कहानी: कुंडली मिलन

ज्योतिषी पंडित सुदर्शन भट घर पर ही थे और कोई दूसरा ग्राहक भी नहीं था, यह देख मालिनी ने राहत की सांस ली. ग्राहकों के बैठने के लिए बिछी गादी की ओर इशारा करते हुए नौकर ने कहा, ‘‘बैठिए, पंडितजी पांच मिनट में आउत हैं.’’

भटजी फ़ुर्सत में मिलें ऐसा बहुत कम होता है. अक्सर तो पांच-दस ग्राहकों के निपटने की प्रतीक्षा करते इतनी ऊर्जा चुक जाती है कि अपना क्रम आने पर ठीक से बातचीत भी नहीं हो पाती. मालिनी को याद आया, शादी के लिए बड़ी बेटी दक्षा की जन्मकुंडली मिलाने के लिए तीन दिन चक्कर लगाने पड़े थे. पर आज तो सुबह से, बल्कि कल शाम, जब से मंझली यानी पवित्रा बिटिया के लिए यह रिश्ता आया है, सब कुछ कितना स्मूथ होता जा रहा है? घर से निकलते हुए उत्साह से भरी मालिनी कह भी चुकी है,‘‘ज़रूर आज कोई बड़ा ग्रह बदला है, नहीं तो क्या ये ज़िद्दी, नखरेवाली मेरे साथ चलने को
राज़ी होती?’’

प्रतीक्षा करते हुए उन्होंने एक बार फिर  संतुष्ट मुस्कान के साथ अक्षता बिटिया की ओर देखा. बदले में अक्षता भी मुस्कुरा दी.

कल शाम जब मृणालिनी दीदी रिश्ते के लिए लड़के की जन्मकुंडली लेकर आईं, तब एकाएक मालिनी तनाव में आ गई थी. लगा एक बार फिर शुरू हो जाएगी दक्षा की बेमेल निरूपित शादी को लेकर परेशान कर देनेवाली, रुला देने वाली बहस. पवित्रा और अक्षता ही नहीं, कॉलेज में पहुंचने के बाद से तो अक्षांश भी बहसों में भाग लेने लगा है. वह भी बिलकुल अक्षता की तरह बेबाक बोलता है. पिछले हफ़्ते ही कह रहा था,‘‘मां, सालगिरह वगैरह की पार्टी में जीजाजी को अवॉइड कर दिया करो ना! एकदम मिसफ़िट लगते हैं.’’

‍मालिनी आज भी नहीं स्वीकार पाती की दक्षा की शादी तय करते समय उनसे कोई ग़लती हुई. चार साल पहले पति के अकस्मात निधन के बाद आर्थिक समस्या उतनी नहीं थी, जितना यह भय कि तीन-तीन बेटियां तेज़ी से जवान हो रही हैं, कहीं किसी ने कोई ग़लत कदम उठा लिया तो? ऐसे में सम्पन्न परिवार के हितेश का रिश्ता वह अस्वीकार नहीं कर सकी.

पारिवारिक सम्पदा तो थी, किन्तु स्वयं हितेश केवल उच्च श्रेणी शिक्षक था और दक्षा ने डिप्टी कलेक्टर बनने के लिए राज्य लोकसेवा आयोग की परीक्षा दी थी, दिखने में भी हितेश दक्षा से कुछ उन्नीस था. यह अलग बात है कि शादी के बाद दोनों के व्यक्तित्व में अट्ठारह-बीस का अंतर आ गया और दक्षा के डिप्टी कलेक्टर बन जाने के बाद तो यह अंतर और मुखर हो गया.

उन दिनों समय-असमय घर में बवाल उठ खड़ा होता. डाइनिंग टेबल पर पवित्रा पूछ बैठती,‘‘क्या मम्मा, दीदी की शादी के लिए आप दो साल और रुक नहीं सकती थीं? बस, तेईस-चौबीस की तो थी.’’
और अक्षता कहती,‘‘डिप्टी कलेक्टर बन जाने देतीं तो कोई भी कलेक्टर पसंद कर लेता उन्हें.’’

