कहानी - खुशियों के मोती

मेरी और सायरा की दोस्ती बचपन से थी. अपनीअपनी शादी के बाद हम लोग अलग हो गए लेकिन हमारी बातचीत बराबर होती रहती थी. वैसे शादी के बाद ससुराल, पति, बच्चों में लोग इतने व्यस्त हो जाते हैं कि बचपन के सब दोस्त, सहेलियों को भूल जाते हैं लेकिन हम दोनों के मध्य यह दोस्ती का रिश्ता बराबर बना रहा.

एक दिन उस ने मुझे खुशखबरी दी कि उस के पति का स्थानांतरण मेरे शहर इटारसी में ही हो गया है. नया मकान खोज रहे हैं, जैसे ही मिलता है वह भी शिफ्ट हो जाएगी. अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. मेरी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा कि मेरी बचपन की सहेली मेरे शहर में ही आ रही है.

मेरा ससुराल थोड़ा जाति व्यवस्था को मानने वाला था, लेकिन कभी जाति के कारण हमारी दोस्ती में फर्क नहीं आएगा, मैं ने मन में ठान लिया था. पति तो शुरू से ही उदारवादी रहे हैं. इसलिए मुझे चिंता नहीं. लेकिन सासूजी थोड़ी तेज थीं. मुझे अचानक ध्यान आया कि हमारे बंगले से लगा हुआ एक बंगला किराए के लिए खाली है. मैं ने मकानमालिक से बात की, उसे तो किराए से मतलब था. उसे क्या मतलब कौन किस जाति का है. नोट पर कोई जाति तो छपी नहीं होती है.

मैं ने पड़ोस में बंगला खाली होने की खबर मोबाइल से सायरा को दी. वह खुश हो गई. उस के पति आए, बंगला देखा और फाइनल कर के चले गए. एक सप्ताह बाद ही मेरी प्यारी सहेली मेरे पास वाले बंगले में थी. हम दोनों बहुत खुश थे, बचपन की यादें, स्कूल की मस्ती और शरारतें सब बहुत याद करते. हमारी घंटों की बातचीत से मेरी सासूजी को दिक्कत थी. इसलिए वे जब भी घर से बाहर जातीं तब हम दोनों मिल कर गप मारते. कभी छत पर आ कर मिलते और सुखदुख की बातें करते थे.

सायरा का परिवार मांसाहारी था, लेकिन मेरे ससुराल वाले शाकाहारी थे. इसलिए भी मेरी सहेली के प्रति सासूजी का प्रेम अधिक प्रकट नहीं होता था, लेकिन सायरा ने कभी इस बात का बुरा नहीं माना.सायरा को आए 3 हफ्ते ही हुए थे कि हमारे लौन में प्याजलहसुन के छिलके पड़े मिले. नौकर से कह कर मैं ने साफ करवा दिए. मन में शक तो हुआ कि यह प्याज, लहसुन तो केवल सायरा का परिवार ही खाता है, लेकिन कहा कुछ नहीं.2 माह भी नहीं गुजरे थे कि हमारे आंगन में चिकन (मुरगे) की हड्डियां मिलीं. देखा तो बहुत ही आश्चर्य हुआ. सफाई वाले को बुलवा कर मैं ने सफाई करवा दी, लेकिन यह सब मुझे ठीक नहीं लग रहा था. सायरा से मेरी बातचीत जारी ही थी.

एक दिन सुबहसुबह सासूजी जोरों से चिल्लाईं तो मैं घबराई छत पर पहुंची. सासूजी फटी आंखों से देखते हुए चिल्ला रही थीं. सामने मुरगे के पंख, टांगें और प्याज के छिलके पड़े थे. सायरा और हमारे घर की छत मिली हुई थी. मैं समझ गई कि ये हरकतें सायरा के घर से हो रही हैं. सासूजी के चीखने पर सायरा भी छत पर आ गई थी. वह भी यह सब देख कर आश्चर्य कर रही थी. मुझे गुस्सा आया, ‘‘सायरा, यह सब क्या है?’’

