कहानी: प्यार या संस्कार

स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद अदिति के सपनों को पंख लग गए. महानगरीय चकाचौंध में उस के संस्कार, सपने, लाइफस्टाइल सब कुछ बदल गए.
अदिति ने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद बेंगलुरु महानगर के एक नामीगिरमी कालेज में मैनेजमैंट कोर्स में ऐडमिशन लिया तो मानो उस के सपनों को पंख लग गए. उस के जीवन की सोच से ले कर संस्कार तथा सपनो से ले कर लाइफस्टाइल सभी तेजी से बदल गए.

अदिति के जीवन में कुछ दिनों तक तो सबकुछ ठीकठाक चलता रहा, लेकिन अचानक उस के जीवन में उस के ही कालेज के एक छात्र प्रतीक की दस्तक के कारण जो मोड़ आया वह उस पहले प्यार के बवंडर से खुद को सुरक्षित नहीं रख पाई. अदिति बहुत जल्दी प्रतीक के प्यार के मोहपाश में इस तरह जकड़ गई मानो वह पहले कभी उस से अलग और अनजान नहीं थी.

जवानी की दहलीज पर पहले प्यार की अनूठी कशिश में अदिति अपने जीवन के बीते दिनों तथा परिवार की चाहतों को पूरी तरह से विस्मृत कर चुकी थी. प्रतीक के प्यार में सुधबुध खो बैठी अदिति अपने सब से खूबसूरत ख्वाब के जिस रास्ते पर चल पड़ी वहां से पीछे मुड़ने का कोईर् रास्ता न तो उसे सूझा और न ही वह उस के लिए तैयार थी.

गरमी की छुट्टी में जब अदिति अपने घर वापस आई तो उस के बदले हावभाव देख कर उस की अनुभवी मां को बेटी के बहके पांवों की चाल समझते देर नहीं लगी. जल्दी ही छिपे प्यार की कहानी किसी आईने की तरह बिलकुल साफ हो गई और मां को पहली बार अपनी गुडि़या सरीखी मासूम बेटी अचानक ही बहुत बड़ी लगने लगी.

अदिति ने अपनी मां से प्रतीक से शादी के लिए शुरू में तो काफी विनती की, लेकिन मां के इनकार को देखते हुए वह जिद पर अड़ गई. अदिति के पिता तो उसी वक्त गुजर गए थे जब अदिति ठीक से चलना भी नहीं सीख पाई थी. मां और बेटी के अलावा उस छोटे से संसार में प्रतीक के प्रवेश की तैयारी के लिए एक बड़ा द्वंद्व और दुविधा का जो माहौल तैयार हो गया था वह सब के लिए दुखदायी था, जिस की मद्घिम लौ में मां को अपनी बेटी के चिरपोषित सपनों की दुनिया जल जाने का मंजर साफ नजर आ रहा था.


‘‘मां, तुम समझती क्यों नहीं हो? मैं प्रतीक से सच्चा प्यार करती हूं. वह ऐसावैसा लड़का नहीं है. वह अच्छे घर से है और निहायत शरीफ है. क्या बुरा है, यदि मैं उस से शादी करना चाहती हूं,’’ अदिति ने बड़े साफ लहजे में अपनी मां को अपने विचारों से अवगत कराया.

मां  अपनी बेटी के इस कठोर निर्णय से    काफी आहत हुईं लेकिन खुद को संयमित करते हुए अदिति को अपने सांस्कारिक मूल्यों तथा पारिवारिक जिम्मेदारियों का एहसास कराने की काफी कोशिश करती हुई बोलीं, ‘‘बेटी, मैं सबकुछ समझती हूं, लेकिन अपने भी कुछ संस्कार होते हैं. तुम्हारे पापा ने तुम्हारे लिए क्या सपने संजो रखे थे लेकिन तुम उन सपनों का इतनी जल्दी गला घोंट दोगी, इस बारे में तो मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था. अपनी जिद छोड़ो और अभी अपने भविष्य को संवारो. प्यारमुहब्बत और शादी के लिए अभी बहुत वक्त पड़ा है.’’

‘‘मां, आप समझती नहीं हैं, प्यार संस्कार नहीं देखता, यह तो जीवन में देखे गए सपनों का प्रश्न होता है. मैं ने प्रतीक के साथ जीवन के न जाने कितने खूबसूरत सपने देखे हैं, लेकिन मैं यह भूल गई थी कि मेरे इंद्रधनुषी सपनों के पंख इतनी बेरहमी से कुतर दिए जाएंगे. आखिर, तुम्हें मेरे सपनों के टूटने से क्या?’’

‘‘बेटी, सच पूछो तो प्रतीक के साथ तुम्हारा प्यार केवल तुम्हारे जीवन के लिए नहीं है. जीवन के रंगीन सपनों के दिलकश पंख पर बेतहाशा उड़ने की जिद में अपनों को लगे जख्म और दर्द के बारे में क्या तुम ने कभी सोचा है? प्यार का नाम केवल अपने सपनों को साकार होते देखनाभर नहीं है. वह सपना सपना ही क्या जो अपनों के दर्द की दास्तान की सीढ़ी पर चढ़ कर साकार किया गया हो.

‘‘आज तुम्हें मेरी बातें बचकानी लगती होंगी, लेकिन मेरी मानो जब कल तुम भी मेरी जगह पर आओगी और तुम्हारे अपने ही इस तरह की नासमझी की बातों को मनवाने के लिए तुम से जिद करेंगे तो तुम्हें पता चलेगा कि दिल में कितनी पीड़ा होती है. मन में अपनों द्वारा दिए गए क्लेश का शूल कितना चुभता है.’’


