कहानी: बचपन मेरा कहां है

मनीषा और आतुर के लिए उन का बेटा गौतम पैसा उगाहने की मशीन बन गया था. उन्होंने अपने लालच और चाहतों के आगे गौतम का बचपन उस से छीन लिया था. काश, उन्हें वक्त रहते एहसास हो जाता कि गौतम की मासूमियत छीन कर वे उसे गर्त में धकेल रहे हैं…

सुबह अलार्म बजते ही अमीषा  हड़बड़ा कर उठी. वह गौतम के कमरे की ओर भागी, जो गहरी नींद में बेफिक्री से सो रहा था.‘‘उठो बेटा, मास्टरजी आते ही होंगे,’’ अमीषा लाड़ जताती हुई बोली, ‘‘राजा बेटा, जल्दी से नहा कर तैयार होगा, फिर मास्टरजी से संगीत सीखेगा, और फिर स्कूल जाएगा.’’

‘‘सोने दो न, मम्मी, मुझे नींद आ रही है,’’ गौतम अलसाई आवाज से बोला.

‘‘नहीं मेरे बच्चे, मास्टरजी आते ही होंगे, कितनी मुश्किल से वे राजी हुए हैं तुम्हें सिखाने को. कितनी बड़ी सिफारिश लगवाई है तुम्हारे पापा ने.’’ अमीषा गौतम को बाथरूम की तरफ लगभग धकेलते हुए ले गई थी.

थोड़ी ही देर में गौतम मास्टरजी के सामने था. उस की आंखों में नींद भरी थी और चेहरे  पर थकान साफ दिख रही थी. मास्टरजी हारमोनियम ले कर बैठ गए और आवाज साफ करते हुए बोले, ‘‘आज मैं तुम्हें रागदरबारी के बारे में बताऊंगा. इस राग पर आधारित कई फिल्मी गाने हैं, जैसे स्वर सम्राट मोहम्मद रफी का गाया फिल्म ‘बैजू बावरा’ का भजन.’’

मास्टरजी तन्मयता से पढ़ा रहे थे, तभी उन का ध्यान गौतम पर पड़ा जो बैठेबैठे ऊंघने लगा था. ‘‘कहां है तुम्हारा ध्यान? ऐसे संगीत नहीं सीखा जाता. संगीत एक साधना है. तुम इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हो.’’

ऊंची आवाज सुन कर अमीषा और आतुर दोनों भागे आए. दोनों को एकसाथ आते देख गौतम सहम गया. मास्टरजी का संताप जारी था, ‘‘क्या हो गया है बच्चों को और इन के मांबापों को. संगीत सीखना है, मगर त्याग नहीं करना है. शिखर तक पहुंचना है मगर बिना सीढि़यां चढ़े.’’

अमीषा गौतम को वाशबेसिन तक ले गई और उस के चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे डाले. थोड़ी देर में गौतम फिर से मास्टरजी के पास था. मास्टरजी ने सुर लगाए और गौतम को साथसाथ आलाप करने को कहा.

इंटर स्कूल कंपीटिशन में गौतम अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व कर रहा था. बच्चों के साथसाथ उन के मातापिता व गुरुओं की पिछले एक महीने की मेहनत आज मंच पर सामने दिखने वाली थी. नतीजा आतेआते सब को एहसास हो गया था कि प्रथम पुरुस्कार गौतम को ही मिलना है.

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जब गौतम ने पुरस्कार लिया तो अमीषा के चेहरे पर चमक, मास्टरजी के चेहरे पर संतुष्टि और स्कूल के प्रिंसिपल के चेहरे पर गर्व के भाव थे. लगातार की गई मेहनत ने गौतम के भोले और मासूम चेहरे को मुरझा दिया था. इस जीत ने स्कूल में गौतम का, कालोनी में अमीषा का और दफ्तर में आतुर का कद बढ़ा दिया था. इस जीत के चर्चे स्थानीय अखबार में भी हुए और गौतम के साथसाथ पूरे परिवार का नाम छोटीमोटी सुर्खियों में आ गया.

