कहानी: मौन स्वीकृति
उस समय मैं एमए फाइनल ईयर में थी. परीक्षा की तारीख नजदीक थी. तैयारी के लिए अपने कालेज की लाइब्रेरी में कुछ महत्त्वपूर्ण नोट्स तैयार करने में लगी हुई थी. मेरी ही टेबल पर सामने एक लड़का भी अपने कुछ नोट्स तैयार करने में लगा था. मैं लंच ब्रेक में लाइब्रेरी जाती और वह लड़का भी उसी समय मेरे ठीक सामने आ कर बैठ जाता. एक दिन जब मैं लाइब्रेरी की अलमारी से कुछ किताबें हाथों में ले कर आ रही थी तभी उस के पास पहुंचते ही उन में से कुछ किताबें फिसल कर उस के पैरों पर जा गिरीं.
‘‘सौरी,’’ बोलते हुए मैं पुस्तकों को उठाने लगी. उस ने किताबों को उठाने में मेरी मदद की और मेरे हाथों में उन्हें थमाते हुए बोला, ‘‘नो प्रौब्लम, कभीकभी ऐसा हो जाता है.’’
उस के बाद हम दोनों में अकसर बातें होने लगीं. बातचीत से पता चला कि वह गांव का रहने वाला एक गरीब विद्यार्थी था जो एमए की तैयारी कर रहा था और उस का मकसद बहुत ऊंचा था. वह एमए करने के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी करना चाहता था. वह अपने कुछ साथियों के साथ एक कमरा किराए पर ले कर रहता था और वे लोग अपना खाना खुद बनाते थे और बहुत ही कम पैसे में अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहते थे. वे सभी किसानों के लड़के थे. उस का नाम रवि था.
रवि गरीब जरूर था लेकिन शरीर से सुडौल और मन से शांत चित्त वाला एक बहुत ही अच्छे स्वभाव का मधुरभाषी व दूसरों की मदद करने की भावना लिए एक हंसमुख लड़का था. कभीकभी बहुत आग्रह करने पर रवि मेरे साथ कालेज के कैफेटेरिया में जाता और एक कप चाय से ज्यादा कुछ नहीं लेता. जबरन चाय का पैसा मैं ही देती.
लगातार कई दिनों तक एक ही टेबल पर एकसाथ नोट्स बनाते हुए एकदूसरे के प्रति काफी लगाव महसूस होने लगा और जब कभी रवि कालेज की लाइब्रेरी में नहीं आता तो मेरा मन उस के लिए बेचैन हो उठता. उस का भी एमए फाइनल था किंतु उस का सब्जैक्ट अलग था, इसलिए मेरी कक्षा में नहीं बैठता था.
मेरे पिताजी एक उच्च सरकारी पदाधिकारी थे और मां के गुजर जाने के बाद मैं ही उन के लिए बेटीबेटा सबकुछ थी. मैं जो कुछ चाहती, पिताजी मुझे उपलब्ध कराते. मैं इकलौती बेटी थी. घर में कोई कमी नहीं थी. पिताजी ने हैदराबाद में एक फ्लैट खरीदा था. रिटायरमैंट के बाद वे वहीं रहने लगे थे.
एमए करने के बाद हम दोनों अलगअलग हो गए. रवि एमए करने के बाद सिविल सर्विसेज के लिए कंपीटिशन की तैयारी करने लगा.
कई कंपीटिशन की तैयारी करते हुए अंत में मुझे इनकम टैक्स औफिसर की नौकरी मिल गई. रवि किसी जिले में फौरैस्ट औफिसर बन गया. अलगअलग क्षेत्र में होने के कारण हमारा संबंध भी टूट गया.
इनकम टैक्स औफिसर के रूप में मेरे साथ ही प्रवीण का भी चयन हुआ था. प्रवीण लंबा, गोरा और स्मार्ट था. हमारी ट्रेनिंग दिल्ली में थी. जिस इंस्टिट्यूट में टे्रनिंग हो रही थी उसी बिल्ंिडग में हमारा होस्टल भी था, किंतु हमारा एकदूसरे से महज औपचारिक संबंध था.
एक दिन शाम को ट्रेनिंग के बाद मैं शौपिंग करने बाजार गई थी. वहां प्रवीण भी मिल गया.
‘‘अकेले ही शौपिंग करने आई हो?’’ प्रवीण ने मुसकराते हुए पूछा. ‘‘हां,’’ उसे देख कर जाने कैसे मेरे चेहरे पर भी मुसकराहट बिखर गई.
‘‘शौपिंग हो गई कि अभी बाकी है?’’
‘‘हो गई,’’ मैं ने संक्षिप्त जवाब दिया.
‘‘फिर चलो, कौफी पी कर होस्टल लौटते हैं.’’
