कहानी: और तो सब ठीकठाक है
चौधरी जगत नारायण राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी थे. सामने वाले को कैसे पटखनी देनी है और कैसे अपना उल्लू सीधा करना है, वह भलीभांति जानते थे. इसीलिए तो वह भ्रष्टाचार में लिप्त हो कर हजारों डकार जाते, किसी को खबर तक न होती.
दरबार जमा हुआ था. सबकुछ निश्चित कर लिया गया था. अब किसी को कोई परेशानी नहीं थी. पंडित गिरधारीलाल की समस्या का समाधान हो चुका था. रजब मियां के चेहरे पर भी संतुष्टि के भाव थे.
हां, कल्लू का मिजाज अभी ठीक नहीं हुआ था. उस ने भरे दरबार में चौधरी साहब की शान में गुस्ताखी की थी. नरेंद्र तो आपे से बाहर भी हो गया था, किंतु चौधरी साहब ने सब संभाल लिया था.
चौधरी जगतनारायण खेलेखाए घाघ आदमी थे. जानते थे कि वक्त पर खोटा सिक्का भी काम आ जाता है. फिर दूध देने वाली गाय की तो लात भी सही जाती है. उन्होंने बड़ी मीठी धमकी देते हुए कल्लू को समझाया था, ‘‘कल्लू भाई, थूक दो गुस्सा. धंधे में क्रोध से काम नहीं चलता. हम तो तुम्हारे ग्राहक हैं. ग्राहक से गुस्सा करना तो व्यवसाय के नियमों में नहीं आता.’’
‘‘लेकिन चौधरी साहब, मैं अपने इलाके का शेर हूं, कुत्ता नहीं. कोई दूसरा गीदड़ मेरी हद में आ कर मेरा हक छीने, यह मुझे बरदाश्त नहीं होगा. वह रशीद का बच्चा, उस का तो मैं पोस्टमार्टम कर ही दूंगा.’’
‘‘कल्लू के मुंह से कौर छीनना इतना आसान तो नहीं है, जितना आप लोगों ने समझ लिया है. आज का फैसला आप के हाथ में है. लेकिन आगे का फैसला मैं अपनी मरजी से लिखूंगा. और हां, यह भी आप लोगों को बता दूं कि अपना आदमी जब बागी हो जाता है तो कहीं का नहीं छोड़ता.’’
‘‘तू क्या कर लेगा? तीन कौड़ी का आदमी. जानता नहीं जुम्मन की लंबी जबान काट कर फेंक दी थी. हरिशंकर आज भी जेल की चक्की पीस रहा है. कृपाराम मतवाला कुत्ते की मौत मरा था. आखिर, तू समझता क्या है अपनेआप को? चिड़ीमार कहीं का.
‘‘दोचार चूहे इधरउधर मार लिए तो बड़ा भेडि़या समझने लगा है अपनेआप को. सुन, हम राजनीति करते हैं. कोई भाड़ नहीं झोेंकते. तुझ जैसे तीन सौ पैंसठ घूमते हैं झाडू लगाते हुए. चल फूट यहां से,’’ नरेंद्र ने एक फूहड़ सी गाली बकी.
चौधरी साहब ने उसे रोक दिया, ‘‘नहीं नरेंद्र, कहने दो उसे, जो वह कहना चाहता है. उसे भी अपनी बात कहने का हक है. भई, देश में लोकतंत्र है. लोकतंत्र के तहत किसी को उचितअनुचित कुछ भी कहने से रोका नहीं जा सकता. बोलने दो इसे. यह समाजवाद का जमाना है. इसे कुछ गलत लगा है. इसे अपने दर्द को कहने का पूरापूरा हक है. फिर यह हमारा आदमी है. यह हमारे लिए कुछ भी सोचे, हम इस का बुरा नहीं सोच सकते.’’
‘‘हां, हरीश. तुम ध्यान रखना कल्लू भाई का. इसे जब भी कोई जरूरत हो तो उसे पूरी करना. इस समय इसे गुस्सा है. जब यह शांत हो जाएगा तो समझ जाएगा कि कौन अपना है, कौन पराया,’’ चौधरी साहब गांधीवादी मुद्रा में बुद्धआसन लगाए हुए थे.
लेकिन कल्लू एकदम चिकना घड़ा था. वह अपनी हैसियत जानता था. वह यह भी जानता था कि चौधरी साहब के बिना उस का गुजारा नहीं और यह भी मानता था कि अपनेआप को अधिक सस्ता और सुगम बनाने से इनसान की औकात घटती है.
