कहानी: ...और स्टोरी नहीं गई

उसके साथ सुबह ऐसा ही होता है. हफ़्ते में कम से कम पांच दिन तो. देर से नींद खुलने के बाद जल्दी-जल्दी तैयार होती है. फिर चलते-चलते नाश्ता. स्कूटी उठाकर तेज़ी से ऑफ़िस के लिए निकलना. रोज़ सुबह दस बजे पहुंचना होता है उस जैसे सिटी रिपोर्टरों को.

आज भी जब वह दस बजकर दो मिनट पर ऑफ़िस में घुसी तो बाक़ी सारे सिटी रिपोर्टर पहुंच गए थे. ऐसा अनुमान उसने उनके वाहनों से लगाया. अब खूसट शर्मा, जो इस डेली मेल के संपादक हैं, क्लास लेंगे. कुल जमा दस रिपोर्टर हैं, पहले तो बताया जाएगा कि कल उन लोगों ने कौन-कौन सी स्टोरीज़ मिस कीं, जो मुख्य प्रतिद्वंद्वी अख़बार डेली रिपोर्टर ने कवर की हैं. इस पर विचार किए बग़ैर कि उन्होंने ऐसी कौन-सी बड़ी स्टोरीज़ की हैं, जो डेली रिपोर्टर ने मिस कर दी हैं.  

‘‘सपना आपका क्या कार्यक्रम है आज?’’ संपादक उससे मुख़ातिब थे.

विचारों का क्रम टूटने से हड़बड़ाकर उसने जवाब दिया,‘‘सर, एक अच्छी स्टोरी है. नगर निगम ने नागरिकों की मदद के लिए एक अभियान चलाया...’’

उसकी बात पूरी होने से पहले ही वे भड़क गए,‘‘तुम कम समझोगी इस मीडिया को? कुछ नेगेटिव और एक्सक्लूसिव ढूंढ़ो. सनसनी वाली ख़बर लाओ.’’

‘‘यस सर.’’

वह और कुछ कहती उसके पहले वह नीना की ओर मुड़ गए,‘‘तुम बताओ नीना, तुम्हारा क्या प्लान है?’’

बातें चल रही हैं. वह फिर से विचारों में खो गई है. रोज़ का ही यह कार्यक्रम है. उन्हें काम में लगाकर संपादक, अख़बार मालिक को रिपोर्ट करने चले जाते हैं. उसके सहित सभी जानते हैं फिर दिन में लंच करने घर जाते हैं. उसके बाद दोपहर को ही आते हैं और शाम तक वह छम्मक छल्लो मिसेज़ रत्ना अनारकली रहती है और ये खूसट. इनके इश्क़ की एक्सक्लूसिव ख़बर क्यों नहीं कोई देता?

अचानक हुई एक साथ आवाज़ से फिर उसकी विचार श्रृंखला भंग हो गई. एक-एक कर सब मीटिंग कक्ष से निकलकर बाहर आ गए. अब वे ख़बरों की खोज में भटकने के लिये तैयार हैं.

उसने हितेश से पूछा,‘‘किधर?’’

वह अपनी बाइक स्टार्ट करते हुए बोला,‘‘प्रेस क्लब.’’ वह भी हितेश के पीछे-पीछे निकल गई. रोज़ का यही प्रोग्राम होता है उनका. अब वहां कम से कम एक डेढ़ घंटा टाइम पास करेंगे. क्योंकि किसी भी दफ़्तर में, किसी भी अधिकारी से साढ़े ग्यारह बजे से पहले मिलने जाने का तो कोई मतलब नहीं होता. और प्रेस क्लब में रोज़ होनेवाली पत्रकार वार्ताओं से भी उन्हें कोई मतलब नहीं होता. क्योंकि पत्रकार वार्ताओं में कवरेज जैसे आसान असाइनमेंट्स तो नीना जैसी रिपोर्टर या संपादकों के चमचों को दिए जाते हैं. 

प्रेस क्लब की लायब्रेरी में जाकर वैसे ही अख़बारों में पलटकर समय बिताना है उसे. फिर दो-तीन घंटे सरकारी दफ़्तरों के चक्कर लगाना है. किसी एक्सक्लूसिव स्टोरी की तलाश में. अंत में दोपहर बाद घर पहुंचकर खाना खाकर आधा घंटे का रेस्ट, फिर शाम पांच बजे दोबारा हाजिर होना है ऑफ़िस में संपादक जी के दरबार में. सपना ने विचारों की गाड़ी को फिर रिवर्स में लिया और मन ही मन तय करने लगी कहां से शुरू करें.