प्रवीण के आग्रह को मैं ठुकरा न पाई और हम दोनों एक कौफी हाउस में आ कर एक टेबल पर बैठ गए. ‘‘तुम कहां के रहने वाले हो?’’ मैं ने पूछा तो प्रवीण बोला, ‘‘मेरठ. वहां मेरे पिताजी की होलसेल की 4 दुकानें हैं.’’
‘‘अच्छा, तो तुम बिजनैसमैन हो.’’
‘‘हां, लेकिन अब तो नौकरी में हूं.’’
‘‘अच्छा है, कम से कम अब बेवजह इनकम टैक्स वाले तुम्हारे परिवार को तंग नहीं करेंगे.’’
‘‘हां, कुछ तो फायदा होगा ही.’’
कौफी पी कर हम लोग एक ही औटो में होस्टल आए. इस के बाद हम लोग ट्रेनिंग के दौरान रिसेस में एकसाथ चाय पीते, लंच भी साथ लेते और कभीकभी डिनर में भी साथ हो जाते. टे्रनिंग के बाद अकसर हम लोग मार्केट निकल जाते. सारे खर्च प्रवीण ही करता. जब कभी मैं पेमैंट करने की कोशिश करती, वह रोक देता.
यह संयोग ही था कि ट्रेनिंग के बाद मेरी पोस्ंिटग मेरठ में हो गई और उस की हैदराबाद में. प्रवीण को एक दिन मैं अपने पिताजी से मिलाने ले गई. प्रवीण ने उन्हें प्रणाम किया और सोफे पर पसर गया.
‘‘यह प्रवीण है, इसी शहर में इनकम टैक्स औफिसर है.’’
‘‘तुम लोग कहां के रहने वाले हो, बेटा?’’ पिताजी ने पूछा तो उस ने सोफे पर पसरे ही पसरे कहा, ‘‘मेरठ.’’
‘‘तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं?’’
‘‘इस के परिवार का बहुत बड़ा बिजनैस है पापा,’’ मैं बोली तो पापा कुछ बोले तो नहीं किंतु उन के हावभाव से लग रहा था प्रवीण के व्यवहार से वे संतुष्ट नहीं हैं.
उस के बाद प्रवीण उन से कभी न मिला. किंतु मैं अकसर प्रवीण के मांबाबूजी से मिलती. उन का व्यवहार मेरे प्रति बहुत अच्छा था. वे लोग मुझे बेटी सा मानते. कुछ न कुछ इनकम टैक्स से संबंधित उन का काम रहता, जिसे मैं अपने पद के प्रभाव से जल्दी निबटा देती.
हम दोनों के बीच संबंध गहराता जा रहा था. जब प्रवीण मेरठ आता तो मेरे क्वार्टर में मुझ से मिलने अवश्य आता. हम शाम में एकसाथ डिनर लेते. प्रवीण को रात में खाने से पहले डिं्रक की आदत थी. मैं उसे डिं्रक लेने से रोकती तो वह हंस कर टाल जाता. मैं सोचती कि किस अधिकार से प्रवीण को डिं्रक लेने से रोकूंगी, इसलिए वह नहीं मानता, तो चुप हो जाती.
एक दिन प्रवीण मेरे क्वार्टर में आया हुआ था. उस दिन मैं ने नौनवेज बनाया था और प्रवीण अपने साथ व्हिस्की की एक बोतल लेते आया था. उस दिन उस ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी और उस का सुरूर उस पर चढ़ने लगा था.
मैं ने कहा, ‘‘डिं्रक की आदत अच्छी नहीं है. धीरेधीरे तुम इस के आदी बनते जा रहे हो. आज तो तुम ने कुछ ज्यादा ही ले ली है. अब घर कैसे जाओगे?’’
‘‘यार, आज यहीं सो जाता हूं. घर पर इस अवस्था में जाऊंगा तो मांबाबूजी को बुरा लगेगा. मैं पीता जरूर हूं लेकिन उन से छिपा कर. बाबूजी जानेंगे तो उन्हें बहुत दुख होगा.’’
‘‘लेकिन तुम्हारे बाबूजी खोजेंगे. तुम घर चले जाओ. ड्राइवर को बोल देती हूं, तुम्हें पहुंचा देगा.’’
‘‘नहीं, आज यहीं सोने दो. ड्राइवर से बाबूजी पूछेंगे और कहीं वह सचसच बता देगा तो यह और बुरा होगा.’’
‘‘लेकिन मेरे यहां तो एक ही बैड है. यहां अब तक कोई आया ही नहीं, इसलिए इस की आवश्यकता नहीं महसूस हुई.’’ मैं अब चिंतित होने लगी थी.
‘‘तुम चिंता मत करो, मैं नीचे सो जाऊंगा.’’
‘‘बाबूजी को फोन कर दो. तब तक मैं अपने सोने का इंतजाम करती हूं.’’
मैं ने सोचा आज डाइनिंग टेबल पर ही बैड लगा देती हूं.