किट्टी पार्टी में गौतम के साथसाथ अमीषा की भी भूरिभूरि प्रशंसा की गई. इतना छोटा बच्चा तभी आगे आ सकता है जब उस की परवरिश ठीक से की जाए. मांबाप के परिश्रम और त्याग के बिना ऐसी सफलता के बारे में सोचना भी असंभव है. अमीषा मुसकरा कर सारे अभिवादन स्वीकार कर रही थी कि किसी ने अखबार में छपा एक इश्तिहार सामने रख दिया और कहा, ‘‘टैलीविजन की दुनिया का सब से बड़ा कंपीटिशन ‘शिव सरगम’ मुंबई में होने जा रहा है. इस में फिल्मी दुनिया के नामीगिरामी संगीतकार जज होंगे, क्यों न तुम भी गौतम का फौर्म भरो.’’

अमीषा मुसकरा दी, ‘‘कहां बीकानेर, कहां मुंबई. यहां से वहां तक का सफर, नियति इतनी भी मेहरबान नहीं है हम पर, चमत्कार यों सड़कों पर पड़े नहीं मिलते.’’

‘‘बात मेहनत और प्रतिभा की है, अमीषा. मेहनत तुम्हारी और प्रतिभा गौतम की. अभी 5 महीने हैं. यह समय कम नहीं है किसी की प्रतिभा को निखारने का, उसे संवारने का.’’

अमीषा ने घर आ कर बात की तो आतुर मन ही मन खुश हुआ मगर अपनी मां के सामने हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, जो अड़ी हुई थीं कि गौतम पढ़ाई पर ध्यान दे और बच्चे पर इतना बोझ न डाला जाए.

‘‘हम नहीं जाएंगे तो इस का यह मतलब तो नहीं कि वहां दूसरे बच्चे आएंगे ही नहीं और जो बच्चे आएंगे वे गौतम जैसे ही होंगे, इसी की उम्र के होंगे, शायद इस से भी छोटे ही हों,’’ अमीषा के चेहरे पर क्रोध साफ छलक रहा था.

‘‘होंगे बहू, लेकिन तुम जानती हो गौतम के दिल के बारे में, मुझे दोहराने की जरूरत नहीं है कि गौतम के दिल में सुराख है, उसे आराम की सख्त जरूरत रहती है. वह अन्य बच्चों की तुलना में जल्दी थक जाता है.’’

‘‘हां, लेकिन माताजी, सचाईर् यह भी है कि गौतम बहुत जल्दी सीख जाता है. बाकी बच्चे जो 2 दिनों में सीखते हैं वह गौतम चंद घंटों में ही सीख जाता है और फिर उस की आवाज इतनी मधुर है कि इसे हर संगीतप्रेमी तक पहुंचना ही चाहिए. मैं इस पर मेहनत करूंगा. गौतम अभी महज 11-12 वर्ष का है, देखिएगा मैं इसे कहां से कहां तक पहुंचाता हूं. बड़ा होने पर देश का नामी पार्श्वगायक नहीं बना तो मेरा नाम बदल दीजिएगा,’’ मास्टरजी ने जब यह कहा तो अमीषा की खुशियों का ठिकाना ही न रहा. वह सोचने लगी, कल तक जो मास्टरजी सिखाने में आनाकानी कर रहे थे वे आज स्वयं गौतम को सिखाने को लालायित थे.

‘‘मास्टरजी ठीक कह रहे हैं, मां, अगर गौतम यह स्पर्धा जीत जाता है तो कुछ पैसा भी आएगा हमारे पास, फिर हम इस का इलाज दिल्ली, मुंबई यहां तक कि विदेश में भी करवा सकते हैं,’’ आतुर ने अंतिम दाव फेंका.


‘‘मेरा मन नहीं मान रहा, बेटा,’’ मां का मन भर आया था, ‘‘हमारे पास जमीनजायदाद है, हम उसे बेच कर भी गौतम का इलाज करवा सकते हैं.’’

‘‘गौतम मुंबई जा रहा है, यह फैसला लिया जा चुका है,’’ अमीषा ने गुस्से से भर कर कहा.

