व्यंग्य - सासूजी का परहेज व्यंग्य सासूजी का परहेज

धर्मपत्नी का खुश होना जायज था. कहावत भी है- ‘मायके से कुत्ता भी अगर आता है तो प्रिय लगता है.’ लेकिन यहां तो हमारी सासूजी आ रही  कभीकभी सोचता हूं राजधानी में रहना भी सिरदर्द से कम नहीं होता है. अधिकतर रिश्तेदार नेताओं से काम निकलवाने यहां आते रहते हैं. अब सब से रिश्तेदारी या दोस्ती तो है नहीं, लेकिन मना कर के संबंध थोड़े ही खराब करेंगे. मेहमान आए तो उन की देखरेख, नाश्ता, भोजन का इंतजाम करने में हालत पतली हो जाती है. पत्नी मेरे मायके से आए मेहमानों पर मुंह फुला लेती हैं. उन के मायके वालों पर मेरा बजट बैठ जाता है. किंतु किस से शिकायत करें? और कब तक रोना रोएं? मेरी बहुत ही मोटी सासूजी के आने की खुशी पत्नी के चेहरे पर ऐसी खिल रही थी मानो बरसात के बाद इंद्रधनुष खिला हो. मुसीबत कभी कह कर तो आती नहीं है और हुआ भी ऐसा ही. हमारी सासूजी गांवकसबे की हैं. सो, बाथरूम में जो पांव फिसला तो स्वयं को संभालने के लिए नल को पकड़ा. नल पाइप सहित हाथों में आ गया. कमरे में मेरा मतलब कमर में हलकी सी मोच आ गई. एकदो प्लास्टिक की बाल्टियां उलट गईं. पत्नीजी ने घबरा कर पूछा, ‘‘अम्मा, क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं बिटिया, बाल्टी गिर गई थी.’’

‘‘इतनी जोर से आवाज आई थी?’’

‘‘बाल्टी के साथसाथ मैं भी थी,’’ दर्दभरी आवाज सासूजी की थी.

‘‘दरवाजा तोड़ते तो 5-7 हजार का नकद नुकसान होता, इसलिए पत्नीजी ने निवेदन किया तो सासूजी कराहते हुए बाहर आईं.

हमें भी धर्मपत्नी ने चीख कर बुला लिया था. हमारी सासूजी लंगड़ाती हुई बाहर आईं. वे परेशान कम, पत्नी अधिक परेशान ?थीं. सासूजी पलंग पर लेट गईं. पत्नी ने हम से कहा, ‘‘डाक्टर को यहीं बुला लें या अस्पताल ले चलें?’’

‘‘अस्पताल ले चलते हैं,’’ हम ने सरल विकल्प चुना. डाक्टर घर आ कर 500-1000 रुपए पीट लेता. हमारी राय से सासूजी सहमत नहीं थीं, फिर भी दिल रखने को तैयार हो गईं. हमारी धर्मपत्नी ने मेकअप किया और नई डिजाइन की साड़ी पहन कर आटोरिकशे में अपनी अम्मा को ले कर चढ़ गईं. पहला अस्पताल सरकारी था. हम आगे बढ़ने लगे तो सासूजी ने कराहते हुए कहा, ‘‘यहीं ले चलो, दर्द बहुत है.’’ हम वहीं उतर गए. अस्पताल बड़ा था. थोड़ी देर म ही काफी मरीज भी आने शुरू हो गए थे. केवल डाक्टर नहीं आए थे. सासूजी लोटपोट हो रही थीं. तब ही एक कमसिन सी लड़की गले में आला लटकाए अपने चैंबर में गई. हमारा क्रमांक 1 पर ही था. सो, हम सासूजी को ले कर अंदर गए. सासूजी को उस ने देखा और बीपी देख कर नाम पूछा.

‘‘सविता.’’

‘‘गुड,’’ डाक्टरनी ने कहा, ‘‘क्या तकलीफ है?’’

‘‘कमर में चोट लगी है और चक्कर आ रहे हैं.’’