‘‘जन्मपत्री के साथ थोड़ी अक्ल और शक्ल का भी मिलान करने का नियम होना चाहिए.’’

‘‘बहुत बोलने लगे हो तुम लोग! चुप करो,’’ कहकर कभी तो मालिनी स्थिति पर क़ाबू पा लेती, लेकिन कई बार ग़ुस्से से खाना छोड़कर उठ जाती और घंटों रोती या मुंह फुलाए घूमती. बेमेल शादी के कारण बच्चों में उठी असंतोष की इस ज्वाला में घी डाल देती, बीच-बीच में अवकाश या दौरे पर आई ख़ुद दक्षा. तीनों छोटे बच्चों से अधिक अनुशासित होते हुए भी बातों-बातों में बोल जाती,‘‘साथ चलते हैं तो लोगों को यही लगता है, जैसे जाति का प्रमाण पत्र मांगनेवालों में से एक हैं.’’

‘‘नए कलेक्टर आए हैं ना आशुतोष कुमार, उनके सामने शर्म से पानी हो गई मैं तो, वे इनको किसी ठेकेदार का मुनीम समझ बैठे.’’

‘‘दौरे पर साथ ले जाती हूं तो ध्यान रखना पड़ता है इनका. सर्किट हाउस में घुसने से रोक दिया तो इनसे कहते भी नहीं बना कि मैं इनकी पत्नी हूं.’’

दक्षा ऐसे सारे किस्सों को मज़े ले लेकर सुनाती, लेकिन मालिनी जानती हैं, शब्द बाणों का इशारा वो ही हैं. अपने से केवल दो साल छोटी पवित्रा को तो दक्षा चुपके से अंतरंग प्रसंग भी सुना जाती, जो उसके जाने के बाद बिल्कुल एकांत में पवित्रा द्वारा ऐसी जुगुप्सा मिलाकर सुनाए जाते कि मालिनी को लगने लगता उन्होंने अपनी प्यारी बिटिया को कुंभीपाक नर्क में धकेल दिया है. अक्सर होनेवाली तनावपूर्ण बहस और बीच-बीच में दक्षा के तानों से तंग आकर आख़िर एक दिन मालिनी ने कह ही दिया,‘‘देखो दक्षा, मुझमें जितनी क्षमता थी, जितनी समझ थी, जो मुझे तुम्हारे लिए उचित लगा, वैसा मैंने कर दिया. मां हूं तुम्हारी, दुश्मन नहीं हूं. जो भी किया तुम्हारी भलाई के लिए किया. फिर भी अगर तुम्हें लगता है कि मैंने ग़लत कर दिया है, तो हाथ जोड़कर माफ़ी चाहती हूं और तुमसे विनती करती हूं कि इस पति से किसी भी तरह तलाक़ ले लो और अपनी पसंद से दूसरी शादी कर लो.’’

‘‘अब कह रही हो,’’ तुरंत मुंह बंद कर देनेवाला जवाब मिला,‘अब कह रही हो जब मैंने मां बनने का निश्चय कर लिया है?’’
तनाव और तानों के इसी सिलसिले में अक्षता ने आप्त वाक्य गढ़ा,‘‘भारतीय नारी की विडंबना देखो, प्रेम विवाह करेगी तो झगड़ा होने पर भले ही तलाक़ दे दे, लेकिन मां-बाप ने चाहे कैसे भी बेमेल लड़के के साथ लटका दिया हो, तलाक़ नहीं देगी, ज़िंदगी भर ढोती रहेगी.’’

