कहानी - गुलाबी कागज

विनती एक एटीएम से दूसरे एटीएम बदहवास सी भागी जा रही थी. कहीं कैश नहीं था. मां नारायणी और बड़ी बहन माया अस्पताल में बेचैनी से उस की प्रतीक्षा कर रही थीं. बाबूजी की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी पर डाक्टर 500 व 1,000 रुपए के पुराने नोट लेने को तैयार न थे. कल ही तो माया का इन पुराने नोटों की खातिर एक रिश्ता टूटा था. कहां तो आज माया डोली में बैठ कर विदा होने को थी और कहां बाबूजी ने सल्फास की गोलियां खा कर खुद अपनी विदाई का प्रबंध कर लिया था.

विनती के आगे लाइन में 30-40 लोग, बड़ी मुश्किल से मिले कैश वाले एटीएम के सामने खड़े थे. ‘जब तक उस का नंबर आए, कहीं कैश ही न खत्म हो जाए,’ वह यही सोच रही थी. आगे खड़े लोगों से आगे जाने के लिए उस की मिन्नतें कोई सुनसमझ नहीं रहा था. समझता भी कैसे, सब की अपनीअपनी विकराल जरूरतें मुंहबाए जो खड़ी थीं. तभी शोर मचा कि सुबह 5 बजे से लाइन में लगी घुटनों के बल जमीन पर बैठी वह वृद्ध, गरीब अम्मा चल बसी, भूखीप्यासी. वह किसी बड़े आदमी की मां तो न थी जो भरपेट पकवान खा कर 5-6 सेवकों के सहारे से नोट बदलवाने आती. कलेजा उछल कर मानो हलक में अटक गया. ‘ऐसे ही बाबूजी के साथ कहीं कुछ बुरा न हो गया हो,’ विनती इस आशंका से कांप उठी. उस ने माया दीदी को फिर फोन लगाया था.

कौल लगते ही पहले उधर से आवाज आई थी, ‘‘विनती, पैसे मिल गए क्या?’’

‘‘नहीं दीदी, अभी 30-40 लोग आगे हैं बस, हमारी बारी तक कैश खत्म नहीं होना चाहिए. बाबा को देखना...भैया के नोट बदले? फोन आया क्या?’’

‘‘कुछ जतन कर जल्दी, अनिल भी अभी तक हजार के उन नोटों में 2 भी कहीं नहीं बदल पाया. मां फिर बेहोश हो गई थीं. किसी तरह पानी के छींटे मारे तब होश आया. बहुत घबराहट हो रही है उन्हें. बाबूजी के पास ही लिटा दिया है. क्या करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा.’’

‘‘बैंक खुल गया है, अभीअभी 10 लोग अंदर गए हैं. देखो, शायद अब जल्दी नंबर आ जाए.’’

‘‘तू कोशिश करती रह,’’ फोन कट गया था.

उधर, अनिल धक्कामुक्की में लाइन में चौथे नंबर पर पहुंच चुका था. तभी 4 लोग लंबी सी गाड़ी से उतरे और बिना रोकटोक के बैंक में घुस गए. ‘‘बैंक के अफसर तो नहीं लगते,’’ अनिल ने बाहर चौकीदारी पर तैनात बैंककर्मी को टोका था.

‘‘अंदर क्यों जाने दिया इन्हें, हम इतनी देर से लाइन में लग कर बड़ी मुश्किल से यहां पहुंचे हैं. यह तो गलत बात है.’’ सभी क्रोध और विरोध में धक्का दे कर  बैंक के अंदर घुसना चाह रहे थे. भगदड़ सी मच गई. पुलिस और बैंककर्मी के सहयोग से वे 4 लोग अंदर हो लिए तो गेट बंद कर पुलिस वालों ने लगभग सवा सौ आदमियों पर लाठियां भाजनीं शुरू कर दीं. अनिल जो आगे ही खड़ा था, उसे भी लाठी लगी. उस का माथा फूट गया. वह बैंक की सीढि़यों पर ही गिर गया. रूमाल बांध कर किसी तरह उस ने खून के रिसाव को रोका और वहीं डट कर बैठ गया, कुछ भी हो नोट बदल कर ही जाऊंगा. डंडे खा कर बाकी लोग लाचारगी में शांत हो गए थे. तभी गेट खुला, वे चारों लोग बाहर हो लिए थे. गेटकीपर ने फिर गेट बंद कर दिया और कैश खत्म की तख्ती लटकाने लगा.

‘‘यह क्या, अभी तो बताया था आप ने लंच तक काफी लोग निबट जाएंगे आज इतना कैश है, फिर...?’’

‘‘भाई मेरे, उन्होंने नंबर पहले किसी से लगवा रखे थे. 2 लाख रुपए बचे थे.

50-50 हजार रुपए के 4 चैक से उन्होंने नोट निकाल लिए. हम मना तो नहीं कर सकते ऐसे में किसी को.’’

‘‘यह बेईमानी है.’’

‘‘जनता के साथ सरासर धोखा है.’’

‘‘रोजरोज के बदलते नियमोंफैसलों से थक कर परेशान हैं हम. क्यों नहीं सभी सही नोटों पर एक्सपाइरी छाप देते और आरबीआई की स्टैंप लगाते जाते, इस तरह का कोई आसान हल ढूंढ़ते पहले.’’

‘‘हम सब भी देश की प्रगति चाहते हैं, कालाधन बंद हो, पर उचित व्यवस्था तो पहले कर लेनी चाहिए थी.’’

