कहानी: बलात्कारी की बेटी
‘‘मैं आपसे ये पूछना चाहती हूं कि क्या वजह है कि कल तक मेरी और समीर की शादी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त मेरे पापा ने आपसे मिलने के बाद ये कह दिया की हमारी शादी नहीं हो सकती?’’ अभी मैं पूरी तरह ड्रॉइंगरूम के अंदर पहुंच भी नहीं पाई थी कि वंदिता ने यह सवाल पूछ लिया. सवाल शालीन लहजे में होने बावजूद उसकी आवाज़ में मौजूद तल्ख़ी को मैं पूरी तरह महसूस कर पा रही थी.
मैंने उसे बैठने का इशारा करते हुए पूछा,‘‘ये बात तो मुझसे पहले तुम्हें उनसे पूछनी चाहिए थी?’’ मेरा प्रति प्रश्न सुनकर थोड़ा अनमनी हो आई थी वो.
‘‘मैंने कई बार पूछा उनसे, पर वे कहते हैं कि वे ना तो कुछ बताना चाहते हैं और ना पूछना. बस, यही कह रहे हैं कि ये शादी नहीं हो सकती. आपसे मिलने के पहले वो समीर से मिले, अंकल से मिले तब तो उन्हें इनकार नहीं था हमारी शादी से. आपसे मिलने के बाद ही उनका फैसला बदला है तो कोई तो वजह होगी?’’ थोड़ा कठोर था उसका लहजा अब भी.
‘‘पर मुझे तो तुम्हारे पिता से मिलने के बाद भी तुम दोनों की शादी से इनकार नहीं है. फिर इस बात का जवाब देना मेरे लिए ज़रूरी नहीं है वंदिता... और क्या तुमने समीर को इस बारे में बताया है कि तुम्हारे पिता इस शादी के लिए तैयार नहीं हैं?’’
‘‘हां. और ये भी कि मैं इस बारे में आपसे बात करने जा रही हूं कि आख़िर क्यों उन्होंने आपसे मिलने के बाद हमारी शादी से इनकार कर दिया. उसने तो मुझे रोका भी आपसे बात करने से, पर मैंने अनसुना कर दिया,’’ बड़ी साफ़गोई से वंदिता बोली. मुझे उसकी यही साफ़गोई तब भी पसंद आई थी, जब वो मुझसे पहली बार मिली थी.
‘‘पता नहीं क्यों, पर मुझे इस बात का एहसास हो रहा था कि तुम्हारे पिता यही करेंगे. मैंने इस बारे में नरेश से बात की थी. उन्होंने मुझसे यही कहा था कि यदि वंदिता इस बारे में पूछे तो उसे सच ही बताना, पर मैं तुम्हें ये सच्चाई अपने पति के सामने ही बताना चाहती हूं,’’ मन में चल रही उहापोह के बावजूद बड़े आत्मविश्वास से बोलती चली गई मैं,‘‘नरेश, ज़रा इधर आइए ना. वंदिता आई है.’’
‘‘हैलो वंदिता. कैसी हो?’’ दो-तीन मिनट मेरे और वंदिता के बीच पसरे मौन के बीच इनकी आवाज़ मुखर हुई.
‘‘मैं अच्छी हूं अंकल, आप कैसे हैं?’’ वंदिता ने औपचारिकता निभाई.
‘‘सुनो, वही हुआ जिसकी मुझे आशंका थी. अब वंदिता के पिता समीर से इसकी शादी नहीं करना चाहते. वंदिता कारण पूछ रही है और मैं उसे ये कारण आपकी मौजूदगी में बताना चाहती हूं,’’ मैंने प्रश्नसूचक निगाहों से इनकी ओर देखा और आंखों ही आंखों में स्वीकृति पाकर मैंने वंदिता की ओर देखकर कहना शुरू किया,‘‘देखो वंदिता मैं जो तुम्हें बताने जा रही हूं, उस बात ने मेरे जीवन के कोई एक-दो बरस मुझे बहुत दुखी रखा. ये कहूं तो ग़लत न होगा कि मैं डिप्रेशन में भी आ गई थी. और उम्र के इस पड़ाव पर ५२ वर्ष की उम्र में मैं उस सब से उबर चुकी हूं. ज़िंदगी को एक बड़े परिदृश्य में देख सकती हूं. शायद इसकी पहली वजह है मेरा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना और दूसरी वजह है नरेश जैसा जीवनसाथी पाना. और तुमसे भी यही कहूंगी कि आगे जो मैं तुम्हें बताने जा रही हूं उसे तुम भी बड़े परिदृश्य में देखना, क्योंकि समीर तुम्हें सच्चे दिल से चाहता है इसलिए मैं तुम्हें अपने घर की बहू बनाने के फ़ैसले को कभी नहीं बदलना चाहूंगी..