तीन-चार साल गुज़रते गुज़रते बेमेल पति वाली बहस की फ्रीक्वेंसी कुछ कम ज़रूर हुई, पर समाप्त नहीं, जब भी विषय उठ जाता तनाव उतना ही, बल्कि उससे भी ज़्यादा उपजता, क्योंकि इस बीच कंपनी सेक्रेटरी की नौकरी पा चुकी अक्षता ने पवित्रा को कॉल सेंटर की नौकरी छोड़ने को मजबूर किया और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने में जुटाने के साथ घोषणा कर दी,‘‘आईएएस बनने के बाद ही पवित्रा दीदी शादी करेंगी. इनके लिए किसी को चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है.’’

पवित्रा के लिए रिश्ते तो दक्षा की शादी के बाद से ही आ रहे थे, लेकिन तनाव और तानों के मारे मालिनी टालती रही. फिर जब मां बन जाने और ऑफ़िस की ज़िम्मेदारियां बढ़ जाने के बाद दक्षा का आना-जाना बेहद कम हो गया तो मालिनी ने यदाकदा रिश्तेदारों और सहेलियों के आने पर कहना शुरू किया,‘‘अब तो बस पवित्रा और अक्षता के हाथ पीले कर दूं फिर इस अक्षांश की शादी करके इसकी पत्नी को सब सौंपकर भगवत भजन में मन लगाने की इच्छा है.’’

भगवान भजन की इच्छा के इस तीन शादियों वाले पैकेज पर बच्चों की ओर से जब कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं मिली, तब जाकर मालिनी ने मृणालिनी दीदी के प्रस्ताव पर लड़के के रंगरूप, और कामकाज की पूरी जानकारी लेने के बाद जन्मकुंडली मिलाने की शर्त रखी थी. लड़के के पिता किसान थे और लड़का खुद का बिज़नेस कर रहा था. कमाई बहुत अच्छी थी और देखने में भी कम नहीं था. जन्मकुंडली आ जाने पर भी जब तीनों बच्चों में से किसी ने कोई सवाल नहीं किया, बल्कि प्रतिक्रिया ही नहीं दी तो मालिनी को महसूस होना स्वाभाविक ही था कि ज़रूर कोई बड़ा ग्रह परिवर्तन हुआ है.

‘‘इस बार बहुत दिन बाद आना हुआ?’’ नमस्कार करते हुए ज्योतिषी सुदर्शन भट ने प्रश्न किया और मालिनी ने कहा,‘‘आने की इच्छा तो कई बार हुई, मगर आपके यहां की भीड़ भाड़ की कल्पना करके...’’

‘‘आप तो पहले फ़ोन करके समय ले लिया कीजिए. कहिए, क्या सेवा है?’’ कहते हुए भटजी ने अक्षता पर उड़ती सी नजर डाली.

‘‘कुंडली मिलाना है. आपको याद होगा, बड़ी बेटी दक्षा की कुंडली भी आपने ही मिलाई थी.’’

‘‘हां-हां कैसा चल रहा है उसका?’’ एक बार फिर अक्षता पर नजर डालते हुए भटजी ने पूछा और मालिनी ने ध्यान दिया कि बाजू में बैठी अक्षता लगातार दूसरी ओर देखे जा रही है. शायद भटजी को उसने नमस्ते भी नहीं किया. अंगुली चुभाकर उसे शिष्टाचार की याद दिलाने का प्रयास करते हुए मालिनी ने कहा,‘‘अब तो काफ़ी ठीक चल रहा है, लेकिन शुरू-शुरू में...’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा. फ़िक्र ना करें. नई-नई शादी में... बर्तन तो खड़कते ही हैं.’’ सूत्रवाक्य द्वारा मालिनी को आश्वस्त करते पूर्ण व्यावसायिकता के साथ जन्मपत्रिका मिलाने की जल्दी जताते हुए कहा,‘‘लाइए.’’

सुनकर मालिनी ने अक्षता की तरफ़ हाथ बढ़ाया और अक्षता ने थैली से निकालकर कम्प्यूटर से बनी दो कुंडलियां भटजी के सामने रख दीं. ज्योतिषीजी ने एक कुंडली के पन्ने पलटने शुरू किए. अस्फुट स्वर में कुछ गणनाएं करते रहे, फिर बोले, ‘‘सुदर्शन है, गजकेसरी, बुधादित्य योग है. स्वयं के व्यवसाय में उन्नति, वैवाहिक योग भी उत्तम है.’’

