कहानी: गुडबाय पार्टी

“राधे जी, कहीं कोई कमी-पेशी नहीं रहनी चाहिए,” रोहित मेहता अपने मैनेजर को हिदायत दे रहे थे.

“कैसी बात करते हैं, मेहता साहब? आख़िर आपकी इकलौती बिटिया की शादी है. किसी कमी का तो सवाल ही नहीं उठता.” महिमा की शादी की तैयारी में सभी व्यस्त थे. हर तरफ़ धूम मची थी. प्रत्येक रीति-रिवाज निभाए जा रहे थे. सारे संबंधियों व मित्रगणों को न्योते हेतु ख़ास बनवाई गई चॉकलेट व ताज़े फूलों की टोकरियों में निमंत्रण पत्र भेजे गए थे. धूम-धाम से, पूरी बिरादरी के सामने वंदना और रोहित ने अपनी इकलौती पुत्री महिमा का विवाह सम्पन्न किया था. रिश्ता भी अपने जैसे धनाढ्य परिवार में किया था. ऊपर से महिमा और अभिषेक को कोर्टशिप के लिए पूरे एक वर्ष की अवधि दी गई थी. दोनों कितने प्रसन्न थे. लेटेस्ट डिज़ाइन के कपड़े-गहने, शादियों में नवीनतम चलन वाली कैंडिड फ़ोटोग्राफ़ी, देश-विदेश के क्वीज़ीन्स, कहीं कोई कमी नहीं छोड़ी गई थी.

हनीमून के लिए महिमा व अभिषेक की पसंद से एक सुदूर द्वीप पर पांच-सितारा रिज़ॉर्ट में पंद्रह दिनों के लिए आरक्षित की गई थी. हनीमून के शुरुआती दिनों में फ़ेसबुक और वॉट्सऐप पर उन दोनों की प्यार के नशे में डुबकी लगाती सेल्फ़ी व फ़ोटो देख-देख कर मां-पिता वंदना व रोहित हर्षित होते रहे. बेटी-दामाद से मिलने की इच्छा तीव्र लिए वो दोनों महिमा-अभिषेक से एक छोटी-सी मुलाक़ात करने उनके लौटने वाले दिन एयरपोर्ट पहुंचे.

“नए-नवेले जोड़े के चेहरों पर प्यार की चमक तो देखो,” कहते हुए वंदना ने महिमा को गले लगा लिया. अपनी नव-विवाहिता बिटिया के चेहरे पर प्यार का खुमार और नई-नई शादी की लाली देखने की इच्छा किस मां की नहीं होती भला. पर गले लगते ही महिमा ने अपने पिता के ड्राइवर को आदेश दे डाला कि वो उसका बैग उठा कर मां-पिता की गाड़ी में रख दे. उधर, अभिषेक चुप-चाप दूसरे रास्ते चला गया. वंदना व रोहित बेहद आश्चर्यचकित रह गए.

धीरे-धीरे बात साफ़ हुई. दरअस्ल, हनीमून पर पहली बार संग-साथ रह कर पता चलता है कि दोनों में कितना सामंजस्य है. बदलते समय के साथ जब लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों से बराबरी कर रही हैं तो उनके व्यवहार में भी वही बराबरी की झलक दिखने लगी है. समाज में शुरू से ही लड़कों में धैर्य की कमी स्वीकार्य रही है लेकिन आजकल धीरज की वही कमी, उतनी ही मात्रा में लड़कियों में भी पैठ कर गई है. और क्यों न हो, लड़कियां लकड़ों से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं. तो फिर शादीशुदा रिश्ते में सामंजस्य बिठाना भी दोनों की बराबर ज़िम्मेदारी हुई न! लेकिन ऐसा जिस परिवार में हो जाता है, वहां माता-पिता का मन अवश्य शोकार्त रहने लगता है. आख़िर अपने घर-आंगन में कौन ऐसी उथल-पुथल चाहता है. पर इसका अर्थ ये कदापि नहीं कि बीते ज़माने की रीत दुहराई जाए कि डोली में देहरी लांघी हुई लड़की अर्थी पर ही लौटे. परंतु परिणयसूत्र कोई मिट्टी का दौना भी तो नहीं कि ज़रा टकराते ही बिखर जाए. बेटी के इस कदम पर वंदना का मन चिंतित रहता. और ऊपर से महिमा अपने मन की बात ढंग से बताती भी तो नहीं. बस सबसे विमुख-सी रहती. हां, वंदना ज़रूर घर का माहौल खुशमिजाज़ रखने के प्रयत्न में अग्रसर रहती, ताकि महिमा का मन शोकाकुल ना रहे. इतने भूचाल के बाद भी वो अपनी बेटी महिमा को डगमगाने नहीं देना चाहती थी.

आज वंदना ने सोचा की महिमा के मन की थाह ली जाए. यदि वो भी अन्य सभी की भांति इस विषय को यहीं छोड़ देगी, आगे नहीं टटोलेगी तो उसकी बिटिया के शादीशुदा जीवन की इति दूर नहीं.