अब चौधरी साहब का दबदबा था. जिस का दबदबा हो उसी के साथ रहने में लाभ था. फिर कल्लू तेजी से घूम कर बाहर निकल गया.
इधर नरेंद्र चौधरी साहब को राजनीति समझा रहा था, ‘‘आप ने बहुत मुंह लगा रखा है उस घटिया आदमी को. उसे न तो बोलने का शऊर है, न ही उठनेबैठने की तमीज. उस दिन धर्मदास को ही दरवाजे पर धक्का मार दिया और फिर पिस्तौल भी निकाल ली. वह तो अच्छा हुआ कि मनोहरलालजी आ गए और बात संभल गई. नहीं तो गजब हो जाता.’’
‘‘अरे, कुछ भी गजब नहीं होता. इंदिरा गांधी को गोली मार दी गई तो मारने वालों पर कौन सा गजब टूट पड़ा? वही अदालत- कचहरी के चक्कर, वकीलों की तहरीरें, न्यायविदों की दलीलें. मुलजिम आनंद करते रहे. उन की रक्षा और देखभाल पर लाखों रुपया पानी की तरह बहाया जाता रहा. अब उच्चतम न्यायालय ने उन में से एक को बरी भी कर दिया है. बाकी को फांसी पर लटका दिया जाएगा. इस से क्या होगा? क्या पंजाब में अब शांति है.
‘‘जुलियस रिबेरो को पद्मश्री से अलंकृत कर दिया गया तो क्या उन की राइफलों में नई गोलियां आ गईं? पंजाब सरकार बरखास्त हो गई तो क्या आतंकवाद दब गया. सबकुछ वैसा ही चल रहा है.
‘‘राजनीति की शतरंज की चालें चली जाती रहेंगी और घाघ मुहरों के घर बदलते रहेंगे, पर मुहरे वही रहेंगे. धर्मनिरपेक्ष समाजवाद, लोकतंत्रीय संविधान, बीस सूत्री कार्यक्रम सब अपनी जगह ठीक हैं, लेकिन हम भी अपनी जगह ठीक हैं.
‘‘कल्लू भाई की अपनी राजनीति है, अपना पैंतरा है, लेकिन वह हमारे लिए काम का आदमी है. बड़ा जीवट वाला आदमी है. देखो, उस दिन कालीप्रसाद को बुलाने भेजा तो उसे गिरेबान पकड़ कर घसीटता हुआ ले आया. कालीप्रसाद जैसे धाकड़ और झगड़ालू आदमी के गिरेबान पर हाथ डालना कोई हंसीखेल नहीं है, नरेंद्र.’’
चौधरी साहब आ गए नेताओं वाली भाषण मुद्रा में. लेकिन तभी चपरासी बुद्धा अंदर आया. बोला, ‘‘साहब, दिल्लीपुरा के ठाकुर लोग आए हैं.’’
चौधरी साहब ने उन्हें अंदर भेजने का संकेत किया. कीमती खादी के कपड़ों में झकाझक तड़कभड़क के साथ 5 विशिष्ट व्यक्तियों ने प्रवेश किया.
चौधरी साहब का इशारा समझ कर सभी साथी बाहर खिसक गए. कुछ देर तक कुशलक्षेम चलता रहा.
‘‘साहब, वह आप का पुलिसिया कुत्ता था, अब वह कैसा है?’’
‘‘अरे भाई, किस पुलिसिए कुत्ते की बात कर रहे हो. उस के बाद तो मैं 7 कुत्ते बदल चुका.’’
अभ्यागतों में रमन नामक सदस्य भी था. वह सोचने लगा, ‘कुत्ते नहीं हुए, चप्पलें हो गईं. 1 साल में 7 कुत्ते बदल डाले.’
उधर चौधरी साहब पूछताछ करने लगे, ‘‘हरदयालजी, वह आप के भतीजे की बहू का कुछ चक्कर था… मामला सिमट गया कि नहीं?’’
‘‘नहीं, साहब. उस में कुछ गड़बड़ हो गई. हम समझे थे कि बलात्कार का मामला दर्ज कराएंगे. बहू पढ़ीलिखी है. साहस के साथ कह देगी कि दुर्गा ने उस के साथ जबरदस्ती की.
