कहानी - चेहरे की चमक

मेरे लिए गुंजन का रिश्ता मेरी सब से समझदार बूआ ने बताया था. बूआ गुंजन की मामी की सहेली हैं. आज शाम को वे लोग हमारे घर आ रहे हैं.

पापा टैंशन में आ कर खूब शोर मचा रहे थे, ‘‘अब तक बाजार से मिठाई भी नहीं लाई गई...मेरी समझ में नहीं आता कि कई घंटे लगाने के बाद भी तुम लोग वक्त से तैयार क्यों नहीं हो पाते हो...अब बाजार भी मुझ को ही जाना पड़ेगा... ड्राइंगरूम में जो भी फालतू चीजें बिखरी पड़ी हैं, इन्हें कहीं और उठा कर रख देना...पता नहीं तुम लोग वक्त से सारे काम करना कब सीखोगे?’’

पापा के इस तरह के लैक्चर आज दोपहर से राजीव भैया, नीता भाभी और मेरे लिए चल रहे थे. उन के बाजार चले जाने के बाद सचमुच घर में शांति महसूस होने लगी.

राजीव भैया की शादी के कुछ महीने बाद मां की मृत्यु हो गई थी. उन के अभाव ने पापा को बहुत चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना दिया था. उन की कड़वी, तीखी बातें सुन कर नीता भाभी का मुंह आएदिन सूजा रहता था. अब तो वे पापा को जवाब भी दे देती थीं और भैया भी उन का पक्ष लेने लगे थे.

घर में बढ़ते झगड़ों को देख मैं पापा को शांत रहने के लिए बहुत समझाता, पर वे अपने अंदर सुधार लाने को तैयार नहीं थे.

‘घर में गलत काम होते मैं नहीं देख सकता. बदलना तुम लोगों को है, मुझे नहीं,’ पापा उलटा मुझे डांट कर चुप करा देते.

पापा के बाजार से लौटने तक मेहमान आ चुके थे. गुंजन की मम्मी के साथ उन के भैयाभाभी और बड़ी बेटी व दामाद आए थे.

पापा सब का अभिवादन स्वीकार करने के बाद सामान रखने घर के भीतर जाने लगे तो गुंजन की मम्मी ने हैरानी भरी आवाज में उन से पूछा, ‘‘आप राजेंद्र हो न? एसडी कालेज में पढ़े हैं न आप?’’

‘‘जी, लेकिन मैं ने...’’

‘‘तुम मुझे कैसे पहचान पाओगे? मैं अब मोटी हो गई हूं, बाल सफेद हो चले हैं और आंखों पर चश्मा जो लग गया है. अरे, मैं सीमा हूं...तब सीमा कौशिक होती थी. तुम मेरे नोट्स पढ़ कर ही पास होते थे. अब तो पहचान लो, भई,’’ सीमाजी ने हंसते हुए पापा की यादों को कुरेदा.

दिमाग पर कुछ जोर दे कर पापा ने कहा, ‘‘हां, अब याद आ गया,’’ और अपने हाथ में पकड़ा सामान मुझे देने के बाद वे गुंजन की मम्मी के सामने आ बैठे, ‘‘तुम इतनी ज्यादा भी नहीं बदली हो. तुम्हारी आवाज तो बिलकुल वही है. मुझे पहली नजर में ही पहचान लेना चाहिए था.’’

‘‘जैसे मैं ने पहचाना.’’

‘‘पता नहीं तुम ने कैसे पहचान लिया? मेरी शक्ल तो बिलकुल बदल गई है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे बेटे रवि में तुम्हारी उन दिनों की शक्लसूरत की झलक साफ नजर आती है. शायद इसी समानता ने तुम्हें पहचानने में मेरी मदद की. देखो, क्या गजब का संयोग है. मैं अपनी बेटी का रिश्ता तुम्हारे बेटे के लिए ले कर आई हूं.’’

‘‘मेरी समझ से यह अच्छा ही है क्योंकि कालेज में जैसा आकर्षक व्यक्तित्व तुम्हारा होता था, अगर तुम्हारी बेटी वैसी ही है तो मेरे बेटे रवि की तो समझो लाटरी ही निकल आई,’’ पापा के इस मजाक पर हम सब खूब जोर से हंसे तो सीमा आंटी एकदम शरमा गईं.

