कहानी:...अंतिम बिदा
नरीमन पॉइंट के बीच पर वे दोनों समुद्र की ओर मुंह करके बैठे थे. घंटों से. अपने आगे अथाह सागर और पीछे अविरल बहते घने ट्रैफ़िक से बेख़बर. दोनों साथ होते हुए भी अकेले.
दोनों शादीशुदा मगर अलग-अलग. लेकिन उन दोनों के बीच अनजाने अनचाहे पनपा प्यार उनको परस्पर बांधे हुए है. वे अपनी तमाम कोशिशों और इच्छाओं के बावजूद साथ नहीं रह पा रहे हैं, इसका मलाल दोनों को है.
उनकी मुलाक़ात कुछ अरसा पहले हल्की-सी नोकझोंक के साथ हुई थी. वे दोनों अपने परिवारों के साथ अम्यूज़मेंट पार्क में थे. एक राइड पर अपने नंबर को लेकर उनमें थोड़ी-सी तक़रार हुई, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने परस्पर सॉरी कहा और अपना नंबर एक-दूसरे को देने की ज़िद करने लगे. अंतत: नीतेश, लतिका को अपना नंबर देने में क़ामयाब हो ही गया. बदले में लतिका ने उन्हें अपने साथ कॉफ़ी शॉप में चलकर कॉफ़ी पीने का आग्रह किया तो नीतेश मना नहीं कर सका. हालांकिदोनों के पति, पत्नी असहज हो रहे थे. घर लौटते समय नीतेश की पत्नी पहले तो उसे छेड़ने लगी, लेकिन जल्दी ही दोनों में इस बात पर कहासुनी हो गई. करने को नीतेश अपनी पत्नी से इनकार करता रहा कि कुछ भी स्पेशल नहीं है, पर ईमानदारी की बात तो यह थी कि नीतेश का मन वहां बंध-सा गया था. वह ख़ुद नहीं समझ पा रहा था कि उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा था? नीतेश विवाहित था बीवी, बच्चे थे.
और जैसा कि अधिकांश पति-पत्नी के बीच होता है, छोटी-मोटी बातों के अलावा कोई ऐसी बात नहीं थी जो उनके वैवाहिक जीवन के लिये अवांछनीय हो. दोनों की अच्छी नौकरी थी. सारांश यह कि एक ख़ुशहाल परिवार था. लेकिन इस घटना ने नीतेश के मन के महासागर में एक कंकड़ फेंककर लहरें उठाने का काम कर दिया था. और एक बार जो लहर उठती है तो वह किनारे तक जा कर ही दम लेती है.
नीतेश को मन ही मन ख़ुद पर खीझ भी होती थी कि उसने उस दिन उसके नाम के अतिरिक्त कोई और जानकारी क्यों नहीं ली? बल्कि लतिका नाम से उसके पति ने पुकारा था, तब उसे पता चला था कि वह लतिका है. उस दिन के बाद नीतेश के मन में उससे मिलने की उत्कंठा बार-बार जागती. वह उसे हर बार मारने की कोशिश करता लेकिन वह किसी उद्दंड पशु की भांति उसके नियंत्रण में नहीं रहती. एक दिन उसने फ़ेसबुक पर ‘लतिका’ नाम से सर्च किया तो बीसियों लतिकाएं मुस्कुरा उठीं. उसने ‘अपनी’ लतिका को ढूंढ़ना शुरू किया, लेकिन वह बुरी तरह निराश हो गया जब ‘वह’ उसे नहीं मिली. फिर भी उसने हार नहीं मानी. नाम की स्पेलिंग बदल कर फिर कोशिश की. अचानक वह ख़ुशी से उछल पड़ा. जब उसे वह मिल गई जिसकी तलाश में वह था. उसने उसका प्रोफ़ाइल खोला. लेकिन यह क्या? पूरा प्रोफ़ाइल ख़ाली था.
न अपने बारे में कुछ जानकारी न कोई कॉन्टैक्ट नंबर! उसने हिम्मत करके रिक्वेस्ट भेज दी और इंतज़ार करने लगा. दिन पर दिन बीतने लगे. कोई रिस्पॉन्स नहीं था. एक-एक दिन महीनों जैसा लगता था.