‘‘लेकिन बहू पहले दिन ही अदालत में घबरा गई और रोने लगी. वकीलों ने जिरह कर उसे और भी बौखला दिया. फिर बाद में कुछ मामला बना भी तो गवाह बिक चुके थे.
‘‘मुरली बाबू ने कुछ टुकड़े फेंक कर उन्हें खरीद लिया, लेकिन चौधरी साहब, एक बाजी जिच भी हो गई तो क्या अगली मात तो हम ही देंगे.’’
‘‘वह कैसे?’’ चौधरी साहब ने दोनों पैर सोफे पर खींच लिए. तभी अवधनारायण ने उठ कर उन की धोती ठीक कर दी.
हरदयाल अपना नक्शा समझाने लगे, ‘‘ ‘अपनी धरती’ अखबार का संपादक है न, शंभूप्रसाद. वह अपना यार है. कुछ मामला उस से बना है. उसी के आदमियों ने कुछ तसवीरें खींची हैं. गुलजार रेस्तरां में शराब पीते हुए, मालतीमाधवी के साथ रंगरलियां मनाते हुए, मार्क्सवादी नेता अर्जुनकुमार के साथ शतरंज खेलते हुए. बस, उन्हीं सब तसवीरों के आधार पर एक कहानी बन गई. यही फिल्म उस की असलियत खोल कर रख देगी.’’
हरदयाल अपनी योजना और भी विस्तार में समझाता, लेकिन तभी चौधरी साहब ने उसे टोक कर मुख्य मुद्दे पर बात करना जरूरी समझा.
आने वालों में अध्यापक ज्ञानेंद्र, वकील सुरेंद्रनाथ, सरपंच मोतीलाल, नेता ज्वालाप्रसाद और रमन उपस्थित थे. हरदयाल एक दूसरे सिलसिले में वहां आया था.
बात रमन ने ही शुरू की, ‘‘चौधरी साहब, अब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा है. हम ने पूरे जिले की नाका चुंगियों का ठेका लिया है. ट्रैफिक से चुंगी वसूल करते हैं. 10 प्रतिशत पार्टी के दफ्तर को देते हैं…’’
‘‘रुकिए, सारी बातें समझदारी के साथ स्पष्ट करनी चाहिए. ऐसा करते हैं, हरदयालजी, आप सब 11 तारीख को हम से मिलना, जो भी उचित होगा, तय कर लेंगे,’’ चौधरी साहब ने रमन की बात बीच में ही काट दी.
हरदयाल चुपचाप उठ कर बाहर चला गया.
‘‘अरे भाई, तुम लोगों में इतनी भी बुद्धि नहीं है कि कोई अन्य बाहरी आदमी बैठा है. ठीक है, आगे कहो.’’
‘‘आगे क्या कहें? 20 प्रतिशत आप के खाते में डाल देते हैं. 20 प्रतिशत सरकारी कामकाज के लिए, खानेपिलाने के लिए रख छोड़ते हैं. बकाया 50 प्रतिशत में हम 4 लोग भागीदार हैं.’’
‘‘फिर?’’
‘‘फिर क्या? वह ज्ञानीशंकर का लड़का नर्मदा अकड़ रहा है. 100-50 लड़के इकट्ठे कर लिए हैं और लड़नेमरने को आमादा है.’’
‘‘ठीक है, ठीक है, कुछ फूल उसे भी भेंट कर दो.’’
‘‘नहीं, चौधरी साहब, वह हरिश्चंद्र की औलाद बनता है. ऐसे लेनेदेने से तो नहीं टूटेगा. और भी जलील करेगा सब के आगे.’’
‘‘चांदी का जूता बहुत भारी होता है, नरेंद्रजी.’’
‘‘चौधरी साहब, नर्मदा अक्खड़- मिजाज और सनकी नौजवान है. उस ने अपना बहुमत बना लिया है. तब तो एक ही उपाय है. उसे साफ कर दिया जाए.’’
‘‘छि:छि:, कैसी छोटी बातें करते हो. ऐसे सनकी और जिद्दी आदमियों की हमें बहुत जरूरत है. मैं कल तहसील आऊंगा खुद नर्मदा से बातें करूंगा. और कुछ?’’
अध्यापक ज्ञानेंद्र ने अपनी बात कही, ‘‘चौधरी साहब, हम ने जिले के परमिट आप की राय के अनुसार ही वितरित किए थे. सेठ भगवानदास को सीमेंट का परमिट दिया गया. मुंशी प्यारेलाल भजनलाल फर्म को मिट्टी का तेल, गोवर्धनप्रसाद को सौफ्ट कोक, अली मुहम्मद को गैस आदि के ठेके दिए गए. हम ने वसूली के लिए चक्कर भी लगाए, लेकिन अधिकांश ने कहा कि उन्होंने अपना धन आप को दे दिया है. यदि ऐसा है तो हमारा हिस्सा दिलवा दीजिए.’’
‘‘देखो, मास्टर ज्ञानेंद्रजी. जब तुम एक निजी पाठशाला में मास्टरी करते थे तो चेहरे पर झुर्रियां थीं, आंखों में गड्ढे थे और कुरतापाजामा में पैबंद लगे थे. तुम्हारी पत्नी क्षयरोग की मरीज लगती थी और बच्चे ऐसे लगते थे जैसे सीधे अनाथाश्रम से आए हों.
‘‘तुम 350 रुपए और मुट्ठीभर इज्जत ले कर बीमार जिंदगी से लड़ रहे थे. मैं ने तुम्हें सड़क से उठा कर मकान में रखा, मकान में दुकान लगवाई, दुकान में चक्की लगवाई, चक्की की कमाई से तुम्हारी रोटियां चल रही हैं.
‘‘चुनाव में तुम्हें विधान सभा का सदस्य बनाने के लिए 1 लाख रुपए खर्च किए हमारे 2 आदमी किशन और रमेश चुनाव युद्ध में काम आ गए. हम ने उन्हें तालाब में फिंकवा कर मामला रफादफा कर दिया. तुम अच्छे वोटों से जीते, तुम्हारा नाम भी हुआ.
‘‘अब रही हिसाबकिताब की बात. भाई मास्टर, पहले मुझे अपने 1 लाख रुपए निकालने हैं. 20-20 हजार रुपए मृत व्यक्तियों के रिश्तेदारों को देने हैं. अभी तो सिर्फ 80 हजार ही वसूल हुए हैं. आप लोग 60 हजार रुपए का प्रबंध कर के मुझे दिलवा दो. फिर चाहो तो मेरा हिस्सा भी तुम खा जाना.
‘‘गांधी, नेहरू जैसे बड़े नेता भी तो चुपचाप सब देखते थे. हिस्सेपट्टे से दूर रहते थे. मेरे पास तो ईमानदारी की कमाई ही बहुत है,’’ चौधरी साहब ने पैर सोफे से नीचे लटका दिए.
‘‘चौधरी साहब, यह तो ठीक है कि अब मेरा पक्का मकान है, लोगबाग इज्जत से देखते हैं, सेहत सुधर गई है, लेकिन राजनीति से इस का कुछ लेनादेना नहीं है.
‘‘हाउसिंग बोर्ड का मकान कर्ज पर लिया है. राजवैद्य चक्रपाणिजी के आयुर्वेदिक उपचार से मुझे स्वास्थ्य लाभ हुआ है. चुनाव में भी लोगों को मेरे चरित्र पर विश्वास था. मैं समझता हूं कि इस चुनाव में किसी का कुछ खर्च नहीं हुआ. क्या प्रमाण है आप के पास? क्या खर्च किया है आप ने?’’
‘‘छि:छि:, उग्र होने से स्वास्थ्य बिगड़ता है, मेरे भाई. सुनो, जिन लोगों को चुनाव से पहले वारुणी की बोतलें वितरित कीं, उन की रसीदें चाहिए क्या? 3 महल्लों में हैंडपंप लगवाए हैं, उन की रसीद चाहिए क्या? 3 हजार कंबल खरीद कर बांटे गए, उन की रसीद चाहिए क्या? कैसी बच्चों जैसी बातें करते हो? बिना खर्चपानी के कोई चुनाव नहीं जीतता. एक प्राइमरी स्कूल के मास्टर की इतनी हस्ती नहीं होती कि वह विधान सभा का चुनाव जीत ले. क्या तुम्हारी सात पुश्तों में भी किसी ने ऐसा सम्मान प्राप्त किया था?
‘‘भाई मेरे, अब तुम सरकार हो, कानून हो, शहर के मालिक हो. तुम किसी को भी जेल में बंद करा सकते हो. किसी को भी जेल से छुड़वा सकते हो. शहर के जुए के अड्डे, रंडियों के कोठे, शराब की भट्ठियां सब तुम्हारी मरजी से चलती हैं.
‘‘मुगल शासनकाल में बादशाह विभिन्न प्रांतों के लिए अलगअलग सूबेदार नियुक्त करता था. वह सूबेदार अपने इलाके का राजा होता था. तुम भी अपने इलाके के राजा हो. किसी का भी तबादला करा सकते हो, नियुक्ति करा सकते हो, निलंबित करा सकते हो. तुम्हारे एक इशारे पर कोई भी पिट सकता है, हवालात में बंद हो सकता है या भगाया जा सकता है. क्या मदरसे की मास्टरी में तुम्हारा यही रोब था?’’
‘‘लेकिन चौधरी साहब, पेट बड़ा हो जाने से खुराक भी ज्यादा हो जाती है. आप ने हमारा पेट बड़ा किया है तो हमें खुराक भी बड़ी चाहिए.’’
‘‘पुलिस विभाग आप के लिए छोड़ दिया है. खाओ और खाने दो. शहर के गुंडेबदमाशों का दोहन करो, लाटरी, जुआ, शराब, चिट आदि की सदाबहार खेती को संभालो.’’
‘‘फिर भी आप को हम सब का हिस्सा तो देना ही होगा. आप जबरदस्ती हमारा हिस्सा हजम नहीं कर सकते.’’
‘‘फिर ठीक है, समझ लो, मैं ने सब कुछ हजम कर लिया. अब आप को जो करना है कर लेना.’’
‘‘समझ लीजिए, चौधरी साहब. आप को यह सौदा महंगा पड़ेगा.’’
‘‘जाओ, मास्टर. राजनीति में ऐसी धमकियां तो हमारा नाश्तापानी हैं. हां, लेकिन हाथपैर संभाल कर वार करना.’’
सभी लोग उत्तेजित से निकल गए. नेताजी ने चपरासी से कहा, ‘‘अंदर कोई नहीं आए. जरा रामदुलारी को भेज देना. कंठ बड़ा चटक रहा है.’’
दूसरे दिन तहसील में होहल्ला मचा हुआ था. वकील सुरेंद्रनाथ, नेता ज्वालाप्रसाद और नरेंद्र का कत्ल हो गया था. रात में 8-10 डाकू आए थे गांव में.
सब से पहले गल्ला फकीर मरा. वह पागल था. पुराने कुएं की जगत पर सोया था. होहल्ला सुन कर डाकुओं के सामने सीना तान कर खड़ा हो गया. एक घोड़े की लगाम भी पकड़ ली. तभी आग के एक शोले ने उसे जमीन पर लिटा दिया. एक ही चीख में ठंडा हो गया वह पागल. उस की कहीं चर्चा भी नहीं हुई.
फिर डाकुओं ने ढूंढ़ढूंढ़ कर तीनों व्यक्तियों को मारा. संयोगवश मास्टर ज्ञानेंद्र किसी काम से शहर गए थे. सरपंच होतीलाल को पेचिश लग गई थी. वह सरकारी अस्पताल का लाल पानी पीने के लिए गांव से बाहर ही थे. शायद इसीलिए शहीद होतेहोते बच गए.
सरकारी टेलीफोन की घंटियां घनघना उठीं. नेता, अभिनेता, पत्रकार, फोटोग्राफर आदि की लाइनें लगने लगीं. पुलिस हरकत में आ गई.
दूरदूर तक डाकुओं का पीछा किया गया. उन की धूल भी हाथ न लगी, लेकिन पुलिस को तो कुछ न कुछ करना ही था. 30 आदमियों को गिरफ्तार किया गया. गांवतहसील में कुछ नारेबाजियां हुईं. फिर सबकुछ शांत हो गया.
दूसरे दिन शाम को मास्टर ज्ञानेंद्र चुपचाप आए डरेसहमे से. चौधरी साहब ने उन का स्वागत किया. अंदर के निजी कक्ष में कुछ भेद की बातें हुईं. कुछ देर बाद मास्टर ज्ञानेंद्र कुछ संतुष्ट से, कुछ खुश से बाहर निकले.
ज्ञानेंद्र ने गांव संभाल लिया था. अब उन के मकान की दूसरी मंजिल का काम संगमरमर से हो रहा था. कुछ नई शक्लसूरतें गांव में दिखाई दे रही थीं.
फिर एक दिन चौधरी साहब गांव में आए. सब को आश्वस्त किया. लोग उन से सहमे हुए थे, डरे हुए थे. और तो सब ठीकठाक था. सब जगह शांति थी. लोग अपनेअपने कामों में लग गए थे.
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