अब तक सब के मन की हिचक समाप्त हो गई थी. पापा सीमा आंटी के साथ कालेज के समय की यादों को ताजा करने लगे. उन के भैयाभाभी व बेटीदामाद ने मुझ से मेरे बारे में जानकारी लेनी शुरू कर दी. नीता भाभी नाश्ते की तैयारी करने अंदर रसोई में चली गईं. राजीव भैया खामोश रह कर हम सब की बातें सुन रहे थे.

उन लोगों के साथ 2 घंटे का समय कब गुजर गया, पता ही नहीं चला. पापा तो ऐसे खुश नजर आ रहे थे मानो यह रिश्ता पक्का ही हो गया हो.

सीमा आंटी ने चलने से पहले पापा के सामने हाथ जोड़ दिए और भावुक लहजे में बोलीं, ‘‘राजेंद्र, मेरे पास दहेज में देने को ज्यादा कुछ नहीं है. गुंजन के पापा के बीमे व फंड के पैसों से मैं ने बड़ी बेटी की शादी की है और अब छोटी की करूंगी. तुम्हारी कोई खास मांग हो तो अभी...’’

‘‘मुझे जलील करने वाली बात मत करो, सीमा,’’ पापा ने बीच में टोक कर उन्हें चुप करा दिया, ‘‘रवि को गुंजन पसंद आ जाए...और मुझे विश्वास है कि तुम्हारी बेटी इसे जरूर अच्छी लगेगी, तो यह रिश्ता मेरी तरफ से पक्का हुआ. दहेज में मुझे एक पैसा नहीं चाहिए. तुम दहेज की टैंशन मन से बिलकुल निकाल दो.’’

सीमा आंटी बोलीं, ‘‘राजेंद्र, किन शब्दों में तुम्हारा शुक्रिया अदा करूं? अब आप सब लोग हमारे घर कब आओगे?’’

‘‘अगले संडे की शाम को आते हैं,’’ पापा ने उतावली दिखाते हुए कहा.

‘‘ठीक है. अब हम चलेंगे. तुम से मिल कर मन बहुत खुश है और बड़ी राहत भी महसूस कर रहा है. तुम्हारा बेटा रवि हमें तो बहुत भाया है. मेरी दिली इच्छा है कि इस घर से हमारा रिश्ता जरूर जुड़ जाए.’’

पापा के चेहरे के भाव साफ बता रहे थे कि उन की वही इच्छा है जो सीमा आंटी की है.

उन सब के जाने के बाद राजीव भैया पापा से उलझ गए, ‘‘आप को यह कहने की क्या जरूरत थी कि हमें दहेज में एक पैसा भी नहीं चाहिए? उन्हें इंजीनियर लड़का चाहिए तो शादी अच्छी करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘अपनी बेटी की अच्छी शादी तो हर मांबाप करते ही हैं. सीमा से जानपहचान ही ऐसी निकल आई कि अपने मुंह से कुछ मांग बताने पर मैं अपनी ही नजरों में गिर जाता,’’ पापा ने शांत स्वर में भैया को समझाया.

‘‘कालेज के दिनों में आप का उन के साथ कोई प्यार का चक्कर तो नहीं चला था न?’’ राजीव भैया ने उन्हें छेड़ा.

‘‘अरे, नहीं,’’ पापा एकदम से शरमाए तो हम तीनों ठहाका मार कर हंस पड़े थे.

‘‘आगे से बिलकुल दहेज न लेने की बात मत करना, पापा,’’ ऐसी सलाह दे कर राजीव भैया अपने कमरे में चले गए थे.

पापा ने बुरा सा मुंह बनाते हुए मुझ से कहा, ‘‘तेरा बड़ा भाई उन लोगों में से है जिन का पेट कभी नहीं भरता. लेकिन तू चिंता न कर बच्चे, अगर सीमा की बेटी सूरत, सीरत से अच्छी हुई तो मैं तेरे भाई की एक न सुनते हुए रिश्ता पक्का कर दूंगा.’’

‘‘ठीक कह रहे हैं आप, पापा. सीमा आंटी के नोट्स पढ़ कर आप ने जो गे्रजुएशन किया है, अब उस एहसान का बदला चुकाने का वक्त आ गया है. आप गुंजन को देखे बिना भी अगर इस रिश्ते को ‘हां’ करना चाहें तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा.’’

