कहानी: छोटे शहर की लड़कियां

‘‘अजीता, कब तक तेरी बातें चलती रहेंगी? अब बस भी कर! तू भी सो जा और मुझे भी सोने दे!’’ मान्या ने उनींदी आंखों से अपनी रूममेट अजीता से कहा जो घंटेभर से स्काइप पर अपने बॉयफ्रेंड से बतिया रही थी. यह केवल आज का नहीं, बल्कि रोज़ का ही क़िस्सा था.

‘‘यार मान्या, ऐसा कर तू भी एकाध बॉयफ्रेंड ढूंढ़ ले! जिस दिन तू भी प्यार में पड़ जाएगी ना तो देख लेना तुझसे भी स्काइप और वाट्सऐप छूटनेवाला नहीं है. लगी रहेगी सारा दिन!’’ अजीता छेड़ते हुए कहती.

मान्या कुछ नहीं कहती. चुप रह जाती. पर अजीता बोले बग़ैर नहीं रहती,‘‘हे मान्या, अब तो अपनी स्मॉल टाउन मेन्टैलिटी से बाहर आ. ये क्या रोज़-रोज़ अर्ली टू बेड अर्ली टू राइज़ का ही राग आलापती रहती है. तेरे कहने में चलूं तो गोल्डी मुझसे बात करने को ही तरस जाए.’’

मान्या जब से मुंबई आई है, तब से ज़िंदगी रोज़ ही नए-नए रूप में उसके सामने आ रही है. कितनी ख़ुश थी मान्या जब कैंपस इंटरव्यू में उसका सलेक्शन एक नैशनल टीवी चैनल के लिए हुआ था. यूनिवर्सिटी से जर्निलिज़्म का कोर्स करते समय से ही वह प्रिंट मीडिया से नहीं, बल्कि ऑडियो विशुअल मीडिया से ही जुड़ना चाहती थी. उसके लिए वह लगातार कोशिश करती रही. महानगरी मुंबई का ग्लैमर उसे हमेशा से आकर्षित करता था. और अब, जब उसे जॉब भी इसी ग्लैमरस वर्ल्ड से ही जुड़ा हुआ मिला तो वह फूली नहीं समाई.

मुंबई आने पर शुरू के तीन महीने ट्रेनिंग पीरियड में उसे बहुत कुछ नया सीखने को मिल रहा था. ठहरने की व्यवस्था चैनल की ओर से एक अच्छे होटल में की गई थी. ट्रेनिंग के बाद उसे एक साल का कॉन्ट्रैक्ट मिला, जो उसके परफ़ॉर्मेंस को देखते हुए आगे बढ़ता रह सकता था. वह टीवी चैनल की क्रिएटिव टीम से जुड़ गई. उसे सीरियल के लिए बैक्ग्राउंड में रहकर स्क्रिप्ट पर काम करना, साइट विज़िटिंग, एडिटिंग आदि से संबंधित काम सौंपा गया. जल्दी ही वह टीवी सीरियल ऑन एयर होनेवाला था और सबसे बड़ी बात कि मान्या का नाम भी क्रिएटिव टीम के साथ स्क्रीन पर चमकनेवाला था. मान्या जैसा चाहती थी उसका करियर वैसा ही आकार लेता जा रहा था. नया सपनों का शहर, नया-नया मनचाहा जॉब. मान्या के पैर ज़मीन पर नहीं थे.

ट्रेनिंग के बाद उसे अपने रहने की व्यवस्था ख़ुद करनी थी. मान्या के साथ ट्रेनिंग में शामिल अजीता, भामिनी, लिज़ा ये सब अलग-अलग शहरों से आई थीं. इन सबमें अच्छी दोस्ती भी हो गई थी. सबने तय किया कि वे एक शेयरिंग अपार्टमेंट ले लेते हैं. मान्या को भी यह प्रस्ताव जंच गया.

अपार्टमेंट में शिफ़्ट होते समय तय हुआ कि एक रूम में अजीता और मान्या और दूसरे में भामिनी और लिज़ा रहेंगी. इन सभी का दिन तो चैनल की क्रिएटिव टीम के साथ तो कभी लोकेशन पर, कभी एडिटिंग रूम में व्यस्त रहते कहां निकल जाता मालूम नहीं पड़ता. रात में घर लौटते समय मान्या बस में सफ़र के दौरान मां और छोटे भाई विनू से बात कर लेती. उन्हें अपने दिनभर के हालचाल सुना देती.

मान्या की इस उपलब्धि पर मां और विनू बहुत ख़ुश थे. रोज़ रात प्राइम टाइम में सीरियल की शुरुआत में मान्या का नाम स्क्रीन पर देखकर वे गर्व से भर जाते और अपने संपर्क में आनेवाले सभी लोगों को बतलाते थे.

