कहानी: मन मयूर

लावण्या...बहुत ज़ोर देने पर भी उसे याद नहीं आ रहा कि वो इस नाम की किसी लड़की को जानती है. न रिश्तेदारी में कोई इस नाम की लड़की है और ना ही सहेलियों या दोस्तों की पत्नियों में, पर वो ऐसा क्यों सोच रही है? क्या अब उसे राहुल पर भरोसा नहीं रह गया है? अभी तो उन्हें अलग हुए सिर्फ़ छह महीने ही हुए हैं और इस बीच राहुल दो बार उससे मिलने बैंगलोर आ चुके हैं. दोनों बार उनकी बेताबी से साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि वो उससे कितना प्यार करते हैं.

‘‘पुरुषों पर ज़्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता. ख़ासतौर पर तब, जब उन्हें लंबे समय तक अकेला रहना पड़े,’’ बहुत पहले अपनी सास की कही हुई ये बात आज उसके दिमाग़ में हथौड़े बजा रही है. एक हफ़्ते पहले तक वो कितनी निश्चिंत थी अपनी और राहुल की तीन साल पुरानी शादी को लेकर. उनके बीच पिछले छह माह से चल रहे लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप के बावजूद मेघा कितनी ख़ुश थी और उसे तो यही लग रहा था कि राहुल भी ख़ुश, बल्कि बहुत ख़ुश हैं... पर आधे घंटे पहले संगीता का फ़ोन आने के बाद से तो उसे लग रहा है, जैसे उसकी शादी टूटने की ही कगार पर है.

‘‘क्या आज लंच करने का इरादा नहीं है?’’ उसे विचारों में डूबा देखकर उसके सहकर्मी नितिन ने पूछा.

‘‘नहीं, जी नहीं कर रहा. मैं थोड़ी देर बाद जाऊंगी...ये रिपोर्ट पूरी करनी है शाम तक.’’

‘‘खाना समय पर खा लेना चाहिए और वैसे भी पिछली बार राहुल ये ज़िम्मेदारी मुझे ही दे गया है. याद है ना, उसने कहा था,‘जब काम सामने हो तो मेरी मेघा खाना खाना भूल ही जाती है. इस बारे में नितिन तुम उसका ध्यान रखना.’’’ बिल्कुल राहुल के अंदाज़ में नितिन बोला.

‘‘हां, राहुल के चमचे ठीक है कि ये ज़िम्मेदारी तुम्हारी है, पर फ़िलहाल मुझे भूख नहीं लगी है. तुम जाओ और लंच कर लो,’’ मुस्कुराते हुए मेघा ने जवाब दिया, पर भीतर ही भीतर वह जानती थी कि ऐसे तनाव के बीच ख़ुद को सहज रखना उसके लिए मुश्क़िल हो रहा है.

नितिन के जाते ही उसने तय कर लिया कि अब सीधे राहुल से फ़ोन पर बात कर के पूछ लेगी. कम से कम इस दुविधा का अंत तो होगा. लगातार तीन चार बार फ़ोन लगाया भी, लेकिन नेटवर्क नहीं मिल रहा था. ओह, परसों रात ही तो उन्होंने बताया था कि बोर्ड मीटिंग दो दिनों तक चलने वाली है और उनका प्रज़ेंटेशन भी है. बोर्ड मीटिंग वाले दिनों में वे कितना व्यस्त रहते हैं और अक्सर फ़ोन स्विच ऑफ़ रखते हैं, ये बातें तो उसे पता हैं ही. पता नहीं बोर्ड मीटिंग या कुछ और...बहाना भी हो सकता है. वो ऐसा कुछ भी नहीं सोचती, पर पिछले पूरे हफ़्ते तीन अलग अलग लोगों ने जो बातें राहुल के बारे में बताईं, उन पर कब तक भरोसा न करे?

सोमवार को ही ललिता का फ़ोन आया था. हाय, हैलो की औपचारिकता भी पूरी नहीं की उसने और शुरू हो गई,‘‘मेघा, अपने मियां जी की कुछ खोज ख़बर रखती है कि नहीं? कल कैफ़े कॉफ़ी डे में मिले थे और साथ में एक हॉट आइटम भी थी. बड़े हंस-हंस के बातें हो रहीं थीं.’’

