कहानी: रेप के बाद

मानसी की घनिष्ठ सहेली तनवी की इकलौती बेटी रिया का पुणे में विवाह था. तनवी ने सब दोस्तों को इकट्ठा करने के लिए सब के फोन नंबर ढूंढ़ कर व्हाट्सऐप गु्रप बनाया था. सालों बाद सब एकदूसरे का अतापता जान कर चहक उठे थे. सब अब व्यस्त गृहस्थ थे पर सब कालेज के दिनों की मस्ती को याद कर जैसे युवा बन गए थे. अब दिनभर व्हाट्सऐप गु्रप, जिस का नाम तनवी ने ‘हैप्पीनैस’ रख दिया था, पर मौका मिलते ही सब हंसीमजाक करते रहते थे.

तनवी का मैसेज था, ‘अब सब रिया के विवाह में आने की तैयारी करो, विवाह को रियूनियन समझ कर मस्ती करने सब आ जाओ. अभी इतने ही दोस्तों का पता चल पाया है, बाकी को भी फेसबुक पर ढूंढ़ ही लेंगे. मैं सब का इंतजार करूंगी.’

हमेशा से हंसमुख, मेधावी तनवी ने सब को जोड़ कर एक बड़ा काम कर दिया था.

मुंबई में बसी मानसी तनवी से कई बार फोन पर बातें भी कर चुकी थी. पर मानसी अब पसोपेश में थी. रिया के विवाह में जा कर सब दोस्तों से मिलने की इच्छा भी थी. उस के पति रजत और बेटी वन्या ने खुशीखुशी कह दिया था, ‘जाओ, एंजौय करो. दोस्तों के साथ खूब मस्ती कर के आओ. हम गए तो मस्ती में कमी न आ जाए.’

मानसी मुसकरा दी थी. वन्या ने कहा था, ‘मुझे वैसे भी छुट्टी नहीं मिलेगी, नई जौब है. पर आप जरूर जाओ, मौम.’ रजत की सेल्स क्लोजिंग थी. पर मानसी अपना दुख, परेशानी किसी को बता भी तो नहीं सकती थी.

‘हैप्पीनैस’ पर अखिल का नाम भी तो था. इस नाम पर नजर पड़ते ही मानसी के तनमन में कड़वाहट भरती चली जाती थी, क्रोध का लावा सा फूट पड़ता था. मानसी ने रजत और वन्या को जब ‘हैप्पीनैस’ के बारे में बताया था तो वन्या ने तो कह भी दिया था, ‘मौम, ‘हैप्पीनैस’ से आप जरा भी हैप्पी नहीं लगतीं. यह गु्रप बनने के बाद तो आप मुझे और भी उदास, दुखी लगती हैं.’


मानसी ने झूठी हंसी हंस कर उस का वहम कह कर बात टाल दी थी. पर सच यही था. बाकी दोस्तों के कारण वह गु्रप छोड़ भी नहीं सकती थी और अखिल का अस्तित्व उस की बरदाश्त के बाहर था. अतीत में घटी घटना मानसी के तनमन के घावों को कुरेद जाती थी, जिस से वह आज तक अपराधबोध से ग्रसित थी. यह अपराधबोध कि उस ने रजत जैसे प्यार करने वाले पति को धोखा दिया है, उसे कभी यह बताया ही नहीं कि विवाह से कुछ महीने पहले ही अखिल ने उस का रेप किया था.

अखिल, उस का सहपाठी, उस का अच्छा दोस्त, बचपन का दोस्त जिस पर वह आंख बंद कर यकीन करती थी. मानसी का विवाह रजत से तय हुआ तो सब दोस्तों ने उस की सगाई में जम कर मस्ती की थी. रजत बनारस का था. सब दोस्तों ने इलाहाबाद की सभी मशहूर जगहें रजत को दिखाई थीं.

अखिल इलाहाबाद के नैनी इलाके में ही मानसी के घर से कुछ दूर ही रहता था. विवाह कुछ महीने बाद होना तय हुआ था. अखिल की बड़ी बहन मीनल भी मानसी की बहुत अच्छी दोस्त थी. मानसी अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. उसे जब भी विवाह की कोई शौपिंग या काम होता, मीनल उस का साथ देती थी. सगाई के थोड़े दिनों बाद ही मानसी किसी काम से मीनल से मिलने गई थी. तब मोबाइल तो होता नहीं था, तो वह अखिल के घर गई. वह हमेशा की तरह अंदर चली गई और जा कर ड्राइंगरूम में बैठ भी गई.

