व्यंग्य - शादी कर लो भगवान जाग गए हैं

दीवाली के बाद बजने वाले पटाखों की आवाजों से ही मैं जान गया कि ‘भगवान’ जाग गए हैं. यह आतिशबाजी उन के स्वागत के लिए की जा रही है. 4 माह की गहन निद्रा के बाद अंगड़ाई ले कर वे उठ गए हैं. अब हिंदुओं का इंतजार खत्म हुआ. देवताओं ने इस दौरान शादी करनेकरवाने पर लगाई गई पाबंदी हटा दी है. अब अटके हुए प्रेम प्रकरण या सगाइयां अपनी मंजिल पा लेंगे. पंडेपुरोहित, बैंडबाजे वाले, टैंट वाले और कैटरिंग वाले फिर से अपनेअपने मूल व्यापार में व्यस्त हो जाएंगे. अभी तक बेचारे पेट पालने के लिए चार माह से मन मार कर दूसरे काम कर रहे थे. भगवान ने उन्हें अपने असली काम करने का परवाना दे दिया है. भिड़ जाओ अपने पुश्तैनी धंधे में. चार माह का इंतजार कोई कम नहीं होता. अब कमाई करो जब तक कि हम फिर से सो नहीं जाते.

बस, सभी जुट जाते हैं अपनेअपने काम में. कहीं ऐसा न हो कि सोचनेसोचने में समय निकल जाए और भगवान फिर से सो जाएं. लड़केलड़कियों की जन्मपत्रिकाएं खंगाली जाने लगती हैं. उम्मीदवारों की जन्मराशि देख कर मुहूर्त निकाले जाने लगते हैं. लड़केलड़की में खोट को नजरअंदाज करने की नौबत आने लगती है. अगर इस बार चूक गए तो कहीं कुंआरे ही न रह जाएं. पंडितजी अपनी डायरी देखने लगते हैं कि कौन सी तारीख को वे उपलब्ध हैं और कितना समय दे सकते हैं. मैरिज हौल के लिए वरवधू के पिता भागदौड़ करने लगते हैं. रिश्तेदार एडवांस में छुट्टी की अर्जियां देने लगते हैं. कैटरिंग मैन्यू और मेहमानों की संख्या के हिसाब से सामान और पैकेज व डील्स बताने लगते हैं.

बैंड वाले बैंड के आकार को ले कर अपनी दर बताने लगते हैं. मेहमानों की सूची बनने लगती है. सवाल उठता है कि डीजे कितने डैसिबल का शोर बजाएगा और कौनकौन से डांस होंगे. मेहंदी रचाने वालों के हाथपैर जोड़ने की नौबत आ जाती है. मुसीबत तो तब होती है जब वर तो तय हो जाता है पर घोड़ा नहीं मिलता.

भगवान ने ढेरों इंसान तो बना दिए पर गिनती के घोड़े क्यों बनाए? बरात के आगेआगे कौनकौन नाचेगा या नाचेगी, इस की सूची बनने लगती है. गानों की भी सूची तैयार की जाने लगती है. इस बात पर वादविवाद होता है कि सड़क पर नाचतेनाचते कितनी देर का जाम लगाया जाए ताकि मंडप पर समय पर पहुंच सकें. वर मंडली को कौन सी शराब परोसी जाए, इस पर चर्चा होने लगती है. लेनदेन की शर्तों पर गुपचुप ‘हां’ ‘न’ होती हैं.

विवाह के निमंत्रणकार्ड छापने वाले भी पहले से कंपोज और टाइपसैट किए रटेरटाए वाक्य फिर से छापने लगते हैं, ‘भेज रहे हैं प्रियजन निमंत्रण तुम्हें बुलाने को. ओ मानस के हंस, तुम भूल न जाना आने को.’ और अंत में तुतलाते हुए बच्चों की मनुहार, ‘जलूल जलूल आना’. न तो निमंत्रणकार्डों का मैटर बदला और न ही विवाह की रीत. यानी सारे रुके हुए काम अब वर्तमान काल में होने लगते हैं.