“क्या बात है महिमा, क्यों नाराज़ हो तुम अभिषेक से? ऐसी क्या बात हो गई कि तुम दोनों हनीमून के बाद घर बसाने के बजाय सारे प्रयत्न छोड़कर वापस मुड़ चले हो?”

“मम्मा, मैं और अभिषेक बिलकुल भी कम्पैटेबल नहीं हैं. उसे मेरी भावनाएं ज़रा भी समझ नहीं आतीं. मेरे छोटे-मोटे मज़ाक तक नहीं सह सकता वो. आपको तो पता है कि मेरी प्रवृत्ति खुले विचारों की है. और मुझे पार्टियां ही बेहद पसंद हैं. शादी से पहले मैं सोचती थी कि वो मुझे लेकर पोज़ेसिव है, इसलिए उसे पसंद नहीं कि मैं पार्टियों कि शान बनी घूमूं. पर हमेशा तो ऐसा नहीं चल सकता न. उसे तो बस अपने परिवार के संस्कारों की पड़ी रहती है. हुंह! हनीमून न हो गया, उसके परिवार में सेटल होने की मेरी ट्रेनिंग हो गई,” वंदना के उंगली लगाते ही महिमा पके फोड़े-सी फट पड़ी. “बात-बात पर कहता है कि मुझे अपने तौर-तरीके बदलने होंगे. किसी के लिए मैं क्यों बदलूं?”

वंदना हमेशा से महिमा के लिए मां से अधिक एक अच्छी दोस्त रही है. तभी तो आज महिमा ने बिना किसी झिझक के उससे अपने मन की बातें सांझा की थीं. अब वंदना की बारी थी अपनी भूमिका निभाने की. जब उसने अपनी बेटी का कन्यादान किया तो इसी आशय से कि उसकी बेटी का जीवन अपने जीवनसाथी के साथ सुखी रहे. पूरे एक साल के कोर्टशिप में अभिषेक और महिमा ख़ूब ख़ुश रहे. इसका तात्पर्य है कि जो कुछ अभी हो रहा है वो बस शुरू की हिचकियां हैं, जो हर रिश्ते के शुरुआत में आती है. अभी शुरुआत है. यदि अभी इस समस्या का हल निकाल लिया जाए तो बात संभल सकती है.

अपनी तसल्ली के लिए वंदना ने पहले अभिषेक से फ़ोन पर बात की, और फिर उससे मिली भी. बस, इस बात की भनक उसने महिमा को नहीं लगने दी. अभिषेक से बात करके वंदना को विश्वास हो गया कि अभिषेक इस रिश्ते को कायम रखने और निभाने में पूर्णतया इच्छुक है. हर परिवार भिन्न होता है. अभिषेक के परिवार में बहुत अधिक पार्टी-कल्चर नहीं है. शादी के बाद हर लड़की को नए परिवार के रीति-रिवाज अनुसार चलना होता है. इसमें कोई बुराई नहीं है. एक व्यक्ति के लिए पूरा परिवार नहीं बदल सकता. यदि ऐसा नहीं होगा तो हर परिवार हर शादी के बाद अपनी ख़ास पहचान खो देगा. इसका तात्पर्य यह भी नहीं कि आनेवाले नवसदस्य से शत-प्रतिशत बदलने की आशा की जाए. आख़िर, वो भी एक व्यक्तित्व ले कर आ रहा है परिवार में. और यहीं सामंजस्य बिठाने की अहम भूमिका आती है. पहले लड़की समझौते करती है, कुछ समय तक नए माहौल में स्वयं को ढालती है, फिर शनै-शनै उस लड़की द्वारा परिवार में बदलाव आता है.   

“ठीक सुना है, रश्मि, मैं वापस आ गई हूं,” महिमा अपनी सहेली से फ़ोन पर बात कर रही थी. “सच कहूं तो मुझे लगता है मैंने ग़लती कर दी यह शादी करके. पता है, हनीमून पर एक रात हम दोनों में झगड़ा हुआ और ग़ुस्से में मैंने डिनर नहीं किया. लेकिन अभिषेक ने पूरा डिनर खाया, यहां तक कि खाने के बाद मेरी पसंदीदा चॉकलेट ब्राउनी विद वनीला आइस क्रीम भी मंगवाई. इसका तो यही निष्कर्ष निकला न कि उसे मेरी भावनाओं से कोई सरोकार नहीं है... हां, अब देखो आगे क्या फ़ैसला करती हूं... ठीक कह रही हो तुम, जितना जल्दी ये सब निबट जाए, उतना अच्छा.... तुम तो जानती हो कि मेरी मम्मा मेरी तरह खुले विचारों की हैं. आई एम श्योर वो मेरे इस निर्णय में मेरा साथ देंगी,” महिमा को अपनी मां और उसके विचारों की स्वतंत्रता पर पूरा विश्वास था.
वंदना दोनों पक्षों की बात सुन चुकी थी और सुनकर उसे और भी विश्वास हो गया था कि दोनों का रिश्ता सुदृढ़ बनाना इतना कठिन भी नहीं. बस एक छोटी सी युक्ति लगानी होगी.