रात को मान्या जैसे ही सोने की कोशिश करती अजीता स्काइप पर अपने बॉयफ्रेंड से कनेक्ट होती और फिर उनके बीच बातचीत का लंबा दौर शुरू होता. प्रेम के अतिरेक में अजीता भूल जाती की सोने का बहाना करके मान्या जागी हुई भी हो सकती है. स्काइप पर कभी अजीता गोल्डी के लिए गाना गुनगुनाती, कभी डांस के स्टेप्स दिखाती, यहां तक कि गोल्डी की फ़रमाइश पर हर ऐंगल से अपने सौंदर्य के दर्शन भी कराती.

एक बार गोल्डी ने कहा,‘‘स्काइप पर कम से कम अपनी रूममेट की झलक तो दिखा दे.’’

अजीता ने झट कैमरा मान्या की ओर घुमा दिया और कहा,‘‘ले अच्छी तरह देख ले. मैं लड़की के साथ ही रह रही हूं, किसी लड़के के साथ नहीं.’’

सोने का नाटक कर आंखें मूंद कर सोई हुई मान्या को देख गोल्डी ने कहा,‘‘जीता, बड़ी सोणी है तेरी फ्रेंड! कभी इससे भी तो बात करा ना!’’

अजीता ने उसे झिड़क दिया,‘‘क्या मुझसे दोस्ती तोड़ने का इरादा है गोल्डी?’’

‘‘नहीं, पर अगर इससे भी दोस्ती हो जाए तो बुराई क्या है? एक से भले दो. अगले हफ़्ते आ ही रहा हूं मुंबई.’’
दूसरे ही दिन मान्या ने तय कर लिया कि वह भामिनी को कहेगी कि वह अजीता के साथ रूम शेयर कर ले और वह लिज़ा के साथ रह लेगी. भामिनी को बताया तो उसने कहा,‘‘मान्या, तू क्या समझती है? लिज़ा तो और भी दो क़दम आगे ही है. वह भी आधी रात तक स्काइप, वाट्सऐप पर तो लगी ही रहती है, साथ ही स्मोकिंग और ड्रिंक्स से भी उसे परहेज़ नहीं है. कई बार तो देर रात को उठकर उसके लिए दरवाज़ा खोलना पड़ता है और महारानी लड़खड़ाते क़दमों से नशे में धुत्त न जाने कहां से आती है और बिस्तर पर पड़ जाती है. फिर भी अगर तू कहे तो आय हेव नो प्रॉब्लम!’’

मान्या सोच में पड़ गई. क्या करे? क्या ज़माना सचमुच बहुत आगे जा रहा है या वही पिछड़ गई है? लिज़ा, अजीता और भामिनी ये तीनों बड़े शहरों से आई हैं. भामिनी तो पहले भी गुजराती चैनल पर काम कर चुकी है इसलिए वह अपने आपको इस ग्रुप में सबसे अनुभवी समझती थी. अजीता सच ही कहती है कि उसे अपनी क़स्बाई मानसिकता से उबरना होगा. पर कैसे?

छोटे शहर की होने के ताने को मान्या चुपचाप सहन कर लेती है. मान्या को अपने छोटे-से शहर, मां और छोटे भाई विनू की बहुत याद सताती है. पापा के असमय चले जाने के बाद मां को उनकी जगह पर अनुकंपा नियुक्ति मिल गई थी. तब मान्या दस साल की और विनू आठ साल का था. मां ने अकेले अपने दम पर अपना सारा ध्यान बच्चों का भविष्य संवारने में लगा दिया. अपने आपको ज़माने की बुरी निगाहों से बचाने के लिए मां बिंदी और मंगलसूत्र पहने रखती हैं. ऐसे माहौल में पली-बढ़ी मान्या को अभी इस मेट्रो सिटी और यहां के तौर-तरीक़ों में ढलने में समय लगेगा यह बात वह ख़ुद भी अच्छी तरह जानती है. वह परिस्थितियों को तो नहीं बदल सकती. समय के साथ उसे अपनी ही सोच बदलनी होगी.

अक्सर छुट्टी के दिन धवल, भामिनी से मिलने बड़ौदा से आता. कहने को तो भामिनी कहती कि वह उसका मंगेतर है पर लिज़ा बता रही थी,‘वो मंगेतर-वंगेतर नहीं है, बस ऐसे ही. और फिर अब तो लिव इन रिलेशनशिप को पेयर्स बड़े गर्व से बताते हैं तो फिर १५-२० दिन में एकाध बार मिलने में क्या बुराई है?’ और भामिनी को भी इसमें कोई संकोच नहीं है. वह बेझिझक स्वीकार करती थी इस रिलेशनशिप को!

जिस दिन धवल आनेवाला होता था दोनों रूममेट को अपने लोकल रिश्तेदारों से मिलने का बहाना कर जाना ही पड़ता था, ताकि जब उनके फ्रेंड्स आएं तो भामिनी भी उन्हें सहयोग कर सके. पर मान्या का तो यहां मुंबई में कोई नहीं था. वह कहां जाए? यह देख भामिनी उसके पास आकर कहती,‘मान्या, इफ़ यू डोंट माइंड.’ तो मान्या उसका इशारा समझ जाती है. और फिर दूसरे यह रिक्वेस्ट भी नहीं होती थी एक तरह से आदेश ही रहता था.