‘‘ओह,’’ कह कर उस ने उन की कमर पर हाथ से टटोला फिर गंभीर स्वर में उन की बेटी से कहा, ‘‘देखिए, दुर्घटना से सुरक्षा बड़ी चीज है.’’

‘‘मतलब?’’ पत्नी ने प्रश्न किया.

‘‘मुझे शक है सिर में चोट है, कहीं कोई हैमरेज न हो, इसलिए सीटी स्कैन करवा लें तथा सोनोग्राफी व एक्सरे भी करवा लें. ब्लड, यूरिन स्टूल टैस्ट भी लिख रही हूं. सब फ्री में हो जाएगा. रिपोर्ट ले आएं फिर दवा देंगे.’’

‘‘थैंक्यू डाक्टर,’’ पत्नी ने कहा.

‘‘अरे, जैसी आप की मां वैसी हमारी मम्मी,’’ उस डाक्टरनी ने हंस कर कहा. हमारे दिल में एक मीठा व शरारती सा खयाल आया कि काश, हम बीमार होते तो वह पत्नी को क्या कहती? जैसे आप के पति वैसे हमारे पति. इस कल्पना से ही मन गदगद हो गया.

हम सासूजी को ढो कर इधरउधर ले जाने के पहले एटीएम से रुपए निकलवा कर लाए. सीटी स्कैन, सोनोग्राफी और एक्सरे, खून सब की जांच करवाई. सीटी स्कैन, सोनोग्राफी, एक्सरे, खून की जांच फ्री थी. सब होतेहोते दोपहर हो गई थी. सासूजी को भूख लग आई थी. खानेपीने में कभी कोई समझौता नहीं करने के परिणामस्वरूप ही वे थोड़ी ओवरवेट भी थीं. उन्होंने नीबू, मसालेदार भेलपूरी, खाने की इच्छा जाहिर की और यदि नहीं मिले तो गरम पकौड़े, टमाटर की चटनी के साथ खाने की फरमाइश की. हम नौकरों की तरह बाजार में मारेमारे घूमते हुए उन के लिए गोभी और आलू के गरमागरम पकौड़े ले आए जो वे हरीमिर्च और टमाटर की चटनी के साथ चटकारे लेले कर खाने लगीं. दर्द कहीं भी चेहरे पर प्रकट नहीं हो रहा था. खाखा कर उन्होंने एक जोरदार डकार ली और हमें आदेश दे कर कहा, ‘‘जाओ, हमारी रिपोर्ट ले आओ.’’

धर्मपत्नी का खुश होना जायज था. कहावत भी है- ‘मायके से कुत्ता भी अगर आता है तो प्रिय लगता है.’ लेकिन यहां तो हमारी सासूजी आ रही  कभीकभी सोचता हूं राजधानी में रहना भी सिरदर्द से कम नहीं होता है. अधिकतर रिश्तेदार नेताओं से काम निकलवाने यहां आते रहते हैं. अब सब से रिश्तेदारी या दोस्ती तो है नहीं, लेकिन मना कर के संबंध थोड़े ही खराब करेंगे. मेहमान आए तो उन की देखरेख, नाश्ता, भोजन का इंतजाम करने में हालत पतली हो जाती है. पत्नी मेरे मायके से आए मेहमानों पर मुंह फुला लेती हैं. उन के मायके वालों पर मेरा बजट बैठ जाता है. किंतु किस से शिकायत करें? और कब तक रोना रोएं? मेरी बहुत ही मोटी सासूजी के आने की खुशी पत्नी के चेहरे पर ऐसी खिल रही थी मानो बरसात के बाद इंद्रधनुष खिला हो. 

