कहानी: फिर कौन था वो?

‘‘हमारी शादी को छह महीने हो गए हैं आज.’’

‘‘हम्म...’’

‘‘हम्म...क्या? कोई उत्साह ही नहीं है तुम्हें. आज मैंने खाना नहीं बनाया है, बाहर चलें?’’

‘‘अब नहीं बनाया है तो जाना ही पड़ेगा.’’

‘‘क्यूं हमारी शादी को छह महीने हो गए इस ख़ुशी में क्या बाहर नहीं खा सकते?’’

‘‘मैं कहां मना कर रहा हूं? शादी के इन छह महीनों में हमने घर में कम और बाहर ही ज़्यादा खाना खाया है.’’

‘‘ठीक है तो घर पर ही बना लेती हूं.’’

‘‘ओफ़्फ़ हो...मीता! कह तो दिया चलो बाहर ही खा लेंगे.’’

‘‘पर तुम ख़ुशी से तो नहीं कह रहे ना प्रशांत! कहने में ही मजबूरी झलक रही है. इतना कम समय हुआ है हमारी शादी को पर...तुम्हारा लाड़ तो मेरे लिए जैसे ख़त्म ही हो गया है.’’

‘‘ऐसा नहीं है, पर तुम ये भी नहीं समझतीं कि आज मैं ऑफ़िस से आया हूं, कल मुझे ऑफ़िस जाना है...वीकएंड होता तो बाहर जाने का सोच भी सकते थे या फिर शादी की सालगिरह होती तो भी समझ में आता. ये हर महीने शादी की तारीख़ पर बाहर खाना मेरे गले नहीं उतरता.’’

‘‘देखो ठीक ही तो कह रही हूं, तुम्हारा प्यार चुक रहा है मेरे लिए.’’

‘‘हम ऐसे ही बहस करते रहे तो होटल्स भी बंद हो जाएंगे...चलो.’’

कार में बैठकर वो दोनों खाना खाने गए तो, पर न तो जाते समय और ना ही आते समय दोनों ने कुछ ख़ास बात की. उनके बीच की बोझिलता को कम करने के लिए प्रशांत ने एफ़एम पर गाने लगा दिए. घर लौटकर प्रशांत तो आराम से सो गए, पर मीता की आंखों में नींद नहीं, बल्कि नमी थी. वो कितने दिनों से महसूस कर रही है प्रशांत में आया ये बदलाव. शादी के शुरुआती कुछ महीनों में तो प्यार का ख़ुमार उनकी हर बात में नज़र आता था, पर जब से ऑफ़िस में नया प्रोजेक्ट आया है वे थोड़े रूखे होते जा रहे हैं. बात-बात पर झिड़क देते हैं, कई बार उससे कह देते हैं कि तुम हर वक़्त मेरे पीछे-पीछे क्या घूमती रहती हो? पहले तो यही सब उन्हें पसंद आता था, फिर अब क्या हुआ? किससे पूछे वो इस बारे में कि क्या शादी के छह माह बाद ही पति इतने रूखे हो जाते हैं? ऐसी ही न जाने कितनी बातें सोचते हुए उसकी नींद लग गई.

‘‘उठ जाइए मैडम!’’ हाथों में चाय की ट्रे और उस पर रखे हुए एक लाल गुलाब के साथ उसे जगाते हुए प्रशांत ने कहा,‘‘क्या आज हमें ऑफ़िस भेजने का कोई इरादा नहीं है?’’

‘‘सॉरी-सॉरी. मेरी नींद ज़रा देर से लगी थी. तुमने क्यों चाय बनाई? मुझे जगा देते.’’

‘‘कल दिल जो दुखाया था आपका, सोचा आज ख़ुश कर देते हैं.’’

‘‘कोई ख़ास वजह दिल दुखाने की?’’

‘‘अरे बाबा, ऑफ़िस से आए थके-हारे पति का इरादा था कि जल्दी से खाना खाए और सो जाए, पर आपने तो हमें बिना बताए कोई और कार्यक्रम बना रखा था. अब झुंझलाहट आ गई...बस.’’

‘‘पर ये तो सच है कि तुम्हारा प्यार मेरे लिए कम हो रहा है.’’

‘‘नहीं मीता. घर-ऑफ़िस के कामों के बीच मैं प्यार को उस तरह व्यक्त नहीं कर पाता, जैसे तुम कर लेती हो. ये सच है कि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं और हमेशा करता रहूंगा, पर बात-बात पर प्यार जताना और हर माह शादी की महीनागिरह मनाना मुझे बचकाना लगता है. प्यार को आंखों से पढ़ा जा सकता है, दिल से महसूस किया जा सकता है...मैं ऐसा ही प्यार कर सकता हूं. जितनी जल्दी ये समझ लोगी, उतनी ही जल्दी सहज हो जाओगी. समझ लोगी ना?’’ दोनों हाथों से उसके चेहरे को ऊपर उठाते हुए प्रशांत ने पूछा.

‘‘हां, हां समझ गई बाबा, पर मैंने ब्रश भी नहीं किया है,’’ यह कहते हुए मीता ने अपने चेहरे को प्रशांत के हाथों की गिरफ़्त से छुड़ाया और फ़ौरन वॉशबेसिन की ओर भाग खड़ी हुई.

फिर प्रशांत के ऑफ़िस जाने तक समय बड़ा ही रोमैंटिक बीता. मीता को दुख हो रहा था कि कल प्रशांत के बारे में जाने क्या कुछ सोच गई. पता नहीं वो क्यों नहीं समझ पाती कि हर दिन शादी के शुरुआती दिनों जैसा तो नहीं बीत सकता ना...? तभी तो सब लोग यही कहते हैं कि शादी के शुरुआती समय का आनंद ही कुछ और है. शायद अभी वह जॉब नहीं कर रही इसलिए उसका ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रशांत की ओर ही लगा रहता है. सच ही तो है दिन में कम से कम चार बार फ़ोन कर लेती है उन्हें, काम के बीच में वे उठाते भी हैं और बात भी करते हैं, पर क्या उसे नहीं समझना चाहिए कि यदि ऑफ़िस में उसे कोई इतनी बार डिस्टर्ब करता तो वो भी झुंझला जाती? ओह हां, छह दिन से उसने अपने ईमेल ही चेक नहीं किए हैं. शायद अब तक उस एचआर कंपनी का जवाब आ गया हो.

वो तुरंत ही मेल चेक करने बैठ गई. फिर प्रशांत को फ़ोन मिलाया.

‘‘प्रशांत, परसों जॉब के लिए मेरा इंटरव्यू है.’’

‘‘हेई...दैट्स अ ग्रेट न्यूज़. एचआर की किताबों के कुछ पन्ने पलट लेना इस बीच. वरना पता चला वहां भी हर सवाल के जवाब में मेरा ही नाम दोहराने लगो,’’ शरारती अंदाज़ में प्रशांत ने कहा.

‘‘जी नहीं, मुगाल्ते मत पालिए. ऐसा होने की कोई गुंजाइश नहीं है. कानपुर के अपने ऑफ़िस में बेस्ट एम्प्लॉयी का ख़िताब जीता था मैंने.’’

‘‘अच्छा जी! मैं दिल से चाहता हूं कि तुम्हारा सलेक्शन यहां हो जाए, ताकि...’’

‘‘ताकि मैं तुम्हारे पीछे-पीछे न घूमूं, तुम्हें हर चार घंटे पर फ़ोन न कर सकूं... है ना?’’