मुंबई पहुंच कर अमीषा चैनल के दफ्तर में गई. फौर्म भरा और गौतम के गानों की एक सीडी दफ्तर को सौंपी. एक हफ्ते के इंतजार के बाद गौतम को बुलवाया गया. यह उस की संगीत यात्रा के दूसरे पड़ाव के प्रथम चरण की ओर पहला कदम था. गौतम को 3 गाने दिए गए. तीनों ही उस ने बिना किसी परेशानी या असहजता से गा दिए. उस के मन पर स्पर्धा में आगे आने का कोई दबाव नहीं था और न ही उस का ध्येय था कि वह चुना जाए. सचाई तो यह थी कि वह वापस अपने शहर लौट जाने की इच्छा लिए गा रहा था.

2 महीने के बड़े गैप के बाद आयोजकों का पत्र आया और गौतम के चुने जाने की खबर चारों ओर फैल गई. अगले ही दिन लगभग 3 महीने के लंबे समय के लिए गौतम और अमीषा मुंबई की ओर चल पड़े. अमीषा और आतुर अश्वस्त थे कि गौतम पहली पंक्ति के 10 गायकों तक तो पहुंच ही जाएगा. शिव सरगम का अंतिम पड़ाव आ चुका था और एक कांटे की स्पर्धा के बाद जो हुआ वह अमीषा और आतुर के मन में कमल के फूल की तरह खिल गया. गौतम स्पर्धा में विजयी हुआ था और शिव सरगम के ताज से नवाजा गया था.

समूचे भारत और विश्व के कई देशों के समाचारपत्रों में उस की तसवीर और उस पर लेख छापे गए. उस की तसवीर के साथ अमीषा और आतुर की तसवीरें भी समाचारपत्रों के मुख्यपृष्ठों पर छपीं. रातोंरात गौतम प्रसिद्धि के क्षितिज का धु्रव तारा बन गया और उस के साथ अमीषा और आतुर भी चमकते हुए तारे बन कर आकाश पर छा गए. चैनल से हुए करार के मुताबिक पूरे एक साल के लिए गौतम को जगहजगह चैनल के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत करने थे. जीती गई पुरस्कार राशि हर माह एक किस्त के रूप में उन्हें मिलनी थी.


गौतम भाग कर अपने शहर वापस जाना चाहता था ताकि वहां वह अपनी दादी मां से मिल सके, अपने दोस्तों को अपने नए उपहार दिखा सके, ढेर सारी बातें कर सके. चैनल वालों से काफी अनुनयविनय के बाद उसे सिर्फ 2 दिनों की छुट्टी मिली. अपने शहर में उस का भव्य स्वागत हुआ. स्कूल में उस का कार्यक्रम हुआ. हर गलीनुक्कड़ में बड़ेबड़े पोस्टर लगाए गए. उसे मालाओं से लाद दिया गया. उस पर फूलों की बरसात हुई.

गौतम पूरी तरह से उस सम्मान के महत्त्व को समझ ही नहीं पाया जबकि आतुर और अमीषा गौतम को मिली इस सफलता का पूरा आनंद ले रहे थे. उन की आंखों में एक अजीब सी चमक  थी और मन में ढेर सारा उल्लास. बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर गौतम घर पहुंच पाया, जहां उस की दादी बड़ी बेसब्री से उस की राह देख रही थीं. पहुंचते ही वह दादी के गले से लिपट गया, ‘‘मैं आज यहीं सोऊंगा, दादी के पास,’’ गौतम इठलाता हुआ बोला. 2 दिन कब गुजर गए, पता ही नहीं चला. मगर सामने था एक साल का वह लंबा समय जो अनुबंध के मुताबिक चैनल का था. आतुर और अमीषा दिल थाम कर उस दिन का इंतजार कर रहे थे जिस दिन चैनल की गुलामी से आजाद हो कर वे चैन की सांस ले सकें.