अदिति अपनी मां के मुंह से इस कड़वी सचाई को सुन कर थोड़ी देर के लिए सन्न रह गई. उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे किसी ने उस की दुखती रग पर अनजाने ही हाथ रख दिया हो. उस के जेहन में अनायास ही बचपन से ले कर अब तक अपनी मां द्वारा उस के लालनपालन के साथसाथ पढ़ाई के खर्चे के लिए संघर्ष करने की कहानी का हर दृश्य किसी सिनेमा की रील की भांति दौड़ता चला गया.

अनायास ही उस की आंखें भर आईं. मन पर भ्रम और दुविधा की लंबे अरसे से पड़ी धूल की परत साफ हो चुकी थी और सबकुछ किसी शीशे की तरह साफसाफ प्रतीत होने लगा था. लेकिन बीते हुए कल के उस दर्र्द के आंसू को अपनी मां से छिपाते हुए वह भाग कर अपने कमरे में चली गई. अपनी मां की दिल को छू लेने वाली बातों ने अदिति को मानो एक गहरी नींद से जगा दिया हो.

छुट्टियों के बाद अदिति अपने कालेज वापस आ गई और जीवन फिर परिवर्तन के एक नए दौर से गुजरने लगा. कालेज वापस लौटने के बाद अदिति गुमसुम रहने लगी. प्रतीक से भी वह कम ही बातें करती थी, बल्कि उस ने उसे शादी के बारे में अपनी मां की मरजी से भी अवगत करा दिया और इस तरह मंजिल तक पहुंचने से पहले ही दोनों की राहें अलगअलग हो गईं.

कालेज के अंतिम वर्ष में कैंपस सिलैक्शन में प्रतीक को किसी मल्टीनैशनल कंपनी में ट्रेनी मैनेजर के रूप में यूरोप का असाइनमैंट मिला और अदिति ने किसी दूसरी मल्टीनैशनल कंपनी में क्वालिटी कंट्रोल ऐग्जीक्यूटिव के रूप में अपनी प्लेसमैंट की जगह बेंगलुरु को ही चुन लिया.

अदिति अपनी मां के साथ इस मैट्रोपोलिटन सिटी में रह कर जीवन गुजारने लगी. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. इसी बीच कंपनी ने अदिति को 1 वर्ष के फौरेन असाइनमैंट पर आस्ट्रेलिया भेजने का निर्णय लिया. अदिति अपनी मां के साथ जब आस्टे्रलिया के सिडनी शहर आई तो संयोग से वहीं पर एक दिन किसी शौपिंग मौल में उस की प्रतीक से मुलाकात हो गई. अदिति के लिए यह एक सुखद लमहा था, जिस की नरम कशिश में वर्षों पूर्व के संबंधों की यादें बड़ी तेजी से ताजी हो गईं. लेकिन भविष्य में इस संबंध के मुकम्मल न होने के भय ने उस के पैर वापस खींच लिए.

प्रतीक अपने क्वार्टर में अकेला रहता था और अकसर हर रोज शाम के वक्त वह अदिति के घर पर आ जाया करता था. मां को भी अपने घर में अपने देश के एक परिचित के रूप में प्रतीक का आनाजाना अच्छा लगता था, क्योंकि परदेश में उस के अलावा सुखदुख बांटने वाला और कोई भी तो नहीं था.

अचानक एक दिन औफिस से घर लौटते वक्त अदिति की औफिस कार की किसी प्राइवेट कार के साथ टक्कर हो गई और अदिति को सिर में काफी चोट आई. महीनेभर तक अदिति  हौस्पिटल में ऐडमिट रही और इस दौरान उस का और उस की मां का ध्यान रखने वाला प्रतीक के अलावा और कोई नहीं था. प्रतीक ने मुसीबत की इस घड़ी में अदिति और उस की मां का भरपूर ध्यान रखा और इसी बीच अदिति और प्रतीक फिर से कब एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि उन्हें इस का पता ही नहीं चला.

अदिति का यूरोप असाइनमैंट खत्म होने वाला था और उसे अब अपने देश वापस आना था. अदिति और उस की मां को छोड़ने के लिए प्रतीक भी बेंगलुरु आया था. प्रतीक के सेवाभाव से अदिति की मां अभिभूत हो गई थीं. प्रतीक सिडनी वापस जाने की पूर्व संध्या पर अपने मम्मीडैडी के साथ अदिति से मुलाकात करने आया था. अदिति का व्यवहार तथा शालीनता देख कर प्रतीक के पेरैंट्स काफी खुश हुए.

प्रतीक की अगले दिन फ्लाइट थी. एयरपोर्ट पर बोर्डिंग के समय जब अदिति का फोन आया तो उस के दिलोदिमाग में एक अजीब हलचल मच गई. पुराने प्यार की सुखद और नरम बयार में प्रतीक के मन का कोनाकोना सिहर उठा. प्रतीक ने अपनी फ्लाइट कैंसिल करवा ली. उस ने अपनी कंपनी को बेंगलुरु में ही उसे शिफ्ट करने के लिए रिक्वैस्ट भेज दी जो कुछ दिनों में अपू्रव भी हो गई. अदिति की मां प्रतीक के इस फैसले से काफी प्रभावित हुईं.

अदिति हमेशा के लिए अब प्रतीक की हो गई थी और वह मां के साथ ही बेंगलुरु में रहने लगी थी. प्रतीक अपनी खुली आंखों से अपने सपने को अपनी बांहों में पा कर खुशी से फूले नहीं समा रहा था. अदिति के पांव भी जमीं पर नहीं पड़ रहे थे. उसे आज जीवन में पहली बार एहसास हुआ कि धरती की तरह सपनों की दुनिया भी गोल होती है और सितारे भले ही टूटते हों, लेकिन यदि विश्वास मजबूत हो तो सपने कभी नहीं टूटते.

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