‘‘नहीं जी, ताकि तुम अपनी क्वालिफ़िकेशन का सही उपयोग कर सको. आत्मविश्वास से भरी रहो...पर हां इतनी व्यस्त न हो जाना कि मेरे लिए समय ही न हो तुम्हारे पास.’’

‘‘तुम्हारे लिए समय न हो, ऐसा तो कभी नहीं होगा. चलो अब अपना काम करो, मैं तुम्हारे लंच के समय फ़ोन करूंगी.’’

बेकार ही मन भटकता रहता है मीता ने सोचा. क्यूं प्यार नहीं करेंगे भला प्रशांत उसे? उनकी पत्नी है, पसंद करके ब्याह के लाए हैं उसे और शादी से पहले ही अपने पहले प्यार का राज़ भी तो उन्होंने मीता के साथ बांटा था. वरना पुरुष ऐसा करना ज़रूरी समझते हैं क्या? बहुत अच्छे से याद है मीता को. जब प्रशांत और उसके घरवाले रिश्ते की बात करने मीता के घर आए थे तो प्रशांत ने मीता से अकेले में बात करने की इच्छा ज़ाहिर की थी. फिर घरवालों की रज़ामंदी से वे मीता को बाहर लेकर गए थे. उन दोनों ने पहले तो होटल में कॉफ़ी के साथ ब्राउनीज़ खाए और फिर होटल के गार्डन में साथ-साथ घूमने लगे.

‘‘मीता मुझे और मेरे परिवार वालों को तुम पसंद हो, पर क्या तुम्हें यह रिश्ता पसंद है?’’

मीता ने अपना सिर हिला कर हामी भरी.

‘‘पर मैं तुम्हें अपने बारे में एक सच बताना चाहता हूं, जिसका अंदाज़ा तो मेरे परिवार वालों को है, पर वे इसकी सच्चाई पूरी तरह नहीं जानते.’’

मीता चुपचाप वह सच सुनने तैयार हो गई.

‘‘एमसीए के अंतिम वर्ष में मैं और मेरी एक सहपाठी कुछ ज़्यादा ही क़रीब आ गए थे. हम एक-दूसरे को पसंद करने लगे और शादी भी करना चाहते थे, चूंकि वे मेरे घर आती रहती थी इसलिए मेरे घरवालों को भी इस बात का अंदाज़ा था कि मैं उसे पसंद करता हूं, पर उन्होंने इस बारे में मुझसे कभी खुलकर नहीं पूछा. पहली नौकरी पाने के बाद जब मैं उसके माता-पिता से मिला तो उन्होंने मुझे साफ़ कह दिया कि मैं उन्हें उनके दामाद के रूप में स्वीकार नहीं हूं, क्योंकि वे अपनी बेटी की शादी अपनी ही जाति के लड़के से करना चाहते हैं. नुपूर उनकी ज़िद के आगे झुक गई और माता-पिता की पसंद के लड़के से शादी करके यूएस चली गई. उससे मेरा रिश्ता ख़त्म हो चुका है और उसके बारे में तुम्हें बताने का सिर्फ़ एक ही मक़सद है कि मैं अपना विवाहित जीवन सच्चाई की नींव से शुरू करना चाहता हूं. यदि मेरा सच जानने के बाद तुम इस रिश्ते से इंकार करोगी तब भी मुझे स्वीकार होगा और मैं तुम्हारे फ़ैसले की पूरी क़द्र करूंगा.’’  

कुछ देर सन्नाटा छाया रहा.

‘‘तो क्या फ़ैसला है तुम्हारा?’’

‘‘बीती बातें तो बीत गईं. अब जब आप जीवन की नई शुरुआत कर रहे हैं तो मैं आपके साथ हूं.’’

उसका जवाब सुनकर कितना आश्वस्त दिख रहा था प्रशांत का चेहरा...मीता प्रशांत की वो छवि कभी नहीं भूल सकती.

फिर शादी के बाद मीता के पूछने पर प्रशांत ने उसे अपनी उस सहपाठी नुपूर की फ़ोटो भी दिखाई थी. मीता को ये देखकर थोड़ी तसल्ली भी तो हुई थी कि नुपूर दिखने में उससे उन्नीस ही है.

अरे कहां-कहां के ख़्यालों में खो जाती हूं मैं, ख़ुद को झिड़कते हुए मीता स्टडी रूम की ओर जाने लगी. प्रशांत की बात सही है, दस महीने हो गए उसे जॉब छोड़े. अब इंटरव्यू के लिए उसे किताबों के पन्ने पलट ही लेने चाहिए.

‘‘सुनो, जिस जगह मेरा इंटरव्यू है वो तुम्हारे ऑफ़िस से भी तो पास ही है. मेरा इंटरव्यू 12 बजे है, उसके बाद मैं थोड़ी शॉपिंग करूंगी और फिर हम साथ ही लंच करें तो?’’ प्रशांत के घर आने पर मीता ने उनसे पूछा.

‘‘हां, क्यों नहीं? पर फ़िलहाल तो एक कप चाय पिला दो.’’

चाय पीते-पीते प्रशांत और मीता बातें करते रहे. फिर अगला दिन भी इंटरव्यू के लिए फ़ाइलें सहेजने में और थोड़ी तैयारी में बीत गया. देर शाम प्रशांत घर लौटे और चाय पीने के बाद स्टडी रूम में अपने लैपटॉप कर कुछ काम करने लगे.

‘‘इंटरव्यू के लिए कौन-सी ड्रेस पहनूं प्रशांत?’’ अपने हाथ में एक काली और एक हल्के हरे रंग की ड्रेस लिए मीता स्टडी रूम में आ पहुंची.

एक हल्की-सी नज़र ड्रेसेस पर डालते हुए प्रशांत ने कहा,‘‘हरी ड्रेस ठीक रहेगी.’’

‘‘पर मैं तो काली वाली पहनने का सोच रही थी.’’

‘‘तो काली पहन लो, फिर मुझसे पूछ ही क्यों रही हो?’’

‘‘पूछ लिया तो क्या हो गया?’’

‘‘मीता कल यूएसए से एक टीम आ रही है और मैं उसके लिए एक प्रेज़ेंटेशन तैयार कर रहा हूं. तुम ये छोटे-छोटे डिसिशन ख़ुद ही ले लो. और हां, तुम खाना खाकर सो जाओ. मेरा खाना टेबल पर रख देना मैं गर्म कर के खा लूंगा. गुड नाइट,’’ बिना उसकी ओर देखे एक ही सांस में प्रशांत ने सबकुछ कह दिया.

माना इंपॉर्टेंट प्रेज़ेंटेशन है, पर यूं टरका दिया प्रशांत ने जैसे मैं उनके लिए कोई महत्व ही नहीं रखती. ऑफ़िस का काम ऑफ़िस में ही निपटाना नहीं चाहिए क्या? उसके बाद का समय तो बीवी के लिए होना चाहिए. मन ही मन भुनभुनाती हुए मीता खाना खाकर सोने चली गई.
सुबह खट-पट की आवाज़ से नींद खुली तो देखा प्रशांत स्नान करके तैयार होने जा रहे हैं.

‘‘अरे अभी तो साढ़े छह ही बजे हैं, इतनी जल्दी क्यों तैयार हो रहे हो?’’

‘‘बताया था ना कि प्रेज़ेंटेशन है...’’

‘‘...पर ये तो नहीं बताया कि साढ़े छह बजे जाना है.’’

‘‘अरे यार, नितिन के साथ भी डिस्कस करना है. वो सात बजे तक ऑफ़िस आ रहा है, रात को 1 बजे के क़रीब ही यह पता चला. तुम सो रही थीं, जगाकर बताता क्या?’’

‘‘पर नाश्ता?’’

‘‘चिंता मत करो, कैंटीन में कर लूंगा.’’

‘‘और लंच पर मिल सकोगे?’’

‘‘नहीं. आज तो पॉसिबल ही नहीं है. आज तो शायद यूएसए वाली टीम के साथ लंच के लिए जाना पड़े.’’

‘‘ओके. मैं इंटरव्यू के लिए जाऊंगी आज.’’

‘‘हम्म...इंटव्यू कैसा हुआ ये बताने के लिए मैसेज ही करना. फ़ोन शायद पिक न कर सकूं.’’

‘‘ओके.’’

‘‘तो चलूं?’’

‘‘कुछ भूल नहीं रहे?’’

‘‘क्या?’’

‘‘अरे कम से कम मुझे बेस्ट विशेज़ तो दो!’’

‘‘मेरी विशेज़ तो हमेशा ही तुम्हारे साथ हैं, पर मांग रही हो तो...ऑल दि बेस्ट!’’

हल्के हरे रंग ड्रेस पहनकर मीता इंटरव्यू के लिए नियत समय पर ऑफ़िस में पहुंच गई. रिसेप्शन पर बैठी युवती ने उसे कुछ देर इंतज़ार करने कहा और वह सामने रखे सोफ़े पर बैठ गई.

‘‘अरे पूजा, तुम यहां कैसे?’’ अचानक वहां से गुज़रती हुई एक युवती को रोककर उसने पूछा.

‘‘हाय मीता! मैं यहां अपने ऑफ़िस के किसी काम के सिलसिले में आई थी और तुम?’’

‘‘इंटरव्यू देने. शादी के छह माह बाद नए शहर में नए जॉब के लिए इंटरव्यू देने. और ऑफ़िस में सब कैसे हैं?’’

‘‘सब मज़े में यार. हम तुम्हें मिस करते हैं.’’

‘‘मैं भी तुम लोगों को याद करती रहती हूं.’’

‘‘कब तक हो यहां?’’

‘‘आज शाम की ट्रेन है मीता, पर मेरा काम ख़त्म हो गया है तो सोच ही रही थी कि क्या करूं?’’

‘‘थोड़ी देर इंतज़ार करो. मेरा इंटरव्यू हो जाएगा तो हम दोनों साथ-साथ लंच करेंगे और गप्पें मारेंगे.’’

‘‘या. इट विल बी फ़न.’’

‘‘मीता!’’ रिसेप्शनिस्ट की आवाज़ सुनकर मीता पलटी और उसके इशारे पर अंदर चली गई.
बाहर निकलते ही पूजा ने पूछा,‘‘कैसा रहा इंटरव्यू?’’

‘‘ठीक था. लेट्स सी.’’

‘‘कहां चलें लंच के लिए?’’

‘‘पास ही एक अच्छा-सा इटैलियन रेस्तरां है.’’

‘‘सुन भूख तो ज़ोरों की लगी है, पर मुझे होटल से चेक आउट भी करना है. पहले तुम मुझे रेस्तरां दिखा दो, फिर तुम जब तक ऑर्डर दोगी मैं सामान लेकर सीधे ही वहां आ जाऊंगी. फिर गप्पे मारेंगे और मैं वहीं से स्टेशन निकल जाऊंगी. अरे हां, प्रशांत को पता भी है कि नहीं कि उनकी पत्नी कहां खाना खानेवाली है और किसके साथ घूम रही है?’’

‘‘अरे वो तो ख़ुद ही बहुत व्यस्त हैं आज. उन्हें तो ये बातें सुनने की भी फ़ुर्सत नहीं है.’’ मुस्कुराते हुए मीता ने जैसे मन का ग़ुबार बाहर निकाल दिया.

मीता और पूजा टैक्सी लेकर इटैलियन रेस्तरां पहुंचे. वहां मीता उतर गई और पूजा अपना सामान लाने उसी टैक्सी में आगे निकल गई.

चलो प्रशांत के साथ नहीं तो पूजा के साथ सही. आज का समय यहां अच्छा बीत जाएगा. मीता ने रेस्तरां में पहुंचकर एकदम कॉर्नर की एक मेज चुनी और मेनू कार्ड पर नज़र दौड़ाने लगी. उसने वेटर को ऑर्डर दिया और अकेली बैठी इधर-उधर देखने लगी. अचानक उसकी नज़रें एक जोड़े पर जाकर ठहर गईं, जो दूसरे छोर पर कॉर्नर की मेज पर बैठा था. अरे ये तो प्रशांत हैं, हां वही हैं...पर उनके साथ ये महिला कौन है? मीता अपनी मेज से उठ कर दरवाज़े की आड़ लेती हुई उस जोड़े के क़रीब पहुंची. वहां प्रशांत और उसके साथ बैठी महिला को देखकर वह सन्न रह गई. उसकी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा...


क्रमश:...

किसी तरह से ख़ुद को संभालते हुए मीता ने उन दोनों की ओर दोबारा नज़र डाली. शक़ की कोई गुंजाइश ही नहीं बची. प्रशांत के साथ बैठी महिला तो नुपूर ही है. तो ये वजह है इनके रूखेपन की. फिर लौट तो नहीं आई ये प्रशांत के जीवन में. अभी जाकर पूछती हूं. नहीं...नहीं, यहां तमाशा करना ठीक नहीं होगा. देखूं तो भला ये लोग क्या करते हैं? ये सारी बातें दिमाग़ में घूमती रहीं. और आंखों से आंसू बह निकले मीता के. उसने पर्स से तुरंत अपना मोबाइल निकाला और वहीं से उनकी तस्वीर ले ली. ओह, पूजा आती ही होगी. वो मुझे आंसुओं में डूबा न देख ले, भला उसे क्यों मेरे निजी जीवन की जानकारी मिले? उसने जल्दी से रुमाल निकालकर आंसू पोंछे, ख़ुद को संयत किया और वापस अपनी टेबल पर आकर बैठ गई. मन में तूफ़ान उठ रहा है, ज़िंदगी तबाह होने को आई है और इसे पूजा से छुपाते हुए लंच करना होगा. चेहरे पर कहीं वो मेरा भाव न पढ़ लें. कोई बहाना बनाकर निकल भी तो नहीं सकती...कम से कम खाना तो खाना ही होगा. खाना खाते ही घर निकल जाऊंगी. शाम को प्रशांत के लौटने पर ही सारी बातें करूंगी.

जैसे ही वेटर खाना रखने आया मीता ने उससे बिल लाने को कहा और बिल पे भी कर दिया. दो मिनट ही गुज़रे होंगे कि पूजा आ गई.

‘‘अरे वाह, तुमने तो सारी तैयारी कर रखी है. बड़ी ज़ोरों की भूख लगी है यार,’’ पूजा ने सामान के नाम पर मौजूद अपने एकमात्र बैग के ऊपर अपना पर्स रखते हुए कहा.

‘‘हां, मैं भी बस तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी. जल्दी-जल्दी खाना खाते हैं...’’

‘‘जल्दी-जल्दी क्यों? मेरे पास तो अभी बहुत वक़्त है.’’