‘‘यूरोप के 7 देशों में हमारा ट्रिप जाएगा और हर जगह हम गौतम का कार्यक्रम रखेंगे. कौंट्रैक्ट में पैसों के बारे में पूरा खुलासा है,’’ ट्रिप के मालिक मंजीत ने कागजों का एक पुलिंदा अमीषा को सौंपते हुए कहा, ‘‘वह तो ठीक है मंजीतजी, मगर गौतम अभी बहुत छोटा है, अकेले इतनी दूर…’’

‘‘अकेले कहां अमीषाजी, आप दोनों भी पूरे यूरोप ट्रिप में गौतम के साथ रहेंगे और यात्रा, खानापीना, घूमनाफिरना, तमाम खर्चा हमारी कंपनी उठाएगी.’’

अमीषा और आतुर को मानो मनमांगी मुराद मिल गई थी. जल्द ही सारे यूरोप की ओर निकल पड़े. ट्रिप कामयाब रहा और इस कामयाबी ने अगले कार्यक्रमों के लिए रास्ता खोल दिया. गौतम की डायरी और अमीषा की तिजोरी दोनों धीरेधीरे भरने लगीं.


दादीमां की बीमारी की खबर तो अमीषा और आतुर ने गौतम से छिपा ली, मगर उन की मौत की खबर वे चाह कर भी न छिपा पाए. शायद, इंसानियत का थोड़ा सा अंश शेष रह गया था. ‘‘मैं घर जाऊंगा, आज प्रोग्राम नहीं करूंगा मम्मी, प्लीज, मुझे दादी को देखना है, एक बार.’’

‘‘देखो बेटा, हम ने आज के कार्यक्रम का एडवांस पैसा लिया हुआ है. इतना बड़ा आयोजन हो चुका है. विदेशी मेहमान आ चुके हैं. ऐसे में कार्यक्रम कैंसिल करना ठीक नहीं लगता. साख खराब हो जाती है और फिर सोचो, दादी मां तो अब रही नहीं. तुम चले भी जाओगे तो उन्हें वापस नहीं ला सकते.’’

उस रात गौतम ने जो गाया अपनी दादी के लिए दिल से गाया, आंखों में आंसू दादी मां के लिए थे और कार्यक्रम से मिले पैसे आतुर और अमीषा के लिए थे. गौतम धीरेधीरे एक टकसाल, पैसा कमाने की मशीन में तबदील हो गया था. अमीषा और आतुर ने मुंबई के एक नामीगिरामी इलाके में बड़ा सा फ्लैट बुक करवा लिया था और जल्द ही उस में रहने का ख्वाब संजोए बैठे थे. पैसा जुटाने के लिए वे दिनरात संयोजकों से मिलते और देशविदेश में कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करते. साथ ही, गौतम को चुस्तदुरुस्त रखना भी उन का एक अहम काम था. घूमनेफिरने से ले कर खानेपीने तक की हजार पाबंदियों के बीच गौतम का बचपन कहीं खो सा गया था. जब भी किसी बच्चे को वह आइसक्रीम या गोलगप्पे खाते या समंदर की लहरों से खेलते हुए देखता तो मायूसी उस के चेहरे से ले कर अंतर्मन तक को भेद जाती.

उस रात मेकअप रूम में गौतम खुद को संभाल नहीं पा रहा था. उस का सिर भन्ना रहा था. उसे लग रहा था मानो वह स्टेज पर नहीं जा पाएगा. ‘‘क्या हुआ गौतम, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है…?’’ एक साथी गायक आरिफ ने उस की हालत देख कर कहा. गौतम कुछ जवाब नहीं दे पाया. ‘‘मैं दवाई दूं, देते ही ठीक हो जाएगा,’’ आरिफ ने गौतम को एक पुडि़या थमाते हुए कहा.

गौतम ने दवा की पुडि़या गले के नीचे उतार ली. असर तत्काल हुआ और गौतम स्टेज तक न सिर्फ पहुंचा बल्कि घंटों तक लगातार प्रदर्शन किया. मासूम समझ नहीं पाया कि वह पुडि़या दवा की नहीं, मौत की है. धीरेधीरे दवा की पुडि़या उस की जरूरत बन गई और हर कार्यक्रम से पहले उसे गले से उतारना उस के लिए आवश्यक हो गया.