उसने सोचा कि शुरुआत कलेक्टर ऑफ़िस से की जाए. शायद वहां आज कोई ख़बर मिल जाए. कलेक्टर कार्यालय में वह घुस ही रही थी कि मोबाइल बजने लगा. सांध्य दैनिक प्रभात के पत्रकार राजेश का था. कोई बड़ी घटना हो गई है किला बस्ती में. वह वापस घूमी स्टैंड से स्कूटी उठाई और चल पड़ी.

किला बस्ती पहुंची तब तक अन्य अख़बारों के रिपोर्टर भी पहुंच चुके थे. पुलिस और प्रशासन का अमला भी घटनास्थल पर फैला था. उपलब्ध लोगों से मिली जानकारी के मुताबिक़ बस्ती की कुछ महिलाओं ने मिलकर बस्ती के गुंडे को ज़िंदा जला दिया है. अब कोई भी बस्ती वाला पुलिस को कुछ भी बताने को तैयार नहीं. बस्ती की महिलाएं उस गुंडे की अश्लील हरक़तों से तंग आ चुकी थीं. जब उसने एक कम उम्र की बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाया तो बरसों से पीड़ित स्त्रियों का आक्रोश फट पड़ा. उन्होंने तुरंत न्याय कर पाप का अंत कर दिया. अलग-अलग बस्ती वालों से बात कर वह लौट पड़ी. अब उसे इस घटना की स्टोरी जल्दी से जल्दी फ़ाइल करनी है, ताकि डाक एडिशनों में भी यह समाचार जा सके. कुछ ख़बरें उसके पास स्टॉक में थीं. आज उनमें से एक-दो का उपयोग करना होगा.

अगले दिन सुबह फिर वही ऑफ़िस और वही खूसट की क्लास. और वही रोज़ के जाने-पहचाने सिटी रिपोर्टरों के चेहरे. छपी हुई ख़बरों का पोस्टमार्टम जारी है.  

ऑफ़िस से निकली तो फ़ोटोग्राफर दीवान मिल गया. उसके साथ ही टी स्टाल पर चाय पीने पहुंची. चाय आती तब तक बातें चल पड़ीं. बातों की गाड़ी चाय आने तक संपादक तक पहुंच गयी. चाय के कप को उठाकर उसने कहा,‘‘दीवान एक बात बता ये संपादक नीना जैसी लड़कियों को इतना फ़ेवर क्यों करता है?’’

दीवान मुस्करा दिया. शरारत उसके चेहरे पर दिखने लगी. वह बोला,‘‘मत सोच तू, इनसे कॉम्पीट नहीं कर सकती.’’

सपना का मन खिन्न हो गया. पता नहीं लोग क्या-क्या करते हैं, पद पाने के लिए.

‘‘अच्छा दीवान चलती हूं. बहुत दिन हो गए पुलिस महानिरीक्षक के दफ़्तर का चक्कर लगाए. कुछ ज़रूरत होती है तो तुम्हें रिंग करूंगी.’’ उसने पार्किंग से स्कूटी उठाई और निकल पड़ी.

शहर के भीड़ भरे ट्रैफ़िक से गुज़रकर लगभग शहर के बाहर बने पुलिस महानिरीक्षक के दफ़्तर पहुंचने में आधा घंटा लग गया. इस आधे घंटे की धूल और धुंए से भरी यात्रा से सिर घूम गया. स्कूटी को छाया में पार्क कर जब दफ़्तर में घुसी तो लोगों के चेहरे खिंचे से पाए. माहौल में उसे ख़बर की ख़ुशबू आने लगी. वह जल्दी-जल्दी दफ़्तर के पिछले कमरे में बैठनेवाले अपने सोर्स के पास पहुंची. पता चला-पुलिस महानिरीक्षक के बंगले पर काम करनेवाले एक संतरी ने आत्महत्या कर ली है. उसका दिमाग़ सक्रिय हो गया. उसने संतरी का नाम और घर का पता जाना और तेज़ी से निकल पड़ी. उसे अब सबसे पहले सारी जानकारियां प्राप्त करनी हैं.