‘‘अरे तुम्हारे जाने के बाद प्रशांत का फ़ोन आया था. हमारे कुछ रिश्तेदार चार-साढ़े चार बजे तक आ रहे हैं. देखो न पौने तीन बज रहे हैं. मुझे घर जाकर उनके आवभगत की थोड़ी तैयारी भी तो करनी होगी,’’ मीता ने संयमित तरीक़े से अपने जल्दी जाने की भूमिका बांधी.

‘‘अरे, तुम्हारे रिश्तेदार तो आने के पहले बड़ा कम नोटिस पीरियड देते हैं.’’

‘‘हो जाता है कभी-कभी और मैं कौन-सा अभी नौकरी कर रही हूं. हो जाएगा मैनेज.’’

खाना खाते-खाते दोनों बातें करते रहे और मीता की नज़रें बार-बार उस कोने पर पड़ती रही, जहां प्रशांत और नुपूर बैठे थे. बड़ी मुश्क़िल से जज़्बातों को रोके वो ख़ुद को संभालती रही.

‘‘तुम चाहो तो घर चलो, अभी तुम्हारी ट्रेन आने में वक़्त है,’’ मीता वहां से तुरंत उठना चाहती थी इसलिए आख़िरी कौर मुंह में लेते हुए उसने औपचारिकता निभाई.

‘‘नहीं-नहीं यार. वैसे ही तुम्हारे यहां मेहमान आ रहे हैं. मैं सीधे स्टेशन जाऊंगी, क्लॉक रूम में सामान रखूंगी और आसपास के मार्केट से थोड़ी शॉपिंग करूंगी. तब तक ट्रेन आने का समय भी हो जाएगा.’’

‘‘तो निकलें...? ’’

‘‘पर बिल?’’

‘‘मैंने पे कर दिया है.’’

‘‘ये तो ग़लत है...’’

‘‘क्यूं भला? भई, हमारे शहर में आई हो तो ट्रीट तो हमें ही देनी चाहिए और ऐसा ही सोच रही हो तो चलो वेटर की टिप तुम दे दो,’’ मीता को ख़ुद पर अचरज हुआ कि ऐसी परिस्थितियों में वो ख़ुद को इतना बनावटी भी बनाए रख सकती है.

पूजा ने विदा ली और मीता ने सीधे घर का रुख़ किया. घर पर घुसते ही अपने आंसुओं के सैलाब को रोक पाना उसके बस में न रहा. फूट-फूट कर रोती रही. फिर मन हुआ क्यूं न प्रशांत को फ़ोन लगाऊं और पूछूं कहां हो? फिर मन ने ही कहा, जब उसे परवाह नहीं और अब भी नुपूर के साथ घूमता-फिरता है तो फ़ोन लगाने से भी क्या फ़ायदा? यूं लगा जैसे पल भर में प्रशांत फिर अजनबी हो गया है. नहीं रहेगी वो प्रशांत के साथ...वह उठी और सामान पैक करने के लिए बैग निकालने लगी. बिना बताए ही चली जाऊंगी. मैसेज कर दूंगी बस. उन्हें भी तो समझे कि उनकी मनमानी नहीं चलेगी. यदि इतने पाक़-साफ़ हैं और नुपूर से ही मिलना था तो बताकर मिलते.
वो अल्मारी के ऊपर रखे बैग निकालने के लिए स्टूल पर चढ़ी ही थी कि डोरबेल बज गई. दरवाज़ा खोलने के लिए उसने अपने आंसू पोंछे, मुंह धोया और पोंछने के लिए टॉवल हाथ में ली ही थी कि बेल दोबारा बज गई.

‘‘आ तो रही हूं...कौन है?’’ हाथ में टॉवल लिए हुए लगभग चीखते हुए उसने दरवाज़ा खोला.

‘‘अरे इतनी नाराज़गी से क्यों बोल रही हो?’’ सामने प्रशांत थे.

मन तो हुआ हाथ की हाथ की टॉवेल उनके मुंह पर दन्न से दे मारे और कहे कि तुम कौन होते हो ये पूछनेवाले? धोख़ेबाज़ कहीं के. पर उसने कुछ नहीं कहा और पलट गई.

‘‘अरे तुम्हें ख़ुशी नहीं हुई मुझे घर जल्दी आया देखकर?’’ प्रशांत ने पूछा.

उसने इस बात का भी कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘क्या हुआ मीता? इंटरव्यू अच्छा नहीं हुआ?’’

‘‘इंटरव्यू तो ठीक ही हुआ. सिरदर्द हो रहा है.’’ मीता ने बात को टालते हुए कहा.

‘‘तुम क्या अभी लौटी हो? चाय बनाऊं तुम्हारे लिए?’’

‘‘नहीं मैं बना लूंगी.’’

‘‘तो मेरी भी बना लो. फिर बताना कि इंटरव्यू कैसा हुआ. पिछले तीन-चार दिन से तुमसे ठीक से बात ही नहीं कर पाया. आज हमारा प्रोजेक्ट अप्रूव हो गया है. फिर मैं जल्दी आ गया. सोचा सुबह नहीं तो शाम को सही, हम डिनर बाहर करेंगे.’’
मीता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चाय बनाने किचन में चली गई और प्रशांत चेंज करने.

मीता ने चाय छानी और ट्रे में अपना मोबाइल भी रखा. उस पर सुबह रेस्तरां में खींची हुई नुपूर और प्रशांत की फ़ोटो डिस्प्ले थी.

चाय के कप के साथ मीता ने मोबाइल प्रशांत की ओर बढ़ाया और प्रश्नवाचक नज़रें उसपर गड़ा दीं? ग़ुस्से से तमतमाया मीता का चेहरा और मोबाइल में प्रशांत-नुपूर की फ़ोटो देखकर एक पल को तो प्रशांत सकपका गए. फिर उन्होंने चाय का कप उठाया और मोबाइल मीता को वापस थमाते हुए बोले,‘‘तो ये है तुम्हारी नाराज़गी का कारण? पर जब तुम लंच के लिए उसी रेस्तरां में आई थीं तो सीधे मेरी ओर क्यों नहीं आईं?’’

‘‘मैं बेकार का तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थी.’’

‘‘ये कहो कि तुम्हारा मुझपर से भरोसा डिग गया था. दरअसल मुझे भी पता नहीं था कि आज ऐसा हो जाएगा. यूएसए से जो हमारी टीम आनेवाली थी, उसमें चार लोग थे और उनमें से एक नुपूर भी थी. न तो मुझे इस बात की जानकारी थी और ना ही नुपूर को. प्रेज़ेंटेशन के बाद हम सबको लंच पर साथ ही जाना था, पर कोई काम निकल आने की वजह से टीम हेड ने हमारे सीईओ के साथ ऑफ़िस में ही लंच किया और दूसरे दो मेम्बर्स ने कहा कि वे भारत आए हैं तो यहां से शॉपिंग करने में ज़्यादा रुचि लेंगे. वो मार्केट निकल गए. नितिन प्रोजेक्ट के दूसरे डॉक्युमेंट्स तैयार कर रहा था और मुझपर नुपूर को लंच कराने का काम आ गया. फिर मेरे और उसके बारे में तो मैं तुम्हें बता ही चुका हूं. थोड़ी दिलचस्पी थी यह जानने में कि अब वो कैसी है, कैसा है उसका परिवार? इसलिए जाने से मना भी नहीं किया. फिर इसी बात को लेकर मुझे मन में गिल्ट भी हुआ तो नुपूर को ऑफ़िस छोड़ा और बॉस से परमिशन लेकर जल्दी घर चला आया, ताकि गिल्ट थोड़ी तो दूर हो जाए.’’

