कहानी: प्रसाद

रधिया जब अपने सपनों के राजकुमार के बारे में सोचने लगती, तो वह खिल जाती और आईने में अपना चेहरा देखने लगती.

अब रधिया को न तो दिन को चैन था और न रात को नींद. उस के मन में एक नई उमंग, शरीर में गुदगुदी और दिल में हलचल मची रहती थी.

दिन कटते गए. लड़की देखने का दिन तय हुआ. रधिया को देखने आज उस का राजकुमार आने वाला था. वह सजसंवर कर तैयार हो रही थी. पिताजी स्वागत की तैयारी में लगे थे.

‘मेहमानों की खातिरदारी में कोई कमी न रह जाए, बात आज ही पक्की हो जाए,’ ये सब बातें सोच कर दीनदयाल परेशान थे.

दरअसल बात यह थी कि इस से पहले भी 2 लड़के रधिया को देख कर चले गए थे, पर बात नहीं बनी थी.

रधिया को देखने शाम को तकरीबन 5 बजे सभी मेहमान आ गए थे और रधिया के परिवार वाले उन के स्वागत में जुट गए थे.

रधिया की मां मन ही मन बेटी की मंगनी खुशीखुशी होने के लिए दुआ मांग रही थीं.

रधिया मेहमानों के पास चाय ले कर पहुंची. एक ही नजर में रधिया को लड़का पसंद आ गया. जैसा वह सोचती थी, वैसा ही था उस के सपनों का राजकुमार.

रमेश खूबसूरत और एक गंभीर नौजवान था. उसे भी रधिया बहुत अच्छी लगी. रधिया के कसे बदन और नशीली आंखों ने जैसे रमेश को घायल कर दिया.

अब क्या था. बात बन गई. सबकुछ तय हो गया. शादी का मुहूर्त निकाला गया. शादी 10 दिन बाद थी. लड़के वाले चले गए.

आज दीनदयाल बहुत खुश थे. इतने खुश कि जैसे बहुत बड़ा खजाना मिल गया हो. रधिया की मां फूली नहीं समा रही थीं.

रधिया का तो हाल ही कुछ और था. जब से उस ने अपने सपनों के राजकुमार को देखा था, तब से वह सपनों में खो गई थी. हर तरफ वही नजर आ रहा था.

जब रधिया की सहेलियां उसे छेड़तीं तो उस का मन और मचल जाता. वह अपनी खिली जवानी को आईने में देख कर मुसकरा जाती और आने वाले दिनों के सपनों में खो जाती.

किसी तरह 10 दिन बीत गए. आखिर वह दिन भी आ गया, जिस का रधिया को बेताबी से इंतजार था.

सुबह के 8 बजे थे कि मां ने आवाज लगाई, ‘‘बेटी, मेहंदी लगाने के लिए तुम्हारी सहेली शबनम आई है. जा, मेहंदी लगवा ले या यों ही खोईखोई रहेगी.’’

मेहंदी, हलदीचंदन लगाने और सजनेसंवरने के बाद रधिया किसी परी से कम नहीं लग रही थी.

शाम को धूमधाम से बरात आई. शादी की सारी रस्में पूरी हुईं. विदाई का समय आया. चारों तरफ उदासी का माहौल छा गया. दीनदयाल बेटी की विदाई पर फफक पड़े.

ससुराल पहुंचने के बाद सब ने रधिया की खूब तारीफ की. रमेश की मां ने बहू को रूप और गुण दोनों से भरा पाया और वे उसे बहू की जगह लक्ष्मी कह कर पुकारने लगीं.

रमेश तो रधिया को रानी कह कर पुकारता था. रधिया के आने से चारों तरफ खुशियां छा गईं.

5 साल बीत गए. रधिया और रमेश का प्यार वैसा ही बना रहा, जैसा कि शादी के शुरुआती दिनों में था. मगर सास की नजर में रधिया खटकने लगी थी, क्योंकि वे अब एक पोता चाहती थीं.

इसी तरह 2 साल और गुजर गए. औलाद न होने की वजह से रमेश की मां परेशान हो कर रमेश से बोलीं, ‘‘क्यों बेटा, हमें तुम पोता नहीं दोगे? तुम्हारे बाबूजी बोल रहे थे कि शादी को 7 साल हो गए, मगर बहू के पैर भारी नहीं हुए. क्या बात है?’’