रावण के भाई कुंभकरण के साल में

6 माह सोने का वर्णन तो सभी ने पढ़ा है, लेकिन मुझे विश्वास है कि देवताओं के

4 माह सोने का वर्णन किसी धर्मप्राण जीव ने भी कहीं नहीं पढ़ा होगा. सवाल यह है कि आखिर देवताओं को 4 माह तक ‘सुलाने’ का और्डर किस ने दिया होगा? शायद देवताओं ने खुद ही अपनी छुट्टी तय की हो और पंडों को बता दिया हो. पंडों ने अपने वारिसों को बता दिया हो और वारिस भले बदलते रहते हों लेकिन ‘भगवान’ का सोने का सीजन वही रहता है.

हो सकता है कुंभकरण को आधे साल सोता देख देवताओं के मन में भी प्रतिस्पर्धा की भावना जागी हो. सोचा होगा, वह राक्षस हो कर 6 माह सोता है तो हम दुनिया चलाने वाले हो कर 4 महीने क्यों नहीं सो सकते. हो सकता है कि उन्होंने कुंभकरण को पछाड़ने के लिए 8 माह तक सोने का टारगेट बनाया हो लेकिन मंदिरों में होने वाले भजन नामक शोर से परेशान हो कर कटौती कर दी हो. 4 माह ही सही, खर्राटे तो भर लें. आखिर इतनी बड़ी दुनिया चलाने वाले को भी आराम की जरूरत तो होती ही है. 

आम आदमी सप्ताह में एक दिन छुट्टी रख सकता है तो उसे बनाने वाला उस की हैसियत के अनुसार साल में 4 महीने की छुट्टी नहीं ले सकता क्या? सूर्य भगवान और उन का कर्ज नियमित रूप से चुकाने वाला कर्जदार चंद्रमा भी छुट्टी मनाता है, लेकिन वे कभी किसी की शादी के आड़े नहीं आते. वे अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभाते हैं. इसीलिए उन के भक्त और भजन कम हैं. इन्हें छोड़ कर बाकी के सारे भगवान इन 4 माह के अलावा बीचबीच में झपकियां भी ले लेते हैं. मैं समझ जाता हूं कि अब शादियां किसी भी हालत में नहीं हो सकेंगी. चूंकि भगवानों का हर शादी में उपस्थित रहना जरूरी है और पहली निमंत्रणपत्रिका उन्हें ही देते हैं, इसलिए उन के जागने का इंतजार करो. सिर्फ पंडे ही उन्हें जागते हुए देखने की दिव्यदृष्टि रखते हैं. वे भगवान के नाम से फरमान निकालते हैं और धड़ाधड़ शादियां करवाने में भिड़ जाते हैं. मातापिता भी उन की राय मान कर अपनी बेटियों को जल्दीजल्दी रवाना करने लगते हैं.

हिंदुओं की मान्यता है कि उन के 33 कोटि (यानी श्रेणी, करोड़ नहीं) देवीदेवता हैं. इस हिसाब से तो एक माह में पौनेतीन देवीदेवता तो आराम से हो सकते हैं. शेष दुनिया चला सकते हैं. मेरा कहना है कि आपसी समझबूझ से काम लें तो वे बारहों महीने दुनिया चला सकते हैं और इंसान की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं. बस, टाइमटेबल बनाना है. शिवरात्रि को महादेव जागें तो रामनवी को राम, जन्माष्टमी को कृष्ण तो हनुमान जयंती को हनुमान जागते रहें. वैसे भी, अपने बर्थडे के दिन झांझमंजीरों के शोर में ये सो ही नहीं सकते. बाकी सब पैर पसार कर सोएं. लेकिन नहीं. ये भी सांसदों की तरह अडि़यल रवैया अपनाते हैं. किसी के साथ ऐडजस्ट नहीं करते. माखन चुराने वाला, लड्डू चुराने वाले के लिए अपनी नींद खराब नहीं करेगा. 