‘‘कहानी तो नहीं बना रहे?’’ मीता को भरोसा तो हो रहा था प्रशांत की बात पर.

‘‘वैसे तो तुम्हें मेरी बात पर भरोसा होना चाहिए, लेकिन यदि नहीं है तो नितिन से बात करा दूं?’’

‘‘नहीं-नहीं.’’

‘‘तो तुम्हारा शुबहा दूर हुआ या अब भी नाराज़ ही रहोगी? बाहर चलें ना रात को?’’ मीता को अपनी ओर खींचते हुए प्रशांत ने पूछा.

मीता ने सिर हिलाकर मौन हामी दी और प्रशांत के क़रीब चली आई.

दोबारा डोरबेल बजी. मीता ने दरवाज़ा खोला तो देखा सामने उसकी पड़ोसन सिमरन है.

‘‘यार थोड़ी चीनी मिलेगी क्या? मैं अमन से नज़र बचाकर आई हूं. कल सोचा था मंगा लूंगी, पर भूल गई.’’ एक ख़ाली कटोरी उसकी ओर बढ़ाते हुए सिमरन ने कहा.
मीता कटोरी लेकर चीनी लाने किचन में गई और लौटते हुए उसकी आंखें प्रशांत से जा टकराईं. वो मीता की ओर देखकर यूं मुस्कुराए, जैसे कह रहे हों,‘देखो फिर आ गई न सिमरन हमेशा की तरह.’ मीता भी हौले से मुस्कुरा दी और सिमरन को चीनी की कटोरी थमा दी.

‘‘ओह, हां 15 दिन बाद करवाचौथ है, याद तो है ना? तुम्हारी तो पहली होगी. तुम मेरे साथ ही पूजा कर लेना.’’ सिमरन ने चहकते हुए कहा.

‘‘हां, मुझे तो पूजा कैसे होती है ये भी नहीं पता और मम्मी जी भी नहीं आ सकेंगी, क्योंकि पापा की तबियत कुछ ठीक नहीं है. तुम्हें ही सब बताना होगा सिमरन.’’

‘‘हां, हां. चिंता मत करो. मैं सब बता दूंगी, पर अभी चलूं चाय बनानी है.’’

और सिमरन चली गई.

दूसरे दिन ऑफ़िस से लौटे तो प्रशांत थके हुए नज़र आ रहे थे.

‘‘अरे प्रेज़ेंटेशन तो कल था, पर तुम तो आज ज़्यादा थके नज़र आ रहे हो.’’ मीता उन्हें देखते ही बोली.

‘‘हां, क्योंकि परेशानी तो आज आई है.’’

‘‘क्या परेशानी?’’

‘‘मुझे कल ही यूएसए के लिए रवाना होना है. दो हफ़्तों के लिए जाना होगा.’’

‘‘क्यों? यूं अचानक? नुपूर के साथ?’’

‘‘कम ऑन मीता. नुपूर के साथ क्यों? वो तो यहीं है. महीने भर की छुट्टी ले रखी है उसने. तब तक तो मैं वहां से लौट भी आऊंगा. उससे मिलना इत्तफ़ाक था और इससे ज़्यादा कुछ नहीं.’’

‘‘तो फिर यूं अचानक क्यों जाना पड़ेगा?’’

‘‘जाना तो नितिन को था, लेकिन कल उसकी मां की तबियत अचानक ख़राब हो गई. हार्ट अटैक आया है. अब वो तो जा नहीं सकता इसलिए लास्ट मोमेंट पर मुझे भेजा जा रहा है.’’

‘‘पर मेरी तो पहली करवाचौथ होगी, क्या तुम नहीं रहोगे उस दिन? मां भी नहीं आ पा रही हैं...तो क्या मैं अकेली रहूंगी?’’ लगभग रुआंसी हो आई थी उसकी आवाज़.

‘‘क्या कर सकता हूं? नौकरी तो करनी ही है, कोई अपने मन से थोड़े ही जा रहा हूं.’’

‘‘पर चाहे जो हो प्रशांत...करवाचौथ तक लौट आना. मैं अकेले नहीं मनाना चाहती ये दिन.’’

‘‘मैं कोशिश करूंगा मीता, पर कुछ चीज़ों पर अपना बस नहीं चलता.’’

फिर मीता और प्रशांत ने जल्दी-जल्दी प्रशांत का सामान पैक किया, क्योंकि फ़्लाइट अगले दिन सुबह 11 बजे की थी.

मीता एयरपोर्ट तक प्रशांत को छोड़ने गई.

‘‘प्रशांत...प्लीज़ कोशिश करना कि करवाचौथ तक आ जाओ. मैं तुम्हें बहुत मिस करूंगी. टेक केयर.’’

...औैर प्रशांत चला गया.

घर लौटी तो जैसे घर मीता को खाने दौड़ रहा था. बालकनी में खड़े होकर मीता यही सोच रही थी कि जब प्रशांत पास होते हैं तो मैं कुछ न कुछ शिकायत करती रहती हूं, लेकिन जब वे नहीं होते तो कितना प्यार आता है उनपर. अब वो लौटेंगे तो पक्का शिकायत करना छोड़ दूंगी. अपने मोबाइल की रिंग सुनकर मीता की तंद्रा टूटी. उसी कंपनी से कॉल था, जहां वो कुछ दिन पहले इंटरव्यू देने गई थी. उसका सलेक्शन हो गया था और उसे दो दिन बाद ही जॉइन करना था. मीता बहुत ख़ुश थी. मन हुआ कि तुरंत प्रशांत को ये ख़बर दे, पर उनतक अभी तो ये मैसेज पहुंच ही नहीं सकता. फिर भी मीता ने प्रशांत को ई मेल लिखकर इस बात की सूचना भेज दी. फिर जल्दी से सिमरन के घर गई और उसे भी यह बात बताई.

‘‘प्रशांत की क्या प्रतिक्रिया है?’’ सिमरन ने पूछा.

‘‘उन्हें तो अभी पता ही नहीं है. उन्हें अभी ही तो एयरपोर्ट छोड़कर आ रही हूं. दो सप्ताह के लिए यूएसए गए हैं वो आज ही.’’

‘‘अरे हमें बिना बताए?’’

‘‘कल रात को ही तो पता चला और आज ये चले भी गए.’’

‘‘करवाचौथ तक तो आ जाएंगे ना?’’

‘‘कह तो रहे थे कि मुश्क़िल है, पर मैंने तो बहुत बार कहा है उनसे कि कोशिश ज़रूर करना.’’

‘‘तुम लोगों की पहली करवाचौथ है तो देखना वो ज़रूर आ जाएंगे.’’

‘‘क़ाश ऐसा ही हो. मैं उनके बिना पहली करवाचौथ नहीं मनाना चाहती सिमरन.’’
फिर सब्ज़ियों के दाम से लेकर घर के काम तक उन्होंने ढेर सारी बातें की और मीता घर लौट आई. डसिमरन से बात कर के वो कुछ बेहतर महसूस कर रही थी. दो दिन बाद ऑफ़िस जॉइन करना था. वो थोड़ी आश्वस्त थी, कि कम से कम ऑफ़िस जॉइन करने बाद ये समय आसानी से निकल जाएगा वरना प्रशांत के बिना रहना अब उसे बहुत मुश्क़िल लग रहा था. अगले दिन जब प्रशांत का फ़ोन आया तो उसने अपने सलेक्शन की बात बताई और फिर दोहरा दिया कि चाहे जो हो तुम्हें करवाचौथ तक लौटना ही होगा. प्र्रशांत ने भी कहा कि कोशिश तो वो पूरी करेगा. फिर उसके दिन जल्दी गुज़रने लगे और हर शाम प्रशांत से बात तो हो ही जाती थी. करवाचौथ से दो दिन पहले उसने प्रशांत से पूछा,‘‘प्रशांत, आ जाओगे ना?’’
‘‘कोशिश तो कर रहा हूं. टिकट भी करवाई है, पर काम ख़त्म होता नहीं दिख रहा.’’

