कहानी: लड़का चाहिए

एक अदद लड़के की चाह में बेचारा सुरेंद्र बन गया बलि का बकरा. खानदान को चश्मोचिराग देने की जिम्मेदारी उसी पर टिकी थी. करता, क्या न करता, चुपचाप सब की मानता रहा...
एक अदद लड़के की चाह में बेचारा सुरेंद्र बन गया बलि का बकरा. खानदान को चश्मोचिराग देने की जिम्मेदारी उसी पर टिकी थी. करता, क्या न करता, चुपचाप सब की मानता रहा…

यह सुरेंद्र का दुर्भाग्य था या सौभाग्य, क्या कहें. वह उस संयुक्त परिवार के बच्चों में सब से आखिरी और 8वें नंबर पर आता था. अब वह 21 साल का ग्रैजुएट हो चुका था व छोटामोटा कामधंधा भी करने लगा था. देखनेदिखाने में औसत से कुछ ऊपर ही था. उस के विवाह के लिए नए प्रस्ताव भी आने लगे थे. यहां तक तो उस के भाग्य में कोई दोष नहीं था परंतु उस के सभी बड़े भाइयों के यहां कुल 17 लड़कियां हो चुकी थीं और अब किसी के यहां लड़का होने की उम्मीद नहीं थी. इसी कारण वंश को आगे बढ़ाने की सारी जिम्मेदारी सुरेंद्र पर टिकी हुई थी.

अब तक घरपरिवार और चेहरेमोहरे को देखने वाले इस परिवार ने दूसरी बातों का सहारा लेना भी शुरू कर दिया, जैसे जन्मपत्रिका मिलाना, परिवार में हुए बच्चों का इतिहास जानना आदि. पत्रिका मिलान करते समय पंडितों को इस बात पर विशेष ध्यान देने को कहा जाता कि पत्रिका में पुत्र उत्पन्न करने संबंधी योग, नक्षत्र भी हैं या नहीं.

एक पंडित से पत्रिका मिलवाने के बाद दूसरे पंडित की सैकंड ओपिनियन भी जरूर ली जाती. पंडित लोग भी मौका देख कर भारीभरकम फीस वसूल करते.

कई लड़कियां तो सुरेंद्र को अच्छी भी लगीं किंतु पंडितों की भविष्यवाणी के आधार पर रिजैक्ट कर दी गईं. एक जगह तो अच्छाखासा विवाद भी हो गया जब एक लड़की ज्योतिष के सभी परीक्षणों में सफल भी हुई, लेकिन स्त्री स्वतंत्रता की पक्षधर उस लड़की को यह सबकुछ बेहद असहज व स्त्रियों के प्रति अपमानजनक लगा.

सुरेंद्र से एकांत में मुलाकात के समय उस ने सुरेंद्र से कहा कि जब आप के परिवार में 17 कन्याओं ने जन्म लिया है तो मुझे आप के घर के पुरुषों के प्रति संदेह है कि उन में लड़का पैदा करने की क्षमता भी है या नहीं. मेरे साथ शादी करने से पहले आप को इस बात का मैडिकल प्रमाणपत्र देना होगा कि आप पुत्र उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं.

जब यह बात रिश्तेदारों और जानपहचान वालों को पता चली तो कई लोग बिन मांगे सुझाव और सलाहों के साथ हाजिर हो गए. किसी ने कहा कि ऐसी लड़की का चयन करना जिस की मां को पहली संतान के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई हो. किसी की सलाह थी, कमर से जितने अधिक नीचे बाल होंगे, लड़का होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी. एक सलाह यह भी थी कि पुत्र उत्पन्न करने में वे लड़कियां ज्यादा सफल होती हैं जो चलते समय अपना बायां पैर पहले बाहर रखती हैं.

यदि लड़की की नानी ने भी पहली संतान के रूप में लड़के को जन्म दिया हो, संभावनाएं शतप्रतिशत हो जाती हैं.

इसी तरह की और भी न जाने क्याक्या सलाहें मिलती रहीं.

सुरेंद्र का परिवार सभी सलाहों पर हर मुमकिन अमल करने का प्रयास भी इस तरह से कर रहा था मानो यदि अब एक लड़की और हो गई तो वह उस की परवरिश करने में असमर्थ रहेगा. अब तो टोनेटोटके के बावजूद पैदा हुई सब से छोटी लड़की के पुराने कपड़ों को भी घर से हटा दिया गया था क्योंकि इस तरह के पुराने कपड़ों को रखना पनौती माना जाता है.

सुझावों को ध्यान में रख कर सुरेंद्र के लिए लड़कियां देखी जाती रहीं, और किसी न किसी आधार पर अस्वीकृत भी की जाती रहीं. इसी तरह 2 बरस बीत गए और कुछ रिजैक्टेड लड़कियों ने अपनी शादी के बाद अपनी पहली संतान के रूप में लड़कों को जन्म भी दे दिया.

आखिरकार, परिवार की मेहनत रंग लाई और कड़ी खोजबीन के बाद इस तरह की लड़की को खोजने में सफल हो ही गया. खोजी गई लड़की के बाल कमर से लगभग डेढ़ फुट तक नीचे जाते थे. मतलब, एक विश्वसनीय सुरक्षित लंबाई थी बालों की.

लड़की की मां, नानी, यहां तक कि परनानी ने भी पहली संतान के रूप में लड़के को ही जन्म दिया था. यानी यहां दोहरा सुरक्षाकवच मौजूद था. सोने पर सुहागा यह कि लड़की चलते समय बायां पैर ही पहले निकालती थी.