मेरी इस बात को सुन पापा बहुत खुश हुए और दिल खोल कर खूब हंसे भी.

रविवार को हम लोग शाम के 5 बजे के करीब सीमा आंटी के घर पहुंच गए. उन के भैयाभाभी और बेटीदामाद ने हमारा स्वागत किया. कुछ देर बाद गुंजन भी हम सब के बीच आ बैठी थी.

पहली नजर में उस ने मुझे बहुत प्रभावित किया. वह मुझे सुंदर ही नहीं बल्कि स्मार्ट भी लगी. हम सब के साथ खुल कर बातें करने में वह जरा भी नहीं हिचक रही थी.



मेरे बारे में कुछ जानने से ज्यादा उसे पापा से अपनी मम्मी के कालेज के दिनों की बातें सुनने में ज्यादा दिलचस्पी थी. पापा एक बार उन दिनों के बारे में बोलना शुरू हुए तो उन्हें रोकना मुश्किल हो गया. उन के पास सुनाने को बहुत कुछ ऐसा था जिस से हम दोनों भाई भी परिचित नहीं थे. पापा को खूब बोलते देख राजीव भैया मन ही मन कुढ़ रहे थे, यह उन के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था. मुझे तो पापा के चेहरे पर नजर आ रही चमक बड़ी अच्छी लग रही थी. उन के कालेज के दिनों की बातें सुनने में मुझे सचमुच बहुत मजा आ रहा था.

‘‘उन दिनों साथ पढ़ने वाली लड़कियों के साथ लड़कों का बाहर घूमने या फिल्म देखने का सवाल ही नहीं पैदा होता था. लड़कियां कभी कालेज की कैंटीन में चाय पीने को तैयार हो जाती थीं तो लड़के फूले नहीं समाते थे.’’

‘‘तब अधिकतर एकतरफा प्यार हुआ करता था. कोई हिम्मती लड़का ही गर्लफ्रैंड बना पाता था, नहीं तो अधिकतर अपने दिल की रानी के सपने देखते हुए ही कालेज की पढ़ाई पूरी कर जाते थे,’’ पापा ने बड़े प्रसन्न व उत्साहित लहजे में हम सब को अपने समय की झलक दिखाई थी.

‘‘तब लड़कों के मुंह से प्यार का इजहार करने की हिम्मत तो यकीनन कम होती थी पर वे प्रेमपत्र खूब लिखा करते थे. गुमनाम प्रेमपत्र लिखने की कला में तो राजेंद्र, तुम भी माहिर थे,’’ सीमा आंटी ने अचानक यह भेद खोला तो पापा एकदम से घबरा उठे थे.

‘‘मैं ने किसे गुमनाम प्रेमपत्र लिखा था?’’ पापा ने अटकते हुए पूछा.

‘‘अनिता तुम्हारे सारे प्रेमपत्र हम सहेलियों को पढ़ाया करती थी.’’

‘‘जब मैं ने किसी पत्र पर अपना नाम लिखा ही नहीं था तो तुम कैसे कह सकती हो कि वे...अरे, यह तो आज मैं ने अपनी पोल खुद ही खोल दी.’’

पापा हम से आंखें मिलाने में शरमा रहे थे. हमारी हंसी बंद होने में नहीं आ रही थी. मुझे शरमातेमुसकराते पापा उस वक्त बहुत ही प्यारे लग रहे थे.

चायनाश्ते के बाद गुंजन और मुझे आपस में खुल कर बातें करने के लिए पास के पार्क में भेज दिया गया. पार्क में पहुंचते ही गुंजन ने साफ शब्दों में मुझ से कहा, ‘‘मेरी बात का बुरा न मानना, मैं तुम से अभी शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘अभी से तुम्हारा क्या मतलब है?’’ मैं ने कुछ चिढ़ कर पूछा.

‘‘मुझे पहले एमबीए करना है और बहुत अच्छे कालेज से करना है. उतनी तैयारी शादी के बाद नहीं हो सकती है.’’

‘‘यह बात तुम ने पहले सब को क्यों नहीं बताई?’’

‘‘मम्मी शादी करने के लिए मेरे पीछे पड़ी रहती हैं. उन से जान छुड़ाने के लिए मैं 2-3 महीनों में एक लड़के से मिलने का नाटक कर लेती हूं.’’

