कहानी - नई शुरुआत

दिशा रसोई में फटाफट काम कर रही थी. मनीष और क्रिया अपनेअपने कमरों में सो रहे थे. यहीं से उस के दिन की शुरुआत होती थी. 5 बजे उठ कर नाश्ता और दोपहर का खाना तैयार कर, मनीष और 13 वर्षीया क्रिया को जगाती थी. उन्हें जगा कर फिर अपनी सुबह की चाय के साथ 2 बिस्कुट खाती थी. उस ने घड़ी पर निगाह डाली तो 6:30 बज गए थे. वह जल्दी से जा कर क्रिया को जगाने लगी.

‘‘क्रिया उठो, 6:30 बज गए,’’ बोल कर वह वापस अपने काम में लग गई.

‘‘मम्मा, आज हम तृष्णा दीदी के मेहंदी फंक्शन में जाएंगे.’’

‘‘ओफ्फ, क्रिया, तुम्हें स्कूल के लिए तैयार होना है. देर हो गई तो स्कूल में एंट्री बंद हो जाएगी और फिर तुम्हें घर पर अकेले रहना पड़ेगा,’’ गुस्से से दिशा ने कहा, ‘‘जाओ, जल्दी से स्कूल के लिए तैयार हो जाओ, मेरा सिर न खाओ.’’ क्रिया पैर पटकती हुई बाथरूम में अपनी ड्रैस ले कर नहाने चली गई. दिशा को सब काम खत्म कर के 8 बजे तक स्कूल पहुंचना होता था, इसलिए उस का पारा रोज सुबह चढ़ा ही रहता था. 7 बज गए तो वह मनीष को जगाने गई. ‘‘कभी तो अलार्म लगा लिया करो. कितनी दिक्कत होती है मुझे, कभी इस कमरे में भागो तो कभी उस कमरे में. और एक तुम हो, जरा भी मदद नहीं करते,’’ गुस्से से भरी दिशा जल्दीजल्दी सफाई करने लगी. साथ ही बड़बड़ाती जा रही थी, ‘जिंदगी एक मशीन बन कर रह गई है. काम हैं कि खत्म ही नहीं होते और उस पर यह नौकरी. काश, मनीष अपनी जिम्मेदारी समझते तो ऐसी परेशानी न होती.’

मनीष ने क्रिया और दिशा को स्कूटर पर बैठाया और स्कूल की ओर रवाना हो गया.

दिशा की झुंझलाहट कम होने का नाम नहीं ले रही थी. जल्दीजल्दी काम निबटाते भी वह 15 मिनट देर से स्कूल पहुंची. शुक्र है पिं्रसिपल की नजर उस पर नहीं पड़ी, वरना डांट खानी पड़ती. अपनी क्लास में जा कर जैसे ही उस ने बच्चों को पढ़ाने के लिए ब्लैकबोर्ड पर तारीख डाली 04/04/16. उस का सिर घूम गया.

4 तारीख वो कैसे भूल गई, आज तो रिया का जन्मदिन है. है या था? सिर में दर्द शुरू हो गया उस के. जैसेतैसे क्लास पूरी कर वह स्टाफरूम में पहुंची. कुरसी पर बैठते ही उस का सिरदर्द तेज हो गया और वह आंखें बंद कर के कुरसी पर टेक लगा कर बैठ गई. रिया का गुस्से वाला चेहरा उस की आंखों के आगे आ गया. कितना आक्रोश था उस की आंखों में. वे आंखें आज भी दिशा को रातरात भर जगा देती हैं और एक ही सवाल करती हैं - ‘मेरा क्या कुसूर था?’ कुसूर तो किसी का भी नहीं था. पर होनी को कोई टाल नहीं सकता. कितनी मन्नतोंमुरादों से दिशा और मनीष ने रिया को पाया था. किस को पता था कि वह हमारे साथ सिर्फ 16 साल तक ही रहेगी. उस के होने के 4 साल बाद क्रिया हो गई. तब से जाने क्यों रिया के स्वभाव में बदलाव आने लगा. शायद वह दिशा के प्यार पर सिर्फ अपना अधिकार समझती थी, जो क्रिया के आने से बंट गया था.