त्रिशूल वाला सुदर्शन चक्र वाले के लिए अपना शैड्यूल नहीं बिगाड़ना चाहता. शेर की सवारी करने वाली, कमल पर बैठने वाली के लिए छुट्टी पर नहीं जाना चाहती. सब गड़बड़ है. एक बार तय कर लिया कि बारीबारी से ड्यूटी नहीं देंगे तो नहीं ही देंगे. सोएंगे तो सभी एकसाथ. जागेंगे भी तो सभी एकसाथ. कोई क्या बिगाड़ लेगा? तो भैया नोट कर लो, दुनिया चलाने वाले सोते भी हैं. लेकिन यह भी नोट कर लो कि उन के सोने के साथ दुनिया नहीं सो जाती. उस का काम बदस्तूर चलता रहता है. स्कूलकालेज चालू रहते हैं. दफ्तरों में काम होता है, बच्चे पैदा होते हैं, व्यापार होता है, बसें, कार, रेलें चलती हैं, हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती, भ्रष्टाचार, दलबदल, तस्करी, धोखाधड़ी वगैरा भी आम दिनों की तरह होते रहते हैं.

इन चार महीनों में न तो पाप थकता है और न ही पुण्य सुस्ताता है. फिर शादी ने ऐसा क्या अपराध किया है जो भगवानों के जागने पर ही हो पाती है? और क्या इन दिनों मंदिरों पर ‘डौंट डिस्टर्ब’ की तख्ती लगी होती है? नहीं, वहां तो हमेशा जैसी ही भीड़ लगी रहती है. किसी खास तिथि को ऐसी भगदड़ मचती है कि कई लोग सीधे भगवान के पास पहुंच जाते हैं. इस दौरान पैदा हुए बच्चे को मंदिर में ले जाने की क्या तुक है? भगवान तो सो रहा है. वह आशीर्वाद कैसे देगा?

परीक्षा के दिनों में विद्यार्थी सिनेमाघरों में कम, मंदिरों में ज्यादा नजर आते हैं. आशीर्वाद किस से लें? भगवान तो खर्राटे मार रहे होते हैं. शायद इसीलिए सभी सफल नहीं हो पाते. मंदिर का पुजारी असफल विद्यार्थी को दिलासा देता है कि परीक्षा वालों ने देवताओं के सोने के दिनों में परीक्षा रखी, इसलिए उन का आशीर्वाद नहीं मिल पाया. वे शिक्षा प्रणाली बदलने के बजाय परीक्षाओं की तारीख बदलने का सुझाव देते हैं.

अजीब बात है. भगवान तो सो रहे होते हैं. लेकिन मंदिरों में चढ़ावा बदस्तूर आ रहा है. चांदी का सिंहासन, सोने का मुकुट, हीरे की अंगूठी और भी न जाने क्याक्या. भजनआरती नामक शोर भी जारी है. कमाल है जिस के हजारवें हिस्से में भी इंसान सो नहीं पाता, उस शोर में भगवान आराम से सो कैसे सकते हैं. नींद की कौन सी गोली खाते होंगे वे? अगर उन की नींद टूटती तो वे पुजारियों और भक्तों को डांटते, ‘कमबख्तो, सोने दो. हम तुम्हारे लिए काम करते हैं. बंद करो यह शोरशराबा. यह हमारे सोने का सीजन है. नहीं माने, तो जागने पर एकएक को देख लेंगे.’ लेकिन सभी के सभी सो रहे होते हैं.

अजीब बात तो यह है कि दूसरे धर्मों के देवता कभी नहीं सोते. मजाल है जो एक पल के लिए भी सो जाएं. कर्तव्यनिष्ठ भगवान हैं उन के. वे जानते हैं कि उन के धर्मावलंबी अक्लमंद हैं, अपने निर्णय खुद लेने में समर्थ हैं इसलिए, वे शादी करनेकरवाने का फरमान जारी करवाने के पचड़े में नहीं पड़ते. जब हमारे भगवानों के सोते हुए भी वही काम होते रहते हैं जो उन के जागते हुए होते हैं, तो फिर उन की नींद खुलने का इंतजार करते रहने में कोई समझदारी है क्या? नहीं न. तो फिर सोने दो उन्हें?

