कहानी - कोचिंग इंस्टिट्यूट का ललचाता औफर
मेरा बेटा जरा सा बड़ा क्या हुआ, सारे कोचिंग इंस्टिट्यूट्स की आंखों की किरकिरी बन गया. आज तक सुना था कि बेटियां बड़ी होती हैं तो मांबाप की नींद उड़ जाती हैं पर आजकल तो इन कोचिंग इंस्ट्टियूट वालों ने मेरी नींद उड़ा रखी है. अभी बेचारे ने 10वीं के पेपर दिए ही हैं और ये बरसाती काई की तरह उसे अपने इंस्टिट्यूट में दाखिला देने को मरे जा रहे हैं. मैं खुश था कि मेरा बेटा बड़ा होनहार है, तभी अलगअलग जगह से उस के ऐडमिशन के लिए फोन पर फोन आ रहे हैं. मुझे आज भी याद है वह दिन जब मेरे मोबाइल की घंटी बजी और उधर से अति पढ़ेलिखे सज्जन ने कहा, ‘‘आप मयंक के पिताजी बोल रहे हैं?’’
अब इस से बड़ा गौरव किसी पिता के लिए क्या होगा कि वह अपने बच्चे के नाम से जाना जाए. तो मैं ने भी शान से कहा, ‘‘जी हां, बोल रहा हूं. आप कौन?’’
‘‘जी, मैं कोचिंग इंस्ट्टियूट से बोल रहा हूं.’’ मैं चौंक गया कि मेरे बेटे ने तो इस बाबत कोई चर्चा नहीं की.
खैर, ‘‘कहिए?’’ मैं ने पूछा.
‘‘आप का बेटा 10वीं में आ गया. आप ने उस के भविष्य के बारे में कुछ तो सोचा ही होगा?’’ मेरा मन किया पहले तो उसे धन्यवाद दूं मुझे यह बताने के लिए कि मेरा अपना बेटा 10वीं में आ गया और उस पर मेहरबानी तो देखो, उस के भविष्य के बारे में भी सोच रहा है. मैं तो बस निहाल ही हो गया.
‘‘नहीं, अभी तो हम ने कुछ नहीं सोचा.’’
मेरे ऐसा कहते ही वे सज्जन ऐसे चौंके जैसे मैं ने इंटरनैट के युग में तख्ती की बात कर दी हो.
‘‘क्या? अभी तक नहीं सोचा? खैर, कोई बात नहीं. अब सोच लीजिए. हम बच्चों को इंजीनियरिंग की कोचिंग कराते हैं. ये सारे बच्चे जो आईआईटी में हैं वे सब हमारे यहां ही पढ़े हैं. मैं खुद फिजिक्स पढ़ाता हूं और आईआईटी कानपुर से पढ़ा हूं. मेरी पत्नी कैमिस्ट्री पढ़ाती हैं. वे आईआईटी कानपुर की टौपर हैं.’’ मैं प्रभावित होने ही वाला था कि मेरा माथा ठनका कि इतनी शानदार पढ़ाई करने के बाद भी ट्यूशन सैंटर ही चलाना पड़ रहा है.
‘‘आप भी मयंक को हमारे यहां अभी से दाखिला दिला दें और उस के भविष्य से निश्ंिचत हो जाएं.’’ वह अपनी दुकानदारी समझा रहा था और मैं अपने खयालों में गुम था कि जब मेरे जैसा 33 फीसदी वाला थर्ड डिवीजन पास भी ठिकाने लग गया और ठीकठाक कमाखा रहा है तो कुछ न कुछ तो मयंक भी कर ही लेगा.
‘‘पर मैं ने अपने बेटे से अभी पूछा नहीं है उस के कैरियर के बारे में.’’
‘‘क्या सर, आप पछताएंगे. मैं बताए देता हूं. 2 साल बाद उस के सारे दोस्त इंजीनियर की पढ़ाई करेंगे और वह पीछे रह जाएगा.’’ अब चौंकने की बारी मेरी थी. ‘‘पर उस ने कब कहा कि वह इंजीनियर बनना चाहता है?’’
‘‘उस ने नौनमैडिकल विषय ही लिए हैं ना?’’ उस ने पूछा.
‘‘वह तो अभी 10वीं का रिजल्ट आएगा. तभी वह सबजैक्ट लेगा. अभी तो पेपर खत्म ही हुए हैं.’’ मैं ने उसे यथार्थ से अवगत करवाया.
‘‘सर, आप भी न, जाने कौन से जमाने में रहते हो? आजकल बच्चे पहले ही सब सोच लेते हैं और स्कूल भी उन की प्रतिभा को देख कर पहले ही सब्जैक्ट उन्हें दे देते हैं. खैर, कोई बात नहीं, आप अपने बेटे से बात कर लें, मैं फिर 2-4 दिनों बाद फोन करूंगा.’’ इतना बोल कर उस ने फोन काट दिया. शाम को जब मैं ने अपने नौनिहाल से बात की तो वह बोला, ‘‘पापा, ये इंस्टिट्यूट वाले तो बस जरा सा नंबर मिल जाए, पीछे पड़ जाते हैं.’’