मुसीबत कभी कह कर तो आती नहीं है और हुआ भी ऐसा ही. हमारी सासूजी गांवकसबे की हैं. सो, बाथरूम में जो पांव फिसला तो स्वयं को संभालने के लिए नल को पकड़ा. नल पाइप सहित हाथों में आ गया. कमरे में मेरा मतलब कमर में हलकी सी मोच आ गई. एकदो प्लास्टिक की बाल्टियां उलट गईं. पत्नीजी ने घबरा कर पूछा, ‘‘अम्मा, क्या हुआ?’’ ‘‘कुछ नहीं बिटिया, बाल्टी गिर गई थी.’’ ‘‘इतनी जोर से आवाज आई थी?’’ ‘‘बाल्टी के साथसाथ मैं भी थी,’’ दर्दभरी आवाज सासूजी की थी. ‘‘दरवाजा तोड़ते तो 5-7 हजार का नकद नुकसान होता, इसलिए पत्नीजी ने निवेदन किया तो सासूजी कराहते हुए बाहर आईं. हमें भी धर्मपत्नी ने चीख कर बुला लिया था. हमारी सासूजी लंगड़ाती हुई बाहर आईं. वे परेशान कम, पत्नी अधिक परेशान ?थीं. सासूजी पलंग पर लेट गईं. 

पत्नी ने हम से कहा, ‘‘डाक्टर को यहीं बुला लें या अस्पताल ले चलें?’’ ‘‘अस्पताल ले चलते हैं,’’ हम ने सरल विकल्प चुना. डाक्टर घर आ कर 500-1000 रुपए पीट लेता. हमारी राय से सासूजी सहमत नहीं थीं, फिर भी दिल रखने को तैयार हो गईं. हमारी धर्मपत्नी ने मेकअप किया और नई डिजाइन की साड़ी पहन कर आटोरिकशे में अपनी अम्मा को ले कर चढ़ गईं. पहला अस्पताल सरकारी था. हम आगे बढ़ने लगे तो सासूजी ने कराहते हुए कहा, ‘‘यहीं ले चलो, दर्द बहुत है.’’ हम वहीं उतर गए. अस्पताल बड़ा था. थोड़ी देर म ही काफी मरीज भी आने शुरू हो गए थे. केवल डाक्टर नहीं आए थे. सासूजी लोटपोट हो रही थीं. 

तब ही एक कमसिन सी लड़की गले में आला लटकाए अपने चैंबर में गई. हमारा क्रमांक 1 पर ही था. सो, हम सासूजी को ले कर अंदर गए. सासूजी को उस ने देखा और बीपी देख कर नाम पूछा. ‘‘सविता.’’ ‘‘गुड,’’ डाक्टरनी ने कहा, ‘‘क्या तकलीफ है?’’ ‘‘कमर में चोट लगी है और चक्कर आ रहे हैं.’’ ‘‘ओह,’’ कह कर उस ने उन की कमर पर हाथ से टटोला फिर गंभीर स्वर में उन की बेटी से कहा, ‘‘देखिए, दुर्घटना से सुरक्षा बड़ी चीज है.’’ ‘‘मतलब?’’ पत्नी ने प्रश्न किया. ‘‘मुझे शक है सिर में चोट है, कहीं कोई हैमरेज न हो, इसलिए सीटी स्कैन करवा लें तथा सोनोग्राफी व एक्सरे भी करवा लें. ब्लड, यूरिन स्टूल टैस्ट भी लिख रही हूं. सब फ्री में हो जाएगा. रिपोर्ट ले आएं फिर दवा देंगे.’’ ‘‘थैंक्यू डाक्टर,’’ पत्नी ने कहा. ‘‘अरे, जैसी आप की मां वैसी हमारी मम्मी,’’ उस डाक्टरनी ने हंस कर कहा. 

हमारे दिल में एक मीठा व शरारती सा खयाल आया कि काश, हम बीमार होते तो वह पत्नी को क्या कहती? जैसे आप के पति वैसे हमारे पति. इस कल्पना से ही मन गदगद हो गया. हम सासूजी को ढो कर इधरउधर ले जाने के पहले एटीएम से रुपए निकलवा कर लाए. सीटी स्कैन, सोनोग्राफी और एक्सरे, खून सब की जांच करवाई. सीटी स्कैन, सोनोग्राफी, एक्सरे, खून की जांच फ्री थी. सब होतेहोते दोपहर हो गई थी. सासूजी को भूख लग आई थी. खानेपीने में कभी कोई समझौता नहीं करने के परिणामस्वरूप ही वे थोड़ी ओवरवेट भी थीं. 