आतुर और अमीषा गौतम की इस ऊर्जा और जोश से भरी गायकी को ले कर मन ही मन फूले नहीं समा रहे थे. उन्हें लग रहा था कि फ्लैट से बंगले तक का सफर बहुत लंबा नहीं है. कई साल तक गौतम का हर कार्यक्रम जबरदस्त कामयाब रहा और हर सफलता के बाद आने वाले पैसे के ब्रीफकेस का आकार बढ़ता गया. पैसा जितना ज्यादा बढ़ता, चाहत उस से कई गुना ज्यादा बढ़ जाती. शायद, इसी का नाम इंसानी फितरत है.

सफलता के शिखर तक पहुंचने के बाद अमीषा और आतुर को बढ़त की अपनी कोशिशों में एक अवरोध सा महसूस हो रहा था. उन्हें लगने लगा कि गौतम को न्योता देने वाले लोगों से खचाखच भरा ड्राइंगरूम कुछ खालीखाली सा लग रहा है. कार्यक्रमों में तालियों की गूंज कुछ कम है और चैक पर भरी जा रही रकम में शून्य कम हो रहे हैं. दोनों परेशान थे कि यह उतार क्यों और कैसे आ रहा है और ऐसा क्या किया जाए कि गौतम ने जो मुकाम हासिल किया है वहां से वह कभी भी न फिसले, अपने पहले पायदान पर सदा के लिए मजबूती से टिका रहे.

मंजीत के दफ्तर में पहुंच कर आतुर और अमीषा ने अपने मन की बात साफतौर पर बिना किसी लागलपेट के रखी. ‘‘देखो मैडमजी, गौतम का ग्राफ नीचे जा रहा है. उस का कारण मैं आप को बता सकता हूं. गौतम उम्र के जिस पड़ाव पर है वहां न तो उस की आवाज बच्चों जैसी है और न ही बड़ों जैसी. ऐसे में कुछ साल गुमनामी में रहना जरूरी है. आवाज में परिपक्वता आ जाए तो आप वापस यहां का रुख करें…’’


‘‘नहीं मंजीतजी, यह मायानगरी है, यहां सुबह को शाम नहीं पहचानती. अगर यहां से एक बार दूर चले गए तो वापसी के लिए उतनी ही मशक्कत करनी पड़ेगी जितनी शुरू में करनी पड़ती है. फिर, कोई दूसरा शिव सरगम का ताज हमारी राहों में पलकें बिछाए नहीं बैठा होगा. हमें इस बारे में कुछ और ही सोचना पड़ेगा.’’

डाक्टर फिरोज मुंबई के जानेमाने डाक्टर थे. अमीषा ने कोशिश कर के जल्दी ही उन से मिलने का समय ले लिया. डाक्टर फिरोज ने पूरी बात समझी और फिर कहा, ‘‘तो आप अपने बेटे की आवाज को भारी और गहरी करवाना चाहते हैं ताकि उस की आवाज थोड़ी मैच्योर लगे और वह जरूरत पड़ने पर बड़े कलाकारों का पार्श्वगायन कर सके…’’ अमीषा ने औचित्य करना चाहा मगर डाक्टर फिरोज ने अमीषा की बात पर कुछ ध्यान नहीं दिया और अपनी नजर फाइल पर गड़ाए रखी. ‘‘इस के लिए उसे हार्मोंस के इंजैक्शन व दवाइयां देनी होंगी जो उस के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकती हैं. क्या आप इतना बड़ा खतरा उठाने को तैयार हैं?’’

‘‘जब आप जैसे डाक्टर की देखरेख में सबकुछ हो रहा है तो फिर डर किस बात का,’’ आतुर ने कुशल खिलाड़ी की तरह जवाब दिया. डाक्टर फिरोज तन्मय हो कर फाइल के पन्ने पलट रहे थे कि उन की नजर एक जगह जा कर अविश्वास से अटक गई, ‘‘गौतम दिल का मरीज है. उस के दिल में…’’

‘‘हां डाक्टर, हमें बड़ी चिंता है इस बात की,’’ अमीषा ने बात बीच में काटते हुए कहा.

