कहानी: हमारी अधूरी कहानी
नेहा रोज़ की तरह रसोई के काम निपटाने में लगी थी. ग्यारह बजे उसे जिम निकलना था. उसका पति निखिल अभी ऑफ़िस को निकला ही था. दिन का खाना वो सुबह ही बना लेती थी. जिम से आने के बाद उसे बहुत भूख लगती थी और इतनी ताक़त नहीं बचती थी कि फिर कुछ खाने को बना सके. उसका वज़न बढ़ने लगा था, जो कपड़े उसने बड़े शौक़ से शादी और हनीमून के लिए ख़रीदे या सिलवाए थे सब टाइट होने लगे थे. आख़िर उसने खुद को पहले जैसा फ़िट बनाने का इरादा पक्का कर लिया. उसकी सोसाइटी में ही जिम था तो निखिल ने ज़्यादा ऑब्जेक्शन नहीं किया. वैसे वो बहुत रोक-टोक करने वाला आदमी था.
जिम जाने से पहले ही उसने नेहा को बोल दिया था कि लेडीज़ टाइमिंग पर जाए और घर से सलवार सूट में जाए और जिम जाकर ही जिम के कपड़े पहने. कभी-कभी नेहा उसकी इन दकियानूसी बातों से बहुत खीज जाती थी. अच्छी ख़ासी नौकरी उसने इस शौक़ में छोड़ दी कि अपना घर संभालेगी. पैसे की कोई कमी नहीं थी. कुछ समय वो अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को पूरी तरह जीना चाहती थी. नेहा ने एमबीए किया था. वो और निखिल साथ ही काम करते थे. पहचान बढ़ी फिर दोनों ने शादी कर ली.
अभी उसने रोटी गैस फ़्लेम पर फूलने को रखी ही थी कि उसका फ़ोन बजने लगा. गैस कम कर के हाथ धोते हुए वो फ़ोन की तरफ भागी. फ़ोन उसके ससुर का था.
‘हेलो पापा जी..प्रणाम,” उसने मीठी आवाज़ में कहा.
उन्होंने कुछ नोट करने को कहा तो वो अन्दर के कमरे में पेन और पेपर लेने भागी. फ़ोन रखने के बाद उसका दिमाग़ ग्यारह साल पीछे चला गया. पेपर पर लिखा हुआ वो नाम एक बड़ी कंपनी के सीईओ का था, जो उसके पति निखिल को उसकी कंपनी में नौकरी दिलवाने में मदद कर सकता था. पर वो नाम उसकी दस साल की तलाश थी. पता नहीं कितनी दुआएं मांगी थी उसने, कितनी बार मन्नतें मांगी... बस, ये नाम और उसका कोई पता ठिकाना उसे मिल जाए. पर कुछ नहीं हुआ और आज इतनी आसानी से ये नाम उसकी झोली में आ गिरा, जब वो उसे भूलने लगी थी और अपनी नई ज़िंदगी में रम
गई थी...
चौदह साल की थी जब पहली बार उसका नाम सुना था, उसके साथ ही ट्यूशन पढ़ने आता था और न जाने कब नेहा को उससे प्यार हो गया. वो सामने से आता दिख जाता तो उसके हाथ पैर फूल जाते. दिल की धड़कनें कानों में सुनाई देने लगती. गला सूख जाता. नज़र चुराकर कितनी बार उसे देख लेती. कान, बस उसकी आवाज़ पर ही लगे रहते. वो कभी उसे देख मुस्करा देता तो वो मुंह बना लेती जैसे उसे जानती भी न हो! आती जाती हर सांस पर उसका नाम लेने लगी थी...
गौतम गौतम गौतम !
और आज उसी “गौतम अवस्थी” का नंबर उसके सामने रखे पेपर पर लिखा हुआ था !
