कहानी: सेकेंड होम
रमा कल शाम से इस कोशिश में थी कि चन्दर से अकेले में बात करे. वह बताना चाहती थी कि दोपहर में बिटिया सुधा का फ़ोन आया था. कह रही थी मां बहुत दिन हो गए, आप लोगों से मिले. आ जाओ, सप्ताह भर के लिए. पर चन्दर शाम को आया. और रोज़ की तरह अपने हमउम्र दोस्तों के साथ गार्डन चला गया, फिर वहां से मंदिर. लौटा तो रात हो चुकी थी. सुबह उसे देर से जागने की आदत थी. जब तक वह जागी, चन्दर रोज़ की तरह सुबह की सैर को निकल चुका था. उसने चाय तैयार की और लॉन में लेकर पहुंची. सेकेंड होम में इस तरह के कोई दर्जनभर कॉटेज हैं. जिनमें उनकी तरह के जीवन की सांझ की ओर बढ़ रहे जोड़े रहते हैं.जब तक अख़बार देखने का काम ख़त्म हुआ. चन्दर सुबह की सैर से आ गया. उसने सीधे चन्दर को देखते हुए कहा,‘‘मुझे तुमसे कुछ बात करनी है.’’
‘‘हां, मैं अभी फ्रेश होकर आता हूं,’’ कहकर वह अंदर चला गया. मुश्क़िल से आधा घंटा बीता होगा कि चन्दर उसके सामने था. पूरी तरह से तैयार, उसकी बात सुनने को. वह ऐसा ही था, बहुत जल्दी उसके मन को समझ जाता था. पूरे तीस वर्ष का साथ जो था उनका. आते ही बोला,‘‘हां, कहो.’’
वह एक सेकेंड मौन रही, फिर बोली,‘‘सुधा का फ़ोन आया था कल.’’
‘‘क्या कह रही थी, सब ठीक है?’’
‘‘हां, अपने यहां बुला रही है. सात दिन के लिए क्या कहूं?’’
‘‘मना कर दो.’’
‘‘क्या सोचेगी?’’
‘‘कुछ नहीं,’’ कहकर चन्दर क्षणभर रुका, फिर धीरे से उठकर उसके पास आ गया और पत्नी के दोनों कंधों पर अपने हाथ रखे. हल्का-सा दबाया. फिर बोला,‘‘चिंता मत करो, डरो नहीं, अपने लिए सोचना सीखो.’’ फिर रुककर पत्नी के चेहरे की और देखा, जहां सिर्फ़ हल्की-सी जिज्ञासा थी.
‘‘अच्छा मैं अब चलता हूं, आज वक़ील से मिलना है.’’
वह सोचने लगी. कितना बदल गया है चन्दर. अब फिर से पहलेवाले उत्साह में जीने लगा है. नहीं तो रिटायर होने के बाद तो जैसे हंसना ही भूल गया था.
वह भी अपने कमरे में चली गई. आज पड़ोस के कॉटेज में रहनेवाली मीरा और उसे ब्यूटी पार्लर जाना था. उसका मन नहीं किया कि वह जाने के बारे में विचार करे.
समय के साथ-साथ हर चीज़ बदलती है. पिछले हर माह में भी कितना कुछ बदल गया था. साल के शुरू में जब चन्दर अपनी पैंतीस साल की सरकारी नौकरी के बाद रिटायर हुआ. तो ऐसा लगा एक भरी-पूरी ज़िंदा तस्वीर में से किसी ने सारे रंग चुरा लिए हों. ख़ालीपन का एहसास बड़ी शिद्दत से महसूस होने लगा था. नौकरी थी तो लोगों की आवाजाही लगी रहती थी. चन्दर और वह दोनों अपने-अपने सर्कल में व्यस्त रहते थे. थोड़े दिन से ही ख़ालीपन से घबरा कर, वे बेटे रजत के यहां पहुंच गए. वह एक बड़ा अधिकारी था. पर वहां भी स्वागत में पहलेवाली गर्मजोशी नदारद थी. जैसे-तैसे थोड़े दिन गुज़रे होंगे कि पहले बहू और फिर बेटे के व्यवहार से एहसास होने लगा कि उनके यहां रहने में दिक़्क़तें हैं. छोटी-छोटी बातें, जैसे-बाबूजी इतनी जल्दी क्यों उठ जाते हैं? घूमने जाते हैं तो सुबह-सुबह दरवाज़ा क्यों बजाते हैं? नौकरों से क्यों बात करती हो? बाबूजी, बच्चों के सामने सिगरेट क्यों पीते हैं? मां हर वक़्त किताब लिए क्यों बैठी रहती है?
और आख़िरकार वे वापस आ गए, अपने में पहले से ज़्यादा ख़ालीपन भरे हुए. फिर वे दोनों आशा के पहियों पर सवार पहुंच गए बेटी सुधा के यहां. पर यहां भी थोड़े दिन में ही वे अवांछित होने लगे. दामाद, अक्सर नाक मुंह सिकोड़ने लगा. बच्चों की पढ़ाई में बाधा आ रही थी. और एक दिन बेटी ने ही कह दिया जाने को. और वे लौट आए चुपचाप, अपने लिए तयशुदा ख़ालीपन को स्वीकारने.
सब कुछ ऐसे ही चलता रहता. यदि चन्दर को क्लब में एक दिन राम न मिलता. साथ-साथ शाम गुज़ारते वे कब दोस्त बन गए पता ही नहीं चला. राम ने ही उसे सेकेंड होम के बारे में बताया. राम के पास भी ख़ालीपन की एक कहानी थी. एक ही बेटा था, जो पढ़-लिखकर विदेश जा बसा था. अब न तो वह अपने देश आता और न ही उन्हें बुलाना चाहता था. राम और उसकी पत्नी मीरा ने भी हारकर अपने ख़ालीपन से समझौता कर लिया.
दोनों ने अपनी दोस्ती का विस्तार किया. मीरा और रमा को एक-दूसरे से मिलाया. फिर एक दिन चन्दर और सुधा भी सेकेंड होम आ गए. उन्हें लगने लगा ज़िंदगी में अब भी ख़ूबसूरती बाक़ी है. सेकेंड होम में वक़्त गुज़ारने से दबी हुई रुचियां और इच्छाएं फिर नए आकार लेने लगीं. रमा को पढ़ने और लिखने का बहुत शौक़ था. इन दिनों वह घंटों कहानियों, उपन्यासों, कविताओं पर बात करती है. चन्दर को घूमने का और लोगों से मिलने का बड़ा शौक़ है. अक्सर वह सेकेंड होम के किसी साथी के साथ घूमने निकल जाता है.
और अब फिर सुधा का यह बुलावा. कैसे उसे मना करे? सोचते-सोचते, कब दोपहर हो गई पता नहीं चला. टेलीफ़ोन की घंटी बज रही थी. जल्दी से जाकर उठाया. दूसरी ओर सुधा ही थी. ‘‘मम्मी, मेरी भैया से बात हुई. आप सेकेंड होम में रहने लगे! लोग क्या कहेंगे और हम क्या जवाब देंगे?’’
रमा ने दो पल रुककर अपने आपको समेटा. और फिर पूरी ताक़त से अपने को व्यक्त कर दिया,‘‘तो क्या करें, हम तो ज़िंदगी को तलाश रहे थे. रजत के पास गए और तुम्हारे पास भी. इस उम्र में क्या लोग ख़ुश रहना छोड़ देते हैं? और बताओ तो लोगों के डर से कोई जीना क्यों छोड़ दें?’’ और उसने फ़ोन रख दिया. अब उसे कोई चिंता नहीं थी.
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