उन्होंने नीबू, मसालेदार भेलपूरी, खाने की इच्छा जाहिर की और यदि नहीं मिले तो गरम पकौड़े, टमाटर की चटनी के साथ खाने की फरमाइश की. हम नौकरों की तरह बाजार में मारेमारे घूमते हुए उन के लिए गोभी और आलू के गरमागरम पकौड़े ले आए जो वे हरीमिर्च और टमाटर की चटनी के साथ चटकारे लेले कर खाने लगीं. दर्द कहीं भी चेहरे पर प्रकट नहीं हो रहा था. खाखा कर उन्होंने एक जोरदार डकार ली और हमें आदेश दे कर कहा, ‘‘जाओ, हमारी रिपोर्ट ले आओ.’’

हम जा कर भीड़ में सासूजी की रिपोर्ट ले आए. तब तक वह कमसिन डाक्टर भी आ गई थी. उस ने रिपोर्ट देखी, फिर सासूजी को देखा और कहा, ‘‘सब ठीक है, थोड़ा परहेज करना होगा.’’

‘‘आप को स्टोन की शिकायत है, हाई बीपी भी है, शुगर भी है.’’

‘‘तो क्या खाना है?’’

‘‘आप को पत्तागोभी, पालक, दूध की बनी कोई भी वस्तु, मीठा, मिठाई, नमकीन, भजिए, पकौड़े, तीखी मिर्च वाली वस्तुएं नहीं खानी हैं,’’ डाक्टर ने पूरी लिस्ट थमा दी.

‘‘अरे, फिर मैं खाऊंगी क्या?’’

‘‘देखिए अम्माजी, आप दूध, पालक, पत्तागोभी, टमाटर खाएंगी तो पथरी की तकलीफ होगी. अधिक चटपटे मसालेदार खाने पर हाई ब्लडप्रैशर हो कर ब्रेन हैमरेज का अधिक खतरा है. खट्टी वस्तुएं खाएंगी तो अल्सर की परेशानी होगी. आप को डायबिटीज निकली है, मिठाई और मीठी वस्तुएं खाएंगी तो  कभी भी कुछ भी हो सकता है,’’ डाक्टरनी ने कहा.

‘‘मेरी कमर का दर्द?’’

‘‘देखिए, दर्द तो सैकंडरी चीज है, अभी तो महत्त्वपूर्ण है कि आप का बीपी कंट्रोल हो, शुगर कंट्रोल हो, स्टोन की तकलीफ न हो वरना ब्रेन हैमरेज होने का खतरा है.’’

ब्रेन हैमरेज की बात सुनते ही हमारी पत्नी वहीं साड़ी का पल्लू मुंह में दे कर रोने लगी. मन में आया कि उन्हें क्या समझाऊं? अरी बेगम, अम्मा जिंदा हैं, परहेज करेंगी तो ठीक हो जाएंगी. अभी दुनिया से थोड़ी ही गई हैं. लेकिन कौन दीवार से सिर फोड़े. हम ने ऊपरी मन से पत्नी को सांत्वना दी और कहा, ‘‘दर्द के इलाज से पहले अम्मा से परहेज करवा लेते हैं फिर आ कर बताते हैं.’’

‘‘वैरी गुड, मैं भी यही चाहती हूं,’’ डाक्टरनी ने कहा, ‘‘सौ बीमारियों का एक इलाज परहेज है. आप इन का परहेज करवाएं और 5 दिनों बाद लाएं. फिर मैं दवाएं लिख दूंगी. अम्माजी, आप चिंता मत करें, जल्दी ठीक हो जाएंगी.’’

हम ने मन ही मन विचार किया, ‘जल्दी ठीक हो जाएंगी या इतना परहेज कर के जल्दी ही मरखप जाएंगी.’ सासूजी को बीमारी और चोट का दुख उतना नहीं था जितना परहेज का था. हम ने फाइल को वहीं जमा किया और लौट आए. धर्मपत्नी भारी दुखी थीं. फ्रिज में चीज, पनीर, चिकन, अंडे, मक्खन जो रखा था उस का क्या होगा? हम अपनी खुशी बिलकुल जाहिर नहीं कर पाए थे. सासूजी का परहेज रात से ही प्रारंभ हो गया था. सादा भोजन, सादा जीवन, उबली सब्जी, थोड़ा सा करेले का सूप, नीम के पत्तों का सलाद, थोड़ी सी छाछ. फ्रिज में रखा सामान खराब न हो जाए, इसलिए मजबूरी में पत्नीजी ने हमें खिलाया. हम मन ही मन बहुत खुश थे कि ‘हे सासूजी, आप की चोट लगने पर मुझे ये सब खाने को मिला. काश, आप हमेशा ही चोटिल होती रहें.’

एक रात लगा कि घर में चोर घुस आए. हम ने हिम्मत की और जैसे ही ड्राइंगरूम की बत्ती जलाई तो देखा सासूजी फकाफक खा रही थीं. हमें देख कर शरमा गईं. तभी पत्नी भी आ गईं. पूरा सामान फ्रिज में से निकाल कर बैडरूम में रख दिया और फ्रिज में ताला लगा दिया. सासूजी की सूरत देखने लायक थी. 8-10 दिनों में सासूजी के कमरे यानी कमर में भी आराम हो गया था. पहले से वे स्वस्थ भी दिखाई देने लगी थीं. हमारी पत्नी ने कहा, ‘‘परहेज करवाते हुए 15 दिन हो गए हैं, अब दवाएं लिखवा लाते हैं.’’ हम क्या विरोध करते? हम फिर उसी सरकारी अस्पताल में गए. अस्पताल के कर्मचारी ने सासूजी से नाम पूछा, उन्होंने बताया, सविता. अपनी फाइल ले कर हम डाक्टरनी के पास गए. वह बिलकुल खाली बैठी थी. हमें आया देख खुश हो कर कह उठी, ‘‘और अम्माजी कैसी हैं?’’

‘‘ठीक हूं.’’ कह कर उन्होंने फाइल उन की टेबल पर रखी. डाक्टरनी ने फाइल देखी, रिपोर्ट देखी, ब्लड रिपोर्ट देखी, फिर अम्माजी को ध्यान से देखा.

 सासूजी ने कहा, ‘‘मैं पूरे परहेज से रह रही हूं. लेकिन ऐसी जिंदगी से तो मौत भली, जहां सब खानापीना बंद करना पड़े.’’ डाक्टरनी ने फिर उन के चेहरे को देखा और फाइल देख कर कहा, ‘‘मेरी पर्ची कहां है?’’ हम ने अपने पर्स में से निकाल कर दी. डाक्टरनी ने पर्ची देखी, फिर फाइल देखी और पूछा, ‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘सविता.’’

‘‘अरे, यह क्या हो गया?’’

‘‘क्या हो गया?’’ मैं ने आश्चर्य से प्रश्न किया.

हम जा कर भीड़ में सासूजी की रिपोर्ट ले आए. तब तक वह कमसिन डाक्टर भी आ गई थी. उस ने रिपोर्ट देखी, फिर सासूजी को देखा और कहा, ‘‘सब ठीक है, थोड़ा परहेज करना होगा.’’ ‘‘आप को स्टोन की शिकायत है, हाई बीपी भी है, शुगर भी है.’’ ‘‘तो क्या खाना है?’’ ‘‘आप को पत्तागोभी, पालक, दूध की बनी कोई भी वस्तु, मीठा, मिठाई, नमकीन, भजिए, पकौड़े, तीखी मिर्च वाली वस्तुएं नहीं खानी हैं,’’ डाक्टर ने पूरी लिस्ट थमा दी. ‘‘अरे, फिर मैं खाऊंगी क्या?’’ ‘‘देखिए अम्माजी, आप दूध, पालक, पत्तागोभी, टमाटर खाएंगी तो पथरी की तकलीफ होगी. अधिक चटपटे मसालेदार खाने पर हाई ब्लडप्रैशर हो कर ब्रेन हैमरेज का अधिक खतरा है. खट्टी वस्तुएं खाएंगी तो अल्सर की परेशानी होगी. 