‘‘बात तब की है जब मैं अपने इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में हॉस्टल में पढ़ रही थी. एक दिन लायब्रेरी में पढ़ते हुए मुझे समय का ध्यान ही नहीं रहा और शाम के छह बज गए. ठंड के दिन थे. रात घिर आई थी. मैं जल्दी-जल्दी हॉस्टल की ओर जा रही थी कि झाड़ियों में से निकले दो हाथों ने मुझे मज़बूती से पकड़कर अपनी ओर खींचा. वहां दो लड़के थे. उनके मुंह से शराब की गंध आ रही थी. मैं ख़ुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश कर रही थी, लेकिन दो बलिष्ठ लड़कों के आगे मैं ऐसा करने में असफल रही. वो मेरे साथ ज़बर्दस्ती करना चाहते थे. एक लड़के ने तो ऐसा किया भी, पर जब दूसरा ऐसा करने जा रहा था, सड़क से किसी मंत्री का एक लंबा काफ़िला गुज़रा. जिसके आगे-पीछे पुलिस की गाडि़यां सायरन बजाते हुए चल रही थीं. वो दोनों डरकर वहां से भाग निकले... मैं भी वहां से उठकर किसी तरह हॉस्टल तक पहुंची. बहुत घबराई हुई थी, लेकिन इस हादसे के बारे में किसी को बताऊं या नहीं इसी क़श्मक़श में थी. तब लड़कियों का घर से निकलकर हॉस्टल में पढ़ाई करना बड़ी बात होती थी. मैं दहशत में थी, पर ये जानती थी कि यदि मैंने इस बारे में किसी को बताया तो मेरी पढ़ाई बंद करा दी जाएगी. ये भी जानती थी कि ये एक ऐसा हादसा था, जिसमें मेरी कोई ग़लती नहीं थी. हताशा-निराशा, दहशत और अकेलेपन की यातना से गुज़रते हुए मैंने ठान लिया कि इस बारे में किसी को नहीं बताऊंगी, अपने पैरों पर खड़ी होकर सशक्त बनूंगी.
‘‘फिर इंजीनियरिंग के बाद मुझे नौकरी मिल गई. पर जब कभी उस गंदी घटना की याद हो आती मैं परेशान हो उठती थी. उस पुरुष का चेहरा मैं कभी नहीं भूल पाती थी. फिर ख़ुद को और व्यस्त रखने के लिए मैंने नौकरी के बाद के घंटों में एक अनाथाश्रम के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया. मेरे घर पर जब कभी मेरी शादी की चर्चा होती मैं और भी डर जाती, कुछ न कुछ बहाने कर के टाल दिया करती थी. इस अनाथाश्रम में ही मेरी मुलाक़ात नरेश से हुई. वो एक डॉक्टर होने के नाते यहां आकर इन बच्चों का मु़फ्त इलाज किया करते थे. जब हम एक-दूसरे के क़रीब आए और नरेश ने मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो मैंने उन्हें अपने साथ घटी पिछली घटना के बारे में बताया. कहा कि मैं उनसे शादी नहीं कर सकती. धीरे-धीरे उन्होंने ही मुझे समझाया कि जब मैं ख़ुद मानती हूं कि ये एक बुरा हादसा था तो मुझे ये भी मानना होगा कि ऐसे हादसे से उबरकर निकलना ही ज़िंदगी है. नरेश की कही हुई एक बात जिसने मुझे उन्हें अपना जीवनसाथी बनने पर मजबूर कर दिया वो थी,‘मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं दीप्ति और मैं एक मनोरोगी की ग़लती की सज़ा तुम्हें नहीं भुगतने दूंगा.’ फिर हमारी शादी हुई और अगले ही वर्ष समीर के पैदा होने के बाद मैंने अपने पिछले जीवन की कटुता को नरेश के प्यार और समीर की मुस्कान के बीच भुला दिया.
‘‘परसों जब मैंने तुम्हारे पिता को देखा तो वो घटना दोबारा मेरे ज़हन में आ गई, क्योंकि तुम्हारे पिता ही वो शख़्स हैं, जिन्होंने मेरे साथ रेप किया था. तुमने शायद ध्यान न दिया हो, पर उस दिन तुम्हारे पिता मुझसे नज़रें नहीं मिला पा रहे थे. उनके जाने के बाद ही मुझे अंदेशा हो गया था कि वो इस शादी से इनकार करेंगे और मैंने पूरी बात नरेश को बता दी थी.