पुलिस लाइन के जिन सरकारी क्वॉर्टरों में से एक में संतरी दयाराम का मकान है, वे सब के सब एक से हैं. सालों से मरम्मत की गुहार कर रहे टूटे-फूटे. पर मकान के नम्बर के सहारे वह सही पते पर पहुंच ही गई. दरवाज़े को खटखटाने पर बाहर निकले क़रीब सात साल के लड़के ने बताया,‘‘सब अस्पताल गए हैं, कोई नहीं है.’’
उसने पूछा,‘‘मां तो होगी?’’

बच्चे ने कहा,‘‘है अभी बुलाता हूं.’’

थोड़ी देर बाद एक मध्यम क़द की महिला बाहर निकली.

‘‘यह दयाराम की पत्नी है,’’ साथ आए सोर्स ने बताया.

उसी सोर्स ने पहले थोड़ा अलग जाकर महिला को कुछ समझाया. तब वह बात करने को तैयार हुई.

कहने लगी,‘‘सब हस्पताल गए हैं इन्हें लेने.’’ वह समझ गई पोस्टमार्टम के बाद शव मिलेगा, उसे लेने गए होंगे बाक़ी लोग.

कुछ देर चुप रहने के बाद उसके कहने पर सोर्स ने पूछा,‘‘क्या आपको कभी लगा था कि दयाराम कोई ऐसा क़दम उठा सकते हैं?’’

उसके आंसू निकलने लगे थे पति का नाम सुनकर. वह कहने लगी रुआंसी आवाज़ में,‘‘साब, वो परेशान तो थे बंगले की डूटी से. कई बार दरखास भी दी कि वहां से हटा दो. पर नहीं हटाए गए.’’

दयाराम की पत्नी कुछ और कहना चाहती थी, उसने बीच में रोका,‘‘क्यों परेशान थे?’’

ख़ुद को संयत करते हुए उसने कहा,‘‘अब क्या बताएं मैडम इन साब लोगों के बंगले पर क्या-क्या काम कराए जावे. मैडम, संतरी हैं तो क्या मरद नहीं हैं? उनकी बहू-बेटियां के कपड़े धोने को नौकरी की थी? उनके कुत्ते को खिलाये-घुमाये करे थे. कई बार तो कहते रहे,‘मुझ संतरी से तो ये साब का कुत्ता अच्छा है.’ कुत्ता क नायीं दिनभर दुरदराने के बाद जब घर आते थे तो बड़े परेशान रहते. पर क्या करते रोजी का जरिया तो यही था. अब इन साब की मेमसाब तेज पड़ती है. घर पर काम करनेवाले को तो गुलाम समझती है. कुछ हो गया होगा, जिस बरदास नहीं कर पाए, बाकी हम तो बरबाद हो गए.’’

उसने कुछ देर और दयाराम की पत्नी से बातचीत की. फिर वापस पुलिस महानिरीक्षक के दफ़्तर पहुंची. वहां ड्यूटी वाले कक्ष में जाकर पता करने लगी कि दयाराम ने ड्यूटी बदलने का आवेदन कब दिया था. पर वहां कोई बताने को तैयार नहीं, सब एक-दूसरे पर बात डाल रहे थे. उसने सोचा वक़्त बर्बाद करने से कुछ नहीं मिलेगा और तुरंत ऑफ़िस के लिए निकल पड़ी.

पुलिस महानिरीक्षक के दफ़्तर से निकलकर थोड़ी दूर ही पहुंची थी कि सेलफ़ोन पर रिंग आई. स्कूटी सड़क के किनारे खड़ी करके बात की तो पुलिस महानिरीक्षक का पीए था. कह रहा था,‘‘साहब से बात कर लें.’’ उसने फ़ोन काट दिया. तो ख़बर पहुंच गई साहब तक, पर अभी बात नहीं करनी है. थोड़ी देर बाद फिर सेलफ़ोन बजा, उसने गाड़ी नहीं रोकी. अब तो सीधे ऑफ़िस जाकर ही रुकना है. तीस मिनट के बाद वह ऑफ़िस में अपने केबिन में थी और उसके हाथ कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर तेज़ी से चल रहे थे. लगभग एक घंटा लगा उसे स्टोरी को अंतिम रूप देने में. वह सोच रही थी, इसे खूसट संपादक को दिखाए या सीधा मालिक जिंदल साहब को दिखा दे. उसी वक़्त इंटरकाम बजा. लाइन पर जिंदल साहब की पीए थी. ‘‘साहब ने तुरंत बुलाया है.’’  

वह तुरंत जिंदल के केबिन की ओर बढ़ी, यह सोचते हुए कि आज ये ऑफ़िस जल्दी कैसे आ गए?