गौतम पढ़ने में बहुत होशियार था, नेहा और उसमें होड़ लगी रहती कि कौन ज़्यादा नंबर ले आये. नेहा को बस शाम को ट्यूशन जाने का इंतज़ार रहता. बाद में गौतम ने ट्यूशन बैच का वक़्त बदल लिया. नेहा और उसका सामना अब कम ही हो पाता. वो सारे रास्ते दुआ मांगती कि काश आज वो दिख जाए. दो साल निकल गए. बारहवीं के रिज़ल्ट्स आ चुके थे. नेहा ने अपने ज़िले में टॉप किया था. गौतम अवस्थी तीसरे नंबर पर था. नेहा ने तय किया आज वो गौतम के घर जाकर उसे बधाई देगी और उससे दोस्ती की पहल करेगी. अभी तक उनके बीच एक दो बार ट्यूशन में एक दूसरे की कॉपी देख लेने के अलावा कोई बात नहीं हुई थी. वो हिम्मत कर गौतम के घर पहुंची तो पता लगा कि उसके पिता का ट्रांस्फ़र मेरठ हो गया. वो एक महीना पहले ही जा चुके. वो सन्न रह गई किसको क्या बोलती ? बहुत रोई, बहुत तड़पी. धीरे धीरे वक़्त बीतता गया, पर उसके अन्दर गौतम के लिए जो प्यार था वो कम नहीं हुआ.
नौ साल तक उसके दिल पर कोई दस्तक नहीं हुई. वो हर सोशल साइट पर गौतम अवस्थी का नाम खंगालती. पर उस नाम के न जाने कितने ही नाम सामने आ जाते, उनमें से एक भी उसे पहचाना नहीं लगता. वो अक्सर सोचती कि वो क्या करता होगा? उसके पास बायो था, शायद डॉक्टर बन गया होगा ! फिर वो डॉ गौतम अवस्थी नाम से सर्च करती. पर एक भी उसका गौतम नहीं था. फिर निखिल उसे मुंबई में मिला, जो उसके ही शहर का था. निखिल उसे बहुत पसंद करता था, उनकी दोस्ती हो गई. एक दिन निखिल ने उसे शादी के लिए प्रपोज़ कर दिया. आख़िर उसने ‘हां’ बोल दिया और दोनों की धूमधाम से शादी हो गई. गौतम एक भूली याद बन उसके दिमाग़ के किसी कोने में छूट गया.
सब ठीक चल रहा था पर आज ये नंबर अचानक उसके सामने आ गया, जिसकी तलाश में न जाने उसने कितने ही रॉन्ग नंबर मिलाए थे.
बहुत सोचने के बाद नेहा ने वो नंबर डायल किया
“हेलो,” दूसरी तरफ़ से एक भारी आवाज़ आई.
नेहा इस आवाज़ को बहुत अच्छे से पहचानती थी. उसके हाथ कांपने लगे. मुंह से बोल नहीं फूटा
“हेलो,” उधर से दोबारा आवाज़ आई.
“गौतम!” वो भर्राई आवाज़ में बोली
“जी... आप कौन?”
“नेहा.. नेहा ठाकुर ! पीलीभीत, केमिस्ट्री बैच, माथुर सर,” उसने एक सांस में बोल डाला.
“अरे...” वो चौंक कर बोला
नेहा चुप रही.
“नेहा...मैं एक मीटिंग में हूं. अभी फ्री हो कर फ़ोन करता हूं.”
उसके मुंह से पहली बार अपना नाम सुन नेहा एक अलग ही दुनिया में चली गई.
“हेलो...नेहा...ये तुम्हारा ही नंबर है न? मैं कॉल बैक करूं?’’ उसने पूछा.
“हां.”
फ़ोन कट हो गया.
वो बहुत बैचैन हो उठी, अब उसका नाश्ता करने का भी मन नहीं कर रहा था. बार बार वो फ़ोन का स्क्रीन देखती. एक घंटा हो गया गौतम ने दोबारा फ़ोन नहीं किया.
मैंने क्यों फ़ोन किया उसे? पता नहीं उसे अब मैं याद भी हूं या नहीं? पता नहीं क्या सोच रहा होगा मेरे बारे में? उसे ख़ुद पर शर्म आने लगी. बोल दूंगी नंबर सेव किया था, इसलिए कन्फ़र्म करने को फ़ोन किया. निखिल को पता लगा तो ? वैसे ही बड़ा शक्की है, मुझे अपने बचपन के दोस्तों से तक बात नहीं करने देता.
उसका दिमाग़ फटा जा रहा था. अनमने मन से वो जिम के लिए तैयार हो गई.
ट्रेडमिल पर दौड़ते हुए वो अपने मन से गौतम के ख़्याल को निकाल देने की कोशिश कर ही रही थी कि उसका फ़ोन बजने लगा. उसने स्पीड कम की और घबराए दिल से फ़ोन उठाया.