प्रवीण ने अपनी मां को फोन कर के बताया कि वह आज अपने दोस्त के साथ रह गया है. कल आएगा. उस ने जानबूझ कर मेरे साथ रहने के बारे में न बताया. अब यह बताता भी कैसे कि वह मेरे साथ रात में अकेले रुका हुआ है. लोग जानेंगे तो क्या कहेंगे.
उस का मेरे घर में अकेले रुकना मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा था. आखिर वह पुरुष है. देररात में उस ने कुछ गलत करने का प्रयास किया तो मैं अकेले उस का कैसे विरोध कर पाऊंगी.
लेकिन अब और कुछ हो भी नहीं सकता था. मैं ने अपना बैड डाइनिंग टेबल पर लगाया तो वह बोला, ‘‘मैं तुम्हारे बैड पर सोऊं और तुम डाइनिंग टेबल पर, यह अच्छा नहीं लगता. तुम अपने कमरे में सो जाओ. मैं ही डाइनिंग टेबल पर सो जाता हूं.’’
‘‘लेकिन यह अच्छा नहीं होगा, आखिर तुम मेरे गेस्ट भी तो हो.’’
इन्हीं तर्कवितर्क में कब वह नशे में आ कर बैड पर सो गया, पता ही नहीं चला. फिर जब मैं डाइनिंग टेबल पर सोने गई तो पतला बैड होने के कारण उस पर मुझे नींद नहीं आ रही थी, साथ ही उस पर से रात में ढुलक कर गिरने का भी भय लग रहा था. सो, मैं ने सोचा कि प्रवीण अब होश में तो है नहीं, क्यों न मैं पलंग पर किनारे सो जाऊं.
फिर नींद में प्रवीण जाने कब मेरे पास सरक आया. जीवन में पहली बार किसी पुरुष की देह को इतनी नजदीक पा कर मैं अपने होश खो बैठी और हम सारी मर्यादाएं भूल कर एक हो गए.
जब सुबह नींद टूटी तो हम अस्तव्यस्त कपड़ों में एकदूसरे से लिपटे सो रहे थे. मैं झटके से अलग हटी. मुझे लगा मुझ से एक बड़ी गलती हो गई है. हां, गलती तो मेरी ही थी. मैं ही तो उस के साथ पलंग पर सो गई थी. अगर ऐसा नहीं करती तो यह शर्मनाक घटना न घटती.
प्रवीण भी आंखें नीची किए हुए उठा और गुसलखाने चला गया. जब वह लौटा तब मैं मायूस सा चेहरा बनाए बैठी थी. वह किचन में चाय बनाने चला गया. मैं जानती थी कि उसे किचन में चाय का सामान नहीं मिलेगा. इसलिए बिना कुछ बोले दूध, चाय पत्ती और चीनी उस के सामने रख कर चली आई. वह एक ट्रे में 2 कप चाय ले कर आया और मेरी तरफ एक कप चाय बढ़ाते हुए कहा, ‘‘चाय पियो, जो होना था हो गया.’’
‘‘लेकिन यह अच्छा नहीं हुआ,’’ मैं दुखी हो कर बोली.
‘‘अब जानबूझ कर तो हम ने कुछ किया नहीं, रितु. कभीकभी वह हो जाता है जो हम नहीं चाहते. लेकिन चिंता न करो हम जल्दी ही शादी कर लेंगे.’’
‘‘लेकिन तुम्हारे मांबाबूजी इस के लिए तैयार होंगे तब तो?’’
‘‘उन्हें मैं मना लूंगा. वे हमेशा ही तुम्हारी प्रशंसा करते हैं.’’
‘‘लेकिन मेरे पापा न मानेंगे.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘वे अपने एक दोस्त के बेटे से मेरा रिश्ता करना चाहते हैं.’’
‘‘अब यह जिम्मेदारी तुम्हारी है कि उन्हें कैसे मनाओगी.’’
उस रात के बाद हम लोग अकसर रात एकसाथ बिताते.
प्रवीण ने अपने मांबाबूजी से कहा तो कुछ नानुकुर के बाद वे लोग हमारी शादी के लिए तैयार हो गए. हालांकि बिजनैसमैन कम्युनिटी के उस के कई रिश्तेदार अपनी लड़की से उस की शादी के लिए जोर दे रहे थे किंतु मेरे साथ शादी की उस की जिद पर सभी चुप हो गए.
मैं अपने बाबूजी की इकलौती बेटी थी. मां के निधन के बाद उन्होंने मुझे बेटे जैसा पालापोसा था. मेरी जिद के आगे उन्हें भी झुकना पड़ा और आखिरकार हम लोग विवाह के बंधन में बंध गए.