‘‘तुम अपनी आदत से बाज़ नहीं आओगी न ललिता? कोई मिल गया होगा पहचान का और फिर बिज़नेस डेवेलपमेंट वाले हॉट आइटम्स से नहीं मिलेंगे तो कौन मिलेगा? और सुनाओ कैसी हो...’’ ऐसी ही कुछ बातें कर के मेघा ने फ़ोन रख दिया था. ललिता की बातों पर तो वो रत्ती भर भरोसा नहीं करती, क्योंकि उसके पुराने ऑफ़िस की यह सहकर्मी गॉसिप करने में महारथी है. और तो और उसका फ़ोन आने के बाद, जब राहुल से बात हुई तो उसे याद भी नहीं रहा कि ललिता ने क्या कहा था. अब लग रहा है कि उसी दिन इस बारे में राहुल से पूछ लिया होता तो अच्छा होता.

नहीं-नहीं राहुल ऐसे नहीं हो सकते. उन्होंने ही तो ख़ुद मुझे बैंगलोर जाने के लिए मनाया था. जब उसे पता चला था कि उसका प्रमोशन हो रहा है, लेकिन उसे साल भर के लिए बैंगलोर जाना पड़ेगा, तब उसने कहा था,‘‘छोटे पद पर रहने में क्या बुराई है? मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जाना चाहती, फिर हम इन दिनों अपना परिवार बढ़ाने के बारे में भी तो सोच रहे हैं. मैं नहीं जाऊंगी.’’

राहुल ने ही उसे समझाया,‘‘करियर में आगे बढ़ने के अच्छे मौक़े बार बार नहीं मिलते. ये भी तो सोचो कि ये सिर्फ़ एक साल की ही बात है. तुम्हारे मैनेजर कह ही रहे हैं कि अगले साल तुम्हें वापस बुला लेंगे...’’
‘‘और यदि नहीं बुला पाए तो?’’ उसका उतावलापन साफ़ झलक रहा था.

‘‘तो ये बंदा अपनी नौकरी छोड़ कर आपकी ख़िदमत में हाजिर हो जाएगा देवी जी.’’ और दोनों ठठाकर हंस पड़े थे.
कहीं मुझे इसीलिए तो मुंबई से नहीं भगाया कि...नहीं, नहीं नहीं नहीं. राहुल ऐसे हैं ही नहीं, हो ही नहीं सकते वो ऐसे. पर कल नीरजा भी तो फ़ोन पर कह रही थी. नीरजा उसकी कॉलेज की दोस्त है, वो क्यों झूठ बोलेगी? उसने भी फ़ोन पर यही कहा,‘‘कल राहुल मिले थे. एक ख़ूबसूरत सी लड़की के साथ शॉपिंग कर रहे थे. क्या तुम्हारी कोई रिश्तेदार आई है यहां?’’

‘‘नहीं यार. उनकी बोर्ड मीटिंग की तैयारी के लिए कुछ कलीग्स साथ काम कर रहे थे. उन्हीं में से किसी के साथ चले गए होंगे. कह भी रहे थे कि घर के सामान मेरे बिना ख़रीदना उनके लिए मुश्क़िल हो जाता है, कभी कुछ भूल जाते हैं तो कभी कुछ और.’’

‘‘तुम कब आ रही हो यहां? पतिदेव को ज़्यादा समय अकेला नहीं छोड़ना चाहिए भई, कहीं बहक गए तो?’’
‘‘पति नहीं बहकेंगे, ये भरोसा है तभी तो छोड़ दिया अकेला. काम ज़्यादा है इसलिए छुट्टियां नहीं मिल रहीं यार, कोशिश करूंगी कि जल्दी आऊं. आने पर मिलते हैं.’’

मैं इस संशय की स्थिति में ज़्यादा नहीं रह सकती. कुछ तो करना ही होगा. राहुल फ़ोन शायद ही उठाएं, क्योंकि यदि एक पर्सेंट ये बात मान भी लूं कि उनकी बोर्ड मीटिंग है तो मुझे अच्छी तरह पता है कि उनका फ़ोन साइलेंट मोड पर होगा या फिर स्विच ऑफ़ ही रहेगा और यदि संगीता की बात सच है तो... तो भला वो फ़ोन ऑन भी क्यों रखेंगे? ना...मैं एक पल की भी देर नहीं कर सकती.