“आई ऐम सो सॉरी नेहा. मीटिंग लम्बी खिंच गयी और फिर कोई न कोई केबिन में आता जाता रहा. अब फ़ुरसत से बात कर सकता हूं.”
“तुम्हें मैं याद हूं?”
“कैसे भूल सकता हूं? कहां से बोल रही हो”
“मुंबई से.”
“इतना हांफ क्यों रही हो?”
“जिम में हूं.”
“ओहो हेल्थ कॉन्शस, तुम तो वैसे ही बहुत फ़िट हो.”
“ग्यारह साल पुरानी बात बोल रहे हो, जब मैं पंद्रह-सोलह साल की थी. तब तो सभी फ़िट होते हैं,” वो हंस पड़ी.
“नेहा ! तुम्हें मेरा नंबर कहां से मिला?”
नेहा ट्रेडमिल से उतर गई और साइड में रखे एक स्टूल पर बैठ गई. उसने तौलिए से मुंह पोंछते हुए कहा,“गौतम पहले तुम प्रॉमिस करो ये बात किसी से शेयर नहीं करोगे?’’
“ऑफ़ कोर्स...प्रॉमिस”
“मेरे फ़ादर इन लॉ ने ये नंबर दिया, उन्होंने कहीं से जुटाया है निखिल के लिए. निखिल मेरा हस्बैंड है, जिसने अभी तुम्हारी कंपनी में सीनियर मैनेजर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू दिया है. मैं पिछले दस साल से तुम्हें तलाश रही थी गौतम! और आज जब मिले हो तो बहुत देर हो चुकी.”
दूसरी तरफ से सांसों के भारी होने की आवाज़ आती रही.
“पता है गौतम मैंने जीवन में किसी चीज़ की इतनी इच्छा नहीं की, जितनी तुमसे बस एक बार मिलने की.”
“नेहा, मुझे तुम बहुत पसंद थी पर तुम कितनी चुपचाप रहती थी, कभी हिम्मत नहीं होती थी, तुमसे बात करने की और वो शहर भी तो छोटा था ज़रा-सा नाम भी ले लो तो कहानियां बन जाती थीं.”
‘‘एक बार बात तो की होती,” नेहा की आवाज़ में नाराज़गी थी.
“डर लगता था नेहा... विशाल को तुमने भरी सड़क पर कितना सुनाया था, क्यूंकि उसने तुम्हे एक लव लेटर दिया था और तुम्हारा भाई निशांत उसने तो केवल तुम्हारा नाम लेने पर राहुल और अनिल की पिटाई कर दी थी.”
“हाहा... जो मुझे पसंद नहीं उसे तो सुनाती ही न..वैसे भी शहर के आधे लड़के तो मेरा पीछा करते ही थे. अगर तुम देते तो शायद ...” वो बोलते बोलते रुक गई.
जिम ट्रेनर उसे जिम में फ़ोन पर बात न करने का इशारा कर रहा था.
“हेलो... शायद...क्या...?” गौतम बोला
“एक मिनट होल्ड करो,” उसने इशारे से जिम ट्रेनर को सॉरी बोला और अपना बैग उठा जिम से बाहर निकल आई.
“हां, अब बोलो,”
“बोल तो तुम रही थीं न...मैं तुम्हें लव लेटर देता तो तुम शायद...”
“तो शायद आज हम साथ होते. मैंने तुम्हें कहां-कहां नहीं ढूंढ़ा? क्या फ़ेसबुक, क्या ऑरकुट हर जगह.”
‘‘नेहा मुझे लगता था शायद तुम मुझे पसंद नहीं करतीं. मैं सिर्फ़ तुम्हारी एक झलक लेने तीन किलोमीटर साइकिल चला कर आता था. और तुम्हारे घर के पास वाले मास्टर से इंग्लिश ट्यूशन भी तो इसलिए लगाई थी, ताकि तुम्हें देख सकूं पर तुम तो मुझे देखते ही उलटे पांव भाग जाती थीं.”
“यार तुम लड़के थे, एक बार तो हिम्मत करते. ज़्यादा से ज़्यादा ‘ना’ ही तो बोलती,” नेहा ने घर का दरवाज़ा खोलते हुए कहा.