‘‘सच में, मुझे नहीं मालूम,’’ बेबसी भरा स्वर था सायरा का.

‘‘फिर यहां यह सब गंदगी कौन डालेगा?’’ मैं ने प्रतिप्रश्न किया.

‘‘यू बिलीव मी, हमारे घर तो नौनवेज बने 2 महीने से अधिक का समय हो चुका है. और हम यहां क्यों फेंकेंगे?’’ सायरा ने प्रतिवाद किया.

‘‘तो सायरा, क्या हम ने इस छत पर मुरगा बना कर खाया है?’’ सासूजी ने नाराजगी भरे स्वर में कहा.

‘‘मम्मीजी, प्लीज, आप विश्वास करें,’’ सायरा ने भरोसा दिलाने की चेष्टा की लेकिन सासूजी मानने को तैयार नहीं थीं. सायरा अपने घर की छत से नीचे उतर गई. सासूजी ने सारी छत को धुलवाया. मुझे लगा कि सायरा को अपने पास बुलवा कर मैं ने गलती कर ली, लेकिन अब उस से कैसे कहूं कि अपना बंगला खाली कर के कहीं दूसरी जगह शिफ्ट हो जाओ. एक दिन मैं अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी थी, परेशान थी, आंखें मुंदी हुई थीं. दिमाग बहुत तेजी से चल रहा था, ‘आखिर सायरा की दोस्ती से कैसे मुझे छुटकारा मिलेगा? कहीं तूतू मैंमैं करने पर छोटी सी यह लड़ाई शहर में दंगे का रूप न ले ले? कहीं ऐसा न हो कि वह रात को घर में घुस कर हमारा मर्डर कर दे. अगर दंगे हुए, मर्डर होने लगे तो हम अपनी रक्षा कैसे करेंगे? हमारे पास तो कोई सुरक्षा के साधन नहीं हैं. क्यों न सुरक्षाकर्मी को रख लिया जाए?’

सोचतेसोचते दिमाग के यही खयाल सपना बन चलने लगे...

पति से कहा, ‘क्यों न हम सुरक्षा गार्ड रखवा लें?’

उन्होंने कहा, ‘क्यों?’

‘मुझे शहर में दंगे होने की उम्मीद है.’

‘ऐं,’ उन्होंने आश्चर्य से कहा.

‘2 सुरक्षाकर्मी लगवा लें. एक बंगले के आगे, एक पीछे रहेगा,’ मैं ने कहा तो पति ने कहा, ‘और अगर तुम बाजार गईं तो वहां कौन देखरेख करेगा?’

इस पर मैं ने कहा, ‘एक वहां के लिए भी रख लो.’ हम दोनों की बहुत बहस के बाद 3 ब्लैक कमांडो और 2 सुरक्षाकर्मियों को रख लिया गया. मेरी महल्ले में शान बन गई.

ये सब एक सप्ताह तक ठीकठाक चला. सायरा भी अपने बंगले पर से देख कर जलभुन रही थी. पूरी कालोनी में हमारी अलग पहचान हो गई थी. मैं कहीं जाती 2 फुट दूरी पर मुझे कवर कर के वह काला कपड़ा बांधे व्यक्ति चलता था. पहले तो ठीक लगता रहा लेकिन कुछ दिनों बाद हंसी की पात्र बनने लगी. कहीं जाओ तो वहां वह रहे, किसी सहेली से मिलो तो वह खड़ा रहता पत्थर की मूर्ति की तरह. सब्जी लाने से ले कर शौपिंग तक में वह छाया की तरह साथ रहना. रात को घर के बाहर वे सीटी बजाते रहते. घर में परिचित आते तो उन्हें पूर्व में सब सिक्योरिटी से गुजरना होता. एक रजिस्टर में ऐंट्री करनी होती थी. जाने पर रजिस्टर में हस्ताक्षर करने होते थे. कभीकभी तो सुरक्षाकर्मी पूरे घर में कुत्ते को ला कर बम को दिखवाते थे. ये सुरक्षाकर्मी तंबू लगा कर खाना बनाते, मैं छत पर रहूं तो उल्लू की तरह उन की नजर मुझ पर होती. उस नजर में सुरक्षा कम असुरक्षा मुझे अधिक अनुभव होती थी. 3 महीनों में मुझे लगा कि मैं तो इन सब की बंधक बन कर रह गई हूं. कुछ भी इन्हें बिना बताए नहीं कर सकती हूं. एकएक पल पर इन का कब्जा था. मेरी पूरी आजादी जैसे गिरवी रखी हो.