शादी का हवाला दे कर हम लोगों ने अपनी पोस्ंिटग अगलबगल के ही जिलों में करा ली. शादी के पहले प्रेमीप्रेमिका के बीच जो संबंध होते हैं वे बड़े ही मधुर और उल्लासवर्धक होते हैं क्योंकि एकदूसरे को पाने के लिए उन के दिलों में जज्बा होता है. किंतु जब प्रेमीप्रेमिका आपस में शारीरिक संबंध बना लेते हैं तब इस का आकर्षण धीरेधीरे कम होने लगता है.
हम लोगों के बीच भी यही हो रहा था. शादी के बाद कुछ महीनों तक तो हम लोग एकदूसरे के साथ बड़े ही उल्लास से मिलते रहे, किंतु बाद में धीरेधीरे प्रवीण के व्यवहार में परिवर्तन होने लगा. शुक्रवार को कभी मैं उस के यहां चली जाती और कभी वह मेरे यहां आ जाता क्योंकि हमारे औफिस में शनिवार को छुट्टी रहती थी.
लेकिन इधर मैं देख रही थी कि वह न तो मेरे यहां आना चाह रहा है, न मेरा उस के यहां जाना उसे पसंद आ रहा है. वह कुछ कहता तो नहीं था लेकिन मैं उस के हावभाव से महसूस कर रही थी कि उस का ध्यान मुझ से हट कर कहीं और भटक रहा है.
जब मैं कभी उस से अपने यहां आने के लिए कहती तो वह काम के बोझ का बहाना बना कर टाल देता और जब कभी मैं उस के यहां पहुंच जाती तो औफिस का वर्कलोड बता कर रात में देर से लौटता.
एक दिन शाम को मैं सप्ताहांत में प्रवीण के यहां पहुंची. प्रवीण अभी औफिस से नहीं लौटा था. हम लोगों के पास एकदूसरे के क्वार्टर की चाबी रहती थी. मैं ने देखा कि उस के वार्डरोब में कपड़े बेतरतीब ढंग से रखे हुए थे. सोचा, प्रवीण अकेले रहता है, इसलिए कपड़ों को जैसेतैसे रख देता है. फिर मैं इन कपड़ों को एकएक कर निकालने लगी ताकि उन्हें तह कर के ढंग से रख सकूं. तभी छोटा सा जेवरों का डब्बा नीचे गिर गया. मैं ने उसे खोल कर देखा तो उस में एक बहुत ही कीमती प्लेटिनम धातु में जड़ी हीरे की अंगूठी थी. मैं सोचने लगी कि इस अंगूठी के बारे में तो प्रवीण ने मुझे कभी नहीं बताया. यह कहां से आई और यहां अलमारी में कपड़ों में छिपा कर क्यों रखी हुई है. फिर मैं ने सोचा या तो प्रवीण को इसे किसी ने रिश्वत में दी होगी या किसी प्रेमिका को देने के लिए उस ने खरीदी होगी और मैं देख न लूं, इसलिए इसे यहां छिपाया है.
फिर मुझे संदेह हुआ कि कहीं यह रिश्वत में मिली अंगूठी तो नहीं है क्योंकि अगर उसे अंगूठी अपनी किसी प्रेमिका को देनी होती तो उस से पसंद करा कर उसे तुरंत दे दी होती. यहां छिपा कर नहीं रखता. इसलिए मैं दूसरे रखे और कपड़ों को भी वहां से हटाने लगी तो देखा, 2 हजार रुपयों की कई गड्डियां कपड़ों में रखी हुई हैं.
यह देखते ही मेरे तो होश ही उड़ गए. अभी हम दोनों की सर्विस नईर् थी और उस ने लोगों से रिश्वत लेना शुरू कर दिया था. मैं प्रवीण की प्रतीक्षा करने लगी और यह सोचा कि आने के बाद उसे समझाने की कोशिश करूंगी कि यह काम ठीक नहीं है, जल्दी से जल्दी इसे छोड़ दे वरना वह किसी मुसीबत में फंस सकता है और नौकरी भी जा सकती है.
प्रवीण अपनी आदत के अनुसार रात 8 बजे लौटा.
मैं ने पूछा, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’
‘‘अब तुम से क्या बताऊं? औफिस में बहुत काम रहता है. देर हो ही जाती है.’’
‘‘अच्छा यह बताओ, इतना कैश घर में कहां से आया और यह हीरे की अंगूठी?’’
मेरी बात सुन कर पहले तो वह झेंपा, फिर बोला, ‘‘अरे, यह मेरे एक मित्र की है.’’
‘‘तो इन को तुम ने अपने घर में क्यों रखा है?’’
अचानक ही यह सब घटित हो गया था. सच तो यह था कि वह ऐसे हालात के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था. उस से कोई जवाब देते नहीं बना तो बोला, ‘‘एक पार्टी ने काम से खुश हो कर दे दिया था.’’