फिर मान्या अपना लैपटॉप और बैग उठाकर या तो किसी लायब्रेरी में चली जाती या सोसायटी के पार्क या कम्यूनिटी हॉल में बैठकर अपने प्रोजेक्ट पर काम करती. परंतु छुट्टी के दिन अपने कमरे में आराम से पड़े रहना उसे नसीब नहीं था.

इस तरह प्राय: हर छुट्टी के दिन उन तीनों में से किसी न किसी को अपने बॉयफ्रेंड से मिलने के लिए रूम चाहिए होता था. और अक्सर यही होता कि मान्या किसी तरह इधर-उधर अपना दिन गुज़ारकर दिन ढले जब अपार्टमेंट पर लौटकर डोरबेल बजाती तो बड़े बेमन से दरवाज़ा खोला जाता. फिर पलटकर मान्या को सुनाते हुए कहा जाता,‘‘हाय हनी, अब तो जाना ही पड़ेगा.’’
जब कभी उन लड़कों से मान्या का आमना-सामना होता तो हलो, हाय की औपचारिकता निभाते हुए उनकी आंखों में अपने प्रति आकर्षण के भाव पढ़ने में मान्या भूल नहीं करती थी. उनके हावभाव से स्पष्ट था कि मान्या की ओर भी दोस्ती का हाथ बढ़ाने में उन्हें कोई परहेज़ नहीं है. मान्या सोचती कि क्या यही उनकी अपनी साथी के प्रति लॉयल्टी है? और यदि वे अपनी साथी के प्रति लॉयल नहीं हैं तो फिर ऐसी दोस्ती रखने से क्या फ़ायदा?

रोज़ ही अपने काम के दौरान टीवी सीरियल्स के सेट पर भी मान्या को टीवी कलाकारों के आपसी संबंधों में भी ऐसी ही स्वच्छंदता देखने को मिलती थी. कई बार मान्या ऐसे माहौल में अपने आपको मिसफ़िट ही पाती थी.

अक्सर रात को तीनों रूममेट्स मिलकर मान्या की जमकर खिंचाई करतीं,‘ये मान्या भी न जाने कौन सी सदी में जी रही है? आजकल तो लोग कपड़ों की तरह फ्रेंड्स बदल रहे हैं पर ये अपनी छोटे शहर की मेन्टैलिटी से उबरे तब ना?’

भामिनी इन तीनों में सबसे ज़्यादा मुंहफट थी. एक दिन वह बोल ही पड़ी,‘‘मान्या यदि तुम्हें हमारे साथ रहने में कोई दि़क्क़त हो तो तुम अपनी व्यवस्था कहीं और कर सकती हो. या फिर तुम कहो तो हम तुम्हारे लिए कोई बॉयफ्रेंड ढूंढ़ दें क्या?’

मान्या के मन का ग़ुबार आख़िर उस दिन फूट ही गया,‘‘भामिनी तुम्हें मेरे लिए कोई बॉयफ्रेंड ढूंढ़ने की ज़रूरत नहीं है. जब मुझे उसकी ज़रूरत होगी तो जीवन के किसी मोड़ पर उससे मुलाक़ात हो ही जाएगी. और कान खोलकर सुन लो, वह मेरा बॉयफ्रेंड नहीं, बल्कि मेरा सोलमेट होगा, जिसे मैं कपड़ों की तरह बदलना नहीं चाहूंगी. और रही बात रहने के लिए कोई दूसरी जगह ढूंढ़ने की तो यही बात मैं तुम लोगों से भी कह सकती हूं. यदि तुम लोगों को मेरे साथ रहने में कोई दिक़्क़त हो रही है तो तुम लोग ही क्यों नहीं शिफ़्ट हो जाती हो कहीं और?’’

अजीता और लिज़ा कहती रहीं,‘‘प्लीज़ काम डाउन मान्या, प्लीज़ मान्या.’’ पर मान्या थी कि ब़गैर रुके बोलती रही,‘‘मैंने कभी तुम लोगों को सही या ग़लत नहीं ठहराया. तुम लोग जैसा भी जीवन जीना चाहो उसके लिए तुम स्वतंत्र हो. इन संबंधों के अच्छे या बुरे जो भी परिणाम होंगे उसके लिए तुम स्वयं ही ज़िम्मेदार रहोगी. यह तुम्हारी अपनी लाइफ़ स्टाइल है. इसमें मैं कोई दख़लअंदाजी नहीं करती, पर मैं भी अपने तरी़के से जीना चाहती हूं. मैं यह अपार्टमेंट छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी. जानती हूं इस बड़े शहर में क़दम-क़दम पर, हर क्षेत्र में कठिनाइयां हैं फिर भी ऊंचे आसमान में उड़ान भरने के लिए मुझे ज़मीन यहीं ढूंढ़ना है. और फिर भी मैं प्रतिबद्ध हूं अपनी सोच के साथ जीने के लिए.’’

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