उस ने पूछा, ‘अखिल, दीदी कहां हैं?’

‘तुम बैठो, थोड़ी देर में आ जाएंगी.’

‘आंटी, अंकल?’

‘बाहर गए हैं.’

‘ठीक है, मैं बाद में आती हूं,’ कह कर मानसी उठने लगी थी तो अखिल ने उसे जबरदस्ती बैठा लिया था, ‘बैठो न, मैं हूं न.’

मानसी फिर बैठी तो अखिल उस के पास ही बैठ गया था, ‘जब से तुम्हारी सगाई हुई है, सुंदर लगने लगी हो.’


वह हंस पड़ी थी, ‘थैंक्स.’ पता नहीं उस दिन क्या हुआ था, मानसी आज तक समझ नहीं पाई कि इतनी साफसुथरी दोस्ती पर यह जीवनभर का कलंक अखिल ने क्यों लगा दिया.

अखिल ने घर का दरवाजा अंदर से बंद किया और मानसी पर टूट पड़ा. मानसी रोती, चीखती, चिल्लाती रह गई थी. होश में आने के बाद अखिल सिर पकड़ कर बैठ गया था. मानसी उस पर थप्पड़ों की बरसात कर रोती हुई घर आ गई थी.

घर आ कर मम्मी और पापा को सब बताया तो घर में मातम छा गया था. वह रजत को सब बताना चाहती थी पर मातापिता का सख्त आदेश था कि इस बारे में कभी किसी के सामने मुंह नहीं खोलना है. मम्मीपापा ने उसे हर तरह से संभाला था. पर मानसी के घाव आज भी ताजा थे. वह आज तक इस अपराधबोध से उबर नहीं पाई थी कि उस ने अपने पति से अपने साथ हुई इतनी बड़ी घटना छिपा रखी है. उस ने रजत के साथ अंतरंग पलों में मानसिक कष्ट भोगा है, उस रेप की काली छाया उस के सामने आ कर उसे जबतब तड़पाती रही है. तन के घाव तो दिख भी जाते हैं लेकिन उस के मन पर लगा यह घाव कहां कोई देख पाया है.

फिर तनवी का फोन आ गया, ‘‘मानसी, विवाह में 2 दिन रह गए हैं, इतने पास हो कर भी पहले नहीं आ रही है?’’

‘‘तनवी, मेरा आना थोड़ा मुश्किल…’’

उस की बात पूरी होने से पहले ही तनवी ने साधिकार डपटा, ‘‘मैं कुछ नहीं सुनूंगी. अपने ग्रुप के कुछ लोग कल आ रहे हैं. चुपचाप तू भी जल्दी पहुंच.’’

‘‘अच्छा, कोशिश करूंगी.’’

‘‘कोशिश नहीं, जल्दी आ.’’

‘‘ठीक है, कल आती हूं.’’ मानसी ने ठंडी सांस ले कर ‘हैप्पीनैस’ के मैसेज पढ़े. चैक किया, कल कौनकौन आ रहा है. लखनऊ से कोमल, दिल्ली से शीतल, रीमा, विनीत, सुभाष, इलाहाबाद से अंजलि, कोलकाता से विपिन. अखिल का नाम नहीं था. उस ने चैन की सांस ली.

सब के हंसतेमुसकराते चेहरे मानसी की आंखों के आगे घूम गए. वह सब को याद कर मुसकराई. अखिल का तो चेहरा भी वह नहीं देखना चाहती थी, इसलिए वह गु्रप पर ऐक्टिव भी नहीं रहती. उस ने नोट किया है अखिल भी बस बहुत जरूरी बात का ही जवाब देता है. वह किसी जोक, हंसीमजाक में भाग नहीं लेता.

