरह मानो, फिर ऐसी कोई मुश्क़िल ही नहीं आएगी.’’

‘‘तुम्हारा कहना सौ प्रतिशत सही है प्रकाश, पर मेरा मन इस परिवर्तन को स्वीकार करने में लेकिन...यदि...जैसे कई कारण गिना रहा है और सच कहूं तो बहुत झिझक महसूस हो रही है. ऐसा लग रहा है जैसे मैं सिद्‍धू पर किसी और का अधिकार बर्दाश्त नहीं कर सकूंगी.’’

‘‘लेकिन अनुराधा, यह परिवर्तन एक दिन में तो नहीं आया है. तुम्हें याद है सिद्धार्थ के पंद्रहवें बर्थडे पर जब तुमने छुट्टी ली थी, ताकि पूरा दिन उसके साथ बिता सको, लेकिन उस दिन वह अपने दोस्तों के साथ बाहर चला गया तो तुम्हें बहुत बुरा लगा था. तुमने सिद्धार्थ को कितनी डांट लगाई थी और उसके दोस्तों को भी भला बुरा कहा था. पर बाद में तुमने ख़ुद माना कि एक निश्चित उम्र के बाद अभिभावकों से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण दोस्त हो जाते हैं. अभिभावक चाहे कितने भी आज़ाद ख़्याल क्यों न हों, बच्चे अपने कुछ राज़ अभिभावकों से नहीं शेयर कर पाते. पर इसका मतलब यह तो नहीं होता कि अभिभावकों का दर्जा उनके लिए गौण हो जाता है.’’ अनुराधा हामी भरते हुए सहमति में सिर हिलाती जा रही थी.


प्रकाश आगे कहते गए,‘‘ठीक उसी तरह, जीवन के एक पड़ाव पर दोस्तों से भी कहीं ज़्यादा सामीप्य वाले एक रिश्ते की ज़रूरत महसूस होती है, जीवन में आगे बढ़ने के लिए भावनात्मक सम्बल की आवश्यकता होती है. सीधे सीध कहूं तो एक हमसफ़र चाहिए होता है. मेरे लिए वह सहारा, सम्बल तुम हो और सिद्धार्थ के लिए वह सहारा कनिका होगी.’’

‘‘वैसे भी हम ज़िंदगीभर तो उसके साथ नहीं रह सकते. फिर तुम्हें इस परिवर्तन को हंसते हुए स्वीकार करना चाहिए हिचकते हुए नहीं’’ अब धीरे-धीरे अनुराधा के चेहरे पर चिरपरिचित मुस्कान लौटने लगी थी. उसने परिवर्तन को स्वीकारने का मन बना लिया है यह उसकी आंखों की चमक से बयां हो रहा था.


उसने थोड़ा झेंपते हुए कहा,‘‘मैं समझ गई परिवर्तन को स्वीकार करने में ही सबका हित है. पर...क्या कनिका सिद्‍धू को सम्भाल पाएगी? वह उसके साथ ख़ुश तो रहेगा?’’

प्रकाश ने मुस्कुराते हुए कहा,‘‘यह तो समय ही बताएगा, पर कोई मुझसे यह पूछेगा कि सास बहू में लड़ाई क्यों होती है? तो मैं उसे बहुत अच्छे से समझा सकता हूं.’’

इस पर दोनों हंस पड़े और बेटे की ज़िंदगी में आने वाले परिवर्तन की तैयारियों में लग गए.

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