कहानी - दाखिले का चक्रव्यूह

‘‘मे आई कम इन, सर?’’, मेहता कोचिंग सैंटर के दरवाजे पर खड़े वरुण ने झिझकते हुए पूछा.

‘‘यस, कम इन’’, राजीव मेहता सर की कोचिंग खासी प्रसिद्ध थी. यहां से कोचिंग करना मतलब प्रबंधन के प्रमुख संस्थानों में दाखिला पक्का. यहां दाखिला मिलना आसान नहीं था, जिन छात्रों के 12वीं में 90 प्रतिशत से ऊपर अंक आते, उन्हें ही यहां कोचिंग हेतु बुलाया जाता. फिर बाकायदा साक्षात्कार होता. केवल छात्र का ही नहीं, बल्कि उस के अभिभावकों का भी साक्षात्कार लिया जाता.

कोचिंग की आवश्यकता वैसे तो पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थियों को पड़ती है किंतु कोचिंग का व्यवसाय कुछ ऐसा है कि अच्छा नाम कमाने हेतु उन्हें आवश्यकता पड़ती है मेधावी छात्रों की. साथ ही कोचिंग को बखूबी चलाने के लिए पैसा चाहिए, इसलिए ऐसे विद्यार्थी भी चाहिए जो संस्थान को भारी फीस दे सकें. भारत में जनता इतनी है कि हर जगह सीटों की कमी पड़ जाती है. लंबी कतारों में खड़े लोग अपने बच्चों का दाखिला करवाने को लालायित रहते हैं. इसीलिए कोचिंग में दाखिला मिलने पर ऐसी प्रसन्नता होती है मानो आगे की शिक्षा मुफ्त हो.

राजीव सर की कोचिंग की भारी फीस भरनी हर किसी के बूते की बात कहां थी. जब वरुण का नाम काउंसिलिंग के लिए आया तो उस का पूरा परिवार बहुत खुश हुआ. वह भी खुश था कि अब उस का दाखिला एक अच्छे प्रबंधन संस्थान में हो सकेगा.

वरुण पढ़ाई में बहुत मेधावी नहीं था. परिश्रम से ही वह अपने वर्तमान स्थान तक पहुंचा था. इस कोचिंग सैंटर में दाखिले के बाद भी वरुण ने परिश्रम करने की ठानी थी. दाखिले की फीस का इंतजाम पापा ने अपनी पीएफ स्कीम से उधार ले कर किया था और बाद की फीस हेतु वरुण के नाम पर छात्र लोन के लिए अर्जी भी दे दी थी. कोचिंग का समय शाम से ले कर रात तक का होता था. यहां पढ़ाने के लिए बाहर से शिक्षक आया करते थे. धीरेधीरे पता चला कि दिन में ये शिक्षक अन्य प्रबंधन संस्थान में पढ़ाया करते थे, तभी इन्हें वहां की तत्कालीन शिक्षा प्रणाली का अनुमान रहता. ये उसी हिसाब से कोचिंग में भी पढ़ाया करते.

राजीव सर और उन की पत्नी कशिश कोचिंग संस्थान को चलाया करते थे. जैसे एक व्यापारी पौलीक्लीनिक खोल कर उस में अच्छे डाक्टरों को घंटे के हिसाब से पैसे दे कर बुलाता है, बस, कुछ वैसा ही हिसाब यहां था. खैर, बच्चों को तो अपने भविष्य से मतलब था, यदि वह सुनहरा दिख रहा है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं थी.

राजीव सर की पत्नी कशिश भी कोचिंग में पूरी भागीदारी निभाती थीं. ‘‘यदि कुछ समझ में न आए तो मेरे पास आना, कभी भी, शरमाना मत. मैं तुम्हारे सारे डाउट क्लीयर कर दूंगी, ओके?’’ नए बैच का ओरिएंटेशन पूरा होने पर कशिश मैम के आश्वासन पर पूरी कक्षा ने तालियां बजा दी.

फिर सत्र आरंभ हो गया और पूरे जोरशोर से पढ़ाई शुरू हो गई. राजीव सर अकसर अपने केबिन में ही सारा दिन बिताते, जबकि कशिश मैम सारे कोचिंग इंस्टिट्यूट का चक्कर लगातीं, शायद, यहीं से कोचिंग क्लास के अंदर चल रही बातों की टोह लिया करती होंगी. अच्छे प्रबंधक के सारे गुण झलकते थे उन में. वरुण उन से काफी प्रभावित रहता और वे भी वरुण को देख मुसकरातीं.

दूसरा सत्र पूरा होने के साथ कोचिंग का आधा कार्यकाल पूर्ण हो चुका था. अगले सत्र के बाद कुछ चुनिंदा छात्रों हेतु छात्रवृत्ति की घोषणा भी होनी थी. यह छात्रवृत्ति 50 से ले कर 90 फीसदी की फीस माफी की हुआ करती थी, ऐसा सब ने सुन रखा था. हर छात्र इस छात्रवृत्ति की ओर ललचाई नजरें रख रहा था. वरुण को इस छात्रवृत्ति की सख्त जरूरत थी. ‘कितना अच्छा हो जो यह मुझे मिल जाए, पापा का काफी लोन भी चुक जाएगा,’ वह सोचने लगा था क्योंकि अब तक की फीस उस के पापा छात्र लोन के जरिए ही चुका पा रहे थे जो उन्होंने वरुण के नाम पर लिया था.



उस शाम, कक्षा समाप्त होने के बाद सभी छात्र अपने घरों की ओर निकलने लगे. तभी वहां कशिश मैम टहलती हुई आईं और बोलीं, ‘‘वरुण, जरा मेरे केबिन में आना.’’

वरुण को आश्चर्य हो रहा था कि उसे कशिश मैम ने क्यों बुलाया है. रात के

9 बज रहे थे, कोचिंग सैंटर लगभग खाली हो चुका था. पहली बार वह उन के केबिन में गया. क्या आलीशान केबिन था. एक तरफ कशिश मैम की मेजकुरसी सजी थी तो दूसरी ओर एक बड़ा सा सोफासैट रखा था. दीवारों पर सुंदर पेंटिंग टंगी हुई थीं. कमरे के 2 विपरीत कोनों में हलकी रोशनी वाले बल्ब जल रहे थे. सुर्ख लाल परदों के कारण कमरे में हलकी लाल रोशनी छिटक रही थी.

‘‘आओ वरुण, मेरे पास चले आओ,’’ कशिश मैम की आवाज आज कितनी मधुर व कामुक प्रतीत हुई, ‘‘हां, दरवाजे की चिटकनी बंद करते आना.’’

‘‘जी मैम, कहिए, क्या कर सकता हूं मैं?’’, वरुण हाथ बांधे एक अच्छे छात्र की भांति खड़ा हो गया.

‘‘बहुत कुछ कर सकते हो तुम, पर आज नहीं. आज सिर्फ मुझे करने दो,’’ कहते हुए कशिश मैम उस के एकदम करीब आ कर खड़ी हो गईं. उन की सांस अपने कानों से टकराने से वरुण अचकचा कर थोड़ा दूर हो गया. ‘‘डरो मत. आज यहां और कोई नहीं है. बस, मैं और तुम.’’ कशिश मैम ने वरुण का हाथ पकड़ कर उसे अपने पास सोफे पर बैठा लिया. ‘‘देखो वरुण, मुझे तुम बहुत अच्छे लगते हो, और शायद तुम्हें मैं. मैं ने देखा है तुम्हें अपनी ओर देखते हुए’’, कहते हुए जैसे ही कशिश मैम ने वरुण के बालों में अपनी उंगलियां फिरानी आरंभ कीं, वह घबरा गया, ‘‘नहीं मैम, ऐसी कोई बात नहीं है, बिलकुल नहीं.’’

‘‘अरे, इतना क्यों घबरा रहे हो, डियर? माना कि मैं तुम से उम्र में थोड़ी बड़ी हूं पर मैं किसी कमसिन लड़की से कहीं अधिक सुख दे सकती हूं तुम्हें, और फिर छात्रवृत्ति के बारे में भी तो सुना होगा तुम ने? मैं ने सुना है तुम्हारे पापा ने पीएफ से उधार लिया है और अब तुम एजुकेशन लोन पर पढ़ रहे हो. जरा सोचो,

90 फीसदी छात्रवृत्ति मिलने पर कितना फायदा हो जाएगा तुम्हें.’’

वरुण सोच में डूब गया और कशिश मैम जैसा चाहती थीं वैसा करती रहीं. न चाहते हुए भी वरुण ने कोई प्रतिरोध नहीं किया. फिर तो यह क्रम बन गया. जब कशिश मैम का दिल करता, वे वरुण को बुला लेतीं. जब कोचिंग सैंटर खाली हो जाता, अपने कमरे में कशिश मैम वरुण के साथ मनचाहा करतीं और वरुण चुपचाप सब सह जाता. उस समय उसे केवल अपने पिता की आर्थिक मजबूरी व अपना सुनहरा भविष्य दिखाई देता.

छात्रवृत्ति घोषणा का समय आया. राजीव सर ने हर अध्यापक से उन के छात्रों की सिफारिशी सूची मंगवाई. पूरी कमेटी बैठाई गई. 50 फीसदी छात्रवृत्ति हेतु 10 विद्यार्थियों के नाम सुझाए गए, 60 फीसदी और 70 फीसदी के लिए 3 विद्यार्थी और 90 फीसदी हेतु केवल एक विद्यार्थी का नाम चुनना था. जब पूरी सूची तैयार हो गई, तब मैम ने राजीव सर से खास कह कर वरुण का नाम 90 फीसदी के लिए सुझा दिया, ‘‘लड़का बहुत मेहनती है और मेधावी भी, मैं ने खुद उसे कितनी बार परखा है.’’

घोषणा के बाद वरुण बहुत प्रसन्न हुआ. जिस लालच में उस ने अपना सर्वस्व लुटाया, आखिर वह उसे मिल गया. इस खबर से वरुण पूरे सैंटर में मशहूर हुआ सो अलग. सैंटर की छात्रा नेहा भी अब उस की ओर देख मुसकुराने लगी थी. वरुण को तो नेहा प्रथम दिन से ही आकर्षक लगी थी. वरुण के एक बुद्धिमान विद्यार्थी स्थापित होने के बाद नेहा ने उस से दोस्ती कर ली. उसे विश्वास होने लगा था कि वरुण एक सफल भविष्य बनाएगा.

एक शाम कक्षा समाप्त होने के बाद कुछ लड़कों ने वरुण के ऊपर टिप्पणी की, ‘‘क्या बात है वरुण, कशिश मैम तुम्हें अकेले में क्यों बुलाती हैं, यार?’’

वरुण कुछ उत्तर दे पाता, इस से पहले ही नेहा बोल पड़ी, ‘‘वह इसलिए क्योंकि मैम को वरुण अपने बेटे की याद दिलाता है, उस का नाम है अरुण. दोनों नाम इतने मिलतेजुलते हैं न, तो उन्हें वरुण पर भी प्यार आता है.’’

बाद में वरुण ने नेहा से पूछा, ‘‘आज जो तुम ने कह कर उन लड़कों का मुंह बंद कर दिया, तुम्हें कैसे पता कशिश मैम के बेटे का नाम अरुण है?’’

‘‘वह इसलिए जनाब, क्योंकि राजीव सर और कशिश मैम मेरे मामामामी हैं और अरुण मेरा ममेरा भाई है जो लंदन में पढ़ता है. दरअसल, मैं ने भी इस बात पर गौर किया कि मामी तुम्हें कई बार बुलवाती हैं तो मैं ने उन से कारण पूछा और यह बात उन्होंने स्वयं मुझे बताई. कितनी स्वीट हैं न, मामी’’, नेहा की बात से वरुण भौचक्का रह गया. नेहा, मैम की रिश्तेदार निकली. अब वह कैसे अपने मन की बात उस से कहे? वह तो सोच रहा था कि नेहा की सहायता से मैम के चंगुल से निकलने का प्रयास करेगा. वरुण उदास हो गया.

एक शाम अपनी मनमरजी कर चुकने के बाद कशिश मैम कहने लगीं, ‘‘वरुण, तुम मंजोतिया कालेज में दाखिला चाहते हो न? हमारे यहां जो अनिरुद्ध सर आते हैं, वे वहीं पढ़ाते हैं. मैं ने उन से मंजोतिया कालेज की प्रवेश परीक्षा में आने वाले पेपर मंगवाए हैं, तुम्हें दिखा दूंगी.’’

वरुण सकते में आ गया, ‘‘कैसे मैम? अनिरुद्ध सर दाखिले के पेपर कैसे और क्यों लाएंगे?’’

‘‘तुम क्या सोचते हो कि हमें दिन में पढ़ाने के लिए अच्छे शिक्षक नहीं मिल सकते?’’, हंसते हुए मैम बोलीं, ‘‘हम देर शाम की कोचिंग इसलिए रखते हैं ताकि अच्छे प्रबंधन कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षक हमारे यहां भी पढ़ा सकें. वैसे, निजी प्रबंधन कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को बहुधा एक नौकरी के साथ दूसरी नौकरी करने की अनुमति नहीं होती है. ऐसा वे चोरीछिपे करते हैं. उन्हें दोगुना वेतन मिल जाता है और हमें अच्छे प्रबंधन कालेजों में दाखिले हेतु प्रश्नपत्र भी. यही शिक्षक हमें वहां से निकलवा कर देते हैं.

‘‘फिर जब हमारे यहां के विद्यार्थी उन्हीं कालेजों में दाखिले के लिए समूह परिचर्चा व साक्षात्कार में भाग लेते हैं, तो यही शिक्षक उन के ऐसे समूह बनवाते हैं, जो उन के मित्र शिक्षक को जंचे ताकि इन का चुनाव आसानी से हो जाए. तभी तो हमारा नाम होता है कि इस कोचिंग सैंटर में पढ़ने से विद्यार्थी अच्छी जगह दाखिला पा लेते हैं. कुछ समझे इस सारे गणित को?’’

वरुण हतप्रभ रह गया. दाखिले के चक्रव्यूह में इतने भेद. खैर, वरुण को इस सब से क्या मतलब. वह तो अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में था, अन्य सभी की भांति.

वरुण को 90 फीसदी वजीफा भी मिल चुका था और अपने मनमाफिक कालेज में दाखिला भी. अब उसे कशिश मैम के चक्रव्यूह में फंसने की क्या आवश्यकता थी भला. सो, इस बार जब कशिश मैम ने उसे बुला भेजा, वह नहीं गया. बल्कि इस बार वह राजीव सर के पास जा पहुंचा और कशिश मैम की सारी पोलपट्टी खोल कर रख दी. सुनते ही राजीव सर आगबबूला हो उठे, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई बकवास करने की? जानते भी हो क्या बक रहे हो?’’

‘‘सर, मैं सच कह रहा हूं. आप अपनी पत्नी से स्वयं पूछ लीजिए.’’

‘‘अब तुम मुझे बताओगे मुझे क्या करना है? निकल जाओ इसी वक्त मेरे कमरे से,’’ कहते हुए राजीव सर ने वरुण को निकाल दिया. वरुण अपने घर लौट गया. लेकिन जो आग उस ने लगाई थी, उस की चिंगारियां अभी भी सुलग रही थीं. राजीव सर ने फौरन कशिश मैम को बुलवा भेजा, और फिर सारी बात उन से पूछ डाली. सारी बात खुलने पर कशिश मैम सकपका गईं. उन्हें जरा भी उम्मीद नहीं थी कि बात यों उघड़ जाएगी. उन का रोरो कर बुरा हाल था, ‘‘आप अपनी पत्नी की बात का विश्वास करेंगे, या एक अनजान लड़के का? वह लड़का कोरा झूठ बोल रहा है. बल्कि उस की मुझ पर बुरी नजर रही है. वह हमेशा मुझे घूरता रहता है. आप ही कहते हैं न कि मेरे जैसा बदन कम ही औरतों का होता है. अब यदि मैं इतनी सुंदर हूं तो क्या इस में भी मेरी गलती है?’’

‘‘उसे हमारे व्यवसाय के अंदर की बातें कैसे पता? उसे कैसे पता कि हम अन्य प्रबंधन कालेज के शिक्षकों से दाखिले के पेपर मंगवाते हैं, हम समूहपरिचर्चा व साक्षात्कार में अपने विद्यार्थियों को कैसे आगे करवाते हैं, जवाब दो’’, राजीव सर अब भी क्रोध में उबल रहे थे.