कुछ देर बाद उन्होंने दूसरी कुंडली खोली, गणनाएं की, फिर बोले,‘‘लक्ष्मी योग हो तो ऐसा. विरासत के भी अच्छे योग हैं, पति की जायदाद भी अच्छी ख़ासी होगी और कन्या ही उसे संभालेगी. दोनों कुंडलियों में राशि मैत्री भी है. अरे, लेकिन आयु में भारी अंतर है. परस्पर प्रेम का मामला है क्या? आजकल ऐसे विवाह काफ़ी हो रहे हैं.’’

‘‘पांच साल का अंतर तो चलता है पंडितजी. दक्षा और उसके पति में तो...’’ मालिनी ने तर्क देना चाहा, लेकिन कुछ असहज होकर भटजी ने बीच में टोका,‘‘पांच का नहीं, इनमें तो बाईस साल का अंतर है.’’

चौंककर उन्होंने एक बार फिर से जन्मपत्री का पहला पृष्ठ खोलते हुए कहो,‘‘यह किसकी कुंडली दे दी आपने?’’ पहले पृष्ठ पर लिखा नाम पढ़ा और बोले,‘‘मालिनीजी यह तो आपकी जन्मकुंडली है!’’

मालिनी ने कुछ नाराज़गी के साथ अक्षता की ओर देखा. घर से निकलते हुए थैली में कुंडलियां उसी ने तो रखी थी. अक्षता ने अत्यंत विनम्र और संयत स्वर में कहा,‘‘जी हां, पण्डितजी आपको मम्मा की जन्मकुंडली से ही इस कुंडली का मिलान करना है, इन्हीं को शादी करने का शौक़ चढ़ा है.’’

‘‘क्या बकती है? मैं मैं...’’ आपा खोने ही वाली थी कि मालिनी को याद हो आया कि वे शहर के प्रख्यात ज्योतिषी के सामने बैठी हैं. मालिनी के ग़ुस्से की ओर ज़रा भी ध्यान न देकर अक्षता ने संयत स्वर में ही आगे कहा,‘‘क्या आपने पवित्रा दीदी की मर्ज़ी का पता लगाया? उनसे पूछा कि वे अभी शादी करना भी चाहती हैं या नहीं? उनकी मर्ज़ी के बिना इतना बड़ा निर्णय कैसे कर सकती हैं आप? बहुत इच्छा हो रही है, तो आप कर लीजिए शादी, इस अनजान लड़के से.’’

उठ खड़े हुए तीनों. मालिनी ने माफ़ी मांगते हुए कहना चाहा कि पवित्रा का कुंडली के साथ वह कल फिर आएगी, शायद उन्होंने यह भी कहा कि यह सब जो कर रही हैं, बेटियों के भले के लिए ही तो कर रही हैं, लेकिन अक्षता के व्यवहार के कारण वे ग़ुस्से से कांपने लगी थीं.

‘‘मां से ऐसी मसखरी नहीं करते,’’ गादी छोड़ते हुए पंडित सुदर्शन भट ने आग ठंडी करने का प्रयास किया तो अक्षता ने सौजन्य के साथ झुककर नमस्कार करते हुए उत्तर दिया,‘आदरणीय, आप भी इस तथ्य को समझ लें. जन्मकुंडली मिलाने से पहले यदि इस देश के ज्योतिषी कम से कम यह जान लिया करें कि लड़का-लड़की अभी शादी करना भी चाहते हैं या नहीं तो इस देश के हजारों-लाखों बेमेल और पति-पत्नी के जीवन को ज़हर बना देनेवाले विवाह रुक सकते हैं.’’
भटजी निरुत्तर थे.

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