कहानी: गुड लक

डॉ श्रुति हॉस्पिटल से घर लौटी तो बेहद थकी हुई थी. आज ओपीडी में काफ़ी पेशेन्ट्स थे. फ्रिज से पानी की बोतल निकालकर सोफ़े पर बैठी ही थी कि राहुल का फ़ोन आ गया,‘‘श्रुति, तैयार रहना. आज होटल ब्लू हैवन में शानदार डिनर करेंगे. याद है न एक साल पहले आज के दिन मैंने तुम्हें प्रपोज़ किया था.’’

श्रुति मुस्कुरा दी. उसे अपने पति राहुल की यह आदत बहुत पसंद है. इतना व्यस्त हार्ट सर्जन होते हुए भी वह छोटे-छोटे लम्हों से ख़ुशियां चुरा लेता है.

श्रुति खाना खाने उठी, तभी फिर मोबाइल बज उठा. सिस्टर सिल्विया थी, ‘‘डॉक्टर, जल्दी आ जाइए. एक इमरजेंसी केस है.’’

खाना भूलकर वह तुरंत हॉस्पिटल के लिए निकल गई. ऑपरेशन थिएटर में सिस्टर सिल्विया और जूनियर डॉक्टर प्रिया उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे. डॉ प्रिया बोली,‘‘डॉ इस लेडी को तीन माह की प्रेग्नेंसी है. गिरने के कारण पिछले दो घंटे से ब्लीडिंग हो रही है.’’


श्रुति ने टेबिल पर लेटी महिला को एग्ज़ैमिन किया. उसने डॉ प्रिया से कहा,‘‘जल्दी से इसे सिडेटिव दो. इसके साथ कौन आया है?’’

‘‘इनके पति बाहर खड़े हैं,’’ सिल्विया बोली.

डॉ श्रुति बाहर आई. वहां खड़े शख़्स पर निगाह पड़ते ही वह चौंक उठी. सामने संजय खड़ा था.

संजय भी श्रुति को सामने पाकर हक्का-बक्का रह गया. ‘‘श्रुति तुम?’’ उसके मुंह से निकला.

डॉ श्रुति ने ख़ुद को संभाला और बोली,‘‘देखिए, आपकी वाइफ़ की हालत सीरियस है. आपने हॉस्पिटल लाने में बहुत देर कर दी. काफ़ी ब्लीडिंग हो चुकी है. ब्लड चढ़ाना पड़ेगा. आप रिसेप्शन पर जाकर औपचारिकताएं पूरी करें. मैं मेडिसिन का पर्चा बाहर भिजवा रही हूं. जल्दी से दवाइयां ले आइए.’’


डॉ श्रुति अंदर जाने के लिए मुड़ी तो संजय उसके सामने आ गया. उसकी आंखों में आंसू थे. भर्राए गले से बोला,‘‘डॉ प्लीज़, मेरे किए की सज़ा सपना को मत देना.’’

डॉ श्रुति निर्विकार भाव से ऑपरेशन थिएटर में घुसते हुए बोली,‘‘पेशेंट की जान की हिफ़ाज़त करना डॉक्टर का कर्तव्य है. मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगी.’’

दो घंटे बाद वह आपरेशन थिएटर से बाहर निकली. संजय को अपने पीछे आने का संकेत कर वह अपने चेम्बर में पहुंच चेयर पर जा बैठी,‘‘आपकी वाइफ़ अब ठीक हैं, पर आप उन्हें तुरंत हॉस्पिटल क्यों नहीं लाए? जानते हैं, उसकी जान भी जा सकती थी.’’ संजय के चेहरे पर ग्लानि के भाव उभर आए. अचकचाते हुए वह बोला,‘‘दरअसल मैं घर से बाहर था. जब लौटा तो सपना को इस हालत में देखा.’’


डॉ श्रुति समझ गई. संजय झूठ बोल रहा था. ख़ैर उसे क्या? यह उनका निजी मामला था. वह बोली,‘‘कल आप अपनी वाइफ़ को घर ले जा सकते हैं, पर उनकी बहुत केयर करनी होगी. और हां, एक साल तक वह कंसीव न करें तो बेहतर होगा.’’