उधर लतिका की कहानी इससे अलग नहीं थी. उस दिन अम्यूज़मेंट पार्क से लौटते हुए जब उसके पति ने उससे पूछा कि उसने उन अनजान लोगों को कॉफ़ी पर क्यों इन्वाइट किया? इस पर लतिका ने इतना ही कहा कि उन्होंने अपना नंबर देकर हमें राइड पर जाने का अवसर दिया तो इतना तो बनता है. पर उसके पति जलज इस बात से संतुष्ट नहीं थे. दोनों की शादी को दस बरस होने जा रहे थे, लेकिन उन्हें कोई बच्चा नहीं था.
डॉक्टरी जांच में लतिका पूरी तरह सामान्य थी. जलज में ही कमी थी, जिसे डॉक्टरों ने इलाज से ठीक करने का आश्वासन दिया था. पर डॉक्टरी उपक्रमों का कोई सुखद परिणाम अब तक तो सामने नहीं आया था. दोनों जब शांति से इस पर बात करते तब महसूस करते कि ईश्वर को यही मंज़ूर है तो यही सही. लेकिन कभी-कभार उनमें इसी बात पर झड़प भी हो जाती. लतिका हालांकि इस मामले में ज्यादा आक्रामक नहीं होती थी, पर जलज तुरंत ही सुरक्षात्मक मुद्रा में आ जाता.
उसे कहीं न कहीं लगता था कि लतिका उसका उपहास कर रही है. पुरुषों के साथ यही होता है. उन्हें क़ुदरत ने चाहे किसी कमी के साथ भेजा हो, लेकिन वह उसे प्राय: नहीं ही मानता है. उसे यही लगता है कि पत्नी यदि मां नहीं बन पा रही है तो उसी में कोई कमी है. क्योंकि पुरुष तो जन्मजात परिपूर्ण ही है! एक दिन इसी वाद विवाद के बीच लतिका ने जलज से कह दिया कि हम दोनों अपना अपना पार्टनर बदल लेते हैं फिर देख लेते हैं कि कौन परिपूर्ण है और किसमें दोष है! इस पर जलज ने उस पर हाथ भी उठा दिया था. उसी दिन से लतिका ने मन ही मन प्रण कर लिया था कि वह चाहे किसी और के बच्चे की मां बनेगी, लेकिन बनेगी ज़रूर.
फिर अचानक उसकी मुलाकात नीतेश से हुई. जो दिखने में जलज से कई गुना हैंडसम था. लंबा-पूरा गोरा, तीखे नयन-ऩक्श, प्रभावी आवाज़. सारांश यह कि उसे देखकर कोई भी महिला उसकी ओर आकर्षित हो सकती थी. इसके विपरीत जलज सामान्य कद-काठी का गेंहुआ क्या, बल्कि कहें सांवला-सा था. उसकी सरकारी नौकरी देखकर लतिका के पापा ने दबाव बनाकर उसकी शादी कर दी थी. जलज कस्टम विभाग में प्रथम श्रेणी अधिकारी था. यही एक बात उसमें ‘प्लस’ थी बस. जबकि लतिका बहुत सुंदर भले ही नहीं थी, लेकिन उसका संपूर्ण व्यक्तित्व प्रभावी था. उससे मिलकर या उसे देखकर कोई उसे इग्नोर नहीं कर सकता था. एक दिन लोकल में जाते हुए उसे अचानक ख़्याल आया कि यदि वह किसी और के बच्चे की मां बनना ही चाहती है तो नीतेश से अच्छा और कौन हो सकता है? लेकिन फिर उसने अपने मन को तुरंत ही ज़ोर से डांटा कि वह क्या करने जा रहा है? लेकिन मन बार-बार वही रट लगाए रहा. फिर उसने सोचा कि क्या वह सही ट्रैक पर है?
सिर्फ़ बच्चे के लिए वह अपने संस्कार, सभ्यता और नैतिकता को ताक पर रख देगी? माना कि किसी भी महिला की पूर्णता मां बनने में है, लेकिन यह पूर्णता किस क़ीमत पर हो यह भी विचारणीय होना चाहिए या नहीं.