जैसेजैसे रिया बड़ी होती रही, दिशा और मनीष से दूर होती रही. मनीष को इन सब से कुछ फर्क नहीं पड़ता था. उसे तो शराब और सिगरेट की चिंता होती थी बस, उतना भर कमा लिया. बीवीबच्चे जाएं भाड़ में. खाना बेशक न मिले पर शराब जरूर चाहिए उसे. उस के लिए वह दिशा पर हाथ उठाने से भी गुरेज नहीं करता था. अपनी बेबसी पर दिशा की आंखें भर आईं. अगर क्रिया की चिंता न होती तो कब का मनीष को तलाक दे चुकी होती. दिशा का सिर अब दर्द से फटने लगा तो वह स्कूल से छुट्टी ले कर घर आ गई. दवा खा कर वह अपने कमरे में जा कर लेट गई. आंखें बंद करते ही फिर वही रिया की गुस्से से लाल आंखें उसे घूरने लगीं. डर कर उस ने आंखें खोल लीं.

सामने दीवार पर रिया की तसवीर लगी थी जिस पर हार चढ़ा था. कितनी मासूम, कितनी भोली लग रही है. फिर कहां से उस में इतना गुस्सा भर गया था. शायद दिशा और मनीष से ही कहीं गलती हो गई. वे अपनी बड़ी होती रिया पर ध्यान नहीं दे पाए. शायद उसी दिन एक ठोस समझदारी वाला कदम उठाना चाहिए था जिस दिन पहली बार उस के स्कूल से शिकायत आई थी. तब वह छठी क्लास में थी. ‘मैम आप की बेटी रिया का ध्यान पढ़ाई में नहीं है. जाने क्या अपनेआप में बड़बड़ाती रहती है. किसी बच्चे ने अगर गलती से भी उसे छू लिया तो एकदम मारने पर उतारू हो जाती है. जितना मरजी इसे समझा लो, न कुछ समझती है और न ही होमवर्क कर के आती है. यह देखिए इस का पेपर जिस में इस को 50 में से सिर्फ 4 नंबर मिले हैं.’ रिया पर बहुत गुस्सा आया था दिशा को जब रिया की मैडम ने उसे इतना लैक्चर सुना दिया था.

‘आप इस पर ध्यान दें, हो सके तो किसी चाइल्ड काउंसलर से मिलें और कुछ समय इस के साथ बिताएं. इस के मन की बातें जानने की कोशिश करें.’

रिया की मैडम की बात सुन कर दिशा ने अपनी व्यस्त दिनचर्या पर नजर डाली. ‘कहां टाइम है मेरे पास? मरने तक की तो फुरसत नहीं है. काश, मनीष की नौकरी लग जाए या फिर वह शराब पीना छोड़ दे तो हम दोनों मिल कर बेटी पर ध्यान दे सकते हैं,’ दिशा ने सोचा लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं.

फिर तो बस आएदिन रिया की शिकायतें स्कूल से आती रहती थीं. दिशा को न फुरसत मिली उस से बात करने की, न उस की सखी बनने की. एक दिन तो हद ही हो गई जब मनीष उसे हाथ से घसीट कर घर लाया था.

‘क्या हुआ? इसे क्यों घसीट रहे हो. अब यह बड़ी हो गई है.’ दिशा ने उस का हाथ मनीष के हाथ से छुड़ाते हुए कहा.

मनीष ने दिशा को धक्का दे कर पीछे कर दिया और तड़ातड़ 3-4 चाटें रिया को लगा दिए.

दिशा एकदम सकते में आ गई. उसे समझ नहीं आया कि रिया को संभाले या मनीष को रोके.

मनीष की आंखें आग उगल रही थीं.