डॉ श्रुति घर लौट आई. मेड से गर्म कॉफ़ी बनवाकर वह पलंग पर लेट गई. संजय को देखने के बाद न चाहते हुए भी अतीत की स्मृतियां उसके ज़हन पर छाने लगीं. पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद उसकी जॉब लगते ही पापा-मम्मी उसके लिए, लड़का तलाशने लगे थे. एक मैट्रीमोनियल साइट पर पापा को संजय का रिज़्यूमे पसंद आया था. आईआईटी कानपुर से पास आउट, बैंग्लौर की मल्टीनेशनल कंपनी में प्रोजेक्ट लीड, बढ़िया पैकेज. और फिर कोई लंबा-चौड़ा परिवार भी नहीं. पापा ने संजय से बात की और श्रुति से मिलने के लिए कहा. हालांकि श्रुति की पहली पसंद डॉक्टर था, पर मिलने में तो कोई हर्ज था नहीं. दोनों की फ़ोन पर बात हुई. संजय ऑफ़िस के काम से मुंबई आनेवाला था, तभी उनकी मुलाक़ात होनी थी. रविवार की शाम पांच बजे मलाड के इनॉर्बिट मॉल पर मिलना तय हुआ था. श्रुति संजय से मिलने पहुंची. संजय के साथ उसका भाई कपिल भी आया था. थोड़ी देर बाद कपिल चला गया और वे दोनों देर तक बातें करते रहे. संजय ऑफ़िस के काम से एक माह मुंबई में रहा. इस दौरान वे दोनों कई बार मिले. संजय उसे सुलझा हुआ इंसान लगा,  दोनों की रुचियां भी एक-सी थीं. एक शाम संजय ने उससे कहा,‘‘श्रुति, तुम चाहो तो इस रिश्ते के बारे में फिर से सोच लो. तुम्हें मुझसे कहीं अच्छा डॉक्टर लड़का मिल सकता है.’’


श्रुति बोली थी,‘‘संजय, चाहतों का अंत नहीं होता. इंसान कितने भी पंख लगा ले, पांव तो उसे ज़मीन पर ही टिकाने पड़ते हैं. अपने मन को कहीं तो ठहराना पड़ता है. हो सकता है मुझे डॉक्टर लड़का मिल जाए. पर उससे स्वभाव भी मेल खाए ये ज़रूरी तो नहीं है. फिर वैवाहिक जीवन की सफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि दोनों के स्वभाव मेल खाएं.’’ श्रुति के व्यक्तित्व के ठहराव का संजय कायल हो गया था. पापा-मम्मी ने भी इस रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगा दी.

श्रुति दिनभर हास्पिटल में व्यस्त रहती और रात में देर तक संजय से फ़ोन पर बातें करके भविष्य के सतरंगी सपने बुनती. एक दिन संजय के भाई कपिल का फ़ोन आया. वह बैंग्लोर जा रहा था. संजय की तबियत काफ़ी ख़राब थी. वह हॉस्पिटल में एडमिट था. श्रुति अब समझी, कि क्यों 2-3 दिनों से संजय के फ़ोन नहीं आ रहे थे. वह बेहद चिंतित और परेशान हो गई. संजय का ब्लड टेस्ट हुआ. उसका हीमोग्लोबिन अचानक कम हो गया था. डॉक्टर ने उसे ब्लड कैंसर डायग्नोज़ किया था. श्रुति को लगा, जैसे उसके पांव तले ज़मीन खिसक गई हो. कल तक वह कितनी ख़ुश थी और आज मुट्ठी में बंद रेत की तरह ख़ुशियां हाथ से फिसल गई थीं. 