दीवाली के बाद बजने वाले पटाखों की आवाजों से ही मैं जान गया कि ‘भगवान’ जाग गए हैं. यह आतिशबाजी उन के स्वागत के लिए की जा रही है. 4 माह की गहन निद्रा के बाद अंगड़ाई ले कर वे उठ गए हैं. अब हिंदुओं का इंतजार खत्म हुआ. देवताओं ने इस दौरान शादी करनेकरवाने पर लगाई गई पाबंदी हटा दी है. अब अटके हुए प्रेम प्रकरण या सगाइयां अपनी मंजिल पा लेंगे. पंडेपुरोहित, बैंडबाजे वाले, टैंट वाले और कैटरिंग वाले फिर से अपनेअपने मूल व्यापार में व्यस्त हो जाएंगे. 

अभी तक बेचारे पेट पालने के लिए चार माह से मन मार कर दूसरे काम कर रहे थे. भगवान ने उन्हें अपने असली काम करने का परवाना दे दिया है. भिड़ जाओ अपने पुश्तैनी धंधे में. चार माह का इंतजार कोई कम नहीं होता. अब कमाई करो जब तक कि हम फिर से सो नहीं जाते. बस, सभी जुट जाते हैं अपनेअपने काम में. कहीं ऐसा न हो कि सोचनेसोचने में समय निकल जाए और भगवान फिर से सो जाएं. लड़केलड़कियों की जन्मपत्रिकाएं खंगाली जाने लगती हैं. उम्मीदवारों की जन्मराशि देख कर मुहूर्त निकाले जाने लगते हैं. लड़केलड़की में खोट को नजरअंदाज करने की नौबत आने लगती है. 

अगर इस बार चूक गए तो कहीं कुंआरे ही न रह जाएं. पंडितजी अपनी डायरी देखने लगते हैं कि कौन सी तारीख को वे उपलब्ध हैं और कितना समय दे सकते हैं. मैरिज हौल के लिए वरवधू के पिता भागदौड़ करने लगते हैं. रिश्तेदार एडवांस में छुट्टी की अर्जियां देने लगते हैं. कैटरिंग मैन्यू और मेहमानों की संख्या के हिसाब से सामान और पैकेज व डील्स बताने लगते हैं. बैंड वाले बैंड के आकार को ले कर अपनी दर बताने लगते हैं. मेहमानों की सूची बनने लगती है. सवाल उठता है कि डीजे कितने डैसिबल का शोर बजाएगा और कौनकौन से डांस होंगे. मेहंदी रचाने वालों के हाथपैर जोड़ने की नौबत आ जाती है. मुसीबत तो तब होती है जब वर तो तय हो जाता है पर घोड़ा नहीं मिलता. 

भगवान ने ढेरों इंसान तो बना दिए पर गिनती के घोड़े क्यों बनाए? बरात के आगेआगे कौनकौन नाचेगा या नाचेगी, इस की सूची बनने लगती है. गानों की भी सूची तैयार की जाने लगती है. इस बात पर वादविवाद होता है कि सड़क पर नाचतेनाचते कितनी देर का जाम लगाया जाए ताकि मंडप पर समय पर पहुंच सकें. वर मंडली को कौन सी शराब परोसी जाए, इस पर चर्चा होने लगती है. लेनदेन की शर्तों पर गुपचुप ‘हां’ ‘न’ होती हैं. विवाह के निमंत्रणकार्ड छापने वाले भी पहले से कंपोज और टाइपसैट किए रटेरटाए वाक्य फिर से छापने लगते हैं, ‘भेज रहे हैं प्रियजन निमंत्रण तुम्हें बुलाने को. ओ मानस के हंस, तुम भूल न जाना आने को.’ और अंत में तुतलाते हुए बच्चों की मनुहार, ‘जलूल जलूल आना’. न तो निमंत्रणकार्डों का मैटर बदला और न ही विवाह की रीत. यानी सारे रुके हुए काम अब वर्तमान काल में होने लगते हैं. 