‘‘आखिर हमारे पास क्या नहीं है प्रवीण, जो हमें रिश्वत लेने की जरूरत पड़े? घर का अच्छा बिजनैस है, अच्छी आमदनी है. फिर यह अनैतिक काम क्यों. सोचो, हम क्या करेंगे इतने पैसे का. फिर कोई भी रिश्वत गलत काम के लिए ही देता है और सरकार को टैक्स चोरी के कारण इस से काफी नुकसान होता है. कभी न कभी गलत काम करने वाले फंस जाते हैं.’’
‘‘अब कौन ऐसा है जो रिश्वत नहीं लेता, फिर ईमानदारी का ठीकरा हमारे ही सिर पर क्यों?’’ प्रवीण बौखला कर बोला, ‘‘मौका मिलने पर औफिस का चपरासी भी अपने स्तर से कुछ न कुछ वसूलता है.’’
‘‘अब ये बातें रिश्वत को सही तो नहीं ठहराएंगी न.’’ प्रवीण को समझाने का मैं ने बहुत प्रयत्न किया किंतु मेरी बातों का उस पर कोई असर नहीं पड़ा. दूसरे दिन मैं लौट आई.
प्रवीण को शराब पीने की आदत तो पहले से ही थी. अब वह और भी महंगी शराब पीने लगा. वह कई पार्टियों में जाने लगा. बाद में मुझे कई स्रोतों से खबर मिली कि वह रात में किसी होटल में कौलगर्ल के साथ अपनी रातें रंगीन करता है.
एक दिन कुछ आवश्यक कार्य से मुझे अचानक हैदराबाद जाना पड़ा. मैं ने प्रवीण को फोन लगाया. लेकिन उस का फोन स्विचऔफ बता रहा था, इसलिए सीधे उस के क्वार्टर में पहुंची. उस समय रात के 9 बज रहे थे. मैं ने होटल से अपने लिए खाना पैक करवा लिया था.
घंटी की आवाज सुन कर भी जब प्रवीण ने दरवाजा नहीं खोला तो मेरा मन आशंका से भर उठा. मैं ने फिर उसे फोन लगाने का प्रयत्न किया, किंतु अभी भी उस का फोन स्विचऔफ बता रहा था.
फिर मैं ने दरवाजा नौक किया. उस ने दरवाजा खोला तो मैं ने पूछा, ‘‘दरवाजा खोलने में इतनी देर क्यों हुई?’’ सुनते ही प्रवीण बौखला गया और गुस्से में बोला, ‘‘तुम्हें फोन कर के आना था.’’
‘‘लगातार 2 घंटे से प्रयत्न कर रही हूं, तुम्हारा फोन स्विचऔफ बता रहा है. अचानक हैदराबाद आना पड़ गया, जल्दी में मैं तुम्हें खबर नहीं कर पाई.’’
वह कुछ नहीं बोला. जब मैं अंदर गई तो जो दृश्य देखा उस ने मुझे पूरी तरह हिला कर रख दिया. अंदर टेबल पर शराब की बोतलें और गिलास पड़े हुए थे. एक लड़की बगल में बैठी हुई थी.
‘‘यह कौन है?’’
उस ने झूठ छिपाने का प्रयत्न करते हुए कहा, ‘‘मेरे रिश्तेदार की एक लड़की है. परीक्षा देने आई थी. रात होने के कारण यहां आ गई.’’
लड़की के हावभाव और बोलचाल से मैं तुरंत ही समझ गई कि यह कोई बाजारू लड़की है और किसी पार्टी द्वारा भेजी हुई है.
अब मैं समझ गई इस शख्स के साथ मेरी जिंदगी नरक बन गई है और अब आगे इस के साथ जीवन निर्वाह संभव नहीं है. जिस दांपत्य जीवन में पति द्वारा पत्नी के विश्वास का लगातार हनन किया जा रहा हो, जिस की भावनाओं को कुचला जा रहा हो और जहां अनैतिकता का बोलबाला हो उस को ढोना स्वयं पर जुल्म करने जैसा ही है.
लड़की सहमी, डरी हुई और सिकुड़ कर बैठी थी.
मैं बोली, ‘‘अब तुम्हारे साथ मैं एक मिनट भी न रहूंगी.’’
‘‘तुम्हें मैं ने क्या तकलीफ दी है जो तुम मुझ से इतनी नाराज हो, तुम्हें कभी डांटा, कभी मारापीटा या कभी तुम्हारे व्यक्तिगत जीवन में दखल दिया?’’
‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं किया प्रवीण, किंतु जो किया इस से ज्यादा घातक है. मेरी गलती पर तुम मुझे डांटते, मारपीट भी देते या हमारे दांपत्य जीवन में जहर घोलने वाले मेरे व्यक्तिगत जीवन में दखल भी देते तो मैं बिलकुल बुरा नहीं मानती क्योंकि इतना तो पति के नाते तुम्हारा अधिकार बनता ही है. लेकिन जो तुम कर रहे हो वह मुझ से सहन नहीं होता. तुम मेरी जिंदगी में अचानक आए थे, परिथितियां ऐसी बनीं कि हम दोनों वैवाहिक जीवन में बंध गए. तुम रिश्वत लेने लगे, उस का मैं ने विरोध किया लेकिन इस से मैं उतनी आहत न हुई. मुझे लगता था कि तुम समझ जाओगे लेकिन तुम न समझे और एक नया घटिया तरीका अपना लिया.’’