सारी रात श्रुति सो नहीं सकी. सबेरे उसने संजय को फ़ोन पर सलाह दी कि उसे मुंबई आकर सेकेंड ओपिनियन लेना चाहिए. अगले दिन कपिल भइया संजय को मुंबई ले आए. श्रुति ने संजय का कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ अडवानी से पूरा चेकअप कराया. दो दिन बाद रिपोर्ट आई. संजय पूरी तरह ठीक था. पिछली रिपोर्ट ग़लत थी. श्रुति ने ईश्वर को धन्यवाद दिया. उस शाम कपिल भइया ने उसे डिनर पर आमंत्रित किया. वहां संजय उसके दोनों हाथ थामकर बोला,‘‘श्रुति, ब्लड कैंसर का पता चलने पर, मैं पूरी तरह टूट गया था. कपिल भइया की हालत तो तुमने देखी ही थी, पर तुमने जिस तरह हम सबको संभाला उस बात को मैं जीवन पर्यन्त नहीं भूल सकता. अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’ श्रुति के गाल सुर्ख़ हो गए.

मंगनी की रस्म दिल्ली में होनी थी. श्रुति दो दिन पहले ही दिल्ली पहुंच गई. घर में मंगनी की तैयारियां हो रही थीं. मंगनी के दिन पापा संजय को लेने स्टेशन जा रहे थे. तभी संजय का फ़ोन आया,‘‘श्रुति, प्लीज़ नाराज़ मत होना. मुझे कंपनी के काम से आबुधाबी जाना पड़ रहा है इसलिए आज मंगनी हो पाना संभव नहीं है.’’

श्रुति चिढ़ गई,‘‘पापा तुम लोगों को रिसीव करने स्टेशन के लिए निकल रहे हैं, घर में सब तैयारियां हो चुकी हैं और यह बात तुम मुझे अब बता रहे हो.’’

‘‘आई एम वेरी सॉरी श्रुति, पर मैं क्या करता? देर रात ऑफ़िस से लौटा. इस समय भी जल्दी में हूं, एयरपोर्ट से बोल रहा हूं. पंद्रह दिन बाद लौटूंगा. अच्छा बाय.’’ मम्मी-पापा यह सुनकर बेहद नाराज़ हो उठे. निराश-सी वह अगले दिन मुंबई लौट आई. पंद्रह दिन बाद संजय का फ़ोन आया. वह दीपावली पर मुंबई आ रहा था. उस समय मम्मी-पापा ने भी मुंबई आने का प्रोग्राम बना लिया. मंगनी की रस्म को वे अब टालना नहीं चाहते थे. उस शाम श्रुति उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट पहुंची. फ़्लाइट आधा घंटा लेट थी. कोल्ड ड्रिंक लेने वह रिफ्रेशमेंट सेंटर की ओर बढ़ी, तभी उसे संजय नज़र आया. अचरज और ख़ुशी का मिलाजुला भाव लिए श्रुति उसके क़रीब पहुंची और बोली,‘‘अरे संजय, तुम मुंबई कब आए? मुझे बताया तक नहीं.’’


संजय के चेहरे का रंग उड़ गया, मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो. सहज होने का प्रयास करते हुए संजय बोला,‘‘मैं कल सुबह किसी ज़रूरी काम से आया था. तुम्हें फ़ोन करने ही वाला था. तुम यहां कैसे? ’’

 ‘‘पापा-मम्मी को रिसीव करने आई हूं. वे जल्द से जल्द हमारी शादी कर देना चाहते हैं.’’ सकुचाते हुए श्रुति ने कहा.

संजय किसी सोच में पड़ गया फिर अटकते से स्वर में बोला,‘‘श्रुति, अब यह रिश्ता नहीं हो सकेगा. दरअसल भइया-भाभी ने कल शाम जबरन मेरी सगाई सपना से कर दी.’’

श्रुति को विश्वास नहीं हुआ. इतना बड़ा धोखा, क्रोध से उसका सर्वांग कांप उठा. वह बोली,‘‘संजय, रिश्ता तुमने मुझसे तय किया और सगाई दूसरी लड़की से कर ली. फिर मेरी भावनाओं से खिलवाड़ क्यों करते रहे?’’ क्रोध आंसू बनकर आंखों से बहने को हुआ, पर उसने सप्रयास आंसुओं को रोक लिया. संजय की ओर वितृष्णाभरी दृष्टि डाल वह तेज़ क़दमों से वहां से चल दी.