‘‘वंदिता इस बारे में समीर को कुछ मालूम नहीं है. शायद इसकी ज़रूरत ही नहीं थी, क्योंकि मैं और नरेश ऐसा नहीं चाहते थे. पर यदि अब तुम दोनों की शादी में तुम्हारे पिता के इनकार की वजह बतानी पड़ी तो हम उसे पूरी बात बताएंगे. इस सब के बावजूद मैं और नरेश अब भी चाहते हैं कि तुम दोनों की शादी ज़रूर हो, क्योंकि तुम दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हो.’’
मेरी ओर फटी-फटी आंखों से देख रही वंदिता की आंखों से आंसू टपक रहे थे,‘‘क्या...मैं...आपसे सॉरी बोलने का हक़ भी रखती हूं आंटी?’’ सिसकते हुए वंदिता ने कहा.
‘‘अपने पिता की ग़लती के लिए ख़ुद को दोषी क्यों समझती हो वंदिता? और मैंने तो पहले ही कहा है कि चीज़ों को बड़े परिदृश्य में देखने की कोशिश करो. तुम्हारे पिता ने मेरे साथ ऐसा किया, उनका किया उनके साथ है. तुम जीवनसाथी के रूप में मेरे बेटे की पसंद हो, तुम्हारा अपना एक अलग व्यक्त्वि है, जिसे मैंने तुम्हारे पिता से मिलने के पहले पसंद किया है.’’
‘‘मैं अपने पापा से बात करना चाहती हूं आंटी,’’ लगभग सुबकते हुए वंदिता वहां से चली गई.
मैं और नरेश भी इस स्थिति में नहीं थे कि उसे कुछ समझा पाते.
‘‘पापा मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूं,’’ लाल सूजी हुई आंखों के साथ वंदिता अपने पिता के सामने थी. ‘‘समीर से मेरी शादी के इनकार की वजह मैं आपसे जानना चाहती हूं. मैं आज उसकी मां से मिलने गई थी. उन्होंने मुझे कुछ बताया है, पर मैं आपके हिस्से का सच जानना चाहती हूं, पापा!’’
‘‘मैं सिर्फ़ यही कहना चाहता हूं बेटा कि जो उसकी मां ने तुम्हें बताया वही सच है. उस दिन मैं और मेरा दोस्त... ऐसा नहीं है कि नशा उतर जाने पर मैंने अपनी ग़लती के बारे में सोचा नहीं. सोचा तो...पर शायद ये कि कहीं इस बात का पता मेरे घरवालों को न चल जाए. फिर कुछ समय के बाद जब इस बारे में सोचा तो पुरुष होने की आड़ में ग़लत होने के बावजूद ख़ुद को सही समझकर.
तुम्हारी मां से शादी हुई तो एक मन हुआ कि उसे इस बारे में बता दूं, पर सच तो ये है कि उसके इस दुनिया से चले जाने तक भी अपनी ग़लती उसके सामने क़ुबूलने की हिम्मत नहीं जुटा पाया मैं. जब तुम पैदा हुईं तो एक बार ये सोच भी दिमाग़ में आई कि कहीं मेरी बेटी के साथ भी कभी ऐसा कोई हादसा न हो जाए, पर फिर इस विचार को कहीं कोने में धकेल दिया मैंने, ये सोचकर कि उसके साथ ऐसा नहीं होगा. मैं ऐसा कर के पछताया या मुझे ग्लानि हुई ये तो नहीं कहूंगा, क्योंकि जब भी ग्लानि जैसा कोई विचार आया मैंने उसे झूठे पुरुषोचित दंभ की दीवार के पीछे दबा दिया...
‘‘परसों जब समीर की मां से मिला तो बहुत अजीब एहसास हुआ. नज़रें भी नहीं मिला पा रहा था उनसे. ज़ाहिर है, भले ही मैंने अपनी ग़लती को पुरुषत्व का जामा पहना कर छुपा दिया, भले ही मैंने ख़ुद को कभी ग़लत नहीं माना, पर मेरा अवचेतन मन जानता है कि मैंने ग़लत किया, मैं गुनाहगार हूं. फिर मैं नहीं चाहता था कि वो लोग समीर से तुम्हारी शादी करने से मना करें, क्योंकि वो ऐसा करेंगे तो तुम्हें ज़्यादा दुख होगा इसलिए मैंने ही तुम्हारी शादी से इनकार कर दिया.
‘‘तुम मुझसे नफ़रत तो नहीं करने लगी हो ना वंदिता? तुम मुझे गुनाहगार ठहरा लेना, पर मुझसे नफ़रत मत करना वंदिता...मैं ये बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा... मैं इतना शर्मिंदा हूं कि उस घटना के लिए आज पुलिस के सामने आत्म-समर्पण करने भी तैयार हूं वंदिता...पर मुझसे नफ़रत मत करना मेरी बच्ची...मैं जी नहीं पाऊंगा,’’ सिसक-सिसककर रोते अपने पिता को संभालने के लिए दो शब्द भी नहीं कह सकी थी वंदिता.