रमेश ने कहा, ‘‘मां, तुम क्यों घबराती हो? अगर ऐसी बात है तो मैं डाक्टर से सलाह लूंगा और इलाज…’’

रमेश की बात काटते हुए मां बोलीं, ‘‘अभी तक तो पड़ोसनें ही कहती हैं, अब पूरी बिरादरी को क्यों बताना चाहते हो. बेटा, हमारी बात मानो तो तुम दूसरी शादी कर लो.’’

रमेश को इस बात से बड़ी तकलीफ हुई. वह बोला, ‘‘मां, तुम ऐसी बात क्यों बोल रही हो? तुम्हारी बहू अगर सुनेगी तो जीतेजी मर जाएगी. हम लोग डाक्टर से मिल कर सही सलाह लेंगे. हो सकता है, मुझ में ही कोई कमी हो.’’

इस बात पर मां बोलीं, ‘‘तुम तो हट्टेकट्टे हो. हमें यकीन है कि हमारे बेटे में कोई खोट नहीं है. खोट है तो उसी में. जरूर उस पर किसी का साया है, जो हमारी खुशियों में आग लगा रहा है.

‘‘तुम ऐसा करो कि किसी अच्छे तांत्रिक का पता लगाओ. हो सकता है, उस से मिलने पर इस मसले का कोई हल मिल जाए और हमारे मन की मुराद पूरी हो जाए.’’

मां के आगे रमेश लाचार हो गया. उस ने तांत्रिक के बारे में पता लगाना शुरू कर दिया. कुछ भागदौड़ करने के बाद पता चला कि उन के घर से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर रामपुर

गांव में एक तांत्रिक आया है, जो ऐसे कामों के लिए जाना जाता है.

रमेश तांत्रिक से मिला. उस तांत्रिक ने कहा, ‘‘अभी मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता, तुम परसों दिन में आओ तो इस के बारे में सोच कर बताऊंगा कि इस के लिए सही समय कब होगा.’’

रमेश फिर तांत्रिक के पास गया. तांत्रिक ने रमेश को चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की पहली रात को सारा इंतजाम करने को कहा और जरूरी सामान का लंबा सा परचा उस के हाथ में थमा दिया, जिस में खुशबूदार तेल, तिल, चंदन वगैरह थे.

पूजा की सारी तैयारियां हो गई थीं. तांत्रिक महाराज बताए गए समय पर रमेश के घर आ पहुंचे. चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की पहली रात को उन की पूजा शुरू हुई.

पहली रात की पूजा में रधिया को घंटों धुएं की धूनी दी गई. फिर तांत्रिक ने एक हाथ पकड़ कर पूरे हाथ पर खुशबूदार तेल की मालिश की.

रधिया को गैर मर्द का छूना बहुत खराब लगा, मगर वह मजबूर थी. वह उसे रोक भी नहीं सकती थी.

इस तरह लगातार 8 रातों तक बारीबारी से वह तांत्रिक धूप दिखा कर खुशबूदार तेल से अलगअलग अंगों की रगड़ कर मालिश करता रहा.

9वीं रात थी. हमेशा की तरह 9 बजे पूजा शुरू हुई, आज रधिया के पूरे शरीर से कपड़े उतार कर धूप दिखाने और खुशबूदार तेल से मालिश करने के बाद पूजा पूरी होनी थी.

आज भी रधिया कुछ न बोल सकी. तांत्रिक के कहने पर उस ने सारे कपड़े उतार दिए. वह साधु के सामने ऐसे खड़ी थी जैसे कोई भोग किसी के लिए परोसा गया हो.

साधु रधिया की मालिश करने लगा. थोड़ी देर के बाद उस ने अपनेआप को साधु के हवाले कर दिया. उस के पास और कोई चारा भी तो नहीं था. ससुराल वाले साधु के पक्ष में जो थे. साधु जी भर कर भूखे भेडि़ए की तरह रधिया को सारी रात नोचता रहा.

सुबह साधु की विदाई बड़ी इज्जत के साथ की गई. रधिया को पूजा का फल मिल चुका था. समय पूरा होने पर उस की सास को तांत्रिक महाराज की मेहरबानी से चांद जैसा सुंदर और फूल जैसा प्यारा पोता मिला. सभी खुश थे.

घर में घी के दीए जलाए गए. सास बहू को फिर से लक्ष्मी कह कर पुकारने लगीं, मगर रधिया का हाल ऐसा था, जैसे काटो तो खून नहीं.

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