अब तो तीनसौ प्रतिशत संभावनाएं थीं कि यह लड़की, लड़का पैदा करने में पूरी तरह सक्षम है. परंतु जो बात सब से महत्त्वपूर्ण थी वह यह कि सुरेंद्र को यह लड़की पसंद नहीं थी क्योंकि लड़की रंगरूप के मामले में औसत भारतीय लड़कियों से भी नीचे थी.

उस से भी बड़ी बात यह थी कि लड़की मुश्किल से 3 प्रयासों के बाद इंटर की परीक्षा पास कर पाई थी. सभी चीजें तो एक लड़की में नहीं मिल सकती न, ‘वंश तो लड़कों से चलता हैं न कि लड़की की पढ़ाईलिखाई या रंगरूप से’ ये बातें सुरेंद्र को समझा कर किसी ने उस की एक न सुनी.

इस तरह सभी भौतिक परीक्षाओं में पास होने के बाद लड़की की जन्मकुंडली पंडितजी को दिखाई गई. पंडितजी भी एक ही जजमान की कुंडली बारबार देख कर त्रस्त हो चुके थे. वे भी चाहते थे जैसे भी हो, इस बार कुंडली मिला ही दूंगा चाहे कोई पूजा ही क्यों न करवानी पड़े.

उन के अनुसार भी, कुंडली का मिलान भी श्रेष्ठ ही था. किंतु एक हिदायत उन्होंने भी दे दी कि लड़का होने की संभावनाएं तब ही बलवती होंगी जब संतान शादी के एक वर्ष के भीतर गोद में आ जाए.

आखिरकार सुरेंद्र की अनिच्छा के बावजूद शादी धूमधाम से हो गई. लड़की ने इंटर की परीक्षा जरूर 3 प्रयासों में पास की थी लेकिन वह इतना तो जानती ही थी कि इतनी जल्दी मातृत्व का बोझ उठाना ठीक नहीं होगा. उस ने टीवी और फिल्मों के जरिए यह जान लिया था कि शादी के शुरुआती वर्ष पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने के लिए बहुत अहम होते हैं. ऐसे में कुछ वर्ष बच्चा नहीं होना चाहिए.

सुरेंद्र की पत्नी को पहले ही दिन से वीआईपी ट्रीटमैंट दिया जा रहा था. उसे तरहतरह के प्रलोभन दिए जा रहे थे.

सुरेंद्र पर भी दबाव डाला जा रहा था और पंडितजी की हिदायतों की समयसमय पर याद करवाई जा रही थी.

2 माह बाद आखिर वह दिन भी आ ही गया जिस का सारे परिवार को इंतजार था. सुरेंद्र की पत्नी गर्भवती हो चुकी थी. मतलब, हर नजरिए से इस परिवार को पुत्र के रूप में वारिस मिलने की संभावनाएं बहुत अधिक हो गई थीं. किसी ने सलाह दी कि यदि इस में कुछ चिकित्सकीय सहायता भी ले ली जाए तो असफलता की संभावनाएं नहीं रहेंगी.

एलोपैथिक के डाक्टरों ने तो इस प्रकार की कोई भी औषधि देने से इनकार कर दिया. तब एक परिचित की सहायता से एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक वैद्यजी को दिखाया गया. वे इस शर्त पर दवा देने को तैयार हुए कि बच्चे के लिए सोनोग्राफी नहीं करवाई जाएगी.

परिवार वालों ने वैद्यजी की बातों को माना और वैद्यजी की बताई गई दवाई पूर्णिमा को खिला भी दी गई.

समयसमय एलोपैथी के डाक्टर को दिखा कर बच्चे की शारीरिक प्रगति पर ध्यान दिया जाता रहा. लेकिन वैद्यजी की सलाह के अनुसार सोनोग्राफी की अनुमति नहीं दी गई. डाक्टर अपने अनुभवों के आधार पर उपचारित करते रहे. परिवार वाले भी सुरेंद्र की पत्नी की हर इच्छा को आदेश मान कर पालन करते रहे.

सुरेंद्र की पत्नी अपनेआप को किसी वीआईवी से कम नहीं समझ रही थी. विवाह के 11 महीनों के बाद आखिर वह दिन भी आ ही गया जिस का सभी को इंतजार था. सुरेंद्र की पत्नी को अस्पताल में भरती करवा दिया गया. घर पर पूजापाठहवन आदि का इंतजाम किया गया. पूरे घर में लड़का होेने की अग्रिम खुशी में उत्सव जैसा माहौल हो गया.

आखिर वह समय भी आ गया

जब परिणाम घोषित हुआ. परिणाम पिछले 17 परिणामों से अलग नहीं था.

सुरेंद्र की पत्नी ने एक स्वस्थ और सुंदर कन्या को जन्म दिया. इस घड़ी में सुरेंद्र का परिवार तो कुछ कहने की स्थिति में नहीं था परंतु बाहर के लोग तो कह ही रहे थे, कुछ हंसी में और कुछ संवेदना में. कुछ लोग तो यह सलाह देने के लिए आ रहे थे कि दूसरी संतान पुत्र कैसे हो, इस के कुछ नुस्खे उन के पास मौजूद हैं.

किंतु, गुस्से से भरा सुरेंद्र पहले की सलाह देने वालों को ढूंढ़ रहा है. आप भी तो उन में से एक नहीं है न. यदि हैं, तो बच कर रहिए.

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