‘जानती हो कहां से ले कर आया हूं इसे. मुझे तो बताते हुए भी शर्म आती है.’

दिशा हैरानी से मनीष की तरफ सवालिया नजरों से देखती रही.

‘पुलिस स्टेशन से.’

‘क्या?’ दिशा का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘इंसपैक्टर प्रवीर शिंदे ने मुझे बताया कि उन्होंने इसे एक लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा था.’ दिशा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और वह रिया को खा जाने वाली नजरों से देखने लगी. रिया की आंखों से अब भी अंगारे बरस रहे थे और फिर उस ने गुस्से से जोर से परदों को खींचा और अपने कमरे में चली गई. मनीष अपने कमरे में जा कर अपनी शराब की बोतल खोल कर पीने लग गया. दिशा रिया के कमरे की तरफ बढ़ी तो देखा कि दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने बहुत आवाज लगाई पर रिया ने दरवाजा नहीं खोला. एक घंटे के बाद जब मनीष पर शराब का सुरूर चढ़ा तो वह बहकते कदमों से लड़खड़ाते हुए रिया के कमरे के दरवाजे के बाहर जा कर बोला, ‘रिया, मेरे बच्चे, बाहर आ जा. मुझे माफ कर दे. आगे से तुझ पर हाथ नहीं उठाऊंगा.’ दिशा जानती थी कि यह शराब का असर है, वरना प्यार से बात करना तो दूर, वह रिया को प्यारभरी नजरों से देखता भी नहीं था.

रिया ने दरवाजा खोला और पापा के गले लग कर बोली, ‘पापा, आई एम सौरी.’

दोनों बापबेटी का ड्रामा चालू था. न वह मानने वाली थी और न मनीष. दिशा कुछ समझाना चाहती तो रिया और मनीष उसे चुप करा देते. हार कर उस ने भी कुछ कहना छोड़ दिया. इस चुप्पी का असर यह हुआ कि दिशा से उस की दूरियां बढ़ती रहीं और रिया के कदम बहकने लगे.

दिशा आज अपनेआप को कोस रही थी कि अगर मैं ने उस चुप्पी को न स्वीकारा होता तो रिया आज हमारे साथ होती. बातबात पर रिया पर हाथ उठाना तो रोज की बात हो गई थी. आज उसे महसूस हो रहा था कि जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उन के साथ दोस्तों सा व्यवहार करना चाहिए. कुछ पल उन के साथ बिताने चाहिए, उन के पसंद का काम करना चाहिए ताकि हम उन का विश्वास जीत सकें और वे हम से अपने दिल की बात कह सकें. पर दिशा यह सब नहीं कर पाई और अपनी सुंदर बेटी को आज के ही दिन पिछले साल खो बैठी.

आज उसे 4 अप्रैल, 2015 बहुत याद आ रहा था और उस दिन की एकएक घटना चलचित्र की भांति उस की आंखों के बंद परदों से हो कर गुजरने लगी...

कितनी उत्साहित थी रिया अपने सोलहवें जन्मदिन को ले कर. जिद कर के 4 हजार रुपए की पिंक कलर की वह ‘वन पीस’ ड्रैस उस ने खरीदी थी. कितनी मुश्किल से वह ड्रैस हम उसे दिलवा पाए थे. वह तो अनशन पर बैठी थी.

स्कूल से छुट्टी कर ली थी उस ने जन्मदिन मनाने के लिए. सुबहसवेरे तैयार होने लगी. 4 घंटे लगाए उस दिन उस ने तैयार होने में. बालों की प्रैसिंग करवाई, फिर कभी ऐसे, कभी वैसे बाल बनाते हुए उस ने दोपहर कर दी. जब दिशा उस दिन स्कूल से लौटी तो एक पल निहारती रह गई रिया को.

‘हैप्पी बर्थडे, बेटा.’