‘‘मेरी बहुत इच्छा है कि तुम रहो उस दिन.’’

‘‘आई नो. पर यदि प्यार से इस तरह बार-बार बुलाती रहीं तो फिर तो मुझे उड़कर ही आना पड़ेगा,’’ प्रशांत ने किस स्मित मुस्कान के साथ ये बात कही होगी, मीता मन ही मन महसूस कर रही थी. ‘‘अच्छा, अब मज़ाक नहीं. ध्यान से सुनों यदि मैं न पहुंच सकूं तो तुम पूजा कर लेना. फिर मुझसे वेबकैम से बात कर लेना और खाना खा लेना.’’

‘‘ना...तुम आ जाओ.’’

‘‘ओके, आई विल ट्राय.’’

मीता और सिमरन ने देखा बाथरूम की लाइट जल रही थी, नल चल रहा था, लेकिन घर में कोई नहीं था. वो दोनों डर और घबराहट से कांप रही थीं.

‘‘तुमने भी देखा... देखा था... ना... सिमरन प्रशांत को? कहीं उन्हें देखना मेरी आंखों का भ्रम तो नहीं था?’’

‘‘हां... हां मीता... हां... मैंने अपनी आंखों से देखा था. हम दोनों को एक साथ भ्रम नहीं हो सकता. ओह गॉड... ओह गॉड... और फिर बाथरूम की लाइट और नल वो कैसे चल रहे थे?’’

दोनों अभी बात कर ही रहे थे कि मीता का मोबाइल फिर बजा. प्रशांत थे.

‘‘मीता... मीता... तुम क्या कह रही थीं? मैं वहीं था? ये कैसे हो सकता है? तुम सेफ़ तो हो ना?’’

‘‘हां, मैं ठीक हूं... पर मैं तुम्हें कैसे बताऊं प्रशांत... और मैं अकेली ही नहीं थी. सिमरन... सिमरन थी... उसने भी तुम्हें देखा और... और...’’

‘‘तुम मेरे बारे में ज़्यादा सोचती हो ना इसलिए तुम्हें ऐसा लगा होगा... नाउ लिसन टू मी. जस्ट रिलैक्स.’’

‘‘नहीं... प्रशांत... सिमरन ने भी...’’

‘‘सिमरन है वहां? तुम उससे मेरी बात कराओ. और सुनो तुम आज या तो सिमरन के यहां रुक जाओ या उसे अपने साथ सोने कह दो... प्लीज़ अकेली मत रहना. नहीं तो मुझे चिंता रहेगी तुम्हारी... सिमरन को फ़ोन दो.’’
मीता ने फ़ोन सिमरन की ओर बढ़ा दिया.

‘‘हेलो प्रशांत, मीता सही कह रही है... हम दोनों ने आपको...’’

‘‘सिमरन आप कैसी बात कर रही हैं?’’ लगभग हंसते हुए आगे प्रशांत ने कहा,‘‘मेरे पंद्रह दिन दूर रहने से मेरी बीवी को इल्यूशन सा हो रहा है, पर आपको तो ऐसा नहीं होना चाहिए...’’

‘‘लेकिन हम दोनों सच कह रहे हैं... आप यक़ीन ही नहीं कर रहे...’’

‘‘सिमरन आप ही कहिए यक़ीन करने जैसी बात हो तो करूं ना? अच्छा इसे छोड़िए मैं आपसे एक रिक्वेस्ट कर रहा था. कल तो मैं आ ही जाऊंगा, लेकिन जिस तरह मीता डरी हुई है मैं नहीं चाहता कि वो आज अकेली रहे घर पर. आप चाहें तो उसे अपने घर ले जा सकती हैं या फिर आप आज रात उसके साथ रुक जातीं तो अच्छा होता.’’

‘‘हां... हां... बिल्कुल प्रशांत. बस, करवा चौथ की पूजा के बाद. वैसे तो मैं और मीता दोनों ही पूजा करने जाएंगे. फिर अमन से कह दूंगी. मैं आपके यहां ही रुक जाऊंगी... लीजिए मीता से बात कीजिए...’’ यह कहते हुए सिमरन ने फ़ोन मीता को दे दिया.

‘‘सुनो मीता, आज अकेली मत रहना. सिमरन से कह दिया है वो रुक जाएगी तुम्हारे साथ. और हां, पूजा के बाद मुझे वीडियो कॉल कर लेना. ओके...’’

‘‘हां प्रशांत. अकेले तो मैं रह भी नहीं पाऊंगी... काश तुम आ जाते...’’

‘‘कल तो आ ही रहा हूं... सुबह तक की ही तो बात है. टेक केयर... ओके!’’

‘‘हां... कॉल करती हूं. पूजा के बाद.’’

फ़ोन रखते ही मीता ने कहा,‘‘सिमरन देखा था न तुमने भी?’’

‘‘हां यार... पर पता नहीं... अब कोई एक्स्प्लेनेशन भी तो नहीं है...’’

‘‘हां... लेकिन...’’

‘‘अरे अब छोड़ ये बातें... चल चांद आ गया होगा. पूजा की थाली ले, छत पर चलते हैं.’’

सिमरन ने ख़ुद टेबल पर से पूजा की थाली उठाई और मीता का हाथ पकड़ा और बोली,‘‘तुम चाबी ले लो घर की और चलो...’’

मीता जैसे कुछ समझ पाने की स्थिति में नहीं थी तो जैसा सिमरन ने कहा उसने वैसा ही किया. सिमरन उसे अपने घर ले गई. वहां से पूजा की थाली लेकर दोनों छत पर चले आए. उनकी बहुमंज़िला इमारत की छत पर बहुत सी महिलाएं सजी-धजी अपने-अपने पतियों के साथ चांद के निकलने का इंतज़ार कर रही थीं. सिमरन ने एक हाथ में पूजा की थाली तो दूसरे में मीता का हाथ थामा हुआ था और वो सीधे अमन के पास पहुंची.

अमन उन्हें साथ देखकर मुस्कुराया,‘‘अरे चांद निकलता तो मैं फ़ोन कर देता ना... अभी तो आया नहीं है...’’

सिमरन बोली,‘‘हां, हम दोनों थोड़ा डरे हुए हैं तो सोचा हम ही यहां आ जाते हैं.’’

फिर सिमरन ने अमन को सारी बात बताई कि उन दोनों ने प्रशांत को देखा, लेकिन प्रशांत तो अभी आए ही नहीं हैं. उनकी बातें सुनकर अमन मुस्कुराते हुए बोला,‘‘अरे... मैं समझ गया. सुबह से बिना पानी पिए उपवास किया हुआ है ना इसीलिए कुछ का कुछ देख रही हो तुम दोनों. बस, चांद आते ही अर्घ्य दे कर खाना खा लेना. सब ठीक हो जाएगा.’’
सिमरन झल्ला गई,‘‘अरे बात वो नहीं है... न तुम समझ रहे हो, न प्रशांत मान रहा था... ’’

‘‘मानने जैसी बात हो तब तो माने कोई,’’ अमन ने कहा.