केबिन में प्रवेश करने के बाद जिंदल साहब सीधे उससे मुख़ातिब हुए. ‘‘तो सपना क्या है आज?’’

वह तुरंत बोली,‘‘सर, आईजी के बंगले पर संतरी के सुसाइड कर लिया है. एक्सक्लूसिव स्टोरी दे रही हूं.’’

जिंदल ने अपने सिर पर हाथ घुमाया. फिर कहा,‘‘यह स्टोरी नहीं जाएगी.’’

उसने प्रतिरोध करना चाहा,‘‘...पर सर.’’

‘‘कोई पर-वर नहीं. यह इस अख़बार के मालिक का आदेश है समझीं आप?’’

वह धीरे से उठी और केबिन से बाहर निकल गई. अपने केबिन में जाकर कम्प्यूटर बंद किया. और टी-स्टाल की ओर चल दी. रास्ते में फ़ोटोग्राफ़र दीवान मिल गया. पूरी घटना सुनकर बोला,‘‘तो ठीक है, अख़बार उसका वो कुछ भी करे. तू तो मुलाजिम है.’’   
इसके बाद का एक सप्ताह अच्छे से गुज़रा. काम का कोई अतिरिक्त दवाब महसूस नहीं किया उसने. एक दिन छुट्टी भी मना आई. फिर वह दिन आया. उस दिन दोपहर को वह रूटीन में अपनी बीट के संस्थानों को फ़ोन लगा रही थी. बड़े अस्पताल फ़ोन लगाने पर सोर्स ने बताया कि एक बड़ा सनसनीखेज़ मामला है. फ़ोन काटकर उसने तुरंत बड़े अस्पताल की ओर गाड़ी दौड़ा दी.

जब वह अस्पताल पहुंची तो चार बज गए थे. इस समय मरीजों और उसके परिजनों की आवाजाही उतनी नहीं थी. लगभग सन्नाटे का माहौल था. वह स्कूटी पार्क कर अपने सोर्स के ऑफ़िस की ओर बढ़ी. वहां पहुंचकर जब सूचना मिली तो मामला वाक़ई बेहद सनसनीखेज़ लगा.

एक सत्रह-अठारह साल की कॉलेज जानेवाली लड़की को, उसी के कॉलेज के पांच अमीर बिगड़े लड़कों ने कल शाम जब वह कॉलेज से वापस लौट रही थी, अगवा कर लिया था. अगवा करके उसे शहर के बाहर बने एक फ़ार्म हाउस में ले गए. जहां रातभर उस लड़की के साथ रेप किया गया. लड़की को जब दोपहर को घर छोड़कर एक कार गई तो वह सदमे की हालत में थी. तब से वह लड़की अस्पताल में भर्ती है.

इतनी जानकारी उसके लिए काफ़ी थी. घटना से प्रभावित लड़की, उसके परिजन और इलाज करनेवाले डॉक्टर से बातकर वह एक सनसनीखेज़ स्टोरी बना सकती थी. यह स्टोरी लंबे समय तक चर्चा में भी बनी रहती. उस वक़्त डॉक्टर के नहीं मिलने पर उसने सोचा लड़की या उसके परिजनों से बात कर ली जाए. जब अस्पताल के जनरल वॉर्ड में पहुंची तो लड़की चुपचाप दीवार की ओर ताकती हुई लेटी हुई थी. उसके पास एक पुरुष और स्त्री खड़े थे जो वेशभूषा में मध्यवर्गीय लग रहे थे. जब उसने अपना परिचय दिया तो स्त्री रोने लगी. पुरुष उसे एक कोने में हाथ पकड़कर ले गया.

वह कहने लगा,‘‘देखिए मैं और मेरी पत्नी दोनों एक प्रायवेट स्कूल में शिक्षक हैं. समाज में इज़्ज़त है. ये हादसा जिसके साथ हुआ है हमारी बेटी है. ऐसा हादसा किसी की भी बहन-बेटी के साथ हो सकता है. इससे बड़ी एक और बेटी है हमारी, जो विवाह की उम्र को पार करने को है. जिसके साथ हादसा हुआ, वह अभी सदमे में है. उसे कुरेदने पर उसके मानसिक संतुलन पर असर हो सकता है, ऐसा डॉक्टर ने कहा है. इसलिए आपसे मानवीयता के नाम रिक्वेस्ट है, अभी इस मामले में कुछ न पूछें और कुछ न ही छापें.’’