“मैं शरीफ़ लड़का था, क्यों तुम्हें तंग करता जब तुम मुझे देखती तक नहीं थी. और ‘ना’ सुनने से अच्छा मोहब्बत का भ्रम होता है”
“ह्म्म्म...” उसने अपना जिम बैग एक तरफ़ लापरवाही से फेंका और सोफ़े पर पसर गई.
“मिला कुछ इस भ्रम से? दस साल तुम्हारा इंतज़ार किया मैंने...एक भी अफ़ेयर नहीं किया बीएससी की, एमबीए किया. आख़िर पिछले साल अपने अकेलेपन से छुटकारा पाने को शादी की, निखिल
बहुत चाहता था मुझे. सोचा, इसका दिल तो न टूटे!’’
“मैंने भी पिछले साल ही शादी की,” गौतम बोला
“अच्छा...कौन-सी तारीख़ को?”
“सत्रह नवम्बर.”
“मैंने अठारह नवम्बर ... तुमसे ठीक एक दिन बाद,” नेहा ने ठंडी सांस छोड़ी.
“काश हम एक साल पहले मिल पाते.”
“तुमने कोशिश ही नहीं की, गौतम वरना हम साथ होते और देखो शादी भी तुम्हारी शादी के बाद ही की मैंने...इतना कौन किसी का इंतज़ार करता है?”
तभी निखिल का फ़ोन आने लगा.
“मैं थोड़ी देर बाद फ़ोन करती हूं,’’ कहकर नेहा ने फ़ोन काटा और निखिल को फ़ोन लगाया.
“कितनी देर से फ़ोन बिजी आ रहा है, किससे बात कर रही थीं?” निखिल तल्ख़ी से बोला
“मम्मी से.”
“जिम नहीं गईं आज?”
“गई थी, पर तबियत ख़राब लग रही थी इसलिए लौट आई.”
“क्या हुआ?”
“सिरदर्द हो रहा है बहुत.”
“तो सो जाओ. फ़ोन पर क्यों लगी हुई हो यार?”
“हां, सो जाऊंगी.”
“अच्छा सुनो, अलमारी में मेरी पासबुक है जरा उसका अकाउंट नंबर बता दो.”
“ओके.”
वो अलमारी की तरफ़ बढ़ी, कुछ काग़ज़ उलट-पुलट करने के बाद उसे पासबुक मिल गई. उसने नंबर बताया. फ़ोन कट गया. उसने चैन की सांस ली और बिस्तर पर आ कर लेट गई. फ़ोन की बैटरी जा रही थी. फ़ोन को चार्जिंग पर लगा कर उसने दोबारा गौतम को फ़ोन लगाया.
“नेहा!” गौतम ने एक ही बार में फ़ोन उठा लिया.
“निखिल का फ़ोन था, ग़ुस्सा कर रहा था मेरा फ़ोन बिजी क्यों आ रहा है?”
‘‘ओह, अच्छा इतनी नज़र रखता है तुम पर?” गौतम हंसा.
“तुम बिज़ी होगे ऑफ़िस में?” नेहा ने बात बदल दी.
“नहीं मैं बाहर आ गया हूं, ऑफ़िस के पास एक कॉफ़ी हाउस में.”
“क्यों?”
“बरसों बाद उस लड़की से बात करने जिसे मैं चाहता था, पर डर के मारे कह नहीं सका और आज पता चल रहा है कि वो भी मुझे चाहती थी.”
नेहा ने करवट बदली और तकिए को अपनी बांहों में ले लिया.
“मैंने दो चार चक्कर चलाए, पर प्यार जैसा कुछ नहीं हुआ. शादी भी पैरेंट्स की पसंद से की,” गौतम ने कहा.
“क्या नाम है तुम्हारी वाइफ़ का?”
“रमा...”
“तुम कहां जॉब करती हो?”
“जॉब छोड़ दिया. फ़िलहाल सिर्फ़ होममेकर. कोई स्टार्ट अप शुरू करने का सोच रही हूं. पर तुम तो डॉक्टर बनाना चाहते थे ये सीएस कैसे बन गए?”
“बस ट्वेल्थ के बाद बीकॉम जॉइन कर लिया, कोई ख़ूबसूरत लड़की ही नहीं मिली फिर ट्यूशन में जिसके साथ बायो पढ़ने का मन करता,” वो ज़ोर से हंसा.