‘‘पर मैं और मीता डर रहे हैं और प्रशांत ने रिक्वेस्ट की है कि यदि आज रात मैं सिमरन के साथ रुक जाऊं तो अच्छा होगा...’’

‘‘हां, क्यों नहीं. आज रात की ही तो बात है,’’ अमन ने हामी दे दी.

पूजा कर के मीता, सिमरन और अमन नीचे उतरे तो सिमरन बोली,‘‘तू घर चल मीता. मैं चेंज करके और खाना खा के बस, आधे घंटे में आई.’’

मीता का एक मन हुआ कि कह दे मुझे नहीं जाना अपने घर. मुझे बहुत डर लग रहा है. फिर उसने घड़ी पर नज़र डाली तो देखा पौने दस बज रहे हैं. दस बजे तो प्रशांत की फ़्लाइट है. उसे वीडियो कॉल भी तो करना था. ये सोचते ही उसने सिमरन की ओर देख कर हामी में सिर हिलाया और अपने फ़्लैट में चली गई.

घर पहुंचते ही उसने प्रशांत को कॉल मिलाया. प्रशांत उसे देखते ही बोला,‘‘तुम बहुत सुंदर लग रही हो मीता. मुझे बहुत बुरा लग रहा है कि पहली करवा चौथ पर मैं तुम्हारे साथ नहीं हूं... पर... आई होप यू अंडरस्टैंड जान...’’

‘‘हां... हां... मुझे पता है तुम्हें भी उतना ही बुरा लग रहा है, जितना मुझे... पर कोई बात नहीं... अब जॉब तो नहीं छोड़ सकते है ना?’’ यह कहकर मीता हंस दी.

‘‘अरे तुम ग़ुस्सा कर लेती हो तो कम गिल्ट होता है, पर ये प्यार से बात मान लेती हो ना, अच्छी बच्ची की तरह तो मुझे बहुत गिल्ट हो जाता है.... सच!’’

‘‘अरे कल आ रहे हो ना, कर लूंगी ग़ुस्सा...’’ ये कहकर मीता फिर हंस दी.

‘‘सुनो, तुमने कुछ खाया कि नहीं? चलो मेरे सामने तोड़ो अपना व्रत...’’

मीता जल्दी से डायनिंग टेबल की ओर गई. थाली में खाना परोसा और प्रशांत के सामने ही थोड़ा-सा खाना खाया.

‘‘चलो मीता. अब रखता हूं. बोर्डिंग का टाइम हो गया. कल मिलते हैं... बाय जान... लव यू...’’

‘‘लव यू टू... लव यू लॉट्स...’’
मीता ने कॉल डिस्कनेक्ट किया और मोबाइल सोफ़े पर पटक दिया. उसे एहसास हुआ कि वाक़ई उसे बहुत तेज़ भूख लगी है. उसने पहले तो जल्दी-जल्दी खाना खाया और फिर झटपट चेंज किया. अभी वो किचन समेट ही रही थी कि डोरबेल बजी. मीता कांप गई... उसे दो घंटे पहले घटी घटना याद हो आई. फिर उसने हिम्मत बटोरी. सोचा सिमरन होगी. उसने दरवाज़ा खोला. बाहर सिमरन ही थी. उसकी जान में जान आई.

‘‘अच्छा हुआ तू जल्दी आ गई,’’ सिमरन को देखते ही मीता ने कहा,‘‘आ जा...’’

‘‘हां, बस चेंज किया. अमन ने और मैंने खाना खाया और आ गई. तेरी बात हो गई प्रशांत से?’’

‘‘हां, बात भी हो गई और उन्होंने प्लेन भी बोर्ड कर लिया.’’

‘‘गुड... कल वो आ जाएंगे...’’ अभी सिमरन ये कह ही रही थी कि बात काटते हुए मीता ने कहा,‘‘हां, और तुझे अपनी ड्यूटी से छुट्टी मिल जाएगी. कल अपने पति के साथ सो पाएगी...’’ यह कहते हुए खिलखिला दी वह.

सिमरन भी मुस्कुरा दी. फिर बोली,‘‘अरे कुछ लोगों को अपनी ड्यूटी से कभी छुट्टी नहीं मिलती रे. यहां ख़त्म तो कहीं और शुरू...’’

‘‘भई मेरे यहां आज के बाद तुझे नहीं करनी पड़ेगी ड्यूटी...’’ मीता ने मुस्कान के साथ कहा.

‘‘हां, हां मुझे पता है...  पता है कि तू बड़ी समझदार है... पर तुझे एक और बात बतानी है मुझे...’’

‘‘क्या?’’

‘‘अरे अंदर तो चल. बिस्तर पर लंब-लेट हो कर बताती हूं.’’

दोनों पड़ोसनें बिस्तर पर आ गईं.

‘‘हां, अब बता...’’ मीता बोली.

‘‘पता है, आज की घटना के बाद मुझे वो बात याद आई जो मेरी पहली मेड ने मुझे बताई थी.’’

‘‘किस घटना के बाद? कौन सी बात?’’

‘‘अरे वही. जो हमने देखा. वो कह रही थी कि हमारे पड़ोस की जो बिल्डिंग है ना, उसकी बारहवीं मंज़िल पर एक कपल रहता था...’’

‘‘सिमरन रात को ऐसी बातें कर के तू मुझे डरा मत...’’

‘‘अरे, डरा नहीं रही हूं. और ये बात डरने वाली है भी नहीं. आगे तो सुन... उनकी शादी को दो-तीन साल ही हुए थे और बीवी कंसीव नहीं कर पा रही थी. जब उन लोगों ने डॉक्टर को दिखाया तो पता चला समस्या बीवी को ही थी. तो वो डरने लगी कि कहीं उसका पति उसे छोड़ न दे...’’

‘‘फिर...’’ मीता को आगे जानने की उत्सुकता हुई.

‘‘हालांकि उसका पति उसे बहुत प्यार करता था. पर उसे न जाने क्यों अपने पति पर शक होने लगा. शायद अपनी कमी की वजह से. दोनों में आए दिन झगड़े होने लगे. पर वो अलग नहीं हुए. पत्नी ने कई बार अपने पति पर शक के आरोप भी लगाए, तलाक़ भी मांगा. लेकिन पति हर बार समझा लेता था... शायद अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था. पर पत्नी थी कि समझ जाती, फिर वहीं लौट आती. एक दिन न जाने क्यूं पति का सब्र जवाब दे गया. उसने कहा,‘तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है तो लो मैं आज अपना जीवन ख़त्म ही कर लेता हूं. और वो अपने फ़्लैट की विंडो पर चढ़ गया. बारहवीं मंज़िल की विंडो. उसे चढ़ता देख उसकी बीवी उसे पकड़ने आई. वो उसे मना लेना चाहती थी. सोच रही थी कि अब बिल्कुल भी शक नहीं करेगी अपने पति पर. पर न जाने अचानक क्या हुआ कि अपने पति को पकड़ने की कोशिश में वो और उसके पति दोनों ने संतुलन खोया और वहां से नीचे आ गिरे...’’

‘‘उफ़... कितना दुखद है!’’ मीता की आवाज़ में दर्द था.

