कहानी- सेल्फी

काश! राहुल से उसका अफेयर न होता. अब वह ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई थी, जिससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं जानती थी. एक ऐसा भंवर उसे लील लेने को आतुर था, जिसकी कोई लहर किनारे की ओर नहीं जा रही थी. इस भंवर में अब उसका डूबना निश्‍चित था.

गाजर का हलवा प्लेट में डालकर वह सीढ़ियों की ओर बढ़ी. अनु को हलवा बहुत पसंद है. अभी वह आख़िरी सीढ़ी तक पहुंची ही थी कि उसे हंसी का सम्मिलित स्वर सुनाई दिया. शायद अनु का बॉयफ्रेंड अंकुर आया हुआ था. अंकुर को वह अच्छी तरह जानती है. अक्सर अनु के पास पढ़ने आता है. दोनों मिलकर प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहे हैं. ज्यों ही उसने टैरेस पर क़दम रखा, सामने का दृश्य देख वह सकपका गई.

अनु अंकुर के आलिंगन में थी और वह उसे किस करते हुए सेल्फी ले रहा था. यकायक उसके समूचे शरीर में झुरझुरी-सी दौड़ गई और सर्दी में भी माथे पर पसीने की बूंदें चमक उठीं. वह ख़ामोशी से नीचे उतर आई. घबराहट के कारण उसे बेचैनी हो रही थी. थोड़ी देर बाद अंकुर चला गया, तो अनु उसके पास आ बैठी.

“क्या बात है दीदी, आपकी तबीयत ठीक नहीं है क्या?” उसने अनु की तरफ़ देखा और गंभीर स्वर में बोली, “अनु, तुम मेरी छोटी बहन के समान हो. अन्यथा न लो, तो तुमसे कुछ कहना चाहती हूं.”

“कहिए न दीदी, क्या बात है?”

“मैं जानती हूं तुम और अंकुर एक-दूसरे को चाहते हो और तुम्हारे घरवालों ने भी तुम्हारे रिश्ते पर स्वीकृति की मोहर लगा दी है. फिर भी विवाह से पूर्व इस तरह से सेल्फी लेना उचित नहीं.” अनु की भावभंगिमा कठोर हो गई. वह बोली, “ओह दीदी, दिस इज़ टू मच. आप हमारी जासूसी करती हैं. मेरे पर्सनल मैटर्स में बोलने का आपको कोई अधिकार नहीं.” दनदनाती हुई वह सीढ़ियां चढ़ गई. हतप्रभ रह गई वह. अनु से उसे ऐसे व्यवहार की अपेक्षा कदापि नहीं थी. खाना खाने का फिर उसका मन नहीं हुआ. वह बिस्तर पर जा लेटी. विवाह के पश्‍चात् उसने जब यह फ्लैट ख़रीदा था, तो बतौर पेइंग गेस्ट अनु को ऊपर का कमरा दे दिया था. अनु उसके कलीग की कज़िन थी और उसे दो साल के लिए एक कमरा चाहिए था, जहां वह आराम से पढ़ाई कर सके. अनु और वह आपस में जल्दी ही घुल-मिल गए थे. इस समय उसकी आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे और मन के कैनवास पर पिछले एक साल की स्मृतियां चलचित्र की भांति उभरकर उसे विचलित कर रही थीं.

वह दिन उसके ज़ेहन में जीवंत हो उठा, जब राहुल के बुलाने पर ऑफिस से सीधी वह कॉफी हाउस पहुंची थी.  राहुल उसकी प्रतीक्षा कर रहा था. “कॉन्ग्रैचुलेशन्स रिया, तुम्हारी शादी फिक्स हो गई. मैं बहुत ख़ुश हूं कि तुमने अपनी ज़िंदगी का इतना बड़ा ़फैसला ले लिया और मुझे बताना भी ज़रूरी नहीं समझा.” राहुल के व्यंग्यात्मक स्वर से उसका मलिन चेहरा और बुझ गया था.

“मैं विवश थी राहुल, क्या करती? पापा से बहुत कहा, पर वे इंतज़ार करने के लिए सहमत नहीं हुए. मैंने तुम्हें पहले ही बताया था कि जब से मम्मी का स्वर्गवास हुआ है, पापा को मेरे विवाह की जल्दी है, लेकिन तुमने मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया. बीटेक के बाद अच्छी-भली जॉब छोड़कर एमबीए करने लगे.” उसका स्वर भीग उठा था.

“नहीं रिया, तुम्हारा निश्‍चय पक्का होता, तो अंकल तुम्हें विवश नहीं कर सकते थे. तुम कोई दूध पीती बच्ची नहीं हो. इंजीनियर हो और अब तो मेरा एमबीए भी कंप्लीट हो चुका है. जल्दी ही जॉब भी मिल जाएगी. इतना समय हम दोनों ने साथ गुज़ारा, किंतु तुमने सब भुला दिया. रिया, मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूंगा.”  क्रोध और पीड़ा के मिले-जुले भाव से राहुल का चेहरा लाल हो उठा था. बोझिल मन लिए वह घर लौट आई थी.