‘‘जेट एयरवेज़... हां, मुंबई के लिए. जी हां, आज शाम की. रात 9 बजे है? हां, आज की ही बुक कर दीजिए.’’
आज निकलने से पहले वो रिपोर्ट पूरी करनी होगी, ताकि मंडे को लेट भी आऊं तो कोई परवाह नहीं. पर यदि ये बात सही हुई तो क्या मैं मंडे लौट सकूंगी? गॉड नोज़.
फिर उसने रिपोर्ट पर नज़रें गड़ा लीं.

‘‘मैडम अब तो टी टाइम है और आपने अब तक लंच भी नहीं किया.’’

‘‘ओह, नितिन! 10 मिनट रुको ना. ये रिपोर्ट पूरी हो ही गई है. फिर चलते हैं कैंटीन.’’

‘‘तब तक मैं स्वप्निल को भी बुला लेता हूं.’’

कैंटीन में चाय और स्नैक्स के साथ दोस्तों की बातों में शामिल होने का वो भरसक प्रयास कर रही थी, लेकिन उसके चेहरे पर तनाव के भाव आ जा रहे थे. स्वप्निल ने भी यह नोट किया वो बोला,‘‘आज तुम कुछ कम बोल रही हो चैटर बॉक्स..क्या बात है?’’

‘‘राहुल की याद आ रही है? वीकएंड पर ऐसा तो होगा ही भई,’’ रश्मि ने शरारती मुस्कान के साथ अपनी राय दी.
‘‘तो उन्हें सरप्राइज़ क्यों नहीं देतीं?’’ नितिन ने पूछा.

‘‘दे रही हूं. आज रात की टिकट बुक करा ली है मैंने मुंबई के लिए,’’ मेघा ने ऊपरी मुस्कान ओढ़ते हुए कहा. ओह, अब मैं इन्हें क्या बताऊं कि आज मैं राहुल को सरप्राइज़ दूंगी या मुझे मेरी ज़िंदगी का सबसे ख़राब सरप्राइज़ मिलेगा. भावनाओं को छुपाना मेरे लिए हमेशा मुश्क़िल क्यों होता है..पता नहीं?

‘‘ओह, तो वहां जाने के उत्साह की वजह से इतनी चुपचुप हो?’’

‘‘कम ऑन यार! किसी दूसरे टॉपिक पर बात करो ना,’’ मेघा ने कहा.

थोड़ी बहुत बातचीत की और फिर वह यह कह कर वहां से निकल गई कि मुंबई जाने के लिए उसे पैकिंग करनी है.

पैकिंग क्या ख़ाक़ करनी है, वहां तो एक पूरी अल्मारी मेरे कपड़ों से भरी पड़ी है. मैं ऐसी दुविधा को साथ ले कर जा रही हूं कि यदि बातें मेरे पक्ष में नहीं हुईं तो शायद वो घर भी मेरा न रह जाए. उसने दोबारा राहुल को फ़ोन मिलाया, पर फ़ोन स्विच ऑफ़ ही था. अच्छा है आज बोर्ड मीटिंग ख़त्म होगी तो घर पर ही उन्हें रंगे हाथों पकड़ लूंगी. ओह, ये मुझे क्या हो गया है, मैं अपने राहुल पर अविश्वास ही नहीं कर रही, बल्कि उन्हें दोषी ही ठहरा रही हूं. जल्दी जल्दी रोज़ाना की ज़रूरतों की चीज़ें एक बैग में डालीं, रास्ते में एटीएम से पैसे निकाले और एयरपोर्ट आ पहुंची. चेक इन किया और फ़्लाइट का इंतज़ार करती लाउन्ज में रखे सोफ़े पर बैठ गई.

संगीता को ग़लतफ़हमी भी तो हो सकती है, पर वो तो मेरे पड़ोस में ही रहती है. झूठ क्यों कहेगी...? जो देखा वही बता दिया उसने मुझे. सुबह फ़ोन कर के उसने कहा,‘‘मेघा तुम्हारी कोई रिश्तेदार यहां आई है क्या? पिछले तीन दिनों से मैं उसे और राहुल को बड़ी सुबह साथ जाते देखती हूं, रात को कब आती है ये तो पता नहीं. पहले तो यही नहीं समझ पाई कि तुम्हें बताऊं या नहीं. फिर सोचा कि यदि नहीं बताऊंगी तो तुम्हें पता  कैसे चलेगा?’’