“हां, मेरे ज़्यादा मार्क्स आते थे तो तुम्हारा मुंह बन जाता था,” नेहा हंसते हुए बोली.
“तुम्हारा नहीं बनता था...ईगो हर्ट होता था न? ट्वेल्थ में तुमने डिस्ट्रिक्ट टॉप किया इस शर्म के मारे मैं शहर छोड़ गया,” गौतम ने हंसते हुए कहा.
“तुम्हें पता था कि मैंने टॉप किया था?” नेहा ने चौंकते हुए पूछा.
“सारे शहर को पता था मैडम, और हम तो आपकी खोज ख़बर रखनेवालों में से थे.”
“तो फिर बाद में क्यों नहीं रखी? पता है गौतम मैंने तुम्हारे चक्कर में अपना नाम गौतमी रखा था, और कई कविताएं भी लिखी मैंने इस नाम से.”
“अच्छा...सुनाओ.”
“अब कौन सी याद हैं? वही रोने-धोने वाली, पहला प्यार टाइप, पर यक़ीन नहीं हो रहा आज तुमसे बात कर रही हूं.”
“यक़ीन तो मुझे भी नहीं हो रहा, ऑफ़िस बीच में छोड़कर मजनूं की तरह तुमसे बात कर रहा हूं, पर यह सच है नेहा.”
“ये भी सच है कि तुम एक दिन चुपचाप शहर छोड़ गए गौतम बुद्ध की तरह मुझे सोता छोड़ !”
“हाहा...वाह, क्या सिमिली यूज़ की है.”
वो चुप रही. मन ही मन वो गौतम को महसूस कर रही थी उसके आवाज़ को अपनी आत्मा की गहराई तक उतार लेना चाहती थी.
“मेरा मन कर रहा है अभी तुमसे मिलने मुंबई आ जाऊं.”
“मन तो मेरा भी बहुत कर रहा है. पर अब मिलके क्या होगा गौतम? हम तो दस साल पहले ही बिना मिले ही अलग हो गए थे.”
“नेहा!”
“गौतम!”
दोनों तरफ़ चुप्पी छा गई.
“लेकिन मेरी आत्मा की एक इच्छा थी कि तुम्हें एक बार कह सकूं कि कितना प्यार करती थी मैं तुमको! आज वो इच्छा पूरी हो गई, मन में हमेशा बनी रहने वाली बैचैनी जैसे आज मिट गई.”
“लेकिन मेरी बैचैनी बढ़ गई. जो इच्छा मेरे दिल में दबी रहा गई थी, वो आज पूरी हुई जब मैं उसके बारे में भूल भी चुका था. जैसे वक़्त ग्यारह साल पीछे लौट गया हो..काश मैं एक बार कह ही देता !”
“अब वो वक़्त वापस नहीं आएगा गौतम. हम दोनों की शादी हो चुकी, सब ठीक चल रहा है दोनों की लाइफ़ में, अब हम मिले तो सब बिखरेगा ही...!”
“हां...शायद तुम सही कह रही हो...निखिल और रमा का क्या कसूर?”
“गौतम हम अब कभी बात नहीं करेंगे. वरना मेरा निखिल के साथ रहना मुश्क़िल हो जाएगा.”
“नेहा तुम से हमेशा कहना चाहता था यू आर अ रेयर कॉम्बिनेशन ब्यूटी विथ ब्रेन. आज लगता है, पिट भी गया होता तुम्हारे भाई से तो घाटा नहीं होता!”
“डरपोक हमेशा घाटा उठाता है. ख़ैर! कम से कम हमारी मोहब्बत मुक़म्मल तो हुई, हम एक दूसरे से कह पाए भले ही आज हमारे रास्ते, दुनिया मीलों दूर हैं.”
“नेहा तुम बहुत अच्छी हो, थैंक्स जो तुमने मुझे फ़ोन किया. ज़िंदगी में ऐसा इत्तफ़ाक भी होगा सोचा नहीं था.”
“मेरा नंबर डिलीट कर देना और ख़ुश रहना हमेशा...” नेहा ने कहा.
“तुम भी ख़ुश रहना, जॉब ज़रूर जॉइन कर लेना.”
‘‘बाय गौतम.”
“बाय नेहा.”
फ़ोन कट गया था.
दोनों ने अपनी आंखें बंद कर लीं. आंसू बंद आंखों के कोने से दबे पांव बह निकले.
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