रजत और वन्या ने उस की तैयारियों में पूरा सहयोग दिया था. वह 2 दिनों के लिए पुणे रवाना हो गई. सब दोस्त आ चुके थे. वही सब से लेट आई थी. अचानक अखिल पर नजर पड़ गई तो उस के अंदर क्रोध की एक तेज लहर दौड़ी चली गई, मन कसैला हो गया. एक बार नफरतभरी नजर उस पर डालने के बाद मानसी ने उस की तरफ मुंह भी नहीं किया.

मुंबई से पुणे सब से बाद में आने पर उस की खूब खिंचाईर् हुई. सब दोस्त एकदूसरे के गले लग गए थे. समय ने अपना प्रभाव सब पर छोड़ा था. पर दृश्य इस समय कालेज के दिनों में मस्त, निश्ंिचत दोस्तों की मंडली का सा था. बस, अखिल सब से ज्यादा शांत, अकेला सा अलगअलग ही था.

तनवी के पति विकास और रिया ने सब का भरपूर स्वागत किया था. सब दोस्तों के रहने का इंतजाम होटल में था. सब रूम शेयर कर रहे थे. अखिल को छोड़ सब एक के रूम में डेरा जमा कर बैठे थे. कितनी बातें थीं, कितने किस्से थे. अखिल नहीं दिखा तो विनीत ने पूछा, ‘‘कहां गया यह अखिल, बड़ा सीरियस रहने लगा यह तो.’’

मीना ने कहा, ‘‘हां, काफी चेंज हो गया है. बहुत चुप, गंभीर है. अखिल आसपास नहीं था तो मानसी सब के साथ सहज व खुश थी. डिनर से थोड़ा पहले पवन अखिल को पकड़ कर लाया, ‘‘कहां घूम रहा था, चल, बैठ सब के साथ यहां.’’ अखिल फीकी सी हंसी हंसता हुआ सब के साथ आ कर बैठ तो गया पर उस की गंभीरता देख सब उस से कई तरह के सवाल करने लगे तो मानसी वहां से उठ कर ‘अभी आई,’ कहते हुए बाहर निकल गई.


वह सीधे टैरेस पर जा कर खुली हवा में गहरीगहरी सांसें लेने लगी. आज फिर आंखों से आंसू बहते गए. इतने में अपने पीछे कुछ आहट सुन कर वह चौंकी, देखा, अखिल था. गुस्से और नफरत की एक तेज लहर मानसी के दिल में उभरती चली गई. वह वहां से जाने लगी तो अखिल ने हाथ जोड़ कर उस का रास्ता रोक लिया, ‘‘मानसी, प्लीज मुझे माफ कर दो.’’

अखिल के रुंधे गले से निकली इस कांपती आवाज से मानसी ठिठक गई. अखिल ने बहुत ही गंभीर, उदास आवाज में कहा, ‘‘तुम से माफी मांगने के लिए सालों से तरस रहा हूं. मेरा गुनाह मुझे चैन से जीने नहीं देता. ‘हैप्पीनैस’ पर भी पहले अपने आने के बारे में सूचना नहीं दी कि कहीं तुम मेरे कारण यहां न आओ. आज मेरी बात सुन लो, प्लीज,’’

मानसी रेलिंग से टेक लगाए हैरान सी खड़ी थी. इक्कादुक्का लोग फोन पर बातें करते इधरउधर घूम रहे थे. अखिल के चेहरे पर पश्चात्ताप और दुख था. उस की आंखें कभी भी बरसने के लिए तैयार थीं.

अखिल ने आगे कहा, ‘‘बहुत बड़ा गुनाह किया था मैं ने. पता नहीं क्यों मैं बहका. एक पल में मैं कितना गिर गया. तुम्हारे जैसी दोस्त खो दी. मैं कभी खुश नहीं रह पाया मानसी. आज तक तुम्हारी चीख, तुम्हारे आंसू, तुम्हारी वेदना मुझे हर पल जलाती रही है. जब मेरा पहला विवाह हुआ तब यह अपराधबोध मेरे मन पर इतना हावी था कि मैं सामान्य जीवन बिता ही नहीं पाया और मेरा तलाक हो गया.

‘‘घरवालों के जोर देने पर मैं ने दूसरा विवाह किया. दूसरी पत्नी के साथ भी यह अपराधबोध हावी रहा. हर समय तुम्हारे साथ की गई हरकत मुझे बेचैन रखती. इस गुनाह की बड़ी सजा भुगती मैं ने, मानसी. इस अपराधबोध ने दूसरी बार भी मेरा घर नहीं बसने दिया. उस से भी मेरा तलाक हो गया.