‘‘नहीं, संगीता. राहुल ने तो मुझे इस बारे में कुछ नहीं बताया.’’

‘‘देखो मेघा, मैं तो पड़ोसी हूं सीधे सीधे उनसे पूछ नहीं सकती. मेरे पति भी 10 दिनों के लिए टूर पर गए हुए हैं और तुम तो जानती ही हो कि राहुल बहुत कम बात करते हैं. हां, लेकिन उस लड़की का नाम लावण्या है. हो सकता है कि तुम उसे नाम से पहचान जाओ.’’

‘‘इस नाम का तो कोई...याद नहीं आ रहा.’’

‘‘मेघा, ये नाम भी मुझे ऐसे पता चला कि कल सुबह जब मैं तुलसी के पौधे में पानी देने जा रही थी, तब उन्होंने बड़ी चिंतातुर आवाज़ में  कहा,‘लावण्या संभल कर चलो.’, क्योंकि उस लड़की को हल्की सी ठोकर लगी थी.’’
‘‘......’’

‘‘क्या हुआ, चुप क्यों हो? मैं तुम्हारी चिंता नहीं बढ़ाना चाहती थी, लेकिन तुम मेरी सहेली हो इसलिए यह बात न बताना भी ठीक     नहीं लगा.’’

‘‘नहीं, तुमने ठीक किया. मैं इस बारे में राहुल से बात करूंगी. और बाक़ी सब ठीक है?’’

‘‘हां.’’

बस, ये बातें करने के बाद से उसके पास राहुल पर अविश्वास करने की काफ़ी वजहें मौजूद थीं. एक मन कहता राहुल ऐसा नहीं कर सकते, लेकिन दूसरा मन जब तथ्य सामने रखकर ये कहता कि यदि ऐसा नहीं है तो तीन अलग अलग लोग राहुल के बारे में एक जैसी ही बातें क्यों कह रहे हैं तो पहला मन हार कर रह जाता.

फ़्लाइट में बैठने के बाद भी दो मनों की ये लड़ाई मेघा के दिमाग़ में कोलाहल पैदा कर रही थी. बमुश्क़िल डेढ़ घंटे का ये सफ़र भी पहाड़ सा लग रहा था. पता नहीं दसियों तरह के मनों की ये फ़ौज महिलाओं के मन में ही डेरा डालती है या पुरुष भी कभी इससे दो चार होते होंगे. आख़िर अपनी शादी के टूट जाने का डर ही तो उसे मुंबई लिए जा रहा है. न जाने इस कोलाहल के बीच वो कितनी बार मन ही मन मना चुकी है कि राहुल के बारे में जो सबने उसे बताया है वो ग़लत निकले. उसे लैंडिंग के समय बाहर देखना बेतरह पसंद है, पर आज ऊपर से दिखती मुंबई की चमचमाती रौशनी उसके मन के अंधेरे को रौशन नहीं कर पा रही है.

‘‘अंधेरी ईस्ट,’’ कैब वाले को अपने घर का पता बता कर फिर आशा निराशा भरे विचारों के समुंदर में गोते लगाने लगी. यदि उन सब की बात सही निकली और वो लड़की मुझे घर पर ही मिल गई तो? पता नहीं मैं कैसे रिऐक्ट करूंगी, शायद उसे दो झापड़ ही रसीद कर दूं. हुंह, उसे क्यों ऐसा हुआ तो झापड़ तो राहुल को रसीद करना चाहिए. हां...ओफ़्फ़ ऐसा कुछ नहीं होगा मन के एक कोने से आवाज़ आई.
रात पौने बारह बजे अपने घर की बेल बजाते हुए आज उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था. बेल बजने के कोई दो मिनट बाद दरवाज़ा एक ख़ूबसूरत लड़की ने खोला. मेघा को लगा जैसे उसे चक्कर ही आ जाएगा. पीछे से अपने नाइटसूट की शर्ट डालते हुए राहुल निकले. उसकी आंखों से धुंधला दिखने लगा था अचानक.