‘‘अगर ऐसा है तो आप उस का इलाज क्यों नहीं करवा रहे हैं. मेरे बजाय किसी हृदय चिकित्सक के पास होना चाहिए था आप को?’’

‘‘एक बार गौतम पूरी तरह से वह मुकाम हासिल कर ले, जिस के लिए वह जद्दोजेहद कर रहा है तो…’’

डाक्टर फिरोज ने हिकारत से अमीषा को देखा और कहा, ‘‘ठीक है, मगर मैं केस हाथ में तभी लूंगा जब मुझे तसल्ली होगी. फिलहाल मेरा आदमी आ कर आप के बेटे के खून का सैंपल ले आएगा. कुछ टैस्ट करने जरूरी हैं, उस के बाद ही मैं आप को कोई राय दूंगा.’’

‘‘15 अगस्त की शाम ताज होटल में एक बहुत बड़ा संगीत का आयोजन है और उस में गायकों की लिस्ट में सब से अव्वल नंबर पर तुम्हारा नाम है,’’ अमीषा ने चहकते हुए कहा और एक कार्ड गौतम के सामने रख दिया. गौतम ने एक सरसरी नजर कार्ड पर डाली और कहा, ‘‘मैं इस कार्यक्रम में नहीं जा पाऊंगा, मम्मी, मैं ने वह सारा दिन कारगिल में गुजारने का फैसला किया है, कारगिल हीरो मेजर आर्य का आग्रह था, मैं ना नहीं कर सका.’’

‘‘क्या कह रहा है गौतम तू. इतना बड़ा आयोजन छोड़ कर तू वहां जाएगा. कोई तुलना है दोनों जगहों की? कहां पांचसितारा होटल और कहां वह जंगल. यहां बड़ेबड़े फिल्म निर्माता, निर्देशक, संगीतकार होंगे. एक की भी नजर में चढ़ गया तो जिंदगी बन जाएगी और वहां मुफ्त का गानाबजाना.’’

‘‘मम्मी…’’ गौतम जोर से चीखा, ‘‘मैं ने उन को हां कह दिया है. अब मैं मना नहीं कर सकता. किसी भी कीमत पर नहीं. किसी हाल में भी नहीं.’’

‘‘तुम ने किस से पूछ कर वहां जाने की हामी भरी?’’ अमीषा गुस्से में आपा खो रही थी.

‘‘और आप ने किस से पूछ कर ताज होटल में हो रहे आयोजन की हामी भरी?’’ गौतम ने सवाल का जवाब सवाल में दिया तो अमीषा स्तब्ध रह गई. उसे गौतम से ऐसे जवाब की अपेक्षा न थी. उस के आत्मसम्मान को ठेस पहुंची मगर स्थिति की नाजुकता को समझते हुए उस ने खामोश रहने में ही बेहतरी समझी.

डाक्टर फिरोज ने अमीषा को फोन मिलाया. उन की आवाज में अधीरता थी, ‘‘क्या गौतम कारगिल से वापस आ गया?’’

‘‘हां डाक्टर साहब, अभी आराम कर रहा है. रात को ताज में उस का संगीत कार्यक्रम है, उस के न होने की वजह से पूरे कार्यक्रम की तारीख ही बदल दी गई.’’

‘‘मैं अपना तकनीशियन भेज रहा हूं, हमें एक बार और उस का ब्लड सैंपल चाहिए होगा.’’

थोड़ी देर में डाक्टर फिरोज का भेजा तकनीशियन घर पर हाजिर था. गौतम ने अधखुली आंखों से अपना हाथ आगे कर दिया. तकनीशियन ने कलाई या बाजू के बजाय हथेली की एक नस में सूई गड़ाई और सैंपल ले कर चला गया. रात को लाख कोशिशों के बावजूद गौतम समय पर बिस्तर छोड़ नहीं पाया. कार्यक्रम समापन से कुछ समय पहले ही वह पहुंचा, कुछ गाने गाए और फिर आ कर गाड़ी में सो गया. जितने भी समय वह वहां रहा, उस ने समां बांध दिया था.