इतना कहते-कहते उसकी आंखें भर आईं. उसने दोनों हाथ जोड़ दिए. इस पल वह केवल एक मजबूर पिता था और कुछ नहीं. एक पल के लिए वह सोच में पड़ गई. एक और ज़बर्दस्त लालच है एक्सक्लूसिव स्टोरी का तो दूसरी ओर एक मजबूर बाप की रिक्वेस्ट. कुछ देर बाद उसने कहा,‘‘ठीक है, आपकी बात मानी. पर ये मेरा फ़ोन नम्बर लिख लें, जब भी कुछ बताना पड़े तो मुझे सबसे पहले बताएं.’’

वह अस्पताल से वापस ऑफ़िस की ओर चल पड़ी. अब इतनी थकान नहीं लग रही है. ट्राफ़िक भी कम लग रहा है. ऑफ़िस पहुंची तो अपनी टेबल पर रूटीन की विज्ञप्तियों का ढेर मिला. पता चला आज नीना नहीं आएगी, क्योंकि आज उसे ब्यूटी पार्लर जाना है बालों को कलर कराने.

जल्दी-जल्दी काम निपटाकर घर पहुंची तो रात हो गई.

दूसरे दिन सुबह की मीटिंग के बाद टी-स्टाल पर चाय पीते उसने दीवान को कल का घटनाक्रम सुनाया. दीवान से वह हर बात कह देती और दीवान भी तो उससे कभी कुछ नहीं छुपाता. दीवान और उसे एक-दूसरे से छोटी-मोटी सारी बातें कहने की आदत है. तो ये तो बड़ी घटना है. उसके बाद वह प्रेस क्लब तथा फिर अपने रूटीन के सरकारी विभागों के चक्कर लगाकर शाम को जब ऑफ़िस पहुंची तो लगा, जैसे उसी का इंतज़ार हो रहा हो. केबिन में घुसी ही थी कि दीनू आ गया मालिक का बुलावा लेकर.

जब वह जिंदल साहब के कमरे में पहुंची तो संपादक भी वहीं जमे थे. उसने नमस्ते किया तो जिंदल ने उसके सामने सांध्य दैनिक किरण फेंका. संपादक बोले,‘‘देखो, इसमें कुछ छपा है.’’ उसने देखा लड़की से रेप वाली ख़बर मुख पृष्ठ पर छपी है.

ख़बर को पढ़कर सिर उठाया ही था कि जिंदल ने पूछा,‘‘यह आपके बीट की ख़बर है. आप जानती थीं, इसके बारे में?’’

उसने कहा,‘‘हां.’’

‘‘तो फिर दी क्यों नहीं यह एक्सक्लूसिव ख़बर. किस लिए तनख़्वाह पाती हैं आप?’’

उसने कहा,‘‘जी, ख़बर देने के लिए.’’

इस बीच संपादक जी कूद पड़े,‘‘और ख़बर नहीं देने के लिए कितने में बिकी सपना?’’

उसने प्रतिवाद किया,‘‘नहीं सर ऐसी बात नहीं है.’’  

जिंदल फिर गुर्राया,‘‘तो फिर क्या?’’

उसने धीरे कहा,‘‘सर, मानवीयता...’’ पर उसे अपना ही स्वर बेजान लग रहा था.

जिंदल आग बबूला हो गया,‘‘गई तुम्हारी मानवीयता तेल लेने.’’

संपादक जी ने आग में घी डाला,‘‘ये नई जनरेशन अपने पेशे को कर्त्तव्य तो समझते नहीं और बात करते हैं मानवीयता की!’’

उसका चेहरा लाल हो गया. मन कर रहा है कि अभी इस खूसट का गला दबा दूं.

जिंदल साहब भड़क कर बोले,‘‘डेली मेल में हमें ऐसे लोगों की ज़रूरत नहीं है, जो समाजसेवक हों और अपने पेशे की ड्यूटी न समझें.’’

‘‘मैं भी ऐसे संस्थान में काम नहीं करना चाहूंगी. जहां व्यक्तिगत लाभ के लिए ख़बरों का उपयोग किया जाता हो. जहां पीड़ितों के बजाय शोषकों का साथ दिया जाता हो. जहां निजी स्वार्थ के लिए पत्रकारिता के मूल्य बेचे जाते हों.’’

ग़ुस्से में लाल होकर घूर रहे जिंदल साहब को उसने भी घूरा और मज़बूत क़दमों से केबिन से बाहर निकल गई.

कोई टिप्पणी नहीं:

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();
Blogger द्वारा संचालित.