प्रवीण कुछ न बोला. मेरी बातों में सचाई थी जिस के प्रतिकार का उस के पास नैतिक बल नहीं था.
मैं निकलने लगी तो उस ने रोका. लेकिन मैं अब रुकना नहीं चाहती थी, क्योंकि मैं अब उस जैसे अनैतिक इंसान के साथ नहीं रहना चाहती थी.
मैं उस रात होटल में रही. जानबूझ कर पापा के पास नहीं गई. सोचा, पापा इतनी रात को आने का कारण पूछेंगे तो क्या जवाब दूंगी, कहीं गुस्से में सचाई मुंह से निकल गई तो उन्हें काफी तकलीफ होगी.
रातभर एक झंझावात से मेरा दिमाग घूमता रहा. क्या मैं ने यह उचित किया? क्या मुझे प्रवीण को संभलने का एक और मौका देना चाहिए था? क्या वैवाहिक जीवन को खत्म करने का यह फैसला जल्दी में लिया गया है?
लेकिन मेरे दिल के किसी कोने से आवाज आई. वह वैवाहिक जीवन ही कैसा जो इस की मर्यादाओं का पालन न करे. सच तो यह था कि वैवाहिक जीवन में बंधने का मेरा यह फैसला ही जल्दी में लिया गया था. यह मेरी एक गलती का परिणाम था. मुझ से प्रवीण को ही समझने में गलती हुई थी. पापा उसे एक ही मुलाकात में समझ गए थे जब उस ने उन्हें प्रणाम किया था और उन के सामने ही वह सोफे पर पसर गया था. पापा ने उस के अंदर तक झांक लिया था.
जब मैं ने पापा से प्रवीण से शादी की इजाजत मांगी थी, उन्होंने इस का पुरजोर विरोध किया था, लेकिन उस समय मैं प्रवीण के प्यार में पागल थी. उन के इशारों को मैं न समझ पाई थी. यह बात मुझे समझ में नहीं आईर् कि हमारे बुजुर्गों के पास एक लंबे समय का अनुभव होता है और वह अनुभव हमें कई परेशानियों से बचा सकता है. किंतु अब क्या हो सकता था. मैं दूसरे दिन मेरठ लौट आई और इस विषय पर सलाह लेने के लिए शहर के एक सीनियर वकील से मिली.
प्रवीण से तलाक लेने के लिए एक ठोस साक्ष्य की जरूरत थी जो मेरे पास नहीं था. म्यूचुअल डिवोर्स के लिए प्रवीण तैयार होगा, इस पर मुझे संदेह था. फिर भी मैं ने सोचा, क्यों न प्रवीण से इस बिंदु पर चर्चा की जाए. शायद तैयार ही हो जाए. अभी हमारी शादी को एक वर्ष से कुछ ही दिन ज्यादा हुए थे और हमारे अब तक कोई बच्चा नहीं था. यह अच्छा ही था क्योंकि पतिपत्नी के तलाक के बीच सब से ज्यादा बच्चे ही परेशान होते हैं. उन्हें न मां का पूरा प्यार मिल पाता है न पिता का और जीवन की शुरुआत से वे एक तल्ख जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं और उन का बचपन मातापिता के झगड़े में तनाव व चिंता में बीतने लगता है.
उस दिन के बाद से मैं ने न प्रवीण को फोन किया और न ही उस ने मुझ से बात करने की कोशिश की. हमारे बीच पैदा हुई खाई दिनोंदिन और गहरी होती जा रही थी. एक दिन इनकम टैक्स के सभी अफसरों की मीटिंग के लिए हैडक्वार्टर से बुलावा आया था. जब मीटिंग हौल में मेरी प्रवीण से मुलाकात हुई तो वह मुझ से अपनी नजरें बचाता हुआ दूसरे मित्रों से बात करने लगा.
‘‘अरे भाभी, आप से प्रवीण की कुछ अनबन चल रही है क्या. आप लोगों को आपस में बातें करते नहीं देखा,’’ रिषि ने पूछा तो मैं ने उस से इधरउधर की बातें कर के प्रसंग को टाल दिया. लेकिन बातों को टालने से सचाई तो खत्म नहीं हो जाती. हमारे बीच की तनातनी ने हमारे कई साथियों के मन में संदेह पैदा कर ही दिया.