इसी उहापोह में दिन बीत रहे थे. उसके दोनों मन बारी-बारी से उस पर भारी पड़ते. एक कहता कि जैसे भी हो उसे मां बनना है बस. इस पर दूसरा तुरंत ही ‘वीटो’ कर देता और पूछता,‘तुम यह क्या करने जा रही हो?’ मानव मन भी पानी जैसा होता है. नीचे की ओर स्वत: स्फूर्त ही बहने लगता है. वहीं ऊपर की ले जाने के लिये बहुत प्रयत्न करने होते हैं.
फिर एक दिन वह नीचे की तरफ़ बह निकली. कई दिनों से पेंडिंग नीतेश की फ्रेंड रिक्वेस्ट को खोला. उसका प्रोफ़ाइल देखा. उसे ट्रैकिंग और संगीत का शौक था. ट्रैकिंग न सही उसे भी संगीत का शौक़ तो था ही, बल्कि वह थोड़ा ठीक ठाक गा भी लेती थी. ‘चलो कुछ तो कॉमन है,’ उसने सोचा. जबकि जलज में और उसमें कोई साम्य नहीं है. जलज को किसी प्रकार का कोई शौक़ नहीं है. उसने वह रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. और दोनों में संपर्क का सिलसिला चल पड़ा. संपर्क से मुलाक़ात तक वे जल्दी ही आ गए. हालांकि मुंबई की भागदौड़ भरी और दूरियोंवाली ज़िंदगी में किसी से मुलाक़ात के लिए समय निकालने से ज़्यादा मुश्क़िल भरा काम और कोई नहीं होता. नीतेश ठाणे में रहता था और उसका ऑफ़िस फ़ोर्ट में था, जबकि लतिका बांद्रा की किसी कंपनी में थी और उसका घर बोरीवली में. परस्पर चर्चा के बाद एक दिन दोनों ने अपने काम से सेकेंड हाफ़ में छुट्टी ली और दादर के एक रेस्तरां में मिले.
नाश्ते पर नाश्ते और चाय के बाद चाय के सहारे वे काफ़ी देर तक वहीं बैठे रहे. रुख़सत होते समय जल्दी ही फिर मिलने का वादा किया. वे कुछ घंटे दोनों के लिए अनमोल हो गए. हालांकि दोनों के मन में कहीं कुछ था, जो बार बार उनको कचोटता था. लेकिन उसकी परवाह कौन करता है?
इस तरह के संबंध चूंकि स्वैच्छिक होते हैं और हर कोई इनमें अपनी मर्ज़ी से एंटर होता है इसलिए अल्पकालिक ही सही, आनंद तो देते हैं. जबकि वैवाहिक संबंध कई बार थोपे हुए होने के बाद भी उनमें बने रहने की विवषता होती है. नीतेश ओर लतिका भी इससे अलग नहीं थे. वे दोनों वर्चुअल वर्ल्ड यानी सोशल मीडिया पर तो हमेशा साथ रहते, लेकिन रीयल वर्ल्ड में उनका मिलना महीने में एकाध बार भी नहीं हो पाता था. कुछ मुलाक़ातों में जब लतिका ने अपनी परेशानी और इस संबंध में एंटर होने का कारण और उद्देश्य बताया तो नीतेश को भरोसा नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है. उसने कहा,‘‘इन संबंधों को मिलने-जुलने, सुख-दुख बांटने तक ही रखें तो ठीक है. बच्चे तक लेकर जाना किसी भी तरह से उचित नहीं है.’’
‘‘वाह, अनैतिक काम में भी आप नैतिकता ढूंढ़ रहे हैं. बहुत ख़ूब,’’ लतिका ने उस पर कटाक्ष किया था.