‘‘न पर्याप्त नए नोट ही छपे, न एटीएम ही काम कर रहे.’’

‘‘पर नकली नोट बड़ी तेजी से छप कर मार्केट में आ जाते हैं, कमाल है, कालेधन पर ऐसे नियंत्रण होगा?’’

‘‘उस पर से, कमीशन पर पैसे बदलने के नएनए खुलते जा रहे धंधोंहथकंडों का क्या?’’

चारों ओर मचे शोर में अनिल की आवाज भी कहीं शामिल हो कर खो रही थी. उस का सिर घूमने लगा. वह सिर पकड़ कर थोड़ी देर को बैठना चाहता था, पर नहीं, उसे किसी भी हालत में नोट बदल कर बाबा के पास पहुंचना ही होगा, यों बैठ नहीं सकता. वह निकल पड़ा दूसरी ब्रांच, दूसरे एटीएम की ओर. उस की बाइक की तरह उस का सिर भी तेजी से घूम रहा था. परेशानियों के साथ घाव अपना शिकंजा कसता ही जा रहा था. बैलेंस बिगड़ा, अचानक वह डिवाइडर से टकराया और फिर बाइक कहीं, हैलमेट कहीं, वह सड़क पर गिर पड़ा. पीछे से आ रही तेज रफ्तार किसी अमीरजादे की, बीएमडब्लू उसे बेफिक्री से हिट कर सरपट जा चुकी थी. वह औंधेमुंह अचेतन सड़क पर पड़ा था. कुछ लोग इकट्ठे हो गए. पुलिस ने आ कर काम शुरू कर दिया, तो एटीएम कार्ड के साथ एक हजार रुपए के 5 नोट और आधारकार्ड मिल गए थे.

इधर, विनती लाइन में लगी 10वें नंबर पर आ गई थी. ‘इस बार 10 लोगों को अंदर किया तो मुझे भी पैसे मिल जाएंगे,’ यह सोच कर उसे थोड़ी आस बंधी.

‘‘चलिएचलिए, 10-12 लोग अंदर आ जाइए.’’ बैंककर्मी की आवाज आते ही रेले के साथ विनती भी अंदर हो ली. जब तक उसे पैसे मिल नहीं गए, धुकधुक लगी रही. चैक से मिल गए थे उसे 2 गुलाबी कागज यानी 2 हजार रुपए. ‘2 पिंक नोट, कितने कीमती, बाबा की जान बचा सकेंगे.’ उस ने राहत की सांस ली.’ ‘जल्दी पहुंचना होगा. दीदी को बता दूं पैसे मिल गए,’ पर मोबाइल डिस्चार्ज हो चुका था. वह तेजी से भागी. परेशान मन उस से तेज भाग रहा था. ‘क्या पता भैया ही नोट बदलवा कर पहले पहुंच गए हों और बाबा का उपचार हो रहा हो. काश, ऐसा ही हुआ हो’, रास्तेभर ऐसा ही सोचतेसोचते वह अस्पताल में लगभग भागती हुई घुसी.

गुलाबी कागज हाथ में भींचे हुए वह कैश काउंटर पर पहुंची थी. पीछे से किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा था. उस की माया दीदी थी, ‘‘बाबा, हमें छोड़ कर चले गए दुनिया से, विनती.’’ वह विनती से लिपट कर फफक कर रो पड़ी. हृदयविदारक चीख निकली थी दोनों बहनों की. बाबूजी की छाती पर सिर रखे अम्मा उन्हें बारबार उठ जाने के लिए कह रही थीं.

‘‘तैयार नहीं हुए? माया की बरात आने वाली है. देखो, सब बाहर तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, जल्दी करो.’’ सदमे का उन के दिमाग पर असर हो गया था. वे बकझक करने लगी थीं.

इधर, माया का मोबाइल बजा था. ‘‘कहां था? कब से फोन लगा रही तुझे. सब ख़त्म हो गया, बाबूजी नहीं रहे. अन्नू, आ जा बहुत हो गई नोट बदली. सरकार ने तो हम सब की जिंदगी बदल कर रख दी.’’ एक सांस में बोल कर माया रोए जा रही थी तो विनती ने फोन ले कर अपने कानों से लगाया तो आवाज सुनाई दी, ‘‘मैडम, बात सुनिए, मैं पुलिस इंस्पैक्टर यादव, सफदर जंग अस्पताल से बोल रहा हूं. अनिल के सिर पर गंभीर चोटें आई हैं, यहां इमरजैंसी में भरती है, इलाज चल रहा है, फौरन पहुंचें.’’

हृदय चीत्कार उठा. सुनते ही विनती ने उन पिंक नोटों को मुट्ठी में भींच लिया जैसे वे अब केवल कागज हों...गुलाबी कागज, जिन का कुछ रंग उतर कर उस की हथेली पर आ गया था, जिस ने उन के हरेभरे जीवन को बदरंग कर दिया. आंसुओं में भीगे शून्य में ताकते कई चेहरे इसी तरह स्याह, सफेद व बेरंग होते रहे, फिर चाहे अस्पताल हो, बैंक एटीएम हो या और कोई जगह. पर फर्क किसे पड़ा? किसे पड़ना चाहिए था? कौन देखता है? बस, जनता के सेवकों की तानाशाही राजनीति जारी है, वह बखूबी चलनी चाहिए. विनती की मुट्ठी का मुड़ातुड़ा नोट जैसे यही बयान किए जा रहा था. 

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