आप को डायबिटीज निकली है, मिठाई और मीठी वस्तुएं खाएंगी तो  कभी भी कुछ भी हो सकता है,’’ डाक्टरनी ने कहा. ‘‘मेरी कमर का दर्द?’’ ‘‘देखिए, दर्द तो सैकंडरी चीज है, अभी तो महत्त्वपूर्ण है कि आप का बीपी कंट्रोल हो, शुगर कंट्रोल हो, स्टोन की तकलीफ न हो वरना ब्रेन हैमरेज होने का खतरा है.’’ ब्रेन हैमरेज की बात सुनते ही हमारी पत्नी वहीं साड़ी का पल्लू मुंह में दे कर रोने लगी. 

मन में आया कि उन्हें क्या समझाऊं? अरी बेगम, अम्मा जिंदा हैं, परहेज करेंगी तो ठीक हो जाएंगी. अभी दुनिया से थोड़ी ही गई हैं. लेकिन कौन दीवार से सिर फोड़े. हम ने ऊपरी मन से पत्नी को सांत्वना दी और कहा, ‘‘दर्द के इलाज से पहले अम्मा से परहेज करवा लेते हैं फिर आ कर बताते हैं.’’ ‘‘वैरी गुड, मैं भी यही चाहती हूं,’’ डाक्टरनी ने कहा, ‘‘सौ बीमारियों का एक इलाज परहेज है. आप इन का परहेज करवाएं और 5 दिनों बाद लाएं. फिर मैं दवाएं लिख दूंगी. अम्माजी, आप चिंता मत करें, जल्दी ठीक हो जाएंगी.’’ हम ने मन ही मन विचार किया, ‘जल्दी ठीक हो जाएंगी या इतना परहेज कर के जल्दी ही मरखप जाएंगी.’ सासूजी को बीमारी और चोट का दुख उतना नहीं था जितना परहेज का था. हम ने फाइल को वहीं जमा किया और लौट आए. 

धर्मपत्नी भारी दुखी थीं. फ्रिज में चीज, पनीर, चिकन, अंडे, मक्खन जो रखा था उस का क्या होगा? हम अपनी खुशी बिलकुल जाहिर नहीं कर पाए थे. सासूजी का परहेज रात से ही प्रारंभ हो गया था. सादा भोजन, सादा जीवन, उबली सब्जी, थोड़ा सा करेले का सूप, नीम के पत्तों का सलाद, थोड़ी सी छाछ. फ्रिज में रखा सामान खराब न हो जाए, इसलिए मजबूरी में पत्नीजी ने हमें खिलाया. हम मन ही मन बहुत खुश थे कि ‘हे सासूजी, आप की चोट लगने पर मुझे ये सब खाने को मिला. काश, आप हमेशा ही चोटिल होती रहें.’ एक रात लगा कि घर में चोर घुस आए. 

हम ने हिम्मत की और जैसे ही ड्राइंगरूम की बत्ती जलाई तो देखा सासूजी फकाफक खा रही थीं. हमें देख कर शरमा गईं. तभी पत्नी भी आ गईं. पूरा सामान फ्रिज में से निकाल कर बैडरूम में रख दिया और फ्रिज में ताला लगा दिया. सासूजी की सूरत देखने लायक थी. 8-10 दिनों में सासूजी के कमरे यानी कमर में भी आराम हो गया था. पहले से वे स्वस्थ भी दिखाई देने लगी थीं. हमारी पत्नी ने कहा, ‘‘परहेज करवाते हुए 15 दिन हो गए हैं, अब दवाएं लिखवा लाते हैं.’’ हम क्या विरोध करते? हम फिर उसी सरकारी अस्पताल में गए. अस्पताल के कर्मचारी ने सासूजी से नाम पूछा, उन्होंने बताया, सविता. अपनी फाइल ले कर हम डाक्टरनी के पास गए. वह बिलकुल खाली बैठी थी. हमें आया देख खुश हो कर कह उठी, ‘‘और अम्माजी कैसी हैं?’’ ‘‘ठीक हूं.’’ कह कर उन्होंने फाइल उन की टेबल पर रखी. डाक्टरनी ने फाइल देखी, रिपोर्ट देखी, ब्लड रिपोर्ट देखी, फिर अम्माजी को ध्यान से देखा.  सासूजी ने कहा, ‘‘मैं पूरे परहेज से रह रही हूं. लेकिन ऐसी जिंदगी से तो मौत भली, जहां सब खानापीना बंद करना पड़े.’’ डाक्टरनी ने फिर उन के चेहरे को देखा और फाइल देख कर कहा, ‘‘मेरी पर्ची कहां है?’’ हम ने अपने पर्स में से निकाल कर दी. डाक्टरनी ने पर्ची देखी, फिर फाइल देखी और पूछा, ‘‘आप का नाम क्या है?’’ ‘‘सविता.’’ ‘‘अरे, यह क्या हो गया?’’ ‘‘क्या हो गया?’’ मैं ने आश्चर्य से प्रश्न किया.