‘‘हां... पर कहते हैं, उसके बाद से उसकी बीवी को आसपास की बिल्डिंग्स में देखते हैं लोग. ख़ासतौर पर उन कई लोगों ने देखा है, जिनके यहां कपल्स के बीच लड़ाई हो जाती है...’’ सिमरन यह कहते हुए मुस्कुरा दी और आगे बोली,‘‘शायद अपनी ग़लती किसी और को दोहराता देख वो कपल्स को समझाने आ जाती हो.’’

‘‘सिमरन... रात को डरा मत. वैसे भी मेरे पति तो पिछले 15 दिनों से हैं नहीं. तो लड़ाई कैसे होती?’’ मीता की आवाज़ में डर भी था और शिकायत भी थी.

‘‘तो उससे पहले लड़ी होगी...’’ यह कहकर सिमरन हंस पड़ी.

‘‘ऐ चल... सो जाते हैं. तू तो मेरा दम निकाल के ही दम लेगी.’’

‘‘हां... हां, चल मुझे भी नींद आ रही है,’’ सिमरन ने जम्हाई लेते हुए कहा,‘‘और सुन सुबह मुझे जल्दी जाना है घर. तुझे डिस्टर्ब किए बिना चली जाऊं तो डर मत जाना.’’

‘‘ज़रा-सी खटपट से मेरी नींद खुल जाती है यार. तू उठेगी तो नींद अपने आप ही खुल जाएगी.’’

दिनभर का निर्जल उपवास और उसके बाद खाना खाने के तुरंत बाद जैसी नींद आती है, बस वैसी ही नींद आ गई दोनों पड़ोसनों को. सुबह मीता की नींद डोरबेल बजने से खुली. उसकी नज़र बेड के ठीक सामने लगी घड़ी पर पड़ी. आठ बज चुके थे. उसने बिस्तर पर अपने बग़ल में नज़र डाली. सिमरन चली गई थी. उसे आज उठने में बड़ी देर हो गई ये सोचते ही उसे एहसास हुआ कि बाहर प्रशांत होंगे. तब तक डोरबेल दोबारा बजी. मीता झटके से उठी. दरवाज़ा खोला. प्रशांत ही थे.

‘‘अभी तक उठी नहीं हमारी बेग़म?’’ प्रशांत ने उसका उनींदा चेहरा देखकर कहा.

‘‘हां. बड़ी गहरी नींद आई. सिमरन भी कब चली गई पता ही नहीं चला.’’

‘‘चलो नींद अच्छी आई. मतलब डर तो निकल गया तुम्हारा...’’ प्रशांत अपना सामान अंदर लाते हुए बोले.

‘‘हां... चलो मैं चाय चढ़ाती हूं.’’

‘‘मैं समझ गया था, तुम सो रही हो...’’

‘‘कैसे?’’

‘‘वॉट्सऐप किया था तुम्हें. एयरपोर्ट पर लैंड करते ही... पर तुमने देखा ही नहीं था. ’’

‘‘ओह हां. कल तो तुमसे बात करने के बाद से मैंने फ़ोन देखा ही नहीं,’’ यह कहते हुए मीता ने सोफ़े पर पड़ा फ़ोन उठाया.

वॉट्सऐप पर दो बिना पढ़े मैसेज थे. एक प्रशांत का, जो सुबह-सुबह आया था और दूसरा सिमरन का. सिमरन का मैसेज? शायद जगान नहीं चाहती थी तो मैसेज डाल दिया होगा यह सोचते हुए मीता ने स्क्रोल किया तो उसका ध्यान गया कि सिमरन का मैसेज रात साढ़े दस बजे का है. वो एक सांस में मैसेज पढ़ गई ‘‘खाना खाते ही सिमरन को उल्टियां होने लगीं थीं. यहां पास के हॉस्पिटल में उसे दिखाया तो डॉक्टर ने कहा उसे डीहाइड्रेशन हो गया है. सलाइन लगा दी है. वो रातभर हॉस्पिटल में ही रहेगी. मैं सुबह आपको उसकी तबियत की ख़बर दूंगा. -अमन’’
ये पढ़ते ही मीता के हाथे से मोबाइल छूट कर फ़र्श पर गिर पड़ा. उसे ये समझ में आ रहा था कि कौन था वो, जो उससे बार-बार मिलकर उसे कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था.
अगले दिन उसने प्रशांत को फ़ोन मिलाया पर मिला नहीं तो वो समझ गई कि प्रशांत यहां आने के लिए कहीं रास्ते में होंगे. ईमेल चेक किया तो प्रशांत का कोई मैसेज नहीं था. उसे लग रहा था कि प्रशांत उसे सरप्राइज़ देंगे अचानक आकर. अगले दिन करवाचौथ थी तो मीता बहुत अच्छे से तैयार होकर ऑफ़िस गई. शाम को घर आकर वो बहुत अच्छे से तैयार हुई. प्रशांत को फिर फ़ोन मिलाया, पर आउट ऑफ़ कवरेज एरिया का मैसेज सुनाई दिया. सिमरन ने पहले ही कह दिया था कि वो आठ बजे तक तैयार होकर मीता के पास आ जाएगी. फिर दोनों मिलकर पूजा कर लेंगे. अभी वो पूजा का सामान लगा ही रही थी कि डोरबेल बजी. दरवाज़ा खोला तो सामने प्रशांत को देखकर वो उनसे लिपट ही गई.

‘‘अरे, अरे ये क्या है? दरवाज़ा तो बंद कर लो.’’

‘‘मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता.’’

‘‘दूसरों को पड़ सकता है.’’

‘‘मुझे परवाह नहीं. अच्छा चलो जल्दी से फ्रेश हो लो. तब तक मैं पूजा का समान लगाती हूं. फिर पूजा कर के चांद देखकर साथ ही खाना खाएंगे,’’ प्रशांत के हाथ से उनका सामान लेते हुए मीता ने कहा.
प्रशांत अंदर गए और शूज़ उतारने लगे. इतने में दोबारा डोरबेल बजी.

‘‘सिमरन होगी. प्रशांत, तुम जल्दी नहा लो.’’

मीता ने दरवाज़ा खोला. सिमरन ही थी.

‘‘पता है, प्रशांत आ गए हैं,’’ मीता ने चहकते हुए कहा.

‘‘वो तो तुम्हारा चेहरा देखकर ही पता चल रहा है. चलो, पूजा कर लें. मैंने अमन से कह दिया है कि जाओ छत पर और चांद आए तो बता देना.’’

सिमरन को अपने कपड़े लेकर प्रशांत बाथरूम की ओर जाते हुए दिखे. उसने हाथ उठाकर उनको अभिवादन किया और प्रशांत ने मुस्कुराकर जवाब दिया.

तभी फ़ोन की घंटी बजी. मीता ने दौड़कर फ़ोन उठाया.

‘‘क्या बात कर रहे हो? फ़्लाइट डिले हो गई...कल आओगे? ...पर तुम...तुम तो यहीं हो! प्रशांत...प्रशांत तुम मुझे दो मिनट बाद फ़ोन करो.’’

‘‘क्या हुआ.’’

‘‘प्रशांत का फ़ोन है. कह रहे हैं उनकी फ़्लाइट यूं तो आज रात आठ बजे पहुंचनेवाली थी, पर डिले हो गई है और वो कल सुबह आठ बजे तक आ पाएंगे,’’ कांपते हुए मीता एक सांस में कह गई.

‘‘तो वो कौन है?’’ सिमरन चीखी.

दोनों बाथरूम की ओर दौड़े... बाथरूम की लाइट जल रही थी, नल चल रहा था. उन दोनों ने पूरा घर छान लिया पर वहां कोई नहीं था!!!

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