‘‘मैं मां-पापा से बात कर के आ रहा हूं वंदिता. और मैं अब भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूं, जितना पहले करता था. इस पूरे हादसे में तुम्हारा क्या दोष है? पापा-मां तो राज़ी हैं ही. हम जल्द ही कोर्ट मैरिज कर लेंगे,’’ समीर वंदिता को समझा रहा था.
‘‘मैं अजीब उलझन में हूं समीर. बहुत प्यार करती हूं तुमसे. तुम्हारी मां में मुझे अपनी मां की छवि नज़र आती है. अपने पिता की ग़लती भी जानती हूं, पर चाहकर भी उनसे नफ़रत नहीं कर पाती...क्या मैं ग़लत हूं? जब उन्हें अपनी ग़लती का पछतावा होना चाहिए था, तब नहीं हुआ. अब वो पछता रहे हैं, अपनी ग़लती के लिए पुलिस के आगे आत्म-समर्पण करने की बात कर रहे हैं. मां तो पहले ही चल बसीं. कल मैंने पापा की आंखों में इस बात की याचना देखी है कि मां के बाद अब मैं भावनात्मक रूप से उनसे दूर न हो जाऊं. मैं क्या करूं समीर?’’ वंदिता की आवाज़ में दर्द था. ‘‘पेशे से वक़ील हूं मैं, पर अपने ही जीवन के इस केस में किसकी तरफ़ से पैरवी करूं, ये भी नहीं समझ पा रही. मैं ही वक़ील और मैं ही जज हूं यहां, पर ये फ़ैसला मेरे लिए कितना मुश्क़िल है समीर! बरसों पुराने हुए एक बुरे हादसे में एक तरफ़ मेरे पिता को गुनाहगार पाती हूं तो ख़ुद को भी उस गुनाह में पता नहीं क्यों शामिल समझने लगती हूं.
तुम्हारे माता-पिता की परिपक्वता पर ख़ुश होती हूं तो कभी-कभी इस बात पर क्षुब्ध भी कि क्यों नहीं तुम्हारी मां ने अपने साथ हुई इस घटना के बारे में तभी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई? कम से कम मेरे पिता को सज़ा मिल गई होती. फिर ख़ुद ही ये तर्क भी देती हूं कि उस समय ऐसा करना आसान नहीं था. सोचती हूं कि क्या उस समय मैं होती तो ऐसा कर पाती? ख़ुद को उस जगह रखती हूं तो तुम्हारी मां सही भी लगती हैं...और सब जानने के बाद तुमसे विवाह करने की सोचूं तो ख़ुद को तुम्हारे परिवार में उस तरह बराबरी का दर्जा पाते नहीं देख पाती, उस तरह आज़ाद नहीं देख पाती हूं जैसा कि इस घटना के बारे में जानने से पहले कर पाती थी,’’ वंदना की आंखें पनीली हो गईं.
‘‘मां ने मुझसे कहा है कि वंदिता से शादी करने का फ़ैसला तुम तभी लेना समीर, जब ख़ुद से ये वायदा ले लो कि चाहे जो हो जाए जीवन में कभी इस हादसे के बारे में वंदिता से दोबारा बात नहीं करोगे, ना ही किसी नोक-झोंक में कभी इसका उल्लेख करोगे और यदि हमें ऐसा करते देखो तो हमें भी इस बात की याद दिलाओगे कि हमने भी तुमसे यही वायदा किया था कि हम भी ऐसा नहीं करेंगे,’’ समीर ने वंदिता का हाथ अपने हाथों में ले लिया.
‘‘मैं जानता हूं, वो हमारे यहां कभी नहीं आएंगे वंदिता. पर आज तुम दोनों की शादी हुई है. बेटी को शादी के जोड़े में देखकर आशीर्वाद देना, उसे अपने घर से विदा कर के ससुराल भेजना, हर पिता का अरमान होता है. मैं और तुम्हारी मां ये चाहते हैं कि समीर को और तुम्हें हमारी ही तरह आज के दिन उनका आशीर्वाद भी मिले,’’ नरेश ने मेरे और उनके पैर छूते हुए नवविवाहित समीर और वंदिता को उठते हुए कहा,‘‘ड्राइवर से मैंने कह दिया है कि मंदिर के बाद तुम दोनों को सीधे वंदिता के पापा से मिलवा लाए. और हां, बच्चों जल्दी लौट आना, क्योंकि हम दोनों शाम की चाय पर तुम्हारा इंतज़ार करेंगे.
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