अमीषा और आतुर डाक्टर फिरोज के सामने बैठे थे. ‘‘आप को बुलाने की एक खास वजह है. गौतम की तबीयत अत्यंत नाजुक है. आप लोग उस के दिल की स्थिति से तो परिचित हैं ही, मगर उस से भी ज्यादा चिंताजनक है उस के खून की रिपोर्ट. आप को ताज्जुब होगा, शायद झटका भी लगे, उस के खून में कोकीन और दूसरी दवाइयों के अंश पाए गए हैं. गौतम ड्रग एडिक्ट है और थोड़े समय से नहीं, एक अरसे से वह इस आदत का शिकार है. उस जैसा होनहार बच्चा कब ऐसी संगत में पड़ गया कि ड्रग एडिक्ट हो गया, इस का जवाब आप को ही तलाशना है. आप को ही ढूंढ़ना पड़ेगा कि कब और कैसे आप ने गौतम को ड्रग्स की तरफ धकेला. कब आप ने उसे इस बात के लिए मजबूर कर दिया कि वह ड्रग्स पर आश्रित हो जाए.’’

‘‘हम ने?’’ कांपते होंठों से अमीषा ने कहा ‘‘हम उस के मातापिता हैं. हम तो उसे तरक्की और सफलता के सातवें आसमान पर देखना चाहते हैं. हम तो चाहते हैं कि उस जैसा सफल और प्रतिभावान दूसरा कोई न हो. और आप कह रहे हैं कि हम ने उसे ड्रग एडिक्ट बना दिया?’’

‘‘यह सच है कि आप उसे देश का सब से बड़ा गायक बनाना चाहते हैं, पर एक कड़वी सचाई यह भी है कि दौलत और ग्लैमर की चमक आप पर हावी हो गई. आप लालची और स्वार्थी हो गए. नन्हे बच्चे गौतम के जरिए आप अपने ऐशोआराम से जिंदगी गुजारने का सामान जुटाते रहे. आप न सिर्फ उस की कमाई पर पलते रहे, बल्कि उस की जिंदगी से खिलवाड़ भी करते रहे. उस की आवाज की बुलंदी में आप ने उस के बचपन को दफन कर दिया. छीन लिए आप ने उस के खेलनेकूदने के दिन. उस की चंचलता, नटखटपन सब आप की खुदगर्जी की भेंट चढ़ गए.’’

अमीषा और आतुर बुत बने डाक्टर फिरोज की बात सुन रहे थे. ‘‘आप जैसे कई मांबाप अपने बच्चे को रातोंरात स्टार बनाने के लिए टीवी चैनलों पर इनाम जीतने के लिए बच्चों से उन के बचपन का बलिदान मांग लेते हैं. आप भूल जाते हैं कि बच्चों से काम करवाना कानूनी अपराध है. शौक, साधना और तपस्या को आप ने व्यवसाय बना दिया. आप दोनों गुनाहगार हैं. शर्म से डूब मरने वाली बात है कि उस के दिल का इलाज करवाने के बजाय आप की यह कोशिश है कि किस तरह से उस की आवाज बाजार में बिकाऊ बनी रहे. जाइए, किसी और डाक्टर का दरवाजा खटखटाइए. अगर आप की गैरत जग गई है तो किसी अच्छे पुनर्वास केंद्र का रुख कीजिए. गौतम को उस में भरती करवा कर उसे तंदुरुस्त करवाइए. नियति ने आप के लिए जो सजा तय की है उसे काटिए.’’