“महिमा, जो भी तुम्हारा निर्णय होगा, मैं तुम्हारे साथ हूं. आज तक हमने वही किया, वैसे ही किया, जैसे तुमने चाहा. आगे भी वही होगा जो तुम ख़ुशी से चाहोगी. हमने तुम्हारी शादी आज के आधुनिक तौर-तरीक़ों से की, वैसे ही आगे की कार्यवाही भी हम आज के युग के हिसाब से ही करेंगे. तो सबसे पहले मैं तुमको, अभिषेक को और तुम दोनों के मित्रों को एक ‘गुडबाय पार्टी’ देना चाहती हूं. आजकल ‘ब्रेक-अप पार्टी’ का चलन है ना! जब दोनों परिवार ख़ुशी से पास आए तो क्यों न हम दूर भी ख़ुशी-ख़ुशी हों? आपस में लड़ने-रूठने की बजाए, हम पार्टी क्यूं ना करें?” महिमा को अपनी मम्मा की पार्टी वाली बात बेहद पसंद आई. अभिषेक को पार्टी में लाने की ज़िम्मेदारी वंदना ने ले ली. बस, पास के फ़ार्म-हाउस में पार्टी की तैयारी शुरू हो गई.

पार्टी वाले दिन फ़ार्म-हाउस की साजो-सज्जा देख कर स्वयं महिमा भी अचंभित रह गई. उसके सभी मित्र उसकी मां की इस सोच से प्रभावित थे. प्रवेश द्वार पर ‘महिमा संग अभिषेक’ का एक बड़ा-सा बोर्ड लगा था लेकिन उस बोर्ड पर लाल फीतों से कट्टस मार रखा था. आस-पास गुब्बारों और झूमरों की सजावट देख कर जो प्रसन्नता महिमा को हुई थी, वो इस कटे हुए बोर्ड को देख कर कुछ फीकी पड़ गई. अभिषेक से अपनी शादी टूटने का यह पहला आभास था.

खाने के इंतजाम में हॉल के दोनों तरफ़ दो बोर्ड लगे थे– ‘महिमा का पसंदीदा भोजन’ और ‘अभिषेक का पसंदीदा भोजन’. पर सबको हैरानी इस बात की थी कि दोनों तरफ़ मेन्यू बिलकुल एक-सा था. पूछने पर वंदना ने यही बताया कि खाने के मामले में दोनों की पसंद एक ही है!

वंदना ने सभी आगंतुकों का ध्यान आकर्षित कर कहा,“जैसा कि आप सब जानते हैं, आज हमारे नव-विवाहित बच्चों की ‘गुडबाय पार्टी’ है. कोई भी शादी ये सोच कर नहीं करता कि वो टूट जाएगी पर ये भी ज़रूरी नहीं कि हर शादी सफल हो. कई बार मन नहीं मिल पाते. फिर ऐसे में दोनों को एक जगह रहने का दंड क्यूं मिले? इसी उपलक्ष में आज के जमाने के साथ चलते हुए पेश है ये पार्टी, एक छोटे-से फ़्लैशबैक के साथ!”

वंदना की बात समाप्त होने पर कुछ दोस्तों ने उनकी बेबाकी पर तालियां बजाईं तो कुछ संकोचवश चुप रहे. वंदना ने ध्यान दिया कि महिमा और अभिषेक, दोनों ही सिर झुकाए मौन बैठे थे. तीर निशाने पर लग रहा था. उनके इशारे पर वहां स्थित एक बड़े स्क्रीन पर ए.वी. फ़िल्म चला दी गई.

पिछले छह माह में महिमा और अभिषेक की शादी की तैयारी में शहर के प्रसिद्ध फ़ोटोग्राफर ने कई छोटी-छोटी फ़िल्में बनाई थीं, जिसमें उसने उन दोनों के मीठे पल कैद किए थे. प्री-वेडिंग फ़ोटोशूट से लेकर हनीमून फ़ोटोशूट तक. इन फ़िल्मों में कभी महिमा तो कभी अभिषेक एक-दूसरे के लिए प्रेम-विभोर हो प्यार भरी बातें कह रहे थे; दोनों अलग अलग जगहों पर साथ घूमते-फिरते, हाथों में हाथ डाले, गलबहियां डाले दिख रहे थे. वंदना ने बड़ी सफाई से इन फ़िल्मों से प्रेमालिप्त क्षण चुरा कर एक छोटी-सी फ़िल्म बनवाई और इस ‘गुड बाय पार्टी’ में चलवा दी.

देखते ही देखते महिमा और अभिषेक अपने एक वर्ष पुराने प्यार और उसमें बिताए अनगिनत क्षण याद कर भावुक हो गए. दोनों के हाथों ने एक-दूसरे को टटोल लिया. उन्हें विश्वास होने लगा कि वो एक-दूसरे के लिए बने हैं. ज़रूरत है तो बस इस आपसी प्यार को पनपने देने की. आज अपने बेटी-दामाद की प्रेमकहानी के बीच बढ़ती दीवार गिराने में वंदना सफल हो गई थीं.

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