‘‘बाई मिस्टेक, आप की सास की फाइल की जगह पिछली बार आप किसी सुनीता की फाइल ले आए थे. उन की फाइल में जो रिपोर्ट देखी थी उसी का परहेज मैं ने बताया था. ओह, सो सौरी, मिस्टर? ‘‘कोई बात नहीं. इस बहाने इन का वजन कम हो गया. ये शेप में आ गईं. थैंक्यू,’’ मैं ने कहा. ‘‘लेकिन डाक्टरजी, मैं तो अब सब खा सकती हूं न?’’

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं, आप एकदम भलीचंगी हैं, कोई बीमारी नहीं है,’’ डाक्टरनी ने चहक कर कहा.

उस के यह कहने पर सासूजी खुशी से होहो कर के हंस पड़ीं. दर्द तो रिपोर्ट सुन कर ही गायब हो गया था. हम माथा पकड़े हुए थे कि अब जितने दिनों तक ये रहेंगी रिकौर्डतोड़ बदपरहेजी करेंगी और गैस की बीमारी से हमें परेशान करेंगी. सब खुश थे लेकिन हमें एक चिंता खाए जा रही थी-यह रिपोर्ट जिस सुनीता की थी, जो बीमार थी, अस्पताल की एक गलती से बिना परहेज किए कहीं दुनिया से कूच न कर गई हों. हम किस से अपना दर्द कहते? सासूजी तो पूरे 10 दिनों के खाने का मैन्यू बनाए, पुरानी फिल्म का गीत गुनगुनाते आटोरिकशे में चढ़ गई थीं.

‘‘बाई मिस्टेक, आप की सास की फाइल की जगह पिछली बार आप किसी सुनीता की फाइल ले आए थे. उन की फाइल में जो रिपोर्ट देखी थी उसी का परहेज मैं ने बताया था. ओह, सो सौरी, मिस्टर? ‘‘कोई बात नहीं. इस बहाने इन का वजन कम हो गया. ये शेप में आ गईं. थैंक्यू,’’ मैं ने कहा. ‘‘लेकिन डाक्टरजी, मैं तो अब सब खा सकती हूं न?’’ ‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं, आप एकदम भलीचंगी हैं, कोई बीमारी नहीं है,’’ डाक्टरनी ने चहक कर कहा. उस के यह कहने पर सासूजी खुशी से होहो कर के हंस पड़ीं. दर्द तो रिपोर्ट सुन कर ही गायब हो गया था. हम माथा पकड़े हुए थे कि अब जितने दिनों तक ये रहेंगी रिकौर्डतोड़ बदपरहेजी करेंगी और गैस की बीमारी से हमें परेशान करेंगी. सब खुश थे लेकिन हमें एक चिंता खाए जा रही थी-यह रिपोर्ट जिस सुनीता की थी, जो बीमार थी, अस्पताल की एक गलती से बिना परहेज किए कहीं दुनिया से कूच न कर गई हों. हम किस से अपना दर्द कहते? सासूजी तो पूरे 10 दिनों के खाने का मैन्यू बनाए, पुरानी फिल्म का गीत गुनगुनाते आटोरिकशे में चढ़ गई थीं.

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