जब शाम को मीटिंग खत्म हुई तो मैं प्रवीण के पास जा कर बोली, ‘‘प्रवीण, हम लोगों के बीच जो मसले हैं वे आसानी से हल होने वाले नहीं लगते. इस तरह घुटघुट कर जीवन जीने से तो अच्छा है कि हम दोनों अलग हो जाएं. अगर तुम कोऔपरेट करोे तो हम दोनों म्यूचुअल डिवोर्स ले लें.’’
‘‘तुम तो ऐसी बात करती हो जैसे डिवोर्स बच्चों का खेल हो. जब चाहे शादी कर ली, जब चाहे डिवोर्स
ले लिया.’’
‘‘तो तुम ही बताओ क्या करें हम. जो तुम कर रहे हो, क्या सही है?’’
‘‘तुम गलतफहमी की शिकार हो. वैसा कुछ नहीं है जैसा तुम समझ रही हो.’’
‘‘प्रवीण, अगर तुम्हारे व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है और तुम आगे कोई ऐसा काम नहीं करोगे जिस से मुझे तुम से कोई भी शिकायत हो तो मैं डिवोर्स की बात वापस ले लूंगी.’’
‘‘प्रौमिस, अब आगे तुम्हें मुझ से कोई शिकायत न होगी.’’
मैं ने प्रवीण की बातों पर विश्वास कर लिया और एक बार फिर हमारा आपस में मिलनाजुलना शुरू हो गया. किंतु प्रवीण में कोईर् सुधार नहीं हुआ. वह मुझ से झूठे वादे करता रहा और रिश्वत का खेल खेलता रहा. हां, अब वह किसी कौलगर्ल को घर में बुलाने की जगह उन्हें होटल ले जाने लगा और आखिरकार, वही हुआ जिस का मुझे भय था. विजिलैंस वालों ने उसे रंगेहाथों पैसा लेते हुए पकड़ लिया और जेल भेज दिया.
विजिलैंस वालों ने छापा मार कर उस के क्वार्टर से एक करोड़ से भी ज्यादा नकदी रुपए जब्त किए. उस हीरे की अंगूठी के साथ अन्य कई जेवरात भी बरामद हुए थे. साथ ही, कई अन्य आपत्तिजनक दस्तावेज भी बरामद किए गए थे.
पत्नी होने के कारण विजिलैंस वालों ने मेरे क्वार्टर में भी छापा मारा किंतु मेरे यहां उन्हें कोई भी आपत्तिजनक वस्तु न मिली. कहते हैं न कि विपत्ति आती है तो अकेले नहीं आती. उधर मेरठ में सीबीआई ने प्रवीण के परिवार वालों के कई बिजनैस ठिकानों पर एकसाथ छापा मारा और आयकर चोरी के कई मामले पकड़े. प्रवीण और उस का परिवार चारों तरफ से बुरी तरह से फंस गया था.
इस दौरान मैं निरपेक्ष रही. आखिर मैं कर भी क्या सकती थी. मैं ने कोशिश कर के प्रवीण की कोर्ट से बेल करवाई. उस के बाबूजी भी सीबीआई की गिरफ्त में आ गए थे और उन्हें भी जेल भेज दिया गया था. दौड़धूप कर उन की भी बेल करवाई, किंतु अंत बड़ा ही भयानक ढंग से हुआ. प्रवीण को कई वर्षों के ट्रायल के बाद रिश्वत और आय से अधिक इनकम के कारण नौकरी से बरखास्त कर दिया गया. उस के परिवार के कई ठिकानों को सीबीआई ने बंद करवा दिया.
अब प्रवीण बेरोजगार था और अपने परिवार के बचेखुचे बिजनैस को संभालने में लग गया था. अब उस के साथ मेरा किसी भी हालत में साथ रहना संभव नहीं था, इसलिए मैं ने कोर्ट में तलाक की अर्जी दी और प्रवीण के खिलाफ कई अनैतिक आचरण व मेरे प्रति उस के गलत व्यवहार को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने मेरी तलाक की अर्जी मंजूर कर ली.
अब एक कहानी का पटापेक्ष हो गया था. मैं इसे एक सपना समझ कर भूल जाना चाहती थी. किंतु पापा बहुत चिंतित थे. वे जानते थे कि एक तलाकशुदा स्त्री की क्या स्थिति होती है. समाज उसे हेय दृष्टि से देखता है. उस के साथ शादी करने के लिए कोई लड़का आसानी से तैयार नहीं होता.
उस समय गरमी की छुट्टियां थीं. मैं पापा के पास हैदराबाद आई हुईर् थी. पापा बोले, ‘‘बेटी, गोवा के लिए फ्लाइट बुक करा लो. तुम्हारा मन बहल जाएगा.’’
दूसरे दिन मैं ने फ्लाइट बुक कराई और हम लोग गोवा आ गए. हमें 2-3 दिनों तक गोवा रुकना था. पापा के कहने पर मैं उन के साथ बीच पर आई हुई थी. बीच पर सैलानियों की भीड़ थी. पानी में अच्छा लग रहा था.