अचानक मुझे लगा कि कोई छत पर चल रहा है. ‘कौन होगा,’ यह सोचते ही मुझे सिहरन हो उठी. मेरी नींद खुल गई थी. सपना टूट गया था. मैं सुरक्षाकर्मियों की कैद से आजाद हो चुकी थी, लेकिन छत पर अभी भी किसी के चलने की आवाज आ रही थी. मैं डरतेडरते उठी और छत पर देखा तो एक गठरी में प्याज के छिलके, मुरगियों के पंख को लिए धीमे से छत पर सासूजी फैला रही थीं. मुझे सामने देख कर वे घबरा गईं, ‘‘व...वह बहू, बात यह थी कि...’’

‘‘क्या बात थी?’’

‘‘मुझे इन लोगों के साथ तुम्हारी बातचीत पसंद नहीं थी.’’

‘‘उस ने आप का क्या बिगाड़ा है? आप क्यों पूर्वाग्रह से ग्रस्त रहती हैं? वह मेरी बचपन की सहेली है, आप के कारण मैं ने क्याक्या ऊलजलूल सोच लिया-लड़ाई, दंगा, मर्डर, सुरक्षाकर्मी, कमांडो... ना सासूजी ना, आप को ऐसा नहीं करना चाहिए था.’’

‘‘गलती हो गई, बहू,’’ सासूजी थोड़ी सी ग्लानि से भरी हुई थीं.

‘‘सासूजी, अगर सायरा की जगह आप होतीं तो आप पर क्या गुजरती? सायरा एक औरत है और आप एक औरत हो कर भी एक औरत को प्रताडि़त करने की योजनाएं बना रही थीं? गलत है यह सबकुछ. किसी को जाति के आधार पर बुरा कहना, उस के बारे में बुरा सोचना गलत है. बहुत गलत,’’ कहतेकहते मेरा गला भर आया.

‘‘प्लीज बहू, मुझे माफ कर दो. सच में मैं गलत थी,’’ सासूजी ने कहा.

‘‘बात छोटी तो नहीं सासूजी पर सुबह का भूला शाम को लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते. अच्छा हुआ मैं ने सायरा पर किसी भी प्रकार की नाराजगी प्रकट नहीं की वरना हमारी बरसों की दोस्ती एक छोटे से शक के कारण खत्म हो जाती.’’

मैं ने कहा तो अचानक सायरा भी छत पर प्रकट हो गई. उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘लेकिन एक बात तो साबित हो गई कि तुम मुझ पर कितना भरोसा करती हो. तुम ने एक बार भी कुछ नहीं कहा, हालांकि मैं खुद भी इस बात को ले कर परेशान थी.’’ सायरा ने आगे बात जारी रखी, ‘‘मम्मीजी, हम जब भी मिलते हैं तो समाज, देश के हित की ही बातें करते हैं, कभी व्यक्तिगत, फालतू बातें नहीं करते हैं. आप तो हमारी अम्मी हैं, आप से क्या शिकायत?’’ सायरा ने कहा.

‘‘तुम दोनों अच्छी सहेलियां बनी रहो, यही मेरी तमन्ना है,’’ सासूजी ने कहा.

मैं ने सायरा को सपने में देखी कमांडो, सुरक्षाकर्मी की वे बातें बताईं तो हम दोनों उस बात पर जोरों से हंस दिए. पूरे वातावरण में खुशियों के मोती बिखर गए थे.

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