‘‘मातापिता रहे नहीं, दीदी विदेश में हैं. बिलकुल अकेला हूं. मैं ने गुनाह किया था, काफी सजा भुगत चुका हूं. अब तुम मुझे माफ कर दो. सालों से पश्चात्ताप की आग में जल रहा हूं.’’ झरझर आंसू बहते चले गए अखिल की आंखों से, उस ने नजर उठा कर हैरान खड़ी मानसी को देखा, फिर जाने के लिए मुड़ गया.

थके हुए, सुस्त कदमों से अखिल को जाते देख मानसी को बड़ा झटका लगा था, क्या पुरुष को भी इतना अपराधबोध हो सकता है? क्या कोई पुरुष भी यह अपराध कर सालोंसाल पलपल सुलगता है? पलभर का बहकना क्या पुरुष को भी जीवनभर इस तरह कचोट सकता है? रेप करने के बाद यह अपराधबोध क्या पुरुष के जीवन पर भी प्रभाव डाल उस का जीवन नष्ट कर सकता है? वह अवाक थी, हतप्रभ भी, कुछ समझ नहीं आ रहा था.

ऐसा भी होता है मैं 10-11 वर्ष का था लेकिन आज 65 वर्ष की आयु में भी रहरह कर उस समय की याद आती है. उस समय मेरे बड़े भाई की शादी हुई थी. नई भाभी के आने से हम छोटे भाईबहन बड़े खुश थे. हर समय उन्हीं की चर्चा करते रहते व उन के हर कार्य को करने में बड़े उत्साहित रहते.

एक दिन भाभी ने मुझ से कहा, ‘‘लालाजी, मुझे ‘हिमालयन बुके’ पाउडर ला दीजिए. मैं ने फौरन पैसे लिए और दुकान पहुंच गया. दुकानदार से मैं ने ‘हिमालयन बुके’ पाउडर देने को कहा. उस ने दे दिया. मैं ने पढ़ा उस में इंग्लिश में ‘॥द्बद्वड्डद्यड्ड4ड्डठ्ठ ड्ढशह्वह्नह्वद्गह्ल’ लिखा था. मुझे लगा, उच्चारण के हिसाब से यह ‘हिमालयन बुकेट’ है. मैं ने दुकानदार से कहा, ‘भाईसाहब, मुझे हिमालयन बुके पाउडर दीजिए, यह नहीं, यह तो हिमालयन बुकेट है. भाभी ने वही मंगाया है.’

मेरे इंग्लिश ज्ञान को समझ कर दुकानदार व ग्राहक हंस पड़े. मैं बुरी तरह झेंप गया. दुकानदार बोला, ‘इसे ‘हिमालयन बुके’ ही पढ़ा जाता है

और तुम्हारी भाभी ने यही मंगाया है.’आज भी मैं अपनी नासमझी पर नर्वस हो जाता हूं.

मेरी छोटी बहन की शादी कासगंज (उत्तर प्रदेश) में हुई थी. बरात अलीगढ़ से आई थी. सारी बिरादरी का खाना हो रहा था. हम लोग जैन हैं और सूरज डूबने से पहले ही हमें खाना समाप्त करना जरूरी है.

बराती तो खा चुके थे पर अभी बहुत लोग बाकी थे व रात होने को थी. परोसने वालों को भी दिन में ही खाना था. सो, बहन के ससुर वगैरह सभी परोसने आ गए. यह देख कर हमें बहुत अचंभा हुआ. आखिर हो भी क्यों न, वे बहन के ससुराल वाले जो ठहरे. कहां ससुराल के लोग बैठ कर हुक्म देते रहते हैं और वे लोग तो स्वयं काम कर रहे थे.

हम ने उन से पूछा तो वे बोले, ‘‘अब हम संबंधी हैं व आप की और हमारी इज्जत एक है. एक भी आदमी यहां से भूखा जाएगा तो हमारी और आप दोनों की बदनामी होगी. इसलिए हम किसी को भी खाने में रात नहीं होने देंगे.’’

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