10 दिन पहले उसके पापा डॉ. राजेश ने उसका रिश्ता सौरभ से पक्का कर दिया था. उसने पापा को काफ़ी समझाया था कि वह कुछ दिन राहुल के जॉब लगने की प्रतीक्षा करें, पर पापा नहीं माने और उन्होंने ज़बरन सौरभ से उसकी सगाई कर दी. सौरभ मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करता था.

घर-परिवार भी अच्छा था. उन दिनों उसका मन बेहद उद्विग्न रहता था. मम्मी को याद करके वह कलपती. काश! वे ज़िंदा होतीं, तो उसकी ज़िंदगी को यूं बिखरने न देतीं.

धीरे-धीरे एक माह बीत गया और फिर आई वह कभी न भूल सकनेवाली स्याह रात. अब तक क़िस्से-कहानियों या फिर फिल्मों में ही ब्लैकमेलिंग होते देखी थी. कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि एक दिन स्वयं उसका शिकार हो जाएगी. उस रात खाना खाकर वह अपने रूम में पहुंची ही थी कि एक अनजान नंबर से उसे कॉल आया. फोन रिसीव करते ही एक आवाज़ उसके कानों से टकराई,  “तुम मुझे नहीं जानती हो रिया, पर मैं तुम्हें अच्छी तरह से जानता हूं. तुम कंप्यूटर इंजीनियर हो. तुम्हारे पापा डॉ. राजेश मेहता शहर के जानेमाने सर्जन हैं.”

“कौन हो तुम? क्या चाहते हो?“

“उत्तेजित मत हो. मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता हूं. सौरभ के साथ तुम्हारी सगाई के बारे में भी और राहुल के साथ तुम्हारे अफेयर के बारे में भी.”

“देखो, तुम जो कोई भी हो, मुझे परेशान किया, तो मैं पुलिस में रिपोर्ट कर दूंगी.”  “पुलिस में जाने की ग़लती मत करना, अन्यथा बहुत पछताओगी. यकीन नहीं आ रहा न, चलो मैं तुम्हारे मोबाइल पर कुछ भेज रहा हूं.” और चंद सेकंड में उसके मोबाइल पर जो फोटो आई, उसे देख उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई. उसे लगा, वह चक्कर खाकर गिर पड़ेगी. वह उसकी और राहुल की फोटो थी, जिसमें वह राहुल के साथ आलिंगनबद्ध थी और राहुल उसे किस कर रहा था.

जैसे अनगिनत बिजलियां उस पर एक साथ टूटकर गिर पड़ी हों. उसकी संपूर्ण चेतना बिल्कुल जड़ हो गई थी. पूरा ब्रह्मांड उसे घूमता-सा जान पड़ा था.

“रिया, यह फोटो तुम्हारे पापा और सौरभ को भेज दी जाए, तो कैसा रहे?” और फिर वही हुआ जो ऐसे केस में होता है, पैसों की डिमांड. फोन कट गया था. कितनी ही देर तक वह जड़वत बैठी रही थी. यह कैसी मुसीबत में फंस गई वह. कौन उसे ब्लैकमेल कर सकता है? तभी दिमाग़ में राहुल का नाम कौंधा. अवश्य ही वह राहुल है, क्योंकि फोटो उसी के पास थी. वह सारी रात बिस्तर पर पड़ी करवटें बदलती रही थी. कितना नाज़ था उसे स्वयं की समझदारी पर कि वह कभी कोई ग़लत काम नहीं कर सकती. एक बार उसकी फ्रेंड नेहा ने अपने बॉयफ्रेंड को पत्र लिख दिया था. कितना नाराज़ हुई थी वह उस पर. देर तक समझाती रही थी कि कभी किसी के पास कोई लेटर या अपना फोटो नहीं छोड़ना चाहिए और अब स्वयं यह भूल कर बैठी थी. कहां गया उसका वह आत्मविश्‍वास. प्यार के उन्माद में ऐसी बह गई कि अपने संस्कार भी भुला बैठी और ब्लैकमेलिंग जैसे संगीन मामले में फंस गई.

अगले दिन उसके कहने पर राहुल उससे मिला. उसे देखते ही वह बिफर पड़ी, “तुम इतना गिर जाओगे, मैं सोच भी नहीं सकती थी. मैं तुमसे शादी नहीं कर रही, तो तुम मुझे ब्लैकमेल करोगे?”