‘‘ओह, मेघा. वॉट अ प्लेज़ेंट सरप्राइज़,’’ कहते हुए राहुल ने उसे बाहों में भर लिया. वो लड़की उन दोनों को आंखें फाड़े देख रही थी.

उसकी आंखों से लुढ़कते आंसुओं का जब राहुल को एहसास हुआ तो वो बोले,‘‘अरे, तुम रो क्यों रही हो? पगली, क्या तुम्हें मेरी इतनी याद आई?’’

अभी वो दोनों अलग हो ही पाते कि दोबारा घंटी बजी. उस लड़की ने दोबारा दरवाज़ा खोला और आने वाले पुरुष को देखते ही बोली,‘‘आज तो आपको बहुत देर हो गई?’’

फिर वो अंदर गई और ट्रे में दो ग्लास पानी लिए लौटी. एक उसने मेघा को दिया और दूसरा उस व्यक्ति को.

‘‘ये है मेरी मेघा,’’ मेघा को उन दोनों से परिचित कराते हुए उन्होंने आगे कहा,‘‘मेघा, ये है गौरव मेरे बचपन का दोस्त और ये है उसकी पत्नी लावण्या.’’

ओह थैंक गॉड! मन ही मन भगवान का लाख लाख शुक्रिया अदा कर रही मेघा ने उन दोनों से कहा,‘‘हेलो!’’ फिर राहुल से बोली,‘‘तुमने तो मुझे बताया ही नहीं कि ये लोग यहां आए हुए हैं.’’ ये कहते हुए वो कितनी राहत महसूस कर रही थी ये उसके सिवा किसी को मालूम नहीं था.

‘‘मौक़ा ही नहीं मिल पाया. कोई पंद्रह दिन पहले ये दोनों यहां आए. दो-तीन दिन अपने ऑफ़िस के गेस्ट हाउस में रुके. फिर लावण्या की तबीयत ठीक नहीं थी तो मैंने  इन्हें अपने घर रहने का ऑफ़र दे दिया,’’ राहुल बोले.

‘‘हां, मेघा जी! हम लोग राहुल को तंग नहीं करते, लेकिन ये शहर हमारे लिए बिल्कुल नया है और लावण्या की तबियत इतनी ख़राब हो गई कि डॉक्टर ने उसे घर का खाना खाने की सलाह दी और जब राहुल ने हमें अपने घर रहने का आमंत्रण दिया तो हमने तुरंत मान लिया,’’ गौरव ने कहा.

‘‘दीदी, राहुल जी ने न सिर्फ़ हमें यहां रखा, बल्कि ऐसे रखा जैसे हम उनके सगे रिश्तेदार ही हैं. गेस्ट हाउस में रहती तो मैं बीमार ही रहती. ये तो सुबह से निकल जाते हैं ऑफ़िस...नई नौकरी है ना और रात को भी देर से ही लौटते हैं. राहुल जी ही मुझे डॉक्टर के पास ले गए दो तीन बार. उनके साथ ही जाकर पास के मार्केट से दवाइयां ख़रीदीं मैंने,’’ ये लावण्या थी.

अब उसके भीतर सब कुछ साफ़ होता जा रहा था. कितना अच्छा हुआ कि उसने इस बारे में राहुल से बात नहीं की, यदि की होती तो न जाने क्या क्या बोल दिया होता अपने प्यारे से पति को.

‘‘रात बहुत हो चुकी है, मैं भी बहुत थकी हुई हैं. चलो सोया जाए...सुबह बातें करेंगे,’’ मेघा ने बड़े अपनेपन से कहा. वो यही सोच रही थी कि अच्छा हुआ, जो एक मन राहुल को हमेशा सही मानता रहा, वर्ना तो वो शर्मसार ही हो जाती...पर भला उसकी क्या ग़लती है? जो परिस्थितियां बनीं उसमें कोई भी महिला उसकी तरह ही रिऐक्ट करती. नहीं क्या? दरअसल, राहुल पर शक़ करने की अपने मन मयूर की छोटी सी अव्यक्त भूल को वो राहुल के ही आगोश में समा कर भूलना चाहती थी और अब एक पल की भी देर उसके बर्दाश्त के बाहर थी.

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