‘‘पर बेटा, अगर तुझे इंजीनियरिंग करनी है तो ले ले दाखिला वे लोग बहुत पढ़ेलिखे हैं.’’
मैं ने फिर बेटे से उन की डिगरियों के बारे में बताया. ‘‘ये सब ऐसे ही होते हैं आप ने कौन सी इन की डिगरी फोन पर देख ली?’’
‘‘पर वैसे तू ने क्या सोचा है, क्या करेगा?’’
‘‘पापा, अभी मैं ने इस बारे में कुछ नहीं सोचा,’’ इतना बोल कर वह अपने कमरे में चला गया. दिल्ली यूनीवर्सिटी की कटऔफ देख कर मेरा मन बैठा जा रहा था कि जब पेपर ही 100 नंबर का आता है तो बच्चा 100.75 फीसदी नंबर कैसे लाएगा. लगता है 2 बार वही पेपर करना पड़ेगा. यानी कि डीयू से पत्ता साफ है और कोचिंग इंस्ट्टियूट के दरवाजे पर सुस्वागतम 12 महीने लिखा है. 4-5 दिनों बाद फिर उस जनाब का फोन आया, ‘‘सर, आप ने क्या सोचा?’’
मेरे ‘हैलो’ बोलते ही उधर से यह प्रश्न आया.
‘‘किस बारे में?’’ हैरान होते हुए मैं ने पूछा.
‘‘इंजीनियरिंग की कोचिंग के बारे में, सर.’’
‘‘नहीं भाई, मेरा बेटा नहीं मान रहा.’’ मैं ने खुलासा किया.
‘‘मैं कह रहा हूं, सर, आप पछताएंगे.’’
‘‘अरे बेटा इंजीनियरिंग नहीं करना चाहता तो क्या मैं खुद ऐडमिशन ले लूं?’’ मैं ने झल्लाते हुए फोन काट दिया. मानना पड़ेगा कि मेरे बेटे को 12वीं उस ने लगातार फोन करकर के पास कराई. जब इंजीनियरिंग में दाल नहीं गली, तो लाइन बदल दी.
‘‘सर, डाक्टर बना लो अपने बेटे को.’’
‘‘हैं?’’ मैं हैरान हो गया कि अब नौन मैडिकल ले कर भी डाक्टर बन जाते हैं. जमाना कितना बदल गया?
‘‘सर, वह तो हमारी सिरदर्दी है. आप तो बस खुश हो जाओ कि आप का बेटा रशिया में डाक्टर बनेगा.’’ रशिया का नाम आते ही दिल रशिया की सैर करने लगा. दिमाग ने डांटा और कहा कि बिना बायोलौजी लिए कोई डाक्टर कैसे बन सकता है. उस से बामुश्किल पीछा छूटा तो एक और फोन आ गया, ‘‘सर, डाक्टर, इंजीनियर न सही, आर्किटैक्ट ही बना लो अपने बेटे को.’’
मैं ने अपने दिमाग पर जोर देते हुए पूछा, ‘‘पर उस के लिए तो ‘नाटा’ का पेपर पास करना होता है न? ‘‘सर, उस की चिंता आप न करें. वो सब हमारी सिरदर्दी है. आप तो बस ‘हां’ कीजिए. हमारा एक इंस्ट्टियूट चंडीगढ़ में भी है. बस, एक ही सीट बची है, वह भी सिर्फ आप के बेटे के लिए. आप अपने बच्चे को एक हफ्ता वहां भेज दीजिए. हम सारी तैयारी करवा देंगे वहीं पर. ‘नाटा’ भी पास करवा देंगे. कोचिंग करवा कर और बच्चे का ऐडमिशन भी करवा देंगे कालेज में. हां, अगर आप चाहें तो आप भी एक हफ्ते के लिए उस के गार्जियन बन कर वहां रहें.’’
‘‘पर मैं वहां एक हफ्ता क्या करूंगा?’’ मैं ने हैरानपरेशान होते हुए पूछा.
‘‘सर, आप उस के साथ रहें, रोज सुबह सुखना लेक पर मौर्निंग वाक पर जाएं. फिर दिन में कभी रौक गार्डन तो कभी पिंजोर गार्डन घूम आएं. आप चाहें तो बीच में 2 दिन शिमला भी घूम आएं.’’ मैं उस का फोन सुन कर अभी तक सदमे में हूं कि वह मेरे बेटे के लिए स्टडी पैकेज औफर कर रहा था या फिर मेरे लिए वैकेशन पैकेज.
कोई टिप्पणी नहीं: