हास्य - काम कम, मीटिंग ज्यादा


मीटिंग चल रही है, साहब व्यस्त हैं. सुबह से शाम तक और शाम से कभीकभी रात तक, साहब मीटिंग करते रहते हैं. मीटिंग ही इन का जीवन है, इन का खानापानी है और इन का शौक है. ये जोंक की तरह इस से चिपके रहते हैं. मीटिंग का छौंक इन की जिंदगीरूपी खाने को स्वादिष्ठ व लजीज बनाता है. इस छौंक के बिना इन्हें सब फीकाफीका लगता है. यह इन की आन, बान व शान है, इन की जान है. मीटिंग में ये जिंदगी जी रहे हैं तो मीटिंग में इन से डांट खा रहे बैठे लोग खून का घूंट पी रहे हैं.

मीटिंग में इतना बकते हैं, फिर भी ये थकते नहीं हैं. पता नहीं कौन सी चक्की का आटा खाते हैं कि इतनी ऊर्जा रहती है. सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक मीटिंग करतेकरते, उस में बकबकाते भी थकते नहीं हैं. मीटिंग दे रहे लोग, हां दे रहे लोग ही कहना पड़ेगा, क्योंकि ये मीटिंग लेते हैं तो कोई न कोई तो देता होगा, थक जाते हैं. उन्हें उबासी आने लगती है लेकिन साहब को कुछ नहीं होता है. ये बहुसंख्य को डांट और अल्पसंख्य को शाबाशी भी देते रहते हैं. बल्कि जैसेजैसे मीटिंग आगे बढ़ती जाती है, वे और ज्यादा चैतन्य होते जाते हैं. शायद, डांटने को बांटने से उन में ऊर्जा का भंडार बढ़ता जाता है. हां, शायद, इसीलिए पत्नियों में ऊर्जा ज्यादा रहती है, दिनभर पति को किसी न किसी बात में वे डांटती जो रहती हैं.

साहब का नामकरण मीटिंग कुमार कर देना चाहिए. क्योंकि इस के बिना ये जी नहीं सकते. कहा जाता है कि किसी अफसर से यदि दुश्मनी निभानी है तो उसे मीटिंग से वंचित कर दो. जैसे कि मछली की जल के बाहर जान निकल जाती है, लगभग वैसा ही बिना मीटिंग के अफसर हो जाता है. मीटिंग उस की औक्सीजन है. जो जितना बड़ा, वो उतनी ज्यादा मीटिंग लेता है या जो जितनी ज्यादा मीटिंग ले, वो उतना बड़ा अधिकारी होता है. हां, इसीलिए आप ने देखा होगा कि बड़े अफसर का खुद का बड़ा मीटिंगहौल होता है और छोटे का तो फटेहाल सा होता है.

मीटिंग से इन्हें इतना प्यार है, दुलार है कि इस के नएनए ईजाद इन्होंने कर लिए हैं. बस, मीटिंग होनी चाहिए, वो वीडियो कौन्फ्रैंसिंग से हो या फेस टू फेस हो. कभी रिव्यू मीटिंग तो कभी ज्यादा लोगों को बुला कर सम्मेलन कर लेते हैं. कुल मिला कर मीटिंग्स होनी ही हैं. कभी प्रशिक्षण कर लेंगे और धीरे से वहां मीटिंग के फौर्म में भी आ जाएंगे. कभी ये अपने दफ्तर में मीटिंग करते हैं तो कभी फील्ड में जा कर करते हैं.

मीटिंग का उद्देश्य तो है कि योजनाओं, कार्यक्रमों का बेहतर क्रियान्वयन हो कर आम जनता का भला हो, उस का काम त्वरित गति से हो, उसे चक्करबाजी से मुक्ति मिले, लेकिन आम आदमी जब अपने काम से दफ्तर आता है, उसे पता लगता है कि साहब मीटिंग कर रहे हैं, उसे इंतजार करना पड़ता है. इंतजार करतेकरते वह थक जाता है तो उसे लगता है कि यह मीटिंग नहीं, उस के जैसे आम आदमी से चीटिंग है. वह सोचने को मजबूर हो जाता है कि जब उस का काम नहीं हो पा रहा है तो यह मीटिंग किस काम की. जिन की सैटिंग है या जो खातिरदारी कर देते हैं, उन का तो काम हो जाता है लेकिन जिन की नहीं, उन को साहब मीटिंग में हैं कह कर टरकाया जाता है. फिर भी आम आदमी मुए पेट की खातिर इंतजार करता है.