जब मैं बीच के किनारे पहुंची तो लहरों की तेजी के कारण दिक्कत हो रही थी. तभी किसी ने मेरा हाथ पकड़ा और पानी में ले गया. मेरी नजर पड़ी तो मैं देख कर विस्मित होते बोली, ‘‘अरे, तुम, रवि.’’
रवि ने भी मेरी ओर देखा, ‘‘हां, रितु?’’
‘‘हां,’’ अचानक रवि को पा कर स्वयं को रोक न पा रही थी. वह भी बीच पर घूमने के लिए आया था.
‘‘पापा भी आए हैं,’’ मैं बोली.
‘‘अच्छा, चलो, मैं 5-10 मिनट में आता हूं. मैं मां के साथ आया हूं,’’ रवि बोला. मैं पापा के पास आ कर उस के लौटने का इंतजार करने लगी.
15-20 मिनट के बाद रवि हमें खोजते हुए अपनी मां के साथ आया, ‘‘ये मेरी मां हैं.’’
मैं ने उस की मां के पैर छुए तो मांजी ने स्नेह से सिर पर हाथ फेर दिया.
फिर मैं ने रवि से पापा का परिचय कराया. अत्यंत नम्रता से उस ने उन के पैर छुए तो पापा ने उस को आशीर्वाद देते हुए पूछा, ‘‘बेटा, अपना परिचय नहीं दिया?’’
‘‘पापा, यह रवि है, कालेज में हम लोग साथ पढ़ते थे,’’ मैं प्रफुल्लित होते हुए बोली.
‘‘बेटा, बहू को साथ नहीं लाए?’’
उस की मां ने पापा का अभिवादन करते हुए कहा, ‘‘बहुत कहा लेकिन अब तक शादी नहीं की.’’
‘‘क्यों बेटा, अब तो तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए. घर में कौनकौन है?’’
‘‘बाबूजी पिछले ही साल गुजर गए. अब मां मेरे साथ ही देहरादून में रहती हैं.’’
‘‘वहां क्या करते हो?’’
‘‘फौरेस्ट औफिसर हूं.’’
‘‘लेकिन प्रवीण कहीं दिखाई नहीं दे रहे, क्या वे नहीं आए हैं?’’ रवि ने पूछा तो पापा उदास हो गए.
‘‘रवि, तुम तो जानते ही होगे कि उस के साथ क्या हुआ था?’’ पापा को चुप देख कर मैं बोली.
‘‘सुना था रितु. सुन कर बहुत दुख हुआ था. लेकिन…’’
‘‘अब सबकुछ खत्म हो गया रवि. मैं ने उस से तलाक ले लिया.’’
‘‘लेकिन क्यों?’’
‘‘अब पुराने घाव को कुरेदने से क्या मिलेगा?’’ मैं उदास हो कर बोली.
‘‘हां बेटा, इतनी कम उम्र में तलाक. मुझे समझ में नहीं आता यह इतना लंबा जीवन अकेले कैसे काटेगी?’’ बाबूजी ने कहा.
‘‘बेटी, क्या तुम वही रितु हो जो रवि के साथ उस के कालेज में पढ़ती थीं?’’ रवि की मां ने पूछा.
‘‘हां, मांजी, लेकिन आप…?’’
‘‘कैसे जानती हूं, यही जानना चाह रही हो न? तो सुनो, रवि हमेशा तुम्हारे बारे में चर्चा करता है. बेटी, इस को तुम्हारी इतनी चिंता है कि प्रवीण जब अरैस्ट हुआ था तब यह रातभर न सोया था, कहता था, जाने क्या बीत रही होगी रितु पर. तुम ने शादी पर इस को निमंत्रण नहीं दिया था. कई दिनों तक परेशान रहा था. बेटी, यह सोच कर तुम्हें फोन नहीं करता था कि कहीं तुम्हारे दांपत्य जीवन में गलतफहमी न पैदा हो जाए. लेकिन बेटी, अब तो तुम तलाकशुदा हो. तुम चाहोगी तो हमारा घर बस जाएगा,’’ मांजी भावुक हो कर एक ही सांस में बोल गई थीं.
मैं तो सोच ही न पा रही थी कि रवि के दिल में मेरे लिए अभी भी इतना प्रेम है. मैं अभिभूत थी.
मैं ने लज्जा से सिर झुकाते हुए कहा, ‘‘आप का आदेश, सिरआंखों पर, मांजी.’’
‘‘बेटा, इस से बढि़या क्या होगा. अगर तुम मेरी बेटी का हाथ थाम लेते हो तो मैं भी इस उम्र में सुकून की सांस ले पाऊंगा,’’ पापा बोले.
रवि ने मेरी आंखों में झांका तो मैं कुछ देर तक उस को देखती रह गई. हमारी मौन स्वीकृति ने मेरे पापा और रवि की मां की आंखों में खुशी के आंसू भर दिए थे.
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