रावण के भाई कुंभकरण के साल में 6 माह सोने का वर्णन तो सभी ने पढ़ा है, लेकिन मुझे विश्वास है कि देवताओं के 4 माह सोने का वर्णन किसी धर्मप्राण जीव ने भी कहीं नहीं पढ़ा होगा. सवाल यह है कि आखिर देवताओं को 4 माह तक ‘सुलाने’ का और्डर किस ने दिया होगा? शायद देवताओं ने खुद ही अपनी छुट्टी तय की हो और पंडों को बता दिया हो. 

पंडों ने अपने वारिसों को बता दिया हो और वारिस भले बदलते रहते हों लेकिन ‘भगवान’ का सोने का सीजन वही रहता है. हो सकता है कुंभकरण को आधे साल सोता देख देवताओं के मन में भी प्रतिस्पर्धा की भावना जागी हो. सोचा होगा, वह राक्षस हो कर 6 माह सोता है तो हम दुनिया चलाने वाले हो कर 4 महीने क्यों नहीं सो सकते. हो सकता है कि उन्होंने कुंभकरण को पछाड़ने के लिए 8 माह तक सोने का टारगेट बनाया हो लेकिन मंदिरों में होने वाले भजन नामक शोर से परेशान हो कर कटौती कर दी हो. 4 माह ही सही, खर्राटे तो भर लें. 

आखिर इतनी बड़ी दुनिया चलाने वाले को भी आराम की जरूरत तो होती ही है.   आम आदमी सप्ताह में एक दिन छुट्टी रख सकता है तो उसे बनाने वाला उस की हैसियत के अनुसार साल में 4 महीने की छुट्टी नहीं ले सकता क्या? सूर्य भगवान और उन का कर्ज नियमित रूप से चुकाने वाला कर्जदार चंद्रमा भी छुट्टी मनाता है, लेकिन वे कभी किसी की शादी के आड़े नहीं आते. वे अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभाते हैं. इसीलिए उन के भक्त और भजन कम हैं. 

इन्हें छोड़ कर बाकी के सारे भगवान इन 4 माह के अलावा बीचबीच में झपकियां भी ले लेते हैं. मैं समझ जाता हूं कि अब शादियां किसी भी हालत में नहीं हो सकेंगी. चूंकि भगवानों का हर शादी में उपस्थित रहना जरूरी है और पहली निमंत्रणपत्रिका उन्हें ही देते हैं, इसलिए उन के जागने का इंतजार करो. सिर्फ पंडे ही उन्हें जागते हुए देखने की दिव्यदृष्टि रखते हैं. वे भगवान के नाम से फरमान निकालते हैं और धड़ाधड़ शादियां करवाने में भिड़ जाते हैं. मातापिता भी उन की राय मान कर अपनी बेटियों को जल्दीजल्दी रवाना करने लगते हैं. हिंदुओं की मान्यता है कि उन के 33 कोटि (यानी श्रेणी, करोड़ नहीं) देवीदेवता हैं. इस हिसाब से तो एक माह में पौनेतीन देवीदेवता तो आराम से हो सकते हैं. 

शेष दुनिया चला सकते हैं. मेरा कहना है कि आपसी समझबूझ से काम लें तो वे बारहों महीने दुनिया चला सकते हैं और इंसान की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं. बस, टाइमटेबल बनाना है. शिवरात्रि को महादेव जागें तो रामनवी को राम, जन्माष्टमी को कृष्ण तो हनुमान जयंती को हनुमान जागते रहें. वैसे भी, अपने बर्थडे के दिन झांझमंजीरों के शोर में ये सो ही नहीं सकते. बाकी सब पैर पसार कर सोएं. लेकिन नहीं. ये भी सांसदों की तरह अडि़यल रवैया अपनाते हैं. किसी के साथ ऐडजस्ट नहीं करते. माखन चुराने वाला, लड्डू चुराने वाले के लिए अपनी नींद खराब नहीं करेगा. त्रिशूल वाला सुदर्शन चक्र वाले के लिए अपना शैड्यूल नहीं बिगाड़ना चाहता. 