‘‘नैतिकता हो या अनैतिकता एक सीमा तो तय करनी ही चाहिए, माइ डियर,’’ नीतेश ने उसे समझाया. फिर उसने लतिका को बच्चे की कमी पूरी करने का जो सुझाव दिया उसे उसने सुनते ही ख़ारिज कर दिया. असल में नीतेश ने उसे एक अनाथ बच्चा गोद लेने की सलाह दी थी. और समझाया कि देश में लाखों अनाथ बच्चे मां-बाप के लिए तरसते हैं. कुछ बेदर्द और बेशर्म तो उन्हें डस्टबिन तक में फेंक जोते हैं. अपनी करतूतों की सजा उन अबोध बच्चों को देते हैं.
लेकिन लतिका पर इस बात का कोई असर नहीं हुआ. वह अपनी ज़िद पर क़ायम थी उसे अपना ही बच्चा चाहिए, बस!
फिर नीतेश ने उसे टेस्टट्यूब बेबी जैसे ऑप्शन भी सुझाए. लेकिन लतिका ने उनको भी कोई तवज्जो नहीं दी. लतिका को बार-बार यह बात कुछ परेशान करती तो कुछ हौसला देती कि नीतेश अपने नाम के अनुरूप नीति पर चलने वाला आदमी है. अपनी नैतिकता न उसने खोई है और न ही वह उसको छोड़ने को तैयार है.
एक दिन मौक़ा देखकर लतिका ने बच्चा गोद लेने की बात जलज से की तो उसने उसकी इस बात पर खुले दिमाग़ से विचार किया और कहा,‘‘किसी की गोदभर जाने के साथ ही किसी अबोध बच्चे को ममता की आंचल का सहारा मिल जाए इससे बेहतर क्या हो सकता है?’’
जब जलज की सहमति मिली तो लतिका अपनी ज़िद से थोड़ी पिघली. उसने अगली मुलाक़ात में नीतेश से इसका ज़िक्र किया तो नीतेश बहुत प्रसन्न हुआ. वह उसे एक अनाथालय में ले गया. और दोनों ने ऐडॉप्शन की पूरी प्रक्रिया को समझा. थोड़े ही दिनों लतिका ने जलज के साथ जाकर ऐडॉप्शन के लिए आवेदन दे दिया. संस्था वालों ने उनको यथा समय सूचित करने की बात कही. दोनों ख़ुशी-ख़ुशी घर लौटे.
लेकिन कहते हैं ना कि होता वही है जो ईश्वर ने सोच रखा है. अचानक जलज का ट्रांस्फ़र किसी दूसरे शहर में हो गया. इस उठा-पटक में ऐडॉप्शन की बात गौण हो गई. उन्होंने विचार किया कि नए शहर में जाकर ही इस काम को पूरा करेंगे. यही सब बताने और अंतिम मुलाक़ात के लिए लतिका नीतेश को मिलने आई थी. दोनों इसी कारण नरीमन पॉईंट पर बैठे थे.
‘‘तो फ़ाइनली तुम मुझे और यह शहर छोड़कर जा रही हो,’’ नीतेश ने दुखी मन से कहा.
‘‘जा नहीं रही हूं, जाना पड़ रहा है. मेरे लिए यह शहर बहुत ख़ास है. इसने मुझे तुम जैसा एक ख़ूबसूरत और ख़ास रिश्ता दिया है. नीतेश, पर आज भी हमारे समाज में पत्नी का करियर और उसकी दुनिया पति के केंद्र बिंदु के आस पास ही घूमती है,’’ लतिका का स्वर अजीब तरह से कातर हो चला था.
‘‘ये जो किनारे होते हैं ना लतिका ये कभी मिल नहीं पाते. यह भी अजीब इत्तफ़ाक होता है कि जिस जलराशि की वजह से किनारे बनते हैं, वही जलराशि उन्हें मिलने नहीं देती. उन्हें साथ रहकर भी समानांतर चलना होता है. यदि एक किनारा है तो दूसरा भी होगा ही. यह हो ही नहीं सकता कि किनारा एक ही हो. किनारे हमेशा दो ही होते हैं-पर कभी न मिल पाने के लिए!!’’ नीतेश को अपनी ही आवाज़ अरब सागर की अतल गहराइयों से आती-सी लगी.
दोनों ने एक दूसरे की आंखों में देखा. मौन ने सब कुछ कह डाला. और दोनों अंतिम बिदा लेकर अलग अलग दिशाओं में चल दिए.
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