दिशा ने कहा तो रिया ने जवाब दिया, ‘रहने दो मम्मी, अगर आप को मेरे जन्मदिन की खुशी होती तो आज आप स्कूल से छुट्टी ले लेतीं और मुझे कभी मना नहीं करतीं इस ड्रैस के लिए.’ दिशा का मन बुझ गया पर वह रिया का मूड नहीं खराब करना चाहती थी. दिशा यादों में डूबी थी कि तभी क्रिया की आवाज सुन कर उस की तंद्रा भंग हुई.

‘‘मम्मा, मम्मा आप अभी तक सोए पड़े हो?’’ क्रिया ने घर में घुसते ही सवाल किया. दिशा का चेहरा पूरा आंसुओं से भीग गया था. वह अनमने मन से उठी और रसोई में जा कर क्रिया के लिए खाना गरम करने लगी. क्रिया ने फिर सुबह वाला प्रश्न दोहराया, ‘‘मम्मी, क्या हम तृष्णा दीदी के मेहंदी फंक्शन में जाएंगे?’’

दिशा ने कोई जवाब नहीं दिया. क्रिया बारबार अपना प्रश्न दोहराने लगी तो उस ने गुस्से में कहा, ‘‘नहीं, हम किसी फंक्शन में नहीं जाएंगे.’’ आज रिया की बरसी थी तो ऐसे में वह कैसे किसी फंक्शन में जाने की कल्पना कर सकती थी. क्रिया को बहुत गुस्सा आया. शायद वह इस फंक्शन में जाने के लिए अपना मन बना चुकी थी. उसे ऐसे फंक्शन पर जाना अच्छा लगता था और मां का मना करना उसे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था.

‘‘मम्मा, आप बहुत गंदे हो, आई हेट यू, मैं कभी आप से बात नहीं करूंगी.’’ गुस्से से बोलती हुई क्रिया अपने कमरे में चली गई और उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

दरवाजे की तेज आवाज से मनीष का नशा टूटा तो वह कमरे से चिल्लाया, ‘‘यह क्या हो रहा है इस घर में? कोई मुझे बताएगा?’’

दिशा बेजान सी कमरे की कुरसी पर धम्म से गिर गई. उस की नजरें कभी मनीष के कमरे के दरवाजे पर जातीं, कभी क्रिया के बंद दरवाजे पर तो कभी रिया की तसवीर पर. अचानक उसे सब घूमता हुआ नजर आया, ठीक वैसे ही जब पिछले साल 4 तारीख को फोन आया था, ‘देखिए, मैं डाक्टर दत्ता बोल रहा हूं सिटी हौस्पिटल से. आप जल्द से जल्द यहां आ जाएं. एक लड़की जख्मी हालत में यहां आई है. उस के मोबाइल से ‘होम’ वाले नंबर पर मैं ने कौल किया है. शायद, यह आप के घर की ही कोई बच्ची है.’

यह सुनते ही दिल जोरजोर से धड़कने लगा, वह रिया नहीं है. अगर वह रिया नहीं हैं तो वह कहां हैं? अचानक उसे याद आया, वह तो 6 बजे अपने दोस्तों के साथ जन्मदिन मनाने गई थी. असमंजस की स्थिति में वह और मनीष हौस्पिटल पहुंचे तो डाक्टर उन्हें इमरजैंसी वार्ड में ले गया और यह जानने के बाद कि वे उस लड़की के मातापिता हैं, बोला, ‘आई एम सौरी, इस की डैथ तो औन द स्पौट ही हो गई थी.’ अचानक से आसमान फट पड़ा था दिशा पर. वह पागलों की तरह चीखने लगी और जोरजोर से रोने लगी. ‘इस के साथ एक लड़का भी था वह दूसरे कमरे में है. आप चाहें तो उस से मिल सकते हैं.’

मनीष और दिशा भाग कर दूसरे कमरे में गए. और गुस्से से बोले, ‘बोल, क्यों मारा तू ने हमारी बेटी को, उस ने तेरा क्या बिगाड़ा था?’