“यह क्या अनाप-शनाप बोल रही हो. मैं तुम्हें ब्लैकमेल कर रहा हूं. दिमाग़ ख़राब तो नहीं हो गया तुम्हारा. आख़िर बात क्या है?” उसने सारी बात बताकर कहा, “वह सेल्फी तुम्हीं ने ली थी न राहुल, फिर मैं यह कैसे मान लूं कि यह हरकत तुम्हारी नहीं है.”

“रिया प्लीज़, मुझ पर ऐसा घृणित इल्ज़ाम मत लगाओ. मैं कभी तुम्हारा बुरा नहीं चाहूंगा. तुम कहो, तो मैं तुम्हारी कुछ मदद करूं.”

“ओह राहुल, तुम पहले ही से काफ़ी मदद कर रहे हो?”  कड़वाहट से बोल वह घर लौट आई थी. फिर किस तरह उससे एक अनजान मफलर से चेहरा ढके व्यक्ति ने रुपए लिए, इस बात को याद कर जनवरी की इस ठंड में भी उसका शरीर पसीने से भीग रहा था. उस घटना ने उसकी ज़िंदगी ही बदलकर रख दी थी. अब हर पल वह डरी-सहमी-सी रहती कि कहीं उस व्यक्ति का दोबारा फोन न आ जाए. जब भी उसके मोबाइल की घंटी बजती, वह चिहुंक पड़ती. एक सर्द लहर-सी उसके समूचे शरीर में दौड़ जाती. चेहरा स़फेद पड़ जाता. उसकी यह हालत उसके पापा से अधिक दिनों तक छिपी नहीं रह सकी. एक दिन नाश्ते के टेबल पर उन्होंने पूछ ही लिया था, “रिया, देख रहा हूं आजकल तुम दिनोंदिन कमज़ोर और पीली पड़ती जा रही हो. कहीं तुम्हें कोई प्रॉब्लम तो नहीं है?”

“नहीं पापा, प्रॉब्लम क्या होगी. ऑफिस में काम का बहुत प्रेशर है.” कहकर वह अपने रूम में चली गई थी. 15 दिन ही बीते होंगे कि उस रात दोबारा उसके सिर पर सैकड़ों ज्वालामुखी फट गए थे. गर्म-गर्म लावा बनकर शब्द कानों में पड़ रहे थे, “इतने बड़े बाप की बेटी हो. अच्छी-ख़ासी ज्वेलरी होगी तुम्हारे पास. बस, वही चाहिए मुझे.”  कटे वृक्ष के समान वह पलंग पर गिरकर फूट-फूटकर रो पड़ी थी.

काश! राहुल से उसका अफेयर न होता. अब वह ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई थी, जिससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं जानती थी. एक ऐसा भंवर उसे लील लेने को आतुर था, जिसकी कोई लहर किनारे की ओर नहीं जा रही थी. इस भंवर में अब उसका डूबना निश्‍चित था. इससे पहले कि उसकी भूल पापा को पता चले और उनकी आंखों में उसके लिए नफ़रत और क्रोध दिखाई दे, उसे अपना जीवन समाप्त कर लेना चाहिए. हां, मृत्यु में ही उसकी मुक्ति है. कितनी ही देर तक वह रोती रही. निराशा की एक गहरी परत उसके चारों ओर लिपटती जा रही थी. रात के अंधियारे में उसकी व्यथा सुननेवाला कोई नहीं था. रो-रोकर जब जी कुछ हल्का हुआ, तो विचारों ने करवट बदली. उ़फ्, यह क्या सोच रही है वह. उसके जीवन पर पापा का क्या कोई अधिकार नहीं? उनके लाड़-प्यार का क्या यही प्रतिदान है? अभी तक तो वह मम्मी के ग़म से नहीं उबर पाए हैं. अब बेटी के बिछोह का इतना बड़ा सदमा क्या उन्हें जीते जी नहीं मार देगा? नहीं… नहीं… वह ऐसा कायरतापूर्ण क़दम कभी नहीं उठाएगी. मन ही मन वह ईश्‍वर का नमन करने लगी. काश! नियति उसे इस चक्रव्यूह को भेदने का कोई उपाय सुझा दे और वह उस व्यक्ति को सज़ा दिलवा सके, ताकि भविष्य में वह कभी किसी युवती का जीवन ख़राब न कर सके.

अगली शाम पापा के मित्र इंस्पेक्टर यादव ने जिस व्यक्ति को अरेस्ट किया, वह और कोई नहीं सौरभ था. वह अचम्भित, स्तब्ध थी, उसका होनेवाला पति ही उसकी ज़िंदगी के साथ ख़िलवाड़ कर रहा था. इंस्पेक्टर यादव ने बताया था, “जिस मोबाइल से सौरभ ने तुमको फोन किया था, उसके आईएमईआई नंबर को हमने ट्रेस किया. साथ ही वह ज्वेलरी बॉक्स, जो उसने तुम्हारी कार से उठवाया था, उसमें जीपीएस ट्रैकर लगा हुआ था. उसी की बदौलत हम सौरभ को पकड़ पाए.”

सौरभ को सगाई के पश्‍चात् पता चला था कि रिया का पिछले तीन सालों से राहुल से अफेयर चल रहा था. वह यह शादी नहीं करना चाहता था, पर रिश्ता तोड़ने से पहले कुछ पैसा ऐंठना चाहता था. राहुल को जॉब की तलाश थी. उसने राहुल को जॉब का आश्‍वासन देकर उससे दोस्ती की और फिर उसकी अनुपस्थिति में उसके मोबाइल से फोटो अपने मोबाइल पर फॉरवर्ड कर ली. उसी रात उसने रिया को फोटो भेजी थी.

उसमें इतना साहस भी नहीं बचा था कि वह पापा का सामना कर पाती. ग्लानि और शर्मिंदगी का एहसास उसके हृदय को मथे डाल रहा था. अंतस की पीड़ा आंखों से आंसू बनकर बह रही थी. आज उसकी वजह से उसके पापा की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई थी. काश! यह धरती फट जाती और वह उसमें समा जाती. पापा उसकी मनःस्थिति समझ रहे थे. इसलिए स्वयं उसके कमरे में चले आए. “मुझे क्षमा कर दीजिए पापा.” उनके कंधे पर सिर रख वह बिलख पड़ी.

“जो कुछ भी हुआ, उसे एक दुखद स्वप्न समझकर भूल जाओ. अच्छा हुआ, व़क्त रहते तुमने मुझे सब कुछ बता दिया. इंस्पेक्टर यादव मेरे मित्र हैं. उन्होंने मुझे आश्‍वासन दिया कि वह इस बात को मीडिया में नहीं आने देंगे, अन्यथा हमारी कितनी बदनामी होती. आधुनिकता के नाम पर आज की युवापीढ़ी का इस तरह का खुला अमर्यादित व्यवहार क्या जायज़ है?” भर्राए कंठ से पापा बोले थे. देर तक वह उसका सिर सहलाते रहे. भावनाओं का आवेग कुछ कम हुआ, तो उन्होंने कहा,  “याद रखो बेटा, हमारे कर्म ही जीवन को आकार देते हैं. वे कर्म ही होते हैं, जो हमारा वर्तमान और भविष्य निर्धारित करते हैं. भूल मेरी भी है, जल्दबाज़ी में इतना ग़लत फैसला ले बैठा.”

कुछ दिनों बाद ही उसका विवाह राहुल के साथ हो गया था. सोचते-सोचते उसने माथे पर किसी के कोमल हाथों का स्पर्श महसूस किया, तो आंखें खोल दीं. पश्‍चाताप का भाव चेहरे पर लिए उसके समीप अनु बैठी हुई थी. “आई एम सॉरी दीदी. ऊपर जाकर ठंडे दिमाग़ से सोचा, तो लगा आप बिल्कुल सही कह रही थीं. विवाह से पूर्व किसी पर भी इतना विश्‍वास करना उचित नहीं. मैंने आपको बहुत दुख पहुंचाया दीदी. मुझे क्षमा कर दीजिए.” उसने स्नेह से अनु का हाथ थाम लिया,  “मुझे ख़ुशी है, तुमने अपनी दीदी की बात का मान रखा.”

“अच्छा, अब उठिए दीदी. हाथ-मुंह धो लीजिए. राहुल भइया आने ही वाले होंगे. मैं जानती हूं, आपने खाना भी नहीं खाया होगा. मैं आप दोनों के लिए चाय और नाश्ता ला रही हूं.” चंद मिनटों बाद ही राहुल आ गया. मंत्रमुग्ध दृष्टि से उसे निहारते हुए बोला, “हुज़ूर, आज इस चांद-से मुखड़े पर बेमौसम बदलियां क्यों छाई हुई हैं?”

उसने उसे अपनी बांहों के घेरे में ले लिया. जैसे ही उसने अपनी और रिया की एक सेल्फी लेनी चाही, उसे एक करंट-सा लगा. छिटककर वह दूर होते हुए बोली, “नहीं राहुल, सेल्फी नहीं.” राहुल खिलखिलाकर हंस पड़ा. क़रीब आकर उसकी पलकों को चूमते हुए बोला, “अरे यार, अब हम दोनों पति-पत्नी हैं.” उसके अधरों पर भी स्निग्ध मुस्कान तैर गई. राहुल की आगोश में सिमटकर उसने उसके सीने पर सिर रख दिया. अब वह अतीत की स्याह परछाइयों से पूरी तरह से मुक्त थी.

कोई टिप्पणी नहीं:

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();
Blogger द्वारा संचालित.