शेर की सवारी करने वाली, कमल पर बैठने वाली के लिए छुट्टी पर नहीं जाना चाहती. सब गड़बड़ है. एक बार तय कर लिया कि बारीबारी से ड्यूटी नहीं देंगे तो नहीं ही देंगे. सोएंगे तो सभी एकसाथ. जागेंगे भी तो सभी एकसाथ. कोई क्या बिगाड़ लेगा? तो भैया नोट कर लो, दुनिया चलाने वाले सोते भी हैं. लेकिन यह भी नोट कर लो कि उन के सोने के साथ दुनिया नहीं सो जाती. उस का काम बदस्तूर चलता रहता है. स्कूलकालेज चालू रहते हैं. दफ्तरों में काम होता है, बच्चे पैदा होते हैं, व्यापार होता है, बसें, कार, रेलें चलती हैं, हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती, भ्रष्टाचार, दलबदल, तस्करी, धोखाधड़ी वगैरा भी आम दिनों की तरह होते रहते हैं. इन चार महीनों में न तो पाप थकता है और न ही पुण्य सुस्ताता है. फिर शादी ने ऐसा क्या अपराध किया है जो भगवानों के जागने पर ही हो पाती है? और क्या इन दिनों मंदिरों पर ‘डौंट डिस्टर्ब’ की तख्ती लगी होती है? नहीं, वहां तो हमेशा जैसी ही भीड़ लगी रहती है. किसी खास तिथि को ऐसी भगदड़ मचती है कि कई लोग सीधे भगवान के पास पहुंच जाते हैं. इस दौरान पैदा हुए बच्चे को मंदिर में ले जाने की क्या तुक है? भगवान तो सो रहा है. वह आशीर्वाद कैसे देगा? परीक्षा के दिनों में विद्यार्थी सिनेमाघरों में कम, मंदिरों में ज्यादा नजर आते हैं. 

आशीर्वाद किस से लें? भगवान तो खर्राटे मार रहे होते हैं. शायद इसीलिए सभी सफल नहीं हो पाते. मंदिर का पुजारी असफल विद्यार्थी को दिलासा देता है कि परीक्षा वालों ने देवताओं के सोने के दिनों में परीक्षा रखी, इसलिए उन का आशीर्वाद नहीं मिल पाया. वे शिक्षा प्रणाली बदलने के बजाय परीक्षाओं की तारीख बदलने का सुझाव देते हैं. अजीब बात है. भगवान तो सो रहे होते हैं. लेकिन मंदिरों में चढ़ावा बदस्तूर आ रहा है. चांदी का सिंहासन, सोने का मुकुट, हीरे की अंगूठी और भी न जाने क्याक्या. भजनआरती नामक शोर भी जारी है. कमाल है जिस के हजारवें हिस्से में भी इंसान सो नहीं पाता, उस शोर में भगवान आराम से सो कैसे सकते हैं. नींद की कौन सी गोली खाते होंगे वे? अगर उन की नींद टूटती तो वे पुजारियों और भक्तों को डांटते, ‘कमबख्तो, सोने दो. हम तुम्हारे लिए काम करते हैं. 

बंद करो यह शोरशराबा. यह हमारे सोने का सीजन है. नहीं माने, तो जागने पर एकएक को देख लेंगे.’ लेकिन सभी के सभी सो रहे होते हैं. अजीब बात तो यह है कि दूसरे धर्मों के देवता कभी नहीं सोते. मजाल है जो एक पल के लिए भी सो जाएं. कर्तव्यनिष्ठ भगवान हैं उन के. वे जानते हैं कि उन के धर्मावलंबी अक्लमंद हैं, अपने निर्णय खुद लेने में समर्थ हैं इसलिए, वे शादी करनेकरवाने का फरमान जारी करवाने के पचड़े में नहीं पड़ते. जब हमारे भगवानों के सोते हुए भी वही काम होते रहते हैं जो उन के जागते हुए होते हैं, तो फिर उन की नींद खुलने का इंतजार करते रहने में कोई समझदारी है क्या? नहीं न. तो फिर सोने दो उन्हें?

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