16 साल का हितेश घबरा गया और रोतेरोते बोला, ‘आंटी, आंटी, मैं ने कुछ नहीं किया, वह तो मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी.’

‘फिर ये सब कैसे हुआ? बता, नहीं तो मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं,’ मनीष ने गुस्से में कहा. ‘अंकल, हम 4 लोग थे, रिया और हम 3 लड़के. मोटरसाइकिल पर बैठ कर हम पहले हुक्का बार गए...’

मनीष और दिशा की आंखें फटी की फटी रह गईं यह जान कर कि उन की बेटी अब हुक्का और शराब भी पीने लगी थी. फिर मैं ने रिया से कहा, ‘रिया काफी देर हो गई है. चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं. पर अंकल, वह नहीं मानी, बोली कि आज घर जाने का मन नहीं है. ‘मेरे बहुत समझाने पर बोली कि अच्छा, थोड़ी देर बाद घर छोड़ देना तब तक लौंग ड्राइव पर चलते हैं. तभी, अंकल आप का फोन आया था जब आप ने घर जल्दी आने को कहा था. पर वह तो जैसे आजाद होना चाहती थी. इसीलिए उस ने आगे बढ़ कर चलती मोटरसाइकिल से चाबी निकालने की कोशिश की और इस सब में मोटरसाइकिल का बैलेंस बिगड़ गया और वह पीछे की ओर पलट गई. वहीं, डिवाइडर पर लोहे का सरिया सीधा उस के सिर में लग गया और उस ने वहीं दम तोड़ दिया.’

दहशत में आए हितेश ने सारी कहानी रोतेरोते बयान कर दी. दिशा और मनीष सकते में आ गए और जानेअनजाने में हुई अपनी गलतियों पर पछताने लगे. काश, हम समय रहते समझ पाते तो आज रिया हमारे बीच होती. तभी अचानक दिशा वर्तमान में लौट आई और उसे क्रिया का ध्यान आया जो अब भी बंद दरवाजे के अंदर बैठी थी. दिशा ने कुछ सोचा और उठ कर क्रिया का दरवाजा खटखटाने लगी, ‘‘क्रिया बेटा, दरवाजा खोलो.’’

अंदर से कोई आवाज नहीं आई.

‘‘अच्छा बेटा, आई एम सौरी. अच्छा ऐसा करना, वह जो पिंक वाली ड्रैस है, तुम आज रात मेहंदी फंक्शन में वही पहन लेना. वह तुम पर बहुत जंचती है.’’ दिशा का इतना बोलना था कि क्रिया झट से बाहर आ कर दिशा के गले लग गई और बोली, ‘‘सच मम्मा, हम वहां बहुत मस्ती करेंगे, यह खाएंगे, वह खाएंगे. आई लव यू, मम्मा.’’ बच्चों की खुशियां भी उन की तरह मासूम होती हैं, छोटी पर अपने आप में पूर्ण. शायद यह बात मुझे बहुत पहले समझ आ गई होती तो रिया कभी हम से जुदा नहीं होती. दिशा ने सोचा, वह अपनी एक बेटी खो चुकी थी पर दूसरी अभी इतनी दूर नहीं गई थी जो उस की आवाज पर लौट न पाती. दिशा ने कस कर क्रिया को गले से लगा लिया इस निश्चय के साथ कि वह इतिहास को नहीं दोहराएगी.

अगले दिन उस ने अपने स्कूल में इस्तीफा भेज दिया इस निश्चय के साथ कि वह अब अपनी डोलती जीवननैया की पतवार बन कर मनीष और क्रिया को संभालेगी. सब से पहले वह अपनी सेहत पर ध्यान देगी और गुस्से को काबू करने के लिए एक्सरसाइज करेगी. घर बैठे ही ट्यूशन से आमदनी का जरिया चालू करेगी. काश, ऐसा ही कुछ रिया के रहते हो गया होता तो रिया आज उस के साथ होती. इस तरह अपनी गलतियों को सुधारने का निश्चय कर के दिशा अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर चुकी थी.

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