अमीषा जब गौतम के कमरे में पहुंची तो पीले पड़े उस के चेहरे को देख कर उसे खुद से घृणा होने लगी. शायद बरसों बाद उस ने गौतम का चेहरा ध्यान से देखा था. पास में मेज पर गौतम के बचपन की एक तसवीर रखी थी. नन्हा सा, प्यारा सा, नटखट सा गौतम आज एक मशहूर गायक था जिस के सारे अरमान पहले उस के अपनों ने छीन लिए थे और जो कुछ भी बचे थे वे ड्रग्स की भेंट चढ़ चुके थे. अमीषा एकटक उसे निहारती रही. फिर अपना हाथ उस के चेहरे पर रखा तो गौतम ने उस का हाथ पकड़ लिया. अमीषा की आंखों से आंसू बह निकले. आंसुओं की 2 बूंदों ने जब गौतम के कपोलों को स्पर्श किया तो गौतम की आंख खुल गई, ‘‘आप रो रही हो, मम्मी. मैं आज शाम को गा नहीं पाऊंगा इसलिए?’’

‘‘नहीं बेटा, ये आंसू तुम्हारी जिंदगी बरबाद करने की सजा हैं. अब से तू कहीं नहीं गाएगा, सिर्फ अपने लिए गाएगा, हमारे लिए गाएगा, दोस्तों के लिए गाएगा.’’

‘‘सच मम्मी,’’ गौतम ने कहा और फिर नजर दौड़ाते हुए बोला, ‘‘आरिफ नजर नहीं आ रहा, मेरी दवाई है उस के पास.’’ ‘‘तेरी दवाई आरिफ के पास नहीं, डाक्टर के पास है. तुझे मैं अस्पताल में भरती करवाऊंगी. तेरा इलाज होगा, ताकि तू आरिफ जैसे दरिंदों की दवाइयों पर आश्रित न हो. तू तो जानता है न, मैं कितनी जिद्दी हूं. तुझे चोटी का गायक बनातेबनाते स्वार्थ की हर सीमा लांघ दी मैं ने. वैसे ही तुझे वापस पहले जैसा गौतम बनाने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं. तेरे ठीक होने के बाद हम यह मायानगरी छोड़ कर वापस अपने शहर चले जाएंगे, जहां हमारा एक छोटा सा घर है, तेरा स्कूल है, दोस्त हैं, तेरे टीचर्स हैं.’’

‘‘मगर वहां दादी नहीं हैं, मम्मी,’’ गौतम ने अमीषा का हाथ कस कर थाम लिया था.

‘‘दादी की यादें तो हैं न,’’ यह आतुर था, ‘‘मैं जानता हूं कि तू एक बहादुर बच्चा है, जितनी तन्मयता से तू अपना रियाज करता था, जितनी शिद्दत से तूने संगीत की साधना की थी उतनी ही मेहनत, उतनी ही लगन से तुझे यह जंग भी लड़नी है. और मेरा दावा है तू जीत कर ही आएगा, गौतम ने हारना नहीं सीखा है.’’

प्रत्युतर में गौतम मुसकरा दिया. थोड़ी देर में सभी अस्पताल के रिसैप्शन में बैठे अपनी बारी का इंताजर कर रहे थे. कई तरह की औपचारिकताओं के बाद गौतम को दाखिल किया गया. एक लंबे संघर्ष के लिए, एक लंबे समय के लिए वह अमीषा और आतुर की आंखों से दूर होने वाला था. अमीषा ने गौतम के बालों में हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘कभी हिम्मत न हारना और ठीक हो कर वापस आना बेटा. हम यहां रोज आएंगे और दूर से तुम्हें ठीक होते हुए देखेंगे. और एक बात हम तुम से कहना चाहते हैं,’’ अमीषा एक पल के लिए ठहरी, फिर कहना जारी रखा, ‘‘हम तुम्हारा खोया हुआ बचपन तो तुम्हें लौटा नहीं सकते, लेकिन इस बात को भी नहीं भूलेंगे कि हम तुम्हारे गुनाहगार हैं, अगर हो सके तो हमें माफ कर देना.’’ अमीषा की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. गौतम की आंखों की कोर से भी आंसू की 2 बूंदें बह निकलीं जिसे बहने से पहले ही अमीषा ने पोंछ दिया.

थोड़ी ही देर में 2 कर्मचारी और एक नर्स गौतम को ले कर अंदर चले गए. अमीषा और आतुर गौतम को तक तक देखते रहे जब तक वह उन की नजरों से ओझल नहीं हो गया.

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