‘‘और तुम्हें उसे रिजैक्ट करना होता है...जैसे अब मुझे करोगी. वाह, तुम ने अपने मनोरंजन के लिए बढि़या खेल ढूंढ़ा हुआ है.’’

‘‘अगर तुम्हें पूरी तरह से रिजैक्ट करूंगी भी तो आज नहीं, कुछ दिनों के बाद करूंगी.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मैं ने चौंक कर उलझन भरे स्वर में पूछा.

‘‘मैं तसल्ली से तुम्हें सब समझाती हूं,’’ उस ने उत्साहित अंदाज में मेरा हाथ पकड़ा और पास में पड़ी बैंच की तरफ बढ़ चली.

उस बैंच पर घंटे भर बैठने के बाद हम दोनों घर लौट आए थे. जब हम ने ड्राइंगरूम में कदम रखा तब सब की नजरें हम पर टिकी यह सवाल पूछ रही थीं, ‘क्या तुम दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया है?’

गुंजन का इशारा पाने के बाद मैं ने सब को सूचित किया, ‘‘अभी हम दोनों किसी फैसले पर नहीं पहुंच पाए हैं. एकदूसरे को समझने के लिए हमें कुछ और वक्त चाहिए.’’

‘‘रवि वैसे दिल का बहुत अच्छा है पर थोड़ा पुराने खयालों का है. मेरे लिए अपना कैरियर...’’

‘‘जरूरत से कुछ ज्यादा ही अहमियत रखता है,’’ रवि ने मुसकराते हुए गुंजन को टोका, ‘‘इस मसले पर हमारे बीच काफी बहस हुई है, लेकिन वह बहस एकदूसरे को नापसंद करने का कारण नहीं बनी है. अगली कुछ मुलाकातों में अगर हम ने अपने मतभेद सुलझा लिए तो दोनों परिवारों के बीच में रिश्ता जरूर बन जाएगा.’’

‘‘आजकल के बच्चों की बस पूछो मत,’’ पापा ने माथे पर बल डाल कर सीमा आंटी से कहा, ‘‘मेरी समझ से गुंजन बहुत अच्छी लड़की है. मैं घर जा कर रवि से बात करता हूं. इसे मेरी खुशी की चिंता होगी तो जल्दी ही तुम तक खुशखबरी पहुंच जाएगी.’’

पापा के यों हौसला बढ़ाने पर सीमा आंटी मुसकराईं तो पापा का चेहरा भी खिल उठा था.

घर लौटने के बाद से पापा ने सवाल पूछपूछ कर मेरा दिमाग खराब कर दिया. ‘‘क्या कमी नजर आई तुझे गुंजन में? वह सुंदर है, स्मार्ट है, शिक्षित है और अच्छा कमा रही है. और क्या चाहिए तुझे?’’

‘‘वक्त, पापा, वक्त. हम एकदूसरे को और ज्यादा अच्छी तरह से समझना चाहते हैं.’’

‘‘मन में बेकार की उलझन पैदा करने का क्या फायदा है? वह अच्छी लगी है न तुझे?’’

‘‘दिल की तो वह बहुत अच्छी है पर...’’

‘‘बस, शादी के लिए हां करने को यही बात काफी है. बाद में किसी भी शादी को सफल बनाने के लिए पतिपत्नी दोनों को समझौते तो करने ही पड़ते हैं.’’

‘‘आप गुंजन को समझाने के लिए भी कुछ बातें बचा लो, पापा,’’ मैं उन के पास से जान बचा कर भाग खड़ा हुआ था.

गुंजन और मेरी अगली मुलाकात उस के घर में सीमा आंटी के जन्मदिन पर अगले शनिवार को हुई. हमें किसी ने बुलाया नहीं था. मैं ने पापा को जिद कर के तैयार किया और सुंदर सा फूलों का गुलदस्ता ले कर हम उन के घर पहुंच गए. अपने आने की सूचना सिर्फ आधे घंटे पहले मैं ने फोन पर गुंजन को दी थी.

उन लोगों के यहां हमारी खातिर करने की कोई तैयारी नहीं थी. गुंजन की दीदी और जीजाजी देर से डिनर पर आने वाले थे. तब मैं ने बाजार से खानेपीने का सामान लाने की जिम्मेदारी ले ली. गुंजन भी मेरे साथ बाजार चली आई थी. वे लोग नहीं चाहते थे कि खानेपीने की चीजों पर मैं खर्च करूं. हम लोग लौट कर घर आ गए. घर में पार्टी की गहमागहमी थी.