‘‘मुझे नहीं पता कि उसे ये सब बातें कैसे पता. मैं उसे बेहद शरीफ और नेकनीयत विद्यार्थी समझती थी. याद है मैं ने आप से कह कर उसे 90 फीसदी वजीफा भी दिलवाया था. और वह मुझे ही बेकार में बदनाम कर रहा है. हो सकता है कि वह किसी अन्य कोचिंग सैंटर से पैसे खा रहा हो और हमारे यहां फूट डालने का प्रयास कर रहा हो या फिर उस को हमारे अंदर की बातें कहीं से पता चल गई हैं और वह हमें ब्लैकमेल करना चाह रहा हो...वह पहले हम दोनों में लड़ाई करवाएगा और फिर जब आप अकेले पड़ जाएंगे तब आप को ब्लैकमेल करने लगेगा.’’

फिर कुछ सोच कर कशिश मैम आगे कहने लगीं, ‘‘और हां, यदि आप को अब भी मेरी बात का विश्वास नहीं तो नेहा या किसी अन्य विद्यार्थी से पूछ लीजिए कि मेरे और उस लड़के के क्या संबंध हैं.’’ उन का यह पैंतरा काम कर गया. नेहा का नाम सुन कर राजीव सर शांत हो गए और उसे बुला भेजा.

‘‘जी हां, मामाजी, मामी वरुण को इसलिए पसंद करती हैं क्योंकि उस का नाम अरुण से मेल खाता  है. वे उसे बच्चे की तरह प्यार करती हैं. क्यों, क्या बात है?’’

‘‘कुछ नहीं, नेहा बेटे. अब तुम जाओ.’’ नेहा की बातें सुन कर राजीव सर संभल गए.

अब आगे क्या करना है, इस विषय को ले कर वे गंभीर विचारों में पड़ गए.

दोनों मियांबीवी ने मिल कर यह निर्णय  लिया कि वे वरुण को अनुशासनात्मक कार्यवाही के तहत अपने कोचिंग सैंटर से निकाल देंगे. यदि उस ने ज्यादा होहल्ला किया तो 90 फीसदी वजीफे की रकम के अलावा जो फीस के पैसे उस ने भरे हैं, वह उसे लौटा देंगे लेकिन उसे अपने यहां का विद्यार्थी नहीं दर्शाएंगे.

2 दिनों के बाद राजीव सर ने वरुण को अपने कक्ष में बुलवाया और अनुशासनात्मक कार्यवाही का हवाला देते हुए उसे निष्कासनपत्र थमा दिया.

‘‘यह क्या सर, आप मेरी गलती न होते हुए भी मुझे सजा दे रहे हैं? और कशिश मैम जिन के कारण...’’ वरुण आगे कुछ कहता इस से पहले ही राजीव सर दहाड़ पड़े, ‘‘नाम मत लो मिसेज राजीव का अपनी गंदी जबान से. चुपचाप यह चिट्ठी पकड़ो और निकल जाओ इस सैंटर से. तुम्हारे जैसे लड़कों के लिए यहां कोई जगह नहीं है. याद रखना, अगर तुम ने कोई बवाल खड़ा करने की कोशिश की तो मैं अनुशासनात्मक समिति बिठा कर भी यही कार्य कर सकता हूं. और उस स्थिति में तुम्हें तुम्हारी फीस भी नहीं लौटाई जाएगी. अभी कम से कम मैं तुम्हारी फीस लौटा रहा हूं. चुपचाप फीस लो और दफा हो जाओ यहां से.’’

वरुण के 2 वर्ष बरबाद हुए सो अलग, मनपसंद प्रबंधन संस्थान में हुआ उस का दाखिला भी रद्द हो गया क्योंकि इस सैंटर ने उस प्रबंधन संस्थान को वरुण का गलत चरित्र प्रमाणपत्र भिजवा दिया. वरुण को कशिश मैम से उठाए लाभ की महंगी कीमत यों चुकानी पड़ी. काश, उस ने अपने सुनहरे भविष्य के सपने की खातिर उस समय सही फैसला किया होता तो आज उसे न तो इस तरह लांछित होना पड़ता और न ही उस की प्रगति की राह में यों रोड़े अटकते. अब वह नए सिरे से कैरियर बनाने की कोशिश कर रहा है पर बीचबीच में उसे कशिश मैम की याद आ ही जाती है. अब तो नेहा ने भी उस से सभी संबंध तोड़ लिए हैं और कोई नई लड़की भी उसे घास नहीं डाल रही. यहां कोचिंग सैंटर में सभी स्वार्थी हैं, प्रतिद्वंद्वी हैं, कोई दोस्त नहीं, कोई साथ देने वाला नहीं.

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