आज के अधिकारी मीटिंग अधिकारी हो गए हैं. काम कम, मीटिंग ज्यादा. आम आदमी बड़ा भौचक है. कई सरकारें आईं और चली गईं. कोई इन मीटिंगों को कम नहीं कर पाया, और न ही उस की समस्याएं सुलझीं. उसे यह दलील दी जाती है कि तुम्हारी समस्याएं चूंकि बढ़ती जा रही हैं, इसलिए मीटिंगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है.

आखिर तुम कोई समस्या बताते हो तो एक आदमी या अधिकारी या विभाग तो उस को सुलझा नहीं सकता है, तो इसलिए फिर मीटिंग करनी पड़ती है. तुम्हें यदि हमारा मीटिंग करना पसंद नहीं आता है तो हम कभी मीटिंग नहीं करेंगे. हमें मालूम है कि इस से हमें कितनी तकलीफ होगी और फिर मत कहना कि आप की समस्याएं दूर करने के लिए हम कुछ नहीं कर रहे.

वैसे, यदि कोई पार्टी अगले चुनाव में अपने घोषणापत्र में यह बात रख दे कि वह सत्ता में आई तो मीटिंग पर प्रतिबंध लगवा देगी, तो गंगू दावा करता है कि वह पार्टी चुनाव जीत जाएगी.

मीटिंग में बोरियत से बचने के लिए मीटिंग दे रहे अधिकारी नाना तरह के उपक्रम करते हैं. आजकल सब से अच्छा खिलौना तो मोबाइल है. मीटिंग ले रहा अधिकारी अपनी बात करता रहता है और मीटिंग दे रहे अधिकारी मोबाइल पर एसएमएस करते रहते हैं या गेम्स खेलते रहते हैं. वे सोचते हैं कि अच्छा, बहुत बनता है, मैं इस के साथ गेम खेलता हूं, ये हमारे साथ मीटिंग का गेम खेलता रहता है.

आप ने देखा ही है कि विधानसभा की मीटिंग से उकता कर तो कुछ विधायक रंगबिरंगी क्लिपिंग देखने में फंस गए थे. कुछ अधिकारी पत्रिका या किताब ला कर चुपचाप पढ़ते रहते हैं. कुछ अधिकारी अपनी चित्रकारी की योग्यता का बेजोड़ प्रदर्शन करते रहते हैं. कुछ अधिकारी मौका देख कर बीच में गायब हो जाते हैं और आखिर में फिर चुपचाप वापस भी आ जाते हैं. मीटिंग में कुछ अपनी नींद पूरी कर लेते हैं.

गड़बड़ केवल ऐसे लोगों के साथ होती है जो नींद में थोड़े गहरे जा कर खर्राटे मारने से नहीं चूकते. बस, यही चूक मीटिंग ले रहे अधिकारी के कान खड़े कर देती है. उक्त प्रकार के कलाकार अधिकारियों से दूसरों को सीखने की जरूरत है.

गंगू का तो कहना है कि देश की सब से बड़ी समस्या यदि कोई है तो वह मीटिंग ही है. हर शहर में, कसबे में हर जगह कोई न कोई मीटिंग चल रही है. इसी मीटिंग कल्चर से सम्मेलन व सभाएं निकल कर आई हैं और फिर आप ने देखा है कि ये कितनी खतरनाक हो सकती हैं. चीन के टियानअनमन चौक पर हुआ जमावड़ा या मिस्र में 2 साल पहले काहिरा में हुआ प्रदर्शन या अभी हो रहा प्रदर्शन, ये कइयों की बलि ले कर ही मानता है. न कभी मीटिंग हुआ करती और न लोगों ने यह सीखा होता, तो फिर यह खूनखराबा भी नहीं होता. रामलीला मैदान, दिल्ली में आप देख ही चुके हैं कि कैसे रामदेव को मीटिंग को सभा में बदलने के कारण भागना पड़ा था.

अब यदि इन मीटिंगों की संख्या नहीं रुकी, तो वह दिन दूर नहीं जब लोग कहेंगे कि मीटिंग नहीं, यह हमारे साथ चीटिंग हो रही है. वैसे, गंगू के पास इस का समाधान है, सरकार को अलग से एक मीटिंग डिपार्टमैंट बना देना चाहिए और कुछ मीटिंग अधिकारी इस में नियुक्त कर देने चाहिए जिन का केवल काम ही हो कि मीटिंग करें और करवाएं और हर विभाग अपने यहां से भी एक अधिकारी को मीटिंग अधिकारी नामांकित कर देना चाहिए जिस का केवल और केवल काम होगा मीटिंग में भाग लेना और बाकी लोगों को फ्री कर के उन्हें काम करने देना. जब सत्कार अधिकारी हो सकता है तो मीटिंग अधिकारी क्यों नहीं हो सकता? इस से मीटिंग की महत्ता भी कम नहीं होगी और बाकी अधिकारीगण इस से मुक्त हो कर अपने काम में लग जाएंगे.

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