श्रुति की भूख प्यास ख़त्म हो गई थी. दुख से उबरने के लिए उसने ख़ुद को बहुत व्यस्त कर लिया. उन्हीं दिनों कोचीन में डॉक्टर्स की एक कॉन्फ्रेंस हुई, जहां उसकी मुलाक़ात डॉ राहुल से हुई. वहीं एक दिन मौक़ा देख डॉ राहुल ने उसे प्रपोज़ किया, लेकिन श्रुति ने विनम्रतापूर्वक यह कहकर उन्हें मना कर दिया कि फ़िलहाल उसका शादी का कोई इरादा नहीं है. मुंबई पहुंचकर उसने मम्मी-पापा को बताया. दोनों ने उसे बहुत समझाया, पर श्रुति अपनी ज़िद पर अड़ी रही. उन्हीं दिनों एक रात पापा को सीने में तेज़ दर्द उठा. श्रुति ने तुरंत उन्हें आईसीयू में एडमिट करवाया और डॉ राहुल को फ़ोन कर दिया. आते ही उन्होंने उपचार शुरू कर दिया. 

सुबह तक पापा की हालत में सुधार हुआ. उस दिन श्रुति ने जाना, ज़िंदगी कितनी क़ीमती होती है. हमारी ज़िंदगी सिर्फ़ हमारी ही नहीं होती, उस पर हमारे अपनों का भी अधिकार होता है. एक ही रात में उसकी सोच परिपक्व हो गई. वह समझ गई कि कुछ  सपनों के बिखर जाने से जीवन मरता नहीं है. छह दिन बाद पापा हॉस्पिटल से लौटे. डॉ राहुल ने जी-जान से उनकी देखभाल की थी. उसके बाद श्रुति को पता नहीं चला, कब मम्मी-पापा ने राहुल के घरवालों से उसके रिश्ते की बात की और कब उसकी शादी हो गई. अचानक दरवाज़े पर हुई कॉलबेल की आवाज से श्रुति वर्तमान में लौट आई. राहुल आ गए थे.


अगले दिन हॉस्पिटल में उसने सपना का चेकअप किया फिर संजय को आवश्यक हिदायतें देकर डिस्चार्ज पेपर थमा दिए. संजय पश्चाताप भरे स्वर में बोला,‘‘श्रुति, अपने मन की तसल्ली के लिए मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं. जब मंगनी के लिए मुझे दिल्ली आना था, तभी मेरे लिए सपना का रिश्ता आया था. सपना के पापा मुझे मुंबई में आईटी कंपनी खोलने के लिए पैसे दे रहे थे इसलिए मैंने तुमसे कह दिया कि मैं आबूधाबी जा रहा हूं. अपने सुनहरे भविष्य की चकाचौंध में मैंने तुम्हारे जैसी समझदार लड़की को ही नहीं, बल्कि अपने मन का सुकून,चैन भी गंवा दिया. सपना का और मेरा स्वभाव मेल नहीं खाता. हमारी बिल्कुल नहीं बनती...’’


यकायक श्रुति का सब्र जवाब दे गया. चेयर से उठते हुए वह बोली,‘‘संजय, हमारी चंद दिनों की अर्थहीन-सी मुलाक़ात को मैं भुला चुकी हूं. मुझसे विश्वासघात करके तुमने अच्छा ही किया. तभी तो मैं आज डॉ राहुल जैसे भले इंसान की जीवनसंगिनी हूं.’’ थोड़ा रुककर वो आगे बोली,‘‘केवल इंसानियत के नाते तुमसे कह रही हूं कि जीवन आगे बढ़ने का नाम है. तुम्हारे विश्वासघात से मैंने सबक लिया और अपनी ज़िंदगी को संवार लिया, पर तुमने अपने जीवन का ये क्या हाल बना लिया? पैसों की ख़ातिर जिस लड़की को जीवनसंगिनी बनाया, उसे भी सही अर्थों में नहीं अपना सके. 

जीवनसाथी को उसकी ख़ूबियों और कमियों दोनों के साथ अपनाया जाता है, संजय. अब भी समय है, चेत जाओ. पिछली कड़वाहटों को भुलाकर अपनी पत्नी के साथ एक नए जीवन की शुरुआत करो... गुडलक!’’  और डॉ श्रुति अपने केबिन से बाहर निकल आई.

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