पापा की आवाज अच्छी है. उन्होंने हमारी फरमाइश पर 4 पुराने फिल्मी गाने सुनाए तो पार्टी में समा बंध गया. सीमा आंटी के बनाए सूजी के हलवे की जितनी तारीफ की जाए कम होगी.

वे सचमुच बहुत स्वादिष्ठ खाना बनाती हैं, इस का एहसास हमें डिनर करने के समय हो गया था. हम तो डिनर के लिए रुकना ही नहीं चाहते थे पर गुंजन ने जबरदस्ती रोक लिया था. उस की दीदी व जीजाजी के साथ भी उस रात हमारे संबंध और ज्यादा मधुर हो गए.



डिनर के बाद गुंजन और मैं घर के बाहर की सड़क पर घूमने निकल आए. मैं उस की मम्मी की और गुंजन मेरे पापा के व्यक्तित्व व व्यवहार की खूब तारीफ कर रहे थे. अचानक उस ने मेरा हाथ पकड़ा और बगीचे में खुलने वाली खिड़की की तरफ चल पड़ी.

‘‘मैं कुछ देखना और तुम्हें दिखाना चाहती हूं,’’ मैं कुछ पूछूं, उस से पहले ही उस ने मुझे अपने मन की बात बता दी थी.

बैठक में रोशनी होने के कारण हम तो अंदर का दृश्य साफ देख सकते थे पर अंदर बैठे लोगों के लिए हमें देखना संभव नहीं था.

बैठक में गुंजन के जीजाजी किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहे थे. उस की बहन टीवी देख रही थी. सीमा आंटी और पापा आपस में बातें करने में पूरी तरह से मशगूल थे.

अचानक पापा की किसी बात पर सीमा आंटी खिलखिला कर हंस पड़ीं. पापा ने अपनी मजाकिया बात को कहना जारी रखा तो सीमा आंटी के ऊपर हंसी का दौरा सा ही पड़ गया था.

वे बारबार इशारे कर पापा से चुप होने का अनुरोध कर रही थीं पर वे रुकरुक कर कुछ बोलते और सीमा आंटी फिर जोर से हंसने लगतीं.

‘‘मैं ने अपनी मम्मी को इतना खुश पहले कभी नहीं देखा,’’ गुंजन भावुक हो उठी.

‘‘इस वक्त दोनों के चेहरों पर कितनी चमक है,’’ मैं ने प्रसन्न स्वर में कहा, ‘‘लगता है कि हम ने इन दोनों के बारे में जो सपना देखा है, वह बिलकुल ठीक है.’’

‘‘इस उम्र में ही तो इंसान को एक हमसफर की सब से ज्यादा जरूरत होती है.’’

‘‘मुझे तो लगता है कि ये दोनों एकदूसरे से शादी करने का फैसला कर ही लेंगे.’’

‘‘जब तक ये ऐसा फैसला नहीं करते, हम अपनी शादी के मामले को लटकाए रख कर इन्हें मिलनेजुलने के मौके देते रहेंगे.’’

‘‘तुम्हारी जैसी समझदार दोस्त को पा कर मुझे बहुत खुशी होगी. इन दोनों की शादी कराने का तुम्हारा आइडिया लाजवाब है, गुंजन.’’

‘‘तुम्हारे भैयाभाभी इस शादी का ज्यादा विरोध तो नहीं करेंगे?’’ गुंजन की आंखों में चिंता के भाव उभरे.

‘‘भैया को इस बात की चिंता तो जरूर सताएगी कि सीमा आंटी हमारी नई मां बन कर पापा की जायदाद में हिस्सेदार बन जाएंगी.’’

‘‘फिर बात कैसे बनेगी?’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब सीमा आंटी और पापा के चेहरे की चमक दे रही है. उन की खुशी और हित को ध्यान में रख मैं अपना हिस्सा भैया के नाम कर दूंगा,’’ इस निर्णय को लेने में मेरे दिल ने रत्ती भर हिचकिचाहट नहीं दिखाई थी.

‘‘तुसी तो गे्रट हो, दोस्त.’’

‘‘थैंक यू,’’ पापा के सुखद भविष्य की कल्पना कर मैं ने जब अचानक गुंजन को गले से लगाया तब हम दोनों की पलकें नम हो रही थीं.

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